अधिगम और अभिप्रेरणा

अधिगम और अभिप्रेरणा मानव व्यवहार के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह विषय व्यवहार के अंतर्गत आता है, जिसमें हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि व्यक्ति कैसे सीखता है (अधिगम) और उसके पीछे कौन-से प्रेरक तत्व कार्य करते हैं (अभिप्रेरणा)। इन दोनों घटकों की सहायता से हम किसी व्यक्ति की गतिविधियों, प्रतिक्रियाओं और मानसिक प्रवृत्तियों को बेहतर रूप से समझ सकते हैं।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023चिहन हास के कारण हुये विस्मरण को समझाइये।2M
2023संवेदी स्मृति को समझाइये।2M
2023अधिगम की विश्लेषणात्मक शैली की कोई दो विशेषताएँ लिखिये।2M
2021स्मृति की तीन अवस्थाओं के बारे में लिखिए।2M
2018स्मृति पर बार्टलेट का दृष्टिकोण क्‍या है ?2M
2016 specialपृष्ठोन्मुखी व्यवधान से आप क्‍या समझते हैं ?2M
2016 specialएबिंगहॉस वक्र को परिभाषित कीजिए।2M

अधिगम को एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है; जब एक बच्चा एक गर्म कढ़ाई को छूता है और जल जाता है, तो वह तुरंत अपने हाथ को वापस खींच लेता है और गर्म वस्तुओं के साथ सावधानी से व्यवहार करना सीखता है। यह दर्शाता है कि अधिगम एक प्रक्रिया है, जिसमें अनुभव, अभ्यास और प्रयास के माध्यम से व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। हिलगार्ड, एटकिंसन एवं एटकिंसन के अनुसार “अधिगम को पूर्व अनुभवों के परिणाम स्वरुप व्यवहार में आए अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन के रुप में परिभाषित किया जाता है।”

कुछ विधियाँ सरल प्रतिक्रियाओं के अधिग्रहण में उपयोग की जाती हैं, जबकि अन्य विधियाँ जटिल प्रतिक्रियाओं के अधिग्रहण में उपयोग होती हैं। सबसे सरल प्रकार के अधिगम को अनुबंधन कहा जाता है। अनुबंधन के दो प्रकार के होते हैं, प्राचीन अनुबंधन एवं क्रियाप्रसूत या नैमैत्तिक अनुबंधन।

प्राचीन अनुबंधन (क्लासिकल कंडीशनिंग)

प्राचीन अनुबंधन, जिसे सबसे पहले इवान पावलोव द्वारा अध्ययन किया गया, यह बताता है कि हम सहयोग के माध्यम से कैसे सीखते हैं। पावलोव ने देखा कि कुत्ते खाली प्लेट देखते ही लार छोड़ने लगते थे, क्योंकि वे भोजन की उम्मीद करते थे। इस पर गहराई से शोध करने के लिए उन्होंने एक प्रयोग किया, जिसमें उन्होंने भोजन देने से पहले घंटी बजाई। कई बार ऐसा दोहराने के बाद, कुत्तों ने सिर्फ घंटी की आवाज़ सुनकर ही लार छोड़ना शुरू कर दिया, भले ही भोजन प्रस्तुत नहीं किया गया हो। इस प्रक्रिया में, भोजन अननुबंधित उद्दीपक होता है, जो स्वाभाविक रूप से लार छोड़ने का कारण बनता है, इसे अननुबंधित अनुक्रिया कहा जाता है। अनुबंधन के बाद, घंटी अनुबंधित उद्दीपक बन जाती है, और घंटी की आवाज़ सुनकर लार छोड़ना अनुबंधित अनुक्रिया कहलाता है। यह दिखाता है कि कैसे एक तटस्थ उद्दीपक (घंटी) को एक अननुबंधित उद्दीपक (भोजन) के साथ जोड़कर एक सीखी हुई अनुक्रिया (लार छोड़ना) उत्पन्न की जा सकती है। प्राचीन अनुबंधन इस बात को दर्शाता है कि कैसे एक उद्दीपक (घंटी) दूसरे उद्दीपक (भोजन) की उपस्थिति का संकेत देता है, जिससे एक सीखा हुआ व्यवहार उत्पन्न होता यह अधिगम प्रक्रिया रोजमर्रा के जीवन में आम है, जैसे भोजन के बाद मिठाई देखकर लार छोड़ना, या जब एक बच्चा गुब्बारे के फूटने पर जोरदार आवाज़ से डरता है, तो वह गुब्बारे से भय को जोड़ने लगता है।

क्रियाप्रसूत/नैमित्रिक अनुबंधन (ऑपरेंट कंडीशनिंग)

LEARNING AND MOTIVATION

बी.एफ. स्किनर ने क्रियाप्रसूत अनुबंधन का उपयोग करके अध्ययन किया जिसमे उन्होंने, एक भूखे चूहे को एक चैम्बर(स्किनर बॉक्स) में रखा जिसमें एक लीवर था। जब चूहा आकस्मिक रूप से लीवर दबाता था, तो एक खाद्य गोली निकलती थी। बार-बार प्रयासों के दौरान, चूहे ने खाना प्राप्त करने के लिए जल्दी से लीवर दबाना सीख लिया। यह सीखने का एक रूप, जहां व्यवहार इसके परिणामों द्वारा आकारित होता है, नैमित्तिक अनुबंधन (instrumental conditioning) कहा जाता है। चूहे की लीवर दबाने की क्रिया (क्रियाप्रसूत अनुक्रिया) को भोजन प्रदान करके (प्रबलक) सुदृढ़ किया।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नैमित्तिक अनुबंधन के उदाहरणों में बच्चों का “कृपया” कहना शामिल है ताकि उन्हें कोई मदद मिले या उपकरणों को संचालित करने का तरीका समझना शामिल है। यह प्रक्रिया प्रबलक के प्रकार और समय से प्रभावित होती है।

