In this session of RAS Mains 2025 Answer Writing, we explore the ethics of Bhagavad Gita in administration, its influence on governance, and leadership.
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GS Answer Writing – भगवद् गीता का नीतिशास्त्र एवं प्रशासन में इसकी भूमिका। पल्लवन
गुणातीत (3 गुणों से ऊपर उठना) – जो सुख और संकट में एक जैसे होते हैं; जो स्वयं में स्थित हैं; जो ढेले, पत्थर और सोने के टुकड़े को समान मूल्य की दृष्टि से देखते हैं; जो सुखद और अप्रिय घटनाओं के बीच भी वैसे ही बने रहते हैं; जो बुद्धिमान हैं; जो निंदा और प्रशंसा दोनों को समभाव से स्वीकार करते हैं; जो सम्मान और अपमान में एक समान रहते हैं; जो मित्र और शत्रु दोनों के साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं – वे तीन गुणों से ऊपर उठ गए हैं
भगवत गीता के अध्याय 4 में वर्ण व्यवस्था की व्याख्या इस प्रकार की गई है – “चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः” – अर्थार्थ वर्ण की चार श्रेणियां लोगों के गुणों और कर्म के अनुसार भगवान कृष्ण द्वारा बनाई गई है
एक प्रगतिशील अवधारणा –
- जीव के गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर – – “गुणकर्मविभागशः” और “स्वभावप्रभावैर्गुणै”
- जन्म पर आधारित नहीं – और इसलिए गैर-भेदभावपूर्ण
- श्रम विभाजन को बढ़ावा देता है – कृषि, डेयरी फार्मिंग और वाणिज्य वैश्यों की गतिविधियाँ हैं जबकि सेवा करना शूद्र के गुणों वाले लोगों का स्वाभाविक कर्तव्य है।
- समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा देता है – प्रत्येक अपनी क्षमता के अनुसार और प्रत्येक अपनी आवश्यकता के अनुसार [मार्क्स]
एक प्रशासक की भूमिका –
- अनुच्छेद 14, 15 और 17 के तहत संविधान द्वारा गारंटीकृत समान व्यवहार सुनिश्चित करना
- शिक्षा का अधिकार [आरटीई अधिनियम 2005] का अक्षरशः कार्यान्वयन ताकि प्रत्येक वर्ण को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके
- आरटीई अधिनियम की धारा 12 – निजी स्कूलों को समाज के वंचित और कमजोर वर्गों के लिए कम से कम 25% सीटें आरक्षित करनी होंगी
- केवल गुणवत्ता और कार्य के आधार पर प्रवेश, “गुणकर्मविभागशः” – इसलिए भाई-भतीजावाद, पक्षपात, घोर पूंजीवाद से बचते हुए केवल योग्यता-आधारित चयन
- जाति आधारित भेदभाव ख़त्म करना –
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955
5. कौशल को बढ़ावा देना (स्वभावप्रभावैर्गुणै) – मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया मिशन, प्रदर्शन आधारित पदोन्नति, आदि
Intro – [प्रासंगिक परिचय के साथ, जैसा कि हमने अपने उत्तर लेखन कार्यक्रम ‘कलम’ में चर्चा की थी, उत्तर शुरू करने और एक प्रभावशाली निष्कर्ष के साथ समाप्त करने के कई तरीके हैं]
- Facts – (महाभारत में कुल 18 पर्व हैं। भगवान कृष्ण द्वारा भाष्य गीता, भीष्म पर्व का हिस्सा है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं)
- Current – (हाल ही में नवनिर्वाचित ब्रिटिश प्रधान मंत्री ऋषि सुनक ने वेस्टमिंस्टर हॉल में गीता की शपथ ली। यह गीता दर्शन के अनवरत महत्व को दर्शाता है)
- Quote – (इस पुस्तक (गीता) का ज्ञान तब भी जीवित रहेगा जब भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व लंबे समय पूर्व समाप्त हो चूका होगा” – वॉरेन हेस्टिंग)
