राजस्थानी भाषा एवम् साहित्यक स्रोत

राजस्थानी भाषा एवम् साहित्यक स्रोत राजस्थान के इतिहास के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। राजस्थानी भाषा में रचित लोकगीत, काव्य, ग्रंथ और साहित्यिक परंपराएँ प्रदेश के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन की अमूल्य झलक प्रदान करती हैं। इन स्रोतों के माध्यम से हमें प्राचीन काल से मध्यकाल और आधुनिक काल तक राजस्थान की ऐतिहासिक निरंतरता का साक्ष्य मिलता है।

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  • आधिकारिक भाषा की स्थिति – 
    • राजस्थान की आधिकारिक भाषा – हिंदी (देवनागरी लिपि)।
    • यह स्थिति राजस्थान आधिकारिक भाषा अधिनियम, 1956 के तहत निर्धारित है।
    • राजस्थानी भाषा को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने की माँग जारी है।
    • इस दिशा में राजस्थानी युवा समिति सक्रिय रूप से आंदोलन कर रही है।
  • संवैधानिक समर्थन – 
    • अनुच्छेद 345 (भारतीय संविधान) – राज्य विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह एक या अधिक भाषाओं को राजकीय कार्यों के लिए अपनाए।
    • 2003 में राजस्थान विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
    • यह प्रस्ताव अभी तक केंद्र सरकार द्वारा लागू नहीं किया गया है।
  • आठवीं अनुसूची में समावेश
    • वर्तमान में 22 भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं।
      • संशोधन के माध्यम से जोड़ी गई भाषाएँ
        • 21वाँ संशोधन (1967) – सिंधी
        • 71वाँ संशोधन (1992) – कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली
        • 92वाँ संशोधन (2003) – बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली
    • महापात्र समिति ने राजस्थानी को शामिल करने की सिफारिश की, परंतु अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

साहित्यिक संस्थान

साहित्य अकादमी एवं UGC –  

  • दोनों ने राजस्थानी को स्वतंत्र साहित्यिक भाषा के रूप में मान्यता दी है।

राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर, 1958) –

  • प्रमुख पत्रिका – ‘मधुमती’
  • प्रमुख पुरस्कार – मीरा पुरस्कार

राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर, 1983) – 

  • प्रमुख पत्रिका – ‘जागती जोत’
  • प्रमुख पुरस्कार – सूर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार

राजस्थान सिंधी भाषा अकादमी – 

  • स्थापना वर्ष – 1979
  • स्थान – जयपुर
  • मुख्य पत्रिकारिहाण”
  • कार्य – सिंधी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु कार्यरत।

राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी – 

  • स्थापना वर्ष – 1986
  • स्थान – जयपुर
  • मुख्य पत्रिका“ब्रज शतदल”
  • कार्य – ब्रजभाषा साहित्य, लोककला, लोकगीत और भक्ति परंपरा के अध्ययन व प्रसार के लिए स्थापित।

राजस्थान पंजाबी भाषा अकादमी – 

  • स्थापना वर्ष – 2006
  • स्थान – श्रीगंगानगर
  • मुख्य कार्य – पंजाबी भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत संस्था।
  • उद्देश्य – राज्य में पंजाबी साहित्य, कला और सांस्कृतिक विरासत को प्रोत्साहित करना।

राजस्थानी भाषा और बोलियाँ – 

  • ग्रियर्सन एवं नरोतम स्वामी के अनुसार राजस्थानी भाषा की प्रमुख बोलियाँ –
  1. पश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी, मेवाड़ी, बीकानेरी, शेखावटी
  2. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी – अहीरवाटी, मेवाती
  3. मध्य-पूर्वी राजस्थानी – ढूँढाड़ी, जयपुरी, हाड़ौती
  4. दक्षिणी राजस्थानी – निमाड़ी, मालवी
  • डिंगल और पिंगल –
    • डिंगल –  पश्चिमी राजस्थान की साहित्यिक शैली, मुख्यतः चारण कवियों द्वारा।
    • पिंगल – पूर्वी राजस्थान की साहित्यिक शैली, मुख्यतः भाट कवियों द्वारा।
                डिंगल                   पिंगल
पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) का साहित्यिक रूप डिंगल कहलाता है।ब्रजभाषा और पूर्वी राजस्थानी का साहित्यिक रूप पिंगल कहलाता है।
डिंगल साहित्य का अधिकांश लेखन चारण जाति के कवियों द्वारा किया गया था।पिंगल साहित्य का अधिकांश लेखन भाट जाति के कवियों द्वारा किया गया था।
इसका विकास गुर्जरी अपभ्रंश से जोड़ा जाता है।इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से जोड़ा जाता है।
प्रमुख रचनाएँ:  –  राजरूपक, ढोला मारू रा दूहा, अचलदास खिंची री वचनिकाप्रमुख रचनाएँ:  – पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई), रतन रासो (कुम्भकरण), खुमान रासो, वंश भास्कर।

