Day 37 | RAS Mains 2025 Answer Writing | 90 Days

90 days answer writing

This is Day 37 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program

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GS Answer Writingरक्षा प्रौद्योगिकी- मिसाइलें, भारतीय मिसाइल कार्यक्रम, रासायनिक और जैविक हथियार। निबंध लेखन

मिशन दिव्यास्त्र 5,000 किलोमीटर की रेंज वाली घरेलू स्तर पर विकसित अग्नि-5 परमाणु मिसाइल का उद्घाटन उड़ान परीक्षण है, जिसमें MIRV तकनीक शामिल है। दिव्यास्त्र परीक्षण का मतलब है कि भारत लघु हथियारों की तकनीक में महारत हासिल करने में कामयाब रहा है।
डीआरडीओ द्वारा ओडिशा तट पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लॉन्च किया गया।
उद्देश्य: परीक्षण में एक साथ अलग-अलग लक्ष्यों पर हमला करने के लिए कई हथियार दागने पर जोर दिया गया।
MIRV (मल्टीपल इंडिपेंडेंटली-टारगेटेबल रीएंट्री व्हीकल) तकनीक मिसाइल को एक ही लॉन्च में विभिन्न स्थानों या एक ही स्थान पर कई हथियार पहुंचाने में सक्षम बनाती है, जिसमें संभावित रूप से दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा को गुमराह करने के लिए डिकॉय भी शामिल है।

Extra: 

  • भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है जिनके पास एमआईआरवी तकनीक है → अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और भारत विशिष्ट समूह में हैं।
  • परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इस ‘अग्नि’ का उद्देश्य मुख्य रूप से चीन की चुनौती को विफल करना है।
  • ‘मिशन दिव्यास्त्र’ प्रोजेक्ट का नेतृत्व एक महिला वैज्ञानिक शीना रानी ने किया था।

विशेषताक्रूज़ मिसाइलबैलिस्टिक मिसाइल
परिभाषा क्रूज़ मिसाइलें स्व-चालित, निर्देशित हथियार हैं जिन्हें विमान, जहाज या भूमि-आधारित लॉन्चर सहित विभिन्न प्लेटफार्मों से प्रक्षेपित किया जा सकता है। बैलिस्टिक मिसाइलें बिना निर्देशित वाले रॉकेट हैं जो लॉन्च होने पर एक उच्च, परवलयाकार पथ का अनुसरण करते हैं, तथा अंतरिक्ष में जाकर तीव्र गति से लक्ष्य को विभेदित करती हैं।
प्रणोदनसामान्यत: जेट इंजन या रॉकेट मोटर्स द्वारा संचालित।प्रारंभिक प्रक्षेपण हेतु रॉकेट प्रणोदन का उपयोग करती हैं, तत्पश्चात बैलिस्टिक पथ पर चलती हैं।
मार्गदर्शनऑनबोर्ड नेविगेशन सिस्टम द्वारा निर्देशित होती हैं।पूर्व-निर्धारित निर्देशों और/या बाह्य ट्रैकिंग प्रणाली द्वारा मार्गदर्शित होती हैं।
पथ निम्न ऊँचाई पर उड़ान भरती हैं और घुमावदार पथ का अनुसरण करती हैं।उच्च ऊँचाई पर जाती हैं, उच्चतम बिंदु तक पहुँचकर तीव्र गति से नीचे गिरती हैं।
गति आम तौर पर सबसोनिक या सुपरसोनिक।उड़ान के विभिन्न चरणों के दौरान हाइपरसोनिक या सुपरसोनिक हो सकता है।
गतिशीलता अत्यधिक गतिशील, दिशा और ऊंचाई बदलने में सक्षम।क्रूज़ मिसाइलों की तुलना में सीमित गतिशीलता।
रेंज सीमा विभिन्न होती है – सैकड़ों से हज़ारों किलोमीटर तक।आमतौर पर क्रूज़ मिसाइलों की तुलना में लंबी दूरी की, संभावित रूप से अंतरमहाद्वीपीय दूरी तक पहुंचने वाली।
समय कम गति और स्थल-सम रूप उड़ान के कारण अधिक समय लेती है।उच्च गति और परवलय पथ के कारण उड़ान अवधि अपेक्षाकृत कम होती है।
उदाहरण ब्रह्मोस, निर्भय।पृथ्वी I, पृथ्वी II, अग्नि I, अग्नि II और धनुष मिसाइलें..

