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Subject – General Science
Topic – Metal, Non-metal, and Metalloids, Metallurgical Principles and methods, Important ores and alloys, Acid, Base, and Salts, concept of pH and Buffers
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Q1 What are metalloids? Name four metalloids.(2M)
Answer:
Metalloids (Semimetals) are elements that exhibit intermediate properties between metals and nonmetals.
They are located along the zig-zag line in the periodic table, separating metals from non-metals.
- Boron: Used in fireworks for green flames; cleaning agents and pest control.
- Silicon: computer chips; waterproof sealants (silicones).
- Germanium: production of semiconductors
- Arsenic: historically as a pesticide , production of semiconductors
- Antimony: Used in paints and ceramic enamels; as a cosmetic.
- Tellurium: manufacturing of thermoelectric devices for power generation and cooling applications.
- Polonium: Rare and highly radioactive; Limited use due to extreme toxicity
Q2 What are buffer solutions, and how do they prevent changes in pH? Explain with examples.(5M)
Answer:
Buffer solutions are aqueous solutions that resist changes in pH when small amounts of acid or base are added to them.
They prevent changes in pH by utilizing the equilibrium between a weak acid and its conjugate base (or a weak base and its conjugate acid) to neutralize added acid or base, maintaining the pH of the solution within a relatively narrow range.
Eg. Blood maintain pH of 7.4 → contain carbonate/bicarbonate buffer
Q3 Define metallurgy and briefly explain the key processes involved in the extraction of metals from ores.(10M)
Answer:
The entire scientific and technological process used for isolation of the metal from its ores is known as metallurgy. Ores are usually contaminated with earthly or undesired materials known as gangue. The extraction and isolation of metals from ores involve the following major steps:
- Crushing and Grinding : Pulverization ⇒ Find powder is prepared to increase the surface area for chemical reactions.
- Concentration of Ores → Removal of Gauge
- Physical Methods
- Hydraulic washing: based on the differences in gravities of the ore and the gangue particles ⇒ gravity separation. Eg for Gold, Chromium and Iron
- Magnetic Separation : when either the ore or the gangue (one of these two) is capable of being attracted by a magnetic field . Ex Pyrolusite (MnO2) & Chromite (FeO.Cr2O3)
- Froth Floatation : for removing gangue from sulphide ores .{ a suspension of powdered ore is made with water, to which collectors (e.g., pine oils, fatty acids, xanthates) and froth stabilizers (e.g., cresols, aniline) are added.
- Chemical methods
- Leaching: commonly employed when the ore is soluble in suitable solvent.
- Leaching of Alumina from Bauxite: Bauxite is digested with a concentrated solution of NaOH at elevated temperatures and pressures. This leaches out Al2O3 as sodium aluminate, leaving impurities behind.
- Other Examples: silver and gold ⇒ the respective metal is leached with a dilute solution of NaCN or KCN in the presence of air.
- Leaching: commonly employed when the ore is soluble in suitable solvent.
- Conversion of ore into metal oxide:
Heating in the presence of air (roasting) or without air (calcination) to remove volatile impurities, moisture, and sulphur. → Leaving behind metal oxide
Roasting : Primarily for sulphide ores | Calcination → for carbonate ores |
- Reduction of Metal Oxide/smelting (koi si bhi ek reaction sufficient hai )
- Smelting is the process of extracting a metal from its oxide ore by heating it with a reducing agent such as coke (carbon) in a furnace.
- Extraction of copper from cuprous oxide [copper(I) oxide]: Coke as reducing agent
- Cu2O(s)+C(s)→2Cu(s)+CO(g)
- Extraction of zinc from zinc oxide
- ZnO + C → Zn + CO (coke,1673K)
- Refining/Purification : Refining methods include distillation, fractional crystallization, liquation, electrolytic refining, zone refining, vapour phase refining, and chromatographic methods.
Q4 निम्नलिखित विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए-
भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियाँ
Answer:
समानो मन्त्रः समिति समानो
समानं मनः सह चित्तमेषाम
समानं मंत्राभिः मन्त्रये वः
समानेन वो हविषा जुहोनि !!