ख्यात साहित्य

  • अर्थ – “ख्यात” शब्द का अर्थ “प्रसिद्ध विवरण” या “इतिहास” होता है।
  • यह प्रसिद्ध व्यक्तियों और घटनाओं के जीवन वृत्तांतों का संग्रह है।
  • ख्यातों में राजस्थान की ऐतिहासिक घटनाएँ, राजवंश, युद्ध, और लोक कथाएँ वर्णित हैं।
  • यह राजस्थान के इतिहास और संस्कृति का प्रामाणिक साहित्यिक स्रोत है।
  • प्रमुख ख्यातें –
    • बांकीदास री ख्यात
    • उदैभाण चांपावत री ख्यात
    • जोधपुर राज्य री ख्यात
    • मारवाड़ री ख्यात
    • दयालदास री ख्यात (राजस्थान की अंतिम ख्यात)

रास साहित्य

  • रास साहित्य राजस्थानी साहित्य का प्राचीन और विशिष्ट रूप है।
  • इसमें नृत्य, गान और अभिनय – तीनों कलाओं का समावेश है।
  • इसमें जैन कवियों की धर्मप्रधान कृतियों का महत्त्वपूर्ण  योगदान रहा है।
  • रास साहित्य में राजस्थानी भाषा का प्रारंभिक मौलिक रूप मिलता है।
  • प्रमुख रचनाएँ –
    • रिपु-दारणरास – लगभग 905 ई., भीनमाल में रचित।
    • भरतेश्वर बाहुबली रास – 1150 ई., ब्रजसेन सूरि द्वारा रचित।
    • बाहुबली रास – 1184 ई., शालिभद्र सूरि द्वारा रचित।
    • वृद्ध नवकार रासजिन वल्लभ सूरि द्वारा 13वीं शताब्दी में रचित।
  • अन्य जैन साहित्यकार और कृतियाँ – 
    • देवपाल – श्रृणिकराजानो रास
    • धर्म समुद्र गणि – रात्रि भोजन रास
    • ऋषिवर्धन सूरि – नलदमयंती रास
    • समय सुंदर – अनेक भक्ति और धर्म प्रधान गीतों के रचयिता।
    • कुशललाभ – माधवानल चौपाई और ढोला मरवण की चौपाई के रचयिता।
    • धनपाल – सच्चरियउ और महावीर उत्साह।
    • उद्योतन सूरी – प्रसिद्ध कृति कुवलय-माला के रचयिता।

संत साहित्य

  • राजस्थानी साहित्य को समृद्ध बनाने में संत परंपरा का योगदान महत्त्वपूर्ण  है।
  • संतों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों को भजनों और वाणियों के माध्यम से प्रस्तुत किया।
  • दादू के शिष्य रज्जब की प्रमुख कृतियाँ – वाणी और सरवंगी।
  • मीरा बाई की पदावली में प्रेम, भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना है।
  • संत साहित्य में मानवता, समानता और भक्तिरस की प्रधानता रही।

