नैतिक अवधारणाएँ- ऋत, ऋण और कर्तव्य की अवधारणा

नैतिक अवधारणाएँ – ऋत, ऋण और कर्तव्य की अवधारणा नैतिकशास्त्र जीवन के मूल्यों और कर्तव्यों को समझने का माध्यम है, जो व्यक्ति को समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्व का बोध कराता है। ऋत (सत्य और cosmic order), ऋण (ऋणभावना) और कर्तव्य की अवधारणाएँ भारतीय नैतिकशास्त्र की आधारशिलाएँ हैं, जो जीवन को संतुलन और दिशा प्रदान करती हैं।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2013भारतीय परम्परा में ऋण की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।5M
2018किस प्रकार “ऋत’ की धारणा प्रशासनिक उत्कृष्टता को संवर्धित करती है ?2M
2021प्रशासनिक जीवन में “ऋण” के नैतिक आदर्श की प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिए ।2M
2023समसामयिक समाज ऋण की वैदिक अवधारणा से किस प्रकार लाभान्वित हो सकता है ?5M
  • वे सिद्धांत जो नैतिकता की उत्पत्ति पर चर्चा करते हैं और मनुष्य के धारणा, विचार, दृष्टिकोण, व्यवहार और कार्य पर उचित प्रतिबंध लगाकर सही मार्गदर्शन करते हैं।
  • यह अधिनीतिशास्त्र का भाग है क्योंकि नैतिकता और नैतिक सिद्धांतों की उत्पत्ति पर चर्चा की गई है।
  • उदाहरण – ऋत एवं ऋण, कर्त्तव्य की अवधारणा, शुभ एवं सद्‌गुण की अवधारणा।
नैतिक अवधारणाएँ- ऋत ऋण और कर्तव्य की अवधारणा
  • ऋत की अवधारणा ऋग्वेद में उत्पन्न हुई है और इसका उल्लेख अथर्ववेद और उपनिषदों जैसे अन्य वेदों में भी किया गया है।
  • यह नैतिक दर्शन और भारतीय नैतिक विचारों की उत्पत्ति का पहला उदाहरण है।
  • क्रिया धातु ‘ऋ’ से ऋत शब्द की उत्पत्ति है। ऋ का अर्थ है गति। ‘त’ जुड़ने के साथ ही इसमें स्थैतिक भाव आ जाता है – सुसम्बद्ध गति
  • ऋत का अर्थ है सत्य/सही/धर्म या प्राकृतिक व्यवस्था जो इस ब्रह्मांड का मार्गदर्शन करती है।
  • इस क्रम में भौतिक (ब्रह्मांड संबंधी) और सामाजिक/नैतिक क्रम शामिल है
    • भौतिक क्रम – सौर मंडल, ऋतु परिवर्तन, गुरुत्वाकर्षण बल की दिशा, मासिक धर्म चक्र (हर चन्द्र मास रजस्वला होती स्त्री ‘ऋतुमति’ कहलायी)।
    • नैतिक/सामाजिक व्यवस्था – धर्म, कर्म, आश्रम व्यवस्था, बुद्ध का धम्म, लाओ त्ज़ु का ताओ (सदाचार का मार्ग)।
  • आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली में, ऋत की अवधारणा सार्वभौमिक सिद्धांतों से मेल खाती है
  • ऋत, धर्म और सत्य का मार्ग है (राधाकृष्णन)।

ऋग्वेद और ऋण  – 

  • ऋ॒तस्य॑ नः प॒था न॒याति॒ (ऋग्वेद 10.133.6) –  हमें सत्य के मार्ग पर ले चलो।
  • ऋतस्य यथा प्रेत – प्राकृत नियमो के अनुसार जीवन जीना ।
  • भगवान विष्णु को ऋत का जनक माना जाता है।
    • ऋत का हिरण्यगर्भ  (ऋत की उत्पत्ति )  
  • वरुण को “ऋतस्य गोप” अर्थात ऋत का चालक कहा जाता है।
Ethical Concepts : Rit and Rin & Concept of Duty
  • यह काल और स्थान से परे है।
  • ऋत आदर्श को परिभाषित करता है (अर्थात ऋत सही/उचित की ओर ले जाता है)।
  • अतः ऋत धर्म का पूर्ववर्ती है।
  • ऋत की 3 विशेषताएँ –
    • गति  – निरंतर गति या परिवर्तन
    • संगठन -सद्भाव पर आधारित व्यवस्था
    • नियति – परस्पर निर्भरता और गति का एक अंतर्निहित क्रम
  • उदाहरण – सौरमंडल, ऋतुएँ, जीवन के 4 चरण (आश्रम)
  • इसलिए यह दुनिया में सद्भाव और संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है और एक क्रम के अनुसार जीवन निर्वहन पर जोर देता है।
  • ऋत से निकले शब्द  –
    • अनुष्ठानवाद (किसी काम को क्रम से करना)
    • रीति  (परंपराएँ) – बार-बार काम करने की प्रथा
    • ऋतु (ऋतुएँ)
ऋत व्यवस्था, सद्भाव और विधिसंगतता की वकालत करती है।

