शेयर बाजार (Stock Market) एक ऐसा मंच है जहाँ कंपनियाँ अपने शेयरों को आम जनता को बेचकर पूंजी जुटाती हैं और निवेशक इन शेयरों को खरीदकर कंपनी में भागीदारी प्राप्त करते हैं। यह बाजार न केवल व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र होता है बल्कि विपणन रणनीतियों के माध्यम से निवेशकों को आकर्षित करने का भी एक प्रमुख माध्यम है। शेयर बाजार आर्थिक विकास और पूंजी प्रवाह को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शेयर बाजार (Stock Market)
प्राथमिक बाजार–
- प्राथमिक बाजार में, नए शेयर और ऋण पत्र पहली बार जनता की बीच जारी किए जाते हैं।
- प्राथमिक बाजार में, निवेशक सीधे जारीकर्ता से प्रतिभूतियाँ खरीद सकते हैं। कंपनियाँ निवेशकों को शेयर बेचकर पूंजी जुटाती हैं।
- प्राथमिक बाजार में शेयर जारी करने के तरीक़े
- प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO),
- निजी प्लेसमेंट(Private Placement)
- अधिकार निर्गम (Rights Issue),
- पसंदीदा आवंटन(Preferred allotment), आदि
द्वितीयक बाज़ार
- द्वितीयक बाज़ार निवेशकों और व्यापारियों को एक ऐसा स्थान प्रदान करता है जहाँ वे प्राइमरी बाज़ार में बिक्री के लिए पेश किए गए प्रतिभूतियों (Securities) का व्यापार कर सकते हैं।
- प्रतिभूतियों की उत्पत्ति प्राइमरी बाज़ार में होती है, जबकि द्वितीयक बाज़ार में विनिमय (Exchanges) होते हैं।
- द्वितीयक बाज़ार को स्टॉक एक्सचेंज / शेयर बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है।
- SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) द्वारा स्टॉक एक्सचेंज का नियमन किया जाता है।
- शेयर बाज़ार को सिक्योरिटीज़ कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956 के तहत मान्यता प्राप्त है।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE):
- स्थापना: 1875
- स्थान: मुंबई
- सूचकांक: BSE का बेंचमार्क सूचकांक S&P BSE सेंसेक्स है, जो 30 सबसे बड़े और सबसे सक्रिय रूप से कारोबार किए जाने वाले शेयरों से मिलकर बना है।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE):
- स्थापना: 1992
- स्थान: मुंबई
- सूचकांक: NSE का बेंचमार्क सूचकांक निफ्टी 50 है, जिसमें 50 प्रमुख कंपनियाँ शामिल हैं जो NSE पर सूचीबद्ध हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग: NSE ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की शुरुआत की, जिससे ट्रेडिंग प्रक्रिया अधिक कुशल और पारदर्शी हो गई।
- सूचकांक (Indices): सेंसेक्स और निफ्टी 50 जैसे बाजार सूचकांक बाजार के प्रदर्शन को मापने के लिए बेंचमार्क के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
- नियामक संस्था (Regulatory Body): भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) स्टॉक बाजारों को नियंत्रित करता है, पारदर्शिता, निवेशक संरक्षण, और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करता है।
सेंसेक्स (S&P BSE Sensex):
- पूरा नाम: सेंसिटिव इंडेक्स
- शुरुआत: 1986
- प्रबंधन: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) द्वारा प्रबंधित
- कंपनियों की संख्या: 30
