This is Day 79 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program
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GS Answer Writing – Important current questions । निबंध लेखन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Generative AI) का उपयोग करते हुए एक डिजिटल स्वास्थ्य संवर्धक प्रोटोटाइप S.A.R.A.H. का अनावरण किया है।
S.A.R.A.H. के बारे में:
- यह प्रमुख स्वास्थ्य विषयों जैसे स्वस्थ आदतों और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी प्रदान करती है।
- कुछ प्रमुख मृत्यु कारणों (जैसे – कैंसर, हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारी और मधुमेह) के लिए जोखिम कारकों की बेहतर समझ विकसित करने में सहायता करती है।
भारत का प्रस्तावित शुक्रयान मिशन (Venus Orbiter Mission – VOM), जिसे शुक्रयान-1 भी कहा जाता है, का उद्देश्य शुक्र ग्रह के वातावरण, सतही संरचना और जलवायु स्थितियों का गहन अध्ययन करना है।
VOM के उद्देश्य
- शुक्र के वातावरण का अध्ययन: शुक्र के सघन और CO₂ प्रधान वायुमंडल (96.5% CO₂) का विश्लेषण करना।
इसकी सुपर-रोटेशनल हवाओं (जो ग्रह की घूर्णन गति से 60 गुना तेज़ हैं) को समझना। - सतही भूविज्ञान का मानचित्रण: सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) की मदद से ज्वालामुखीय गतिविधियों और विवर्तनिक (tectonic) संरचनाओं का अध्ययन।
- जलवायु गतिकी का विश्लेषण: रनअवे ग्रीनहाउस प्रभाव का परीक्षण — शुक्र की सतह का तापमान लगभग 465°C है — जिससे पृथ्वी के जलवायु परिवर्तन को समझने में मदद मिल सकती है।
- जीवन के संकेतों की खोज: बादलों की परतों (50–70 किमी ऊंचाई पर) में फॉस्फीन या अन्य संभावित बायोसिग्नेचर का पता लगाना।
VOM का महत्व
- भारत का पहला शुक्र मिशन: यह ISRO को NASA, ESA (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी), और Roscosmos जैसी संस्थाओं की श्रेणी में स्थापित करेगा।
- अभूतपूर्व वैज्ञानिक फोकस: रात्रिकालीन वातावरण, सक्रिय ज्वालामुखिता जैसे कम अन्वेषित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान।
- प्रौद्योगिकीय उन्नति: 500°C से अधिक तापमान सहन करने वाली उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणाली का परीक्षण।
SAR जैसी अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग। - वैश्विक सहयोग: फ्रांस की CNES (इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर), और जापान की JAXA (लाइटनिंग डिटेक्टर) के साथ भागीदारी।
प्रमुख पेलोड (Payloads)
- सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR): शुक्र की सतह को मैप करने एवं ज्वालामुखीय गतिविधियों की पहचान हेतु।
- इन्फ्रारेड एवं अल्ट्रावॉयलेट सेंसर: वायुमंडलीय संरचना एवं बादलों की गतिशीलता का अध्ययन।
- मास स्पेक्ट्रोमीटर: शुक्र के वायुमंडलीय गैसों की रासायनिक संरचना का विश्लेषण।
- मैग्नेटोमीटर: शुक्र के दुर्बल चुंबकीय क्षेत्र एवं सौर पवन (solar wind) के साथ उसकी क्रिया का अध्ययन।
ग्रह विज्ञान में योगदान
- वायुमंडलीय अध्ययन: सल्फ्यूरिक अम्लीय बादलों के निर्माण एवं सुपर-रोटेशन की प्रक्रियाओं को समझना।
- भूवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि: लावा प्रवाह के माध्यम से हालिया ज्वालामुखीय गतिविधियों की पुष्टि करना।
- एक्सोप्लैनेट अनुसंधान: शुक्र के चरम ग्रीनहाउस प्रभाव से पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों की रहने योग्य सीमाओं (Habitable Zones) को समझना।
- तकनीकी प्रदर्शन: भविष्य में शुक्र पर लैंडर या हवाई प्लेटफॉर्म (जैसे गुब्बारे) भेजने की संभावनाओं को मजबूत करना।
