स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध

 स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध विषय विधि के अंतर्गत एक अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक एवं कानूनी समस्या है, जो समाज की नैतिकता, सुरक्षा और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इन अपराधों की रोकथाम तथा पीड़ितों को न्याय दिलाना विधि का एक प्रमुख उद्देश्य है।

इस अध्याय में हम स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध विषय के अंतर्गत निम्नलिखित महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन करेंगे:

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत “लैंगिक दुर्व्यवहार” पद के अन्तर्गत क्या सम्मिलित किया गया है?2M
2018उन व्यक्तियों को प्रगणित कीजिए जो कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत अनुतोष हेतु मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं ?
2M
2016घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत “व्यथित व्यक्ति’ से आपका क्या तात्पर्य है?2M
2016 Specialघरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत बालक की क्या परिभाषा है ?2M
संक्षिप्त विवरण
धारा 1 –  विस्तार
  • शुरुआत में यह कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं था, लेकिन 2019 में अधिनियम में संशोधन कर “जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय” शब्दों को हटा दिया गया, इसलिए इसका विस्तार अब  संपूर्ण भारत पर है। 
धारा  2 – परिभाषाएं
  • व्यथित व्यक्ति – कोई ऐसी महिला है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू हिंसा का शिकार रही है
  • प्रत्यर्थी – कोई ‘वयस्क पुरुष’ अभिप्रेत है जो व्यथित व्यक्ति की घरेलू नातेदारी में है या रहा है और जिसके विरुद्ध व्यथित व्यक्ति ने, इस अधिनियम के अधीन कोई अनुतोष चाहा है
    • नोट → हरसोरा बनाम हरसोरा वाद 2016 में सर्वोच्च न्यायलय ने इस धारा 2(q) में से “वयस्क पुरुष” शब्द को असंवैधानिक घोषित कर हटा
  • बालक – कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो अठारह वर्ष से कम आयु का है और जिसके अंतर्गत कोई दत्तक, सौतेला या पोषित बालक है
  • घरेलू नातेदारी – ऐसे दो व्यक्तियों के बीच नातेदारी अभिप्रेत है, जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं, जब वे, समरक्‍तता, विवाह द्वारा या विवाह, दत्तक ग्रहण की प्रकृति की किसी नातेदारी द्वारा संबंधित हैं या एक अविभक्त कुटुंब  के रूप में एक साथ रहने वाले कुटुम्ब के सदस्य हैं 
  • दहेज “दहेज” से कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति अभिप्रेत है जो विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात किसी समय —
    1. विवाह के किसी आक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को ; या 
    2. विवाह के किसी एक पक्षकार के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी भी पक्षकार को या किसी अन्य व्यक्ति को,
    3. नोट → मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) के संभांड में मेहर इसके अन्तर्गत नहीं है।
  • मजिस्ट्रेट – मजिस्ट्रेट से उस क्षेत्र पर, जिसमें व्यथित व्यक्ति अस्थायी रूप से या अन्यथा निवास करता है; या जिसमें प्रत्यर्थी निवास करता है; या जिसमें घरेलू हिंसा का होना अभिकथित किया गया है, दंड प्रक्रिया संहिता (अब-भारतीय न्याय संहिता), 1973 के अधीन अधिकारिता का प्रयोग करने बाला, यथास्थिति, प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट अभिष्रेत है; 
  • साझी गृहस्थी – का अर्थ उस घर से है जहाँ पीड़ित व्यक्ति (व्यथित व्यक्ति) रहता है या कभी घरेलू संबंध में रह चुका है, चाहे अकेले या प्रतिवादी (प्रत्यर्थी) के साथ। इसमें वह घर भी शामिल है जो उनके संयुक्त स्वामित्व या किराये पर हो सकता है, या दोनों में से किसी एक के नाम पर हो। इसमें उस घर को भी शामिल किया गया है, जो संयुक्त परिवार का हिस्सा है जिसमें प्रतिवादी सदस्य है, चाहे वहाँ पीड़ित या प्रतिवादी का कोई अधिकार या स्वामित्व न हो।
  • संक्षेप में: साझा गृहस्थी वह घर है जहाँ पीड़ित और प्रतिवादी कभी साथ रहते थे, चाहे वह घर किसी के भी नाम पर हो या संयुक्त परिवार से हो, अधिकार या स्वामित्व की परवाह किए बिना।

घरेलू हिंसा

धारा 3 :  घरेलू हिंसा की परिभाषा

इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या किसी कार्य का करना या आचरण, घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह

  • (क) व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि करता है, या उसे कोई क्षति पहुंचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की प्रकृति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कारित करना भी है; या
  • (ख) किसी दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग की पूर्ति के लिए उसे या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को प्रपीड़ित करने की दृष्टि से व्यथित व्यक्ति का उत्पीड़न करता है या उसकी अपहानि करता है या उसे क्षति पहुंचाता है या संकटापन्न करता है; या
  • (ग) खंड (क) या खंढ (ख) में वर्णित किसी आचरण द्वारा व्यथित व्यक्ति या उससे संबंधित किसी व्यक्ति पर धमकी का प्रभाव रखता है; या
  • (घ) व्यथित व्यक्ति को, अन्यथा क्षति पहुंचाता है या उत्पीड़न कारित करता है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक ।

साधारण शब्दों में, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रत्यर्थी का निम्नलिखित व्यवहार या क्रियाएं घरेलू हिंसा मानी जाती हैं:

  1. स्वास्थ्य और सुरक्षा को हानि पहुँचाना: यदि किसी कार्य या व्यवहार से व्यथित व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक भलाई को खतरा होता है। इसमें शारीरिक, लैंगिक, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक दुरुपयोग शामिल है।
  2. अवैध मांग के लिए दबाव: दहेज, संपत्ति या मूल्यवान वस्तुओं की अवैध मांग के लिए व्यथित व्यक्ति या उसके निकट संबंधियों को शारीरिक या मानसिक दबाव देना या प्रताड़ित करना।
  3. धमकी देना: ऐसे कार्य जिनसे व्यथित व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों पर भय या धमकी का प्रभाव हो, ताकि वे मानसिक या शारीरिक रूप से असुरक्षित महसूस करें।
  4. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उत्पीड़न: किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाना, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
  • शारीरिक दुरुपयोग: ऐसी कोई आचरण जो व्यथित व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा अपहानि या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य को खतरा  पहुँचाएँ। और इसके अंतर्गत हमला, आपराधिक अभित्रास और आपराधिक बल भी है; 
  • लैंगिक दुरुपयोग: लैंगिक प्रकृति का कोई ऐसा आचरण अभिप्रेत है  जो महिला की गरिमा का अपमान, तिरस्कार या अन्यथा अतिक्रमण करता हो।
  • मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग: बार-बार अपमानित करना, उपहास, तिरस्कार, गाली और विशेष रूप से संतान या नर बालक के न होने के संबंध में अपमान, या शारीरिक पीड़ा की धमकी देना।
  • आर्थिक दुरुपयोग: आवश्यक आर्थिक संसाधनों से वंचित करना, संपत्ति या स्त्रीधन को हड़पना, या गृहस्थी की वस्तुओं का अनुचित रूप से प्रयोग करना।