प्राचीन अनुबंधनक्रियाप्रसूत/नैमित्रिक अनुबंधन
इवान पावलोव द्वाराबी.एफ. स्किनर द्वारा
प्रतिक्रियाएँ कुछ उद्दीपकों के नियंत्रण में होती हैं।प्रतिक्रियाएँ जीव के नियंत्रण में होती हैं और वे स्वैच्छिक प्रतिक्रियाएँ या ‘ऑपरेंट्स’ होती हैं।
अनुबंधित उद्दीपक (CS) और अननुबंधित उद्दीपक (US) स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं।अनुबंधित उद्दीपक (CS) परिभाषित नहीं होता है।
प्रयोगकर्ता अननुबंधित उद्दीपक (US) की उपस्थिति को नियंत्रित करता है।प्रबलक (reinforcer) की उपस्थिति उस जीव के नियंत्रण में होती है जो सीख रहा होता है।
उदाहरण: पावलोव द्वारा कुत्ते पर किया प्रयोग।उदाहरण: बी.एफ. स्किनर द्वारा चूहे पर किया प्रयोग।

अधिगम के प्रकार

प्रेक्षणात्मक अधिगम:

प्रेक्षण द्वारा अधिगम की प्रक्रिया में प्रेक्षक मॉडल के व्यवहार का प्रेक्षण करके  ज्ञान प्राप्त करता है परंतु वह किस प्रकार से आचरण करेगा यह इस पर निर्भर करता है कि उसने मॉडल को पुरस्कृत होते हुए देखा है या दंडित होते हुए। हम देखते हैं कि छोटे शिशु भी घर में तथा सामाजिक उत्सवों एवं समारोहों में प्रौढ़ व्यक्तियों के अनेक प्रकार के व्यवहारों का ध्यान से प्रेक्षण करते हैं इसके बाद अपने खेल में उनको दुहराते हैं। उदाहरणार्थ, छोटे बच्चे विवाह समारोह, जन्मदिन प्रीतिभोज, चोर और सिपाही, घर-रखाव आदि के खेल खेलते हैं। वे अपने खेलों में ऐसा सब करते हैं जैसा वे समाज में और टेलीविजन पर देखते हैं तथा पुस्तकों में पढ़ते हैं।

संज्ञानात्मक अधिगम:

कुछ मनोवैज्ञानिक अधिगम को उन संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के रूप में देखते हैं जो अधिगम के मूल में होती हैं। उन्होंने अधिगम के ऐसे उपागम विकसित किए हैं जो उन प्रक्रियाओं पर फोकस करते हैं जो अधिगम करते समय घटित होती हैं, न कि केवल संबंधों पर ध्यान केंद्रित करके

जैसा कि प्राचीन एवं क्रियाप्रसूत अनुबंधन में किया जाता है। अतः, संज्ञानात्मक अधिगम में सीखने वाले व्यक्ति के कार्यकलापों की बजाय उसके ज्ञान में परिवर्तन आता है। अंतर्दृष्टि अधिगम एवं अव्यक्त अधिगम में इस प्रकार का अधिगम परिलक्षित होता है।

वाचिक अधिगम:

आप इस सामग्री को पढ़ रहे हैं और अधिगम की अवधारणा को समझने की कोशिश कर रहे हैं। यह वाचिक अधिगम के कारण संभव है।आपने भाषा सीखी है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोग विभिन्न भाषाएँ सीखते हैं। भाषा अधिगम की प्रक्रिया को वाचिक अधिगम कहा जाता है।

कौशल अधिगम:

यह वह प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं या घटनाओं को कुछ सामान्य विशेषताओं के आधार पर श्रेणियों में बांटा जाता है।उदाहरणस्वरूप बच्चे द्वारा “फलों” की पहचान करना। जब एक बच्चा अलग-अलग फलों को देखता है, जैसे सेब, केला, और संतरा, तो वह यह सीखता है कि इन सभी को ‘फल’ की श्रेणी में रखा जा सकता है। बच्चे को सिखाया जाता है कि ये वस्तुएँ खाने योग्य होती हैं और विभिन्न रंग-रूप के बावजूद सभी को फल कहा जाता है। इस तरह, बच्चा यह समझ जाता है कि “फल” एक अवधारणा है जिसमें विभिन्न प्रकार के खाने योग्य वस्तुओं को शामिल किया जा सकता है। इससे हमें संवाद करने और दुनिया को आसानी से समझने में मदद मिलती है। कॉन्सेप्ट मूर्त (जैसे “गाय” या “मेज़”) या अमूर्त (जैसे “प्रेम” या “स्वतंत्रता”) हो सकते हैं। कॉन्सेप्ट लर्निंग के ज़रिए हम एक श्रेणी की सभी चीजों पर समान प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे हमारे आस-पास की जटिलता कम हो जाती है।

व्यक्ति की अधिगम शैली उस तरीके को बताती है जिसे शिक्षार्थी, प्रक्रियाओं को ग्रहण करने, सूचनाओं को समझने एवं धारण करने के लिए पसंद करता है। अलग-अलग शिक्षार्थी अलग-अलग तरीके से जैसे कि देखकर एवं सुनकर, अकेले एवं समूह में काम कर, तार्किक रुप से सोचकर एवं अंतर्सूझ द्वारा, और कभी-कभी रटकर या कल्पनाकर, सीखता है। ऐसे विभिन्न उपकरण हैं जिनका उपयोग छात्र की सीखने की शैली निर्धारित करने के लिए किया जाता है।

  1. परसेप्चुअल मोडालिटी (Perceptual Modality) का मतलब है कि हम अपनी इंद्रियों (जैसे सुनना, देखना, छूना, चलना) के आधार पर जानकारी लेना कैसे पसंद करते हैं। यह पर्यावरण के प्रति हमारी जैविक प्रतिक्रिया है।
  2. सूचना प्रसंस्करण (Information Processing) यह बताता है कि हम कैसे सोचते हैं, समस्याओं को हल करते हैं और जानकारी को याद करते हैं। कुछ लोग सक्रिय या चिंतनशील होते हैं, जबकि कुछ लोग क्रमिक (एक-एक करके) या वैश्विक (सभी एक साथ) तरीके से जानकारी को संसाधित करना पसंद करते हैं।
  3. व्यक्तित्व पैटर्न (Personality Patterns) इस पर ध्यान देते हैं कि हमारी व्यक्तित्व हमारे पर्यावरण के साथ कैसे बातचीत करती है। यह बताता है कि हम अपनी स्थिर व्यक्तित्व विशेषताओं के आधार पर जानकारी को कैसे समझते, व्यवस्थित करते और याद रखते हैं।

