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GS Answer Writing -नैतिक संप्रत्यय- ऋत एवं ऋण, कर्त्तव्य की अवधारणा, शुभ एवं सद्गुण की अवधारणा । निजी एवं सार्वजनिक संबंधों में नीतिशास्त्र की भूमिका- प्रशासकों का आचरण, मूल्य एवं राजनैतिक अभिवृत्ति, सत्यनिष्ठा का दार्शनिक आधार।पल्लवन
निजी संबंध –
- व्यक्तिगत नैतिकता – सहानुभूति मानवीय मूल्य – करुणा
- सामाजिक मानदंड – बड़ों , रिश्तेदारों का सम्मान करें, सामाजिक पूंजी
- धार्मिक सिद्धांत – हिंदू विवाह में 7 प्रतिज्ञाएं, सिख धर्म में आनंद कारज
- कानून – माता -पिता और वरिष्ठ नागरि कों का भरण-पो षण और कल्याण अधिनियम, 2007
सार्वजनिक संबंध –
- संविधान – Article 14, 15, 16 आदि
- आचार संहिता – अखिल भारतीय सेवा आचार संहिता 1968, राजस्थान सिविल सेवा आचरण नियम 1971
- आचार संहिता (Hota समिति)
- कानून – IPC/CrPC/GST laws
ऋत का मूल शब्द ‘रु’ है जिसका अर्थ है गति। इसलिए ऋत एक संगठित गति का प्रतीक है। ऋत का अर्थ है सत्य/सही/धार्मिकता या प्राकृतिक व्यवस्था जो इस ब्रह्मांड का मार्गदर्शन करती है
नैतिक चिंताएँ और चुनौतियाँ | ऋत की अवधारणा |
उदासीनता और करुणा का अभाव | ऋत व्यवस्था, सद्भाव और वैधानिकता की वकालत करता है। यह एक-दूसरे के साथ सद्भाव बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है और इसलिए सामाजिक चेतना जागृत करता है। |
सत्ता और प्राधिकार का दुरुपयोग | ऋत के अनुसार, एक सर्वोच्च शक्ति या मार्गदर्शक शक्ति है जो इस ब्रह्मांड को अराजकता के बिना एक क्रम में चलाती है उसी प्रकार हमारा संविधान एक प्रशासक के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए |
अहंकारी रवैया | वास्तविक कर्ता विष्णु हैं और अन्य देवताओं को भी ऋत के नियमों का पालन करना पड़ता है। अन्य देवता इस बड़े उद्देश्य के साधन मात्र हैं यह एक प्रशासक में “मैं” या अहंकार को मारने में मदद करता है |
भ्रष्टाचार | ऋत के विरुद्ध जाने से पाप होता है। भ्रष्टाचार, घोटाले और चोरी जैसे कर्म ईश्वर के वास्तविक स्वरूप (ऋत) के विरुद्ध हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए |
नवीनता का अभाव | ऋत का अर्थ है प्राकृतिक व्यवस्था, जिसे अज्ञात तक बढ़ाया जा सकता है इसलिए ऋत का उपयोग ब्रह्मांड और यहां तक कि प्रशासन में पैटर्न खोजने के लिए किया जा सकता है। ऋत नवप्रवर्तन, जिज्ञासा और खोज की ओर ले जाता है। |
कार्यालयी नौकरशाही | ऋत की पूजा नहीं की जा सकती, इसका केवल पालन किया जाना चाहिएइसलिए ऋत केवल उपदेश देने के बजाय कार्रवाई को प्रोत्साहित करता हैऋत आलस्य को अस्वीकार करता है और गतिविधि को बढ़ावा देता है |
सत्यनिष्ठा का अभावनिष्ठाहीनता (कर्तव्य का उल्लंघन) | ऋत धर्म और कर्म का अग्रदूत है एक प्रशासक का धर्म पूरी निष्ठा के साथ अपना कर्तव्य निभाना है |
ख़राब दक्षता | ऋतस्य बधिराणि कर्णानि ततर्द ऋत सत्य को बढ़ावा देता है और सोए हुए लोगों को जगाता है। इससे प्रशासन में दक्षता में सुधार होगा. |
[प्रासंगिक परिचय के साथ, जैसा कि हमने अपने उत्तर लेखन कार्यक्रम ‘कलम’ में चर्चा की थी, उत्तर शुरू करने और एक प्रभावशाली निष्कर्ष के साथ समाप्त करने के कई तरीके हैं]
Intro परिचय –
- पृष्ठभूमि – इंटीग्रिटी शब्द लैटिन शब्द इन-टैंगरे से आया है, जिसका अर्थ है अछूता। [इसलिए समझौता न किए जा सकने वाले सिद्धांत]
- परिभाषा – स्थान, समय और संदर्भ की परवाह किए बिना नैतिक सिद्धांतों का कड़ाई से पालन करना सत्यनिष्ठा है। यह समझौता करने से पूरी तरह इनकार है।
- उद्धरण – “बुद्धिमत्ता सही रास्ता जानना है, उस पर चलना सत्यनिष्ठा है” – मैरी हैरिसन मैकी
- वर्तमान – हाल ही में, भारत सरकार ने भारतीय प्रशासन में सत्यनिष्ठा स्थापित करने के लिए मिशन कर्मयोगी लॉन्च किया।
- सूत्र – मूलभूत मूल्य (जैसे ईमानदारी, जवाबदेही, आदि) + दृढ़ता = सत्यनिष्ठा
प्रशासन में भूमिका –