संरक्षण अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं आदि के अधिकार और कर्तव्य

धारा 8 : संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति
  • नियुक्ति: राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
  • संरक्षण अधिकारी: यथासंभव महिला होनी चाहिए।
धारा 9 : संरक्षण अधिकारियों के कर्तव्य एवं कार्य
  • न्यायिक अधिकारी की सहायता: इस अधिनियम के तहत न्यायिक अधिकारी को उनके कार्यों में सहायता करना।
  • घरेलू हिंसा की रिपोर्टिंग: निर्धारित प्रारूप में घरेलू हिंसा की रिपोर्ट न्यायिक अधिकारी को देना और प्रतियां स्थानीय पुलिस व सेवा प्रदाताओं को भेजना।
  • संरक्षण आदेश का आवेदन: व्यथित व्यक्ति के अनुरोध पर न्यायिक अधिकारी के समक्ष संरक्षण आदेश का आवेदन करना।
  • कानूनी सहायता एवं प्रपत्र: व्यथित व्यक्ति के लिए कानूनी सहायता की व्यवस्था करना और आवश्यक शिकायत प्रपत्र प्रदान करना।
  • सेवा प्रदाताओं की सूची: कानूनी सहायता, परामर्श, आश्रय और चिकित्सा सहायता हेतु सेवा प्रदाताओं की सूची तैयार रखना।
  • सुरक्षित आश्रय की व्यवस्था: आवश्यकतानुसार व्यथित व्यक्ति के लिए सुरक्षित आश्रय की व्यवस्था करना और पुलिस एवं न्यायिक अधिकारी को सूचित करना।
  • चिकित्सा परीक्षा: व्यथित व्यक्ति घायल हो तो चिकित्सा परीक्षा करवाना और रिपोर्ट पुलिस व न्यायिक अधिकारी को भेजना।
  • वित्तीय राहत आदेशों का पालन: न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार वित्तीय राहत आदेशों का पालन सुनिश्चित करना।
  • अतिरिक्त कर्तव्य: न्यायिक अधिकारी या सरकार द्वारा निर्देशित अन्य कर्तव्यों का पालन करना।
अनुच्छेद 10 : सेवा प्रदाता
  • कौन पंजीकरण कर सकता है – किसी भी स्वैच्छिक संघ को जो समाज पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है, या कंपनियों अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कंपनी, या किसी अन्य कानून के तहत पंजीकरण कराने की अनुमति है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है।
  • शक्ति:
    • घरेलू हिंसा की रिपोर्टों का दस्तावेजीकरण करना, यदि मांगा जाए, और उसकी प्रतियां मजिस्ट्रेट और सुरक्षा अधिकारी को भेजना।
    • पीड़िता के लिए चिकित्सीय परीक्षणों की व्यवस्था करना और रिपोर्टें संबंधित अधिकारियों को भेजना।
    • आवश्यकता पड़ने पर आश्रय प्रदान करना और स्थानीय पुलिस को व्यवस्था के बारे में सूचित करना।
धारा 11 : सरकार के कर्तव्य
  • सार्वजनिक जागरूकता: टीवी, रेडियो और प्रिंट मीडिया के माध्यम से नियमित अंतराल पर व्यापक प्रचार-प्रसार करना।
  • प्रशिक्षण: सरकारी अधिकारियों, पुलिसकर्मियों और न्यायिक सेवा के सदस्यों को घरेलू हिंसा से संबंधित मुद्दों पर।
  • समन्वय: कानून व्यवस्था, गृह, स्वास्थ्य और मानव संसाधन मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • सेवा प्रोटोकॉल: विभिन्न मंत्रालयों और न्यायालयों के लिए प्रोटोकॉल तैयार करना।

राहत आदेश प्राप्त करने की प्रक्रिया

धारा 12: मजिस्ट्रेट को आवेदन
  • अनुतोष के लिए आवेदन: व्यथित व्यक्ति, एक संरक्षण अधिकारी, या उनकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के अंतर्गत अनुतोष के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।
  • अनुतोष के प्रकार: आवेदन में घरेलू हिंसा के कारण हुए नुकसान या क्षति के लिए मुआवजे या प्रतिकर की मांग शामिल हो सकती है।
  • प्रारूप और सुनवाई का समय:
    • आवेदन को निर्धारित प्रारूप में होना चाहिए।
    • प्रथम सुनवाई सामान्यतः आवेदन की तारीख से 3 दिन के भीतर निर्धारित की जाती है।
    • मजिस्ट्रेट पहले सुनवाई की तारीख से 60 दिन के भीतर आवेदन का निपटारा करने का प्रयास करेगा।
अधिनियम के अंतर्गत उपलब्ध उपचार
धारा 17 : साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार
  1. तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, घरेलू नातेदारी में प्रत्येक महिला को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा चाहे वह उसमें कोई अधिकार, हक या फायदाप्रद हित रखती हो या नहीं ।
  2. विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसरण में के सिवाय, कोई व्यथित व्यक्ति, प्रत्यर्थी द्वारा किसी साझी गृहस्थी या उसके किसी भाग से बेदखल या अपवर्जित नहीं किया जाएगा ।
धारा 18 – संरक्षण आदेश

यदि घरेलू हिंसा की पुष्टि या पूर्वानुमानित होती है, तो मजिस्ट्रेट एक संरक्षण आदेश जारी कर सकता है जिससे आगे के नुकसान को रोका जा सके। यह आदेश प्रत्यर्थी को निम्नलिखित से रोक सकता है:

  • किसी भी घरेलू हिंसा को करने या उसमें सहायता करने से।
  • व्यथित व्यक्ति के कार्यस्थल या, बच्चे के लिए, उनके विद्यालय में जाने से।
  • किसी भी रूप में व्यथित व्यक्ति से संपर्क( वैयक्तिक, मौखिक या लिखित या इलैक्ट्रोनिक या दूरभाषीय संपर्क ) करने से।
  • साझा संपत्ति, संपत्तियों या धन के साथ कोर्ट की अनुमति के बिना निपटने से।
  • व्यथित व्यक्ति का समर्थन करने वालों को नुकसान पहुंचाने से।
  • आदेश में निर्दिष्ट किसी अन्य कार्रवाई करने से।
धारा 19 – आवास आदेश

यदि घरेलू हिंसा की पुष्टि होती है, तो मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी को आदेश दे सकता है कि:

  • व्यथित व्यक्ति के निवास या साझा गृहस्थी में कब्जे में हस्तक्षेप न करे।
  • प्रत्यर्थी को, उस साझी गुहस्थी से स्वयं को हटाने का निदेश देना।
  • ऐसे साझी गृहस्थी के किसी भाग में प्रवेश करने से रोकना जिसमे व्यथित व्यक्ति निवास करता है।
  • साझी गृहस्थी के अन्यसंक्रांत करने या व्ययनित करने या उसे विल्लंगमित करने से अवरुद्ध करना;
  • प्रत्यर्थी को साझी गृहस्थी में अपने अधिकार त्यजन से, अवरुद्ध करना; 
  • वैकल्पिक आवास का समान मानक प्रदान करे या यदि आवश्यक हो तो इसका किराया वहन करे।
धारा 20 – धनीय अनुतोष