चारण शैली का साहित्य

  • चारण कवियों ने वीर रसात्मक काव्य की परंपरा को समृद्ध किया।
  • इनके साहित्य में शौर्य, बलिदान, देशभक्ति और पराक्रम का भाव मिलता है।
  • प्रमुख रचनाएँ –
    • वीर भायणबादर ढाढी द्वारा रचित।
    • अचलदास खींची री वचनिकागाडण शिवदास द्वारा रचित; माण्डू और गागरोन युद्ध का वर्णन।
    • कान्हड़दे प्रबंधपद्मानाभ द्वारा रचित; जालौर के चौहान शासक कान्हड़देव और अलाउद्दीन खिलजी के युद्ध का वर्णन।
राजस्थानी भाषा एवम् साहित्यक स्रोत
रचनारचनाकारवर्णन
कान्हड़ेदव प्रबंधपद्मनाथ जालौर के चौहान शासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए युद्ध (1311 ई.) पर प्रकाश डालता है।
डिंग कोशमुरारीदान
पृथ्वीराज रासोचंदबरदाईइसे हिन्दी का पहला महाकव्य माना जाता है। इस ग्रंथ में राजपूतों की उत्पत्ति आबू के अग्निकुण्ड से बताई गई है। इसमें पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल एवं तराइन के युद्ध (1191-1192 ई.) की जानकारी प्राप्त होती है।
पृथ्वीराज विजयजयानकचौहानो के इतिहास व अजमेर के विकास पर प्रकाश डालता है।
पद्मावतमलिक मोहम्मद जायसीइस काव्य ग्रंथ से अलाउद्दीन खिलजी के चितौड़ आक्रमण (1303 ई.) पर प्रकाश पड़ता है।
राव जैतसी रो छंदबिठू सूजो नागरजोतयह ग्रंथ बीकानेर के शासकों बीका, लूणकर्ण और जैतसी (1526-1541ई.) के शासनकाल की जानकारी देता है।
पाबुप्रकासमोडा आशिया यह ग्रंथ पाबूजी के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालता है।
राजप्रकासकिशोर दासमेवाड़ राजवंश की उत्पत्ति, हल्दीघाटी युद्ध, और मेवाड़-मुगल संधि (1615 ई.) का उल्लेख।
अमर काव्य अमरदान लालस
अमरसारपं जीवधरमहाराणा प्रताप और अमरसिंह के शासन एवं जनजीवन का चित्रण करता है।
प्रताप रासोजाचक जीवणराव राजा प्रताप सिंह के जीवन का विवरण और अलवर राज्य की स्थापना (1770 ई.)।
अमीरनामा मुंशी भुसावनलालटोक के नवाब अमीर खाँ पिण्डारी के जीवन से सम्बन्धित
रतन जसप्रकाशसागरदान
सेनाणीमेघराज मुकुलइस कविता में बूंदी के हाड़ा शासक की पुत्री सलह कंवर(हाड़ी रानी) के बलिदान की गाथा बताई गई है जिसमे राव चुण्डावत रतन सिंह द्वारा निशानी मांगने पर हाड़ी रानी ने अपना सिर काट कर निशानी के तौर पर भिजवा दिया था।“चुण्डावत मांगी सैनाणी, सिर काट दे दियो हाड़ी रानी”
चंवरीमेघराज मुकुल
सूरज प्रकाश करणीदानयह डिंगल काव्य राठौड़ों की तेरह शाखाओं का उल्लेख करता है। ये राठौड़ों की वंशावली कुश (राम के छोटे पुत्र) से शुरू करता है। यह सुमेल (1544 ई.) व धरमत के युद्ध (1658 ई.) एवं मुगल दरबार में सैय्यद बन्धुओं के प्रभाव का भी उल्लेख करता है।
बिड़द सिणगारकरणीदान
शकुन्तलाकरणीदान
ढोला मारू रा दूहाकवि कल्लोल
कनक सुंदरी शिवचंद भरतिया
एकलिंग महात्म्य कान्ह व्यासमेवाड़ महाराणाओं की वंशावली के लिए उपयोगी है। कुछ विद्वान कुम्भा को इस ग्रंथ का रचयिता मानते हैं।
खुमाण रासो दलपति विजयहल्दीघाटी के युद्ध के समय प्रताप-शक्तिसिंह मिलन व महाराणा अमरसिंह के शासनकाल (1597-1620 ई.) के दौरान मेवाड़-मुगल सम्बन्धों पर प्रकाश डालता है।
