आधुनिक विपणन और व्यवसाय प्रबंधन

आज के प्रतिस्पर्धी व्यवसायिक माहौल में, विपणन और प्रबंधन की आधुनिक अवधारणाएँ लगातार विकसित हो रही हैं। विपणन मिश्रण (4P’s), आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, और प्रचालन तंत्र जैसे कारक किसी भी व्यवसाय की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही, ई-वाणिज्य और ई-विपणन ने डिजिटल युग में व्यापार के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है। नैतिक व्यापारिक आचरण और निगम आचारनीति एक संगठित और स्थायी व्यापार व्यवस्था की नींव रखते हैं।

इस अध्याय में, हम निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करेंगे:

विगत वर्षों में पूछे गये प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023उत्पाद पोर्टफोलियो की ‘गहराई’ से आपका क्या तात्पर्य है?2M
2021आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को परिभाषित कीजिए।2M
2021किसी भी दो चरणों की विशेषताओं के साथ उत्पाद जीवन चक्र (पी.एल.सी) की व्याख्या कीजिए।5M
2018संक्षेप में संधारणीय विपणन की व्याख्या कीजिए।2M
2016कीमत और मूल्य के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।2M
2016उत्पाद चौड़ाई को परिभाषित कीजिए।2M
2016प्रमुख संवर्धन मिश्रण साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।5M
2016 विशेष सेवा हेतु ‘विपणन मिश्रण’ में क्या समाहित है?5M
2016 विशेषउत्पाद जीवन चक्र के विभिन्न अवस्थाओं को समझाइए।5M

प्रबंधन को लक्ष्यों को प्रभावी और दक्षतापूर्वक प्राप्त करने के लिए, कार्यों को संपन्न करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है। 

  • परिभाषा – 3 महत्वपूर्ण भाग: (क) प्रक्रिया, (ख ) प्रभावशीलता, (ग) दक्षता 
    • प्रक्रिया : प्रक्रिया से तात्पर्य प्रबंधन के मुख्य कार्यों से है: योजना बनाना, संगठित करना, स्टाफिंग(कार्मिक प्रबंधन), निर्देशन और नियंत्रण।
    • प्रभावशीलता: प्रभावशीलता का अर्थ सही कार्य करना, गतिविधियों को पूरा करना और लक्ष्यों को प्राप्त करना है। यह अंतिम परिणाम पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • दक्षता : दक्षता का अर्थ है कार्यों को सही तरीके से और न्यूनतम लागत के साथ पूरा करना।

प्रभावशीलता बनाम दक्षता

  • प्रभावशीलता और दक्षता दोनों महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें संतुलित किया जाना चाहिए।
  • प्रबंधन का उद्देश्य लक्ष्यों (प्रभावशीलता) को न्यूनतम संसाधनों (दक्षता) के साथ प्राप्त करना है।
  • उच्च दक्षता से अक्सर उच्च प्रभावशीलता प्राप्त होती है, लेकिन प्रभावशीलता के बिना दक्षता पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करना आदर्श नहीं है।

प्रबंधन की विशेषताएँ

  • लक्ष्य-उन्मुख प्रक्रिया: प्रबंधन संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जो स्पष्ट और सरल होना चाहिए।
  • सर्वव्यापी: प्रबंधन गतिविधियाँ सभी प्रकार के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक संगठनों पर लागू होती हैं।
  • बहुआयामी:
  • कार्य: प्रबंधन लक्ष्यों को निर्धारित करता है और उन्हें प्राप्त करने के लिए संसाधनों का आवंटन करता है।
  • लोग:  इसमें व्यक्तियों और समूहों का प्रबंधन करना, उनकी शक्तियों को प्रभावी बनाना और उनकी कमजोरियों को अप्रासंगिक बनाना शामिल है।
  • संचालन: यह उत्पादन प्रक्रिया का प्रबंधन करता है, तथा इनपुट को वांछित आउटपुट में बदलता है।
  • निरंतर प्रक्रिया: प्रबंधन के कार्य निरंतर और परस्पर जुड़े हुए हैं, जिसमें योजना बनाना, संगठन करना, निर्देशन, स्टाफिंग, नियंत्रण इत्यादि शामिल है।
  • समूह गतिविधि: इसमें टीमवर्क और समन्वय की आवश्यकता होती है, जिससे व्यक्तिगत प्रयासों को समान लक्ष्यों की ओर संरेखित किया जा सके।
  • गतिशील कार्य: प्रबंधन को बदलते वातावरण के अनुसार अनुकूल होना पड़ता है।
  • अमूर्त शक्ति: प्रबंधन, हालाँकि अदृश्य है तथा इसकी प्रभावशीलता संगठन की सुचारू कार्यप्रणाली और कर्मचारियों की संतुष्टि के माध्यम से महसूस की जाती है। 