शुक्रयान-1 भारत की अंतरग्रहीय अन्वेषण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा। यह पृथ्वी जैसे ग्रहों की संरचना, जलवायु परिवर्तन, एवं वायुमंडलीय विकास को समझने में वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को नई अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
एकसाथ चुनाव से तात्पर्य लोक सभा और सभी राज्य विधान सभाओं के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में एक साथ चुनाव आयोजित करने से है। हाल ही में, भारत सरकार ने इस विचार की व्यवहार्यता की जाँच के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया, जिसने इस मुद्दे पर बहस को पुनर्जनन किया।
तर्क और उद्देश्य:
- आदर्श आचार संहिता (MCC) की बार-बार लागू होने वाली बाधा को कम करना, जो विकास को बाधित करती है।
- बढ़ते चुनावी व्यय और प्रशासनिक बोझ को कम करना।
- शासन में सुधार, ताकि निर्वाचित प्रतिनिधि निरंतर प्रचार के बजाय नीति निर्माण पर ध्यान दे सकें।
- मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहित करना और चुनावी थकान को कम करना।
समिति की सिफारिशें:
- चरण 1: लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एकसाथ चुनाव; चरण 2: पंचायत और नगरपालिका चुनाव 100 दिनों के भीतर।
- अनुच्छेद 83 (लोक सभा का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (संसद सत्र), अनुच्छेद 172 (राज्य विधान सभा का कार्यकाल), अनुच्छेद 174 (राज्य विधान सभा सत्र), और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) में संशोधन।
- रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव की शुरुआत।
- दल-बदल विरोधी कानून और विधानमंडलों की प्रक्रिया नियमों में संशोधन।
- अनुच्छेद 368 के तहत कम से कम 50% राज्यों द्वारा संशोधनों की पुष्टि।
लाभ:
- सार्वजनिक व्यय में उल्लेखनीय कमी।
- नीति निरंतरता और शासन दक्षता में वृद्धि।
- चुनावी मशीनरी और सुरक्षा बलों का बेहतर उपयोग।
- चुनावों की कम आवृत्ति के कारण मतदाता सहभागिता में वृद्धि।
चुनौतियाँ:
- संवैधानिक और संघीय मुद्दे: संघीय ढांचे और राज्य स्वायत्तता का उल्लंघन, विशेष रूप से विघटन समयसीमा तय करने में।
- तार्किक बाधाएँ: अधिक संसाधनों और समन्वय की आवश्यकता।
- राजनीतिक और क्षेत्रीय विविधता: राज्यों के अलग-अलग राजनीतिक चक्र और स्थानीय मुद्दे।
- मध्यावधि विघटन: सरकारों के शीघ्र विघटन से निपटने की स्पष्टता का अभाव।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव:
- दक्षिण अफ्रीका: राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव एक साथ।
- स्वीडन: राष्ट्रीय और नगरपालिका चुनाव निश्चित तारीखों पर।
आगे की राह:
- चयनित राज्यों में पायलट परियोजनाएँ।
- जन जागरूकता अभियान और चुनावी वित्त सुधार।
- सभी दलों में राजनीतिक सहमति बनाना।
- चरणबद्ध कार्यकाल या लचीली चुनाव खिड़कियाँ शुरू करना।
- व्यापक परामर्श के बाद ही संबंधित कानूनों में संशोधन।
एकसाथ चुनाव लागत बचत और शासन लाभ का वादा करते हैं, लेकिन यह गंभीर संवैधानिक और परिचालन चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करते हैं। लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखते हुए इस चुनावी सुधार की खोज के लिए एक सतर्क, सहमति-आधारित, और चरणबद्ध दृष्टिकोण आवश्यक है।
Paper 4 (Comprehension part) – निबंध
धर्म एवं राजनीति में सम्यक दर्शन कितना आवश्यक
जिस प्रकार नमक का धर्म खारापन, पानी का धर्म तरलता, अग्नि का धर्म ऊष्मा एवं पृथ्वी का धर्म दृढ़ता है वैसे ही मानव का धर्म मानवता होता है। अपने इस धर्म से निरपेक्ष होने पर उनकी उपयोगिता और महत्ता स्वतः नष्ट हो जाती है।