अनुप्रयोग –

  • समाज में सामाजिक व्यवस्था, शांति और सद्भाव बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रशासन की है।
  • ऋत पर्यावरणीय चेतना और कृतज्ञता की भावना जागृत करता है (यह सभी की भलाई और समृद्धि के लिए स्वयं, अन्य और पर्यावरण के साथ सामंजस्य  बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है)।
ऋत के अनुसार, एक सर्वोच्च शक्ति या मार्गदर्शक शक्ति है जो इस ब्रह्मांड को अराजकता के बिना एक क्रम में चलाती है।

अनुप्रयोग –

  • इसी प्रकार हमारा संविधान एक प्रशासक के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए।
  • आश्चर्य की बात है कि भारतीय लोकतंत्र में 80 करोड़ से अधिक मतदाताओं द्वारा बिना किसी बड़ी अराजकता के अपना नेता चुना जाता है। यह केवल संविधान, विश्वसनीय और मजबूत न्यायपालिका और भारत के चुनाव आयोग जैसी सर्वोच्च मार्गदर्शक शक्तियों के कारण ही संभव है।
असली कर्ता विष्णु हैं और अन्य देवताओं को भी ऋत के नियमों का पालन करना पड़ता है।
  • अन्य देवता तो इस बड़े उद्देश्य के निमित्त मात्र हैं।

अनुप्रयोग –

  • यह  व्यक्ति के “मैं” या अहंकार को मारने में मदद करता है
  • कोई भी व्यक्ति कानून से परे नहीं है। (कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण  – अनुच्छेद 14)
    • उदाहरण – प्रचंड सूर्य भी ऋत से परे नहीं है।
ऋत के विरुद्ध जाना, पाप की ओर ले जाता है।
  • मनुष्य का वास्तविक स्वभाव ही उसका ऋत है = उसके विरुद्ध जाना = अकुशलता 
  • अनृत या असत्य दुख की ओर ले जाता है।
  • गांधी जी ने 1934 के बिहार भूकंप के लिए अस्पृश्यता (अनृत) को जिम्मेदार ठहराया [भगवान की सजा]।

अनुप्रयोग –

  • भ्रष्टाचार, घोटाले, चोरी जैसे कर्म ईश्वर के वास्तविक स्वरूप के विरुद्ध हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए।
  • व्यक्ति को ऐसा व्यवसाय चुनना चाहिए जो उसके स्वभाव के अनुरूप हो।
  • उदाहरण –  कोटा आत्महत्याएं [अत्यधिक मानसिक  बोझ से दबे छात्र]
  • कानूनों, नियमों, आचार संहिता के विरुद्ध जाने पर निलंबन, प्रतिष्ठा की हानि या यहां तक ​​कि जेल भी हो सकती है।
  • उदाहरण – चंदा कोचर ने ऋण देने के ऋत (मानदंडों) का उल्लंघन किया = अपने धर्म  के विरुद्ध कार्य किया = विकर्म।
ऋत का अर्थ है प्राकृतिक व्यवस्था, जिसे अज्ञात तक बढ़ाया जा सकता है।

अनुप्रयोग –

  • इसलिए ऋत का उपयोग दूर की आकाशगंगाओं, ब्लैक होल, ब्रह्मांड में पैटर्न ढूँढना आदि जैसी अज्ञात चीजों की खोज के लिए किया जा सकता है।
  •  ऋत नवाचार, जिज्ञासा और खोज की ओर ले जाता है।
ऋत की पूजा नहीं की जा सकती, इसका केवल पालन किया जाना चाहिए।
  • ऋत देवताओं से भी बड़ा है (देवताओं को भी ऋत का पालन करना पड़ता है)।

