पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन जीवविज्ञान का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें पादपों की आंतरिक संरचना, उनके पोषण की प्रक्रिया तथा वृद्धि को नियंत्रित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है। इसमें पादपों के प्रजनन के विभिन्न प्रकार और उनकी जीवन प्रक्रिया को समझना शामिल है।
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
| वर्ष | प्रश्न | अंक |
| 2016 | स्वपोषित पोषण को परिभाषित कीजिए । स्वपोषित पोषण के प्रकारों के नाम बताइए । | 2M |
| 2016 special | छत्र प्रजातियाँ (umbrella species) क्या हैं? छत्र प्रजाति का एक उदाहरण दें। | 2M |
| 2016 special | एक पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न पोषी स्तरों को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक पोषी स्तर के उचित उदाहरण दीजिए ? | 5M |
पादप भाग एवं उनके कार्य
पादप
- पादप बहुकोशिकीय, यूकेरियोटिक जीव हैं जो प्लांटी किंगडम से संबंधित हैं।
- ये प्रकाशसंश्लेषण की क्षमता द्वारा सूर्यप्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड और जल का उपयोग कर भोजन (ग्लूकोज) उत्पन्न करते हैं।
- ये स्वपोषी (ऑटोट्रॉफ़) होते हैं, अर्थात वे अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं, और आमतौर पर एक ही स्थान पर स्थिर (सैशिल) रहते हैं।
पादप भाग
1. जड़
- संरचना: प्राथमिक जड़ (नीचे की ओर बढ़ती है) एवं द्वितीयक जड़ें (शाखाओं में विभक्त) होती हैं।
- जड़ की नोक पर वृद्धि हेतु विभज्योतक (मेरिस्टेम) और सुरक्षा हेतु मूलीय टोपी (रूट कैप) पाई जाती है।
- जड़ प्रणाली के प्रकार:
- तंतुमूल (Fibrous Root): पतली, असंख्य जड़ें जो तने के आधार से निकलती हैं। उदाहरण: घास, गेहूँ, चावल।
- मूसला जड़ (Tap Root): एक मोटी मुख्य जड़ एवं उससे निकलने वाली छोटी शाखाएँ। उदाहरण: गाजर, मूली, चुकंदर।
- अपस्थानिक जड़ (Adventitious Root): तने या पत्ती जैसे अन्य भागों से उत्पन्न होने वाली जड़ें। उदाहरण: बांस, अनानास, मक्का।
- कार्य:
- आधार प्रदान करना: पौधे को मिट्टी में स्थिरता प्रदान करना।
- अवशोषण: मूल रोमों के माध्यम से जल एवं खनिज पदार्थों का अवशोषण।
- भंडारण: कार्बोहाइड्रेट्स (जैसे स्टार्च) का भंडारण।
- परिवहन: जाइलम के माध्यम से जल एवं पोषक तत्वों का ऊर्ध्वगामी संवहन।
- प्रजनन: कुछ पौधे रूपांतरित जड़ों जैसे प्रकंद (अदरक) या कंद (आलू) के माध्यम से प्रजनन करते हैं।
| जड़ रूपांतरण का प्रकार | कार्य | उदाहरण |
| संचयी जड़ें | भविष्य के उपयोग हेतु भोजन एवं जल का संचय करती हैं। | गाजर (फ्यूसीफॉर्म), शकरकंद (कंदमूल), चुकंदर (शंक्वाकार) |
| सहारा जड़ें | यांत्रिक सहायता एवं स्थिरता प्रदान करती हैं। | मक्का (सहारा जड़ें), बरगद (वायवीय जड़ें), गन्ना (अपस्थानिक जड़ें) |
| श्वसनीय जड़ें | जलमग्न वातावरण में गैस विनिमय (श्वसन) सुगम बनाती हैं। | मैंग्रोव (वायु मूल), सोनेराटिया |
| परजीवी जड़ें | पोषक पौधों से पोषक तत्व अवशोषित करती हैं | अमरबेल (कस्कुटा), मिसलटो |
2. तना
- संरचना: तनों में संवहनी बंडल (जाइलम एवं फ्लोएम), बाह्यत्वचा (एपिडर्मिस) तथा वल्कुट ऊतक (कोर्टेक्स टिश्यू) पाए जाते हैं।
- द्विबीजपत्री पौधों में संवहनी बंडल वलयाकार व्यवस्था में होते हैं, जबकि एकबीजपत्रियों में ये बिखरे हुए होते हैं।
- रूपांतरित तनों में प्रवर्धी (स्ट्रॉबेरी में कायिक प्रजनन हेतु), कंद (आलू में संचय हेतु) एवं कंटक (गुलाब में सुरक्षा हेतु) शामिल हैं।
- कार्य:
- आधार प्रदान करना: पत्तियों, पुष्पों एवं फलों को इष्टतम स्थिति में धारण करना।
- परिवहन: जाइलम: जल एवं खनिजों का संवहन।, फ्लोएम: शर्करा एवं पोषक तत्वों का संवहन।
- संचय (Storage): मृदूतकीय कोशिकाओं (पैरेन्काइमा सेल्स) में भोजन एवं जल का भंडारण।
- वृद्धि (Growth): शीर्षस्थ विभज्योतक ( जैसे एपिकल मेरिस्टेम) द्वारा लंबाई में वृद्धि।, पार्श्व विभज्योतक (जैसे वैस्कुलर कैम्बियम) द्वारा मोटाई में वृद्धि।
| तने के रूपांतरण का प्रकार | कार्य | उदाहरण |
| संचयी तने | भोजन एवं जल का संचय करते हैं | आलू (कंद), पत्तागोभी (कली), प्याज (शल्ककंद) |
| आरोही तने | पौधों को सहारे पर चढ़ने में मदद करते हैं | मटर (प्रतान), ककड़ी (प्रतान), आइवी (तना प्रतान) |
| प्रकाशसंश्लेषी तने | प्रकाशसंश्लेषण का कार्य करते हैं | नागफनी (चपटा तना), नागफनी (पैड), बुचर’स ब्रूम (हरा तना) |
| भूमिगत तने | भोजन संचय, कायिक प्रजनन या सहायता प्रदान करते हैं | अदरक (प्रकंद), हल्दी (प्रकंद), शकरकंद (कंद) |
| कंटकीय तने | शाकभक्षियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं | नींबू (कांटे), बोगनवेलिया (कांटे) |
3. पत्तियाँ
- संरचना: पत्तियों में बाह्यत्वचा (स्टोमेटा द्वारा गैस विनिमय), मध्योतक (प्रकाशसंश्लेषण का स्थल) तथा जाइलम एवं फ्लोएम युक्त शिराएँ होती हैं।
- कुछ पौधों में पत्तियाँ संचय (रसीली पत्तियाँ), सुरक्षा (नागफनी में काँटे) या आरोहण (मटर में प्रतान) हेतु रूपांतरित होती हैं।

- कार्य:
- प्रकाशसंश्लेषण: सूर्यप्रकाश, जल व CO₂ को ग्लूकोज व ऑक्सीजन में परिवर्तित करना।
- गैस विनिमय: स्टोमेटा द्वारा प्रकाशसंश्लेषण के दौरान गैसों का आदान-प्रदान।
- वाष्पोत्सर्जन: स्टोमेटा से जल का ह्रास, जड़ों से जल व पोषक तत्वों के चूषण में सहायक।
- संचय: रसीले पौधों की पत्तियाँ जल व कार्बोहाइड्रेट संचित करती हैं।
4. पुष्प
- संरचना: पुष्प में चार प्रमुख वर्तुल होते हैं: बाह्यदलपुंज (सेपल), दलपुंज (पंखुड़ियाँ), पुमंग (नर जननांग), जायांग (मादा जननांग)।
- कार्य:
- प्रजनन: जननांगों को आश्रय देना व परागण सुविधाजनक बनाना।
