This is Day 64 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program
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GS Answer Writing – भारतीय भूगोल – प्रमुख भौतिक भू-आक्तियाँ : पर्वत, पठार, मैदान, मरूस्थल | भारत का प्रमुख भू-आकृतिक विभाजन । Elaboration
हिमालय, एक नवलित पर्वत है, जो सेनोज़ोइक युग के दौरान यूरेशियन प्लेट के इंडियन प्लेट से टकराने के कारण उत्पन्न हुआ था। इन प्लेटों के बीच टेथिस सागर के तलछटों में विभिन्न भूवैज्ञानिक अवधियों में उथल-पुथल हुई, जिससे तीन क्रमिक श्रेणियाँ बनीं:
- वृहत हिमालय (हिमाद्रि): इओसीन काल (लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान निर्मित।
- लघु हिमालय (हिमाचल): मियोसीन काल (लगभग 45 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान निर्मित।
- शिवालिक (बाह्य हिमालय): प्लियोसीन काल (लगभग 1.4 मिलियन वर्ष पहले) के दौरान निर्मित।
क्र.सं. | पश्चिमी घाट | पूर्वी घाट |
1 | तापी नदी से कन्याकुमारी तक उत्तर-दक्षिण दिशा में पश्चिमी तट के समानांतर फैला। | उड़ीसा से नीलगिरि पहाड़ियों तक पूर्वी तट के समानांतर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में फैला। |
2 | अरब बेसिन के उप-प्रवाह और प्रायद्वीप के झुकाव से निर्मित → ब्लॉक पर्वत | भूगर्भिक दृष्टि से प्रीकैम्ब्रियन वलित पर्वत |
3 | पहाड़ों की सतत शृंखला और दर्रों से ही पार किया जा सकता है। | सतत नहीं है और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों द्वारा कट जाती है। |
4 | नीलगिरी, अन्नामलाई, इलायची, पालानी पहाड़ियाँ मौजूद | नल्लामाला, पालकोंडा, जावादी पहाड़ियाँ और शेवरॉय-कालरायन पहाड़ियाँ |
5 | ऊंचाई 900-1600 मीटर तक होती है; औसत चौड़ाई 50 से 80 कि.मी. है।सबसे ऊँची चोटी – अनाइमुडी (2695 मीटर) | ऊंचाई पश्चिमी घाट से कम; 600 से 900 मीटर तक है; चौड़ाई 100 से 200 किमी तकसबसे ऊंची चोटी – जिंदगड़ा चोटी (1690 मीटर) |
6 | अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं।(तुंगभद्रा, कृष्णा, गोदावरी) | पूर्वी घाट से कोई बड़ी नदी नहीं निकलती। |
7 | मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। | यहां की मिट्टी इतनी उपजाऊ नहीं है। |
8 | अरब सागर से आने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून लगभग लंबवत होता है और पश्चिमी तटीय मैदान में भारी वर्षा का कारण बनता है। | बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून के लगभग समानान्तर और अधिक वर्षा नहीं होती। |
9 | दुनिया में जैव विविधता के हॉटस्पॉट में से एक। | पश्चिमी घाट की तुलना में कम जैव विविधता। |
भारतीय भू भागों में सबसे बड़ा भूभाग प्रायद्वीपीय पठार भारत के प्राचीनतम एवं स्थिर भूभागों में से एक है । यह एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति वाला भूखंड है जिसका विस्तार उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वतमाला , पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों, पश्चिम में गिर पहाड़ियों, दक्षिण में इलायची पहाड़ियों तथा उत्तर पूर्व में शिलांग पठार तथा कार्बी आंगलांग पठार तक है।
विशेषताएं:
- इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है ; अनियमित त्रिभुजाकार आकृति
- ऊँचाई : 600-900 मीटर
- प्रायद्वीपीय भारत अनेक पठारो से मिलकर बना है जैसे हजारीबाग पठार, पालामु पठार, रांची पठार, मालवा पठार, कोयंबटूर पठार और कर्नाटक पठार।
- पठार की सामान्य ढलान → पश्चिम से पूर्व की ओर ⇒ इसी दिशा में नदियों का प्रवाह
- महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएं → टोर, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, स्पर, नंगी चट्टानी संरचनाएँ, नम पहाड़ियों की श्रृंखला और क्वार्टजाइट भितियाँ
- पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में काली मिट्टी की उपस्थिति।
- क्रस्टल फ़ॉल्टिंग (भ्रंशन )और फ्रैक्चर(विभंग ) के साथ उत्थान और जलमग्नता के आवर्ती चरणों से गुज़रना। जैसे. भीम दोष