उदाहरण – सड़क पर लाल बत्ती देखना (परसेप्चुअल मोडालिटी) ➡️ लाल बत्ती का अर्थ समझना कि रुकना है (सूचना प्रसंस्करण) ➡️ यदि आज्ञाकारी व्यक्तित्व है (रुकना)

अधिगम शैलियाँ कई आयामों में भिन्न होती हैं। एंडरसन (Anderson) ने अधिगम की विश्लेषणात्मक तथा संबंधात्मक शैलियों में विभेद किया है।

विश्लेषणात्मक और संबंधपरक शैलियों के बीच अंतर

संबंधात्मक शैलीविश्लेषणात्मक शैली
1. सूचना को समग्र चित्र के अंश के रूप में प्रत्यक्षण करना।उदाहरण: किसी पेंटिंग को देखते समय, वे केवल पेंटिंग की वस्तुओं पर ही नहीं, बल्कि भावना पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं।1. समग्र चित्र में से किसी सूचना को निकाल लेने में सक्षम होना (विस्तृत आदेश पर फोकस)।उदाहरण: वे उसी पेंटिंग में ब्रश स्ट्रोक या तकनीक पर ध्यान देंगे
2. अंतर्ज्ञानात्मक चिंतन का प्रदर्शन।उदाहरण – यह समाधान सही प्रतीत होता है2. अनुक्रमिक एवं संरचित चिंतन का प्रदर्शन।उदाहरण – तर्क, सूत्रों और अनुक्रमों का उपयोग करके समस्याओं को हल करना
3. मानवीय एवं सामाजिक विषयवस्तु से संबंधी तथा अनुभवजन्य/सांस्कृतिक प्रासंगिकता की सामग्री का सुगमतापूर्वक अध्ययन करना।उदाहरण – कहानियों के माध्यम से इतिहास जैसे विषय को समझना3. उन सामग्रियों का सुगमता से अध्ययन करना जो अचेतन तथा अवैयक्तिक हों।उदाहरण – गणित, भौतिकी या तार्किक विषय पसंद हैं
4. मौखिक रूप से प्रस्तुत विचारों एवं सूचनाओं के लिए अच्छी स्मृति होना, विशेषतः यदि वे प्रासंगिक हों।Ex – वाद-विवाद में बेहतर4. अमूर्त विचारों एवं अप्रासंगिक सूचनाओं के लिए अच्छी स्मृति होना।उदाहरण – वैज्ञानिक प्रमेय और खोज में बेहतर 
5. अशैक्षणिक क्षेत्रों में अधिक कार्यान्मुख होते हैं।उदाहरण – स्कूल के कार्यक्रमों का आयोजन बेहतर तरीक़े से कर सकते है 5. शैक्षणिक संदर्भ में अधिक कार्यान्मुख होते हैं।उदाहरण – उच्च अंक प्राप्त करना और गृहकार्य पूरा करना
6. विद्यार्थियों को योग्यताओं में प्राधिकरणों के विश्वास अथवा संश्रय की अपेक्षाओं से प्रभावित होते हैं।6. दूसरों के अभिप्राय से अधिक प्रभावित न होना।
7. उत्पाद न करने वाले कार्य निष्पादन से अलग हटना।7. उत्पाद न करने वाले कार्यों में भी सतत रूप से लगे रहने की क्षमता का प्रदर्शन करना।
8. पारंपरिक विद्यालयी परिवेश के साथ इस शैली का द्वंद्व होना।8. अधिकांश विद्यालयी परिवेश से इस शैली का मेल होना।

उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि संबंधात्मक शैली वाले व्यक्ति एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में प्रदर्शित सामग्री का अधिगम सबसे अच्छी तरह से करते हैं। वे इकाई के अंशों को सम्पूर्ण के साथ उनके संबंध के आधार पर ही समझते हैं। दूसरी ओर, विश्लेषणात्मक अधिगम शैली वाले व्यक्ति तब अधिक सुगमता से सीख पाते हैं जब सूचनाएँ एक-एक सोपान करके संचयी अनुक्रामक प्रतिरूप में प्रस्तुत की जाती हैं जो उनमें संरचात्मक समझ के रूप में विकसित होती हैं।

फ्लेमिंग का अधिगम का वी.ए.आर प्रतिमान : 

वी.ए.आर.के एक शब्द संक्षेप हैं जो चार प्रकार के अधिगम शैलियों दृश्य, श्रव्य ,पठन लेखन प्राथमिकता तथा गतिक, को बताता है।

  • दृश्य शैली से सीखने वाले शिक्षार्थी नई सूचनाओं को प्राप्त करने एवं उन्हें समझने के लिए चित्रों, मानचित्रों, तथा रेखाचित्रों के प्रयोग को पसंद करते हैं। 
    • उदाहरण – चित्र के माध्यम से हृदय की कार्यप्रणाली सीखना
  • श्रव्य शैली से सीखने वाले शिक्षार्थी नए विषयवस्तु को सुनकर तथा व्याख्यान एवं समूहपरिचर्चा आदी स्थितियों में बोलकर सीखते हैं। 
    • उदाहरण – पॉडकास्ट या व्याख्यान के माध्यम से हृदय की कार्यप्रणाली सीखना
  • पठन एवं लेखन को पसंद करने वाले शिक्षार्थी शब्दों के माध्यम से सीखते हैं। ऐसे शिक्षार्थी अमूर्त सम्प्रत्ययों को शब्दों एवं निबंधों के रूप में व्याख्या करने में सक्षम होते हैं।
    • उदाहरण – पाठ्यपुस्तक के माध्यम से हृदय की कार्यप्रणाली सीखना
  • गतिक शैली से सीखने वाले शिक्षार्थी सूचनाओं के स्पृश्य प्रस्तुतीकरण के माध्यम से बेहतर समझते हैं। वे चीजों को हाथों से छूकर सीखते हैं।
    • उदाहरण – व्यावहारिक माध्यम से हृदय की कार्यप्रणाली सीखना (प्रयोगशाला में 3D हृदय बनाना या मेंढक के हृदय का विच्छेदन करना)

