Day 5 | RAS Mains Paper 4 Test

In this, we will cover पर्यायवाची शब्द, पल्लवन, Articles & Determiners and Paragraph for RAS Mains Paper 4. We will refer Raghav Prakash and B K Rastogi for this test.

Click here for complete 60 days schedule for RAS Mains Paper 4

Click here For complete English course (RAS Mains Paper 4)

पर्यायवाची शब्द (Page 355 – 358) of Raghav Prakash संस्करण 2021

उत्तर –

  1. पवन – वात, वायु, समीर 
  2. पिता – जनक, तात, पितृ, बाप 
  3. प्रकाश – आभा, आलोक, उजाला 
  4. प्रेम – अनुराग, प्रीति, राग 
  5. भय – आतंक, डर, त्रास
  6. मूल्य – अर्थ, क़ीमत, दाम 
  7. बहिन- बांधवी, भगिनी, सहोदरा
  8. यमुना- अर्कजा, सूर्यजा, कालिन्दी 
  9. रात – तमा, यामा, रैना 
  10. लक्ष्मी – इंदिरा, श्री, रमा 

पल्लवन (Number 13 – 15) of Raghav Prakash संस्करण 2021

  ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का मंत्र प्राचीनकाल से मिलता है। अपने हित-साधन के लिए दूसरे के अस्तित्त्व को समाप्त कर देना, यहाँ तक कि दूसरे को दुःख पहुँचाना बुरा कार्य है। वास्तव में हिंसा मनुष्य को पशु के समान बना देती है और व्यक्ति में प्रेम तथा स्नेह की भावना समाप्त हो जाती है। निस्संदेह हिंसा बुरी चीज़ है, लेकिन दासता उससे भी अधिक बुरी है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है और दासता की बेड़ियों में नहीं बंध सकता। यदि किसी को विवशता के कारण दास बनकर रहना पड़ता है, तो वह जीवन मृत्यु के समान है।  इसलिए कहा गया है ‘पराधीन सपने हुँ सुख नाहीं’।                                      
                  जीवित होते हुए मुर्दे की भाँति जीना भी हिंसा से कम नहीं है। दासता से मनुष्य का मानसिक विकास नहीं हो पाता। अतः विचारकों ने यह भी कहा कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए यदि अहिंसा का मार्ग भी छोड़ना पड़े, तो वह बुरी बात नहीं होगी। दासता को अंगीकार कर लेने में तो स्वतंत्रता का प्राकृतिक अधिकार छिन जाता है। तब हम अपने विकास की संभावनाओं का, आज़ाद होकर नए-नए कार्य करने की सृजनशीलता का गला घोंट देते हैं। फिर हमारे पास उस मनुष्यता के लिए बचता ही क्या है, जो स्वतंत्र रहकर ही नवनिर्माण करते रहना चाहती है। संस्कृत में भी कहा गया है- जीवनात्तु पराधीनाज्जीवानां मरणं वरम्‌ अर्थात्‌ पराधीन जीवन से तो मरना अच्छा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गाँधी जी के नेतृत्व में अनेक बार ऐसे विवाद खड़े हुए कि अंग्रेजों के साथ हिंसात्मक व्यवहार से पेश आया जाए या उनकी-गुलामी स्वीकार कर ली जाए । ऐसे में, अहिंसा को मानवता की सबसे बड़ी ताकत माना किंतु स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना गया। महात्मा गांधी ने कहा था कि -“अहिंसा कायरता की आड़ नहीं है, वीर व्यक्ति का सर्वोच्च गुण है।” 

गाँधी जी ने भी अनेक बार इसी तरह का मत दिया कि कायरता को स्वीकार करने के स्थान पर तो तलवार उठाना बेहतर है। गाँधी जी ने हिंसा और अहिंसा में अहिंसा का वर्णन किया किंतु हिंसा और गुलामी में से तो हिंसा अपनाकर भी आज़ादी प्राप्त करने को बेहतर माना। 

                              अत: हिंसा अपने आप में श्रेयस्कर नहीं है किंतु दासता को स्वीकार करने का अर्थ हैं- शासक की तमाम तरह की हिंसाओं को हमेशा के लिए स्वीकार करना और हार मान लेना , जो हिंसा से भी बुरा है।

हिंसा कलंक इंसान पर, मिटे न इसका दाग;
दासता मरण इंसान का, कभी फले ना बाग।

Preposition (Page 44 – 52 ) of B K Rastogi 19th edition

Answer –

  1. His employers were compelled to dispense with his services.
  2. On Diwali he will order a new pair of shoes.
  3. You should at least congratulate your friend on his grand success in the elections.
  4. The accused was bound with a chain and taken to prison.
  5. My father has assured me to present me with a new scooter on my next birthday.

Paragraph (Number 17 – 20) of B K Rastogi 19th edition

The #MeToo campaign, which gained global prominence in 2017, is a movement against sexual harassment and assault. It began when social media platforms were flooded with the hashtag #MeToo, empowering individuals, particularly women, to share their experiences of sexual misconduct. The campaign traces its roots back to 2006, when activist Tarana Burke first coined the term to raise awareness of sexual violence against marginalized women. However, it was propelled into the global spotlight after numerous allegations were made against high-profile figures in Hollywood, notably producer Harvey Weinstein. The campaign highlighted the widespread nature of sexual harassment across various sectors, including entertainment, politics, and corporate environments, sparking conversations about gender-based power dynamics, workplace safety, and accountability. It also played a key role in shaping legislation, workplace policies, and broader societal attitudes towards the survivors of abuse. While it has received widespread support, the #MeToo movement has also faced criticism for issues like false accusations and a lack of attention to marginalized voices. Nevertheless, it remains a pivotal moment in the ongoing struggle for gender equality and justice.

3.7 7 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
5 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
error: Content is protected !!
Scroll to Top