This is Day 75 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program
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GS Answer Writing – दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया एवं सुदूर पूर्व में भू-राजनीतिक एवं रणनीतिक मुद्दे तथा उनका भारत पर प्रभाव । भू-राजनीतिक मुद्दे । निबंध लेखन
भारत के प्रमुख जी20 शिखर सम्मेलन में नेताओं ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की – जिसे जी20 नई दिल्ली नेताओं की घोषणा कहा गया।
- यूक्रेन-रूस संघर्ष का समाधान: घोषणापत्र में रूस की कार्रवाइयों की “आक्रामकता” के रूप में निंदा नहीं की गई, बल्कि क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सिद्धांतों की पुष्टि करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- डिजिटल अवसंरचना: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना भंडार (जीडीपीआईआर) के लिए जी20 ढांचे का निर्माण।
- 21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थान: बेहतर, बड़े और अधिक प्रभावी बहुपक्षीय विकास बैंक (एमडीबी) सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार।
- एक सतत भविष्य के लिए हरित विकास संधि: स्वच्छ, सतत ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता।
- लैंगिक समानता: भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत महिला सशक्तिकरण पर एक कार्य समूह की स्थापना।
- समावेशिता: जी20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता का स्वागत।
- भावी अध्यक्षताएं और सहभागिता समूह: भावी G20 अध्यक्षताओं को मान्यता दी जाती है, जिसमें 2024 में ब्राज़ील, 2025 में दक्षिण अफ्रीका और 2026 में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की परिकल्पना शीत युद्ध के दौरान इंडोनेशिया के बांडुंग में 1955 के एशिया-अफ्रीका सम्मेलन में की गई थी। मिस्र, घाना, भारत, इंडोनेशिया और यूगोस्लाविया के नेताओं द्वारा स्थापित NAM का उद्देश्य NATO और वारसॉ संधि सैन्य गुटों से स्वतंत्र रहना था।
वर्तमान प्रासंगिकता:
- संयुक्त राष्ट्र सुधार: NAM संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अधिक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और प्रतिनिधि बनाने की वकालत करता है।
- संप्रभुता संरक्षण: आत्मनिर्णय, क्षेत्रीय अखंडता, गैर-आक्रामकता और सदस्य राज्यों की स्वतंत्रता का समर्थन करता है।
- विदेश नीति: भारत जैसे देश NAM सिद्धांतों का पालन करते हैं, स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर देते हैं।
- उपनिवेशवाद विरोधी: NAM विकासशील देशों में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को रोकना जारी रखता है।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग: विकासशील देशों को आम चुनौतियों का समाधान करने और वैश्विक मामलों को प्रभावित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- बहुपक्षवाद और शांति: बहुपक्षवाद, कूटनीति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के लोकतंत्रीकरण की वकालत करना और संघर्षों की निंदा करना शामिल है।
सक्रिय गुटनिरपेक्षता (ANA): वैश्विक मुद्दों को हल करने और समाधान उत्पन्न करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण पर जोर देता है।
चीन की रणनीतिक पहल:
- तिब्बत की five fingers रणनीति: चीन के क्षेत्रीय दावों और रणनीतिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका लक्ष्य लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश सहित आसपास के पांच क्षेत्रों को नियंत्रित या प्रभावित करना है।