- आकर्षण: रंग, सुगंध व मकरंद द्वारा परागणकर्ताओं को आकर्षित करना।
- लैंगिक जनन: निषेचन द्वारा बीज उत्पादन, जिससे प्रजाति का आनुवंशिक निरंतरण सुनिश्चित होता है। ककड़ी जैसे एकलिंगी पुष्प अंत:परागण को सुविधाजनक बनाते हैं।
5. फल (Fruits)
- संरचना: फल पुष्प के निषेचित अंडाशय से विकसित होते हैं, जिसमें बीज एक मांसल या शुष्क बाह्य परत से घिरे होते हैं।
- बाह्य परत, जिसे फलभित्ति (पेरिकार्प) कहते हैं, तीन स्तरों में विभाजित होती है:
- बाह्यफलभित्ति (एक्सोकार्प): फल की बाहरी त्वचा
- मध्यफलभित्ति (मेसोकार्प): मांसल मध्य भाग (जैसे सेब का खाने योग्य भाग)
- अंत:फलभित्ति (एंडोकार्प): आंतरिक परत जो बीजों को घेरती है (जैसे आड़ू की गुठली)
- कार्य:
- बीज सुरक्षा: विकासशील बीजों को क्षति और शुष्कन से बचाना
- बीज प्रसार: जंतुओं द्वारा भक्षण (जैसे बेरी) या वायु/जल द्वारा प्रसार में सहायता
- पोषण आपूर्ति: बीज विकास और प्रसार हेतु शर्करा व पोषक तत्व प्रदान करना
6. बीज
- संरचना:
- भ्रूण (एम्ब्रियो): युवा पौधा, जिसमें मूलांकुर (भविष्य की जड़), अधोभ्रूण (तना) और ऊपरीभ्रूण (भविष्य की पत्तियाँ) शामिल हैं
- बीजपत्र (कॉटिलिडन्स): भ्रूण हेतु पोषक तत्व संचित करने वाली पत्तियाँ
- बीजावरण (सीड कोट): सुरक्षात्मक बाह्य परत
- भ्रूणपोष (एंडोस्पर्म): कुछ बीजों में पाया जाने वाला पोषक ऊतक
- रूपांतरित बीजों में शामिल हैं पंखयुक्त बीज (जैसे मेपल, जो हवा द्वारा प्रसार में मदद करते हैं) और कंटकित बीज (जैसे बर्डॉक, जो जानवरों से चिपककर प्रसारित होते हैं)।
- कार्य:
- प्रजनन: मुख्य प्रजनन इकाई के रूप में कार्य करना, जिसमें नए पौधे के विकास के लिए आनुवंशिक सामग्री होती है।
- प्रसुप्ति: प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए निष्क्रिय अवस्था में रहना और अनुकूल वातावरणीय परिस्थितियों में अंकुरित होना।
- प्रसार: वायु, जल या जंतुओं द्वारा नए क्षेत्रों में फैलकर पौधे को विस्तार करने में सहायता करना।
- पोषक संचय: बीजपत्र या भ्रूणपोष द्वारा अंकुरण के लिए ऊर्जा का संग्रह करना।
7. कलिकाएँ (Buds)
- संरचना: कलिकाएँ संघनित, अविकसित प्ररोह होती हैं जो तनों के शीर्ष (शीर्षस्थ कलिकाएँ) या पत्ती कक्षों (पार्श्व कलिकाएँ) में पाई जाती हैं। इनमें अविकसित पत्तियाँ या पुष्प होते हैं जो रक्षी पपड़ियों द्वारा सुरक्षित रहते हैं।
- रूपांतरित कलिकाएँ वर्धी कलिकाएँ (जो नए प्ररोह उत्पन्न करती हैं) और पुष्प कलिकाएँ (जो पुष्पों में विकसित होती हैं) शामिल हैं।
- कार्य:
- वृद्धि: शीर्षस्थ कलिकाएँ तने की लंबाई बढ़ाती हैं, जबकि पार्श्व कलिकाएँ शाखाओं या पुष्पों को जन्म देती हैं।
- प्रजनन: कलिकाएँ पुष्पों या फलों में विकसित होकर लैंगिक प्रजनन में सहायता करती हैं।
- सुरक्षा: कलिकाएँ रक्षी पपड़ियों में संलग्न होती हैं जो विकासशील ऊतकों को पर्यावरणीय दबावों से बचाती हैं।
8. जाइलम (Xylem)
- संरचना: जाइलम में मृत, विशिष्ट कोशिकाएँ (जैसे ट्रैकीड्स और वेसल एलिमेंट्स) होती हैं, जो जल और खनिजों के परिवहन के लिए खोखली नलिकाएँ बनाती हैं। इसमें संरचनात्मक सहायता के लिए जाइलम तंतु और भंडारण के लिए मृदूतक (पैरेन्काइमा) भी शामिल होते हैं।
- रूपांतरित जाइलम में वृक्षों की लकड़ी शामिल है, जहाँ जाइलम यांत्रिक सहायता प्रदान करता है।
- कार्य:
- जल परिवहन: जाइलम केशिका क्रिया और वाष्पोत्सर्जन-संसंजन-तनाव तंत्र द्वारा जड़ों से पत्तियों तक जल और घुलित खनिजों का संवहन करता है।
- सहायता: जाइलम कोशिका भित्तियों में उपस्थित लिग्निन पौधे को संरचनात्मक सहायता प्रदान करता है।
- संचय: कुछ पौधे जाइलम में जल और पोषक तत्वों का भंडारण करते हैं।
9. फ्लोएम (Phloem)
- संरचना: फ्लोएम में चालनी नलिका तत्व होते हैं जो सतत नलिकाएँ बनाते हैं, साथ ही सहचर कोशिकाएँ होती हैं जो शर्करा के भारण और उतारने में सहायता करती हैं।
- फ्लोएम में भंडारण और सहायता के लिए फ्लोएम तंतु और मृदूतक (पैरेन्काइमा) भी शामिल होते हैं।
- रूपांतरित फ्लोएम में फ्लोएम मृदूतक शामिल हो सकता है, जो शर्करा और पोषक तत्वों के भंडारण के लिए विशिष्ट होता है।

- कार्य:
- शर्करा परिवहन: फ्लोएम शर्करा (मुख्यतः सुक्रोज) को पत्तियों (जहाँ इनका उत्पादन होता है) से पौधे के अन्य भागों (जैसे जड़, तना, पुष्प) तक भंडारण या ऊर्जा उपयोग के लिए ले जाता है।
- पोषक वितरण: पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक हार्मोन्स, अमीनो अम्ल और अन्य कार्बनिक यौगिकों का वितरण करता है।
- वृद्धि नियमन: ऑक्सिन जैसे वृद्धि नियामकों का परिवहन करता है जो पौधे के विकास और उद्दीपनों के प्रति प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
पादपों के प्रकार
- असंवहनी पादप (ब्रायोफाइट्स):
- उदाहरण: काई, लिवरवर्ट्स, हॉर्नवर्ट्स।
- संवहनी ऊतक (जाइलम और फ्लोएम) का अभाव, ये छोटे होते हैं, नम वातावरण की आवश्यकता होती है, और जल व पोषक तत्वों के संचलन के लिए विसरण पर निर्भर करते हैं।
- संवहनी पादप (ट्रेकियोफाइट्स):
- बीजरहित संवहनी पादप: उदाहरण में फर्न और हॉर्सटेल शामिल हैं। इनमें संवहनी ऊतक होते हैं लेकिन बीजाणुओं द्वारा प्रजनन करते हैं, बीजों द्वारा नहीं।
- बीजीय पादप: इनमें जिम्नोस्पर्म (जैसे शंकुधारी) और एंजियोस्पर्म (पुष्पीय पादप) शामिल हैं। बीजीय पादपों में संवहनी ऊतक होते हैं और बीज उत्पन्न करते हैं।
- एंजियोस्पर्म (पुष्पीय पादप):
- एंजियोस्पर्म पादपों का सबसे विविध समूह है, जिसकी विशेषता पुष्पों और फलों के भीतर संलग्न बीजों की उपस्थिति है। उदाहरणों में वृक्ष, झाड़ियाँ और घास शामिल हैं।
- एंजियोस्पर्म दो समूहों में विभाजित हैं:
- एकबीजपत्री: एक बीजपत्र (बीज पत्र), समानांतर शिरावाले पत्ते (जैसे घास, लिली)।