बुद्धिविलासशाह बखतराम
बीसलदेव रासोनरपति नाल्हयह रचना अजमेर के शासक विग्रहराज चतुर्थ (वीसलदेव) के शासन काल (1158-1163 ई.) की जानकारी उपलब्ध करवाती है।
विजय पाल रासो नल्ल सिंहयह रासो काव्य विजयगढ़, करौली के यादव राजा विजयपाल के विषय में है।
छत्रपति-रासो कवि काशी छंगाणीयह ग्रंथ बीकानेर का इतिहास है। 1642 ई. में बीकानेर के शासक कर्णसिंह और नागौर के अमरसिंह के मध्य जाणिया गांव की सीमा को लेकर हुए युद्ध जो ‘मतीरे की राड’ नाम से विख्यात है, का भी इसमें वर्णन है।
दरिन्दे हमीदुल्लाजयपुर की स्थापना (1727 ई.) और नगर निर्माण योजनाओं की जानकारी।
हम्मीर रासो शारंगधर, जोधराजरणथंभौर के राणा हम्मीर का चरित्र वर्णन है।
हम्मीर महाकाव्यनयनचन्द्र शूरिअलाउदीन खिलजी की रणथंभौर विजय पर प्रकाश डालती है।
रामरासोमाधोदास चारण
हम्मीर मद मर्दनजयसिंह सूरि
गुण भाषा हेमकवि
गुण रूपककेशवदास
राजिया रा सोरठा कृपाराम
राजरूपककवि वीरभाण
वीर विनोदश्यामलदासपाँच जिल्दों का ये ग्रंथ वस्तुत: मेवाड़ का इतिहास है। इसमें मेवाड़ राजवंश की उत्पत्ति राम के पुत्र ‘कुश’ से बताई गई है।
बुद्धि सागरजान-कवि
ग्रंथराजगोपीनाथ
पगफैरो, सोजती गेट, आलीजा आज्यो घरांमणि मधुकर
रूठी राणीकेसरीसिंह बारहठ
चेतावनी रा चूंगटियाकेसरीसिंह बारहठमहाराणा फतेह सिंह को दिल्ली दरबार जाने से रोकने के लिए तेरह सोरठों में लिखा गया व्यंग्य।
वीर भायणबादर ढाढ़ीरावल मल्लीनाथ और उनके पुत्रों की वीरता का उल्लेख।
अमरफलडॉ. मनोहर शर्मा
रूकमणी हरणवीठलदास
रणमल छंदश्रीधर व्यास
बृजनिधि ग्रंथावलीप्रतापसिंह
रंगीलों मारवाड़भरत व्यास
सुधि सपनों के तीरमणि मधुकर
भक्तमालनाभादास
सागर पाखीकुंदनमाली
वैराग्य सागरनागरीदास
अजितोदय भट्ट जगजीवनमारवाड़ के शासक अजीतसिंह के शासन (1707-1724 ई.) पर प्रकाश डालती है।
हां चांद मेरा है।हरिराम मीणा
सुदामाचरित्रमोहन राज
बरखा बीनणीरेवतदान चारण
मारवाडी व्याकरणरामकरण आसोपा
बादलीचंदसिंह विरकाली
राजस्थानी कहावतांमुरली व्यास
सगत रासो गिरधर आसियायह ग्रंथ मेवाड़ के इतिहास के लिए उपयोगी है। यह हल्दीघाटी के युद्ध एवं शक्ति सिंह के वंशजों पर भी प्रकाश डालता है।
राजविनोदसदाशिव भट्टबीकानेर नरेश राव कल्याणमल के शासनकाल का विवरण।
ढोला मारवाड़ी चडपड़ीकवि हररात
ढोला मारवण री चौपाईकुशललाभ
मेघदूतमनोहर प्रभाकर
रेंगती है चीटियांजबरनाथ पुरोहित
हूं गोरी किण पीव रीयादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’
जोग-संजोग, चांदा सेठाणी यादवेन्द्र शर्मा
जमारो, समंदर अर थार यादवेन्द्र शर्मा
बातां री फुलवारी, हिटलर, अलेखूविजदान देथा
दुविधा, सपन प्रिया, उलझन, अंतराल, चौधराइन की चतुराईविजदान देथा
मैकती काया मुहकती धरतीअन्नाराम सुदामा
धरती धोरा री, मींझर, लीलटॉन्सकन्हैया लाल सेठिया
पातल और पीथलकन्हैया लाल सेठिया
एक बीनणी दो बीन श्रीलाल नथमल जोशी
परण्योड़ी कुंवारी, श्रीलाल नथमल जोशी
आभै पटकी, धोरां रो धोरी श्रीलाल नथमल जोशी