- स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पहल: इसमें हिंद महासागर में बंदरगाहों और समुद्री बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, जिसमें पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह, बांग्लादेश में चटगांव बंदरगाह और जिबूती शामिल हैं
- हिमालयन क्वाड: चीन, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जुड़ी परियोजना, जिसका उद्देश्य क्वाड गठबंधन को संतुलित करना है।
- भारतीय पड़ोस में बढ़ती उपस्थिति:
- पाकिस्तान: BRIके तहत CPEC( china pakistan economic corridor ) विकास के लिए 2013 के एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो चीन के लिए भारत को रोकने के लिए एक उपकरण के रूप में काम कर रहा है।
- श्रीलंका: बड़े पैमाने पर बीआरआई फंडिंग प्राप्त की, जिससे हिंद महासागर में चीन को नौसैनिक क्षमताएं प्रदान की गईं। हंबनटोटा बंदरगाह का अधिग्रहण चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति को मजबूत करता है। कोलंबो बंदरगाह शहर को विशेषज्ञों ने ‘चीनी कॉलोनी’ कहा है।
- बांग्लादेश: 2016 में BRI में शामिल हुआ, चीन के साथ बढ़ते संबंध, भारत के लिए चिंताएं बढ़ीं। चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और आयात का सबसे प्रमुख स्रोत है। चीन द्वारा कॉक्स बाजार में 1.21 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पनडुब्बी बेस बनाया गया है, जो पनडुब्बियों और युद्धपोतों को सुरक्षित जेट सुविधा प्रदान करेगा।
- नेपाल: 2017 में BRI में शामिल हुआ; चीन राजनीतिक संबंध चाहता है जबकि भारत मजबूत सांस्कृतिक प्रभाव रखता है। नेपाली पक्ष चीन द्वारा प्रस्तावित वैश्विक विकास पहल (जीडीआई) का समर्थन करता है।
- मालदीव: यामीन के नेतृत्व में, पर्याप्त निवेश के साथ चीन की ओर झुका। नए राष्ट्रपति के बावजूद भारत विरोधी भावना बढ़ रही है। चीन के साथ 2017 एफटीए से भारत-मालदीव संबंधों में झटका। भारत की भागीदारी का विरोध, ‘इंडिया आउट’ पहल में प्रकट हुआ।
- भूटान: बीआरआई साझेदारी में गिरावट, भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखा। हालाँकि, भारत की चिंताओं के बावजूद, ऐसा लगता है कि भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध स्थापित करने और सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने की संभावना बनती जा रही है।
- अफगानिस्तान: तालिबान अधिग्रहण के बाद पुनर्निर्माण में तालिबान चीन को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है
भारत के राजनयिक और सुरक्षा संबंधों पर प्रभाव
- सुरक्षा निहितार्थ
- डोकलाम और सिलीगुड़ी कॉरिडोर: डोकलाम से जुड़ा चीन-भूटान सीमा समझौता सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से भारत की पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंच को खतरे में डाल सकता है।
- चीन-पाकिस्तान सहयोग: CPEC के माध्यम से गहराता सहयोग भारत के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा करता है।
- चीन-नेपाल बंधन : नेपाल और चीन के बीच बढ़ते संबंधों से भारत का क्षेत्रीय प्रभाव कम हो गया है।
- शक्ति का बदलता संतुलन: भारत को चीन के बढ़ते क्षेत्रीय प्रभाव के अनुरूप ढलना होगा क्योंकि छोटे पड़ोसी राज्य तेजी से “चाईना -कार्ड” का उपयोग कर रहे हैं, जिससे भारत पर निर्भरता कम हो रही है और शक्ति का क्षेत्रीय संतुलन बदल रहा है।
- भू-राजनीतिक बफर के रूप में चीन का उदय: चीन का उद्भव छोटे राज्यों को रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिससे भारत पर उनकी निर्भरता कम हो जाती है और क्षेत्रीय गतिशीलता बदल जाती है।
