10 May RAS Mains Answer Writing

Ras mains answer writing practice

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Subject – General Science

Topic – Static and Current Electricity, Magnetism, Electro-Magnetism, Sound, and Electromagnetic Waves

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Click on the question to see the model answer. Submit your answers below and complete the 90-day challenge for RAS Mains answer writing

Q1 Highlight the major differences between static electricity and current electricity.(2M)

Answer:

Q2 Write about the nature of electromagnetic (EM) waves.(5M)

Nature of Electromagnetic (EM) Waves:

  1. Transverse Nature: Electric and magnetic fields in EM waves are perpendicular to each other and to the direction of propagation.
  2. Self-Sustaining Oscillations: EM waves are self-sustaining oscillations of electric and magnetic fields in free space, requiring no material medium for propagation.
  3. Electromagnetic Spectrum: It encompasses all EM waves based on frequency, wavelength, or energy.
  4. Constant Speed: EM waves travel at the speed of light, c = 3.00×10^8 m/s in a vacuum, with a lower speed in other mediums.
  5. Energy Transmission: Crucial for transmitting energy, facilitating communication, and sustaining life by enabling processes like sunlight reaching Earth.
  6. Wave-Particle Duality: Exhibits wave-like and particle-like properties according to quantum mechanics.
  7. Photons: All electromagnetic radiation is quantized into finite “bundles” of energy called photons.

Q3 Answer the following parts of the question.(10M)
What is magnetic susceptibility? Define Paramagnetic, Diamagnetic, and Ferromagnetic based on it.
What are superconductors?
What are permanent magnets and electromagnets? Write one example of each.

Answer:

Magnetic susceptibility (denoted χ, chi) is a measure of the extent to which a material can be magnetized in an applied magnetic field. It is the ratio of magnetization M (magnetic moment per unit volume) to the applied magnetizing field intensity H.

M = χH

Magnetic susceptibility indicates whether a material is attracted into or repelled out of a magnetic field.

  1. What are superconductors?

Superconductors are materials that show a transition to zero resistance (perfect conductivity) and perfect diamagnetism below a certain critical temperature.

  • Perfect diamagnetism : Here the field lines are completely expelled! χ = –1 .A superconductor repels a magnet and (by Newton’s third law) is repelled by the magnet. 
  • The phenomenon of perfect diamagnetism in superconductors is called the Meissner effect (used Magnetic Levitation).

Type I : mercury and lead

Type -II : LaBaCuO, BaCuO

  1. What are permanent magnets and electromagnets? Write one example of each.
  • Permanent magnets are materials that retain their magnetism even after the removal of an external magnetic field. They are typically made of ferromagnetic materials.
    • The hysteresis curve allows us to select suitable materials for permanent magnets. 
    • The material should have high retentivity, high coercivity,and high permeability.
    • Steel, alnico, cobalt steel and ticonal.
  • Electromagnets: An electromagnet is a type of magnet in which the magnetic field is produced by an electric current. Electromagnets usually consist of wire wound into a coil.
    • Core of electromagnets are made of ferromagnetic materials which have high permeability and low retentivity. The hysteresis curve of such materials must be narrow. 
    • Ex. Soft iron
    • Electromagnets are used in electric bells, loudspeakers and telephone diaphragms. Giant electromagnets are used in cranes to lift machinery

The main advantage of an electromagnet over a permanent magnet is that the magnetic field can be quickly changed by controlling the amount of electric current in the winding. However, unlike a permanent magnet that needs no power, an electromagnet requires a continuous supply of current to maintain the magnetic field.

Q.4 निम्नलिखित विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए –

एक राष्ट्र, एक चुनाव : चुनौतियाँ व उपाय

Answer:

एक राष्ट्र, एक चुनाव : चुनौतियाँ व उपाय

भारतीय जन-मानस ने तमाम आशंकाओं को निराधार साबित करते हुए धूम-धाम से लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया तथा परिणाम सबके सामने है। यदि हम आज भारतीय शासन तंत्र पर गर्व कर पा रहे हैं तो निश्चित तौर पर इसके पीछे कुछ कारक मौजूद हैं। उन्हीं में से एक है-चुनाव प्रणाली। हर प्रणाली में समय-समय पर कुछ बदलावों तथा कुछ सुधारों की गुंजाइश बनी रहती है। उन्हीं सुधारों में से एक है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ संबंधी अवधारणा, जिसका अभिप्राय है- पूरे देश में एक ही समय पर वर्तमान में प्रचलित व्यवस्था के विपरीत लोकसभा, विधानसभाओं व अन्य स्थानीय स्तर के चुनावों का आयोजन किया जाना। इस व्यवस्था के निश्चित तौर पर कई लाभ हो सकते हैं।

