राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ

राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ विषय पर चर्चा विधि के अंतर्गत की जाती है। भूमि से संबंधित नियम और कानून किसी भी राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं। राजस्थान में भी समय-समय पर विभिन्न भूमि विधियाँ लागू की गई हैं, जिनका उद्देश्य भूमि प्रबंधन को बेहतर बनाना और किसानों तथा आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। इस अध्याय में हम विशेष रूप से निम्न भूमि कानूनों का अध्ययन करेंगे-

विगत वर्षों के प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2021राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में “अधिकार अभिलेख” की अन्तर्वस्तु बताइए।5M
2021नजुल भूमि को परिभाषित कीजिए।2M
2018क्या आप इस मत से सहमत हैं कि राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में प्रयुक्तानुसार “वार्षिक रजिस्टर’ की अभिव्यक्ति ‘अधिकार अभिलेख’ की अभिव्यक्ति से विस्तृत है ? टिप्पणी कीजिए।5M
2016 Specialराजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत “नजूल भूमि’ को परिभाषित कीजिये।2M

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के उद्देश्य

  • किरायेदारों के अधिकारों की रक्षा करना: किरायेदारों को कृषि भूमि पर उनके अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करना, जिसमें अवैध बेदखली से सुरक्षा और जमींदारों द्वारा उचित व्यवहार सुनिश्चित करना शामिल है।
  • भूमि किरायेदारी को नियमित करना: किरायेदारी से संबंधित कानूनी ढाँचा तैयार करना, जिसमें किरायेदारों का वर्गीकरण, उनके अधिकार, कर्तव्य और प्रतिबंध शामिल हैं।
  • समान राजस्व संग्रह सुनिश्चित करना: भूमि राजस्व संग्रह को किरायेदारों और सरकार दोनों के लिए समान रूप से व्यवस्थित करना।
  • कृषि विकास को बढ़ावा देना: भूमि सुधार और उत्पादकता में वृद्धि के लिए किरायेदारों को सुरक्षा और भूमि में निवेश के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • भूमि उत्तराधिकार और हस्तांतरण को सुगम बनाना: किरायेदारी अधिकारों के उत्तराधिकार और हस्तांतरण के लिए स्पष्ट नियम बनाना ताकि किरायेदार परिवारों को स्थिरता मिले और भूमि का उपयोग जारी रहे।