शब्द “मेमोरी” लैटिन शब्द ‘मेमोरिया’ और ‘मेमोर’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ क्रमशः “ध्यान रखना” और “याद रखना” है। यह एक संज्ञानात्मक कार्य करने के लिए आवश्यक समय पर, जानकारी को बनाए रखने और इसे पुनः प्रेक्षण करने की क्षमता को  संदर्भित करता है। इसे तीन चरणों कुटसंकेतन ,भंडारण, पुनःउद्धरण समाहित प्रक्रिया के रूप में परिकल्पित किया गया है। हमारी संवेदी अंगों द्वारा प्राप्त सभी सूचना इन चरणों से गुजरती है

अधिगम और अभिप्रेरणा
  1. कुटसंकेतन/संकूटन (Encoding) यह पहली अवस्था है जिसका तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिस के द्वारा सूचना स्मृति तंत्रा में पहली बार पंजीकृत की जाती है, ताकि इसका पुनः उपयोग किया जा सके  
  2. भंडारण/संग्रहण (Storage) यह स्मृति की द्वितीय अवस्था है। सूचना, जिसका संकूटन किया गया, उसका भंडारण भी आवश्यक है जिससे उस सूचना का बाद में उपयोग किया जा सके  
  3. पुनरुद्धार/पुनः प्राप्ति (Retrieval) यह किसी कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक होने पर संग्रहीत सामग्री कोे व्यक्ति की चेतना में लाने केे लिए संदर्भित है 

हालांकि, इनमें से किसी भी चरण में कोई भी दिक्कत स्मृति विफलता का कारण बन सकती है  

स्मृति के प्रकार

स्मृति के लिए कोई एक मस्तिष्क क्षेत्र जिम्मेदार नहीं होता है, इसके बजाय मस्तिष्क के विभिन्न भाग विभिन्न प्रकार की यादों के लिए जिम्मेदार होते हैं

वर्णात्मक/स्पष्ट स्मृति

यह उस स्मृति तंत्र का संदर्भित करता है, जिसे सचेत रूप से नियंत्रित किया जा सकता है और जिसके लिए हम किसी न किसी रूप में जागरूक है  इसमें आमतौर पर उम्र के साथ गिरावट आती है एक मित्र का नाम याद करने, मोबाइल नम्बर या एटीएम पिन को याद करने में वर्णात्मक स्मृति शामिल होती है।

  • कार्यकारी स्मृति इसे चेतना का एक मानदंड माना जा सकता है स्मृति की यह प्रणाली तत्काल उपयोग के लिए आवश्यक सूचना के प्रसंस्करण और भंडारण के लिए जिम्मेदार है जैसे, उदाहरण के लिए, आप 10 अंकों के अनुक्रम को बस इतनी देर तक ध्यान में रखते हैं कि आप फ़ोन लगा सके, 
    • Connection center जाने के लिए: “बाएं मुड़ें, दो ब्लॉक जाएं, फिर कनेक्शन केंद्र में प्रवेश करें
  • अर्थ संबंधी स्मृति अर्थ सम्बंधी शब्द का आशय, अर्थ  या तर्क से है स्मृति का यह उपतंत्र दुनिया के बारे में ज्ञान, तथ्यों, अवधारणाओं, तर्क और शब्दों या प्रतीकों से जुड़े अर्थों को संग्रहित करता है। 
    • उदाहरण – परिभाषाएँ, रासायनिक प्रतिक्रिया आदि याद रखना, 
  • प्रासंगिक स्मृति हमारे अनुभवों या जीवन की घटनाओं से जुड़ी स्मृति को प्रासंगिक स्मृति कहा जाता है । इसका उपयोग पिछली घटनाओं को याद करने को लिए किया जाता है , जैसे कि, आपने अपना पिछला जन्मदिन कैसे मनाया? स्कूल के अपने पहले दिन को याद करना आदि

ग़ैर- वर्णात्मक/ निहित स्मृति

  • यह स्मृति की वह प्रणाली है जिसके  लिए हम कोई जागरूकता नहीं रखते हैं यह बिना किसी प्रयास और  इरादों के अनजाने में काम करती है  यह उम्र बढ़ने से अप्रभावित है।
    • उदाहरण – साइकिल चलाना, बिना कुंजियों को देखे कीबोर्ड पर टाइप करना
  • संवेदी स्मृति – संवेदी स्मृति को क्षण-भंगुर स्मृति के रूप में भी जाना जाता है। यह बहुत कम समय के लिए हमारी संवेदना को रिकॉर्ड रखने के लिए ज़िम्मेदार है। यदि सूचना पर ध्यान दिया जाए तो यह दूसरी अन्य स्मृति तंत्र में चली जाती है। यह केवल 200-500 मिली सेकंड्स के लिए सूचना संगृहीत करती है।   
    • उदाहरण – आप किसी गर्म सतह को कुछ देर के लिए छूते हैं और तुरंत पीछे हट जाते हैं

स्मृति का स्टेज मॉडल

यह स्मृति का पहला मॉडल था, जिसे एटकिन्सन और शिफ्रिन ने 1968 में प्रस्तावित किया था। इसे पारंपरिक स्मृति मॉडल के नाम से भी जाना जाता है। इसमें तीन स्मृति प्रणालियाँ होती हैं: संवेदी स्मृति (Sensory Memory – SM), अल्पकालिक स्मृति (Short-term Memory – STM) और दीर्घकालिक स्मृति (Long-term Memory – LTM)

