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SUBJECT – Economic Survey – Agriculture and Rural Development
TOPIC – Overview of Macro Economic Trends | Agriculture and Allied Sectors | Rural Development and Panchayati Raj
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Q1 Explain the role of RAJEEVIKA in rural development. 5M
Answer:
Rajasthan Grameen Aajeevika Vikas Parishad (RGAVP): Established in October 2010 by the Government of Rajasthan to implement all rural livelihood programs using SHG-based institutional architecture.
Key Activities :Institution Building, Capacity Building, Financial Inclusion, Livelihood Intervention, Convergence
Role in Rural Development:
- Implementation of Livelihood Programs: Implements National Rural Livelihoods Mission (NRLM) across the state and National Rural Economic Transformation Project (NRETP) in 36 blocks of 9 districts.
- Creating Financially Sustainable Platforms (Achievements): Direct procurement of SHG Products permitted up to ₹1.0 lakh ;Established retail stores, canteens, and outlets; Registered women in Suraksha Sakhi ; Uploaded SHG products on Amazon ; Formed FPOs, Van Dhan Kendras, and producer groups ; Establishment of Rajasthan Mahila Nidhi Credit Co-Operative Federation Ltd. ; Establishment of Ujala Milk Producer Company Limited and Hadoti Mahila Kisan Producer Company Limited.
- Improving Access to Financial and Public Services: Financial assistance provided through revolving fund support and livelihood fund from RGAVP; opened bank accounts, and secured loans worth ₹3,903 crores.
Approach towards Capacity Building: Holistic approach beyond SHGs ; Multiple financial assistance rounds ; Savings and credit model; Livelihood diversification; Social and Livelihood Security; Community to community learning (CRP Model); Skill development and employment; Effective monitoring through Web-based MIS system.
Q2 Highlight the features and importance of the Eastern Rajasthan Canal Project for the state of Rajasthan. 10M
Answer:
On January 28, 2024, Rajasthan and Madhya Pradesh signed a Memorandum of Understanding (MoU) with the Union Ministry of Jal Shakti to implement the Modified Parbati-Kalisindh-Chambal-ERCP (Modified PKC-ERCP) Link Project.
ERCP : Introduced in the 2017-18 state budget to harvest surplus water from southern Rajasthan rivers and transfer it to water-deficient basins in south-eastern Rajasthan.
Features
- Chambal Intra-Basin Water Transfer: Utilizes surplus monsoon water from Kalisindh, Parvati, Mej, and Chakan sub-basins, redirecting it to water-scarce regions such as Banas, Gambhiri, Banganga, and Parbati.
- Extensive Coverage: The project will cover 23.67% of Rajasthan’s geographical area and benefit 41.13% of its population.
- Infrastructure Development: Involves constructing barrages, dams, canals, and pumping lines to facilitate water transfer. Key structures include: Ramgarh Barrage at River Kul (Baran), Navnera Barrage at River Kalisindh (Kota), Doongri Dam at River Banas (Sawai Madhopur), Mej Barrage at River Mej (Bundi) etc.
- Phased Implementation: Initially proposed to be completed in three phases over seven years (2017-2023).
- Resource Allocation: The original DPR allocated 50% of the water for supply, 36% for irrigation, and 14% for industrial use.
- Project Cost: The recent Rajasthan budget has increased the project cost from Rs. 37,250 crore to approximately Rs. 45,000 crore.
Benefits
- Water Supply: Ensures a reliable supply of drinking and industrial water for 13 districts in Eastern Rajasthan and Malwa and Chambal regions of Madhya Pradesh. (13 Districts from MP as well)
- Benefiting Districts: Jhalawar, Baran, Kota, Bundi, Sawai Madhopur, Ajmer, Tonk, Jaipur, Karauli, Alwar, Bharatpur, Dausa, and Dholpur.
- Enhanced Irrigation: Provides irrigation for 2.8 lakh hectares in each state, significantly boosting agricultural productivity.
- Efficient Water Use: Prevents the wastage of surplus water in the Chambal basin.
- Elimination of Redundant Projects: The ERCP will render several pipeline projects unnecessary, such as the Indira Lift Irrigation Scheme, Pipalda Lift Irrigation Scheme, and Dholpur Lift Irrigation Scheme.
- Groundwater Recharge: Includes provisions to fill existing enroute panchayat tanks, improving the groundwater table in rural areas.
- Economic Growth: Allocates water for industrial needs, including the Delhi Mumbai Industrial Corridor (DMIC), promoting industrial investment, boosting GDP, and creating employment opportunities.
- Water Storage: Allows for the storage of water from the Chambal river and its tributaries in dams for 100 days annually, ensuring year-round availability.
- Flood and Drought Mitigation: Helps manage flood and drought conditions in the region.
- Conjunctive Use: Enhances the availability of both surface and groundwater resources.
The ERCP will transform eastern Rajasthan by addressing water needs, supporting agriculture and industry, and boosting socio-economic conditions, thus replicating the success of the Indira Gandhi Canal Project.