प्रबंधन के उद्देश्य: 

प्रबंधन के तीन मुख्य प्रकार के उद्देश्य होते हैं:

  1. संगठनात्मक उद्देश्य : हितधारकों के हितों पर विचार करते हुए अस्तित्व, लाभ और विकास जैसे आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करना।
  2. सामाजिक उद्देश्य: पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन, रोजगार सृजन और कर्मचारियों के लिए स्कूल और शिशु गृह जैसी सुविधाएं प्रदान करके समाज में योगदान देना।
  3. व्यक्तिगत उद्देश्य: कर्मचारियों के विविध व्यक्तिगत लक्ष्यों को संगठन के उद्देश्यों के साथ संरेखित करना, ताकि सामंजस्य बनाए रखा जा सके।

प्रबंधन का महत्त्व :

  1. समूह लक्ष्यों को प्राप्त करना।
  2. दक्षता में वृद्धि।
  3. एक गतिशील संगठन का निर्माण।
  4. व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता।
  5. सामाजिक विकास में योगदान।

प्रबंधन के कार्य:

  1. योजना बनाना :
  • इसमें पहले से लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए रणनीति बनाना शामिल है।
  • हालाँकि योजना समस्याओं को रोक नहीं सकती, लेकिन यह उन्हें पूर्वानुमानित कर सकती है और आकस्मिक योजनाएँ तैयार कर सकती है।
  1. संगठित करना :
  • कार्यों को सौंपना, कार्यों को समूहित करना, अधिकार स्थापित करना और योजना को लागू करने के लिए संसाधनों का आवंटन करना।
  1. स्टाफिंग(कार्मिक प्रबंधन)
  • सही लोगों को सही नौकरियों के लिए ढूँढना।
  • इसे मानव संसाधन कार्य भी कहा जाता है, जिसमें भर्ती, चयन, प्लेसमेंट और प्रशिक्षण शामिल हैं।
  1. निर्देशन :
  • कर्मचारियों को उनके कार्यों को करने के लिए नेतृत्व करना, प्रभावित करना और प्रेरित करना शामिल है।
  • इसके मुख्य घटक हैं प्रेरणा और नेतृत्त्व। प्रेरणा एक उत्पादक वातावरण बनाती है, जबकि नेतृत्व कर्मचारियों को इच्छित परिणाम प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है।
  • एक अच्छा प्रबंधक कर्मचारियों में सर्वश्रेष्ठ लाने के लिए प्रशंसा और रचनात्मक आलोचना का उपयोग करता है।
  1. नियंत्रण :
  • प्रदर्शन की निगरानी करना, ताकि संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके।
  • इसमें प्रदर्शन मानक निर्धारित करना, वास्तविक प्रदर्शन को मापना, मानकों के साथ इसकी तुलना करना और यदि आवश्यक हो तो सुधारात्मक कार्रवाई करना शामिल है।
  1. समन्वय: प्रबंधन का सार
  • समन्वय विभिन्न विभागों के बीच गतिविधियों को समन्वित करने की प्रक्रिया है।
  • यह सभी अन्य प्रबंधन कार्यों को एक साथ बाँधता है, जैसे कि खरीद, उत्पादन, बिक्री और वित्त में एक सहज कार्यप्रवाह सुनिश्चित करता है।
  • समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास एक सामान्य लक्ष्य की ओर संरेखित हों।

पारंपरिक विपणन दृष्टिकोण:

  • पारंपरिक रूप से विपणन को व्यापारिक गतिविधियों के समूह के रूप में देखा गया है, जो उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को निर्देशित करता हैं।

विपणन की आधुनिक अवधारणा : 

विपणन की आधुनिक अवधारणा सिर्फ़ उत्पाद या सेवाएँ बेचने से कहीं आगे है – यह ग्राहकों की ज़रूरतों को समझने, मूल्य बनाने, संबंध बनाने और सामाजिक ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह ग्राहक-उन्मुख, डेटा-संचालित और दीर्घकालिक सफलता पर केंद्रित है।

आधारविपणन की पारंपरिक अवधारणाविपणन की आधुनिक अवधारणा
ध्यान केंद्रितउत्पाद पर उपभोक्ता की जरूरतों पर
साधन (किस तरह )बिक्री को अधिकतम करकेसमन्वित विपणन के द्वारा 
लक्ष्य लाभ कमाना ग्राहक संतुष्टि से लाभ

विपणन की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:

आवश्यकताएँ और इच्छाएँ :
  • विपणक का काम लक्षित ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना और उन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उत्पाद या सेवाएँ विकसित करना है।
  • आवश्यकताएँ : अभाव की स्थिति जैसे भूख, जो लोगों को संतुष्टि की तलाश करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इच्छाएँ : संस्कृति, व्यक्तित्व और प्राथमिकताओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताएं, जैसे विशिष्ट खाद्य पदार्थों की इच्छा।
बाजार प्रस्ताव:
  • विपणक एक “बाजार प्रस्ताव” तैयार करते हैं, जो एक उत्पाद या सेवा के लिए पूर्ण प्रस्ताव होता है। इसमें आकार, गुणवत्ता, स्वाद, मूल्य और विशेष स्थान पर उपलब्धता जैसी विशेषताएँ शामिल होती हैं।
  • एक अच्छा बाजार प्रस्ताव संभावित खरीदारों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं का विश्लेषण करने के बाद तैयार किया जाता है।
ग्राहक मूल्य:
  • विपणन खरीदारों और विक्रेताओं के बीच उत्पादों और सेवाओं के आदान-प्रदान को सुगम बनाता है। खरीदार अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पाद या सेवा के मूल्य की धारणा के आधार पर निर्णय लेते हैं।
विनिमय तंत्र :
  • विपणन आदान-प्रदान तंत्र के माध्यम से कार्य करता है, जिसमें खरीदार और विक्रेता उत्पादों और सेवाओं का आदान-प्रदान पैसे या किसी मूल्यवान वस्तु के लिए करते हैं। विनिमय विपणन का सार है और इसके लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक होती हैं:
  • इसमें दो पक्ष शामिल हैं: क्रेता और विक्रेता।
  • मूल्य प्रस्ताव :प्रत्येक पक्ष कुछ मूल्यवान चीज़ प्रदान करता है (उदाहरण के लिए, विक्रेता कोई उत्पाद प्रदान करता है, खरीदार पैसे प्रदान करता है)।
  • सम्प्रेषण और वितरण : दोनों पक्षों को सम्प्रेषण और पेशकश को वितरित करने में सक्षम होना चाहिए।
  • विकल्प की स्वतंत्रता : दोनों पक्षों को प्रस्ताव स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • लेन-देन की इच्छा : लेन-देन स्वैच्छिक होता है, मजबूर नहीं।
व्यापार से परे विपणन (Marketing Beyond Business):
  • विपणन केवल व्यापार संगठनों तक सीमित नहीं है। यह गैर-लाभकारी संगठनों, जैसे- अस्पताल, स्कूल, खेल क्लब, और सामाजिक या धार्मिक संगठनों के लिए भी प्रासंगिक है।

विपणन प्रबंधन

  • फिलिप कोटलर की परिभाषा: विपणन प्रबंधन “लक्ष्य बाजारों को चुनने और बेहतर ग्राहक मूल्यों को बनाने, वितरित करने और संप्रेषित करने के माध्यम से ग्राहकों को प्राप्त करने, बनाए रखने और बढ़ाने की कला और विज्ञान है।”

प्रमुख प्रक्रियाएँ:

  1. लक्षित बाजार का चयन
  2. ग्राहकों को प्राप्त करना, बनाए रखना और बढ़ाना :
    • उत्पादों की मांग पैदा करने, ग्राहकों को संतुष्ट करने और फर्म के विकास को सुनिश्चित करने के लिए अधिक ग्राहकों को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  3. ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए श्रेष्ठ मूल्यों का निर्माण, उनका विकास और प्रभावी संप्रेषण करना।

विपणन प्रबंधन का दर्शनशास्त्र(Marketing Management Philosophies)

विपणन प्रबंधन दर्शन उन विभिन्न तरीकों को संदर्भित करता है जो व्यवसाय अपने विपणन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं । सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए एक संगठन को अपने विपणन प्रयासों के लिए एक मार्गदर्शक दर्शन का चयन करना चाहिए। यह दर्शन इस बात को प्रभावित करता है कि ध्यान उत्पाद की विशेषताओं, विक्रय तकनीकों, ग्राहकों की आवश्यकताओं या सामाजिक सरोकारों पर केन्द्रित है या नहीं।

आधुनिक विपणन अवधारणाओं का विकास 

उत्पादन अवधारणा :

  • ऐतिहासिक संदर्भ: यह औद्योगिक क्रांति के दौरान उभरी जब माँग आपूर्ति से अधिक थी।
  • मुख्य विचार: लागत कम करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, यह मानते हुए कि उपभोक्ता व्यापक रूप से उपलब्ध और किफ़ायती उत्पादों को पसंद करते हैं।
  • फोकस: उत्पादन और वितरण में दक्षता।

उत्पाद अवधारणा :

  • फोकस में बदलाव: जैसे-जैसे उत्पादन क्षमता बढ़ी, उपलब्धता की तुलना में गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण हो गई।
  • मुख्य विचार: निरंतर उत्पाद सुधार को प्राथमिकता देना, यह मानते हुए कि श्रेष्ठ गुणवत्ता से लाभ प्राप्त होगा।
  • फोकस: उत्पाद नवाचार और वृद्धि।

बिक्री अवधारणा:

  • बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा: बाजारों के संतृप्त होने पर कंपनियों को आक्रामक बिक्री तकनीकों की आवश्यकता होती है तथा केवल गुणवत्ता और उपलब्धता से बिक्री सुनिश्चित नहीं होती है।
  • मुख्य विचार: आक्रामक बिक्री (aggressive selling) और प्रचार-प्रसार प्रयासों में संलग्न होने की आवश्यकता है।
  • फोकस: विज्ञापन, व्यक्तिगत बिक्री और बिक्री प्रचार जैसी तकनीकों के माध्यम से बिक्री को बढ़ावा देने पर जोर देना।इस अवधारणा में ग्राहक संतुष्टि की तुलना में उत्पादों को बेचने पर अधिक ध्यान दिया गया।

विपणन अवधारणा:

  • ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण: दीर्घकालिक सफलता ग्राहक की आवश्यकताओं को पूरा करने से प्राप्त होती है।
  • मुख्य विचार: लक्षित ग्राहक की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करना, जिससे स्वाभाविक रूप से बिक्री और लाभ प्राप्त होते हैं।
  • फोकस: सभी निर्णयों के मूल में ग्राहक संतुष्टि। फर्म की भूमिका “आवश्यकता की पहचान करना और उसे पूरा करना” है।
  • विपणन अवधारणा निम्नलिखित स्तंभों पर आधारित है:
    1. लक्षित बाजार की पहचान करना।
    2. ग्राहक की आवश्यकताओं और इच्छाओं को समझना।
    3. उपयुक्त उत्पाद या सेवाओं का विकास करना।
    4. प्रतिस्पर्धियों से बेहतर तरीके से आवश्यकताओं को पूरा करना।
    5. यह सब लाभ के साथ करना।

सामाजिक विपणन अवधारणा :

  • ग्राहक संतुष्टि से परे: विपणन में सामाजिक कल्याण को शामिल करता है।
  • मुख्य विचार: ग्राहक की आवश्यकताओं को सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करना, जैसे पर्यावरण प्रदूषण का समाधान करना इत्यादि।
  • फोकस: ग्राहक संतुष्टि और दीर्घकालिक सामाजिक कल्याण; उपभोक्ता की आवश्यकताओं को सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करना है।