- उत्तर-पश्चिमी भाग: खड्डों (रेवाइन ) और महाखड्ड(गोर्ज) इसके धरातल को जटिल बनाते है । जैसे. चंबल, भिंड और मुरैना के बीहड़(खड्ड )
मुख्य उच्चावच लक्षणों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
- दक्कन का पठार- यह पश्चिम में पश्चिमी घाट (सह्याद्रि, नीलगिरि पहाड़ियाँ, अन्नामलाई पहाड़ियाँ और इलायची पहाड़ियाँ) से घिरा है।पूर्व में पूर्वी घाट (जावादी पहाड़ियाँ, पालकोंडा पर्वतमाला, नल्लामाला पहाड़ियाँ आदि) और उत्तर में सतपुड़ा, मैकाल श्रेणी और महादेव पहाड़ियाँ इसकी सीमा बनाते है
- मध्य उच्च भूभाग –पश्चिम में अरावली पर्वत, दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत एवं पूर्व में राजमहल पहाड़ियां इसकी सीमा बनाते हैं। इस भाग का विस्तार जैसलमेर जिले तक है जहाँ ये अनुदैधर्य एवं चापाकार (बरखान ) रेतीले तिब्बो से ढके हुए है। छोटा नागपुर का पठार इस क्षेत्र का प्रमुख खनिज पदार्थ का भंडार है। यमुना की अधिकतर सहायक नदियां जैसे चम्बल, बेतवा, केन आदि इसी भूभाग की विंध्याचल और कैमूर श्रेणियों से निकलती है।
- उत्तर-पूर्वी पठार- भारतीय प्लेट के उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ने के कारण राजमहल पहाड़ियों और मेघालय पठार के बीच एक भ्रंश उत्पन्न हो गया, जिससे पूर्वोत्तर पठार मुख्य प्रायद्वीपीय ब्लॉक से अलग हो गया।
- गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों में विभाजित मेघालय पठार कोयला, लौह अयस्क और चूना पत्थर जैसे खनिज संसाधनों से समृद्ध है यहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारी वर्षा होती है, जिसके परिणामस्वरूप सतहों का अत्यधिक क्षरण हो गया है।
Paper 4 (Comprehension part) – Elaboration
No man should be condemned unheard
“No man should be condemned unheard” or that both the sides must be heard before passing any order. A man cannot incur the loss of property or liberty for an offence by a judicial proceeding until he has a fair opportunity of answering the case against him. In many statutes, provisions are made ensuring that a notice is given to a person against whom an order is likely to be passed before a decision is made, but there may be instances where though an authority is vested with the powers to pass such orders which affect the liberty or property of an individual but the statute may not contain a provision for prior hearing.
A person must be allowed an adequate opportunity to present their case where certain interests and rights may be adversely affected by a decision-maker. To ensure that these rights are respected, the deciding authority must give both the opportunity to prepare and present evidence and to respond to arguments presenting by the opposite side. When conducting an investigation in relation to a complaint it is important that the person being complained against is advised of the allegations in as much detail as possible and given the opportunity to reply to the allegations.
In the present day, without affording hearing by an unbiased and impartial authority that must act objectively and must also give out his mind, as to what weighed in decision making process, by incorporating reasons to support the decision or, to say so, by giving a speaking order. This is necessary for a society, which is governed by Rule of law. How substantive laws are applied and rights are determined is a question not less important, to say it again, the principles of natural justice are great humanizing principles intended to invest law with fairness to secure justice and to prevent miscarriage of justice. And no man should be condemned unheard.
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