1 प्रोजेक्ट कुश

project kush

  • प्रोजेक्ट कुश: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया गया।
  • उद्देश्य: 2028-29 तक भारत की अपनी लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (LR-SAM) का विकास।
  • क्षमताएं: आने वाले स्टील्थ लड़ाकू विमानों, विमानों, ड्रोनों, क्रूज मिसाइलों और सटीक-निर्देशित हथियारों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए एक दुर्जेय 3-स्तरीय रक्षा प्रणाली स्थापित करना चाहता है।
  • घटक: इसकी लंबी दूरी की निगरानी और अग्नि नियंत्रण राडार में विभिन्न प्रकार की इंटरसेप्टर मिसाइलें होंगी जो 150 किमी, 250 किमी और 350 किमी की दूरी पर शत्रु लक्ष्यों को मारने के लिए डिज़ाइन की गई होंगी।
  • अपेक्षित प्रभाव: रूस के एस-400 और इज़राइल के आयरन डोम सिस्टम का प्रतिद्वंद्वी.

2. S-400

  • S-400 ट्रायम्फ, जिसे NATO द्वारा SA-21 Growler  के नाम से भी जाना जाता है, रूस के अल्माज़ सेंट्रल डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा विकसित एक अत्यधिक उन्नत सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली है।
  • इसे लंबी दूरी और ऊंचाई पर विमान, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित विभिन्न हवाई लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • कार्य प्रणाली – प्रत्येक प्रणाली में 40 किमी, 120 किमी, 250 किमी तक की चार अलग-अलग प्रकार की मिसाइलें होती हैं और अधिकतम सीमा 400 किमी और 30 किमी की ऊंचाई तक होती है।
  • भारत ने अक्टूबर 2018 में हस्ताक्षरित 5.43 बिलियन डॉलर के सौदे के तहत रूस से पांच एस-400 ट्रायम्फ रेजिमेंट का अनुबंध किया है।
  • कार्य प्रणाली – एस-400 वायु रक्षा बुलबुले (जिस क्षेत्र की उसे रक्षा करनी है) के पास आने वाले हवाई खतरे का पता लगाता है, खतरे के प्रक्षेप पथ की गणना करता है, और इसका मुकाबला करने के लिए मिसाइलें दागता है। इसमें लंबी दूरी के निगरानी रडार हैं जो कमांड वाहन को जानकारी भेजते हैं। लक्ष्य की पहचान करने पर, कमांड वाहन मिसाइल लॉन्च का आदेश देता है।
S400

3. A.MTCR:

  • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) एक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था है:
    • यह 35 सदस्य देशों के बीच एक अनौपचारिक और स्वैच्छिक साझेदारी है जो मिसाइलों और मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को सीमित करना चाहती है।
    • इसका गठन 1987 में G-7 औद्योगिक देशों द्वारा किया गया था।
  • उद्देश्य: MTCR का लक्ष्य मिसाइलों, रॉकेट प्रणालियों, मानवरहित हवाई वाहनों और 300 किलोमीटर से अधिक 500 किलोग्राम के पेलोड को ले जाने में सक्षम संबंधित प्रौद्योगिकी के प्रसार को सीमित करना है, साथ ही सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) पहुंचाने की प्रणालियों को भी सीमित करना है।
  • यह व्यवस्था नियंत्रित वस्तुओं की एकीकृत सूची पर लागू साझा निर्यात नीति दिशानिर्देशों का पालन करने पर निर्भर करती है।
  • बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रसार को रोकने के लिए हेग आचार संहिता ⇒ एक व्यवस्था शुरू की गई
  • भारत को 2016 में 35वें सदस्य के रूप में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में शामिल किया गया था।

