Day 10 | RAS Mains 2025 Answer Writing | 90 Days

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GS Answer Writingभारतीय एवं विश्व के नैतिक चिंतकों एवं दार्शनिकों का योगदान । प्रशासन में नैतिक चिन्ता, द्वन्द एवं चुनौतियां । पल्लवन

सामाजिक समझौता सिद्धांत – व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता एक संप्रभु के हाथों में देने के लिए केवल इस शर्त पर सहमत होते हैं, कि उनके जीवन की सुरक्षा संप्रभु शक्ति द्वारा की जाएगी।  वे प्राकृतिक अवस्था की स्थिति से बचने के लिए ऐसा करते हैं 

Ex – CrPC धारा 144 के समय में आवाजाही की स्वतंत्रता के अधिकार का त्याग = सुरक्षा और कानून व्यवस्था।

Virtue” लैटिन शब्द विर से लिया गया है जिसका अर्थ है एक आदमी या नायक। यह संस्कृत शब्द वीर्य से मेल खाता है, जिसका अर्थ है मर्दानगी, बहादुरी, शक्ति, ऊर्जा या उत्कृष्टता। इसलिए, सद्गुण का तात्पर्य आंतरिक चरित्र और उसकी उत्कृष्टता से है

दार्शनिकसद्गुण
कृष्ण (गीता)स्थितप्रज्ञ, निष्काम कर्म, योग (भक्ति, ज्ञान, कर्म आदि) व्यक्ति के आंतरिक चरित्र को उत्कृष्ट बनाते हैं और इसलिए आवश्यक गुण हैं
सुकरातज्ञान ही सद्गुण है और अज्ञान ही अवगुण है।
प्लेटोबुद्धि, साहस, संयम और न्याय चार प्रमुख गुण हैं
अरस्तूख़ुशी और पुण्य एक साथ चलते हैं। समम बोनम यानी खुशी सबसे बड़ा गुण है।यह ख़ुशी बौद्धिक आनंद और दार्शनिक चिंतन से आनी चाहिए
बुद्धाधम्म ही सच्चा गुण है और अष्टांगिक मार्ग, मध्यम मार्ग जैसे विभिन्न मार्ग इस गुण को प्राप्त करने के साधन हैं
महावीर5 महावर्त (सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह), रत्नत्रय (सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र), क्षमा (मिच्छामि दुक्कड़म) और आत्म अनुशासन और ज्ञान (जिना) 
इम्मैनुएल काँटसद्गुण आंतरिक और बाहरी बाधाओं के बावजूद अपने कर्तव्यों को पूरा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति है

जॉन रॉल्स
निष्पक्षता, गैर भेदभाव या सकारात्मक भेदभाव, समता और न्याय के सद्गुण
जेरेमी बेंथमसद्गुण अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख है [उपयोगितावाद]
जेम्स मिल्ससद्गुण (जैसे दया, ईमानदारी, परोपकार और न्याय) चरित्र के वे गुण हैं जो व्यक्ति और पूरे समाज दोनों के लिए खुशी पैदा करते हैं।
एपिक्यूरियनवादसद्गुण स्वयं कोई साध्य नहीं हैं, बल्कि जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने का साधन हैं
जॉन लॉकसद्गुणों में तर्क और प्राकृतिक कानून के अनुसार कार्य करना, दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान करना और उन्हें बनाए रखना और समाज के प्रति दायित्व को पूरा करना शामिल है।

कन्फ्यूशियस
पाँच स्थिरांक” या “पाँच सद्गुणों”, जिनमें शामिल हैं – रेन (करुणा या दयालुता), यी (न्याय/निष्पक्षता/समता), ली (पारस्परिक संबंधों और समाज में सद्भाव और व्यवस्था बनाए रखना), ज़ी (बुद्धि या ज्ञान) और शिन (विश्वसनीयता/विश्वास)।
थॉमस हॉब्सहॉब्स के अनुसार, सद्गुण में राजनीतिक प्राधिकार के प्रति आज्ञाकारिता, कानूनों का पालन और ऐसे व्यवहार शामिल हैं जो समाज की स्थिरता और सुरक्षा में योगदान करते हैं (सामाजिक अनुबंध सिद्धांत)
वॉल्टेयरवोल्टेयर का मानना था कि सच्चा सद्गुण हठधर्मिता या परंपरा के अंध पालन के बजाय तर्क के अभ्यास और ज्ञान की खोज में निहित है। वोल्टेयर ने सहिष्णुता और करुणा जैसे गुणों को भी महत्व दिया। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की वकालत की।
चाणक्यसंयम (आत्मसंयम), सत्यनिष्ठा (भ्रष्टाचार के विरुद्ध), धैर्य, नम्रता, दान (परोपकार) आदि जैसे सद्गुण