- द्विबीजपत्री: दो बीजपत्र, शाखान्वित शिरावाले पत्ते (जैसे गुलाब, सूरजमुखी)।
- जिम्नोस्पर्म (अपुष्पी बीजीय पादप):
- उदाहरणों में शंकुधारी (चीड़, फर) और साइकैड शामिल हैं।
- जिम्नोस्पर्म ऐसे बीज उत्पन्न करते हैं जो खुले होते हैं, फल में संलग्न नहीं होते, और आमतौर पर सुई जैसी पत्तियाँ होती हैं।
पादप पोषण
1. पादपों में स्वपोषी पोषण
पादप सरल पदार्थों (जैसे जल, कार्बन डाइऑक्साइड और खनिज) से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इन्हें स्वपोषी कहा जाता है। उदाहरण: हरे पादप, वृक्ष, घास।
प्रकाशसंश्लेषण — पादप भोजन कैसे बनाते हैं
- पत्तियाँ भोजन कारखाने के रूप में: पत्तियाँ वह मुख्य स्थान हैं जहाँ पादप भोजन बनाते हैं।
- कच्चे माल:
- जल और खनिज: जड़ों द्वारा अवशोषित कर पत्तियों तक पहुँचाए जाते हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड: पत्तियों पर स्थित सूक्ष्म रंध्रों (स्टोमेटा) द्वारा वायु से अवशोषित किया जाता है।
- क्लोरोफिल: पत्तियों में उपस्थित हरा वर्णक जो सूर्यप्रकाश को अवशोषित कर भोजन बनाने में सहायता करता है।
- प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया: सूर्यप्रकाश की उपस्थिति में, क्लोरोफिल कार्बन डाइऑक्साइड और जल को कार्बोहाइड्रेट (भोजन) में परिवर्तित करता है, जिससे ऑक्सीजन एक उपोत्पाद के रूप में निकलती है।
- कच्चे माल:

- महत्व: प्रकाशसंश्लेषण वह प्रक्रिया है जो भोजन और ऑक्सीजन उत्पन्न करती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक है। इसके बिना, जीवन संभव नहीं होता।
प्रकाशसंश्लेषण के चरण
1. प्रकाश-निर्भर अभिक्रियाएँ (प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया)
- स्थान: हरितलवक (क्लोरोप्लास्ट) के थायलेकॉइड झिल्ली में
- क्या होता है:
- क्लोरोफिल द्वारा सूर्यप्रकाश का अवशोषण
- जल का विघटन होकर ऑक्सीजन मुक्त होती है
- एटीपी और एनएडीपीएच (ऊर्जा अणु) का निर्माण
2. प्रकाश-स्वतंत्र अभिक्रियाएँ/अंधकार रासायनिक अभिक्रिया (केल्विन चक्र)
- स्थान: हरितलवक के स्ट्रोमा में
- क्या होता है:
- कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर शर्करा का निर्माण
- पहली अवस्था से प्राप्त एटीपी और एनएडीपीएच कार्बन डाइऑक्साइड को ग्लूकोज (पादप का भोजन) में परिवर्तित करते हैं

अन्य पादप पोषक तत्व
- कार्बोहाइड्रेट: पादप प्रकाशसंश्लेषण के दौरान कार्बोहाइड्रेट (कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से निर्मित) उत्पन्न करते हैं।
- प्रोटीन एवं वसा: पादपों को प्रोटीन संश्लेषण हेतु नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। वे मृदा से नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं, जिसमें विशेष जीवाणु (जैसे राइजोबियम) सहायक होते हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को उपयोगी रूप में परिवर्तित करते हैं।
- उर्वरक: कृषक नाइट्रोजन जैसे अतिरिक्त पोषक तत्व प्रदान करने हेतु उर्वरकों का प्रयोग करते हैं।
- उदाहरण: मटर एवं सेम (दलहनी पादप) जिनकी जड़ों में राइजोबियम जीवाणु वायु से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं।
2. विषमपोषी पोषण
- परजीवी पादप: कुछ पादप, जैसे अमरबेल (कस्कुटा), में हरितलवक का अभाव होता है और वे स्वपोषी नहीं होते। ये अन्य पादपों (पोषक पादप) से पोषक तत्व अवशोषित करते हैं।
उदाहरण: वृक्ष के तने पर आवृत अमरबेल; फीताकृमि। - कीटभक्षी पादप: घटपर्णी जैसे पादप नाइट्रोजन की कमी वाली मृदा में अतिरिक्त पोषण हेतु कीटों का भक्षण करते हैं।
उदाहरण: घटपर्णी के रूपांतरित पर्ण; सनड्यू, वीनस फ्लाईट्रैप। - मृतोपजीवी पोषण:
- कवक (मशरूम एवं फफूंद) मृत एवं अपघटित कार्बनिक पदार्थों से पोषण प्राप्त करते हैं।
- उदाहरण: रोटी पर उगने वाली फफूंद; सड़ी लकड़ी पर कवक; भूत पादप।
- सहजीवी पोषण:
- लाइकेन: शैवाल (भोजन उत्पादक) एवं कवक (आवास एवं खनिज प्रदाता) का सहजीवी संबंध।
- दलहनी पादप → राइजोबियम जीवाणु
मृदा में पोषक तत्वों की पुनःपूर्ति
- खाद एवं उर्वरक: किसान मृदा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों को वापस जोड़ने के लिए खाद और उर्वरकों का उपयोग करते हैं।
- राइजोबियम जीवाणु: ये जीवाणु दलहनी पौधों (जैसे मटर, सेम) की जड़ों में रहते हैं और वायु से नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करने में मदद करते हैं। बदले में, पौधा जीवाणुओं को भोजन प्रदान करता है।
- महत्व: यह संबंध मृदा में अतिरिक्त नाइट्रोजन उर्वरकों की आवश्यकता को कम करता है।
पादप पोषक तत्व
1. वृहत् पोषक तत्व (Macronutrients)
वृहत् पोषक तत्व वे तत्व हैं जिनकी पौधों को स्वस्थ वृद्धि और विकास के लिए अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इनमें प्राथमिक और द्वितीयक वृहत् पोषक तत्व शामिल हैं।
- प्राथमिक वृहत् पोषक तत्व: नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटैशियम (K)
- द्वितीयक वृहत् पोषक तत्व: कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), सल्फर (S)
2. सूक्ष्म पोषक तत्व (Trace Elements/Micronutrients)
सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता बहुत कम मात्रा में होती है, लेकिन ये पादप स्वास्थ्य के लिए समान रूप से आवश्यक हैं। ये तत्व मुख्य रूप से एंजाइम कार्य, हार्मोन उत्पादन और अन्य चयापचय प्रक्रियाओं में शामिल होते हैं।
- सूक्ष्म पोषक तत्व: आयरन (Fe), मैंगनीज (Mn), जिंक (Zn), कॉपर (Cu), बोरॉन (B), मॉलिब्डेनम (Mo), क्लोरीन (Cl)
पोषक तत्वों का अवशोषण एवं परिवहन