सहन की गई हानियों की पूर्ति के लिए धनीय अनुतोष का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निदेश दे सकेगा और ऐसे अनुतोष में निम्नलिखित सम्मिलित हो सकेंगे 

  • उपार्जनों की हानि; 
  • चिकित्सीय व्ययों; 
  • व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी संपत्ति के नाश, नुकसानी या हटाए जाने के कारण हुई हानि; और 
  • व्यथित व्यक्ति के साथ-साथ उसकी संतान के लिए भरण-पोषण
धारा 21 – अभिरक्षा आदेश

मजिस्ट्रेट किसी भी बच्चे या बच्चों की अस्थायी संरक्षकता व्यथित व्यक्ति या उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को दे सकता है और यदि आवश्यक समझा जाए, तो प्रत्यर्थी द्वारा बच्चे या बच्चों के दौरे के लिए व्यवस्थाओं को निर्दिष्ट कर सकता है

धारा 22 – प्रतिकर आदेश
  • इसके अतिरिक्त, मजिस्ट्रेट व्यथित व्यक्ति द्वारा किए गए आवेदन पर, प्रत्यर्थी को घरेलू हिंसा के कार्यों के कारण मानसिक यातना और भावनात्मक कष्ट सहित क्षतियों के लिए प्रतिकर और नुकसानी का भुगतान करने का आदेश पारित कर सकता है।
अनुच्छेद 29 – अपील
  • मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश से 30 दिन की अवधि के भीतर सत्र न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
दंड या सज़ा
धारा 31 – प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के भंग के लिए शास्ति
  • कारावास: 1 वर्ष तक या,
  • जुर्माना: 20,000 रुपये या दोनों।
धारा 33 –  संरक्षण अधिकारी द्वारा कर्तव्यों का निर्वहन न करने के लिए शास्ति
  • कारावास: 1 वर्ष तक या,
  • जुर्माना: 20,000 रुपये या दोनों।
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ:
  1. निवास का अधिकार: धारा 17 के अंतर्गत निवास का अधिकार सुनिश्चित करता है।
  2. आर्थिक राहत: आर्थिक हिंसा को मान्यता देकर आर्थिक राहत सुनिश्चित करता है।
  3. मौखिक और भावनात्मक हिंसा: मौखिक और भावनात्मक हिंसा को मान्यता देता है।
  4. अस्थायी संरक्षकता: बच्चों की अस्थायी संरक्षकता प्रदान करता है।
  5. निर्णय की समय सीमा: मामले के दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर निर्णय।
  6. एक ही मामले में कई निर्णय: एक ही मामले में कई निर्णय हो सकते हैं।
  7. अन्य मामलों के बावजूद फiling: पक्षों के बीच अन्य मामले लंबित होने पर भी PWDV अधिनियम के तहत मामले दायर किए जा सकते हैं।
  8. अपील का अधिकार: दोनों, याचिकाकर्ता और प्रत्यर्थी, अपील कर सकते हैं।
समाचारों में
  • हीरालाल पी. हरसोरा बनाम कुसुम नरोटमदास हरसोरा (2016)सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2(q) में से “वयस्क पुरुष” शब्द को असंवैधानिक घोषित कर हटाया, जो “प्रत्यर्थी” की परिभाषा को सीमित करता था। इस निर्णय के बाद महिलाएं किसी भी परिवार सदस्य, जिसमें महिला रिश्तेदार भी शामिल हैं, के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कर सकती हैं, जिससे यह अधिनियम अधिक समावेशी बन गया।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2021कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत उल्लिखित ‘ यौन उत्पीड़न’ का अर्थ लिखिए।2M
अवलोकन
  • उद्देश्य: महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना, शिकायत निवारण सुनिश्चित करना, और संबंधित मामलों से जोड़ना।
  • मूलभूत अधिकार: यौन उत्पीड़न महिला के निम्नलिखित अधिकारों का उल्लंघन करता है:
    • समता का अधिकार (धारा 14 और 15 के तहत)
    • जीवन और गरिमा का अधिकार (धारा 21 के तहत)
    • किसी भी पेशे या व्यवसाय को सुरक्षित वातावरण में, उत्पीड़न से मुक्त होकर अपनाने का अधिकार (धारा 19 के तहत)

अंतर्राष्ट्रीय आधार: यह अधिनियम अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों में वर्णित सार्वभौमिक मानवाधिकारों के साथ मेल खाता है, जिसमें महिला के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की संधि (CEDAW) भी शामिल है, जिसे भारत ने स्वीकृत किया है।

अध्याय 1 – प्रारंभिक

धारा  2: परिभाषाएँ 
  • व्यथित महिला :
    1. कार्यस्थल– के संबंध में एसी महिला जो प्रत्यर्थी द्वारा लैंगिक उत्पीड़न के किसी कार्य के करने का अभिकथन करती है 
    2. गृह- के संबंध में एसी महिला जो निवास स्थान या गृह में नियोजित है।
  • घरेलू कमकार:
    1. एसी कोई महिला अभिप्रेत है जो किसी गृहस्थी में पारिश्रमिक के लिए गृहस्थी का कार्य छै नगद या वस्तुरूप में या तो स्थायी या अस्थायी, अंशकालिक या पूर्णकालिक आधार पर नियोजित है;
    2. नोट → इसमें नियोजक के कुटुंब का कोई सदस्य नहीं है।
  • कर्मचारी:
    • कर्मचारी वह व्यक्ति है, जो कार्यस्थल पर किसी कार्य के लिए काम कर रहा है, चाहे वह नियमित, अस्थायी, तदर्थ या दैनिक मजदूरी पर हो। यह व्यक्ति किसी ठेकेदार या किसी अभिकर्ता के माध्यम से भी काम कर सकता है, और यह काम वेतन पर या बिना वेतन के हो सकता है। इस व्यक्ति का काम स्वैच्छिक रूप से भी हो सकता है और इसमें सहकर्मचारी, संविदा कर्मी, प्रशिक्षु, शिक्षु, या कोई अन्य व्यक्ति शामिल हो सकता है।
  • नियोजक:
    • सरकारी या स्थानीय प्राधिकरण का अधिकारी: जो किसी विभाग, संगठन, कार्यालय या यूनिट का प्रमुख हो या जिसे सरकार द्वारा जिम्मेदारी दी गई हो।
    • कार्यस्थल के प्रबंधक: वह व्यक्ति जो कार्यस्थल के संचालन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार हो।
    • संविदात्मक दायित्व निभाने वाला: वह व्यक्ति जो कर्मचारियों से संबंधित संविदात्मक जिम्मेदारियाँ निभाता हो।
    • घरेलू कर्मकार को नियोजित करने वाला: वह व्यक्ति जो घरेलू कर्मकार को काम पर रखता है या उसके काम से लाभ उठाता है।
  • लैंगिक उत्पीड़न – के अन्तर्गत निम्नलिखित कोई एक या अधिक अवांछनीय कार्य या व्यवहार चाहे प्रत्यक्ष रूप से या विवक्षित रूप से हैं, अर्थात्‌
    • शारीरिक संपर्क और अग्रगमन; या 
    • लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध करना; या 
    • लैंगिक अत्युक्त टिप्पणियां करना; या 
    • अश्लील साहित्य दिखाना; या 
    • लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण करना;
  • कार्यस्थल:
    1. सरकारी या सार्वजनिक नियंत्रण में संस्थान: वह विभाग, संगठन, उपक्रम, या संस्था जो सरकारी, निगम या सहकारी सोसाइटी द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित हो।
    2. निजी क्षेत्र संगठन: वह प्राइवेट कंपनियां, उद्यम, संस्थान या सेवा प्रदाता जो व्यावसायिक, शैक्षिक, औद्योगिक या स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हों।
    3. अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र: स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले स्थान।
    4. खेलकूद संस्थान या स्टेडियम: खेलकूद या प्रशिक्षण से संबंधित स्थल, चाहे वह आवासीय हो या नहीं।
    5. यात्रा से संबंधित स्थान: वह स्थान जहां नियोजक द्वारा कर्मचारियों के लिए यात्रा की व्यवस्था की जाती हो।
    6. निवास स्थान: घर या कोई आवासीय स्थान।
धारा 3: लैंगिक उत्पीड़न का निवारण-
  1. Prohibition: किसी भी कार्यस्थल पर किसी भी महिला को यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं किया जाएगा।
  2. यौन उत्पीड़न को स्थापित करने वाली परिस्थितियाँ, कृत्य या व्यवहार:
    • रोजगार में प्राथमिकता प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वादे।
    • रोजगार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नकारात्मक व्यवहार के लिए धमकियाँ।
    • उसकी वर्तमान या भविष्य की रोजगार स्थिति को लेकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धमकियाँ।
    • उसके कार्य में हस्तक्षेप करना या उसके लिए डरावना, शत्रुतापूर्ण, या अपमानजनक कार्य वातावरण उत्पन्न करना।
    • अपमानजनक व्यवहार जो उसकी स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित कर सकता हो।