- हिंद महासागर में सैन्य उपस्थिति: चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति व्यापार मार्गों को सुरक्षित करती है, क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाती है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और सुरक्षा पर प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ाती है।
- दोहरे उपयोग वाला बुनियादी ढांचा: जिबूती, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में बीआरआई परियोजनाएं सैन्य और आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं, जिससे भारत की सुरक्षा रणनीतियां जटिल हो जाती हैं।
- सीपीईसी की स्वीकृति: दक्षिण एशियाई देशों द्वारा सीपीईसी की स्वीकृति चीन के बढ़ते प्रभाव का संकेत देती है।
- दक्षिण एशिया में नेतृत्व भूमिकाएँ: चीन की बढ़ती क्षेत्रीय स्वीकार्यता क्षेत्रीय नेता बनने की भारत की आकांक्षा को चुनौती देती है।
- व्यापार की गतिशीलता: चीन कुछ मामलों में भारत से आगे निकल कर कई दक्षिण एशियाई देशों का प्रमुख व्यापारिक भागीदार बन गया है:
- मालदीव: चीन का व्यापार भारत से थोड़ा अधिक है।
- बांग्लादेश: चीन का व्यापार भारत से लगभग दोगुना है।
- नेपाल और श्रीलंका: व्यापार अंतर काफी कम हो गया है।
Paper 4 (Comprehension part) – निबंध
भारतीय खेल परिदृश्य : दशा एवं दिशा
“मैंने वाटरलू के युद्ध में जो सफलता प्राप्त की उसका प्रशिक्षण ईटन के मैदान में मिला।”
नेपोलियन को पराजित करने वाले एडवर्ड नेल्सन की यह पंक्ति खेल के महत्त्व को बयां करने के लिये पर्याप्त है। खेल न केवल हमें स्वस्थ रहने में योगदान देकर सक्षम बनाते हैं वरन् वर्तमान युग की संकीर्णतावादी सोच के विरुद्ध हमें निष्पक्ष, सहिष्णु तथा विनम्र बनाकर एक बेहतर मानव संसाधन के रूप में बदलते हैं। खेलों की महत्ता को दुनिया के प्रत्येक समाज व सभ्यता में स्वीकृति मिली है। रामायण, महाभारत से लेकर ग्रीको-रोमन दंत-कथाओं में होने वाले खेलों का जिक्र इस बात का प्रमाण है। पुनः ओलंपिक की प्रारंभिक शुरुआत यह स्पष्ट करती है कि खेलों को संस्थानिक महत्त्व मिलता रहा है।
वर्तमान परिवेश व जीवनशैली में आज मनुष्य जब अनेक रोगों से ग्रस्त हो रहा है। ऐसे समय में खेलों का महत्त्व स्वयमेव स्पष्ट हो जाता है। खेलों द्वारा न केवल हमारी दिनचर्या नियमित रहती है बल्कि ये उच्च रक्तचाप, ब्लड शुगर, मोटापा, हृदय रोग जैसी बीमारियों की संभावनाओं को भी न्यून करते हैं। इसके अलावा खेल द्वारा हमें स्वयं को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी मदद मिलती है, जिससे हम अपने दायित्वों का निर्वहन सक्रियतापूर्वक कर पाते हैं। एक अच्छा जीवन जीने हेतु अच्छे स्वास्थ्य का होना बहुत जरूरी है। जिस प्रकार शरीर को अच्छा और स्वस्थ रखने के लिये व्यायाम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार खेलकूद का भी स्वस्थ जीवन हेतु अत्यधिक महत्त्व है। खेल बच्चों और युवाओं के मानसिक तथा शारीरिक विकास दोनों ही के लिये अति आवश्यक है। नई पीढ़ी को किताबी ज्ञान के साथ-साथ खेलों में भी रुचि बढ़ाने की जरूरत है।
परंपरगत रूप से भारत के मध्यम वर्ग की धारणा रोजगारपरकता के लिहाज से खेलों के प्रति नकारात्मक रही है। खेलकूद को मनुष्य के बौद्धिक विकास व रोजगार प्राप्ति में बाधक मानते हुए कहा जाता था कि “पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब।” परंतु बदलते समय के साथ यह साबित हो गया कि खेल मनुष्य के विकास में बाधक नहीं वरन् सहायक हैं। बगैर शैक्षणिक उपलब्धि के भी सचिन तेंदुलकर द्वारा अर्जित यश, सम्मान, धन लोकप्रियता आदि इस बात के सुंदर उदाहरण हैं। सचिन तेंदुलकर द्वारा देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ प्राप्त करना, वर्तमान परिदृश्य में खेलों की महत्ता को दर्शाता है। आज सचिन ही नहीं वरन् सुशील कुमार, सानिया मिर्जा, अभिनव बिन्द्रा, साइना नेहवाल, मैरी कॉम व महेंद्र सिंह धोनी जैसे नामों ने सफलता व समृद्धि एवं श के जो आयाम गढ़े हैं, उसके समक्ष संस्थागत शिक्षा का प्रश्न गौण हो जाता है।