शंकराचार्य
अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य की शिक्षाओं के अनुसार आध्यात्मिक विकास, आत्म-बोध और ज्ञान योग वास्तविकता की अद्वैत प्रकृति का एहसास करने के लिए आवश्यक सद्गुण हैं।
कबीरजैसा कि उनके लेखन (दोहा) में दर्शाया गया है, आंतरिक पवित्रता, प्रेम, परमात्मा के प्रति समर्पण, प्रेम, करुणा और निस्वार्थता मुख्य सद्गुण हैं
नानकनाम सिमरन (ईश्वरीय नाम पर ध्यान करना), सेवा (निःस्वार्थ सेवा), समानता (जाति, पंथ, लिंग या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना) और संतोख (संतोष) सिख धर्म के गुण हैं जैसा कि गुरु नानक ने दर्शाया है।
विवेकानंदसद्गुण  में वेदांत दर्शन के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित, निर्भयता, सच्चाई, निःस्वार्थता, हृदय की पवित्रता और मानवता की सेवा का जीवन जीना शामिल है।
गांधीसत्य, अहिंसा, आत्म-अनुशासन, करुणा और विनम्रता आदि जैसे गुण

परिभाषा – जब दो या अधिक नैतिक सिद्धांतों में टकराव हो और नैतिक अभिकर्ता को किसी एक का चयन करना पड़े, तो इसे नैतिक द्वंद्व कहते हैं। इसमें न्यूनतम नैतिक हानि के साथ लाभ का अनुकूलन (Optimization of Benefit) आवश्यक होता है।

नैतिक द्वंद्व उदाहरणउपाय
(सिद्धांत बनाम संरक्षण/रक्षा)IES सत्येन्द्र दुबे ने हाईवे विकास में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया – जीवन का बलिदान  नेहरूवादी दृष्टिकोण –  राष्ट्रहित सबसे ऊपर होना चाहिए
(व्यावसायिक जीवन बनाम निजी जीवन)आईपीएस अधिकारी की 24*7 ड्यूटी – परिवार के सदस्यों को कम समयउपयोगितावादी दृष्टिकोण – सबसे बड़ी संख्या के लिए सबसे बड़ा अच्छा
(लाभ बनाम सामाजिक जिम्मेदारी) (सामाजिक नैतिकता बनाम आर्थिक नैतिकता)एक आईएएस अधिकारी डिस्कॉम का नेतृत्व कर रहे हैं – इसे घाटे से बाहर निकालने की दुविधा बनाम मुफ्त बिजली देने की सरकार की प्रतिबद्धताआम हित दृष्टिकोण – जो समाज के लिए अच्छा है वह व्यक्ति के लिए भी अच्छा है, इसलिए निर्णय समाज के सभी सदस्यों के लिए लाभकारी होना चाहिए।
(विशेषाधिकार बनाम गैर-भेदभाव)Ex – झारखंड की आदिवासी लड़की की राशन से इनकार के कारण भूख से मौत (बायोमेट्रिक काम नहीं किया ) – ऐसा मामला स्वविवेक  की मांग करता हैअधिकार आधारित दृष्टिकोण – हर इंसान को सम्मान से जीने का अधिकार है
 