- मानदंड: सेंसेक्स में BSE पर सूचीबद्ध 30 सबसे बड़ी और सबसे वित्तीय रूप से सुदृढ़ कंपनियाँ शामिल होती हैं। इन कंपनियों का चयन विभिन्न कारकों जैसे कि तरलता, बाजार पूंजीकरण, और उद्योग प्रतिनिधित्व के आधार पर किया जाता है।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: सेंसेक्स अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को कवर करता है, जिससे यह बाजार का व्यापक प्रतिबिंब प्रदान करता है।
- बेंचमार्क: सेंसेक्स को भारतीय स्टॉक बाजार के प्रदर्शन को मापने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह भारत में सबसे पुराने और सबसे अधिक ट्रैक किए जाने वाले सूचकांकों में से एक है।
निफ्टी 50:
- पूरा नाम: नेशनल इंडेक्स फिफ्टी
- शुरुआत: 1996
- प्रबंधन: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा प्रबंधित
- कंपनियों की संख्या: 50
- मानदंड: निफ्टी 50 में NSE पर सूचीबद्ध 50 सबसे बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं, जिनका चयन उनके बाजार पूंजीकरण तरलता, और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर किया जाता है।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: सेंसेक्स की तरह, निफ्टी 50 भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे यह एक अच्छी तरह से विविधीकृत सूचकांक बनता है।
- बेंचमार्क: निफ्टी 50 भारत में एक लोकप्रिय बेंचमार्क सूचकांक है, जिसका उपयोग निवेशकों, फंड प्रबंधकों, और विश्लेषकों द्वारा बाजार के समग्र प्रदर्शन को ट्रैक करने और निवेश निर्णय लेने के लिए किया जाता है।
मुख्य अंतर:
- संघटक कंपनियों की संख्या: सेंसेक्स में 30 कंपनियाँ शामिल हैं, जबकि निफ्टी 50 में 50 कंपनियाँ शामिल हैं, जिससे निफ्टी संख्या के आधार पर अधिक विविध हो जाता है।
- स्टॉक एक्सचेंज: सेंसेक्स BSE से जुड़ा हुआ है, जबकि निफ्टी 50 NSE से जुड़ा हुआ है।
- क्षेत्रीय कवरेज: दोनों सूचकांक विभिन्न क्षेत्रों को कवर करते हैं, लेकिन इनका सटीक संयोजन और क्षेत्रीय भार अलग-अलग हो सकता है।
शेयर पेशकश Share Offering
शेयर ऑफरिंग और संबंधित शब्द
- शेयर ऑफरिंग – जब कोई कंपनी फंड जुटाने के लिए जनता को अपने शेयर जारी करती है। उदाहरण: आईपीओ, एफपीओ, अधिकार निर्गम
- प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) – जब कोई कंपनी पहली बार जनता को अपने शेयर ऑफर करती है। यह एक निजी स्वामित्व वाली कंपनी से सार्वजनिक रूप से ट्रेड की जाने वाली कंपनी में बदल रही होती है।
- फर्दर पब्लिक ऑफरिंग (FPO) – एक कंपनी, जिसके शेयर पहले से ट्रेड किए जा रहे, द्वारा अतिरिक्त शेयर जारी करना। इसे सेकेंडरी ऑफरिंग के नाम से भी जाना जाता है।
- ओवरसब्सक्राइब्ड(Oversubscribed)- जब किसी नए जारी किए गए स्टॉक की मांग उपलब्ध शेयरों की संख्या से अधिक होती है।
- अंडरसब्सक्राइब्ड(Undersubscribed) – जब किसी नए जारी किए गए स्टॉक की मांग उपलब्ध शेयरों की संख्या से कम होती है।
- अधिकार निर्गम (Rights Issue)- जनता को शेयर ऑफर किए जाने से पहले मौजूदा शेयरधारकों को अतिरिक्त शेयर एक रियायती मूल्य पर देने की प्रक्रिया।
- निजी प्लेसमेंट (Private Placement) – शेयरों की बिक्री को जनता के बजाय एक विशिष्ट समूह के निवेशकों को करने की प्रक्रिया।

- अंडरराइटिंग (Underwriting) – निवेश बैंक/अंडरराइटर पहले कंपनी से शेयर खरीदता है और फिर उन्हें जनता को बेचता है।
- ऑफर प्राइस (Offer Price) – वह मूल्य जिस पर आईपीओ, एफपीओ में जनता को शेयर ऑफर किए जाते हैं।
- लिस्टिंग (Listing) – कंपनी के शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज पर रजिस्टर करने की प्रक्रिया, जिससे जनता द्वारा उनको खरीदा-बेचा जा सके।