अध्याय 2 : आंतरिक परिवाद समिति का गठन

Section 4:  आंतरिक परिवाद समिति का गठन
  1. नियोक्ता की जिम्मेदारी: प्रत्येक नियोक्ता को प्रत्येक प्रशासनिक इकाई या कार्यालय में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) स्थापित करनी होगी, जो लिखित आदेश द्वारा होगी।
  2. समिति के सदस्य: आंतरिक शिकायत समिति में नियोक्ता द्वारा नामांकित सदस्य होंगे:
    • अध्यक्ष: एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी।
    • दो सदस्य: ऐसे कर्मचारी जो महिला अधिकारों के प्रति समर्पित हों, और जिन्हें सामाजिक कार्य या कानूनी ज्ञान का अनुभव हो।
    • एक NGO सदस्य: एक गैर-सरकारी संगठन या संघ का सदस्य जो यौन उत्पीड़न मामलों में विशेषज्ञता रखता हो।
  • महिला प्रतिनिधित्व: आंतरिक शिकायत समिति के कम से कम आधे सदस्य महिला होने चाहिए।
  • कार्यकाल: सदस्य तीन वर्ष तक कार्य करेंगे, जैसा कि नियोक्ता द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • NGO प्रतिनिधि को पारिश्रमिक।
  • सदस्यों की बर्खास्तगी: अध्यक्ष या कोई भी सदस्य तब हटा दिए जाएंगे यदि वे:
    • धारा 16 (शिकायत और जांच की कार्यवाही के विवरण का प्रकाशन या प्रचार निषेध) के तहत गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं।
    • किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए हों या जांच में हों।
    • अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषी पाए जाएं।
    • अपनी स्थिति का दुरुपयोग करें, जिससे जनहित को नुकसान हो।

अध्याय 3: स्थानीय परिवाद समिति का गठन

धारा 5: जिला अधिकारी की अधिसूचना
  • The government will appoint a District Officer (such as the District Magistrate) in each district to oversee functions under this Act.
धारा 6: स्थानीय परिवाद समिति का गठन और उसकी अधिकारिता
  1. उद्देश्य: प्रत्येक ज़िला अधिकारी उन प्रतिष्ठानों के लिए एक स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaints Committee – LCC) का गठन करेगा जहाँ कर्मचारियों की संख्या दस से कम हो, अथवा यदि शिकायत नियोक्ता के विरुद्ध हो।
  2. नोडल अधिकारी: ज़िला अधिकारी प्रत्येक ब्लॉक, तालुका, तहसील और नगरपालिका में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करेंगे, जो शिकायतों को प्राप्त कर उन्हें सात दिनों के भीतर स्थानीय शिकायत समिति (LCC) को प्रेषित करेंगे।
धारा 7: स्थानीय परिवाद समिति की संरचना, सेवाधृति और अन्य निबंधन तथा शर्त
  • सदस्य: निम्नलिखित सदस्य होंगे
    • अध्यक्ष: एक प्रमुख महिला सामाजिक कार्यकर्ता जो महिला मुद्दों के प्रति प्रतिबद्ध हो।
    • स्थानीय महिला सदस्य: एक महिला जो स्थानीय सरकार (ब्लॉक, तालुका, तहसील, वार्ड या नगरपालिका) में कार्यरत हो।
    • दो NGO सदस्य: कम से कम एक महिला, जो महिला मुद्दों या कानूनी ज्ञान में विशेषज्ञ हो, और एक सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय से हो।
    • अन्य सदस्य: एक जिला सामाजिक कल्याण या महिला एवं बाल विकास अधिकारी।
  • कार्यकाल: अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष तक कार्य करेंगे, जैसा कि जिला अधिकारी द्वारा परिभाषित किया जाएगा।
  • हटाना: अध्यक्ष या कोई सदस्य हटाए जा सकते हैं यदि वे:
    • धारा 16 (गोपनीयता उल्लंघन) का उल्लंघन करते हैं।
    • किसी अपराध में दोषी ठहराए गए हों या जांच में हों।
    • अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषी पाए जाएं।
    • अपनी स्थिति का दुरुपयोग करें, जिससे जनहित को नुकसान हो।

अध्याय 4 : परिवाद

धारा 9: शिकायत दाखिल करना(परिवाद)
  • समय सीमा: एक पीड़ित महिला तीन महीने के भीतर आंतरिक या स्थानीय समिति में लिखित शिकायत कर सकती है।
  • सहायता: यदि वह लिखने में असमर्थ है, तो समिति को उसकी मदद करनी होगी।
  • विस्तार: यदि परिस्थितियां समय पर शिकायत दायर करने में रुकावट डालती हैं, तो समिति तीन महीने तक समय सीमा बढ़ा सकती है।
  • तीसरे पक्ष द्वारा शिकायत: यदि महिला दायर करने में असमर्थ है, तो उसका कानूनी उत्तराधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से शिकायत दायर कर सकता है।
धारा 10: सुलह
  • विकल्प: यदि महिला की इच्छा हो, तो समिति मामले को सुलह के माध्यम से सुलझाने का प्रयास कर सकती है, लेकिन कोई मौद्रिक समझौता नहीं किया जा सकता।
  • समाप्ति: यदि सुलह हो जाती है, तो आगे की जांच नहीं की जाएगी।
धारा 11: परिवाद की जांच
  • प्रक्रिया: समिति संबंधित सेवा नियमों के अनुसार जांच करेगी, या यदि यह घरेलू कार्यकर्ता से जुड़ा मामला है और प्राथमिक तौर पर यौन उत्पीड़न का मामला है, तो इसे पुलिस के पास भेजा जाएगा।
  • पक्षों के अधिकार: दोनों पक्षों को सुनवाई का अधिकार होगा।
  • जांच के अधिकार: समिति के पास सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे जैसे दस्तावेज़ पेश करने के लिए बुलाना और गवाहों की जांच करना।
  • समय सीमा: जांच 90 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