अनुप्रयोग –

  • इसलिए ऋत केवल उपदेश देने के बजाय कर्म को प्रोत्साहित करता है।
  • ऋत आलस्य को अस्वीकार करता है, गतिविधि को बढ़ावा देता है।
ऋतस्य बधिराणि कर्णानि ततर्द
  • ऋत सत्य को बढ़ावा देता है और सोए हुए लोगों को जगाता है।

अनुप्रयोग –

  • ऋत सत्य से भी बड़ा है। सत्य इंद्रिय-जनित ज्ञान पर आधारित है। यह सीमित है, लेकिन ऋत प्राकृतिक और असीमित है।
  • ऋत देश और काल से परे है – सार्वभौमिक है।
  • यानी सत्य को उन लोगों को भी सुनना चाहिए जो इसे सुनना नहीं चाहते।
ऋत धर्म, कर्म और ऋण का अग्रदूत है।

अनुप्रयोग –

  • धर्म – जीवन के धार्मिक, सामाजिक और नैतिक क्षेत्रों में ऋत की अभिव्यक्ति
    • उदाहरण – पृथ्वी द्वारा भगवान वरुण द्वारा निर्देशित मार्ग (सूर्य का परिक्रमण) को स्वीकार करने का अर्थ है कि पृथ्वी अपने धर्म का पालन कर रही है।
  • कर्म – अपने कार्यों के माध्यम से धर्म को कायम रखना।
    • पृथ्वी द्वारा प्रतिदिन सूर्य का परिक्रमण करने का अर्थ है – कर्म।
  • प्रत्येक मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्मित अनेक संसाधनों का उपभोग करता है इसलिए वह ऋणी होता है।
  • ऋण के प्रकार –

देवर्षिभूतापत्नृणां पितृणां

  • देव – देवताओं का ऋण 
  • ऋषि – ऋषियों का ऋण 
  • भूत – सामान्य जीवों का ऋण 
  • अप्तनृणाम् – मित्रों/ सम्बन्धियों/सामान्य मनुष्यों का ऋण 
  • पित्णाम् – पितरों का ऋण 
  • तैत्तिरीय संहिता (6.3.10.5) के अनुसार, एक बच्चा अपने जीवनकाल में तीन ऋण लेकर पैदा होता है – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण।
    • जयमानो ह वै ब्राह्मणस्त्रीभिर्णवान् जायते ब्रह्मचर्येण ऋषिभ्यः यज्ञेन देवेभ्यः प्रजाया पितृभ्यः एषा वा अनृणो यः पुत्री यज्वा ब्रह्मचारिवासी । अर्थात्  ब्राह्मण तीन ऋणों के साथ जन्म लेता है – उसे ब्रह्मचर्य के माध्यम से ऋषियों का ऋण, यज्ञों के माध्यम से देवताओं का ऋण और संतान पैदा करके पूर्वजों का ऋण चुकाना होता है
  • एक अन्य प्राचीन हिंदू ग्रंथ, शतपथ ब्राह्मण (1.7.2.1) में नृ ऋण या मनुष्य-ऋण जोड़ा गया।
    •  शतपथ ब्राह्मण (1.7.2.1-6) – देवेभ्य ऋषिभ्यः पितृभ्यो मनुष्येभ्यः
  • श्रीमद्भागवतम में भूत ऋण (पौधे, जानवर और प्रकृति) जोड़ा गया
    • देवर्षिभूतापत्नृणां पितृणां
नैतिक अवधारणाएँ- ऋत ऋण और कर्तव्य की अवधारणा

देव ऋण

  • क्योंकि हम अपने देवताओं (वरुण, इंद्र, सूर्य, अपोलो आदि) से सूर्य का प्रकाश, पृथ्वी के संसाधन, ताज़ी हवा, पानी आदि प्राप्त करते हैं, इसलिए हम इन देवताओं के ऋणी हैं।
  • ऋण चुकाने का तरीक़ा – यज्ञेन देवेभ्यः – पूजा-पाठ, यज्ञ करना
    • उदाहरण – सूर्य नमस्कार
  • प्रमुख आश्रम – वानप्रस्थ और संन्यास

