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GS Answer Writing – गांधी का नीतिशास्त्र । पल्लवन
ईशावास्यमिदं सर्वम् | गांधीवादी नैतिकता |
क्योंकि सब कुछ ईश्वर का अंश है और इसलिए दया का पात्र है | अहिंसा – मानव जाति और सभी जीवित प्राणियों के प्रति अथाह प्रेम |
ईश्वर प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान है – अतः सभी समान हैं | अस्पृश्यानिवारण – अस्पृश्यता दूर करना |
प्रत्येक वनस्पति और जीव ईश्वर का अंश है और उसकी रक्षा की जानी चाहिए। | अपरिग्रह – हमें पारिस्थितिकी का सम्मान इसलिए नहीं करना चाहिए कि यह हमारे लिए उपयोगी है, बल्कि इसलिए कि यह ईश्वर का अंश है और इसका अपना अधिकार है। |
सत्याग्रह = सत्य+आग्रह (अर्थात् सत्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्नों को सत्याग्रह कहते हैं)। सत्य की निर्भीक खोज ही सत्याग्रह है।
सत्याग्रह के अर्थ | आधुनिक समय में अनुप्रयोग |
मतभेद होने पर भी किसी भी अधिकारी का अपमान या हमला नहीं करना चाहिए | सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध, कैंडल मार्च, धरना, हड़ताल आदिउदाहरण – जंतर-मंतर दिल्ली पर धरनाउदाहरण – डॉक्टरों, वकीलों द्वारा अपनी जायज मांगों को लेकर शांतिपूर्ण हड़ताल |
एक सत्याग्रही को भौतिक संपत्ति और यौन इच्छाओं का त्याग करना चाहिए | आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, भुखमरी, कुपोषण आदि समस्याओं से निपटनामहिलाओं के शील का सम्मान करना [अनुच्छेद 51ए(ई) |
गांधी जी अक्सर उपवास को सत्याग्रह के हथियार के रूप में अपनाते थे। विषम परिस्थितियों में, एक सत्याग्रही को मृत्युपर्यंत उपवास करने के लिए तैयार रहना चाहिए | आत्मसंयमउदाहरण – अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में मृत्युपर्यंत अनशन किया |
सविनय अवज्ञा सत्याग्रह का हिस्सा है | नर्मदा बचाओ आंदोलन – कार्यकर्ता मेधा पाटकर का अहिंसक विरोध1970 के दशक का चिपको आंदोलन सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में हुआ |
एक सत्याग्रही को प्रतिशोध नहीं लेना चाहिए लेकिन दंड या पुरस्कार के डर से विनम्र भी नहीं होना चाहिए | मार्टिन लूथर किंग और अन्य अश्वेत नेताओं ने नागरिक अधिकारों के लिए अपने संघर्ष में इसका इस्तेमाल कियादक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन |
एक सत्याग्रही के गुण – सत्य, नम्रता, त्याग, आत्म-बलिदान, दर्द सहन करने की क्षमता, साहस, धैर्य, विचारों पर नियंत्रण, अहिंसा, सार्वभौमिक परोपकार, शराब और नशीली दवाओं का उपयोग न करना | असहिष्णुता, मॉब लिंचिंग, शारीरिक शोषण, घरेलू हिंसा आदि जैसी आधुनिक समस्याओं से निपटने में सहायक |
[प्रासंगिक परिचय के साथ, जैसा कि हमने अपने उत्तर लेखन कार्यक्रम ‘कलम’ में चर्चा की थी, उत्तर शुरू करने और एक प्रभावशाली निष्कर्ष के साथ समाप्त करने के कई तरीके हैं]
परिचय –
- परिभाषा-सर्वोदय का अर्थ सभी का शारीरिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास है, जबकि उपयोगितावाद उन कार्यों को निर्धारित करता है जो प्रभावित व्यक्तियों के लिए खुशी और कल्याण को अधिकतम करते हैं।
- पृष्ठभूमि/उत्पत्ति – गांधी जी ने सर्वोदय की अवधारणा जॉन रस्किन की अनटू दिस लास्ट से ली थी, जबकि उपयोगितावाद अंग्रेजी दार्शनिक जेरेमी बेंथम से जुड़ा है।
- समसामयिकी – हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस तथ्य को दोहराया कि सभी नीतियों का लक्ष्य अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय को प्राप्त करना है।
सर्वोदय की अवधारणा उपयोगितावाद की अवधारणा से श्रेष्ठ है –
- सर्वोदय सभी के उत्थान के बारे में बात करता है, लेकिन उपयोगितावाद सबसे बड़ी संख्या के लिए सबसे अधिक भलाई के बारे में है और इसलिए यह अल्पसंख्यकों या व्यक्तियों के हितों की अनदेखी कर सकता है जिनकी खुशी बहुसंख्यकों के लिए बलिदान की जा सकती है।