अध्याय 5 : परिवाद की जांच

धारा 12: जांच के दौरान अस्थायी उपाय
  • सिफारिशें: जांच के दौरान समिति नियोक्ता को निम्नलिखित सिफारिश कर सकती है
    • महिला या आरोपी का स्थानांतरण।
    • महिला को तीन महीने तक की छुट्टी (विशिष्ट छुट्टी के अलावा)।
    • अन्य निर्धारित राहतें।
धारा 13: जांच रिपोर्ट
  • रिपोर्ट प्रस्तुति: जांच पूरी होने पर, समिति रिपोर्ट को नियोक्ता या जिला अधिकारी को 10 दिनों के भीतर सौंपेगी और इसे संबंधित पक्षों के साथ साझा करेगी।
  • निष्कर्ष:
    • कोई साक्ष्य नहीं: यदि उत्पीड़न का कोई प्रमाण नहीं मिलता, तो आगे कोई कार्रवाई की सिफारिश नहीं की जाएगी।
    • उत्पीड़न का प्रमाण: यदि उत्पीड़न साबित हो जाता है, तो समिति निम्नलिखित सिफारिश कर सकती है:
      • सेवा नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई।
      • पीड़ित महिला या उसके कानूनी उत्तराधिकारी को प्रत्यर्थी के वेतन या मजदूरी से मुआवज़ा राशि प्रदान करना।
  • कार्रवाई: नियोक्ता/जिला अधिकारी को सिफारिशों पर 60 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी।
धारा 15. प्रतिकर का अवधारणा 
  • ध्यान में रखे जाने वाले कारक
    • मानसिक आघात, दर्द, कष्ट और तनाव।
    • उत्पीड़न के कारण करियर पर प्रभाव।
    • चिकित्सा खर्चे।
    • आरोपी की आय और वित्तीय स्थिति।
    • एकमुश्त या किस्तों में भुगतान की व्यवहारिकता।
धारा 18. अपील प्रक्रिया
  • अपील का अधिकार: कोई भी व्यक्ति जो सिफारिशों से या उनकी अनुपालन से असंतुष्ट है, वह संबंधित न्यायालय या ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है
  • समय सीमा: अपील 90 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए।

अध्याय 6 : नियोजक के कर्तव्य

धारा 19 : नियोजक के कर्तव्य
  • सुरक्षित वातावरण: कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करें, जिसमें कार्यस्थल पर अन्य व्यक्तियों से सुरक्षा भी शामिल हो।
  • जागरूकता और प्रदर्शन: यौन उत्पीड़न के लिए दंडात्मक परिणामों और आंतरिक समिति के बारे में जानकारी को प्रमुखता से प्रदर्शित करें।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता: कर्मचारियों में जागरूकता बढ़ाने और समिति के सदस्यों के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन करें, जैसा कि निर्धारित किया गया है।
  • समिति समर्थन: शिकायतों को संबोधित करने और जांच करने के लिए आंतरिक या स्थानीय समिति को आवश्यक संसाधन प्रदान करें।
  • उपस्थिति और जानकारी: आरोपी और गवाहों की उपस्थिति को सुगम बनाएं और समिति को आवश्यक जानकारी प्रदान करें।
  • कानूनी सहायता: यदि महिला संबंधित कानूनों के तहत शिकायत दर्ज करने का निर्णय लेती है, तो उसे कानूनी सहायता प्रदान करें।
  • कार्रवाई प्रारंभ करें: महिला की इच्छा पर भारतीय दंड संहिता या अन्य लागू कानूनों के तहत दोषियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करें, जिसमें गैर-कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं।
  • अविनाशी कार्यवाही: यौन उत्पीड़न को सेवा नियमों के तहत misconduct के रूप में वर्गीकृत करें और कार्रवाई प्रारंभ करें।
  • निगरानी: आंतरिक समिति द्वारा समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने की निगरानी करें।

अध्याय 7: जिला अधिकारी के कर्तव्य और शक्तियां

धारा 20 : जिला अधिकारी की ज़िम्मेदारियाँ
  • स्थानीय समिति द्वारा दी गई रिपोर्टों को समय से प्रस्तुत किए जाने को मानिटर करेगा; 
  • ​​ऐसे उपाय करेगा, जो लैंगिक उत्पीड़न और महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जानकारी सृजित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को लगाने के लिए आवश्यक हों । 

अध्याय 8 : विविध प्रावधान

धारा 21 : समिति द्वारा वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया जाना-
  • आंतरिक और स्थानीय समितियाँ नियोक्ता और जिला अधिकारी को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
  • जिला अधिकारी राज्य सरकार को रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण भेजेंगे।
सरकार को सूचना और निरीक्षण अधिकार
  • सरकार नियोक्ता या जिला अधिकारियों से यौन उत्पीड़न मामलों के बारे में लिखित जानकारी मांग सकती है।
  • एक अधिकृत अधिकारी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित रिकॉर्ड का निरीक्षण कर सकता है और सरकार को एक निर्दिष्ट अवधि में रिपोर्ट करेगा।
अधिनियम अननुपालन के लिए शास्ति
  • नियोक्ता यदि आंतरिक समिति का गठन नहीं करते, निर्धारित कार्रवाई नहीं लेते, या अधिनियम का उल्लंघन करते हैं, तो उन पर ₹50,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • पुनरावृत्त अपराध: जुर्माना दोगुना हो सकता है, और लाइसेंस, पंजीकरण, या व्यापार अनुमोदन रद्द किए जा सकते हैं।
न्यायालयों द्वारा अपराध का संज्ञान
  • कोर्ट केवल वही शिकायतें सुन सकते हैं जो व्यथित महिला या अधिकृत समिति प्रतिनिधियों द्वारा दर्ज की गई हों।
  • क्षेत्राधिकार: केवल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई कर सकते हैं।
  • इस अधिनियम के तहत सभी अपराध गैर-संज्ञेय (Non-cognizable) होते हैं।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2021लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में उल्लिखित ‘लैंगिक हमला’ शब्द की व्याख्या कीजिए  ।5M
2018लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 को अधिनियमित करने का प्रमुख उद्देश्य बताइये ।2M
धारा  1 : विस्तार -इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है। 
धारा  2 : परिभाषाएं
  • बालक – कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी आयु अठारह वर्ष से कम है; 
  • घरेलू संबंध : ऐसे दो व्यक्तियों के बीच नातेदारी अभिप्रेत है, जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं, जब वे, समरक्‍तता, विवाह द्वारा या विवाह, दत्तक ग्रहण की प्रकृति की किसी नातेदारी द्वारा संबंधित हैं या एक अविभक्त कुटुंब  के रूप में एक साथ रहने वाले कुटुम्ब के सदस्य हैं 
धारा 3 : प्रवेशन लैंगिक हमला (PSA)