स्मृति मुख्य रूप से तीन चरणों में काम करती है: संवेदी स्मृति (sensory memory), अल्पकालिक स्मृति (short term memory), और दीर्घकालिक स्मृति (long term memory)। संवेदी स्मृति कुछ ही क्षणों के लिए इंद्रियों से प्राप्त जानकारी को सटीक रूप में संग्रहीत करती है, जैसे दृश्य या श्रव्य प्रतिध्वनियाँ, जो एक सेकंड से कम समय तक रहती हैं। यदि इस जानकारी पर ध्यान दिया जाता है, तो यह अल्पकालिक स्मृति में प्रवेश करती है, जो सीमित समय (लगभग 30 सेकंड) तक थोड़ी जानकारी रखती है। अल्पकालिक स्मृति में जानकारी मुख्य रूप से ध्वनि के रूप में संग्रहीत होती है और यह कमजोर होती है, निरंतर दोहराव के बिना यह जल्दी खो सकती है। अल्पकालिक स्मृति की क्षमता को बढ़ाने के  लिए अनुरक्षण पूर्वाभ्यास, खंडीयन विधि (chunking) का उपयोग किया जाता है  अंत में, जो जानकारी अल्पकालिक स्मृति से बच जाती है, वह दीर्घकालिक स्मृति में प्रवेश करती है, जो अपार क्षमता रखती है और स्थायी रूप से जानकारी संग्रहीत करती है। दीर्घकालिक स्मृति में भूलना आमतौर पर स्मृति के गायब होने के कारण नहीं, बल्कि पुनः प्राप्ति में विफलता के कारण होता है, क्योंकि जानकारी अर्थ के आधार पर संग्रहीत की जाती है।

विशेषताएँसांवेदी स्मृतिअल्पकालिक स्मृतिदीर्घकालिक स्मृति
समय सीमामूर्त/भौतिक –  1/2 सेकंड्सध्वनि सम्बन्धी 2 से20 सेकंड्सजीवन पर्यंत
क्षमतादीर्घ7±2 टुकड़े असीमित
विस्मरणहास का पाया जानाहास, उचटना, विघ्नविघ्न, हास, संकेतों की कमी
कूट संकेतनसांवेदी (दृश्यात्मक, श्रवणात्मक)शब्दात्मक या दृश्यात्मक संकेतसंकेत द्वारा और सांवेदीक
प्रत्याहनसमानांतर खोजउदाहरण:मान लीजिए आप अचानक रात में आसमान में बिजली चमकती देख लेते हैं।
आपकी आँखें एक ही समय पर पूरे दृश्य को स्कैन करती हैं –  पेड़, घर, सड़क, सब कुछ।
क्रमिक विस्तृत खोजउदाहरण:कोई आपसे पूछता है: “तुम्हारे बैग में क्या-क्या है?”
आप एक-एक करके याद करते हो: किताब… पेन… डायरी… बोतल…
समानांतर विभाजित खोजउदाहरण:कोई कहता है “दिवाली”, और आपके मन में तुरंत एक साथ कई चीज़ें आती हैं – दिये, पटाखे, पूजा, मिठाइयाँ, छुट्टियाँ, बचपन की यादें आदि।

दीर्घकालिक स्मृति के प्रकार : 

दीर्घकालिक स्मृति का एक प्रमुख वर्गीकरण घोषणात्मक (declarative) एवं प्रक्रियामूलक (procedural) स्मृतियों का होता है। घोषणात्मक स्मृति के अंतर्गत वह जानकारी आती है जिसे आसानी से शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है, जैसे कि भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ या एक मेंढक उभयचर प्राणी है। दूसरी ओर, प्रक्रियामूलक स्मृति उन कौशलों से संबंधित है, जिनके लिए विशिष्ट अनुभव या अभ्यास की आवश्यकता होती है, जैसे साइकिल चलाना या क्रिकेट खेलना। इसे समझाना थोड़ा कठिन हो सकता है, क्योंकि यह सूचनाएँ हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों से जुड़ी होती हैं, जिन्हें हम बिना सोचे-समझे करते हैं।

एंडेल टल्विंग (Tulving) ने इस घोषणात्मक स्मृति को दो भागों में विभाजित किया है:

  1. घटनापरक स्मृति (Episodic Memory) – हमारे निजी जीवन से संबंधित स्मृतियाँ घटनापरक स्मृति बनाती हैं, इसलिए सामान्यतः इनका सांवेगिक स्वरूप होता है। आप जब कक्षा में प्रथम आए तो आपको कैसा लगा? या आपका मित्र आपसे गुस्सा हुआ या उसने आपसे कुछ कहा जब आपने अपना वादा पूरा नहीं किया?
  2. आर्थी स्मृति (Semantic Memory) – यह सामान्य ज्ञान और जागरूकता की स्मृति होती है। इसमें सभी प्रकार के विचार, तर्कसंगत नियम, और मान्यताएँ संचित रहती हैं। उदाहरण के लिए, आर्थी स्मृति हमें “अहिंसा” का अर्थ याद रखने में मदद करती है, या हम यह भी याद रख पाते हैं कि 2+6 = 8 होता है।

स्मृति का प्रक्रमण स्तर मॉडल

प्रक्रमण/प्रसंस्करण स्तर दृष्टिकोण क्रैक एवं लॉकहार्ट द्वारा सन् 1972 में प्रतिपादित किया गया था। यह मॉडल एटकिंसन और सिफ़्रेन मॉडल के दावे का खंडन करता है कि स्मृति में अलग-अलग उपतंत्र होते है इस दृष्टिकोण के  अनुसार किसी भी नयी सूचना का प्रक्रमण इस बात से संबंधित है कि उसका किस प्रकार से प्रत्यक्षण एवं विश्लेषण किया जा रहा है तथा उसे किस प्रकार से समझा जा रहा है। जानकारी को सफलतापूर्वक पुनःप्राप्त किया जाएगा या नहीं, यह इसके प्रक्रमण/प्रसंस्करण के स्तर पर निर्भर करता है। इसके तीन प्रमुख स्तर होते हैं:

  1. गहन प्रक्रमण (शब्दार्थ के आधार पर): सबसे गहन स्तर पर, हम सूचना के अर्थ पर ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, “बिल्ली” को एक जानवर के रूप में देखना, जिसके रोएं, चार पैर, और पूंछ होती है,और इसे अपने अनुभवों से जोड़ना। यह सबसे गहरा प्रक्रमण है और इससे स्मृति दीर्घकालिक और अधिक स्थिर होती है
  2. उथला प्रक्रमण (संरचनात्मक गुण): इस स्तर पर हम सूचना के भौतिक या संरचनात्मक गुणों पर ध्यान देते हैं, जैसे “बिल्ली” शब्द के अक्षर बड़े हैं या छोटे, या स्याही का रंग क्या है। यह सबसे सरल और सतही प्रक्रमण है, जिससे स्मृति कमजोर होती है और जल्दी क्षय हो जाती है।
  3. मध्य प्रक्रमण (धवन्यात्मक  गुण): इस स्तर पर हम शब्दों के ध्वनि या उच्चारण पर ध्यान देते हैं, जैसे “बिल्ली” शब्द के अक्षरों की ध्वनि। यह स्तर पहले की तुलना में बेहतर स्मृति बनाता है, लेकिन फिर भी यह अपेक्षाकृत नाजुक होती है।