एक चुनाव प्रणाली के द्वारा पाँच साल में केवल एक बार चुनाव आयोजित होने से सरकार एक निश्चित समयावधि के लिये चुनाव प्रचारों जैसे कार्यों से मुक्त हो पाएगी तथा शासन व्यवस्था पर पूरा ध्यान केंद्रित कर पाएगी, जो विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। ध्यातव्य है कि अभी भी भारतीय चुनाव में विकास आधारित एजेंडे की बजाय क्षेत्रीयता को महत्त्व दिया जाता है, किंतु एक साथ सभी स्तरों पर चुनाव होने से लोग प्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रीय सरोकारों के आधार पर बड़े उद्देश्यों पर ध्यान दे पाएंगे और उसी के अनुसार अपना मत निर्धारित करने के काबिल हो पाएंगे। साथ ही बार-बार चुनाव आयोजन से होने वाली सुरक्षा संबंधी समस्याओं का निराकरण संभव हो पाएगा। इसके अलावा जनता में उत्साह बढ़ेगा व गवर्नेस संबंधी मानकों में भी सुधार आने की संभावना को बल मिलेगा।

गौरतलब है कि भारत में हर साल किसी-न-किसी राज्य में चुनाव्र होते रहते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर सरकारी व्यय होता है तथा संसाधनों के दोहन में भी तेजी आ जाती है। इसका सीधा प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। जिसकी भरपाई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आम नागरिकों के द्वारा की जाती है। प्रशासन तंत्र का बड़ा भाग चुनाव संपन्न कराने में ही उलझा रहता है। परिणामस्वरूप पहले से बोझ तले दबा हुआ ये तंत्र और गंभीर स्थिति में आ खड़ा होता है व राज्य या देश के उन हिस्सों में, जहाँ चुनाव आयोजित नहीं हो रहे हैं, कानून व प्रशासनिक व्यवस्था की स्थिति में गिरावट आ जाती है। चुनावों में अध्यापकों को चुनाव प्रक्रिया संपन्न करवाने का जिम्मा सौंपा जाता है, जिससे अध्यापकों की कमी का नकारात्मक प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है।

हालाँकि, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रणाली अपनाने में भी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। इसकी सबसे बड़ी चुनौती/समस्या इसके सही क्रियान्वयन की है, क्योंकि इसके मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा/रुकावट राजनीतिक पार्टियाँ हैं। जो इस प्रकार की प्रक्रिया की कम समर्थक होती हैं। साथ ही, इस अवधारणा का क्रियान्वयन संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध भी है। वर्तमान समय में अनुच्छेद 172(1) के अंतर्गत जब सरकारों को लगता है कि तात्कालिक परिस्थितियाँ संवैधानिक कार्य के निर्वहन में असमर्थ साबित हो रही हैं, तभी राज्य सरकारें राज्यपालों के आदेश द्वारा नए चुनावों की घोषणा करवा सकती हैं। एक अन्य समस्या ये भी है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिये लाखों अधिकारियों व कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, जबकि चुनाव आयोग के पास तो अभी तक खुद के पोलिंग बूथ कर्मचारी भी नहीं हैं तथा वह अध्यापकों व अन्य वर्गों से संबंधित कर्मचारियों के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया संपन्न करवा पाता है।

इन सारी चुनौतियों के बावजूद ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर फलीभूत किया जा सकता है, बशर्ते कुछ सकारात्मक उपाय खोजे जाएँ। सर्वप्रथम इसके लिये दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता पड़ेगी। सभी राजनीतिक पार्टियों को आपसी मतभेद खत्म कर चुनाव आयोग की क्षमता व शक्तियों में विस्तार करना होगा, ताकि वह इतने बड़े स्तर पर एक साथ चुनावों का आयोजन करवा सके। इस संबंध में केवल निर्वाचन आयोग हेतु समर्पित भर्तियाँ की जानी चाहियें और उन चयनित अधिकारियों की शक्तियाँ भी अन्य अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के समान होनी चाहियें। ध्यान रहे चुनावों के समय जिलाधिकारी ही जिला निर्वाचन अधिकारी की भूमिका का निर्वहन करता है। साथ ही, तकनीकी अवसंरचना के विस्तार के साथ-साथ अधिक सुदृढ़ स्वरूप प्रदान करना होगा। संवैधानिक अड़चनों से बचने हेतु कुछ प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता है।

अतः संपूर्ण परिदृश्य के अवलोकन के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का यह प्रस्ताव बुरा नहीं है। हाँ, इस राह में अभी काफी चुनौतियाँ विद्यमान हैं, जिन्हें दूर किये बिना इसे लागू करना दुष्कर है। किंतु, यदि हम इन चुनौतियों को दूर कर पाएँ तो राष्ट्रहित में यह अवधारणा ‘मील का पत्थर’ साबित हो सकती है तथा तमाम संसाधनों के विदोहन को कम करके बेहतर कल का मार्ग सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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