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के महत्वपूर्ण धाराऐं

धारा 5 – परिभाषाऐं
  • कृषि वर्ष – से तात्पर्य जुलाई के प्रथम दिन से प्रारंभ होने वाले तथा अगले जून के तीसवें दिन समाप्त होने वाले वर्ष से है;
  • कृषि –  में बागवानी, पशुपालन, डेयरी फार्मिंग, मुर्गीपालन और वानिकी विकास शामिल होंगे।
  • कृषक – ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो स्वयं अथवा नौकरों अथवा काश्तकारों के माध्यम से पूर्णतः अथवा मुख्यतः कृषि द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करता है।
  • बिस्वेदार – से  ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत होगा जिस पर राज्य के किसी भाग में कोई गांव या गांव का भाग बिस्वेदारी पद्धति पर बसा हो और जो अधिकारों के अभिलेख में बिस्वेदार या स्वामी के रूप में दर्ज हो तथा इसमें अजमेर क्षेत्र का खातेदार भी शामिल होगा;
  • फसलों – में झाड़ियाँ, पौधे और चढ़ने वाले पौधे जैसे गुलाब की झाड़ियाँ, पौधे, मेहंदी की झाड़ियाँ, केले और पपीता शामिल होंगे, लेकिन इसमें चारा और प्राकृतिक उपज शामिल नहीं होगी।
  • संपदा – का तात्पर्य जागीरदार द्वारा धारित जागीर भूमि या जागीर भूमि में हित से होगा और इसमें विश्वेदार, जमींदार या भूमि स्वामी द्वारा धारित भूमि या भूमि में हित सम्मिलित होगा।
  • उपवन भूमि – का अर्थ किसी ऐसे विशेष भू-खंड से है जिस पर इतने पेड़ लगे हों कि वे भूमि के बड़े हिस्से को किसी अन्य कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल करने से रोकते हों या जब पेड़ पूरी तरह विकसित हो जाएँगे तो भूमि का उपयोग अन्य कृषि उद्देश्यों के लिए मुख्य रूप से नहीं किया जा सकेगा। इन पेड़ों का समूह एक उपवन कहलाता है।
  • इजरा या ठेका –  से तात्पर्य लगान वसूली के लिए दिया गया खेत या पट्टा होगा,
    • वह क्षेत्र जिससे इजरा या ठेका संबंधित है, “इजरा या ठेका क्षेत्र” कहलाएगा और 
    • “इजारादार” या “ठेकादार” से तात्पर्य उस व्यक्ति से होगा जिसे इजरा या ठेका दिया गया हो;
  • खुदकाश्त – वह भूमि जो राज्य के किसी हिस्से में व्यक्तिगत रूप से जमींदार द्वारा जोतकर उपजाई जाती है। इसमें शामिल हैं:
    • वह भूमि जो इस अधिनियम की शुरुआत पर निपटान रिकॉर्ड में खुदकश्त, सिर, हवाला, निजी-जोत या घरखेड के रूप में दर्ज है, जैसा उस समय लागू कानून के अनुसार किया गया था, और
    • वह भूमि जो इस अधिनियम की शुरुआत के बाद वर्तमान में लागू किसी कानून के तहत खुदकश्त के रूप में आवंटित की गई है।
  • भूमि – “भूमि” का अर्थ है वह भूमि जो कृषि उद्देश्यों के लिए या उनके सहायक उद्देश्यों के लिए, या ग्रोव भूमि या चराई के लिए किराए पर दी गई या रखी गई है। इसमें घरों या बाड़ों से घिरी भूमि और पानी से ढकी भूमि शामिल है, जिसका उपयोग सिंचाई या सिंहारा जैसी फसलों के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसमें आवादी भूमि शामिल नहीं है। यह भूमि से उत्पन्न लाभ और पृथ्वी से जुड़े या पृथ्वी से स्थायी रूप से जुड़े चीजों को भी शामिल करती है।
  • भूमिहीन व्यक्ति – “भूमिहीन व्यक्ति” का अर्थ है एक कृषक जो पेशेवर रूप से कृषि करता है और जो व्यक्तिगत रूप से भूमि जोतता है या ऐसा करने की अपेक्षा की जा सकती है, लेकिन जिसके पास अपनी या किसी संयुक्त परिवार के सदस्य के नाम पर कोई भूमि नहीं है या उसके पास केवल एक छोटी भू-खंड है।
  • मालिक – “मालिक” का अर्थ है एक जमींदार या बिस्वेदार जो, राजस्थान जमींदारी और बिस्वेदारी उन्मूलन अधिनियम, 1959 के तहत अपनी संपत्ति के राज्य सरकार को हस्तांतरण के बाद अपनी खुदकाश्त भूमि का मालिक बनता है।
  • किराया – से  तात्पर्य नकद या वस्तु के रूप में या आंशिक रूप से नकद और आंशिक रूप से वस्तु के रूप में भूमि के उपयोग (कब्जे) के कारण या भूमि में किसी अधिकार के कारण देय किसी भी चीज से है और जब तक विपरीत आशय प्रकट न हो, इसमें अदाकर्ता भी शामिल होगा,
  • कब्जे वाली भूमि –  से तात्पर्य उस भूमि से है जो फिलहाल किसी काश्तकार को किराये पर दी गई है और उसके कब्जे में है और इसमें खुदकाश्त भी शामिल है।
    •  “अधिभोग वाली भूमि”  से तात्पर्य उस भूमि से है जिस पर कब्जा नहीं है;
  • चारागाह भूमि – से  ऐसी भूमि अभिप्रेत होगी जो किसी गांव या गांवों के मवेशियों के चरने के लिए उपयोग की जाती है या इस अधिनियम के प्रारंभ पर बंदोबस्त अभिलेखों में उस रूप में दर्ज है या उसके बाद राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार उस रूप में आरक्षित है;
  • सायर – में वह सब कुछ शामिल होगा जो पट्टेदार या लाइसेंसधारी द्वारा खाली भूमि से घास, छप्पर, लकड़ी, ईंधन, फल, लाख, गोंद, लोंग, पाला, पन्नी, जल-मेवे या इसी तरह की उपज या सतह पर बिखरी हुई हड्डियों या गोबर जैसे कचरे को इकट्ठा करने के अधिकार के लिए या वन अधिकारों के मत्स्य पालन या कृत्रिम स्रोतों से सिंचाई के प्रयोजनों के लिए पानी के उपयोग के लिए भुगतान किया जाना है;
  • उप-किराएदार – का  तात्पर्य राज्य के किसी भी भाग में किसी भी नाम से अभिहित किसी ऐसे व्यक्ति से होगा जो उसके काश्तकार से भूमि रखता हो, जिसमें मलिक या भूमि स्वामी से काश्तकार भी शामिल है और जिसके द्वारा किराया देय है या संविदा के अभाव में देय होता;
  • किराएदार –  से वह व्यक्ति अभिप्रेत होगा जिसके द्वारा किराया देय है या यदि वह किसी अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा के अधीन न होता तो देय होता और जब तक विपरीत आशय प्रकट न हो, इसके अंतर्गत निम्नलिखित शामिल होंगे-
    • आबू क्षेत्र में, स्थायी किरायेदार या संरक्षित किरायेदार।
    • अजमेर क्षेत्र में, भूतपूर्व मालिकाना हकधारी या अधिभोगी मालिकाना हकधारी या वंशानुगत मालिकाना हकधारी या गैर अधिभोगी मालिकाना हकधारी या भूस्वामी या काश्तकार
    • इस सुनेल क्षेत्र में भूतपूर्व मालिकाना हकधारी या पक्का मालिकाना हकधारी या साधारण मालिकाना हकधारी।
    • सह-किरायेदार,
    • एक ग्रोव धारक,
    • ग्राम सेवक,
    • किसी भू-स्वामी से प्राप्त काश्तकारी भूमि,
    • खुदकाश्त का किरायेदार,
    • किरायेदारी अधिकारों का बंधक, और
    • उप-किरायेदार,
  • किन्तु इसमें अनुकूल लगान दर पर अनुदान पाने वाला व्यक्ति या इजारेदार या ठेकेदार या अतिचारी शामिल नहीं होगा;
  • अतिक्रमणकर्ता – का  अर्थ ऐसा व्यक्ति होगा जो बिना प्राधिकार के कब्जा लेता है या बनाए रखता है या जो किसी अन्य व्यक्ति को उसे विधिवत् पट्टे पर दी गई भूमि पर कब्जा करने से रोकता है;
  • नलबट – का तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा किसी कुएं के स्वामी को सिंचाई के लिए उस कुएं का उपयोग करने के लिए नकद या वस्तु के रूप में किया गया भुगतान होगा।
  • जमींदार – से  ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत होगा जिस पर राज्य के किसी भाग में कोई गांव या गांव का कोई भाग जमींदारी प्रथा पर बसा हो और जो अधिकारों के अभिलेख में इस रूप में दर्ज हो और इसमें सुनेल क्षेत्र में मध्य भारत जमींदारी उन्मूलन अधिनियम में परिभाषित स्वामी, यदि कोई हो, शामिल होगा;
  • कृषि श्रमिक – का  तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो काश्तकार नहीं है, किन्तु अपने निवास के गांव में स्थित काश्तकार के खेत या खेतों पर मजदूर के रूप में काम करता है;
  • कारीगर –  में लोहार, बढ़ई, मोची, कुम्हार और बुनकर शामिल होंगे।
धारा 9 – खुदकाश्त
  • वह भूमि जो राज्य के किसी हिस्से में व्यक्तिगत रूप से जमींदार द्वारा जोतकर उपजाई जाती है। इसमें शामिल हैं:
    • वह भूमि जो इस अधिनियम की शुरुआत पर निपटान रिकॉर्ड में खुदकश्त, सिर, हवाला, निजी-जोत या घरखेड के रूप में दर्ज है, जैसा उस समय लागू कानून के अनुसार किया गया था, और
    • वह भूमि जो इस अधिनियम की शुरुआत के बाद वर्तमान में लागू किसी कानून के तहत खुदकश्त के रूप में आवंटित की गई है।
धारा 10 – ख़ुदकास्त  का उत्तराधिकार और हस्तांतरण
  • खुदकाश्त का अधिकार उस व्यक्ति को प्राप्त होगा जो सम्पत्ति धारक की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनता है।
  • खुदकाश्त का अधिकार विनिमय या खुदकाश्त के विभाजन या भरण-पोषण के प्रयोजन के लिए उपहार के अलावा हस्तांतरणीय नहीं है: 
धारा 12 – खुदकाश्त अधिकार का विलोपन – भूमि खुदकाश्त नहीं रहेगी
  • धारक के उत्तराधिकारी की विफलता पर, या
  • विनिमय या खुदकाश्त के विभाजन या भरण-पोषण के प्रयोजन के लिए उपहार के अलावा हस्तांतरण करने पर, या
  • जब इसे धारा 11 के उल्लंघन में किराए पर दिया गया हो, या
  • जब इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत या किसी अन्य कानून के तहत खातेदारी अधिकार खुदकाश्तधारक के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को प्राप्त होते हैं, या
  • खुदकाश्त धारक के धारा 13 के अन्तर्गत खातेदार काश्तकार बन जाने पर।
  • जहां भूमि धारा 13 की उपधारा (2) के उल्लंघन में हस्तांतरित की जाती है, वहां हस्तांतरिती उसका खातेदार काश्तकार बन जाएगा।
धारा 15 – खातेधार किरायेदार
  • अधिनियम की शुरुआत के समय वह भूमि का किरायेदार हो, लेकिन उप-किरायेदार या खुदकश्त का किरायेदार न हो।
  • अधिनियम की शुरुआत के बाद उसे उप-किरायेदार या खुदकश्त के किरायेदार के रूप में स्वीकार किया गया हो या नहीं।
  • उसे राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत खाता संबंधी अधिकार प्राप्त हुए हों।
  • उसे राजस्थान भूमि सुधार और जागीर पुनर्ग्रहण अधिनियम, 1952 या अन्य किसी वर्तमान कानून के तहत खाता अधिकार प्राप्त हुआ हो।
  • खातेधारी अधिकार के अपवाद:
    • कोई खातेधारी अधिकार उन किरायेदारों को नहीं मिलेगा जिनकी भूमि अस्थायी रूप से गंग नहर, भाखड़ा, चंबल, जवई परियोजना क्षेत्र, या किसी अन्य अधिसूचित क्षेत्र में दी गई हो।
धारा 16A – खुदकाश्त के किरायेदार
  • ऐसा व्यक्ति जिसे इस अधिनियम की शुरुआत में या इसके बाद किसी एस्टेट धारक द्वारा खुदकश्त भूमि को वैध रूप से किराए पर दिया गया है, उसे उस खुदकश्त का किरायेदार माना जाएगा। यदि एस्टेट धारक अपनी खुदकश्त भूमि पर खातेधार किरायेदार बन जाता है, तो यह किरायेदार उस खातेधार के अधीन उप-किरायेदार बन जाएगा।
धारा 17 – गैर-खातेधार किरायेदार :
  • ऐसा कोई भी किरायेदार जो खातेधार किरायेदार, खुदकश्त का किरायेदार, या उप-किरायेदार नहीं है, उसे गैर-खातेधार किरायेदार माना जाएगा।
धारा 16 – वह भूमि जिसमें खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होंगे
  • निम्नलिखित प्रकार की भूमि पर खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होंगे
    • चारागाह भूमि;
    • नदी या तालाब के तल में आकस्मिक या सामयिक खेती के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि;
    • जल से आच्छादित भूमि, जिसका उपयोग सिंघाड़ा या अन्य समान उपज उगाने के लिए किया जाता है;
    • स्थानान्तरित या अस्थिर खेती वाली भूमि;
    • राज्य सरकारों के स्वामित्व और रखरखाव वाले उद्यानों में सम्मिलित भूमि;
    • सार्वजनिक प्रयोजन या सार्वजनिक उपयोगिता के कार्य के लिए अर्जित या धारित भूमि;
    • वह भूमि जो इस अधिनियम के प्रारंभ पर या उसके पश्चात किसी भी समय सैन्य पड़ाव स्थल के लिए अलग रखी गई है;
    • छावनी की सीमा के भीतर स्थित भूमि;
    • रेलवे या नहर की सीमाओं के अंतर्गत आने वाली भूमि;
    • किसी सरकारी वन की सीमा के भीतर की भूमि;
    • नगरपालिका ट्रेंचिंग ग्राउंड;
    • कृषि में शिक्षा देने या खेल के मैदान के लिए शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा धारित या अर्जित भूमि; और
    • किसी सरकारी कृषि या घास फार्म की सीमाओं के भीतर की भूमि;
    • वह भूमि जो अलग रखी गई हो या कलेक्टर की राय में किसी गांव या आसपास के गांवों के लिए पेयजल हेतु किसी जलाशय या टांका में जल प्रवाह के लिए आवश्यक हो:

अध्याय IIIC : किरायेदारों के प्राथमिक अधिकार

  • आवासीय मकान के अधिकार
  • लिखित पट्टे और प्रतिलेख का अधिकार
  • पंजीकरण के बदले पट्टों का सत्यापन
  • प्रीमियम या बलात् श्रम का प्रतिषेध
  • किराए के अलावा अन्य भुगतान का निषेध
  • सामग्रियों का उपयोग

अध्याय V : किरायेदारी का हस्तांतरण

  • वसीयत – खातेदार काश्तकार वसीयत द्वारा उस खाते के भाग में अपने हित को उस वैयक्तिक कानून के अनुसार वसीयत कर सकेगा जिसके वह अधीन है।
  • किरायेदारों का उत्तराधिकार– जब किसी किरायेदार की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति में उसका हित उस वैयक्तिक कानून के अनुसार हस्तांतरित हो जाएगा, जिसके अधीन वह अपनी मृत्यु के समय था ।

अध्याय V : आत्मसमर्पण, परित्याग और विलुप्ति किरायेदारी का आत्मसमर्पण

धारा 55 – होल्डिंग का समर्पण:
  • एक किरायेदार, जब तक कि अगले वर्ष रहने के लिए किसी पट्टे के लिए बाध्य न हो, 1 मई से पहले अपने होल्डिंग का समर्पण कर सकता है, इसे तहसीलदार या नगरपालिका के अध्यक्ष को सौंपकर, चाहे वह उप-किरायेदार हो या गिरवी रखा हो।
धारा 56 – भूमि मालिक को सूचना:
  • यदि किरायेदार समर्पण करने का इरादा रखता है, तो उसे 1 मई से 30 दिन पहले भूमि मालिक को सूचित करना होगा। यदि ऐसा नोटिस नहीं दिया जाता है, तो किरायेदार अगली वर्ष के किराए के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
धारा 57 – किराए में वृद्धि पर समर्पण:
  • यदि न्यायालय के आदेश से किराया बढ़ाया जाता है, तो किरायेदार उस आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर समर्पण कर सकता है, और इसके बाद कोई और किराया देनदारी नहीं होगी।
धारा 60 – किरायेदारी का परित्याग
  • यदि कोई किरायेदार खेती करना छोड़कर क्षेत्र से बाहर चला जाता है, तो वह अपने भू-भाग में रुचि बनाए रख सकता है, बशर्ते उसने किराया चुकाने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त कर दिया हो और भूमि स्वामी को इसकी लिखित सूचना दे दी हो।
  • यदि नियुक्त व्यक्ति:
    • ऐसा व्यक्ति है जो किरायेदार की मृत्यु पर उसकी रुचि प्राप्त करने का अधिकारी हो, या
    • वारिस के लाभ के लिए भूमि का प्रबंधन कर रहा हो,
      तो किरायेदार सात वर्ष बाद अपनी रुचि खो देगा, जब तक कि वह इस अवधि के भीतर खेती पुनः शुरू न कर दे। ऐसी स्थिति में वह रुचि वारिस को हस्तांतरित हो जाएगी।
  • यदि नियुक्त व्यक्ति उपरोक्त मानदंडों को पूरा नहीं करता, तो उप-ठेके की अवधि समाप्त होने पर किरायेदार को अपने भू-भाग को छोड़ने का अनुमान लगाया जाएगा, जब तक कि वह इस अवधि में लौटकर पुनः खेती न करे।
धारा 63 – किरायेदारी का समाप्त होना
  • किरायेदार की भूमि या उसके हिस्से में रुचि समाप्त हो जाएगी, यदि:
    • उसकी मृत्यु हो जाती है और उसके पास इस अधिनियम के अनुसार उत्तराधिकारी नहीं है।
    • वह भूमि को इस अधिनियम या राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार छोड़ देता है।
    • भूमि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के अंतर्गत अधिग्रहीत हो जाती है।
    • वह भूमि से वंचित हो गया है और भूमि को पुनः प्राप्त करने का उसका अधिकार सीमाओं के अधीन हो गया है।
    • उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल कर दिया गया है।
    • वह भूमि स्वामी के सभी अधिकारों को प्राप्त कर लेता है या भूमि स्वामी उसके अधिकारों को प्राप्त कर लेता है।
    • वह भूमि को इस अधिनियम के अनुसार बेचता है या उपहार देता है।
    • वह बिना वैध पासपोर्ट या कानूनी प्राधिकरण के भारत छोड़कर किसी विदेशी देश में प्रवास कर जाता है।
    • भूमि का आवंटन रद्द कर दिया गया है या राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 के तहत भूमि पुनः प्राप्त करने का आदेश है।

अध्याय XI – बेदखली

यह सुनिश्चित करता है कि किरायेदारों को गलत तरीके से बेदखल होने से सुरक्षा मिले, जबकि ज़मींदारों को ऐसे किरायेदारों को हटाने का अधिकार हो जो विशिष्ट शर्तों का उल्लंघन करते हैं या भूमि का अनुचित उपयोग करते हैं।

  • बेदखली के आधार:
    • किराया न देना,
    • पट्टे की शर्तों का उल्लंघन,
    • भूमि का अवैध उपयोग, या
    • ऐसी भूमि की खेती करना जिसके वे कानूनी रूप से हकदार नहीं हैं

अध्याय  XV – राजस्व न्यायालय

  • राजस्थान भूमि अधिनियम के तहत राजस्व न्यायालयों के अधिकारों में सामान्य, अंतर्निहित और अतिरिक्त अधिकार शामिल हैं, 
  • सामान्य अधिकार:
    • प्रत्येक श्रेणी के राजस्व न्यायालय को तीसरे अनुसूची में सूचीबद्ध मामलों को निपटने का विशेष अधिकार प्राप्त है।
    • तहसीलदार उन मामलों को संभाल सकते हैं, जिनमें राज्य सरकार पक्ष नहीं है और जिनकी मूल्य सीमा 300 रुपये से कम है।
    • इनसे अधिक मूल्य वाले मामले या राज्य सरकार से संबंधित मामलों को सहायक कलेक्टर द्वारा निपटाया जाएगा।
  • अंतर्निहित अधिकार:
    • राजस्व अपीलीय प्राधिकरण के पास कलेक्टर, उपखण्ड अधिकारी, सहायक कलेक्टर और तहसीलदार के अधिकार होते हैं।
    • कलेक्टर के पास उपखण्ड अधिकारी, सहायक कलेक्टर और तहसीलदार के अधिकार होते हैं।
    • उपखण्ड अधिकारी के पास सहायक कलेक्टर और तहसीलदार के अधिकार होते हैं।
    • सहायक कलेक्टर के पास तहसीलदार के अधिकार होते हैं।
  • अतिरिक्त अधिकार:
    • नायब तहसीलदार को तहसीलदार के अधिकार।
    • तहसीलदार को सहायक कलेक्टर के अधिकार।
    • सहायक कलेक्टर को उपखण्ड अधिकारी या कलेक्टर के अधिकार।
  • राजस्व न्यायालयों का अधीनता: सभी राजस्व न्यायालयों पर सामान्य पर्यवेक्षण और नियंत्रण बोर्ड के पास होगा, और सभी ऐसे न्यायालय बोर्ड के अधीन होंगे। इस पर्यवेक्षण, नियंत्रण और अधीनता के तहत:
    • जिले में सभी अतिरिक्त कलेक्टर, उपविभागीय अधिकारी, सहायक कलेक्टर और तहसीलदार कलेक्टर के अधीन होंगे।
    • उपविभाग में सभी सहायक कलेक्टर, तहसीलदार और नायब तहसीलदार उपखण्ड अधिकारी के अधीन होंगे।
    • तहसील में सभी अतिरिक्त तहसीलदार और नायब तहसीलदार तहसीलदार के अधीन होंगे।