इस मॉडल का मुख्य विचार यह है कि सूचना को जितना गहनता से समझा और अर्थ के आधार पर जोड़ा जाता है, उतनी ही अधिक संभावना होती है कि वह लंबे समय तक स्मृति में बनी रहेगी। इससे सीखने में यह महत्वपूर्ण होता है कि सामग्री का अर्थ समझा जाए न कि केवल उसे रटा जाए।

समग्र मॉडल : कार्यकारी स्मृति

समग्र मॉडल: कार्यकारी स्मृति (Working Memory) यह बताती है कि प्रारंभ में Atkinson और Shiffrin द्वारा प्रतिपादित अल्पकालिक स्मृति (STM) को केवल एक अस्थायी भंडार के रूप में देखा गया था। लेकिन बाद के अध्ययनों ने यह स्पष्ट किया कि STM केवल सूचना संग्रहण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संज्ञानात्मक कार्यों को पूरा करने के लिए सूचना के हेरफेर में भी शामिल है। 1974 में Baddeley और Hitch ने इस अवधारणा को विस्तारित करके कार्यकारी स्मृति (Working Memory) का मॉडल प्रस्तुत किया।कार्यकारी स्मृति को “सीमित क्षमता वाला एक तंत्र” कहा जाता है, जो जटिल कार्यों जैसे कि समझना, सीखना, और तर्क करने के लिए अस्थायी रूप से सूचना को संग्रहित और हेरफेर करता है। इस मॉडल के चार मुख्य घटक हैं:

प्रासंगिक ध्वनि बफर लूप (Episodic Buffer):
  • यह ध्वनि लूप, दृश्य विषयक स्केचपैड, और दीर्घकालिक स्मृति से प्राप्त जानकारी को जोड़कर एक एकीकृत एपिसोडिक प्रतिनिधित्व तैयार करता है। इस प्रकार, यह घटक हमें प्राप्त जानकारी को समझने में मदद करता है।
केंद्रीय कार्यकारी (Central Executive):
  • यह हमारे कार्यकारी स्मृति का नियंत्रण केंद्र है। यह ध्वनि लूप, दृश्य विषयक स्केचपैड और प्रासंगिक ध्वनि बफर लूप जैसे अधीनस्थ प्रणालियों के बीच संज्ञानात्मक संचालन का समन्वय और विनियमन करता है। यह भी तय करता है कि कौन सी जानकारी दीर्घकालिक स्मृति का हिस्सा बनेगी और कौन सी विलुप्त हो जाएगी।
ध्वनि लूप (Phonological Loop):
  • यह मौखिक और श्रवण जानकारी को संग्रहीत करता है। अगर जानकारी दोहराई नहीं जाती है, तो यह 2 सेकंड के भीतर समाप्त हो जाती है। इसके दो घटक हैं:
ध्वनिक भंडार (Phonological Store):
  • जो जानकारी को कुछ सेकंड के लिए संग्रहीत करता है।
कथनात्मक पुनरावृत्ति प्रक्रिया (Articulatory Rehearsal Process):
  • सूचना को पुनरावृत्त करके उसे भंडारण में बनाए रखता है।
दृश्य विषयक स्केचपैड (Visuospatial Sketchpad):
  • यह दृश्य और स्थानिक जानकारी को संग्रहित करता है, जैसे किसी कहानी को सुनते समय आपके मन में उत्पन्न छवि या पहेली हल करते समय दिखाई देने वाले चित्र।
अधिगम और अभिप्रेरणा

अत: कार्यकारी स्मृति केवल सूचना को संग्रहीत नहीं करती बल्कि उसे हेरफेर भी करती है ताकि संज्ञानात्मक कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके।

हममें से सबने लगभग प्रतिदिन विस्मरण एवं उसके परिणामों का अनुभव किया होगा। हम भूलते क्यों हैं? क्या जो सामग्री हमने दीर्घकालिक स्मृति में रखी थी वह खो गई? या हमने उसे अच्छी तरह से याद नहीं किया? या हमने सूचना का सही तरीके से कूट  संकेतन  नहीं किया? या भंडारण के  समय इसमें कुछ तोड़-मरोड़ हो गई और गलत स्थान पर संचित कर दी गई? विस्मरण को समझने के  लिए कई  सिद्दांत प्रतिपादित किए गए हैं 

  • हर्मन एबिंगहास ने विस्मरण के  स्वरूप को समझने के लिए सर्वप्रथम क्रमिक प्रयास किया। उन्होंने निरर्थक शब्दांशों की सूची ;जो व्यंजन-स्वर-व्यंजन अक्षरों से बना था तथा जिन्हें CVC ट्राईग्राम कहा गया जैसे NOK  SEP  इत्यादि को याद किया। उस सूची को भिन्न-भिन्न समयंतरालों पर पुनः याद किया तथा प्रत्येक बार प्रयासों की संख्या का मापन किया। उन्होंने पाया कि विस्मरण के  क्रम का एक निश्चित प्रारूप होता है,
अधिगम और अभिप्रेरणा

जैसा कि ग्राफ से प्रतीत होता है कि विस्मरण की दर प्रारंभिक 9 घंटों में, विशेषतः प्रारंभिक पहले घंटे में सबसे शायद है। उसक बाद गति धीमी हो जाती है तथा कई दिनों व बाद भी शायद नहीं भूला गया है। यद्यपि एंबिगहास के  प्रयोग प्रारंभिक अन्वेषण थे तथा बहुत परिष्कृत भी नहीं थे, तथापि स्मृति शोधों को इसने कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया है। अब यह सर्वसम्मति से माना जाता है कि शुरू में स्मृति में तीव्र हास होता है, उसके बाद अवनति बहुत क्रमिक और धीमी गति से होती है। विस्मरण की व्याख्या हेतु निम्नलिखित सिद्धांत प्रतिपादित किए गए है ।