हाला झाला री कुण्डलियांईसरदास
अचलदास खीची री वचनिकाशिवदास गाडणराजस्थानी चम्पू काव्य गागरोन के शासक अचलदास और मालवा के सुल्तान होशंगशाह गौरी के मध्य हुए युद्ध (1423 ई.) और जौहर का वर्णन।
राजस्थानी शब्दकोषसीताराम लालस
टाबरा री बातां, माँझळ रात, मूमललक्ष्मी कुमारी चूड़ावत
डूंगजी जवारजी री बात लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत
महादेव पार्वती री बेलीकिसनो
द्रोपदी विनयरामनाथ कवियाइस रचना के माध्यम से नारी चेतना को जाग्रत करने का प्रयास किया गया है।
बोलि किसन रूकमणीपृथ्वीराज राठौड़(पीथल) भाषा और शैली – डिंगल भाषा का उत्कृष्ट खण्डकाव्य जिसमें “वेलियो गीत” के छंदों का प्रयोग हुआ है और ब्रजभाषा का प्रभाव भी दिखाई देता है।यह रचना सोलहवीं शताब्दी के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालती है।
सती रासो सूर्यमल्ल मिश्रण(मीसण)
वीर सतसईसूर्यमल्ल मिश्रण(मीसण)निष्क्रिय राजपूत शासकों को ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संगठित करने के लिए रचित काव्य।
वंश भास्कर सूर्यमल्ल मिश्रण (मीसण)चम्पू शैली (गद्य-पद्य मिश्रित) का डिंगल भाषा में लिखा गया यह महाकाव्य बूंदी के इतिहास के साथ ही राजस्थान एवं भारत के इतिहास का विवेचन भी करता है। ये राजस्थान में मराठों की गतिविधियाँ और कृष्णाकुमारी के विषपान (1810 ई.) का भी उल्लेख करता है।
नैणसी की ख्यात मुँहणोत नैणसी1610-1670 ई.के इस ग्रंथ में मारवाड़ राज्य के साथ-साथ मालवा, बुन्देलखण्ड, मेवाड, आमेर, बीकानेर, किशनगढ़ आदि के इतिहास का विवेचन किया है। इस ग्रंथ की शैली अकबरनामा के सदृश होने के कारण मुंशी देवीप्रसाद ने नैणसी को ‘राजपताने के अबुल-फजल’ की संज्ञा दी है। इस ख्यात को “मारवाड़ का गजेटियर” भी कहा जाता है।
मारवाड़ रा परगना री विगतमुँहणोत नैणसीसत्रहवीं शताब्दी में मारवाड़ की राजनीतिक, भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का वर्णन। इस रचना की तुलना ‘आइनए-अकबरी’ से की जाती है। इसमें जोधपुर राज्य के छ: परगनों का इतिहास एवं प्रशासनिक प्रबन्ध का वर्णन है।
प्रबन्ध चिन्तामणिआचार्य मेरुतुंगपृथ्वीराज चौहान के शासन प्रबंधन की जानकारी।
शत्रु साल रासो डूंगरसी
कुवलयमाला उद्योतन सूरिप्रतिहार शासक वत्सराज के शासन प्रबन्ध की जानकारी मिलती है।
बुद्धि रासो जल्ल
केहर प्रकाशकवि बख्तावर
अक्षर बावनीमाधौदास बारहठ
राणा रासोदयाल (दयाराम)
किरतार बावनीदुस्सा आढा
वीरमदेव सोलंकी रा दूहादुस्सा आढा
राधा, बोल भारमलीसत्यप्रकाश जोशी
जुड़ाव, अँधारै रा घावपारस अरोड़ा
गाँव, रंग-बदरंगगोरधन सिंह शेखावत
कठैई कीं व्हेगौ है, म्हारा बाप, दीठाव रै बेजां मॉयतेजसिंह जोधा
बोलै सरणाटौ, हूणीयै रा सोरठा, बातां में भूगोळहरीश भादाणी
जूंझती जूण
मोहम्मद सादिक
चित मारो दुख नैमोहन आलोक
पागी, कावड़, मारग, तोपनामा, राग-वियोगचंद्रप्रकाश देवल
आ सदी मिजळी मरैसांवर दइया
रिन्दरोहीअर्जनदेव चारण
उतरयो है आभौमालचंद तिवाड़ी
सीर रो घरवासु आचार्य
अणहद नाद, अगनी मन्तरभगवतीलाल व्यास

