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Subject – General science
Topic – Important Drugs (Synthetic and Natural), Antioxidants, Preservatives, Insecticides, Pesticides, Fungicides, Herbicides, Fertilisers, Binders, and Sweeteners.Carbon, its compounds, and their domestic and industrial applications.
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Q1 What is hydrogenation? What is its industrial application?(2M)
Answer:
Addition of hydrogen to unsaturated hydrocarbons in presence of a catalyst such as nickel or palladium to form saturated hydrocarbons is called hydrogenation.
Industrial application of Hydrogenation:
Food Industry: To prepare vegetable ghee from vegetable oils.
Petrochemical Industry: Converts unsaturated hydrocarbons in crude oil or natural gas into saturated hydrocarbons to improve the quality of petroleum products.
Hydrogenation of Nitro Compounds: Converts nitro compounds into amino compounds, important in dye, pesticide, and pharmaceutical synthesis.
Q2 How does diamond and graphite differ from each other?(5M)
Answer:
Q3 What are drugs, and what are the different classes of drugs, along with examples, based on their therapeutic action?(10M)
Answer:
Drugs are chemicals of low molecular masses (~100 – 500u) that interact with biological macromolecular targets such as carbohydrates, proteins, lipids, and nucleic acids, and produce a biological response. When these responses are beneficial, the chemicals become medicines used for diagnosing, preventing, and treating diseases.
Q.4 निम्नलिखित विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए-
वर्तमान में गांधीवाद की प्रासंगिकता
Answer:
किसी भी शोषण का अहिंसक प्रतिरोध, स्व से पहले दूसरों की सेवा, संचय से पहले त्याग, झूठ के स्थान पर सच, अपने बजाय देश और समाज की चिंता करना आदि विचारों को समग्र रूप से ‘गांधीवाद’ की संज्ञा दी जाती है। गांधीवादी विचार व्यापक रूप से प्राचीन भारतीय दर्शन से प्रेरणा पाते हैं और इन विचारों की प्रासंगिकता अभी भी बरकरार है। आज के दौर में जब समाज में कल्याणकारी आदशों का स्थान असार, अवसरवाद, धोखा, चालाकी, लालच व स्वार्थपरता जैसे संकीर्ण विचारों द्वारा लिया जा रहा है तो समाज सहिष्णुता, प्रेम, मानवता, भाईचारे जैसे उच्च आदर्शों को विस्मृत करता जा रहा है। विश्व शक्तियाँ शस्त्र एकत्र करने की स्पर्धा में लगी हुई हैं। कई देश ऐसे अस्त्र-शस्त्र लिये बैठे हैं, जिनसे एक बार में ही संपूर्ण मानवता को नष्ट किया जा सकता है। ऐसे में विश्व शांति की पुनर्स्थापना के लिये, मानवीय मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिये आज गांधीवाद नए स्वरूप में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठा है।
गांधी जी धर्म व नैतिकता में अटूट विश्वास रखते थे। उनके लिये धर्म, प्रथाओं व आडंबरों की सीमा में बंधा हुआ नहीं वरन् आचरण की एक विधि था। गांधी जी के अनुसार धर्मविहीन राजनीति मृत्युजाल है, धर्म व राजनीति का सह-अस्तित्व ही समाज की बेहतरी के लिये नींव तैयार करता है। गांधी जी साधन व साध्य दोनों की शुद्धता पर बल देते थे। उनके अनुसार साधन व साध्य में बीज व पेड़ के जैसा संबंध है एवं दूषित बीज होने की दशा में स्वस्थ पेड़ की उम्मीद करना अकल्पनीय है।