अपील

  • मूल डिक्री के विरुद्ध अपील :  मूल डिक्री के विरुद्ध अपील की जा सकेगी।
    • कलेक्टर को, यदि ऐसा आदेश तहसीलदार द्वारा पारित किया गया हो, तथा
    • राजस्व अपील प्राधिकारी को, यदि ऐसा आदेश सहायक कलेक्टर, उप-विभागीय अधिकारी या कलेक्टर द्वारा पारित किया गया हो।
राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ
राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ
  • अपीलीय डिक्रियों के विरुद्ध अपीलें
    • कलेक्टर द्वारा अपील में पारित डिक्रियों के विरुद्ध अपील राजस्व अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष होगी।
    • राजस्व अपीलीय प्राधिकारी द्वारा अपील में पारित डिक्री के विरुद्ध राजस्व बोर्ड में निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर अपील की जा सकेगी, अर्थात्:
      • निर्णय का कानून या बल-प्राप्त प्रथा के विपरीत होना।
      • निर्णय किसी महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे या बल-प्राप्त प्रथा को निर्धारित करने में विफल होना।
      • इस अधिनियम या अन्य लागू विधि में दी गई प्रक्रिया में गंभीर त्रुटि या दोष, जिससे निर्णय में संभावित त्रुटि उत्पन्न हुई हो।
      • निर्णय साक्ष्य के विपरीत हो, जब निचली अपीलीय अदालत ने तथ्य पर ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष को बदला या पलटा हो।
राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ
  • आदेशों के विरुद्ध अपील:
    • यदि आदेश तहसीलदार द्वारा पारित किया गया है, तो अपील कलेक्टर के पास जाएगी।
    • यदि आदेश सहायक कलेक्टर, उप-विभागीय अधिकारी, या कलेक्टर द्वारा पारित किया गया है, तो अपील राजस्व अपीलीय प्राधिकरण के पास जाएगी।
    • यदि आदेश राजस्व अपीलीय प्राधिकरण द्वारा पारित किया गया है, तो अपील बोर्ड के पास जाएगी।
  • अपील दाखिल करने की समय-सीमा:
    • कलेक्टर के पास अपील: आदेश या डिक्री की तारीख से 30 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।
    • राजस्व अपीलीय प्राधिकरण के पास अपील: आदेश या डिक्री की तारीख से 60 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।
    • बोर्ड के पास अपील: आदेश या डिक्री की तारीख से 90 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।

अधिकार क्षेत्र का संघर्ष

  • अधिकारिता के प्रश्न को उच्च न्यायालय को संदर्भित करने की शक्ति 
  • उच्च न्यायालय का आदेश अंतिम होगा तथा बोर्ड के अधीनस्थ सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा।

विगत वर्षों के प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2021राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में “अधिकार अभिलेख” की अन्तर्वस्तु बताइए।5M
2021नजुल भूमि को परिभाषित कीजिए।2M
2018क्या आप इस मत से सहमत हैं कि राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में प्रयुक्तानुसार “वार्षिक रजिस्टर’ की अभिव्यक्ति ‘अधिकार अभिलेख’ की अभिव्यक्ति से विस्तृत है ? टिप्पणी कीजिए।5M
2016 Specialराजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत “नजूल भूमि’ को परिभाषित कीजिये।2M

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम 1956 के उद्देश्य

भूमि संबंधी कानूनों का समेकन और संशोधन जिसमें निम्नलिखित विषय शामिल हैं:

  • राजस्व न्यायालयों, राजस्व अधिकारियों और ग्राम सेवकों की नियुक्ति, शक्तियाँ और कर्तव्य
  • मानचित्रों और भूमि अभिलेखों की तैयारी और रखरखाव
  • राजस्व प्रशासन की सुगमता के लिए उपाय-
    • राजस्व और किराए का निपटान
    • संपत्ति के बंटवारे का विनियमन
    • राजस्व की प्रभावी वसूली
  • राजस्व प्रशासन से संबंधित अन्य सहायक मामलों का प्रबंधन

धारा  3: व्याख्या

  • भूमि अभिलेख अधिकारी – से तात्पर्य कलेक्टर से होगा और इसमें अतिरिक्त या सहायक भूमि अभिलेख अधिकारी शामिल होंगे;
  • नजूल भूमि – का तात्पर्य नगरपालिका या पंचायत सर्किल या गांव, कस्बे या शहर की सीमा के भीतर आबादी भूमि से है, जो राज्य सरकार में निहित है;
  • गांव – से तात्पर्य उस भूमि क्षेत्र से है जिसे मान्यता दी गई है और दर्ज किया गया है, या इसके बाद उसे गांव के रूप में मान्यता दी जाएगी और दर्ज किया जाएगा;
  • मान्यता प्राप्त अभिकर्ता – से अर्थ इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए, ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत होगा जिसे ऐसे पक्षकार द्वारा लिखित रूप में उसकी ओर से उपस्थित होने, आवेदन करने तथा अन्य कार्य करने के लिए प्राधिकृत किया गया हो:
  • भूमि – इसमें चरागाह भूमि, सार्वजनिक कुएँ, तथा जोहड़ और तालाबों से संबंधित भूमि शामिल है।
  • चाही भूमि – यदि किसी भूमि को उचित मूल्यांकन से बचने के लिए जानबूझकर परती या सूखी छोड़ा जाता है, तो उसे चाही भूमि माना जाएगा।
  • भूमि – से तात्पर्य निम्नलिखित किसी भी श्रेणी की भूमि से है:
    • नजूल भूमि।
    • राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 (धारा 5) के में परिभाषित भूमि।
    • राजस्थान भूमि अर्जन अधिनियम, 1953 के अधीन सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी शैक्षणिक संस्था के प्रयोजन के लिए अर्जित भूमि।
    • समुदाय के उपयोग के लिए पूर्वोक्त रूप से सर्वेक्षण की गई और दर्ज की गई भूमि जैसे गोचर, श्मशान या कब्रिस्तान
    • सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के स्वामित्व वाली सर्वेक्षण और अभिलेखित भूमि, जिसका उपयोग सड़क या पथ जैसे किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाता है।
    • राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के कब्जे में भूमि।
  • स्वामी – का अर्थ
    • किसी भूमि या परिसर में स्थायी हित रखने वाला व्यक्ति, या
    • ऐसे व्यक्ति का एजेंट या उसकी ओर से प्रबंधक, या
    • ऐसे व्यक्ति का ट्रस्टी, या
    • कोई निगमित निकाय जिसमें कोई भूमि या परिसर कुछ समय के लिए निहित है, या
    • किसी भूमि या परिसर का वर्तमान में अधिभोगी;

राजस्व बोर्ड

धारा 4:  राजस्व बोर्ड की स्थापना
  • बोर्ड की संरचना: इसमें एक अध्यक्ष और 3 से 20 सदस्य होंगे।
  • योग्यता: राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी, जिसमें चयन की विधियाँ और सेवा शर्तें शामिल हैं।
  • वैधता: मंडल का गठन रिक्तियों के बावजूद मान्य रहेगा।
  • कार्यकाल: सदस्य राज्यपाल की इच्छा पर सेवा करेंगे।
  • बैठक का स्थान: मुख्यालय: अजमेर में स्थित है, परंतु राज्य सरकार के निर्देशानुसार अधिकार क्षेत्र में अन्यत्र बैठ सकता है।
  • मंडल की शक्तियाँ
    • सर्वोच्च राजस्व न्यायालय: राजस्व अपीलों, पुनरीक्षणों, और संदर्भों के लिए शीर्ष न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
      • सिविल और राजस्व न्यायालयों के बीच अधिकार क्षेत्र विवादों में उच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है ।
  • अतिरिक्त शक्तियाँ: सरकार या लागू कानून द्वारा प्रदत्त।
  • अधीक्षण: सभी अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों पर सामान्य अधीक्षण करता है।
  • अधिकार क्षेत्र का प्रयोग
    • अधिकार क्षेत्र का प्रयोग: अध्यक्ष/एकल सदस्य या बहु-सदस्यीय पीठ द्वारा।
    • विशेष अपील: एकल सदस्य के निर्णय के खिलाफ बड़ी पीठ में एक माह के भीतर अपील की जा सकती है, उचित सदस्य की स्वीकृति के साथ।
  • न्यायपीठ को संदर्भ
    • Legal Questions: विधि के किसी प्रश्न या दस्तावेज को बोर्ड का अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य न्यायपीठ की राय के लिए निर्देशित कर सकता है। 
  • उच्च न्यायालय को संदर्भ
    • अगर कोई प्रश्न लोक महत्व का है और उस पर उच्च न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो न्यायपीठ उस प्रश्न को उस न्यायालय को निर्दिष्ट कर सकेगी,
  • मतभेद की स्थिति में निर्णय
    • बहुमत का नियम: पीठ के भीतर बहुमत की राय का पालन किया जाएगा।
    • समान रूप से विभाजन की स्थिति: एक अतिरिक्त सदस्य की राय विभाजित निर्णय का समाधान करेगी।