(दण्ड बनाम पारितोषिक)यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों को फूल देना=हृदय परिवर्तनन्याय/निष्पक्षता दृष्टिकोण – सभी समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिएपक्षपात को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. 
(साध्य बनाम साधन)साध्य – बेहतर यातायात प्रबंधन के लिए पुल बनाना साधन – मन्दिर तोड़ना = धार्मिक भावनाएँ आहत गांधीवादी दृष्टिकोण  – दीर्घकालिक प्रभाव के लिए साध्य और साधन दोनों ही शुभ होने चाहिए
(स्वायत्तता बनाम जवाबदेही)स्वायत्तता – CL (आकस्मिक अवकाश), PL (विशेषाधिकार अवकाश) और अन्य छुट्टियां लेना जवाबदेही-कार्यालय प्रभारी द्वारा समय पर कार्य सम्पन्न कराना
Ex – श्री सतीश धवन ने रोहिणी सैटेलाइट लॉन्च के लिए एपीजे अब्दुल कलाम को स्वायत्तता दी लेकिन जब लॉन्च विफल हो गया, तो उन्होंने विफलता के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया।
सदाचार आधारित दृष्टिकोण – सदाचारी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य सदैव सही होता है। इसलिए निर्णय लेने वाले को चरित्र विकास पर ध्यान देना चाहिए
 
(नियम बनाम स्वविवेक)नियम – बिना उचित दस्तावेजों के किसी को भी पीडीएस न देंस्वविवेक – कोई भूख से मर रहा हो तो उसे राहत अवश्य देनी चाहिएकर्तव्यशास्त्र दृष्टिकोण – परिणाम की परवाह किये बिना कर्तव्य का पालन करेंसदाचार आधारित दृष्टिकोण – प्रभावी क्रियान्वयन हेतु स्वविवेक प्रदान करें
(वफादारी बनाम ईमानदारी)वफ़ादारी – सत्ता में सरकार के प्रतिईमानदारी – गलत कार्य को उजागर करेंकानूनी दृष्टिकोण – कानूनी सिद्धांतों का पालनयह अदालत की सुनवाई को सफलतापूर्वक पूरा करता है


(ऑटोमेशन बनाम रोजगार)Ex – सरकार एआई, एमएल, रोबोटिक्स और अन्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दे रही है, दूसरी ओर स्वचालन के कारण 69% नौकरियां खतरे में हैंउपयोगितावादी दृष्टिकोण – सबसे बड़ी संख्या के लिए सबसे बड़ा अच्छान्याय/निष्पक्षता दृष्टिकोण – सभी समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए
(राष्ट्रहित बनाम मानवता)अजमल कसाब की जांच करने वाला अधिकारीनेहरूवादी दृष्टिकोण –  राष्ट्रहित सबसे ऊपर होना चाहिए विवेकानन्दवादी दृष्टिकोण – मानव सेवा ही अंतिम लक्ष्य है
(विकास बनाम संधारणीयता/निरंतरता)मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) आरे जंगल में पेड़ काटेगी, मुंबई सुप्रीम कोर्ट ने 177 पेड़ काटने की अनुमति दी [इससे अधिक जुर्माना]सतत विकास 
(कानून बनाम कानून की भावना)ट्रैफिक पुलिस ने गंभीर मरीज़ को ले जा रही एक कार का ओवरस्पीडिंग के लिए चालान कर दियासदाचार आधारित दृष्टिकोण – सदाचारी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य सदैव सही होता है। इसलिए ऐसे मामले में इरादे मायने रखते हैं.
(गति बनाम सटीकता)मुख्यमंत्री को 2 महीने में एक पुल का उद्घाटन करना है। कार्य समय पर संपन्न करने हेतु सुरक्षा मानकों से समझौता नहीं होना चाहिएउपयोगितावादी दृष्टिकोण – सबसे बड़ी संख्या के लिए सबसे बड़ा अच्छा [i.e परिणाम को अधिकतम करने का प्रयास करें] 
(राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम गोपनीयता)किसी का फिंगरप्रिंट लेना या नार्को टेस्ट
नेहरूवादी दृष्टिकोण –  राष्ट्रहित सबसे ऊपर होना चाहिए 
(समानता बनाम न्याय संगतता)प्रशासनिक नौकरियों में आरक्षण न्याय/निष्पक्षता दृष्टिकोण – सभी समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिएपक्षपात को बढ़ावा नहीं देना चाहिए
(वरिष्ठ का आदेश बनाम जनता की भलाई)जब वरिष्ठ का निर्देश जनता की भलाई के विरुद्ध हो। उदाहरण – एक जूनियर अपने सीनियर के खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकता या नहीं करना चाहिए (अन्यथा कार्य संस्कृति खराब हो जाती है) लेकिन उसे गलत निर्देश का पालन भी नहीं करना चाहिए कानूनी दृष्टिकोण – कानूनी सिद्धांतों का पालनयह अदालत की सुनवाई को सफलतापूर्वक पूरा करता है 
(गोपनीयता बनाम पारदर्शिता)कोई व्यक्ति आरटीआई में राष्ट्रीय महत्व की जानकारी मांगता है  (आरटीआई अधिनियम धारा 8)नेहरूवादी दृष्टिकोण –  राष्ट्रहित सबसे ऊपर होना चाहिए
(केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण)बहुत अधिक केंद्रीकरण = हितधारक पर निर्णय थोपना = ख़राब परिणामबहुत अधिक विकेंद्रीकरण = अक्षमता और ख़राब कार्यान्वयबुद्ध का मध्यम मार्ग या अरस्तू का स्वर्णिम माध्य दृष्टिकोण 
(न्याय बनाम दया/रहम)उदाहरण – निर्भया बलात्कार कांड। दोषियों में से एक किशोर था. केवल 3 साल की सज़ा मिली (किशोर न्याय अधिनियम)पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी ए.जी.पेरारिवलन का जेल में आचरण संतोषजनक देखकर रिहाई। अधिकार आधारित दृष्टिकोण – हर इंसान को सम्मान से जीने का अधिकार है 