प्रशासन – 

  • पर्यावरण को संरक्षित करने की अपील
    • उदाहरण – बनी, ओरण जैसे पवित्र उपवन
  • उदाहरण– राजस्थान में रेत खनन रोकने के लिए चम्बल में आदिवासी देवताओं का आह्वान किया जाता है
  • उदाहरण – जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
    • भगवान वरुण, देवी गंगा के सम्मान में  (नमामि गंगे परियोजना) 
  • ध्यान और योग को बढ़ावा देना (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में योग को शामिल करना)।
  • धार्मिक सहिष्णुता।
  • धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28)
  • अंधविश्वास एवं रूढ़िवादिता के विरूद्ध जागरूकता।
  • अंधविश्वास और काला जादू विरोधी अधिनियम 2013
  • शांति (कुरान), कल्याणकारी राज्य (राम राज्य), करुणा (ईसा मसीह ), बलिदान (गुरु नानक) जैसे मूल्यों को विकसित करना।
  • धार्मिक जुलूसों के दौरान कानून एवं व्यवस्था।
  • उदाहरण – सूर्य (सूर्य देवता) को सम्मान देने के लिए छठ पूजा, तेजा दशमी
  • उदाहरण – इमाम हुसैन के बलिदान का सम्मान करने के लिए मुहर्रम।
  • देवस्थान विभाग में जिम्मेदारियाँ संभालना।

ऋषि ऋण

  • हमें वेद, उपनिषद, बाइबिल, कुरान, धर्मनिरपेक्ष साहित्य और हमारे शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए हम उनके ऋणी हैं।
  • ऋण चुकाने का तरीक़ा-
    • ब्रह्मचर्येण ऋषिभ्यः – अध्ययन/ज्ञान प्राप्त करना/स्वाध्याय करना
    • वेद पढ़ने वालों को ज्ञान का खजांची माना जाता है  (ऋषीणां निधिगोप)
    • शिक्षकों का सम्मान करना
    • ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना
    • विद्यमान ज्ञान में बढ़ोतरी करना
  • प्रमुख आश्रम – ब्रह्मचर्य और संन्यास

प्रशासन – 

  • संविधान (बेयर एक्ट), कानून, आचार संहिता का अध्ययन करना।
  • गीता, कबीर वाणी जैसे धर्मनिरपेक्ष साहित्य के मूल्यों को बढ़ावा देना।
  • नई शिक्षा नीति 2020 को अक्षरश: क्रियान्वित करना।
  • विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना
  • राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार [शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए]
    • उदाहरण – राजस्थान से आशा सुमन और डॉ. शीला असोपा

पितृ ऋण

  • हमारा अस्तित्व हमारे पूर्वजों के कारण है (जीवित एवं मृत पूर्वज), इसलिए उन्होंने हमें जो जीवन दिया उसके लिए हम उनके ऋणी हैं।
  • ऋण चुकाने का तरीक़ा –
    • प्रजया पितृभ्य या प्रजामिच्छेत –  वंश-वृद्धि 
    • मृत पूर्वज के सम्मान में उपवास और श्राद्ध पूजा (पिंड दान)
    • बच्चों की अच्छी परवरिश (संस्कार)
    • माता-पिता की देखभाल करना।
  • उदाहरण – भगवान राम ने अपनी प्रजा के प्रति वफादार रहकर और हर कीमत पर अपने वचनों का पालन करके अपने पैतृक वंश, रघुवंश के आदर्शों का पालन किया। (रघुकुल रीत सदा चल आई, प्राण जाई पर वचन न जाई)
  • प्रमुख आश्रम – गृहस्थ आश्रम

प्रशासन – 

  • पिंडदान से संबंधित स्थानों को स्वच्छ एवं अपराध मुक्त रखना।
    • उदाहरण – गया, वाराणसी, प्रयागराज
  • सरदार पटेल, टी एन शेषन सर, सत्येन्द्र दुबे सर जैसे पूर्वजों द्वारा प्रशासन में दिए गए मूल्यों को अपनाना।
  • क्राउडफंडिंग/ट्रस्ट – दिवंगत पूर्वजों के नाम पर धर्मार्थ दान करना = न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन
  • तीर्थयात्रा एवं पर्यटन को बढ़ावा।
    • उदाहरण – राजस्थान में पुष्कर को पिंडदान के लिए पवित्र माना जाता है (भगवान राम ने इस पवित्र स्थान पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था)
  • गाय, कुत्ते, पक्षियों को खाना खिलाना – प्राणियों के प्रति दया भाव।

नोट – मनु-स्मृति (श्लोक 6.35) और गरुड़ पुराण के अनुसार – एक व्यक्ति केवल तभी मोक्ष प्राप्त करने की आकांक्षा कर सकता है जब उसने उपरोक्त तीन ऋणों का भुगतान कर दिया हो।