B. ऑस्ट्रेलिया समूह:

  • 43 देशों का एक अनौपचारिक मंच (यूरोपीय संघ सहित) → ऐसे विशिष्ट रसायनों, जैविक एजेंटों और दोहरे उपयोग वाली विनिर्माण सुविधाओं और उपकरणों जो रासायनिक या जैविक हथियारों (सीबीडब्ल्यू) के प्रसार को सुविधाजनक बना सकते हैं,  के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए लाइसेंसिंग उपायों को नियोजित करने के उद्देश्य से 
  • ऑस्ट्रेलिया समूह में भाग लेने वाले सभी राज्य रासायनिक हथियार सम्मेलन (सीडब्ल्यूसी) और जैविक हथियार सम्मेलन (बीडब्ल्यूसी) के पक्षकार हैं।
  • गठन ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान इराक द्वारा रासायनिक हथियारों के उपयोग से प्रेरित था।

Paper 4 (Comprehension part) –  निबंध

डिजिटल अर्थव्यवस्था : संभावनाएँ और चुनौतियाँ

डिजिटल अर्थव्यवस्था शब्द पहली बार 1995 में लेखक डॉन टैपस्कोट की पुस्तक ‘द डिजिटल इकोनोमी : प्रोमिस एंड पेरिल इन द एज ऑफ नेटवर्कड इंटेलिजेंस’ में गढ़ा गया था। आर्थिक व्यवस्था का वह स्वरुप जिसमें धन का अधिकांश लेन-देन क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, मोबाईल पेमेंट तथा अन्य डिजिटल माध्यमों से किया जाता है, डिजिटल अर्थव्यवस्था कहलाती है। दूसरे शब्दों में, डिजिटल अर्थव्यवस्था को एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया गया है जो डिजिटल और कम्प्यूटिंग तकनीकों पर आधारित है। यह अनिवार्य रूप से सभी व्यावसायिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदि गतिविधियों को शामिल करता है जो वेब और अन्य डिजिटल संचार तकनीक द्वारा समर्थित है। डिजिटल सेवाएँ 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो गयी है। जब राष्ट्रीय या वैश्विक आपात स्थिति में वाणिज्यिक लेन-देन के तरीके बाधित हुए तब डिजिटल सेवाओं ने ऐसे अंतराल को भरने में सफलता प्राप्त की।

पिछले 15 वर्षों में, हमने डिजिटल प्लेटफॉर्म की जबरदस्त वृद्धि और हमारे जीवन पर उनके प्रभाव को देखा है। अब उपभोक्ता सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) और ऐसी अन्य लोकप्रिय वेबसाइटों (यूट्यूब आदि) पर देखी जाने वाली चीजों से प्रभावित होते हैं। यह अर्थव्यवस्था लाभ उठाने के अवसर प्रदान करती है, अब तो यह उपयोगकर्ता के जीवन के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ चुकी है। डिजिटल सेवाएँ स्वास्थ्य सेवाओं तथा खुदरा वितरण से लेकर वित्तीय सेवाओं तक कई क्षेत्रों में विविध प्रकार के उत्पादों की पहुंच और वितरण को सक्षम बनाती है। इस अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य घटक हैं, अर्थात, ई-व्यापार, ई-बिजनेस, इंफ्रास्ट्रक्चर तथा ई-कॉमर्स। डिजिटल भुगतान विधियों जैसे डिजिटल पॉइंट ऑफ सेल, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस, मोबाइल वॉलेट, मोबाइल पॉइंट ऑफ सेल आदि को लागू करके देश एक डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने की ओर बढ़ रहा है जो लोगों और सरकार को विभिन्न ते तरीकों से लाभान्वित करेगा।

