Day 30 | RAS Mains 2025 Answer Writing | 90 Days

90 days answer writing

This is Day 30 | 90 Days RAS Mains 2025 Answer Writing, We will cover the whole RAS Mains 2025 with this 90-day answer writing program

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GS Answer Writing19वीं-20वीं शताब्दी की प्रमुख घटनाएं: किसान एवं जनजाति आन्दोलन। अनुवाद

यह केसरी सिंह बारहठ (1903) द्वारा डिंगल में मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह को लिखा गया एक व्यंग्य (13 व्यंग्यात्मक सोरठे) था जिसमें उन्हें अपने वंश की परंपराओं को बनाए रखने और दिल्ली दरबार में शामिल न होने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। ‘चेतवाणी रा चुंगटिया’ पढ़कर महाराणा दरबार में उपस्थित हुए बिना ही लौट आए।

गोविन्द गिरि डूंगरपुर के बंजारा परिवार से थे और 1900 के दशक की शुरुआत में भीलों के बीच एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे।

गोविंद गिरी

सम्प सभा:

  • उन्होंने भीलों में नैतिकता बढ़ाने, उन्हें अंधविश्वासों से दूर रखने और उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 1883 में सम्प सभा की स्थापना की।
  • उनकी प्राथमिकताओं में स्कूल खोलना और आदिवासियों को शराब पीने, लूटपाट, चोरी आदि गतिविधियों से रोकना शामिल था।

भगत आंदोलन:

उनकी शिक्षाएँ भीलों को जागृत करने में सफल रहीं, जिसकी परिणति भीलों के राजनीतिक-आर्थिक विद्रोह में हुई, जिसे भगत आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

  • उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की वकालत की, लोगों को बेगार ना करने और अनावश्यक करों का भुगतान ना करने के लिए प्रेरित किया।
  • प्रभाव: सबसे पहले, इससे उन्हें 1921-22 में जबरन श्रम और उच्च राजस्व दरों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए संगठित करना आसान हो गया। इसने राजपूत राज्यों को भीलों के साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करने के लिए मजबूर किया।
  • बाद में उन्होंने अलग भील राज्य की स्थापना का प्रस्ताव रखा।

निष्कर्षतः, भीलों पर गुरु गोविंद गिरी का प्रभाव परिवर्तनकारी था, जिससे उनके सशक्तिकरण, सामाजिक जागृति और दमनकारी राज्य नीति के खिलाफ प्रतिरोध में योगदान मिला।

 राजस्थान में किसान आंदोलन सामंतों द्वारा किसानों के शोषण यानी उच्च भूमि राजस्व, लता-कुंटा, बेगार श्रम का परिणाम थे। इससे जनता में असंतोष बढ़ा और इसका पहला विस्फोट 1897 ई. में बिजोलिया में हुआ

विशेषता:

  • राजस्थान के किसान आंदोलन जाति पर आधारित थे। उदा. बिजोलिया (धाकड़ किसान), शेखावाटी (जाट) पर आधारित थे।
  • नेतृत्व बाहरी लोगों द्वारा प्रदान किया गया था, बिजोलिया आंदोलन (विजय सिंह पथिक), मेव आंदोलन (गुरुग्राम के यासीन खान)
  • आंदोलनों की प्रकृति अहिंसक थी।
  • आंदोलनों को योजनाबद्ध तरीके से चलाने का श्रेय जातीय पंचायतों को दिया गया।
  • इन आन्दोलनों को प्रजामण्डलों का समर्थन प्राप्त हुआ।
  • महिलाओं की सक्रिय भागीदारी

महत्व:

  • परिणामस्वरूप जागीरी प्रथा का उन्मूलन हो गया।
  • राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रेरणास्रोत बने।
  • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार
  • कर कम किये गये।
  • महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से उनका सशक्तिकरण हुआ। उदा. कटराथल सम्मेलन।

सामंतों द्वारा उत्पीड़न के बावजूद, इन आंदोलनों ने जनता को जागृत किया, राष्ट्रवादी भावनाओं को जगाया जो आगे चलकर सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन का एक अभिन्न अंग बन गया।

Paper 4 (Comprehension part) –  अनुवाद

पंचायतों को योजना और सेवाओं की डिलीवरी में उनके अच्छे काम के लिये पुरस्कार और वित्तीय प्रोत्साहन दिये जाते हैं। इससे पुरस्कार विजेता नवोन्मेषी कार्य और दूसरों के लिये अनुकरणीय मिसाल कायम करने के लिए उत्साहित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप स्थानीय स्तर पर समग्र सुशासन के लिये वातावरण तैयार होता है। यह बड़ी संख्या में पीआरआई के बीच जागरूकता पैदा करने और ज्ञान के विस्तार का जरिया बन गया है। इसके अलावा सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) की गतिविधियाँ भी चलायी जा रही है। इन गतिविधियों का लक्ष्य समर्थन, जागरूकता और प्रचार के जरिये पंचायतों की अंदरूनी क्षमता का निर्माण और उनके कामकाज में सुधार के लिये सभी उपलब्ध मीडिया मंचों का उपयोग कर संचार को बेहतर और ज्यादा प्रभावी बनाना है।

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