Day 65 | RAS Mains 2025 Answer Writing | 90 Days

90 days answer writing

This is Day 65 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program

Click here for the complete 90 days schedule (English Medium)

Click here for complete 90 days schedule (Hindi Medium)

GS Answer Writingजलवायु : मानसून की उत्पत्ति, जलवायु विशेषताएं, वर्षा का वितरण एवं जलवायु प्रदेश | प्राकृतिक संसाधन : प्रकार एवं उनका उपयोग (क) जल, वन एवं मृदा संसाधन (ख) शैल एवं खनिज। | जनसंख्या : वृद्धि, वितरण, घनत्व, लिंगानुपात, साक्षरता, नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या।। Elaboration

जलवायु का प्रकारक्षेत्रवार्षिक वर्षा
Cwg(शुष्क सर्दियों के साथ मानसून प्रकार)गंगा के मैदान के अधिकांश भाग, पूर्वी राजस्थान, असम और मालवा पठार में100 – 200 cm
Dfc(कम गर्मी के साथ ठंडी, आर्द्र सर्दियाँ)सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्से~200 cm
भारतीय जलवायु क्षेत्र

अल नीनो एक जलवायवीय घटना/ जटिल मौसम तंत्र  है जिसके अंतर्गत  पेरू तट के पास गर्म जलधारा का प्रवाह होने लगता है , यह गर्म जल धारा हर तीन से 7 साल में प्रवाहित होती है। चुंकि यह जलधारा दिसंबर में क्रिसमस के समय प्रकट होती है अतः  इसे ‘बालक ईसा’ (चाइल्ड क्राइस्ट ) के नाम से भी जाना जाता है  

अल नीनो भारतीय मानसून पर विपरीत प्रभाव डालती है। अल नीनो के कारण पेरू तट के निकट समान्य से कम वायुदाब हो जाने के कारण यहाँ से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों को धकेलने वाला बल क्षीण हो जाता है। इसके स्थान पर यहाँ व्यापारिक पवनों को आकर्षित करने वाला या खींचने वाला बल प्रभावी हो जाता है। इस कारण इन व्यापारिक पवनों का एशिया की ओर प्रवाह भी कमजोर पड़ जाता है ।

परिणामस्वरूप  भारतीय मानसून कमज़ोर पड़ जाता है एवं वर्षा देर से एवं औसत से कम प्राप्त होती है।

Different types of relief, landforms, climatic zones and vegetation are found in India, which have contributed to the development of many types of soils in India.

Soil TypeLocationCharacteristics
जलोढ़ मृदाउत्तरी मैदान और नदी घाटियाँनदियों द्वारा जमा की गई महीन, रेतीली मिट्टी; अत्यधिक उपजाऊ;2 प्रकार: बांगर (पुरानी) और खादर (नई)भारत के 40% भूमि क्षेत्र को कवर करता है।आम तौर पर, फास्फोरस, नाइट्रोजन और कम ह्यूमस, और पोटाश में समृद्ध
काली मृदा / रेगुरदक्कन का पठारबेसाल्ट चट्टान से बनी काली कपास मिट्टी;अधिकतम जल धारण क्षमता; स्वतः जुताईलौह, मैग्नीशियम, चूना और एल्यूमीनियम से भरपूर; फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमीकपास, सोयाबीन और गेहूं जैसी फसलों के लिए उपयुक्त।
लाल और पीली मृदाआंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर पठार क्षेत्र, पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत के कुछ हिस्सेलाल और पीली मिट्टी क्रिस्टलीय आग्नेय चट्टानों के अपक्षय से बनी हैलाल रंग- आयरन ऑक्साइड के कारण, हाइड्रेटेड(आर्द्रता) होने पर → पीला रंग फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी;मक्का, तम्बाकू, ज्वार और बाजरा जैसी फसलों के लिए उपयुक्त।
लैटेराइट मृदापश्चिमी घाट क्षेत्र, पूर्वी घाट क्षेत्र और पूर्वोत्तर में उच्च वर्षा और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रगठन ⇒ ढलान क्षेत्र + उच्च वर्षा + उच्च तापमान; शुष्क और आर्द्र अवधि बारी-बारी सेआयरन ऑक्साइड और एल्यूमीनियम हाइड्रॉक्साइड से भरपूर लाल-भूरी मिट्टी;नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थों की कमी;काजू, कॉफी, रबर और मसालों जैसी नकदी फसलों के लिए उपयुक्त 
शुष्क मृदापश्चिमी राजस्थाननाइट्रोजन की कमी , कार्बनिक पदार्थ वाली रेतीली मिट्टी; फॉस्फेट की सामान्य उपस्थिति; नमी प्रतिधारण क्षमता कम बाजरा जैसी सूखा प्रतिरोधी फसलों के लिए उपयुक्त मिट्टी की निचली परतों पर कंकरों का जमाव 
लवणीय मृदातटीय क्षेत्र, डेल्टा, दलदल, जल भराव वाले क्षेत्रइसे ‘उसर’ मिट्टी भी कहा जाता हैइसमें सोडियम, पोटेसियम और मैग्नीसियम जैसे लवण बड़ी मात्रा में होते हैं; नाइट्रोजन और कैल्सियम की कमी → पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त।
पीट मृदाउत्तरी बिहार, उत्तराखंड, ओडिशा, तमिलनाडु(तराई बेल्ट, डेल्टा क्षेत्र)भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों मेंअधिक ह्यूमस → काला रंगजूट की खेती ; मैंग्रोव वनस्पति
मोंटेन / वन मृदापहाड़ी क्षेत्र →पर्याप्त वर्षा वाला वन क्षेत्र (हिमालय आदि)पतली परत वाली अपरिपक्व मिट्टी (निर्माणाधीन मृदा )ह्यूमस और कैल्सियम की कमी है; अम्लीय मिट्टी.जहां इस मिट्टी की परत अधिक मोटी होती है, वहां चाय और आलू की खेती की जाती है। जिन क्षेत्रों में कणीय संरचना ठीक है, वहां चावल की फसल उगाने के लिए सीढ़ीदार खेती की जाती है। कम उपजाऊ मिट्टी वाले ढलानों पर चारागाह पाए जाते हैं।

Paper 4 (Comprehension part) –  Elaboration

 All’s well that ends well

This proverb means that, no matter how one arrives at a certain outcome, if that outcome is a good one then everything is alright.Every matter gets started to reach an end. There is an end to everything. This end is certain. No one can stop it from happening. Nothing is permanent in this world. It may be life, maybe a movie or maybe any other chore. It is made for having an end. It is said that if the end is good then everything is good.No one is going to see how much effort you have done for achieving a particular success. Everyone is going to concentrate on the end result. Therefore it is wisely said that all’s well that ends well.If you think about a movie then you can judge every director tries to make a happy ending as he knows that if the end is good, the movie will be considered as good. Let’s compare this with life, suppose one person is born in a poor family. He works hard day and night and becomes rich in the future. This means that person has got an end which is good.This proverb is a great tool in our positive thinking toolbox. Remembering this powerful phrase enables us to put life into perspective, to emphasize the good in life and to diminish the negative effects that troubles and challenges in the past may have on our minds in the present. In addition, this proverb is very good for those times when we need to motivate ourselves to keep going with a difficult task, or when we have come to the end of a long and challenging project and we find ourselves questioning whether it was all worth it. All in all, this is a fantastic proverb to use to celebrate happy endings, no matter where they arise in life: romantically, socially, professionally and in friendships and families.

Day 65 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing

Day 65 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing

error: Content is protected !!
Scroll to Top