- Irony – (एक ओर, हम AI, ML और बायोटेक्नोलॉजी जैसी अत्याधुनिक तकनीक की ओर आगे बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे छात्र आत्महत्या के लिए प्रवृत्त हैं। महाभारत जैसे एक संकट से निकला हुआ यह गीता दर्शन, कई आधुनिक संकटों का समाधान कर सकता है)
आधुनिक समय की समस्याओं का समाधान :-
Bhagwat Geeta | Solution of modern day problems |
योगः कर्मसु कौशलम् – Yoga is an Art of working skillfully | बेरोजगारी का समाधान [कर्म योग]उदाहरण – कौशल भारत मिशन |
समत्वं योग उच्यते – balanced state of the body and mind | तनाव, चिंता, काम का बोझ जैसी समस्याओं को हल करने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता विकसित करना |
ज्ञान योग | अज्ञानता, गलत सूचना, झूठी खबर, सोशल मीडिया दुष्प्रचार जैसी समस्याओं का इलाज करनाज्ञान योग जानकारी के लिए किताबें, प्रिंट मीडिया जैसे प्रामाणिक स्रोत सुझाता है |
कर्म योग | टालमटोल, आलस्य और उद्देश्यहीन जीवन जैसी समस्याओं का इलाजयह हमें जीवन जीने का एक उद्देश्य देता है |
Bhakti Yog – मां नित्ययुक्ता उपासते | धार्मिक असहिष्णुता, उग्रवाद, संसाधनों का विवेकहीन उपभोग जैसी समस्याओं का इलाज उदाहरण – प्रकृति के प्रति भक्ति = पवित्र वन = सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षणओरण भूमि (jaisalmer), देव बनी (Udaipur) |
Sthith Pragyta – समदुःखसुखं धीरं, वीतरागभयक्रोधः, नाभिनन्दति न द्वेष्टि, सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो, सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौNishkaam Karma – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि | चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या आदि जैसी समस्याएँस्थिर प्रज्ञता भावनात्मक बुद्धिमता विकास और संघर्ष प्रबंधन में मदद करती हैनिष्काम कर्म व्यक्ति को परिणाम की चिंता से अलग होने में मदद करता है और इसलिए काम में दक्षता बढ़ाता है |
Swadharm – मम् धर्मः, स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः, | आधुनिक समय की समस्याएं जैसे काम के प्रति उदासीनता और कर्तव्यों से दूर भागना उदाहरण – अनुच्छेद 51ए के तहत मौलिक कर्तव्यों का पालन करना प्रत्येक भारतीय का स्वधर्म है, भले ही इनका पालन करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।लोकसंग्रह सामाजिक व्यवस्था में रहने वाले प्रत्येक मनुष्य का स्वधर्म है |
Varna system – चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: | जाति आधारित भेदभाव, छुआछूत, असमानता जैसी समस्याएं |
Yog Khesm (योगक्षेमं वहाम्यहम्) – Taking responsibility for all human needs and security. | प्राकृतिक आपदाएँ, यातायात दुर्घटनाएँ और COVID-19 जैसी समस्याएँLIC का आदर्श वाक्य – ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ लोगों को सामाजिक सुरक्षा की भावना देता है |
यथेच्छसि तथा कुरु – Discretion | नियमों और विनियमों में जटिलता की समस्या से निपटने के लिए स्वविवेक आवश्यक है |
युक्ताहारविहारस्य | आजकल फास्ट फूड (नमक और वसा) के कारण मोटापा और गैर-संचारी रोग (हृदय, बीपी) जैसी समस्याएं हो रही हैं।आहार में संतुलन से इन समस्याओं का समाधान हो सकता है |