पौधे पोषक तत्वों को जड़ प्रणाली के माध्यम से अवशोषित करते हैं, जिसमें सक्रिय परिवहन (ऊर्जा की आवश्यकता होती है) और निष्क्रिय परिवहन (ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती) दोनों शामिल हैं। पोषक तत्वों का अवशोषण अक्सर मृदा में उनकी सांद्रता, जड़ों की उन्हें परिवहन करने की क्षमता और पोषक तत्व के प्रकार पर निर्भर करता है।
- जाइलम: जड़ों से पौधे के अन्य भागों में जल और खनिज पोषक तत्वों का परिवहन करता है।
- फ्लोएम: पत्तियों से पौधे के अन्य भागों में शर्करा और अन्य कार्बनिक यौगिकों का परिवहन करता ह
| पोषक तत्व | कार्य | स्रोत | कमी के लक्षण |
| वृहत् पोषक तत्व | |||
| नाइट्रोजन (N) | अमीनो अम्ल, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल और क्लोरोफिल के मुख्य घटक। वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देता है। | मृदा से नाइट्रेट (NO₃⁻) या अमोनियम (NH₄⁺) आयन; यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट जैसे उर्वरक | पुरानी पत्तियों का पीलापन (क्लोरोसिस), अवरुद्ध वृद्धि और फलों का खराब विकास |
| फॉस्फोरस (P) | एटीपी, न्यूक्लिक अम्ल, जड़ विकास, पुष्पन और बीज उत्पादन के लिए आवश्यक | मृदा से फॉस्फेट आयन (PO₄³⁻); सुपरफॉस्फेट और अस्थि चूर्ण जैसे उर्वरक | पत्तियों का गहरा हरा या बैंगनी होना, जड़ों का खराब विकास, कम पुष्पन/फलन |
| पोटैशियम (K) | जल विनियमन, रंध्र खुलने, प्रकाशसंश्लेषण और एंजाइम सक्रियण में भूमिका | मृदा से पोटैशियम आयन (K⁺); पोटैशियम क्लोराइड और पोटैशियम सल्फेट जैसे उर्वरक | पत्तियों के किनारों का पीलापन, परिगलन, कमजोर तने और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी |
| कैल्शियम (Ca) | कोशिका भित्ति संरचना, कोशिका विभाजन और वृद्धि नियमन के लिए महत्वपूर्ण | मृदा से कैल्शियम आयन (Ca²⁺); चूना या जिप्सम | जड़ों का खराब विकास, युवा पत्तियों में शीर्ष जलन, प्ररोहों में विकृत वृद्धि |
| मैग्नीशियम (Mg) | क्लोरोफिल का केंद्रीय परमाणु, प्रकाशसंश्लेषण, एंजाइम सक्रियण और प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका | मृदा से मैग्नीशियम आयन (Mg²⁺); मैग्नीशियम सल्फेट या डोलोमाइटिक चूना जैसे उर्वरक | पत्तियों की शिराओं के बीच पीलापन (अंत:शिरा क्लोरोसिस), अवरुद्ध वृद्धि और पत्तियों का कुंचन |
| सल्फर (S) | अमीनो अम्ल, प्रोटीन और विटामिन के संश्लेषण के लिए आवश्यक | मृदा से सल्फेट आयन (SO₄²⁻); जिप्सम या तत्वीय सल्फर जैसे उर्वरक | युवा पत्तियों का पीलापन, अवरुद्ध वृद्धि और फल/बीज का खराब उत्पादन |
| सूक्ष्म पोषक तत्व | |||
| आयरन (Fe) | क्लोरोफिल निर्माण, इलेक्ट्रॉन परिवहन और श्वसन के लिए आवश्यक | मृदा से फेरस (Fe²⁺) या फेरिक (Fe³⁺) आयन | युवा पत्तियों में अंत:शिरा क्लोरोसिस (विशेषकर क्षारीय मृदा में) |
| मैंगनीज (Mn) | प्रकाशसंश्लेषण (जल-विभाजन), नाइट्रोजन चयापचय और एंजाइम सक्रियण में भूमिका | मृदा से मैंगनीज आयन (Mn²⁺) | पत्तियों पर धब्बेदार विवर्णन, अवरुद्ध वृद्धि और क्लोरोफिल का कम उत्पादन |
| जिंक (Zn) | प्रोटीन संश्लेषण, एंजाइम सक्रियण और ऑक्सिन संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण | मृदा से जिंक आयन (Zn²⁺); जिंक सल्फेट जैसे उर्वरक | पौधों का बौनापन, छोटे अंतरपर्व, छोटी पत्तियाँ और कम पुष्पन/फलन |
| कॉपर (Cu) | इलेक्ट्रॉन परिवहन, ऑक्सीकरण अभिक्रियाएँ और लिग्निन संश्लेषण में भूमिका | मृदा से कॉपर आयन (Cu²⁺) | पत्तियों का मुरझाना, बढ़ते शीर्षों का मरना और क्लोरोसिस |
| बोरॉन (B) | कोशिका भित्ति निर्माण, पराग अंकुरण और कार्बोहाइड्रेट परिवहन में भूमिका | मृदा से बोरेट आयन (B(OH)₄⁻) | बढ़ते शीर्षों का मरना, खराब फल बंधन और विकृत पत्तियाँ |
| मॉलिब्डेनम (Mo) | नाइट्रेट अपचयन और नाइट्रोजन चयापचय के लिए आवश्यक | मृदा से मॉलिब्डेट आयन (MoO₄²⁻) | पुरानी पत्तियों का पीलापन, नाइट्रोजन का खराब उपयोग (विशेषकर दलहनी फसलों में) |
| क्लोरीन (Cl) | परासरण नियमन, रंध्र कार्य और प्रकाशसंश्लेषण (जल-विभाजन) में भूमिका | मृदा से क्लोराइड आयन (Cl⁻) | मुरझाना, क्लोरोसिस और पत्तियों का गिरना |
पादप वृद्धि नियंत्रक (Plant Growth Regulators – PGRs)
- पादप वृद्धि नियंत्रक (PGRs) पादप वृद्धि, विकास और पर्यावरणीय उद्दीपनों के प्रति प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले महत्वपूर्ण यौगिक हैं।
- ये पदार्थ वृद्धि प्रवर्तक (वृद्धि को बढ़ावा देने वाले) और वृद्धि अवरोधक (वृद्धि प्रक्रियाओं को नियंत्रित या रोकने वाले) में विभाजित किए जाते हैं।
वृद्धि प्रवर्तक (Growth Promoters)
ये PGRs कोशिका विभाजन, कोशिका दीर्घीकरण और विभेदन जैसी विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर पादप वृद्धि और विकास को बढ़ावा देते हैं।
1. ऑक्सिन (वृद्धि प्रवर्तक)
- कार्य:
- कोशिका दीर्घीकरण: तनों और जड़ों में लंबाई बढ़ाना
- जड़ प्रारंभन: विशेष रूप से कलमों में जड़ वृद्धि को प्रोत्साहित करना
- शीर्षस्थ प्रभुत्व: पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि को रोककर ऊर्ध्वाधर वृद्धि को बढ़ावा देना
- प्रकाशानुवर्तन एवं गुरुत्वानुवर्तन: पौधे को प्रकाश और गुरुत्वाकर्षण के प्रति प्रतिक्रिया करने में मदद करना
- संवहनी विभेदन: जाइलम और फ्लोएम के निर्माण में सहायता करना
- उदाहरण:
- इंडोल-3-एसिटिक अम्ल (IAA): प्राकृतिक ऑक्सिन
- नैफ्थलीनएसिटिक अम्ल (NAA): संश्लेषित ऑक्सिन
- उपयोग:
- जड़ विकास हार्मोन: कलमों के लिए
- खरपतवार नियंत्रण: 2,4-D जैसे शाकनाशी
2. साइटोकाइनिन (वृद्धि प्रवर्तक)
- कार्य:
- कोशिका विभाजन: विभज्योतक में विभाजन को प्रोत्साहित करता है
- पार्श्व कलिका वृद्धि: शाखाओं और झाड़ीदार वृद्धि को बढ़ावा देता है
- पर्णजरा: पत्तियों के बूढ़े होने को विलंबित करता है और क्लोरोफिल को बनाए रखता है