राजस्व न्यायालय और अधिकारी

धारा 15: प्रादेशिक प्रभाग
  • राज्य को → प्रभागों और जिलों में बाँटा जाएगा।
  • प्रभागों को  → जिलों में ।
  • जिलों कोउपखंडों में विभाजित
  • उपखंडों को → तहसीलों में 
  • तहसीलों को → उप-तहसीलों में
अधिकारी
  • राज्य स्तर पर
    • निपटान आयुक्त और आवश्यक अपर निपटान आयुक्त।
    • भूमि अभिलेखों के निदेशक और आवश्यक अपर/सहायक निदेशक।
  • प्रभागीय स्तर पर
    • एक आयुक्त और आवश्यक अपर आयुक्त।
  • जिला स्तर पर
    • अनिवार्य नियुक्तियाँ: प्रत्येक जिले में एक कलेक्टर (जो भूमि अभिलेख अधिकारी भी होगा) और प्रत्येक तहसील में एक तहसीलदार होगा।
    • वैकल्पिक नियुक्तियाँ: राज्य आवश्यकतानुसार अतिरिक्त भूमि अभिलेख अधिकारी, निपटान अधिकारी, सहायक कलेक्टर, नायब तहसीलदार, और अतिरिक्त कलेक्टर/तहसीलदार नियुक्त कर सकता है।
धारा  20-A: राजस्व अपीलीय प्राधिकरण
  • भूमिका: राज्य सरकार राजस्व मामलों में अपील, पुनरीक्षण, और संदर्भों को संभालने के लिए न्यूनतम 3 अधिकारियों को राजस्व अपीलीय प्राधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकती है।
धारा 30: पटवारी सर्किलों का गठन एवं परिवर्तन
  • भूमि अभिलेख निदेशक, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से, समय-समय पर प्रत्येक जिले के गांवों को पटवारी हलकों में व्यवस्थित कर सकेगा तथा ऐसे हलकों की संख्या और सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगा।
धारा 31: पटवारियों की नियुक्ति
  • पटवारी की भूमिका: प्रत्येक चक्र में एक पटवारी कलेक्टर द्वारा नियुक्त किया जाएगा, जो अभिलेखों का रखरखाव, किराया/राजस्व का संग्रहण और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करेगा।
धारा 32: भूमि अभिलेख निरीक्षण सर्किलों का गठन एवं परिवर्तन
  • भूमि अभिलेख निदेशक प्रत्येक जिले के पटवारी हलकों को भूमि अभिलेख निरीक्षण हलकों में व्यवस्थित कर सकेंगे
धारा 33: गिरदावर, कानूनगो या भू-अभिलेख निरीक्षकों की नियुक्ति
  • कलेक्टर प्रत्येक निरीक्षण चक्र में एक गिरदावर कानूनगो या भूमि अभिलेख निरीक्षक नियुक्त करेगा जो अभिलेखों की देखरेख और रखरखाव करेगा।
धारा 34: सदर कानूनगो
  • भूमि अभिलेखों के निदेशक प्रत्येक जिले में एक या अधिक सदर कानूनगो की नियुक्ति करेंगे, जो गिरदावर कानूनगो और पटवारियों की निगरानी करेंगे।
ग्राम सेवक
धारा 41 →  प्रत्येक गांव/समूह में राज्य के दिशा-निर्देशों के
  • तहत कलेक्टर द्वारा नियुक्त सेवक (जैसे चौकीदार, बलाई) होने चाहिए।
    • नियुक्ति: तहसीलदार द्वारा किसी रिक्ति के 60 दिनों के अंदर।
    • तहसीलदार सभी ग्राम सेवकों की पंजी रखेगा
    • कर्तव्य: पुलिस अधीक्षक के द्वारा अपेक्षित।
    • नियुक्ति के लिए अयोग्यताएं
      • आयु की न्यूनतम सीमा प्राप्त नहीं की हो।
      • शारीरिक या मानसिक रूप से अपने पद के कर्तव्यों को निभाने में सक्षम नहीं हो।
      • उस क्षेत्र में निवास न करता हो, जिसके लिए उसे नियुक्त किया गया है।
      • नैतिक पतन के अपराध में आपराधिक न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया गया हो।

राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों की प्रक्रिया

  • न्यायालय लगाने या पूछताछ करने का स्थान
    • अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी भी स्थान पर
  • भूमि में प्रवेश और सर्वेक्षण: अधिकृत अधिकारी/सेवक
  • प्रतिनिधित्व: पक्षकार स्वयं, अभिकर्ता, या कानूनी प्रतिनिधि के माध्यम से उपस्थित हो सकते हैं
  • प्रक्रिया: सम्मन की सेवा → सूचना की सेवा।
  • अपील की सीमाएँ: आदेशों से अपील नहीं, सिवाय यदि अनुपस्थिति का उचित कारण हो (आदेश रद्द करने के लिए 30 दिन की अवधि)।
  • पुरस्कार के खिलाफ आवेदन: पुरस्कार की सूचना दर्ज होने के 20 दिन के भीतर किया जाना चाहिए।

अपील, संदर्भ, संशोधन और समीक्षा

धारा 75: प्रथम अपीलें।
धारा 76: द्वितीय अपीलें।
धारा 77: कुछ मामलों में अपील नहीं।
  • अपील की स्वीकृति/रिव्यू से जुड़े आदेश के विरुद्ध नहीं।
  • पुनरीक्षण/रिव्यू आवेदन की अस्वीकृति पर नहीं।
  • इस अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से अंतिम घोषित आदेश पर नहीं।
  • अंतरिम आदेश पर नहीं।
धारा 78: अपीलों के लिए समय सीमा
  • कलेक्टर, भूमि अभिलेख अधिकारी या निपटान अधिकारी को – 30 दिन के भीतर ।
  • राजस्व अपीलीय प्राधिकारी, निपटान आयुक्त, या भूमि अभिलेख निदेशक को – 60 दिन के भीतर ।
  • बोर्ड को – 90 दिन के भीतर ।
राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमि विधियाँ