जैसा कि हम जानते हैं कि धर्म एवं राजनीति का मेल घातक माना जाता है। इसे तथाकथित पढ़े लिखे लोगों द्वारा भ्रम के रूप में लाया गया है। इसे हम एक भय के रूप में पाल पोश रहे हैं इसके सामने गांधीजी के इस सम्यक दर्शनपूर्ण आग्रह की भी परवाह नहीं की कि “धर्म विहीन राजनीति” मधुमक्खी के छत्ते की तरह है जिसमें मधु को कुछ नहीं होता, किंतु वहाँ काटने वाले विषैले बर्रे के झुंड जरूर होते हैं। समस्या का हल भ्रम द्वारा नहीं अपितु केवल सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र से ही हो सकता है।
वर्तमान धर्म एवं राजनीति के स्वरूप को सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की जरूरत है। भ्रमित ज्ञान के आधार पर हम धर्म एवं राजनीति और इनके मेलजोल पर सम्यक निश्चय नहीं कर सकते। इसके लिये धर्म और राजनीति तथा इनके परस्पर संबंधों का ऐतिहासिक संदर्भ में सही विवेचन करना आवश्यक है।
अगर धर्म की बात करें तो धर्म एक ऐसा दिव्य मंत्र है, जो संपूर्ण सृष्टि के धारण एवं संचालन के निमित्त, संपूर्ण मानवता, मानवीय मूल्यों की अभिव्यक्ति को प्राप्त कराने हेतु सभी प्रकार के कर्मों के निर्धारण एवं संपादन द्वारा मुक्ति प्रदान करने की व्यवस्था करता है। आदि पुरुष मनु के अनुसार धर्म का स्वरूप-
धृति क्षमा दमोस्तेय, शौचमिन्द्रिय निग्रहः।
धी: विधा सत्यम् अक्रोधो दशकम धर्मलक्षणम्
अर्थ- अर्थ सत्य, अहिंसा, अक्रोध, ईश्वर, धैर्य, क्षमा, अंदर और बाहर की शुद्धि, अस्तेय, विद्या एवं विवेक धारण यह मनुष्य मात्र के धर्म माने जाते हैं। धर्म रूपी व्यवस्था के पालन से व्यक्ति एवं समाज दोनों की उन्नति साथ-साथ होती है एवं किसी का अहित भी नहीं होता। यह सत्य है कि सामाजिक सुरक्षा एवं सुव्यवस्था में जितना स्थान पुलिस और प्रशासन का होता है उससे कहीं ज्यादा योगदान धर्म के मूलभूत तत्त्वों एवं सिद्धांतों का होता है।
अगर राजनीति की बात की जाए तो हम कह सकते हैं कि राजनीति सामाजिक व्यवस्था का ही एक रूप है। एक निश्चित भूमि पर अपनी विशिष्ट संस्कृति और एकात्मक बहाव के साथ जीवन यापन करने वाले जब अपने राष्ट्र को जनहित में संचालित करने हेतु उचित नीति और व्यवस्था का पालन करते हैं, वह राजनीति कहा जाता है।
धर्म एवं राजनीति के स्वरूप की सम्यक विवेचना एवं समृद्ध दर्शन के उपरांत यह भ्रम खत्म हो जाता है कि राजनीति और धर्म का मेल घातक भी हो सकता है। राजनीति वह कार्यकारी व्यवस्था है जिसके द्वारा व्यष्टि एवं समष्टि के मध्य समन्वय एवं संतुलन स्थापित किया जाता है। वही धर्म, मानव के मूलभूत तत्त्व है जो उसे सुख, शांति, सामंजस्य और समृद्धि के साथ रहने की शक्ति प्रदान करते हैं। इन सिद्धांतों की बदौलत ही व्यक्ति और समाज लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति प्राप्त करता है। इस प्रकार धर्म एवं राजनीति एक ही उद्देश्य को प्राप्त करने के व्यवहारिक एवं सैद्धांतिक पहलू हैं। इन दोनों पहलुओं का मेल एक दूसरे की क्षमता बढ़ाने के लिये आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है।सामाजिक सुव्यवस्था स्थापित करने वाली राजनीति में मान्य सिद्धांतों का समावेश अनावश्यक है तभी इस दिशा में व्याप्त भ्रम दूर हो सकेगा। समावेशन न होने की स्थिति में हिंसा, अलगाव, दंगे, हाथापाई, हिंसक प्रदर्शन, हड़ताल, भ्रष्टाचार आदि में दिनोंदिन वृद्धि होगी। धर्म का प्रभाव न रहने से अधर्म का प्रभाव बढ़ेगा। जैसा की विधित है प्रकाश की अनुपस्थिति में अंधकार का प्रभुत्व हो जाता है। अतः यह स्पष्ट है कि राजनीति में धर्म का मेल घातक नहीं अपितु मंगलकारी ही होता है।
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