Paper 4 (Comprehension part) – पल्लवन

जीवन में उन्नत स्थिति को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में स्वयं के लघु होने का, अकिंचन होने का, विनयशील होने का बोध होना आवश्यक है। हम अपनी लघुता से मुक्ति चाहने की प्रक्रिया में ही प्रभुता को, बड़प्पन को, सामर्थ्य को प्राप्त करेंगे। किंतु यदि व्यक्ति में प्रभुता का अर्थात्‌ सामर्थ्यवान होने का भान हो गया, अहम्‌ का एहसास हो गया तो फिर वह ईश्वर से दूर हो जाएगा। यह संसार विराट है, यह विभिन्‍न शक्तियों का पुंज है। व्यक्ति इस संसार की शक्तियों के बीच एक तुच्छ-सा, लघु-सा प्राणी है। किंतु वह विकासशील है, वह निरंतर अपनी शारीरिक, बौद्धिक, भौतिक, आध्यात्मिक सामर्थ्य को बढ़ाता हुआ महान बन सकता है बशर्ते कि उसमें अपने तुच्छ होने का भाव हो, फलस्वरूप उसमें सीखने और विकसित होने की ललक हो। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने विज्ञान के महानतम अविष्कार को कर लेने के बाद भी यही महसूस किया था कि वह इस संसार-सागर के किनारे छोटी-छोटी लहरें गिनने भर का कार्य कर सकता है| जब तक व्यक्ति में ऐसे छोटे होने का भाव रहता है, वह उन्नति के उच्च से उच्चतर मार्ग को प्राप्त करता जाता है। विश्व के महान व्यक्तियों ने अपने-आपको तुच्छ मानकर ही अपने व्यक्तित्व की ऊँचाइयों को प्राप्त किया है। किंतु यदि व्यक्ति को अपनी उन ऊँचाइयों का बोध हो जाए, घमंड हो जाए तो वह तुरंत स्खलित हो जाएगा फिर प्रभु की प्राप्ति का मार्ग तो संपूर्ण समर्पण चाहता है, वह तो तुलसीदास के- राम सो बड़ो है कौन, मो सो कौन छोटो’ के भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है| रावण, कंस, बालि आदि शक्तिशाली व्यक्ति भी प्रभुता के दंभ में ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाए। अत: लघु के भाव से प्रभुता प्राप्त की जा सकती है किंतु प्रभुता के मदद से ईश्वर को नहीं प्राप्त किया जा सकता।

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