कोई व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला करता है यदि वह –

  • वह अपने लिंग को किसी बालक की (योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा) में प्रवेश कराता है या बालक से अपने या किसी अन्य के साथ ऐसा कराता है; या
  • वह किसी वस्तु या शरीर के किसी भाग (जो लिंग नहीं है) को किसी बालक की (योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा) में प्रवेश कराता है या बालक से अपने या किसी अन्य के साथ ऐसा कराता है; या
  • वह बालक के (लिंग, योनि, गुदा या मूत्रमार्ग) पर अपना मुंह लगाता है या बालक से अपने या किसी अन्य के साथ ऐसा कराता है।
धारा 4 : प्रवेशन  लैंगिक हमले के गलए दंड
  • सामान्य दंड :  न्यूनतम 10 वर्ष की सजा, जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है, और जुर्माना।
  • 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर हमले का दंड : न्यूनतम 20 वर्ष की सजा, जो आजीवन कारावास में बदल सकती है, और जुर्माना।
धारा 5 :  गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला

यह तब होता है जब निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला किया जाता है:

  • पुलिस अधिकारी: अपने थाना क्षेत्र या अन्य किसी भी परिसर में, ड्यूटी के दौरान या जहां वह पुलिस अधिकारी के रूप में जाना जाता है।
  • सुरक्षा बल या सैन्य बल के सदस्य: नियुक्त क्षेत्र या कमांड क्षेत्र में, ड्यूटी के दौरान या जहां वह सुरक्षा बल के सदस्य के रूप में जाना जाता है।
  • लोक सेवक: किसी भी सार्वजनिक पद पर रहते हुए बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • जेल, संरक्षण गृह, या देखभाल केंद्र का प्रबंधन या कर्मचारी: बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • अस्पताल का प्रबंधन या कर्मचारी: सरकारी या निजी अस्पताल में बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • शैक्षणिक या धार्मिक संस्था का प्रबंधन या कर्मचारी: उस संस्था में बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला:  जो कोई किसी बालक पर सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • घातक हथियार का उपयोग: घातक हथियार, आग, या संक्षारक पदार्थ का उपयोग करते हुए हमला।
  • गंभीर शारीरिक या यौन चोट पहुँचाना: बालक को गंभीर शारीरिक या यौन चोट पहुँचाना।
  • शारीरिक या मानसिक अक्षमता उत्पन्न करना: जिससे बालक अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक रोगी बन जाए।
  • बालिका का लैंगिक हमले के परिणामस्वरूप गर्भवती हो जाना।
  • एचआईवी या अन्य जानलेवा संक्रमण: एचआईवी या अन्य जानलेवा बीमारी से बालक को संक्रमित करना।
धारा 6 : गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमले के लिए दंड
  • कठोर कारावास – 20 वर्ष, आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • और जुर्माने से दायी होगा या मृत्यु से दंडित किया जाएगा।
धारा 7 :  लैंगिक हमला
  • किसी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित कार्य लैंगिक आशय से करने पर उसे लैंगिक हमला माना जाएगा
    • बालक की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श करना
    • बालक से अपने या किसी अन्य व्यक्ति के योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श कराना
    • बिना प्रवेशन के शारीरिक संपर्क सहित कोई अन्य कार्य जो लैंगिक आशय से किया गया हो
धारा 8 : लैंगिक हमले के लिए दंड
  • कारावास: 3 वर्ष, जो 5 वर्ष तक बढ़ सकता है
  • जुर्माने का भी प्रावधान है
धारा 9 : गुरुतर लैंगिक हमला

यह तब होता है जब निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला किया जाता है:

  • पुलिस अधिकारी: अपने थाना क्षेत्र या अन्य किसी भी परिसर में, ड्यूटी के दौरान या जहां वह पुलिस अधिकारी के रूप में जाना जाता है।
  • सुरक्षा बल या सैन्य बल के सदस्य: नियुक्त क्षेत्र या कमांड क्षेत्र में, ड्यूटी के दौरान या जहां वह सुरक्षा बल के सदस्य के रूप में जाना जाता है।
  • लोक सेवक: किसी भी सार्वजनिक पद पर रहते हुए बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • जेल, संरक्षण गृह, या देखभाल केंद्र का प्रबंधन या कर्मचारी: बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • अस्पताल का प्रबंधन या कर्मचारी: सरकारी या निजी अस्पताल में बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • शैक्षणिक या धार्मिक संस्था का प्रबंधन या कर्मचारी: उस संस्था में बालक पर  प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला:  जो कोई किसी बालक पर सामूहिक प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
  • घातक हथियार का उपयोग: घातक हथियार, आग, या संक्षारक पदार्थ का उपयोग करते हुए हमला।
  • गंभीर शारीरिक या यौन चोट पहुँचाना: बालक को गंभीर शारीरिक या यौन चोट पहुँचाना।
  • शारीरिक या मानसिक अक्षमता उत्पन्न करना: जिससे बालक अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक रोगी बन जाए।
  • बालिका का लैंगिक हमले के परिणामस्वरूप गर्भवती हो जाना।
  • एचआईवी या अन्य जानलेवा संक्रमण: एचआईवी या अन्य जानलेवा बीमारी से बालक को संक्रमित करना।
धारा 10 : गुरुतर लैंगिक हमला और उसके लिए दंड
  • कम से कम 5 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष की सजा और जुर्माना होगा।
धारा 11 : लैंगिक उत्पीड़न

किसी व्यक्ति को एक बालक पर यौन उत्पीड़न का दोषी तब माना जाता है, जब वह व्यक्ति यौन इरादे से:

  1. कोई शब्द कहता है, ध्वनि करता है, इशारा करता है, या किसी वस्तु या शरीर का कोई भाग प्रदर्शित करता है, ताकि बालक उसे सुने या देखे; या
  2. बालक को उसके शरीर या उसके शरीर का कोई भाग प्रदर्शित करने के लिए कहता है, ताकि उसे वह व्यक्ति या कोई अन्य व्यक्ति देख सके; या
  3. किसी अश्लील प्रयोजन के लिए किसी वस्तु को किसी माध्यम या मीडिया में बालक को दिखाता है; या
  4. बार-बार या निरंतर किसी बालक का पीछा करता है, उसे देखता है या सीधे या इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल या किसी अन्य साधन के माध्यम से संपर्क करता है; या
  5. बालक के शरीर के किसी भाग या बालक की किसी यौन क्रिया में संलिप्तता को वास्तविक या कल्पित रूप में चित्रित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक, फिल्म, डिजिटल या किसी अन्य माध्यम का उपयोग करने की धमकी देता है; या
  6. अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक को उकसाता है या इसके लिए संतुष्टि देता है।

स्पष्टीकरण: किसी भी प्रश्न में “यौन आशय” शामिल होने पर इसे तथ्य का प्रश्न माना जाएगा।