- प्ररोह निर्माण: नए प्ररोहों को उत्तेजित करता है, विशेषकर जब ऑक्सिन का स्तर कम हो
- हरितलवक विकास: क्लोरोफिल संश्लेषण में सहायता करता है
- उदाहरण:
- जिएटिन: प्राकृतिक साइटोकाइनिन
- बेंजिलएमिनोप्यूरीन (BAP): संश्लेषित साइटोकाइनिन
- उपयोग:
- ऊतक संवर्धन: कोशिका विभाजन और प्ररोह निर्माण को बढ़ावा देता है
- पत्तियों के बूढ़े होने को विलंबित करता है
3. जिबरेलिन्स (वृद्धि प्रवर्धक)
- कार्य:
- तना दीर्घीकरण: पादप की ऊँचाई में वृद्धि को प्रोत्साहित करता है।
- बीज अंकुरण: बीज प्रसुप्ति को तोड़ता है एवं एंजाइम सक्रियता को उत्तेजित करता है।
- पुष्पन: कुछ पादपों में पुष्पन को प्रेरित करता है।
- फल वृद्धि: अंगूर एवं आड़ू जैसे फलों के आकार को बढ़ाता है।
- बीजरहित फल: बीजरहित फलों के उत्पादन में प्रयुक्त होता है।
- उदाहरण: जिबरेलिक अम्ल (GA₃): सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला जिबरेलिन।
- प्रयोग:
- फल विस्तारण: फल के आकार को बढ़ाता है।
- बीज अंकुरण: बीज प्रसुप्ति को समाप्त करता है।
- पुष्पन: विशिष्ट पादपों में पुष्पन को प्रवर्धित करता है।
4. ब्रैसिनोस्टेरॉइड्स (वृद्धि प्रवर्धक)
- कार्य:
- कोशिका दीर्घीकरण एवं विभाजन: समग्र पादप वृद्धि में योगदान करता है।
- तनाव प्रतिरोध: सूखा, शीत एवं लवणता सहनशीलता बढ़ाता है।
- मूल वृद्धि: पोषक तत्व अवशोषण हेतु मूल विकास में सुधार करता है।
- संवहनी विभेदन: जल एवं पोषक परिवहन को उन्नत करता है।
- उदाहरण:
- ब्रैसिनोलाइड: सक्रिय ब्रैसिनोस्टेरॉइड।
- एपिब्रैसिनोलाइड: संश्लेषित रूप।
- प्रयोग:
- फसल उत्पादन वृद्धि: चावल एवं गेहूं जैसी फसलों में उपज बढ़ाता है।
- तनाव सहनशीलता: पर्यावरणीय तनाव के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
5. जैस्मोनिक अम्ल (वृद्धि प्रवर्धक)
- कार्य:
- सुरक्षा तंत्र: शाकाहारी जीवों एवं रोगजनकों के आक्रमण के प्रति प्रतिक्रियाएँ सक्रिय करता है।
- पुष्पन एवं फल पकन: इन प्रक्रियाओं हेतु जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है।
- घाव भरना: क्षति के पश्चात ऊतक मरम्मत में सहायक होता है।
- उदाहरण:
- जैस्मोनिक अम्ल (JA): प्राकृतिक रूप।
- मेथिल जैस्मोनेट: शोध एवं वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में प्रयुक्त।
- प्रयोग:
- पादप सुरक्षा: कीटों एवं रोगों के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाता है।
- द्वितीयक उपापचयी उत्पादन: फार्मास्यूटिकल्स एवं रसायनों हेतु।
वृद्धि निरोधक
वृद्धि निरोधक, कोशिका दीर्घीकरण, अंकुरण, मूल निर्माण, पुष्पन तथा वार्धक्य जैसी विशिष्ट वृद्धि प्रक्रियाओं को दबाकर अत्यधिक वृद्धि को नियंत्रित या कम करते हैं।
1. एब्सिसिक अम्ल (ABA) (वृद्धि निरोधक)
- कार्य:
- बीज प्रसुप्ति: प्रतिकूल परिस्थितियों में भोजन संचलन हेतु आवश्यक एंजाइमों को अवरुद्ध कर बीज अंकुरण रोकता है।
- रंध्र बंदन: जल संकट के दौरान रंध्रों के बंद होने को प्रेरित कर नमी संरक्षण करता है।
- पर्ण वार्धक्य: क्लोरोफिल का विघटन कर पत्तियों के वृद्धावस्था एवं झड़ने को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: एब्सिसिक अम्ल (ABA): इन प्रक्रियाओं हेतु प्राथमिक निरोधक।
- प्रयोग:
- बीज प्रसुप्ति: नियंत्रित कृषि हेतु समय से पूर्व बीज अंकुरण रोकता है।
- सूखा सहनशीलता: जल संकट प्रबंधन एवं वाष्पोत्सर्जन कम करने हेतु फसलों पर प्रयुक्त।
2. एथिलीन (वृद्धि निरोधक एवं प्रवर्धक)
- कार्य:
- फल पकन: केले एवं टमाटर जैसे क्लाइमैक्टेरिक फलों में कोशिका भित्ति एवं शर्करा के विघटन को उत्तेजित कर पकने की प्रक्रिया तीव्र करता है।
- पर्ण वार्धक्य एवं विच्छेदन: पत्तियों, पुष्पों एवं फलों के वृद्धावस्था एवं झड़ने को प्रेरित करता है।
- दीर्घीकरण निरोध: उच्च सांद्रता में एथिलीन तनों के दीर्घीकरण को रोक सकता है, विशेषकर तनावग्रस्त अंकुरों एवं युवा पादपों में।
- उदाहरण: एथिलीन (C₂H₄): एक गैसीय पादप हार्मोन।
- प्रयोग:
- पकन कक्ष: केले, टमाटर एवं एवोकाडो जैसे फलों में एकसमान पकन को प्रेरित करने हेतु प्रयुक्त।
- पुष्पन नियंत्रण: क्राइसेंथेमम जैसे पादपों में पुष्पन प्रबंधन एवं फसलों में फल पकन को समक्रमिक करने हेतु प्रयुक्त।
अन्य:
- पैक्लोब्यूट्राजोल: जिबरेलिन जैवसंश्लेषण को अवरुद्ध करता है, जिससे पादपों में बौनापन, तना दीर्घीकरण में कमी एवं शाखन में वृद्धि होती है।
- क्लोरमीक्वैट क्लोराइड: जिबरेलिन जैवसंश्लेषण को रोकता है, जिससे तना दीर्घीकरण कम होता है एवं पादपों में सघनता बढ़ती है।
- साइटोकाइनिन निरोधक: साइटोकाइनिन गतिविधि को अवरुद्ध करते हैं, कोशिका विभाजन एवं वृद्धि को दबाते हैं। उदाहरण – थिडियाज्यूरॉन, फ्लूरिडोन।
पादपों में लैंगिक एवं अलैंगिक जनन
पादप जनन वह जैविक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पादप संतति उत्पन्न करते हैं। पादपों में जनन की दो मुख्य विधियाँ होती हैं:
- लैंगिक जनन: यह आनुवंशिक विविधता के लिए आवश्यक है, जो पादपों को पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन में सक्षम बनाता है। हालांकि इसमें अधिक ऊर्जा एवं समय की आवश्यकता होती है, परंतु दीर्घकाल में यह महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।
- अलैंगिक जनन: यह तीव्र प्रजनन एवं आनुवंशिक रूप से समान संतति उत्पादन की सुविधा प्रदान करता है, जो स्थिर परिस्थितियों में उपयोगी होता है। हालांकि, इसमें अनुकूलन हेतु आवश्यक आनुवंशिक विविधता का अभाव होता है।
1. पादपों में लैंगिक जनन
पादपों में लैंगिक जनन नर एवं मादा युग्मकों (जनन कोशिकाओं) के संयोजन द्वारा होता है, जिसके परिणामस्वरूप बीजों का निर्माण होता है। यह विधि आनुवंशिक विविधता सुनिश्चित करती है तथा पादपों के परिवर्तनशील पर्यावरण के अनुकूलन हेतु आवश्यक है।