- प्रशासन में सत्यनिष्ठा से संगठन की कार्यक्षमता बढ़ती है
- Ex – डॉ समित शर्मा IAS
- यह विभिन्न हितधारकों [नागरिकों, जन प्रतिनिधियों, स्टाफ सदस्यों, वरिष्ठों, कनिष्ठों] के बीच विश्वास बढ़ाता है।
- यह दुविधा की स्थिति में सबसे उचित निर्णय लेने में मदद करता है। हितों के टकराव जैसी स्थितियों से
- उदाहरण के लिए, एक ईमानदार अधिकारी कभी भी वरिष्ठों, रिश्तेदारों या परिवार के किसी सदस्य के दबाव में नहीं आएगा, भले ही उसे उस समय व्यक्तिगत संबंधों से समझौता करना पड़े। वह सही काम केवल इसलिए करेगा क्योंकि वह सही है
Ex – सत्येन्द्र दुबे IES
- अनुचित राजनीतिक दबाव से बचाने के लिए
- Ex – नरिपेन्द्र मिश्र IAS
- प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता जैसे मूल मूल्यों को कायम रखने में
सत्यनिष्ठा का दार्शनिक आधार –
आधार | सत्यनिष्ठा की ओर ले जाने वाले प्रमुख सिद्धांत |
आंतरिक दृढ़ विश्वास | अंतरात्मा [गांधी]आध्यात्मिक ज्ञान (प्रबोधन)[बुद्ध]अंतर्निहित नैतिक मूल्य [करुणा जैसे मूल्य आनुवंशिक हो सकते हैं]मेयो क्लिनिक के अनुसार, शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 30-60% दयालुता आनुवंशिक रूप से निर्धारित होती है |
प्राचीन भारतीय दर्शन | वेद – ऋग्वेद (ऋत और ऋण )उपनिषद, गीता, स्मृतियाँ, संहिताएँ – पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्षसत्यमेव जयते – मुण्डक उपनिषदमाँ गृध् कसास्यविद्नाम् – ईसावास्योपनिषद्चाण्क्य का अर्थशास्त्र |
आधुनिक भारतीय दर्शन | विवेकानन्द, गाँधी, संविधान, प्रस्तावना etc |
पश्चिमी दर्शन | सुकरात – ज्ञान सर्वोच्च हैप्लेटो – सामंजस्यपूर्ण कार्यप्रणाली [मन, शरीर और आत्मा]अरस्तू – स्वर्णिम माध्य का सिद्धांतजॉन रावल – अज्ञानता का पर्दा (निष्पक्षता)कांट – कर्तव्य सर्वोपरि हैstoicism स्टोइसिस्म (वैराग्य) – कष्ट के बिना, जीवन कायम नहीं रह सकताजेरेमी बेंथम – आपके काम से अधिकतम लोगों को लाभ होना चाहिएमैक्स वेबर – शक्ति के दुरुपयोग से बचने के लिए अवैयक्तिकविश्व बैंक द्वारा सुशासन का आंदोलन 1992 [प्रशासन में सत्यनिष्ठा पर विशेष जोर] |
निष्कर्ष –
- सारांश – इसलिए, प्रशासनिक उत्कृष्टता के लिए सत्यनिष्ठा स्थापित करना आवश्यक है।
- नारा- स्रोत आंतरिक हो या बाह्य, जीवन में सत्यनिष्ठा अपनाकर प्रशासक “शीलम् परम भूषणम्” के ध्येय वाक्य के साथ सच्चा न्याय कर सकता है।
Paper 4 (Comprehension part) – पल्लवन
जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होने वाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ-न-कुछ चिकनाई होती है अर्थात् जो होनहार होते है उनकी प्रतिभा बचपन मे ही दिखाई देने लगती है। प्रतिभा अभ्यास से नहीं उत्पन्न होती और वह धनराशि से खरीदी भी नहीं जा सकती । जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय देने वाले महापुरुषों का जीवनवृत्त साक्षी है कि उन्होंने बचपन से ही अपनी विलक्षणता की ओर संकेत किया है ।
जो महापुरुष होते हैं, उनमें महानता के लक्षण जन्म से ही दिखाई देते हैं, क्योंकि वे जन्म से ही अपने छोटे– छोटे कार्यों से दूसरों के हृदय पर प्रभाव डालते हैं। उन कार्यों से उनमें महान् गुणों का विकास होता है। मानवीय गुणों के पारखी लोग ऐसे गुणवान जनों को समय से पूर्व ही पहचान लेते हैं।
पूत के पाँव पालने में ही सूचित कर देते हैं कि यह होनहार बिरवा आने वाले दिनों में कितने विशाल वटवृक्ष के रूप में परिणत होगा । राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी प्रातिभ चेतना से विलक्षण योगदान देने वाले लोगों ने बचपन से ही अपनी मनोवृत्ति और क्रियाशीलता का संकेत दिया है । पत्थर पर लगातार रस्सी के घिसने से निशान अवश्य पड़ जाते हैं , लेकिन प्रतिभा का दीप प्रौढ़ावस्था में नहीं प्रज्वलित होता । बचपन की गतिविधियों में किसी भी व्यक्ति की भावी जीवनयात्रा का पूर्वाभास परिलक्षित होता है ।