भूमि

धारा 88: सभी सड़कें आदि तथा सभी भूमि जो दूसरों की संपत्ति नहीं हैं, राज्य की हैं।
  • कलेक्टर, आयुक्त की स्वीकृति से इन संपत्तियों का प्रबंधन कर सकता है।
  • कलेक्टर के निर्णय को चुनौती देने वाले मुकदमे अंतिम आदेश के एक वर्ष के भीतर दायर होने चाहिए।
धारा 89: खनिजों, खानों, खदानों और मत्स्य पालन का अधिकार।
  • दंड: अनधिकृत उत्खनन पर ₹50 प्रति टन या न्यूनतम ₹1,000 तक का जुर्माना, जो कलेक्टर द्वारा लगाया जाएगा।
धारा 90-क: कृषि भूमि का गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग
  • अनुमति: राज्य सरकार से।
  • जाँच के बाद, राज्य सरकार अनुमति दे या अस्वीकार कर सकती है।
  • अनुमति मिलने पर, भू-स्वामी को शहरी मूल्यांकन, प्रीमियम या दोनों का भुगतान करना होगा, जैसा कि राज्य सरकार निर्धारित करती है।
  • अनधिकृत उपयोग पर दंड
    • अतिचारी का दर्जा: कोई भी भुगतान किए बिना, कृषि के प्रयोजन के लिए उक्त भूमि को मूल रूप से धारण करने वाला व्यक्ति और साथ ही सभी बाद के अंतरिती, यदि कोई हों, यथास्थिति, अतिचारी या अतिचारी समझे जाएंगे और धारा 91 के अनुसार ऐसी भूमि से बेदखल किए जाने के दायी होंगे
    • वैकल्पिक व्यवस्था: सरकार अतिरिक्त दंड के साथ उपयोग की अनुमति दे सकती है।
  • शहरी क्षेत्र में प्रतिबंध: शहरी क्षेत्रों में गैर-कृषि उपयोग की अनुमति तभी मिलती है जब वह मास्टर या विकास योजना के अनुरूप हो।
  • अपील प्रक्रिया: प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपील 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए, जिसका निपटान आमतौर पर 60 दिनों में होता है। अपील का निर्णय अंतिम होता है।
धारा 91: भूमि पर अनाधिकृत कब्जा
  • अतिचारी का दर्जा :
    • कोई भी व्यक्ति जो भूमि पर विधिसम्मत अधिकार के बिना कब्जा करता है, वह अतिक्रमणकर्ता है और उसे तहसीलदार द्वारा निष्कासित किया जा सकता है।
  • फसल की जब्ती और निर्माण की तुड़ाई या तहसीलदार द्वारा ध्वंस।
  • दंड:
    • पहला अपराध: वार्षिक किराए या मूल्यांकन का 50 गुना तक का दंड।
    • पुनः अपराध: दंड और तीन महीने तक के लिए दीवानी जेल में भेजा जा सकता है।
    • वसूली: दंड भूमि राजस्व के रूप में वसूला जाएगा।
  • अतिचारी दीवानी जेल आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।
  • अनधिकृत कब्जे के लिए दंड
  • दोषसिद्धि पर दंड
    • नोटिस के बाद खाली नहीं करने पर 1 माह से 3 साल तक का कारावास और ₹20,000 तक का जुर्माना।
    • कर्मचारियों द्वारा अतिक्रमण रोकने में विफलता पर 1 माह तक का कारावास या ₹1,000 तक का जुर्माना।
  • विशेष प्रावधान:
    • जाँच: पुलिस उप-अधीक्षक या उच्चतर द्वारा की जानी चाहिए।
    • पूर्व स्वीकृति: कुछ स्थितियों में अभियोजन के लिए कलेक्टर की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है।
धारा 93- चारागाह के उपयोग का विनियमन।
  • चारागाह भूमि पर चरने का अधिकार केवल उस गांव या गांवों के मवेशियों तक ही विस्तारित होगा जिसके लिए ऐसी भूमि अलग रखी गई है
धारा 94: वन वृद्धि नियंत्रण और प्रबंधन
  • नियम : राज्य सरकार बनाएगी ।
  • दंड : ₹1,000 तक का जुर्माना या दैनिक जुर्माना
  • न्यायालय निर्देश दे सकता है की, वसूल कि गयी राशि का उपयोग वन-विकास के फायदे के किया जाए ।
  • वन भूमि की सुरक्षा: गंभीर उल्लंघन पर, कलेक्टर वन भूमि का प्रबंधन अपने अधिकार में ले सकता है।
  • प्रतिबंधित गतिविधियाँ: संरक्षित वन क्षेत्रों में कलेक्टर की अनुमति के बिना कोई व्यक्ति लकड़ी या झाड़ियाँ काट नहीं सकता।
  • सड़क किनारे के पेड़: राज्य सरकार या स्थानीय निधियों से लगाए या रखरखाव किए गए सभी सड़क किनारे के पेड़ों का स्वामित्व राज्य के पास होगा।
धारा 98:   उप-खंड अधिकारी गाँवों (या नगरों) में घरेलू कचरा, खाद और चारा के भंडारण के लिए भूमि नि:शुल्क दे सकता है।
  • नियमों का उल्लंघन होने पर, कम से कम तहसीलदार स्तर का राजस्व अधिकारी भूमि पुनः प्राप्त कर सकता है।
धारा 101:  कृषि प्रयोजनों के लिए भूमि का आवंटन
  • आवंटन- राज्य सरकार द्वारा।
  • आवंटन के लिए प्राथमिकता –
    • यदि जोत एक सघन खंड का भाग है या एक ही स्रोत से सिंचित है, तो उस सह-हिस्सेदार को वरीयता दी जाएगी जिसके पास राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के अनुसार निर्धारित क्षेत्रफल से कम भूमि है
    • वे लोग जिनके पास कोई भूमि नहीं है या जिनके पास उक्त नियमों द्वारा निर्धारित क्षेत्र से कम भूमि है;
    • मांग आपूर्ति से अधिक होने पर लॉटरी द्वारा।
धारा 103- भूमि की परिभाषा ( महत्वपूर्ण )
  • परिभाषाओं में वर्णित 

सर्वेक्षण और अभिलेख संचालन

  • राज्य सरकार किसी क्षेत्र को सर्वेक्षण या पुनःसर्वेक्षण के अधीन घोषित कर सकती है।
  • अभिलेखों के संशोधन का कार्य राज्य सरकार द्वारा।
  • इन कार्यों की देखरेख हेतु भूमि अभिलेख अधिकारी (राज्य सरकार द्वारा नियुक्त) 
  • संचालन की निगरानी भूमि अभिलेख निदेशक द्वारा की जाती है।
  • सीमाओं से सम्बन्धित विवादों का विनिश्चय
    • सीमा विवादों का समाधान भूमि अभिलेख अधिकारी द्वारा 
    • यदि किसी व्यक्ति को तीन महीने के भीतर गलत तरीके से बेदखल किया गया है, तो अधिकारी संक्षिप्त जाँच द्वारा उचित कब्जाधारी का निर्धारण करेंगे।
  • भूमि अभिलेख अधिकारी सर्वेक्षित क्षेत्रों के लिए मानचित्र और क्षेत्रीय पुस्तकें तैयार करते हैं।
  • अधिकारों का अभिलेख (धारा 113)
    • भूमि अभिलेख अधिकारी प्रत्येक गाँव के लिए एक अधिकारों का अभिलेख तैयार करते हैं, जिसमें भूमि धारण की जानकारी होती है।
    • अधिकारों के अभिलेख की अंतर्वस्तु (धारा 114)-
      • इसके अन्तर्गत –
        • खेवत: संपदा-धारकों का रजिस्टर, जिसमें प्रत्येक के हित, सह-हिस्सेदारों, गिरवी रखने वाले, और गैर-किरायेदार भूमि धारकों का विवरण होता है।
        • खतौनी: भूमि के काश्तकारों या कब्जेदारों का एक रजिस्टर, जिसमें अनुच्छेद 121 के अनुसार विवरण होते हैं।
        • माफी रजिस्टर: बिना किराया या राजस्व के रखी गई भूमि का रजिस्टर।
        • अन्य अतिरिक्त निर्धारित रजिस्टर।
खुदकाश्त भूमि का निर्धारण 
  • भूमि अभिलेख अधिकारी खुदकाश्त के अंतर्गत धारित समस्त भूमि की सीमा का पता लगाएगा और उसका निर्धारण करेगा तथा उसे उसी रूप में अभिलेखित करेगा।

भूमि अभिलेख अधिकारी खुदकाश्त के अंतर्गत धारित समस्त भूमि की सीमा का पता लगाएगा और उसका निर्धारण करेगा तथा उसे उसी रूप में अभिलेखित करेगा।