- नर युग्मक (पराग): परागकण पुष्प के पुंकेसर द्वारा उत्पादित नर युग्मक होते हैं। प्रत्येक परागकण में शुक्राणु कोशिकाएँ (नर युग्मक) होती हैं जो निषेचन के लिए आवश्यक होती हैं।
- मादा युग्मक (बीजांड): मादा युग्मक (अंड कोशिका) पुष्प के अंडाशय के भीतर स्थित होता है। बीजांड वह संरचना है जहाँ निषेचन की प्रक्रिया संपन्न होती है।

पादपों में लैंगिक जनन के प्रकार:
- पादपों में लैंगिक जनन नर एवं मादा युग्मकों (जनन कोशिकाओं) के संलयन द्वारा एक नए जीव का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया आनुवंशिक विविधता उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है, जो पादपों की पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन क्षमता को बढ़ाती है।
- पादपों में लैंगिक जनन सामान्यतः पुष्पों के भीतर होता है, परंतु निषेचन की प्रक्रिया जाति के अनुसार भिन्न हो सकती है।
- युग्मकों के मिलने के तरीके एवं संबंधित जनन संरचनाओं के आधार पर पादपों में लैंगिक जनन विभिन्न प्रकार से होता है।
1. पर-परागण (एलोगैमी)
- पर-परागण तब होता है जब एक पुष्प के पुंकेसर (नर जनन अंग) से परागकण किसी अन्य पुष्प (प्रायः समान जाति के) के स्त्रीकेसर (मादा जनन अंग) तक पहुँचकर निषेचन करते हैं। यह आनुवंशिक विविधता सुनिश्चित करता है क्योंकि संतति को दो भिन्न पादपों के गुण प्राप्त होते हैं।
पर-परागण के विधियाँ:
- वायु परागण (ऐनीमोफिली): वायु द्वारा एक पादप से दूसरे पादप तक पराग का स्थानांतरण। उदाहरण: घास, कोनिफर, ओक वृक्ष।
- जंतु परागण (ज़ूफिली): जंतु, मुख्यतः कीट (जैसे मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, भृंग), पक्षी एवं कभी-कभी चमगादड़, मकरंद की खोज के दौरान एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक पराग स्थानांतरित करते हैं। उदाहरण: सेब के वृक्षों का मधुमक्खियों द्वारा परागण, ट्यूबलर पुष्पों का गंधपक्षी द्वारा परागण।
- जल परागण (हाइड्रोफिली): जल द्वारा एक पादप से दूसरे पादप तक पराग का स्थानांतरण, यह एक दुर्लभ प्रकार का परागण है। उदाहरण: वॉटर लिली, समुद्री घास।
पर-परागण के लाभ:
- आनुवंशिक विविधता में वृद्धि: संतति को दोनों जनक पादपों से आनुवंशिक सामग्री प्राप्त होती है, जिससे अधिक विविधता और अनुकूलन क्षमता उत्पन्न होती है।
- अधिक सशक्त पादप: आनुवंशिक विविधता से रोगों और कीटों के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है।
पर-परागण के हानियाँ:
- बाह्य कारकों पर निर्भरता: परागण वायु, जल या जंतुओं जैसे बाह्य माध्यमों पर निर्भर करता है जो हमेशा उपलब्ध नहीं होते।
- कम पूर्वानुमेयता: चूँकि इसमें दो भिन्न पादप शामिल होते हैं, परिणाम अनिश्चित हो सकता है।
2. स्व-परागण (ऑटोगैमी)
- स्व-परागण में, एक पुष्प के पुंकेसर से परागकण उसी पुष्प के स्त्रीकेसर या उसी पादप पर स्थित किसी अन्य पुष्प को निषेचित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप जनक पादप के आनुवंशिक रूप से समान संतति उत्पन्न होती है।
स्व-परागण के प्रकार:
- एक ही पुष्प में स्व-परागण: उदाहरण: मटर के पादप, टमाटर।
- भिन्न पुष्पों में स्व-परागण: उदाहरण: तुरई, खीरा।
स्व-परागण के लाभ:
- बाह्य कारकों से स्वतंत्रता: स्व-परागण बाहरी कारकों, जैसे वायु, जल, या जीवों पर निर्भर नहीं करता, जिससे यह अधिक नियंत्रित होता है।
- स्थिर गुण: संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान या लगभग समान होती है, जिससे वांछनीय गुणों का संरक्षण होता है।
- कुशल: यह एकांत वातावरण में या परागणकर्ताओं की कमी होने पर भी हो सकता है।
स्व-परागण के हानियाँ:
- आनुवंशिक विविधता में कमी: चूँकि संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है, पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन की क्षमता कम होती है।
- अधिक संवेदनशीलता: यदि जनक पादप में कोई आनुवंशिक दुर्बलता (जैसे किसी रोग के प्रति संवेदनशीलता) होती है, तो यह दुर्बलता संतति को हस्तांतरित हो जाती है।
3. द्विलिंगी परागण (डायोशियस परागण)
- द्विलिंगी पादपों में नर एवं मादा पादप अलग-अलग होते हैं। निषेचन के लिए नर पादप से परागकणों को मादा पादप तक पहुँचाना आवश्यक होता है, जो प्रायः वायु या परागणकर्ताओं (जैसे कीट, पक्षी) द्वारा संपन्न होता है।
उदाहरण: होली, कीवी (एक्टिनिडिया), विलो
द्विलिंगी परागण के लाभ:
- अधिक आनुवंशिक विविधता: क्योंकि अलग-अलग पादपों के बीच पर-परागण आवश्यक होता है, इससे आनुवंशिक विविधता उत्पन्न होती है।
द्विलिंगी परागण के हानियाँ:
- दो पादपों की आवश्यकता: प्रजनन के लिए कम से कम एक नर एवं एक मादा पादप की आवश्यकता होती है, जिससे कुछ वातावरणों में प्रसारण कठिन हो जाता है।
- परागणकर्ताओं पर निर्भरता।
4. एकलिंगी परागण (मोनोशियस परागण)
- एकलिंगी पादपों में नर एवं मादा जनन अंग एक ही पादप पर पाए जाते हैं, परंतु अलग-अलग पुष्पों में स्थित होते हैं। पर-परागण फिर भी होता है, परंतु एक ही पादप में नर एवं मादा युग्मक उपस्थित होने के कारण, एक ही पादप के भीतर परागण संभव होता है।
उदाहरण: मक्का, खीरा, स्क्वैश
एकलिंगी परागण के लाभ:
- एकल पादप उर्वरता: यदि पर-परागण संभव न हो तो एक पादप स्वयं परागित हो सकता है।
- बहुत से पादपों की कम आवश्यकता: एक ही पादप संतति उत्पन्न कर सकता है, जो कृषि के लिए लाभदायक है।
एकलिंगी परागण के हानियाँ:
- कम आनुवंशिक विविधता: यदि स्व-परागण होता है, तो संतति में आनुवंशिक भिन्नता कम हो सकती है।
- अंतःप्रजनन: यदि पर-परागण नहीं होता है, तो अंतःप्रजनन से कम सशक्त संतति उत्पन्न हो सकती है।
5. द्विनिषेचन
- इस प्रक्रिया में परागकण से दो शुक्राणु कोशिकाएँ बीजांड की दो कोशिकाओं का निषेचन करती हैं:
- एक शुक्राणु अंड कोशिका का निषेचन कर युग्मनज (पादप भ्रूण) बनाता है।
- दूसरा शुक्राणु भ्रूणपोष का निर्माण करता है, जो भ्रूण को पोषण प्रदान करता है।
लाभ:
- भ्रूणपोष के माध्यम से पोषक तत्वों का कुशल उपयोग।
- बीजों की उच्च जीवनक्षमता एवं उत्तरजीविता दर।
पादपों में लैंगिक जनन की प्रक्रिया
- परागण:
- पराग पुंकेसर (नर) → स्त्रीकेसर (मादा) तक स्थानांतरित होता है।
- संभावित माध्यम: वायु, जल, जंतु, कीट।
- निषेचन:
- परागकण अंकुरित होता है → पराग नलिका बनाता है।
- पराग नलिका वर्तिका से गुजरती हुई अंडाशय तक पहुँचती है।
- नर युग्मक (शुक्राणु) + मादा युग्मक (अंड) → युग्मनज बनाते हैं।
- बीज निर्माण:
- निषेचित बीजांड बीज में परिवर्तित होता है।
- बीज के भीतर भ्रूण नए पादप के रूप में विकसित होता है।
- अंडाशय फल में रूपांतरित होता है, जो बीज की सुरक्षा और प्रसार करता है।
- बीज अंकुरण:
- अनुकूल परिस्थितियों (नमी, तापमान, प्रकाश) में:बीजावरण टूटता है।
- भ्रूण पादपांकुर के रूप में विकसित होता है → परिपक्व पादप बनता है।
लैंगिक जनन के लाभ:
- आनुवंशिक विविधता: संतति को दोनों जनकों से जीन प्राप्त होते हैं → आनुवंशिक विविधता → अनुकूलन क्षमता और उत्तरजीविता में वृद्धि।
- पर्यावरण अनुकूलन: अधिक आनुवंशिक विविधता → संतति पर्यावरणीय चुनौतियों (जैसे सूखा, रोग) के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित।
लैंगिक जनन के हानियाँ:
- समयसाध्य: कई चरण (परागण, निषेचन, बीज निर्माण, अंकुरण) → प्रक्रिया में अधिक समय लगता है।
- ऊर्जा गहन: पुष्पों, परागण और फल उत्पादन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- बाह्य कारकों पर निर्भरता: परागण में बाधा – परागणकर्ताओं की कमी, प्रतिकूल मौसम, या बीजों की कम जीवनक्षमता के कारण।
2. पादपों में अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन में केवल एक जनक पादप शामिल होता है, और संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है, जिन्हें क्लोन कहा जाता है। यह विधि युग्मकों के संलयन को शामिल नहीं करती है और आमतौर पर लैंगिक जनन की तुलना में तेज होती है तथा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
अलैंगिक जनन की विधियाँ:
1. कायिक प्रवर्धन:
- कायिक प्रवर्धन पादपों के लिए बीजों के बिना, तनों, जड़ों या पत्तियों जैसे पादप भागों का उपयोग करके प्रजनन का एक तरीका है। मुख्य विधियाँ:
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन147342_71cb12-a4> |
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन147342_6bd4f4-5f> |
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2. मुकुलन (कलिका विधि)
- इस प्रक्रिया में, जनक पादप पर एक छोटा प्रवर्ध (मुकुल) विकसित होता है। यह मुकुल एक नए स्वतंत्र जीव के रूप में विकसित होता है और अंततः अलग हो जाता है।
- उदाहरण: नागफनी (पादप), हाइड्रा (अपादप जीव)।
3. बीजाणु निर्माण
- बीजाणु एककोशिकीय प्रजनन संरचनाएं हैं जो निषेचन की आवश्यकता के बिना पादपों द्वारा उत्पादित की जाती हैं।
ये हल्के होते हैं, जिन्हें वायु या जल द्वारा आसानी से फैलाया जा सकता है और अनुकूल परिस्थितियों में नए पादप उत्पन्न कर सकते हैं। यह विधि कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में उत्तरजीविता और नए आवासों के उपनिवेशीकरण में सहायक होती है। - उदाहरण: फर्न, काई, और कुछ कवक।
4. खंडन
- जनक पादप का एक भाग (प्राकृतिक रूप से या बाह्य बलों के कारण) अलग हो जाता है और एक नए पादप के रूप में विकसित होता है।
- उदाहरण: शैवाल (जैसे स्पाइरोगाइरा), जलीय पादप (जैसे जलकुंभी)।
5. अपोमिक्सिस
- अपोमिक्सिस अलैंगिक जनन की एक उन्नत विधि है जिसमें निषेचन के बिना ही बीजों का निर्माण होता है। संतति आनुवंशिक रूप से जनक पादप के समान होती है, जिससे वांछनीय गुणों का संरक्षण सुनिश्चित होता है। यह कृषि में एकसमान फसलों के उत्पादन के लिए विशेष रूप से लाभदायक है।
- उदाहरण: सिंहपर्णी, आम, साइट्रस पादप।
अलैंगिक जनन के लाभ:
- तेज प्रजनन: अलैंगिक जनन तीव्र होता है, जिससे कम समय में अधिक संतति उत्पन्न होती है।
- परागणकर्ताओं की अनावश्यकता: पादपों को प्रजनन के लिए परागणकर्ताओं या मौसम जैसे पर्यावरणीय कारकों की आवश्यकता नहीं होती।
- वांछनीय गुणों का संरक्षण: अलैंगिक जनन से उत्पन्न संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है, जिससे उच्च उपज या रोग प्रतिरोधकता जैसे उपयोगी गुण संरक्षित रहते हैं।
अलैंगिक जनन के हानियाँ:
- आनुवंशिक विविधता का अभाव: संतति जनक पादप के क्लोन होते हैं, जिससे पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन की क्षमता सीमित हो जाती है और रोगों या कीटों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
- अधिक जनसंख्या: सभी संतति आनुवंशिक रूप से समान होने के कारण एक ही संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं, जिससे वृद्धि और विकास सीमित हो सकता है।
- सीमित अनुकूलन क्षमता: आनुवंशिक भिन्नता के अभाव में, पादप समुदाय परिवर्तित पर्यावरणीय कारकों या विकसित हो रहे कीटों के साथ अच्छी तरह से सामंजस्य नहीं बैठा पाता।
पादपों में लैंगिक और अलैंगिक प्रजनन की तुलना:
| विशेषता | लैंगिक जनन | अलैंगिक जनन |
| जनकों की संख्या | दो (नर एवं मादा) | एक (जनक पादप) |
| आनुवंशिक विविधता | उच्च (संतति दोनों जनकों से गुण प्राप्त करती है) | निम्न (संतति आनुवंशिक रूप से समान) |
| जनन गति | धीमी (परागण, निषेचन एवं बीज निर्माण आवश्यक) | तीव्र (संतति शीघ्र उत्पन्न होती है) |
| ऊर्जा आवश्यकता | उच्च (पुष्प निर्माण, परागण आदि) | निम्न (पुष्प या परागण की आवश्यकता नहीं) |