विस्मरण के  कारण

चिन्ह हास के कारण विस्मरण – 

  • चिन्हाहास अनुपयोग का सिद्धांत भी कहलाता है विस्मरण का सर्वप्रथम सिद्धांत है। 
  • इसकी अवधारणा है कि अधिगम के कारण केद्रीय तंत्रिका तत्र में भौतिक तौर पर ‘स्मृति चिन्हों’ का निर्माण होता है। 
  • जब इन चिन्हों का लंबे समय तक उपयोग नहीं होता है, तो ये धूमिल हो जाते हैं और हमें प्राप्त नहीं होते हैं। 
  • इस प्रकार, इस सिद्धांत को रेखांकित करने वाला मंत्र “उपयोग करो या फिर भूल जाओ “ है , अर्थात, यदि आपने अपनी संग्रहीत जानकारी का उपयोग नियमित अंतराल पर नहीं किया तोे आपको इसे खोने का खतरा अधिक हो सकता है 
  • कई कारणों से यह सिद्धांत अपर्याप्त माना जाता है। यदि स्मृति अनुपयोग के  कारण स्मृति चिन्हों का हास होता है तो जो लोग याद करने के  बाद सो जाते हैं, उनमें जागने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक विस्मरण होना चाहिए क्योंकि निद्रा के दौरान स्मृति चिन्हों का उपयोग नहीं होता। परिणाम इसके  बिलकुल विपरीत पाए गए हैं। याद करने के  बाद जागने वालों में याद करने के  बाद सो जाने वालों की अपेक्षा अधिक विस्मरण पाया गया।
  •  चूँकि चिह्नहास का सिद्धांत  विस्मरण की पर्याप्त रूप से व्याख्या नहीं कर पाया, इसलिए शीघ्र ही एक नए सिद्धांत ने इसका स्थान ले लिया ।

अवरोध के कारण विस्मरण – 

  • इसके अनुसार स्मृति भंडार में संचित विभिन्न सामग्री के बीच अवरोध के कारण विस्मरण होता है।  यह अवरोध दो  प्रकार का हो सकता है 
  • अग्रगामी अवरोध –  पहले से सीखी गई जानकारी के हस्तक्षेप के कारण नई अधिग्रहीत सूचना का विस्मृति हो जाना।
  • पाश्चगामी अवरोध – नई जानकारी सीखने के कारण पहले से संग्रहीत जानकारी को विस्मृति कर जाना।

पुनरुद्धार असफलता के  कारण विस्मरण – 

  • विस्मरण न केवल एक समय के बाद स्मृति चिन्ह के हास या प्रत्याह्नान के  समय स्वतंत्रत रूप से संचित साहचर्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण होता है  बल्कि प्रत्याह्नान के  समय पुनरुद्धार के  संकेतकों  के अनुपस्थित रहने या अनुपयुक्त होने के कारण भी होता है। 
  • पुनरुद्धार के  संकेतक वे साधन हैं जो हमें स्मृति में संचित सूचनाओं को पुनः प्राप्त करने में मदद करते हैं। 
  • यह विचार टलविंग और उसके साथियों द्वारा प्रतिपादित किया गया था, जिन्होंने यह दिखाने के लिए कई प्रयोग किए कि स्मृति की सामग्री अक्सर हमें इसलिए नहीं प्राप्त होती, क्योंकि पुनरुद्धार के संकेतक प्रत्याह्नान के  समय या तो अनुपस्थित होते हैं या अनुपयुक्त।

प्रेरित विस्मरण

  • इसका प्रतिपादन सिग्मंड फ्रॉयड ने 20वीं सदी की शुरुआत में  किया।
  • तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें व्यक्ति अनजाने में या जानबूझकर उन यादों को दबा देता है जो दर्दनाक, दर्दनाक या असुविधाजनक हो सकती हैं। 
  • इसे एक रक्षा तंत्र के रूप में देखा जा सकता है, जो व्यक्तियों को परेशान करने वाले विचारों से निपटने में मदद करता है।

समेकन सिद्धांत – 

  • 1900 में जॉर्ज मुलर और अल्फोंस पिल्ज़ेकर द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत भूलने के शारीरिक पहलुओं पर आधारित है। 
  • यह सिद्धांत बताता है कि भूलने की प्रक्रिया स्मृति के समेकन (consolidation) से जुड़ी है। 
  • स्मृति समेकन तब होता है जब स्मृतियों को व्यवधानों से बचाकर स्थिर किया जाता है। 
  • एक बार जब स्मृति पूरी तरह से समेकित हो जाती है, तो वह भूलने के प्रति प्रतिरोधी बन जाती है, यानी उसे भूलना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार, स्मृति को स्थिर और मजबूत करने से इसे लंबे समय तक याद रखना संभव होता है।

संकूटन विफलता मॉडल – 

  • सूचना के खराब एनकोडिंग के कारण वह अल्पकालिक स्मृति (STM) में पहुंच जाती है तथा दीर्घकालिक स्मृति (LTM) तक नहीं पहुंच पाती।
  • इसके कई कारण हो सकते है, जैसे सूचना का सतही प्रसंस्करण, ध्यान की कमी, तनाव या चिंता इत्यादि।

स्मृति बढ़ाने के उपाय

  • गहन प्रक्रिया: यदि आप किसी जानकारी को दीर्घकालिक स्मृति में सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो आपको उसका अर्थ समझते हुए पूर्व सीखी हुई बातों से जोड़ना होगा। यह गहन अध्ययन स्मरणशक्ति को मजबूत करता है।
  • सावधानीपूर्वक ध्यान देना: अच्छी तरह से सीखने और दीर्घकालिक स्मृति में जानकारी सुरक्षित रखने के लिए सावधानीपूर्वक ध्यान देना आवश्यक है।
  • हस्तलिपि को काम करना: विस्मरण से बचने के लिए सीखी गई सामग्री को विभिन्न समानताओं के साथ पुनः प्रयोग करें और इसे नियमित रूप से दोहराएं।
  • विभाजित अभ्यास: लंबे पाठ को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट कर याद करें और बीच-बीच में आराम करें।
  • स्मृति सहायक का प्रयोग: याददाश्त को बेहतर बनाने के लिए दृश्य संकेतकों, सूचियों और प्रतीकात्मकता का प्रयोग करें।
  • गुप्त संक्षेप लिपि: लम्बी सूचियों को याद रखने के लिए पहले अक्षर से संक्षिप्त शब्द या वाक्यांश बनाएं।
अधिगम और अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा का संप्रत्यय इस बात पर फोकस करता है कि व्यवहार में ‘गति’ कैसे आती है। अंग्रेजी भाषा में ‘Motivation’ लैटिन शब्द ‘Movere’ से बना है, जिसका संदर्भ क्रियाकलाप की गति से है। “अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक आवश्यकता अथवा कमी के  साथ प्रारंभ होती है जो किसी व्यवहार अथवा प्रेरणा को उत्पन्न करती है जिसका उद्देश्य किसी लक्ष्य अथवा प्रोत्साहन की पूर्ति करना है।” — फ्रेड लुथांस