गांवों का रजिस्टर (धारा 120)
  • भूमि अभिलेख अधिकारी सर्वेक्षण या अभिलेख संचालन के अधीन क्षेत्र में गाँवों की एक सूची तैयार करेंगे, जिसमें निम्नलिखित जानकारी शामिल होगी:
    • नदी किनारे कृषि और अस्थिर खेती वाले क्षेत्र,
    • राजस्व या किराया का आकलन और संग्रहण एजेंट,
    • वे क्षेत्र जहाँ राजस्व/किराया में आंशिक या पूर्ण छूट है, साथ ही संबंधित प्राधिकारी और शर्तें।
खतौनी (काश्तकार रजिस्टर) में वर्णित की जाने वाली विशिष्टियां(धारा 121)-
  • खतौनी रजिस्टर में प्रत्येक काश्तकार के लिए निम्नलिखित विवरण होते हैं:
    • काश्तकार का प्रकार, वर्ग, और धारण अवधि, जैसा कि राजस्थान किरायेदारी अधिनियम या अन्य लागू कानूनों के अनुसार है,
    • खतेदारी अधिकारों के लिए भुगतान किया गया प्रीमियम, यदि कोई हो,
    • खतेदारी परचा की तारीख और किए गए किसी भी हस्तांतरण,
    • प्रत्येक खेत का खसरा नंबर, क्षेत्रफल, वार्षिक किराया, धारण की शर्तें,
    • गैर-खतेदार काश्तकारों के लिए, भूमि कब्जा की अवधि,
    • अन्य निर्धारित विवरण।
    • खुदकास्त भूमि वाले संपत्ति धारकों और कब्जा की अवधि की सूची भी।
  • खुदकास्त भूमि वाले संपत्ति धारकों और कितने वर्षों तक उसे खुदकाश्त के रूप में धारण किया है की सूची।
किराया या देय राजस्व विवाद प्रक्रिया
  • किराया/राजस्व पर विवादों में, भूमि अभिलेख अधिकारी पिछले वर्ष की राशि को रिकॉर्ड करेंगे जब तक कि उसे किसी डिक्री या समझौते द्वारा समायोजित नहीं किया गया हो।
धारा 128: सीमा विवाद
  • सीमा विवादों का निपटारा भूमि अभिलेख अधिकारी द्वारा अनुच्छेद 111 के अनुसार किया जाता है।
  • यदि कोई मौजूदा विवाद नहीं है परंतु संभावित विवाद हो सकता है, तो सीमा स्पष्ट करने के लिए तहसीलदार को आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।
धारा 132: वार्षिक रजिस्टर
  • भूमि अभिलेख अधिकारी अधिकारों का अभिलेख रखेगा और उस प्रयोजन के लिए प्रतिवर्ष या दीर्घ अंतरालों पर एक सेट या संशोधित सेट तैयार कराएगा और इस प्रकार तैयार किए गए रजिस्टरों को वार्षिक रजिस्टर कहा जाएगा।
  • वार्षिक रजिस्टरों में सभी परिवर्तनों को,अधिकारों या हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी भी लेन-देन को दर्ज किया जाएगा।
उत्तराधिकार और कब्जे के स्थानांतरण की रिपोर्टिंग
  • जो कोई भूमि या भूमि में अधिकारों का कब्जा प्राप्त करता है (उत्तराधिकार, स्थानांतरण आदि के माध्यम से), उसे तहसीलदार को 3 महीने के भीतर यह परिवर्तन रिपोर्ट करना चाहिए। → रिपोर्ट न करने पर ₹10 तक का जुर्माना

आबादी क्षेत्रों का सर्वेक्षण

धारा 141 के अनुसार
  • राज्य सरकार किसी भी आबादी क्षेत्र के सर्वेक्षण का आदेश दे सकती है।
  • स्थानीय प्राधिकरणों को यह सर्वेक्षण करने का कार्य सौंपा जा सकता है, या यदि कोई प्राधिकरण निर्धारित नहीं है तो जिला कलेक्टर सर्वेक्षण का कार्यभार ले सकते हैं।
  • सीमा विवाद: सर्वेक्षण के दौरान सीमा विवाद होने पर सहायक अभिलेख अधिकारी जाँच करेंगे।
  • सर्वेक्षण अभिलेख: सर्वेक्षण पूरा होने के बाद, सभी संबंधित नक्शे, रजिस्टर और दस्तावेज उस अधिकारी या प्राधिकरण को भेजे जाते हैं, जो सर्वेक्षण के प्रभारी हैं। 
  • सूचना के 2 महीने के भीतर कोई भी आपत्ति दर्ज की जा सकती है, और प्राधिकरण इन आपत्तियों को सुलझाएगा।

निपटान संचालन

  • राज्य सरकार किसी जिले या अन्य स्थानीय क्षेत्र को बन्दोबस्त या पुनः बन्दोबस्त के अन्तर्गत लाने का आदेश दे सकेगी। (धारा 142)
  • पुनर्निपटान(Re -Settlement) के लिए मानदंड:
    • राजस्व वृद्धि या कमी की संभावना।
    • यदि ऐसी वृद्धि की संभावना है तो क्या पुनर्वास को स्थगित करने के लिए संतोषजनक कारण हैं।
    • क्या वर्तमान आकलन असमान या अत्यधिक कठोर है।
    • राजस्व में संभावित वृद्धि वह होनी चाहिए जो 10 वर्षों में पुनर्निपटान की लागत को पूरा कर सके।
    • इस हेतु राज्य सरकार बंदोबस्त अधिकारियों की नियुक्ति करेगी।
    • जब किसी जिले को बंदोबस्त कार्यवाहियों के अंतर्गत लाया गया हो, तो बंदोबस्त अधिकारी ऐसे जिले या क्षेत्र में काश्तकारों की स्थिति का आर्थिक सर्वेक्षण करेगा और ऐसा करते समय निम्नलिखित मामलों पर विशेष रूप से ध्यान देगा
      • सिंचाई की उपलब्धता और सुधार,
      • कृषि मानक और खेती क्षेत्र में परिवर्तन,
      • खेती की लागत और आजीविका,
      • बाजार की पहुंच और संचार,
      • जोत का आकार और किरायेदारों की ऋणग्रस्तता।
  • आर्थिक सर्वेक्षण के बाद, बंदोबस्त अधिकारी भौतिक स्थिति, जलवायु, जनसंख्या, कृषि संसाधन, फसल प्रकार, और किराया दरों जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए जिले में मूल्यांकन चक्र या समूह बनाते हैं और प्रत्येक समूह में मिट्टी का वर्गीकरण करते हैं।
धारा 152: किराया-दर निर्धारण के लिए आधार – 
  • पिछले 20 वर्षों में वसूली गई किराया और उपकर, असामान्य वर्षों को छोड़कर।
  • पिछले 20 वर्षों में कृषि उत्पादन की औसत कीमतें, असामान्य वर्षों को छोड़कर।
  • उगाई गई फसलों के प्रकार और औसत उपज।
  • औसत कीमत पर उत्पादन का मूल्य।
  • खेती की लागत और कृषकों एवं उनके परिवारों के लिए निर्वाह।
  • औसत बंजर भूमि, फसल चक्रीय प्रणाली और आराम की अवधि।
  • पहले के निपटान की किराया-दर, उत्पादन का हिस्सा, और परिवर्तनीय मूल्य।
  • आस-पास के क्षेत्रों में समान प्रकार की मिट्टी के लिए किराया-दर।
  • किराया-दर हिस्सा: इन दरों को उत्पादन के मूल्य का एक-छठा हिस्सा नहीं होना चाहिए।
प्रस्तावों की स्वीकृति
  • बंदोबस्त आयुक्त किराया प्रस्तावों की समीक्षा करता है और उन्हें बोर्ड को भेज सकता है। बोर्ड इन प्रस्तावों को राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है, जो इन्हें स्वीकृत, संशोधित, या पुनर्विचार के लिए लौटा सकती है।
  • अपवाद → कुछ भूमि किराया मूल्यांकन से मुक्त होती है, जैसे:
    • भवन और उनके आसपास का क्षेत्र,
    • स्थायी कुटाई के स्थान,
    • कब्रिस्तान और श्मशान भूमि, खेल के मैदान,
    • स्थायी सड़कें और रास्ते,
    • अंविभाजित भूमि।
वृद्धि की सीमा
  • किसी भी वर्तमान किराया में वृद्धि 25% से अधिक नहीं हो सकती, और समायोजित किराया आकलित मूल्यांकन का 75% से कम नहीं हो सकता।
  • यदि किसी जोत का किराया वर्तमान किराए के एक-चौथाई से अधिक है और स्वीकृत किराया-दरों के मूल्यांकन का तीन-चौथाई से अधिक है, तो इस अतिरिक्त राशि को तीन वर्षों तक वार्षिक वेतन वृद्धि द्वारा लागू किया जाएगा, और निर्धारित पूरा किराया इन वर्षों के बाद देय होगा।
चाही (कुएँ से सिंचित) धारणों के लिए विशेष प्रावधान
  • चाही धारण के लिए किराया उस भूमि के अनुसार अलग से निर्धारित किया जाता है जो पिछले पांच वर्षों में सिंचित, सूखी या बंजर रही हो। 
  • यदि भूमि को उचित मूल्यांकन से बचने के लिए जानबूझकर बंजर या सूखा छोड़ा जाता है, तो इसे चाही माना जाएगा।
मूल्यांकन पर्ची 
  • किराए के मूल्यांकन के बाद जोतों के लिए मूल्यांकन पर्चा तैयार करवाया जाएगा जिसमे-
    • ऐसी होल्डिंग की अवधि
    • प्रत्येक खेत का खसरा नंबर और उसका क्षेत्रफल
    • जोत में शामिल प्रत्येक खेत की मिट्टी की श्रेणी
    • प्रत्येक ऐसी मिट्टी श्रेणी के लिए स्वीकृत किराया दर इत्यादि।
आपत्तियों की सुनवाई और किराये का निर्धारण
  • किरायेदार या भूमि धारक 30 दिनों के भीतर आपत्तियाँ दर्ज कर सकते हैं। निपटान अधिकारी आपत्तियों की सुनवाई करते हैं और प्रत्येक धारण के लिए किराया को अंतिम रूप देते हैं।
धारा 173: दस्तूर गंवई की तैयारी
  • वजिब-उल-अर्ज या दस्तूर गनवाई एक औपचारिक रिकॉर्ड है जिसे गाँव के लिए बंदोबस्त कार्यवाही के दौरान बंदोबस्त अधिकारी द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें निम्नलिखित विवरण शामिल होते हैं:
    • भूमि के कब्जे के लिए किराए के अतिरिक्त देय सभी शुल्क।
    • गाँव की परंपराएं, जैसे:
      • किराए के अतिरिक्त सभी देय उपकर,
      • गाँव की भूमि और संसाधनों पर अधिकारों, सिंचाई, अधिमान और प्रशासन से संबंधित प्रथाएँ।
    • गाँव प्रशासन से संबंधित अन्य अधिकार, परंपराएं या मामले, जिनकी आवश्यकता कानून या राज्य सरकार द्वारा हो सकती है।
    • जब वाजिब-उल-अर्ज या दस्तूर-गंवई तैयार हो जाए, तो बंदोबस्त अधिकारी संबंधित गांव के निवासियों को उसे पढ़कर सुनाएगा।
धारा 175: बंदोबस्त की अवधि
  • बंदोबस्त 20 वर्षों तक चलता है, लेकिन यदि जनसंख्या का दबाव, खेती में कमी, या भूमि का गिरावट जैसी परिस्थितियाँ हों, तो यह अवधि बढ़ाई या कम की जा सकती है।
  • राज्य सरकार बंदोबस्त की अवधि समाप्त होने से पहले उसे समाप्त कर सकती है यदि:
    • कीमतों में महत्वपूर्ण और स्थायी गिरावट हो,
    • क्षेत्रों या पड़ोसी क्षेत्रों के बीच किराया दरों में बड़ा अंतर हो,
    • स्वीकृत किराया-दरें अनुचित पाई जाती हैं,
    • या किसी अन्य पर्याप्त कारण से।