लोकतंत्र में समस्त शासन व्यवस्था का स्वरूप जन सहमति पर आधारित मर्यादित सत्ता के आदर्श पर व्यवस्थित होता है। हाल ही में नई दिल्ली में संसद 20 (Parliament-20) शिखर सम्मेलन ने विश्व के सामने भारत की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत और मूल्यों को प्रदर्शित किया। समावेशिता, समानता तथा सद्भाव पर ज़ोर भारतीय लोकतंत्र का केंद्र है। लोकतंत्र केवल शासन के रूप तक ही सीमित नहीं है, वह समाज का एक संगठन भी है। लोकतंत्र वह समाज है जिसमें जाति, धर्म, वर्ण, वंश, धन, लिंग आदि के आधार पर व्यक्ति व्यक्ति के बीच भेदभाव नहीं किया जाता है। इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए विधानमंडलों में आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, 1951 में पहले आम चुनाव के दौरान, भारत में 54 राजनीतिक दल थे और अब 2019 के आम चुनाव में यह बढ़कर 464 हो गया है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गहराई का प्रमाण है। राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए उसका आर्थिक लोकतंत्र से गठबंधन आवश्यक है। आर्थिक लोकतन्त्र का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने विकास की समान भौतिक सुविधाएँ मिलें। आजादी के समय दो तिहाई जनसंख्या गरीबी से ग्रस्त थी जो अब 20 प्रतिशत के आसपास है। साथ ही, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर 1990 के दशक के आर्थिक संकट से निपटने तक लोकतांत्रिक मूल्यों का विशेष ख्याल रखा गया और इसी दायरे में रहते हुए एक क्षेत्रीय शक्ति के केंद्र के रूप में उभरना इसका प्रमाण है। एक ओर घोर निर्धनता तथा दूसरी ओर विपुल संपन्नता के वातावरण में लोकतंत्रात्मक राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र समृद्ध है, अनूठा है, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है; परन्तु अब भारत जिसने हर संकट की घड़ी में बिना धैर्य खोये हर मुसीबत का सामना किया, अनेकों बुराइयों से जकड़ गया; मसलन आतंकवाद, भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, जातिवाद, सत्ता लोलुपता के लिए सस्ती राजनीति करना जो कि कभी कभी सामाजिक वैमनस्य के साथ साथ देश की एकता को ही संकट में डाल देता है, राजनीति में वंशवाद व भाई-भतीजावाद, न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब आदि-आदि। राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग ने सिविल और न्यायिक प्रशासन के बारे में कहा है कि प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, उदासीनता और अक्षमता ने गैर-कानूनी प्रणालियों, समानांतर अर्थ-व्यवस्थाओं और सामानांतर सरकारों तक को जन्म दिया है। इस कुशासन की वजह से लोगों का अब लोकतंत्र की संस्थाओं में अविश्वास और मोहभंग हो गया है। अनुच्छेद 311 ने सिविल सेवाओं को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की है, बेईमान अधिकारी अपने गलत कामों के परिणामों से बचने के लिए इस अनुच्छेद की आड़ लेते हैं। संविधान द्वारा स्थापित लोकतंत्रात्मक राज्य-व्यवस्था पर भारी दबाव है। राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण, बाहुबल, धनबल, और माफिया शक्ति के बढ़ते हुए महत्त्व, राजनीतिक जीवन में जातिवाद, साम्प्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार के प्रभाव ने राजनीतिक परिदृश्य को विषाक्त कर दिया है। 17वीं लोकसभा में 50% सदस्य आपराधिक रिकॉर्ड वाले हैं। भारत में आजादी के इतने वर्ष बाद अभी भी गरीब और अशिक्षित है जो कि एक कलंक के समान है। खंडित समाज में राष्ट्र की एकता, राष्ट्रीय अखंडता या भारतीय अस्मिता राजनीतिक मंचों से बोले जाने वाले नारे-मात्र सिद्ध हुए हैं। देश के लिए गर्व का ये मुहावरा “विविधता में एकता” जो भारत के लिए प्रयोग किया जाता है, राजनीतिज्ञों के दु-राजनीति करने का हथियार बन चुका है।
डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत पर flawed democracy का टैग लगाना और वी डेम रिपोर्ट द्वारा इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी की संज्ञा देना सोचनीय है। राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता के व्यापारियों वोटों के लिए धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश आदि के नाम पर फूट डालकर एकता को खंडित करते हैं। उनके लिए विकास, जनसेवा अथवा राष्ट्र-निर्माण की बात करना बेईमानी है। पद लोलुपता और शक्ति का केंद्र बनने की लालसा के चलते आंशिक बहुमत और गठबंधन सरकारें विकासात्मक मुद्दों के बजाय “रिजॉर्ट डेमोक्रेसी” तक सीमित हो गई हैं जहां राजनेताओं की बाड़ेबंदी और नवीन सरकार गठन की तरकीबों के पीछे समय जाया किया जाता है। यद्यपि भारत ने आजादी के 75 वर्षों के सफर में उल्लेखनीय प्रगति की हैं, अनेक समस्याओं का समाधान किया है, परंतु चुनौतियाँ खत्म नहीं हुई हैं। यदि हर स्तर पर सामूहिक कोशिश की जाए तो अनेक समस्याओं से और इन चुनौतियों से निजात पायी जा सकती है।
उपरोक्त चुनौतियों के समाधान हेतु नवाचारों की जरूरत है। हाल ही में सांसद शशि थरूर जी ने संसद में सप्ताह में एक दिन “अपोजिशन डे” के रूप में घोषित करने की मांग की जो ब्रिटिश संसदीय नवाचार है। यह नवाचार मजबूत लोकतंत्र हेतु मजबूत विपक्ष की धारणा को बलवती बनाएगा। आलोचनाओं का स्वागत करने की परंपरा, सामाजिक समरसता, सांप्रदायिक सौहार्द, धर्म और जाति पर राजनीति के बजाय मुद्दा आधारित राजनीति पर बल दिया जाए। इस हेतु चुनाव आयोग को पहल करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को भी न्यायिक सक्रियतावाद के तहत नज़ीर पेश करनी चाहिए। सुधारों का एक विकल्प गांधी जी का मॉडल है जिसके अंतर्गत राजनीति को जनता की सेवा का साधन समझा जाता है, सत्ता का निम्न स्तर तक विकेंद्रीकरण होता है; साधारण व्यक्ति अपने को स्वतंत्र समझता है और शासन-कार्यों में भाग लेता है। शासन की इकाई गाँव होता है, सत्ता का रूख नीचे से ऊपर की ओर होता है, समूचा शासन पारदर्शी होता है। उपरोक्त समाधान और नवाचारों को अपनाते हुए अमृत काल के अंत (2047) तक हमें सही मायने में सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और राजनीतिक लोकतंत्र की प्राप्ति करनी होगी।
विश्व भारत को लोकतंत्र की जननी (mother of democracy) के रूप में जनता है, पर अब देश के सामने जो चारित्रिक संकट है जो व्यक्तिगत भी है और सामूहिक भी। हर कर्तव्यपरायण नागरिक को विशेषकर युवाओं को व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आगे आकर अपना विरोध जताना चाहिए; उनमें सुधार का प्रयास करना चाहिए। भारत युवाओं का देश हैं, युवा ही देश का भविष्य है। अब उन्हें ही समस्याओं तथा चुनौतियों के मूल तक जाना होगा और समझ कर उसका निदान ढूँढना होगा। युवाओं को अब स्वामी विवेकानंद जैसे चिंतको के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का समय आ गया है, उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा है कि-
“उत्तिष्ठत जाग्रत,
प्राप्यवरान्निबोधत !
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्या
दुर्ग पथस्तत कवर्योवदन्ति !!”