साधारण शब्दों में अभिप्रेरणा का आंकलन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि व्यक्ति किसी विशेष कार्य को करने, निर्णय लेने, या एक विकल्प को दूसरे पर चुनने के लिए किस कारण प्रेरित होते हैं। यह व्यक्ति की रुचियों, इच्छाओं, और पसंदों को समझने का एक तरीका है, ताकि यह जाना जा सके कि कौन-सी चीजें उन्हें विशिष्ट अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करती हैं।

अभिप्रेरणा का आंकलन के प्रमुख घटक

  1. व्यक्तिगत रुचियाँ: यह जानना कि व्यक्ति स्वाभाविक रूप से किस प्रकार की गतिविधियों, विषयों या कार्यों की ओर आकर्षित होते हैं।
  2. इच्छाएँ और पसंद: व्यक्ति के व्यक्तिगत लक्ष्य, आकांक्षाएँ, और जो चीजें वे मूल्यवान समझते हैं, उनकी पहचान करना, ताकि उनकी प्रेरणाओं को समझा जा सके।
  3. अपेक्षाओं के प्रति प्रतिबद्धता: प्रेरणा का मूल्यांकन इस बात पर आधारित होता है कि व्यक्ति अपने वातावरण में दी गई मांगों या अपेक्षाओं को किस हद तक पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।

प्रेरणा के प्रकार

  1. आंतरिक प्रेरणा (Intrinsic Motivation):
    जब कोई व्यक्ति किसी गतिविधि को उसकी आंतरिक संतुष्टि या आनंद के लिए करता है, जैसे कोई किताब पढ़ना क्योंकि उसे पढ़ने में आनंद आता है।
    • मूल्यांकन उपकरण: आंतरिक प्रेरणा को जानने के लिए रुचि इन्वेंटरी या व्यक्तिगत साक्षात्कार जैसे टूल्स का उपयोग किया जा सकता है।
  2. बाहरी प्रेरणा (Extrinsic Motivation):
    बाहरी कारक जैसे पुरस्कार, मान्यता, या दंड जो व्यक्ति के कार्यों को प्रभावित करते हैं, जैसे पदोन्नति या बोनस के लिए काम करना।
    • मूल्यांकन उपकरण: व्यवहार अवलोकन और स्व-रिपोर्ट्स द्वारा यह आकलन किया जा सकता है कि व्यक्ति बाहरी कारकों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।

अभिप्रेरणा सिद्धांत जो की आंकलन को समर्थन देते हैं

हमने इन सिद्धांतों को GS-1 प्रबंधन में विस्तार से पढ़ा है।

  1. मास्लो का आवश्यकताओं का पदानुक्रम (Maslow’s Hierarchy of Needs):
    इस सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति बुनियादी आवश्यकताओं (शारीरिक, सुरक्षा) से लेकर उच्च-स्तर की आवश्यकताओं (स्वयं की प्राप्ति) तक प्रेरित होते हैं। इस पदानुक्रम में व्यक्ति किस स्तर पर हैं, यह जानने से उनकी वर्तमान प्रेरणाओं का मूल्यांकन किया जा सकता है।
  2. हर्ज़बर्ग का दो-कारक सिद्धांत (Herzberg’s Two-Factor Theory):
    हर्ज़बर्ग ने आरोग्य  और अभिप्रेरक कारकों को अलग किया। कामकाजी स्थानों पर प्रेरणा मूल्यांकन के लिए इस सिद्धांत का उपयोग किया जा सकता है।
  3. स्वयं-निर्धारण सिद्धांत (Self-Determination Theory – SDT):
    यह सिद्धांत तीन मौलिक आवश्यकताओं: योग्यता, स्वायत्तता, और संबंधितता पर आधारित है। प्रेरणा मूल्यांकन से यह पता चलता है कि व्यक्ति की ये आवश्यकताएँ कितनी पूरी हो रही हैं और कैसे उनकी प्रेरणा को प्रभावित करती हैं।

प्रेरणा मूल्यांकन के तरीके:

  1. स्व-रिपोर्ट प्रश्नावली: मोटिवेशनल अप्रैज़ल ऑफ पर्सनल पोटेंशियल (MAPP) या वर्क प्रेफरेंस इन्वेंटरी (WPI) जैसे उपकरण व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी प्रेरणाओं का मूल्यांकन करते हैं।
  2. व्यवहार अवलोकन: यह देखना कि व्यक्ति किस प्रकार के कार्यों में संलग्न होते हैं, यह समझने में मदद करता है कि वे आंतरिक संतोष से प्रेरित हैं या बाहरी कारकों से।
  3. साक्षात्कार और चर्चाएँ: संरचित या अर्ध-संरचित साक्षात्कार के माध्यम से व्यक्ति के लक्ष्यों, इच्छाओं, और आकांक्षाओं को जानने में मदद मिलती है।
  4. प्रदर्शन कार्य: शिक्षा या कार्य स्थानों पर, विभिन्न प्रेरणात्मक स्थितियों में कार्य पूरा करने का विश्लेषण किया जा सकता है, ताकि व्यक्ति की प्रेरणाओं को समझा जा सके।

मनोविज्ञान में प्रासंगिकता: अभिप्रेरणा का आँकलन व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह निर्णय लेने, कार्यों में संलग्नता, और लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रमुख भूमिका निभाती है। इसका उपयोग शिक्षा, कार्यस्थलों, और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में होता है।

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