सत्य और अहिंसा गांधीवाद के आधार स्तंभ हैं। गांधी जी का मत था कि सत्य सदैव विजयी होता है और यदि आपका संघर्ष सत्य के लिये है तो आप हिंसा का लेशमात्र उपयोग किये बिना भी अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं। गांधी जी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है। गांधी जी व्यक्तिगत जीवन से लेकर वैश्विक स्तर पर ‘मनसा वाचा कर्मणा’ अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने पर बल देते थे। आज के संघर्षरत विश्व में अहिंसा जैसा आदर्श अति आवश्यक है। गांधी जी बुद्ध के सिद्धांतों का अनुगमन कर इच्छाओं की न्यूनता पर भी बल देते थे। यदि इस सिद्धांत का पालन किया जाए तो आज क्षुद्र राजनीतिक व आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये व्याकुल समाज व विश्व अपनी कई समस्याओं का निदान खोज सकता है।
गांधीवाद केवल अध्यात्म अथवा दर्शन तक सीमित हो ऐसा नहीं था। अपने सिद्धांतों में गांधी जी ने राजनीतिक व आर्थिक दृष्टिकोण का भी समाहार किया था। वे दोनों क्षेत्रों में विकेंद्रीकरण के प्रबल पक्षधर थे। आत्मनिर्भर व स्वायत्त ग्राम पंचायतों की स्थापना के माध्यम से ग्रामीण समाज के अंतिम छोर पर मौजूद व्यक्ति तक शासन की पहुँच सुनिश्चित करना ही गांधी जी का ग्राम स्वराज्य सिद्धांत था। आर्थिक मामलों में भी गांधी जी विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के माध्यम से लघु, सूक्ष्म व कुटीर उद्योगों की स्थापना पर बल देते थे। उनका मत था कि भारी उद्योगों की स्थापना के पश्चात् इनसे निकलने वाली जहरीली गैसें व धुआँ पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं, साथ ही बहुत बड़े उद्योगों का अस्तित्व श्रमिक वर्ग के शोषण का भी मार्ग तैयार करता है। जलवायु परिवर्तन आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में गांधी जी के ये विचार शत-प्रतिशत सत्य व प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। गांधी जी ने अपने आर्थिक आदशों में पूंजीवाद व समाजवाद का अद्वितीय समन्वय किया। न तो वे पूंजी के केंद्रीकरण के पक्षधर थे और न ही वे अमीरों की पूंजी गरीबों में बाँट देने की बात करते थे। उनके विचार में धन व उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियंत्रण की स्थापना हेतु एक न्यास जैसी व्यवस्था स्थापित करने पर बल दिया जाना चाहिये। उनके अनुसार न तो पूंजीवाद को नष्ट करना संभव था व न ही मार्क्स के सुझाए साम्यवाद की स्थापना। अतः एक मध्यमार्ग ही उचित विकल्प होगा।
गांधी जी शिक्षा के संदर्भ में अध्ययन व जीविका कमाने का कार्य एक साथ करने पर बल देते थे। आज जब बेरोज़गारी देश की इतनी बड़ी समस्या है तब गांधी जी के इस विचार को ध्यान में रखकर शिक्षा नीतियाँ बनाना लाभप्रद होगा। गांधी जी का राष्ट्र का विचार भी अत्यंत प्रगतिशील था। उनका राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के विचार से प्रेरित था। वे राष्ट्रवाद की अंतिम परिणति केवल एक राष्ट्र के हितों तक सीमित न मानते हुए उसे विश्व कल्याण की दिशा में विस्तृत करने पर बल देते थे। आजकल राष्ट्रवाद का अतिवादी होता स्वरूप को देखते हुए गांधीवादी राष्ट्रवाद सटीक लगता है।
गांधीवाद की प्रासंगिकता को समझते हुए हमारे देश के संविधान में भी उनके कई विचारों को स्थान दिया गया व उन विचारों का आज भी प्रासंगिक होना यह सिद्ध करता है कि गांधी के विचार कभी भी पुराने नहीं पड़ सकते। विश्व की समस्याओं का समाधान खोजने की राह गांधीवाद में समुचित नवाचार कर उसे प्रयोग करने से काफी आसान हो सकेगी।