- सर्वोदय में नैतिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास शामिल है। जबकि उपयोगितावाद खुशी को अधिकतम करने के बारे में है जो भौतिक विकास से अधिक सम्बंधित है
- सवोदय व्यक्ति की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण पर जोर देता है। उपयोगितावाद बाह्य रूप से निर्देशित होता है और अस्थायी रूप से अच्छा कर सकता है।
- सर्वोदय सुख के समग्र दृष्टिकोण से संबंधित है। उपयोगितावाद अधिक गहराई तक नहीं जाता है
Sarvodaya’s relevance in administration –
- सबका साथ, सबका विकास
- शारीरिक विकास – 12 करोड़ शौचालय, 3 करोड़ घर, राष्ट्रीय पोषण मिशन, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना [80 करोड़ लोगों को राशन], कौशल भारत मिशन, AAY [अंत्योदय अन्न योजना]
- नैतिक विकास – राष्ट्रीय शिक्षा नीति, पुनर्वास केंद्र, आचार संहिता (होता समिति), CVC , CBI , लोकपाल जैसी एजेंसियां, कानून, नियम और विनियमन, अनुच्छेद 29 (विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति का संरक्षण)
- आध्यात्मिक विकास – अनुच्छेद 25-28, हज सब्सिडी, चार धाम राजमार्ग, योग और ध्यान को बढ़ावा, आध्यात्मिक पर्यटन [प्रसाद योजना – तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्धन अभियान]
- सेवा भाव – चरण पादुका अभियान [जे के सोनी सर], पोमा टुडू आईएएस [आदिवासियों से मिलने के लिए 2 घंटे की पदयात्रा], बाबा आमटे [कुष्ठ रोगी], सोनू सूद, अरुणा रॉय, हीरालाल शास्त्री और रतन शास्त्री, पी नरहरि [विशेष प्रयास दिव्यांगों के लिए]
निष्कर्ष –
- नारा – सर्वोदय की अवधारणा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्चयन्तु, माँ कश्चित् दुःख भाग भवेत्’ के सपने को साकार करने में मदद करेगी।
- लक्ष्य – भूख, गरीबी और असमानता जैसी समस्याओं का इलाज करके, सर्वोदय की अवधारणा एसडीजी 2030 के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी
Paper 4 (Comprehension part) – पल्लवन
छायायादी कवि जयशंकर प्रसाद का यह कथन उच्च आकांक्षाओं की प्राप्ति हेतु किए जाने वाले संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है। जो व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी होगा, अपने जीवन में बेहतर करने की चाह रखेगा, उसको अपने प्रति निर्मम होना ही पड़ेगा। सभ्यता के शुरुआती दौर से लेकर आज तक न जाने कितने रूप सामने आए है, समय ने न जाने कितनी करवटें ली है, परंतु मानव विकास की यह अनवरत यात्रा, विकास तथा उत्थान की जिजीविषा, आगे बढ़ते रहने की महत्त्वाकांक्षा, तमाम प्रतिकूलताओं तथा विषमताओं के बाद भी जारी रही। संस्कृत साहित्य में भी कहा गया है-
“कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।”
अर्थात मनुष्य को कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा रखनी चाहिए। महत्त्वाकांक्षा से जीवन के महान लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ता है। हमारे समाज में ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं।
महान उदाहरण विश्व के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का जीवन है, जिन्होंने व्हील चेयर पर रहते हुए संपूर्ण विश्व को ब्रह्मण्ड के रहस्य से परिचित करवाया। इसी प्रकार रूसो, जिन्होंने तमाम समस्याओं तथा संकटों का सामना करते हुए फ्रांस की क्रांति का आधार तैयार किया जो स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व मूल्यों पर आधारित थी, ये मूल्य विश्व के लिए एक दर्शन समान है।
महाराणा प्रताप का जीवन भी इसका बेहतरीन उदाहरण है, जिन्होंने स्वाधीनता की महत्त्वाकांक्षा के कारण निर्वासित जीवन जिया तथा आजीवन कष्टों से अपना नाता जोड़े रखा।
सार यह है कि व्यक्ति को न केवल अपने जीवन में महत्त्वाकांक्षी होनी चाहिए, अपितु अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को मुकम्मल तस्वीर देने हेतु कठिन राहों पर चलने से भी घबराना नहीं चाहिए। अपितु उनका सामना धैर्य और सहिष्णुता से करना चाहिए।