राजस्थानी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार

साहित्यकार

रचना 

दयालदास

दयालदास री ख्यात

कविराज श्यामल दास

(ब्रिटिश भारतीय सरकार से केसर-ए-हिंद और मेवाड़ के महाराणा से कविराज की उपाधि।)

वीर विनोद

सूर्यमल मिश्रण (मीसन)

  • महाराजा राम सिंह, बूंदी के दरबारी कवि और “वीर रसावतार” के रूप में प्रसिद्ध।
  • सूर्यमल मिश्रण शिखर पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाता है।
  1. वंश-भास्कर
  2. वीर-सतसई
  3. धातु रूपावली
  4. बलवंत विलास
  5. राम रंजाट
  6. चंदोमयुख
  7. सती रासो

बांकीदास

  1. चेतावनी रा गीत
  2. बांकीदास री ख्यात
  3. दात्तार बावनी
  4. नीति मंजरी
  5. कुकवि बत्तीसी
  6. नाथ स्तुति
  7. मान जसो मंडन
  8. आयो अंग्रेज मुल्क रे ऊपर

शंकर दान सामौर (ब्रिटिशों को ‘मुल्क रा मीठा ठग’ कहा)

  1. सगती सुजस
  2. भागीरथी महिमा
  3. देश दर्पण

गौरीशंकर हीराचंद ओझा(ब्रिटिशों द्वारा महामहोपाध्याय और राय बहादुर की उपाधियाँ)

  1. लिपिमाला
  2. राजपूतों का इतिहास

केसरी सिंह बारहठ

  1. चेतावनी रा चूंगट्या
  2. प्रताप चरित्र
  3. दुर्गादास चरित्र
  4. रूठी रानी

मेघराज मुकुल

  1. सेनानी
  2. चाणक
  3. धरती रो श्रृंगार
  4. भूदान

कन्हैया लाल सेठिया

  1. धरती धोरा री
  2. मींझर
  3. लीलटांस
  4. दीथ
  5. कुन-कुन
  6. “पाथल” और “पीथल” (महाराणा प्रताप के संघर्ष पर आधारित)

लक्ष्मी कुमारी चूंडावत

  1. कै रे चकवा बात
  2. मूमल
  3. अमोलक बातां

सत्यप्रकाश जोशी

  1. राधा (1960)
  2. बोल भारमली

लोक कथाओं पर प्रमुख साहित्य

            साहित्यकार      रचना 
लखोजीपाबू रासो
कुशल लाभढोला मारू रा दोहा- चौपाई
लधाराजी मेहतापाबूजी रा दोहा
पहाड़खान आधागोगादे रूपक
बिठु मेहापाबूजी रा छंद
मोड जी आशियापाबू प्रकाश
रामनाथ कवियापाबूजी रा सोरठा
लक्ष्मी कुमारी चूंडावतपाबूजी री बात
जसदान बिदूवीर मेहा प्रकाश
पूनमचंदरामदेव जी का ब्यावला
ठाकुर रुद्र सिंह तोमरश्री रामदेव चरित्र
हरजी भाटीश्री रामदेव जी री वेली
पुरोहित राम सिंहश्री रामदेव प्रकाश
छोछू भाटबगड़ावतों रा पावड़ा
डॉ. सोनाराम विश्नोईबाबा रामदेव: इतिहास और साहित्य
महाकवि पृथ्वीराज राठौड़पटक मूछा पाण 
आशा जी बारहठउमादे भाटियानी रा कवट
हरि सिंह भाटीपूगल का इतिहास
कवि भवर्धन किन्नियाश्री मेहाजी मांगलिया की महिमा
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