जब लेन-देन डिजिटल रूप से किए जाते हैं तो उन पर आसानी से नजर रखी जा सकती है। किसी भी ग्राहक द्वारा किसी भी व्यापारी को किए गए किसी भी भुगतान को रिकॉर्ड किया जाएगा। नकद आधारित लेनदेन को प्रतिबंधित करके और केवल डिजिटल भुगतान का उपयोग करके सरकार प्रभावी रूप से काली अर्थव्यवस्था को बाहर निकाल सकती है। बिक्री और करों की निगरानी से बिल भुगतान की मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई है जिससे देश की वित्तीय स्थिति में सुधार आया है, डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह नागरिकों को सशक्त बनाता है। रोज़गार के नए अवसरो का निर्माण करता है तथा साथ ही यह ई-गवर्नेस का मार्ग प्रशस्त करता है जहाँ सभी सरकारी सेवाओं की डिलीवरी इलेक्ट्रॉनिक रूप से की जाती है। 

जहाँ डिजिटल अर्थव्यवस्था के इतने लाभ हैं वहीं इसके समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं। डिजिटल तकनीक तेजी से फैल रही है और अपराध भी हो रहे हैं। डिजिटल क्षेत्र में कार्य करने वाली कुछ कंपनियों अबराजार पर हावी होना शुरू कर दिया है। एकाधिकार की इस प्रनो के चलते अंततः कामगारों के लाभ और उनका कल्याण प्रभावित होत हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ काम करने के तरीके को बदल देंगी, स्वचालन, बिग डेटा और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग द्वारा सक्षम कृत्रिम बुद्धिमत्ता विश्व अर्थव्यवस्था के 50% भाग को प्रभावित कर सकती है। इस राह में सबसे प्रमुख और बड़ी चुनौती साइबर अपराध से संबंधित है। चूँकि वर्तमान में अमूमन हर कार्य डिजिटल हो चला है, ऐसे में साइबर अपराध की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कर लगाने का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय नीति-निर्माताओं के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इसके अलावा कई प्रकार की बाधाएं हैं जो डिजिटल अर्थव्यवस्था की राह में विद्यमान है, जैसे डिजिटल निरक्षरता, खराब बुनियादी ढांचा, इंटरनेट की धीमी गति आदि। इस दिशा में वर्ष 2015 में डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी जिसके अंतर्गत नौ स्तंभों (ब्रॉडबैंड हाइवे, मोबाईल कनेक्टिविटी तक सार्वभौमिक पहुँच, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम, ई-गवर्नेस, ई-क्रांति, सभी के लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नौकरियों के लिए आईटी तथा अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम) के माध्यम से भारत को नई ऊँचाई प्रदान करने की कोशिश की गयी। भुगतान और लेन-देन के मामले में यूपीआई समृद्ध व्यापारियों से लेकर रेहड़ी-पटरी वालों तक सभी की मदद कर रहा है। इतना ही नहीं भारत का भीम यूपीआई अब पड़ोसी देश भूटान में भी लाँच हो चुका है। इस प्रकार डिजिटल इण्डिया एक सशक्त तकनीकी समाधान है जो वर्षों से बुनियादी ढाँचे के निर्माण में सहायक रहा है और आज यह स्टार्ट-अप, डिजिटल शिक्षा, निर्वाध बैंकिंग एवं भुगतान समाधान, एग्रीटेक, स्वास्थ्य तकनीक, स्मार्ट सीटीज, शासन तथा खुदरा प्रबंधन जैसे अन्य उभरते क्षेत्रों के आधार के रूप में कार्य कर रहा है। भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ने हेतु कई कदम उठाएँ हैं।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर डिजिटल अर्थव्यवस्था की संभावनाओं तथा चुनौतियों को देखा जा सकता है लेकिन इसे पूर्ण रूप से साकार करने के लिए अभी कई कार्य किए जाने शेष हैं, जैसे सर्वप्रथम ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की पहुँच को सुनिश्चित करना होगा क्योंकि इसके अभाव में इंटरनेट का प्रयोग संभव नहीं हो पाएगा। इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने हेतु प्रभावी कदम उठाने होंगे, डिजिटली सेवाओं में धोखाधड़ी तथा बढ़ते साइबर अपराध के मामलों ने अविश्वास को बढ़ाया है अतएव इस दिशा में वैश्विक स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। इन सभी चुनौतियों के निपटान के बाद ही डिजिटल अर्थव्यवस्था का सही लाभ मिल पाएगा।

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