This is Day 67 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program
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GS Answer Writing –धात्विक एवं अधात्विक खनिज :प्रकार, वितरण एवं उनका औद्योगिक उपयोग | परम्परागत एवं गैर- परम्परागत ऊर्जा संसाधन | जनसांख्यिकी विशेषताएं एवं प्रमुख जनजातियाँ | वन्यजीव एवं जैव विविधता : चुनौतियां एवं संरक्षण | यूनेस्को की भू-पार्क एवं भू-धरोहर स्थल संकल्पना : राजस्थान में संभावनाए। प्रमुख पर्यावरण संबंधी मुद्दे l Elaboration
भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष विधेयक का मसौदा भू-विरासत स्थलों को उन स्थानों के रूप में परिभाषित करता है जिनमें महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक भू-अवशेष और स्ट्रैटिग्राफिक प्रकार के खंड, भूवैज्ञानिक संरचनाएं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की गुफाओं और प्राकृतिक चट्टान-मूर्तियों सहित अद्वितीय भू-आकृतियाँ शामिल हैं।
भू-विरासत स्थलों में शैक्षिक, वैज्ञानिक, सौंदर्य और सांस्कृतिक मूल्य वाले महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं।
राजस्थान के चार भू-विरासत स्थल हैं-
जगह | ज़िला |
राजपुरा-दरीबा खनिज पट्टी में गोस्सन | उदयपुर |
स्ट्रोमेटोलाइट पार्क | भोजून्दा के पास, चित्तौड़गढ़ |
अकाल फॉसिल वुड पार्क | जैसलमेर |
किशनगढ़ नेफलाइन सायनाइट | अजमेर |
रासायनिक प्रक्रिया द्वारा मूल खनिजों को अधात्विक खनिजों के अयस्कों से अलग नहीं किया जाता है। इनका प्रयोग प्राकृतिक रूप में ही किया जाता है।
- इमारती पत्थर
- संगमरमर:
- संगमरमर उत्पादन में राजस्थान का एकाधिकार है।
- राज्य भर में अलग-अलग रंग के संगमरमर के पत्थर पाए जाते हैं: उदयपुर में हरा, भैसलाना में काला, जालौर और बांसवाड़ा में गुलाबी, जैसलमेर में पीला, मकराना में सफेद और पाली में इंद्रधनुषी रंग का संगमरमर।
- राज्य के पास 1100 मिलियन टन उच्च गुणवत्ता वाले संगमरमर का भंडार है, जिसके प्रमुख उत्पादन केंद्र मकराना, राजसमंद, उदयपुर और किशनगढ़ में हैं।
- चूना पत्थर: भारत के भंडार का 10% ⇒ सीमेंट ग्रेड (चित्तौड़, बूंदी), रासायनिक ग्रेड (जोधपुर), स्टील ग्रेड (जैसलमेर)
- बलुआ पत्थर: जोधपुर में सफेद-भूरा, करौली-डांग क्षेत्र में सफेद, कोटा, बूंदी आदि में कोटा पत्थर
- ग्रेनाइट: जालोर, पाली, सिरोही, उदयपुर आदि
- संगमरमर:
- जिप्सम: भारत में जिप्सम की अधिकतम मात्रा राजस्थान में पाई जाती है, जिसका खनन चार प्रमुख क्षेत्रों में होता है: नागौर बेल्ट (गोठ-मांगलोद, भदवासी, मंगोल), चूरू-बीकानेर बेल्ट (जामसर, लूणकरनसर, तारानगर), जैसलमेर-बाड़मेर बेल्ट (मोहनगढ़, हमीरवाली), और पाली-जोधपुर बेल्ट (फलसुंड, मांगलोद)।
- अभ्रक : खैरवाड़ा, ऋषभदेव (उदयपुर); देवल, पिपरदा (डूंगरपुर )
- फ़ेलस्पर: भारत का 60%। राजस्थान का 96% हिस्सा अजमेर में
- अभ्रक: तीन बेल्ट: 1) जयपुर – टोंक बेल्ट (बरला, मानखंड, बंजारी, लक्ष्मी); 2) भीलवाड़ा-उदयपुर बेल्ट: दांता-भूणास, 3) अन्य क्षेत्र: तोरावाटी (सीकर), अजमेर आदि
- रॉक फॉस्फेट: उदयपुर (झामर कोटडा, दफन कोटडा), बांसवाड़ा (सलोपेट), जैसलमेर (बिरमानिया)
- डोलोमाइट: बांसवाड़ा (विट्ठल देव, त्रिपुरा सुंदरी), उदयपुर, राजसमंद (हल्दीघाटी, नाथद्वारा)
- सिलिका रेत: बूंदी (बरोदिया), जयपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, बाड़मेर
- मिट्टी के खनिज: चीनी मिट्टी, बॉल मिट्टी, अग्नि मिट्टी (बीकानेर), ब्लीचिंग मिट्टी (बाड़मेर)
- कीमती पत्थर: पन्ना (राजसमंद बेल्ट – कालागुमान, टिक्की, गोगुंदा); गार्नेट (राजमहल-टोंक, अजमेर-सरवाड़)
अन्य: कैल्साइट, बेंटोनाइट, पाइराइट्स (सीकर), सेंधा नमक (डीडवाना, लूनकसर, पचपदरा झील), बैराइट्स, मैग्नेसाइट
राजस्थान की जनजातीय आबादी में भील दूसरे स्थान पर हैं, जो मुख्य रूप से बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जिलों में केंद्रित हैं। वे भारत की सबसे पुरानी जनजातियों में से हैं, जो भीली और वागरी बोलियाँ बोलती हैं। सामाजिक रूप से पितृसत्तात्मक, वे मुख्य रूप से किसान और पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध तीरंदाज हैं।
पर्यावास और आवास