सरकार खेल में ख्याति प्राप्त खिलाड़ियों को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित करती है, अर्जुन एवं द्रोणाचार्य जैसे पुरस्कार इसी श्रेणी के खेल रत्न पुरस्कार है जो भारत में खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु सरकार द्वारा खिलाड़ियों और गुरुओं को प्रदान किये जाते हैं। हमारे देश की कई महिलाओं यथा- पी.टी. उषा, मेरी कॉम, सायना नेहवाल एवं सानिया मिर्जा ने दुनिया भर में खेल में काफी नाम कमाया है और देश को गौरवान्वित किया है। खेलों को भारतीय संस्कृति एवं एकता का प्रतीक भी माना जाता है। खेल हमारी प्रगति को सुनिश्चित कर जीवन में सफलता प्रदान करते हैं।
आज सरकारी व निजी दोनों क्षेत्रों में खिलाड़ियों के लिये नौकरियाँ पाने के कई अवसर है। रेलवे, एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम, ओ.एन.जी.सी., आई-ओ-सी- जैसी सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ टाटा अकादमी, जिंदल ग्रुप जैसे निजी समूह भी खेलों व खिलाड़ियों के विकास व प्रोत्साहन हेतु प्रतिबद्ध है। इसके अलावा आई.पी.एल., आई.बी.एल., एच.सी.एल., जैसी लीगों तथा स्थानीय क्लबों के स्तर पर भारी निवेश ने खिलाड़ियों के विकल्प को बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें बेहतर मंच व अवसर उपलब्ध कराया है। इसे देखते हुए अब कहा जा सकता है कि खेलोगे-“कूदोगे तो होगे नवाब।
भारत में खेल के पिछड़ेपन का कारण
खेल अधिकारियों का भ्रष्टाचार और गलत प्रबंधन :भ्रष्टाचार भारत में खेल प्रशासन का पर्याय बन गया हैI चाहे कोई भी खेल हो, हर जगह एक समान स्थिति हैI ज्यादातर खेल अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैंI इसके अतिरिक्त 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में खेल संगठनों के प्रशासन में राजनेताओं की भागीदारी और उनके विवादों में शामिल होने की वजह से प्रशासकों की छवि धूमिल हुई हैI
सामाजिक और आर्थिक असमानताएं :सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का भारतीय खेल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैI गरीबी और खेलने के लिए स्टेडियम जैसे पर्याप्त बुनियादी आवश्यक्ताओं की कमी, खेल में भाग लेने के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित न करना आदि कारणों से देश में खेल की दिशा में सकारात्मक विकास का आभाव दिखता हैI
इन्फ्रास्ट्रक्चर का आभाव:यह भारत में खेल की उदासीनता के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक हैI चूंकि बुनियादी ढांचा, प्रशिक्षण और आयोजन खेल के लिए आवश्यक है, इसकी अनुपलब्धता और समाज के केवल कुछ ही हिस्सों तक इसकी पहुंच ने खेल की भागीदारी और खेल तथा खिलाड़ी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला हैI
नीतिगत कमी :किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए एक प्रभावी नीति तैयार कर उसका सही निष्पादन आवश्यक होता हैI यह बात खेल के लिए भी समान रूप से लागू होती हैI संसाधनों की कमी तथा राज्य और स्थानीय सरकारों की विशेषज्ञता के कारण देश में अभी तक खेल नीति की योजना बनाना और उसका पालन करने की प्रक्रिया सेंट्रलाइज्ड हैI इसके अतिरिक्त संघ स्तर पर खेल के लिए एक अलग मंत्रालय का अभाव खेल के प्रति उदासीनता को दर्शाता हैI