Q3 निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए –
विज्ञान और मानवता का भविष्य
Answer:
विज्ञान और मानवता का भविष्य
संसार में कोई वस्तु नई हो या पुरानी, हर प्रकार से मानव-सापेक्ष हुआ करती है। विज्ञान भी इसका अपवाद नहीं कहा जा सकता। किसी पुस्तक में पढ़ा था, गाय के स्तनों पर यदि जोंग को चिपका दिया जाए, तो दूध पीने के स्थान पर वह उसका खून चूसने लगेगी। जल्द ही वह गाय निचुडक़र समाप्त हो जाएगी। ठीक वही स्थिति आधुनिक भौतिक ज्ञान-विज्ञान की भी है। उसका मूल स्वरूप और स्वभाव गाय के समान ही दुधारू और मानव-जीवन का पोषण करके स्वस्थ स्वरूप देने वाला है। पर आज निहित स्वार्थी स्वभाव वाली मानव-जोंकें विज्ञान रूपी इस गाय के स्नों में चिपककर उसका इस बुरी तरह दोहर कर रही हैं कि विज्ञान और मानवता दोनों का भविष्य ही संदिज्ध एंव भयावह दृष्टिगोचर होने लगा है।
सभी जानते हैं कि आधुनिक विज्ञान ने हमें बहुत कुछ दिया है। सुई से लेकर बड़ी-से-बड़ी वस्तु जो कुछ भी हम प्रयोग में लाते हैं, वह सब विज्ञान की ही देन है। उसके कारण मानव-जीवन बड़ा ही सरल और सुखी हो गया है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से आज के मानव ने जल, थल, आकाश-मंडल सभी कुछ को मथ डाला है। ये सब उसे अब और छोटे और अस्तामलकवत लगने लगे हैं। आज का विज्ञानी मानव अपने कार्यों के लिए अब कोई अन्य और बड़ी धरती, अन्य बड़ा आकाश, अन्य बड़ा सागर चाहता है जिससे कि और आगे बढक़र उनकी अथाह गहराइयों को नाम सके। इसका परिणाम हो रहा है मानव की तृष्णाओं का अनंत विकास-विस्तार हृदय की शून्यता एंव हीनता, बौद्धिकता की तड़प और नीरस-शुष्क भाग-दौड़। परिणामस्वरूप अब विज्ञान की नई खोंजें भी दूसरों पर धौंस जमाने वाली और मारक होती जा रही हैं। मानवता का स्वभाव भी अधिकाधिक उग्र एंव मारक होता जा रहा है। इसी कारण विज्ञान की प्रगतियों के संदर्भ में आज ‘मानवता का भविष्य’ जैसे सोचनीय, विचारणीय उग्र प्रश्न नित नया रूप धारण करके सामने आ रहे हैं। इस प्रकार के प्रश्नों का उचित उत्तर एंव समाधान नितांत नदारद है। स्वंय वैज्ञानिकों द्वारा चेष्टा करके भी उत्तर नहीं मिल पा रहे हैं।
आज हम स्पष्ट देख रहे हैं कि वैज्ञानिक प्रगतियों एंव उपलब्धियों के कारण ही चारों ओर अविश्वास का भाव और तनावपूर्ण वातावरण सघन से सघनतर होता जा रहा है। छोटा-बड़ा प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे से अपने को नाहक पीडि़त एंव भयभीत अनुभव कर विज्ञान के मारक उपयों एंव साधनों से अपने-आपको अधिकाधिक लैस कर लेना चाहता है। वह धन जो मानव के जख्मों के लिए मरहम खरीदने या बनाने, भूखी-नंगी और गरीबी की निचली रेखा से भी नीचे की अवस्था में जी रही मानवता के लिए रोटी-कपड़ा जुटाने के काम में आ सकता है उसका खर्च अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, हजारों मीलों दूर तक मार कर पाने वाले शस्त्रास्त्रों के निर्माण और खरीद पर हो रहा है। छोटे राष्ट्र तो स्वत्व रक्षा की चिंता से भयभीत हैं ही, बड़े राष्ट्र उससे भी अधिक भयभत प्रतीत होते हैं। उन्हें छोटे-बड़े सभी अन्य राष्ट्रों पर अपनी लंबरदारी बनाए रखने की चिंता भी भयानक से भनकटतम शस्त्रास्त्रों को जुटाने के लिए बाध्य कर रही है। परिणामस्वरूप चारों ओर वैज्ञानिक ढंग से निर्मित बारूद के ढेर इकट्ठे किए जा रहे हैं। बारूद भी सामान्य विस्फोट करने वाला नहीं, बल्कि पिघला और दम घोंटकर सभी कुछ चंद क्षणों में ही विनष्ट कर देने वाला जुटाया जा रहा है।
विज्ञान की गाय के थनों से जोंक की तरह दूध के स्थान पर रक्त पीने का हमारा स्वभाव बनता जा रहा है। यह सोचे बिना कि यह रक्तपान हमारे अपने ही तन-मन और सर्वस्व को विनष्ट करके रख सकता है। इस भावी विनाश और विस्फोटक बारूद के ढेर के फटने से बचने का एक ही उपाय है। वह है सहज मानवीय वृत्तियों की जागृति। जब हम इन मानवीय उदात्त और सहज वृत्तियों को जगाकर बारूद के ढेर को पलीता दिखाने के स्थान पर एक-एक कर गंदे नालों में बहा देंगे। जोंक का स्वभाव छोडक़र विज्ञान की गाय के स्तनों से केवल दूध पीने की आदत बना लेंगे, तभी मानवता का भविष्य सुरक्षित रह सकेगा। वास्तविक सुख-समृद्धि और शांति और नींव भी तभी डल सकेगी। अन्यथा सर्वनाशा तो है ही और उससे बचाव का उपाय अभी तक नदारद है, यह ऊपर भी कहा भी जा चुका है। आशा करनी चाहिए कि बुद्धिमान मानव अभी इतना हृदयहीन नहीं हो गया है कि वह जान-बूझकर अपनी उपलब्धियों से अपने-आप को ही विनष्ट हो जाने देगा। बुद्धिमता से काम लेकर वह बचाव का रास्ता अवश्य ढूंढ लेगा, मानवता को बचा लेगा, ऐसी निश्चित आशा अवश्य बनाए रखी जा सकती है।