सम्पदा का विभाजन

धारा 184: विभाजन
  • “विभाजन” का अर्थ है विभाजित संपत्ति का दो या अधिक भागों में विभाजन, जिनमें से प्रत्येक में एक या अधिक शेयर शामिल हों।
विभाजन का दावा करने के हकदार व्यक्ति
  • प्रत्येक सह-हिस्सेदार अपने हिस्से का विभाजन मांग सकता है। कई सह-हिस्सेदार मिलकर भी दावा कर सकते हैं।
आवेदन किसके पास किया जाए: 
  • जिला कलेक्टर के पास, जहाँ संपत्ति स्थित है।
  • यदि संपत्ति कई जिलों में है, तो संभागीय आयुक्त या अलग-अलग संभाग होने पर बोर्ड के पास।

घोषणा: कलेक्टर द्वारा विभाजन के लिए आवेदन की घोषणा की जाती है।

हक़ का विवाद उठने पर आपत्ति
  • यदि किसी सह-स्वामी द्वारा संपत्ति के शीर्षक पर आपत्ति उठाई जाती है, तो कलेक्टर –
    • विभाजन देने से इनकार कर सकते हैं,
    • संबंधित पक्ष को तीन माह के भीतर सक्षम न्यायालय में वाद दायर करने का निर्देश,
    • या मामले की जाँच करना।
  • जाँच के बाद, कलेक्टर एक प्रारंभिक आदेश जारी करेंगे।
विभाजन कौन करेगा
  • कलेक्टर पक्षों को स्वयं विभाजन करने का अवसर दे सकता है या पंच नियुक्त कर सकता है। यदि सहमति न हो, तो कलेक्टर स्वयं विभाजन करेगा।
  • कलेक्टर सभी संबंधित पक्षों को उद्घोषणा जारी करेंगे, जिससे वे 15 दिनों के भीतर उपस्थित होकर आपत्तियाँ प्रस्तुत कर सकें।
विभाजन का अंतिम आदेश
  • राजस्व वितरण पूरा होने पर, कलेक्टर अंतिम आदेश जारी करेंगे जिसमें उल्लेख होगा:
    • प्रत्येक हिस्से के लिए आवंटित भूमि,
    • प्रत्येक हिस्से के लिए राजस्व का आकलन,
    • सह-स्वामियों का विवरण (यदि हिस्सा साझा हो), जिसमें व्यक्तिगत अधिकार और दायित्व शामिल हैं,
    • प्रत्येक सह-स्वामी के अपने आवंटित हिस्से पर कब्जा पाने का अधिकार।
विभाजन का दस्तावेज
  • कलेक्टर विभाजित हिस्सों के लिए औपचारिक विभाजन दस्तावेज तैयार करते हैं, जो आमतौर पर अंतिम आदेश के बाद आगामी 1 जुलाई को प्रभावी होता है।

राजस्व संग्रहण

  • प्रत्येक संपदा या होल्डिंग पर निर्धारित राजस्व या किराया उस पर तथा उसके किराए, लाभ या उपज पर प्रथम भार होगा।(धारा 224)
  • राजस्व के लिए उत्तरदायित्व
    • सभी धारक और सह-स्वामी सरकार के प्रति राजस्व के लिए संयुक्त और व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं।
    • सभी किरायेदार और सह-किरायेदार सरकार के प्रति देय किराए के लिए इसी प्रकार जिम्मेदार होते हैं।
    • जो भी संपत्ति या धारण का कब्जा प्राप्त करता है, वह कब्जा के समय मौजूद किसी भी बकाया के लिए उत्तरदायी होता है।
धारा 228: बकाया वसूली की प्रक्रिया
  • कलेक्टर बकाया वसूली के लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं
    1. वसूली की मांग का आदेश देना,
    2. अचल संपत्ति का कुर्की और बिक्री,
    3. विभाजन का कुर्की, या बकाया क्षेत्र का कुर्क करना,
    4. बकाया कवर करने वाले सक्षम सह-स्वामी को दस साल तक के लिए हिस्से का हस्तांतरण।
    5. यदि अन्य तरीके असफल होते हैं, तो कलेक्टर बकाया वसूली के लिए बकायादार के क्षेत्र, पट्टी, या संपत्ति की नीलामी कर सकते हैं।
    6. बकायादार की अन्य अचल संपत्ति की बिक्री (जागीर भूमि या भूमि धारक की संपत्ति को छोड़कर)।
धारा 246: बिक्री निरस्त करने के लिए आवेदन
  • बकायादार बिक्री के 30 दिनों के भीतर निम्नलिखित जमा करके बिक्री निरस्त करने का आवेदन कर सकता है:
    • खरीद राशि का 5%,
    • बकाया राशि, उद्घोषणा के बाद से की गई किसी भी भुगतान को घटाकर,
    • बिक्री की लागत।
  • यदि जमा किया जाता है, तो कलेक्टर बिक्री को निरस्त कर सकते हैं।
सिविल न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र अपवर्जित
  • इस अधिनियम के अधीन किसी मामले के संबंध में कोई भी वाद या अन्य कार्यवाही किसी सिविल न्यायालय में नहीं लाई जाएगी या संस्थित नहीं की जाएगी:
  • परन्तु यदि किसी सीमा विवाद या सम्पदाधारकों के बीच किसी अन्य विवाद में हक का प्रश्न अन्तर्वलित हो तो ऐसे प्रश्न के न्यायनिर्णयन के लिए सिविल वाद लाया जा सकेगा।

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