संसाधनों के अल्प आवंटन :अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में वित्तीय संसाधनों का आवंटन भारत में बहुत कम हैI 2021-22 के केंद्रीय बजट में 2656 करोड़ रुपये खेल के लिए आवंटित किए गए थेI हालांकि, यह पिछले साल के मुकाबले 450 करोड़ रुपये अधिक है, लेकिन यूके द्वारा खेल क्षेत्र के लिए प्रति वर्ष लगभग 9 000 करोड़ खर्च किये जाने की तुलना में यह बहुत कम हैI
खेलों की इस स्थिति में सुधार करने के लिए हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने कई पहल की हैं. उनमें से कुछ हैं –
• सितंबर 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खेलो इंडिया प्रोग्राम को मंजूरी दी I कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य खेल विकास, व्यक्तिगत विकास, सामुदायिक विकास, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय विकास के लिए एक उपकरण के रूप में काम करना हैI खेलो इंडिया प्रोग्राम पूरे खेल पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करेगा, जिसमें बुनियादी ढांचे, सामुदायिक खेल, प्रतिभा की पहचान, उत्कृष्टता के लिए प्रशिक्षण, प्रतियोगिता संरचना और खेल अर्थव्यवस्था भी शामिल हैI
• अन्य जिम्मेदारियों के लिए वे राष्ट्रीय कोचिंग शिविरों के स्थानों पर मौजूदा खेल के बुनियादी ढांचे / उपकरणों, वैज्ञानिक बैकअप और चिकित्सा सुविधाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन करते हैं और समीक्षाजन्य कमियों को उजागर करते हैं.
• “राष्ट्रीय खेल संघों की सहायता” “Assistance to National Sports Federations”, की योजना के तहत सरकार राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़कियों / महिलाओं के प्रदर्शन, प्रशिक्षण और भागीदारी के लिए मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल संघ (एनएसएफ) को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है.
• आगामी 2024 ओलंपिक के लिए अपने प्रशिक्षण में एथलीटों को सर्वाधिक सहायता प्रदान करने के लिए सरकार ने विदेशी कोचों और सहायक स्टाफ की नियुक्ति को मंजूरी दी है.
• अप्रैल 2020 में केन्द्रीय क्षेत्र की योजना खेलो इंडिया – खेल विकास के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को सरकार द्वारा मंजूरी दे दी गई थीI इस योजना के अंतर्गत राजीव गांधी खेल अभियान, शहरी खेल बुनियादी ढांचा योजना और राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज प्रणाली कार्यक्रम आदि शामिल हैं.सरकार द्वारा उठाए गए उपरोक्त उपायों के बावजूद देश में खेल की गुणवत्ता सराहनीय नहीं हैI 1.40 अरब से अधिक आबादी वाले देश के लिए मौजूदा खेल ढांचे संतोषजनक नहीं है. विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और सरकार का अपर्याप्त समर्थन ओलंपिक जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भारतीय एथलीटों के खराब प्रदर्शन में साफ परिलक्षित होता है I क्यूबा, क्रोएशिया और लिथुआनिया जैसे छोटे देशों ने भारत की तुलना में ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन किया., सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को भारतीय खेल क्षेत्र को इस वर्तमान दु:खद स्थिति से ऊपर उठाने के लिए एक साथ आने का प्रयास करना चाहिए. बीएससीआई के लिए न्यायमूर्ति लोधा समिति द्वारा किये गए सिफारिशों को अन्य सभी खेल निकायों के लिए लागू करना इस दिशा में सार्थक पहल सिद्ध हो सकता है Iजीवन में खेलों का महत्त्व निर्विवाद है। ये न केवल जीवन में गति व लय का संचार करते हैं, वरन् हमें जीवन का महत्त्वपूर्ण पाठ भी पढ़ाते हैं।
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