- असमान और वन भूमि: भील आमतौर पर असमान और वन भूमि पर निवास करते हैं, जो प्रकृति के साथ उनके घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है।
- पारंपरिक आवास: उनके घर बांस और लकड़ी का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जो उनके आसपास आसानी से उपलब्ध सामग्री होती है।
- क्षेत्रीय भेद:
पालवी भील: ऊंची पहाड़ियों पर रहने वाले भील ‘पालवी’ कहलाते हैं।
वागरी भील: मैदानी इलाकों में रहने वाले भीलों को ‘वागरी’ कहा जाता है।
सामाजिक जीवन :पितृवंशीय गोत्र
- पितृवंशीय गौत्र-भीलों के कई पितृवंशीय गौत्र होते हैं जिन्हें ‘अटक’ कहा जाता है।
- विवाह प्रथाएँ- कई प्रकार जैसे- मोर बान्दिया विवाह, अपहरण विवाह, देवर विवाह, विनिमय विवाह, सेवा विवाह एवं क्रय विवाह के तरीके प्रचलित है।
- परिवार संरचना –भीलों में संयुक्त परिवारों की तुलना में एकांकी परिवार अधिक पाए जाते हैं
- ग्राम संरचना – इनके छोटे गांव को फला और बड़े गांव को पाल कहते हैं।
- सांस्कृतिक प्रथाएं
- नृत्य : गवरी एवं घूमर भीलों के प्रमुख नृत्य है
- मेले और त्यौहार:
- श्रावण मास में पार्वती के पूजन का “गवरी” पर्व इनका विशिष्ट उत्सव है।
- भील समुदाय का प्रसिद्व बेणेश्वर मेला प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन माही, सोम व जाखम नदियों के संगम पर स्थित बेणेश्वर नामक स्थान पर भरता है।
- पारंपरिक पोशाक और आभूषण: भील पुरुष प्रायः कमीज या अंगरखी तथा तंग धोती (ठेपाडा) पहनते हैं और सिर पर साफा (पोत्या) पहनते हैं। स्त्रियों के पहनावे में घाघरा, लूगडी व चोली शामिल है।भील पुरुष व महिलाएँ चाँदी, पीतल, गिलट आदि धातुओंके आभूषण पहनते हैं। गोदना का प्रचलन भी पाया जाता है।
- धार्मिक परंपराएं:भील हिन्दुओं के सभी देवी-देवताओं के साथ साथ स्थानीय लोकदेवताओं जैसे धराल, बीरसा मुण्डा, कालाजी गोराजी, माताजी, गोविन्द गुरू, लसोड़िया महाराज आदि की पूजा करते हैं।
अर्थव्यवस्था :
- खानाबदोश जीवन शैली: परंपरागत रूप से, भील एक बहुत गरीब जनजाति रही है, जो अक्सर खानाबदोश जीवन शैली जीते हैं।
- खेती और पशुपालन की ओर संक्रमण: कई भील अब विभिन्न स्थानों पर खेती की गतिविधियों में परिवर्तित हो गए हैं।
- पहाड़ी ढलानों पर खेती को ‘चिमाता’ कहा जाता है, जबकि मैदानी इलाकों में खेती को ‘दजिया’ कहा जाता है।
- खेती के अलावा, भील अपनी आर्थिक गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में पशु पालन भी करते हैं।
- वन-आधारित आजीविका: मछली पकड़ना, शिकार करना और बच्चों और महिलाओं द्वारा वन उत्पादों का संग्रह करना उनकी आर्थिक प्रणाली का एक अभिन्न अंग है।
- महुआ का पेड़ भीलों के बीच महत्व रखता है, संभवतः इसके आर्थिक मूल्य के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्व के कारण भी।
दिहाड़ी मजदूरी की ओर संक्रमण: वर्तमान में, कुछ भीलों ने आसपास के शहरों और कस्बों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना भी शुरू कर दिया है, जो उनकी आर्थिक गतिविधियों में बदलाव का संकेत है।
Paper 4 (Comprehension part) – Elaboration
Man acts with a view to achieving his goal in whatever field he is engaged. Obviously, he dreams of success and he will never bargain for less than success. But, success is not always the result. All his efforts may end in fiasco.The lesser men would give in to the pressure and throw their hat in. But, a man of fortitude will persevere realising that his failure is a stepping stone to success in future. He learns from his failure. The failure provides man an opportunity to analyse its cause. Having realised his shortcomings, he will adopt a prudent course on the way to success. The ascent to Mount Everest and landing on the Moon are the rare achievements of the recent past. Do we think that the only first attempt brought success to the adventurers? One shudders to think of the amount of failure they must have encountered to be at last on the top of the world. It is the indefatigable spirit that ultimately leads to success.
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