- मार्केट कैपिटलाइजेशन (Market Capitalization) – कंपनी के शेयरों का कुल बाजार मूल्य। इसे शेयर की कीमत को शेयरों की संख्या से गुणा करके निकाला जाता है।
- उदाहरण: स्टॉक मूल्य (998.26) x शेयर संख्या (3,833.2 M) = मार्केट कैपिटलाइजेशन (3,826.5 B)
- लाभांश (Dividend): कंपनी की लाभ का वह हिस्सा जो शेयरधारकों को वितरित किया जाता है।
द्वितीयक बाज़ार
- ब्रोकर (Brokers)
- ब्रोकर खरीदारों और विक्रेताओं को एक साथ लाते हैं, जिससे मांग और आपूर्ति का मिलान होता है और मूल्य निर्धारण में मदद मिलती है।
- सभी ब्रोकर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के साथ पंजीकृत होते हैं।
- उदाहरण: ग्रो, ज़ेरोधा, एंजेल वन, अपस्टॉक्स आदि।
- डिपॉजिटरी (Depositories):
- डिपॉजिटरी एक ऐसा संस्थान होता है जो निवेशकों की प्रतिभूतियों (जैसे शेयर, डिबेंचर, बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियां, म्यूचुअल फंड यूनिट्स आदि) को इलेक्ट्रॉनिक रूप में सुरक्षित रखता है।
- उदाहरण: नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इंडिया) लिमिटेड (CDSL)।
- डिपॉजिटरी प्रतिभागी (Depository Participant):
- डिपॉजिटरी प्रतिभागी वह एजेंट होता है जो डिपॉजिटरी सेवाएँ निवेशकों तक पहुँचाता है। इनमें बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs), ब्रोकर आदि शामिल होते हैं।
- क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन (Clearing Corporations):
- क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन यह सुनिश्चित करते हैं कि हर खरीदार को उसकी खरीदी गई प्रतिभूतियाँ समय पर प्राप्त हों और हर विक्रेता को उसकी बेची गई प्रतिभूतियों का भुगतान मिल जाए।
- उदाहरण: इंडियन क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड, NSE क्लीयरिंग लिमिटेड।
स्टॉक मार्केट से संबंधित प्रमुख शब्दावली
मार्केट कैपिटलाइजेशन (Market Capitalization):
- अर्थ (Meaning): इसे (शेयरों की संख्या × उनके मूल्य) के रूप में गणना किया जाता है।
- हालिया विकास (जनवरी 2024): भारत का बाजार पूंजीकरण $4.5 ट्रिलियन (GDP का 120%) तक पहुंच गया है।
- शीर्ष 5 देश (मार्केट कैपिटलाइजेशन के अनुसार): अमेरिका, चीन, जापान, हांगकांग, और भारत।
आईपीओ में अंडरराइटिंग (Underwriting in IPO):
- आईपीओ में अंडरराइटिंग एक समझौता है जो कंपनी और निवेश बैंक के बीच होता है। इस समझौते के तहत, निवेश बैंक आईपीओ में शेयरों के निर्गमन और बिक्री की प्रक्रिया को सुगम बनाता है। अंडरराइटर्स आईपीओ में शेयरों की संख्या और उनकी कीमत निर्धारित करने में सहायता करते हैं। साथ ही, यदि आईपीओ में शेयरों की पर्याप्त सब्सक्रिप्शन नहीं होती है, तो अंडरराइटर्स शेयरों को खरीदने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
ग्रीनशू विकल्प (Greenshoe Option):
- ग्रीनशू ऑप्शन एक विकल्प है जो अंडरराइटर्स को यह अधिकार देता है कि वे अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए प्रस्तावित शेयरों के अलावा अतिरिक्त शेयर बेच सकें।
लॉन्ग पोजीशन (Long Position):
- निवेशक ने शेयर खरीदे हैं और उन्हें इस उम्मीद में रखा है कि उनके मूल्य में वृद्धि होगी।
शॉर्ट पोजीशन (Short Position):