धारा 12 : लैंगिक उत्पीड़न के लिए दंड
  • कारावास – 3 वर्ष 
  • एवं जुर्माना 
धारा 14 : अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक के उपयोग के लिए दंड
  • 5 वर्ष का कारावास एवं जुर्माना 
  • पश्चात्तवर्ती दोषसिद्धि की दशा में – 7 वर्ष का कारावास एवं जुर्माना 
धारा 15 : बालकों को संलिप्त  करने वाली अश्लील सामग्री के भण्डारकरण लिए दंड  
  • जो व्यक्ति बाल-पोर्नोग्राफ़ी को साझा करने के इरादे से संग्रहित करने , इसे हटाने, नष्ट करने या निर्दिष्ट प्राधिकरण को रिपोर्ट करने में असफल रहता है, उसे न्यूनतम 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा पश्चात्तवर्ती दोषसिद्धि की दशा में जुर्माना 10 हजार रुपये से कम नहीं होगा।
  • जो व्यक्ति बाल-पोर्नोग्राफ़ी को (रिपोर्टिंग या न्यायालय के साक्ष्य को छोड़कर) प्रसारण, प्रचार, प्रदर्शन, या वितरण के लिए संग्रहित करता है, उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों का सामना करना पड़ेगा।
  • व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बाल-पोर्नोग्राफ़ी के भंडारण के लिए
    • पहली सजा: 3 से 5 वर्ष की कारावास, या जुर्माना, या दोनों।
    • पश्चात्तवर्ती दोषसिद्धि की दशा में: 5 से 7 वर्ष की कारावास और जुर्माना।
धारा 22 : मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना के लिए दंड 
  • किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसको अपमानित करने उद्धापित करने, धमकाने या उसकी मानहानि करने के उद्देश्य से मिथ्या परिवाद करने पर – 6 माह का कारावास या जुर्माना या दोनों ।
  • बालक द्वारा मिथ्यापरिवाद करने पर कोई दंड नहीं 
  • बालक ना रहते हुए किसी बालक के विरुद्ध कोई मिथ्या परिवाद करने पर 1 वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों ।
धारा 24 : बालक के कथन को अभिलिखित किया जाना 
  • बालक के निवास पर रिकॉर्ड किया जाएगा।
  • एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा, जो उप-निरीक्षक के रैंक से कम नहीं हो।
  • बयान रिकॉर्ड करते समय, पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होगी।
  • पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेगी कि बालक किसी भी तरीके से आरोपी के संपर्क में न आए।
  • किसी भी कारण से, बालक को रात में पुलिस थाने में नहीं रोका जाएगा।
  • पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेगी कि बालक की पहचान सार्वजनिक मीडिया से सुरक्षित रहे।
धारा 32 : विशेष लोक अभियोजक 
  • नियुक्ति: राज्य सरकार द्वारा
  • योग्यता: केवल वही अधिवक्ता जिनके पास कम से कम सात वर्षों का अनुभव हो।
धारा 33 : विशेष न्यायलयों की प्रक्रिया और शक्तियाँ 
  • अपराध का संज्ञान: शिकायत या पुलिस रिपोर्ट के आधार पर सीधे संज्ञान ले सकता है।
  • प्रश्न-पूछताछ: वकील प्रश्न कोर्ट को देंगे, जो बच्चे से पूछे जाएंगे।
  • विश्राम: बच्चे के लिए आवश्यकतानुसार ब्रेक की अनुमति।
  • सहज वातावरण: बच्चे के साथ एक विश्वासपात्र व्यक्ति को उपस्थित रहने की अनुमति।
  • दोबारा बयान नहीं: बच्चे को बार-बार बयान के लिए नहीं बुलाया जाएगा।
  • सम्मान और सुरक्षा: आक्रामक प्रश्नों या चरित्र हनन की अनुमति नहीं।
  • पहचान गोपनीयता: बच्चे की पहचान गुप्त रखी जाएगी।
धारा 35 : बालक के साक्ष्य को अभिलिखित और मामले का निपटारा करने  के लिए अवधि।
  • विशेष न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान लेने की तिथि से 30 दिनों के भीतर अपराध अभिलिखित किया जाएगा।
  • विशेष न्यायालय, संभव हो तो, अपराध का संज्ञान लेने की तिथि से 1 वर्ष के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करेगा।

उद्देश्य:

  • कुछ व्यवसायों में बाल श्रम पर रोक लगाना।
  • कार्य स्थितियों का विनियमन करना।
  • बाल अधिकारों को सुनिश्चित करना।
कारखाना अधिनियम, 1948: यह अधिनियम किसी भी कारखाने में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है।
खान अधिनियम, 1952: यह अधिनियम किसी भी खान में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है।
धारा 2 : परिभाषा
  • बच्चे – जो 14 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंचा है 
  • किशोर – “किशोर” शब्द का अर्थ उस व्यक्ति से है, जिसने अपना 14वां वर्ष पूरा कर लिया है, लेकिन 18वां वर्ष पूरा नहीं किया है।
  • स्थापन – इसमें दुकान, वाणिज्यिक प्रतिष्ठान, कार्यशाला, खेत, आवासीय होटल, रेस्टोरेंट, भोजनालय, रंगमंच या अन्य कोई सार्वजनिक मनोरंजन या मनोरंजन स्थल शामिल है।
  • स्थापन – के अन्तर्गत दुकान, वाणिज्यिक स्थापना, कार्यशाला, फार्म, आवासीय होटल, उपाहारगृह, भोजन-गृह, नाट्यगृह या सार्वजनिक प्रहिनोद या मनोरंजन का अन्य स्थान है;
  • कुटुंब – ऐसे व्यक्ति का पति या पत्नी और उनकी संतान और ऐसे व्यक्ति का भाई या बहन;
  • सप्ताह – शनिवार की रात को या ऐसी अन्य रात को, जो निरीक्षक द्वारा विशेषतः विशेष क्षेत्र के लिए लिखकर अनुमोदित की जाए, अर्ध-रात्रि से प्रारंभ होने वाली सात दिन की कालावधि अभिप्रेत है;
  • कार्यशाला – से अभिप्रेत है कोई ऐसा परिसर जिसमें कोई औद्योगिक प्रक्रिया को संचालित है; इस अन्तर्गत स्थान को संस्था परिवार नहीं है जिसका कारखाना अधिनियम, 1948 के उपबंध संस्था लागू होते हैं।
धारा 3: कुछ उपजीविकाओं और प्रक्रियाओं में बालकों के नियोजन पर प्रतिबंध
  • उदाहरण के लिए: खदानों में कार्य,अस्थायी लाइसेंस वाले पटाखा और आतिशबाजी निर्माण,बीड़ी निर्माण प्रक्रियाएँ,ढाबों में बच्चों का रोजगार,चमड़ा निर्माण प्रक्रियाएँ आदि।
  • अपवाद :
    • पारिवारिक सहायता: बच्चा स्कूल के बाद या छुट्टियों के दौरान गैर-खतरनाक पारिवारिक व्यवसाय में सहायता कर सकता है।
    • मनोरंजन कार्य: जैसे विज्ञापन, टीवी शो, फिल्मों में कार्य, बशर्ते इसमें सुरक्षा के विशेष उपाय हों और यह उनकी पढ़ाई में बाधा न बने। सर्कस के कार्य में यह छूट लागू नहीं है।
धारा 5 : तकनीकी सलाहकार समिति
  • उद्देश्य: अनुसूची में नए व्यवसायों और प्रक्रियाओं को जोड़ने के लिए केंद्रीय सरकार को सलाह देना।
  • गठन: केंद्रीय सरकार द्वारा।
  • संरचना: एक अध्यक्ष और अधिकतम 10 सदस्य।
धारा 7 : कार्य के घंटे और कालावधि
  • अधिकतम कार्य के घंटे: किशोर अपने कार्यस्थल के प्रकार के अनुसार निर्धारित घंटों से अधिक कार्य नहीं कर सकते।
  • दैनिक कार्य अवधि: किशोर लगातार 3 घंटे से अधिक कार्य नहीं कर सकते; उन्हें एक घंटे का विश्राम अनिवार्य है।
  • कुल कार्य समय: कार्य अवधि, जिसमें विश्राम भी शामिल है, दिन में 6 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • निषिद्ध कार्य समय: किशोर शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच कार्य नहीं कर सकते।
  • ओवरटाइम नहीं: किशोरों को ओवरटाइम कार्य करने की अनुमति नहीं है।
  • एकल रोजगार नियम: किशोर एक दिन में केवल एक ही स्थान पर कार्य कर सकते हैं।
धारा 8: साप्ताहिक अवकाश
  • साप्ताहिक अवकाश: प्रत्येक सप्ताह में एक पूर्ण दिन का अवकाश अनिवार्य है।
धारा 9: निरीक्षक को सूचित करने का दायित्व
  • यह धारा नियोक्ताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करती है कि उनके संस्थान में कार्यरत सभी किशोरों की जानकारी स्थानीय प्राधिकरणों को दी जाए। 
  • पहले से कार्यरत कर्मचारी: यदि कोई किशोर इस अधिनियम के लागू होने से पहले ही संस्थान में कार्यरत है, तो नियोक्ता को 30 दिनों के भीतर स्थानीय निरीक्षक को जानकारी देनी होगी, जिसमें शामिल हैं:
    • कार्यस्थल का नाम और स्थान,
    • प्रबंधक का नाम,
    • आधिकारिक संचार के लिए पता, और
    • कार्य का प्रकार।
  • नए कर्मचारी: यदि अधिनियम के लागू होने के बाद कोई नया किशोर कर्मचारी नियुक्त किया जाता है, तो नियोक्ता को 30 दिनों के भीतर वही जानकारी निरीक्षक को देनी होगी।
धारा 11: रजिस्टर का रखरखाव
  • इस धारा के अनुसार, नियोक्ताओं को अपने संस्थान में कार्यरत प्रत्येक किशोर का विवरण रखने के लिए एक रजिस्टर बनाए रखना आवश्यक है, जिसे कार्य घंटों के दौरान निरीक्षक द्वारा निरीक्षण के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इसमें निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए:
    • नाम और जन्म तिथि,
    • कार्य के घंटे और विश्राम अवधि,
    • कार्य का प्रकार, और
    • अन्य आवश्यक विवरण।
धारा 13: स्वास्थ्य और सुरक्षा
  • यह धारा सरकार को यह अधिकार देती है कि वह संस्थानों में कार्यरत किशोरों के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित नियम बनाए जैसे की –
  • स्वच्छता बनाए रखना, उचित कचरा निपटान, वेंटिलेशन, तापमान नियंत्रण, धूल प्रबंधन और उचित आर्द्रता स्तर सुनिश्चित करना।
  • पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, सुरक्षित पेयजल, शौचालय, मूत्रालय और थूकदान उपलब्ध कराना।
  • मशीनों का घेराव, गतिशील मशीनों के आसपास सावधानियां, खतरनाक मशीनों के उपयोग पर प्रतिबंध और विद्युत आपूर्ति बंद करने वाले उपकरणों का प्रावधान।
  • फर्श, सीढ़ियाँ, गड्ढे और मशीनों व भवनों को सुरक्षित बनाना।
  • अधिक भार का प्रबंधन, आंखों की सुरक्षा, विस्फोटक या ज्वलनशील सामग्री का प्रबंधन, अग्नि सुरक्षा और रखरखाव।
धारा 14 – शास्तियाँ 
  • बच्चों को काम पर रखने पर दंड:
    • दंड: जो कोई भी अवैध रूप से बच्चे को रोजगार देता है, उसे 6 महीने से 2 साल तक की जेल, ₹20,000 से ₹50,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
    • माता-पिता/अभिभावक: उन्हें तब तक दंडित नहीं किया जाएगा जब तक वे व्यावसायिक कार्य के लिए बच्चे को काम करने की अनुमति नहीं देते, जिससे कानून का उल्लंघन होता हो।
  • किशोरों को अवैध रूप से काम पर रखने पर दंड:
    • दंड: जो कोई भी कानून का उल्लंघन करके किशोरों को रोजगार देता है, उसे भी 6 महीने से 2 साल तक की जेल, ₹20,000 से ₹50,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
    • माता-पिता/अभिभावक: उन्हें तब तक दंडित नहीं किया जाएगा जब तक वे अवैध कार्य में जानबूझकर अनुमति नहीं देते।
  • पहले अपराध पर छूट: माता-पिता या अभिभावकों को इस कानून के तहत पहले अपराध पर दंड से छूट दी गई है।
  • पश्चात्तवर्ती दोषसिद्धि की दशा में:
    • नियोक्ता के लिए: पुनः अपराध करने वाले नियोक्ताओं को 1 से 3 साल तक की जेल हो सकती है।
    • माता-पिता/अभिभावक: पुनः अपराध करने पर माता-पिता या अभिभावकों को ₹10,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • अन्य उल्लंघन: अधिनियम के अन्य प्रावधानों के उल्लंघन पर, एक महीने तक की साधारण जेल, ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
धारा 14B – बाल और किशोर श्रम पुनर्वास निधि
  • निधि की स्थापना – जो नियोक्ता अवैध रूप से बच्चों या किशोरों को काम पर रखते हैं, उनसे वसूले गए जुर्माने की राशि को इस निधि में जमा किया जाएगा।
  • सरकारी योगदान: सरकार निधि में प्रति बच्चे या किशोर के लिए ₹15,000 का योगदान करेगी।
  • निधि का उपयोग: यह राशि संबंधित बच्चे या किशोर को प्रदान की जाएगी।

संविधान में बच्चों के रोजगार पर रोक संबंधी प्रावधान

  • अनुच्छेद 21A: 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
  • अनुच्छेद 24: कारखानों, खदानों या किसी भी जोखिमपूर्ण कार्य में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर रोक।
  • अनुच्छेद 39 (ई): राज्य अपनी नीतियों का ऐसा दिशा-निर्देशन करेगा जिससे श्रमिकों के स्वास्थ्य और शक्ति की रक्षा की जा सके, विशेषकर बच्चों को हानिकारक व्यवसायों से दूर रखने हेतु।
  • अनुच्छेद 39 (एफ): बच्चों के स्वस्थ विकास हेतु उनके लिए अवसर और सुविधाएं प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 45: बचपन की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करना।

 स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध/  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध / स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध / स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध / स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध /  स्त्रियों एवं बालकों के विरूद्ध अपराध

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