| आनुवंशिक अनुकूलन क्षमता | उच्च (आनुवंशिक विविधता को बढ़ावा) | निम्न (संतति क्लोन होते हैं, अनुकूलन क्षमता कम) |
| उदाहरण | अधिकांश पुष्पीय पादप (जैसे सेब, मटर) | आलू, स्ट्रॉबेरी, सिंहपर्णी, प्याज |
| परागणकर्ताओं पर निर्भरता | हाँ (प्राणी-परागित पादपों में) | नहीं (परागणकर्ताओं की आवश्यकता नहीं) |
| लाभ | आनुवंशिक विविधता को बढ़ावा, जिससे रोग प्रतिरोधकता एवं उत्तरजीविता में वृद्धि। | तीव्र प्रसारण एवं संतति में वांछनीय गुणों का संरक्षण। |
| हानियाँ | धीमी गति एवं अधिक ऊर्जा की आवश्यकता; परागणकर्ताओं या अनुकूल परिस्थितियों के अभाव में विफल हो सकता है। | आनुवंशिक विविधता का अभाव, जिससे पादपों की पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन क्षमता कम होती है। |
FAQ (Previous year questions)
जड़ रूपांतरण से तात्पर्य पौधों की जड़ों में संरचनात्मक परिवर्तन या अनुकूलन से है जो उन्हें उनकी विशिष्ट भूमिकाओं (पौधे को बांधने और मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करने) से परे विशेष कार्य करने में सक्षम बनाता है।
उदाहरण
भोजन के भंडारण के लिए: गाजर में मूसला जड़, शकरकंद की अपस्थानिक मूल (जड़)
सहायता के लिए: बरगद के पेड़ में प्रोप जड़, मक्का और गन्ने में स्टिल्ट जड़
श्वसन के लिए: मैंग्रोव में न्यूमेटोफ़ोर्स
पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर) विविध रासायनिक संरचनाओं वाले छोटे, सरल अणु हैं जो पौधों की वृद्धि और विकास के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं। इन नियामकों को जीवित पादप निकाय के भीतर उनके कार्यों के आधार पर मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है –
वृद्धि प्रवर्तक
वृद्धि अवरोधक
कोशिका विभाजन, विस्तार, और फूल खिलना जैसी विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को प्रोत्साहित करते है
घावों और तनावों के प्रति प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है, और सुप्तता और विलगन जैसी विकास गतिविधियों को रोकता है।
ऑक्सिन्स
कोशिका वृद्धि, जड़ आरंभीकरण और शीर्ष प्रभुत्व को बढ़ावा देना
प्राकृतिक-इंडोल-3-एसिटिक एसिड (आईएए), इंडोल ब्यूटिरिक एसिड (आईबीए)
सिंथेटिक – NAA (नेफ़थलीन एसिटिक एसिड) और 2, 4-D (2,4-डाइक्लोरोफेनोक्सीएसेटिक)
गिबरेलिन्स
तने का लंबा होना, बीज का अंकुरण और पौधों में फूल आना।
उदाहरण के लिए, जिबरेलिक एसिड pGA3) –
साइटोकाइनिन
कोशिका विभाजन को नियंत्रित करना, पार्श्व प्ररोह(लेटरल शूट ) आरंभ करना, और जीर्णता विलंबित करना
जैसे, ज़ीटिन
एब्सिसिक अम्ल (ABA)
बीज की निष्क्रियता, रंध्र बंद होने और सूखे और लवणता जैसे पर्यावरणीय तनावों पर प्रतिक्रिया को विनियमित करना।
उदाहरण: तनाव के जवाब में पौधों में एब्सिसिक एसिड (एबीए) प्राकृतिक रूप से संश्लेषित होता है
ईथीलीन
एक गैसीय हार्मोन जो फलों के पकने, पत्तियों के फटने और जीर्ण होने को नियंत्रित करता है
प्रवर्तक और अवरोधक दोनों के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे एथेफ़ोन
अलैंगिक प्रजनन में बीज उत्पादन के बिना ही नए पौधे प्राप्त होते हैं।(एकल माता-पिता)
वानस्पतिक प्रवर्धन: नए पौधे वानस्पतिक भागों अर्थात जड़ों, तनों, पत्तियों और कलियों से उत्पन्न होते हैं। यह प्राकृतिक या कृत्रिम हो सकता है।
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन:
जड़ें: अमरूद, शकरकंद।
पत्तियाँ: ब्रायोफिलम (पत्तियों के किनारों पर कलियाँ)
कंद: आलू (आँखें)।
तना: प्याज, लहसुन और ट्यूलिप
जड़ें: शकरकंद और डहेलिया
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन:
कलम: नींबू, गुलाब, सेंसेविया।
रोपण: आम, अमरूद।
दाब कलम: चमेली, टमाटर।
ऊतक संवर्धन: केले, ऑर्किड।
बीजाणु निर्माण: विशेष प्रजनन संरचनाएं जिन्हें बीजाणु कहा जाता है, कवक, काई, फर्न और अन्य जीवों द्वारा उत्पादित और पर्यावरण में छोड़ी जाती हैं। ये बीजाणु लंबी दूरी तय करते हैं और, उपयुक्त परिस्थितियों में, नए जीवों में अंकुरित होते हैं
खंडन: जीव टुकड़ों में टूट जाते हैं, प्रत्येक एक नए व्यक्ति के रूप में विकसित होता है। शैवाल (स्पाइरोगाइरा) इस तरह तेजी से बढ़ते हैं, तालाबों में फैलते हैं और हरे धब्बे बनाते हैं।
मुकुलन: बडिंग में मूल पौधे पर छोटी-छोटी वृद्धियों का निर्माण होता है, जिन्हें कलियाँ कहा जाता है। अलग होने से पहले ये कलियाँ नए व्यक्तियों में विकसित हो जाती हैं। उदाहरणों में यीस्ट, हाइड्रा और ब्रायोफिलम जैसे कुछ पौधे शामिल हैं।
विशेषता
लैंगिक जनन
अलैंगिक जनन
माता-पिता की संख्या
दो (नर और मादा)
एक (मूल पौधा)
आनुवंशिक विविधता
अधिक (संतान दोनों माता-पिता से गुण प्राप्त करती है)
कम (संतान जेनेटिक रूप से एक जैसी होती है)
जनन की गति
धीमी (परागण, निषेचन और बीज निर्माण आवश्यक)
तेज (संतान जल्दी उत्पन्न होती है)
ऊर्जा की आवश्यकता
अधिक (फूल, परागण आदि के लिए)
कम (फूल या परागण की आवश्यकता नहीं)
आनुवंशिक अनुकूलता
अधिक (विविधता अनुकूलता को बढ़ाती है)
कम (संतान क्लोन होती हैं, अनुकूलन क्षमता कम)
उदाहरण
अधिकांश पुष्पीय पौधे (जैसे सेब, मटर)
आलू, स्ट्रॉबेरी, डेंडेलियन, प्याज
परागणकर्ताओं पर निर्भरता
हाँ (जानवरों द्वारा परागण में)
नहीं (परागण की आवश्यकता नहीं होती)
लाभ
आनुवंशिक विविधता से रोग प्रतिरोध और उत्तरजीविता बढ़ती है
तेजी से गुणों को संरक्षित करते हुए जनन होता है
हानि
धीमा और ऊर्जा-खपत प्रक्रिया; परागणकर्ता या उपयुक्त स्थिति न होने पर विफल हो सकता है
विविधता की कमी के कारण पर्यावरणीय बदलावों के प्रति संवेदनशीलता
पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन /पादपों की संरचना पोषण वृद्धि नियंत्रक एवं प्रजनन