- शॉर्ट पोजीशन वह स्थिति है जिसमें एक इकाई के पास शेयर नहीं होते, लेकिन उसने शेयर उधार लिए होते हैं, इस उम्मीद में कि उनके मूल्य में गिरावट होगी।
शॉर्ट-सेलिंग (Short-Selling):
- रणनीति जिसमें शॉर्ट-सेलर्स शेयरों को शेयर मालिकों से उधार लेते हैं और उन्हें बाजार में बेचते हैं और उम्मीद करते हैं कि कीमतें बाद में गिर जाएंगी। वे फिर कम कीमतों पर शेयर खरीदते हैं और मुनाफा कमाते हैं।
इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading):
- इंसाइडर ट्रेडिंग वह प्रक्रिया है जिसमें ऐसे व्यक्ति जो कंपनी की गोपनीय जानकारी तक पहुँच रखते हैं, कंपनी के शेयरों की खरीद-बिक्री करते हैं।
- उदाहरण के लिए, यदि कंपनी को नया टेंडर मिलने वाला है और उसके शेयर की कीमतों में भविष्य में वृद्धि की उम्मीद है, लेकिन यह जानकारी केवल निदेशकों को ही पता है। ऐसे में निदेशक कंपनी के शेयरों को कम कीमत पर खरीदते हैं, इस उम्मीद में कि बाद में उन्हें उच्च कीमत पर बेचकर लाभ कमा सकेंगे।
फ्रंट रनिंग (Front Running):
- ब्रोकर्स या फंड मैनेजर्स द्वारा ग्राहकों द्वारा दिए गए आदेशों के आधार पर शेयरों की खरीद या बिक्री।
पंप और डंप घोटाला (Pump and Dump Scam):
- पंप एंड डंप घोटाला एक प्रकार की बाजार हेराफेरी है जिसमें एक मार्केट मैनिपुलेटर कंपनी के शेयरों को बड़े पैमाने पर कम कीमत पर खरीदता है। इसके बाद वह वित्तीय प्रभावकों/सेलिब्रिटीज़ के साथ मिलकर एक समझौता करता है। ये लोग यूट्यूब वीडियो/सोशल मीडिया के माध्यम से कंपनी के शेयरों की कीमतों में भविष्य में वृद्धि के बारे में झूठी खबरें फैलाते हैं। इससे निवेशकों को कंपनी के अधिक शेयर खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे शेयरों की कीमतें बढ़ जाती हैं। जब कीमतें ऊंचाई पर पहुँच जाती हैं, तो घोटाला करने वाला व्यक्ति अपने शेयर बेच देता है और लाभ कमाता है।
पूप और स्कूप घोटाला (Poop and Scoop Scam):
- अर्थ (Meaning): बाजार मैनिपुलेटर वित्तीय प्रभावितों/सेलिब्रिटीज के साथ समझौता करता है और कंपनी के शेयर की कीमतों में भविष्य में गिरावट की झूठी खबरें फैलाते हैं। निवेशकों को अधिक शेयर बेचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे उनकी कीमतें गिर जाती हैं। मैनिपुलेटर शेयरों को कम कीमत पर खरीदता है और भविष्य में उनके कीमतों में वृद्धि की उम्मीद करता है।
वॉश ट्रेडिंग (Wash Trading):
- अर्थ (Meaning): बाजार मैनिपुलेटर दो अलग-अलग खातों का उपयोग करके एक ही शेयर को बार-बार खरीदता और बेचता है। इससे व्यापार गतिविधि में वृद्धि का झूठा प्रभाव पड़ता है और निवेशकों को शेयर खरीदने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं। मैनिपुलेटर शेयरों को उच्च कीमत पर बेचता है और मुनाफा कमाता है।
स्टॉक स्प्लिट (Stock Split):
- स्टॉक स्प्लिट एक कॉर्पोरेट कार्रवाई है जिसमें एक कंपनी अपने मौजूदा शेयरों को स्टॉक की तरलता बढ़ाने के लिए कई शेयरों में विभाजित करती है। हालाँकि शेयरों की संख्या बढ़ जाती है, लेकिन कुल बाजार पूंजीकरण वही रहता है क्योंकि प्रति शेयर की कीमत आनुपातिक रूप से घट जाती है।
शेयरों की पुनर्खरीद (Buy-Back of Shares):
- अर्थ (Meaning): पुनर्खरीद एक प्रक्रिया है जिसके तहत कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों से उनके शेयर खरीद सकती है, आमतौर पर यह खरीदारी मौजूदा बाजार मूल्य के बराबर या उससे अधिक कीमत पर की जाती है।