इस प्रकार सामाजिक विपणन अवधारणा विपणन अवधारणा का विस्तार है, जो समाज के दीर्घकालिक कल्याण की चिंता से पूरित है। ग्राहक संतुष्टि के अलावा, यह विपणन के सामाजिक, नैतिक और पारिस्थितिक पहलुओं पर ध्यान देता है।

विपणन के कार्य:

बाजार जानकारी का संग्रह और विश्लेषण:

विपणक ग्राहकों की जरूरतों को समझने, बाजार के अवसरों की पहचान करने और संगठन की ताकत और कमजोरियों का आकलन करने के लिए डेटा एकत्र और विश्लेषण करते हैं।

विपणन योजना :
  • इसमें उद्देश्य निर्धारित करना, उत्पादन की रणनीति बनाना और उत्पादों को बढ़ावा देना शामिल है।
उत्पाद डिज़ाइन और विकास :
  1. लक्षित ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए उत्पादों को डिजाइन करना और विकसित करना।
मानकीकरण और ग्रेडिंग:
  • मानकीकरण सुनिश्चित करता है कि उत्पाद विशिष्ट गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हो, जिससे एकरूपता और स्थिरता बनी रहती है।
  • ग्रेडिंग का मतलब गुणवत्ता या अन्य विशेषताओं के आधार पर उत्पादों का वर्गीकरण करना है, जो विशेष रूप से कृषि उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण है।
पैकेजिंग और लेबलिंग :
  • पैकेजिंग उत्पादों को सुरक्षा प्रदान करती है और एक प्रमोशनल टूल के रूप में कार्य करती है, जो ग्राहक की धारणा को प्रभावित करती है।
  • लेबलिंग उत्पाद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है, जो साधारण टैग से लेकर जटिल ग्राफिक्स तक हो सकती है।
ब्रांडिंग :
  • यह तय करना है कि उत्पादों को एक सामान्य या ब्रांड नाम के तहत बेचना है।
  • ब्रांडिंग से उत्पादों को प्रतिस्पर्धियों से अलग करने, ग्राहक निष्ठा बनाने और बिक्री को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
ग्राहक सहायता सेवाएँ :
  • बिक्री के बाद की सेवाएँ प्रदान करना, शिकायतों का निपटारा करना और ग्राहक संतुष्टि को अधिकतम करने और दोबारा बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
उत्पाद का मूल्य निर्धारण :
  • माँग और लाभप्रदता को संतुलित करने के लिए रणनीतिक रूप से उत्पाद की कीमतें निर्धारित करना। 
  • विपणक मूल्य निर्धारण रणनीतियों और उद्देश्यों का निर्धारण करते समय विभिन्न कारकों पर विचार करते हैं।
संवर्धन :
  • ग्राहकों को उत्पादों के बारे में सूचित करना और उन्हें विज्ञापन, व्यक्तिगत बिक्री, विज्ञापन और बिक्री संवर्धन के माध्यम से समझाना। 
  • निर्णय लेने में संवर्धन(प्रमोशन) बजट निर्धारित करना और सही संवर्द्धन मिश्रण का चयन करना शामिल है।
भौतिक वितरण:
  • उत्पादन से उपभोग तक उत्पादों के वितरण चैनलों और भौतिक आवागमन का प्रबंधन करना, जिसमें इन्वेंट्री प्रबंधन और परिवहन शामिल है।
परिवहन:
  • उत्पाद की प्रकृति, लागत और बाजार स्थान जैसे कारकों पर विचार करते हुए उत्पादन स्थलों से माल को विभिन्न स्थानों पर ले जाना, जहाँ उनका उपभोग किया जाता है।
भंडारण या वेयरहाउसिंग:
  1. विशेष रूप से मौसमी या अनियमित माँग वाले उत्पादों के लिए बाजार में स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उत्पादों का भंडारण करना।
  2. उचित भंडारण वितरण में देरी और माँग में उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद करता है।

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