काम: क्रोधस्तथा लोभ – त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं | क्रोध – साइबर ट्रोलिंग, युद्ध, आदिकाम – छेड़छाड़, बलात्कार, आदिलोभ – भ्रष्टाचार, लालच, आदि |
Conclusion –
- Summary – कुल मिलाकर, भगवद गीता 21वीं सदी की कई समस्याओं के समाधान में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है
- Slogan – जैसा कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा था – “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत” जब भी समस्याएं होंगी, गीता हमेशा इन समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शक बनेगी।
- Link with intro – जैसा कि वॉरेन हेस्टिंग्स ने दर्शाया है, गीता का ज्ञान न केवल ब्रिटिश प्रभुत्व को, बल्कि इस दुनिया में किसी भी बुरी ताकत के प्रभुत्व को मात देने में कारगर साबित होता है।
Paper 4 (Comprehension part) – पल्लवन
‘अहिंसा परमो धर्मः’ का मंत्र प्राचीनकाल से मिलता है। अपने हित-साधन के लिए दूसरे के अस्तित्त्व को समाप्त कर देना, यहाँ तक कि दूसरे को दुःख पहुँचाना बुरा कार्य है। वास्तव में हिंसा मनुष्य को पशु के समान बना देती है और व्यक्ति में प्रेम तथा स्नेह की भावना समाप्त हो जाती है। निस्संदेह हिंसा बुरी चीज़ है, लेकिन दासता उससे भी अधिक बुरी है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है और दासता की बेड़ियों में नहीं बंध सकता। यदि किसी को विवशता के कारण दास बनकर रहना पड़ता है, तो वह जीवन मृत्यु के समान है। इसलिए कहा गया है ‘पराधीन सपने हुँ सुख नाहीं’।
जीवित होते हुए मुर्दे की भाँति जीना भी हिंसा से कम नहीं है। दासता से मनुष्य का मानसिक विकास नहीं हो पाता। अतः विचारकों ने यह भी कहा कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए यदि अहिंसा का मार्ग भी छोड़ना पड़े, तो वह बुरी बात नहीं होगी। दासता को अंगीकार कर लेने में तो स्वतंत्रता का प्राकृतिक अधिकार छिन जाता है। तब हम अपने विकास की संभावनाओं का, आज़ाद होकर नए-नए कार्य करने की सृजनशीलता का गला घोंट देते हैं। फिर हमारे पास उस मनुष्यता के लिए बचता ही क्या है, जो स्वतंत्र रहकर ही नवनिर्माण करते रहना चाहती है। संस्कृत में भी कहा गया है- जीवनात्तु पराधीनाज्जीवानां मरणं वरम् अर्थात् पराधीन जीवन से तो मरना अच्छा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गाँधी जी के नेतृत्व में अनेक बार ऐसे विवाद खड़े हुए कि अंग्रेजों के साथ हिंसात्मक व्यवहार से पेश आया जाए या उनकी-गुलामी स्वीकार कर ली जाए । ऐसे में, अहिंसा को मानवता की सबसे बड़ी ताकत माना किंतु स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना गया। महात्मा गांधी ने कहा था कि -“अहिंसा कायरता की आड़ नहीं है, वीर व्यक्ति का सर्वोच्च गुण है।”
गाँधी जी ने भी अनेक बार इसी तरह का मत दिया कि कायरता को स्वीकार करने के स्थान पर तो तलवार उठाना बेहतर है। गाँधी जी ने हिंसा और अहिंसा में अहिंसा का वर्णन किया किंतु हिंसा और गुलामी में से तो हिंसा अपनाकर भी आज़ादी प्राप्त करने को बेहतर माना।
अत: हिंसा अपने आप में श्रेयस्कर नहीं है किंतु दासता को स्वीकार करने का अर्थ हैं- शासक की तमाम तरह की हिंसाओं को हमेशा के लिए स्वीकार करना और हार मान लेना , जो हिंसा से भी बुरा है।
हिंसा कलंक इंसान पर, मिटे न इसका दाग;
दासता मरण इंसान का, कभी फले ना बाग।