नृ ऋण व मनुष्य ऋण

  • एक व्यक्ति समग्र रूप से मानवता का ऋणी होता है।
  • ऋण चुकाने का तरीक़ा –
    • हर इंसान का सम्मान करना [कांत], सर्वोदय, अंत्योदय, गांधी का तावीज़
    • करुणा, सहानुभूति, विनम्रता, मानवता, सामाजिक न्याय, जैसे मूल्य
    • साथी प्राणियों को भोजन, आश्रय, वस्त्र देना, दान
    • अतिथि की सेवा (आतिथ्य सत्कार) – अतिथि पूजनम् (विष्णु पुराण 2/95)।

भूत ऋण

  • चूँकि हर चीज़ पंच महाभूत से बनी है, प्रत्येक व्यक्ति इससे बनी सभी वनस्पतियों और जीवों का ऋणी है।
  • ऋण चुकाने का तरीक़ा –
    • प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में योगदान।(पृथ्वी, जल, वायु को स्वच्छ रखना)
    • वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण (अपरिग्रह)
    • जीव-जंतुओं के प्रति दया, जैसे गर्मियों में पक्षियों के लिए पानी, घायल जानवरों को पशु चिकित्सालय में भर्ती कराना आदि। (ईशा वास्याम इदम सर्वम)

ऋणानुबंध – यदि कोई इस जीवन में अपना ऋण नहीं चुकाता है, तो उसे अगले जन्म में उन्हीं लोगों के हाथों कष्ट भोगना पड़ता है जिनका ऋण नहीं चुकाया गया है।

  • ‘कर्तव्य’ शब्द का अर्थ है जो देय/बकाया है, अर्थात्, कोई व्यक्ति किस दायित्व के तहत बाध्य है 
  • दूसरे शब्दों में, कर्तव्य का अर्थ है कि एक नैतिक प्राणी के रूप में उसे क्या करना चाहिए
  • यह व्यवहार को रेखांकित करने वाले नियमों या निर्देशों का एक समूह है जिसका पालन किया जाना चाहिए
  • मार्कस सिसरो (रोमन दार्शनिक, जो अपने काम “ऑन ड्यूटीज़” में कर्तव्य पर चर्चा करते हैं), सुझाव देते हैं कि कर्तव्य विभिन्न स्रोतों से आ सकते हैं।

स्टोइकवाद (आत्मसंयमवाद/वैराग्यवाद)

  • प्रकृति के अनुसार जियें।

यूनानी दार्शनिक – 

  • सद्गुण प्राप्त करना कर्तव्य है।

उदाहरण –

  • सोफिस्ट कहते हैं कि तर्क से सत्य की रक्षा करना कर्तव्य है।
  • सुकरात कहते हैं कि ज्ञान प्राप्त करना कर्तव्य है।
  • प्लेटो का कहना है कि तर्कसंगतता, भावनाओं और शारीरिक भूख के बीच सामंजस्य बनाए रखना (न्याय)
  • अरस्तू – स्वर्णिम मध्य मार्ग का अनुसरण करना कर्तव्य है।

इमानुअल कांट – 

  • कर्तव्य के लिए कर्तव्य का सिद्धांत 

भागवत गीता – 

  • निष्काम कर्म

डब्ल्यू डी रॉस –

  • सात प्रथम दृष्टया कर्तव्य – निष्ठा, क्षतिपूर्ति, कृतज्ञता, न्याय, उपकार, आत्म-सुधार, गैर-नुकसान (नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों से बचना)।

हिन्दू धर्म –

  • 4 पुरुषार्थ का अनुसरण – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

जैन धर्म –

  • महाव्रतों के अनुसार जीवन जीना (5 व्रत) – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
  • प्रतिक्रमण – आत्मनिरीक्षण
  • वंदन: –  शिक्षकों और भिक्षुओं का सम्मान करना

बुद्ध धर्म –

  • धम्म (धार्मिकता का मार्ग) का अनुसरण
  • अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीवन जीना – सम्यक आजीविका, सम्यक वाणी आदि

स्तर – व्यक्ति

  • कर्तव्य – नैतिक कर्तव्य
  • उदाहरण – करुणा, नम्रता, उदारता जैसे मूल्यों को व्यक्त करना और इच्छाओं को नियंत्रित करना आदि।
  • यदि पालन नहीं किया जाए – आत्मकेन्द्रित जीवन – अकेलापन, उदासीनता, अवसाद आदि

स्तर  – परिवार

  • कर्तव्य – संतानोचित कर्तव्य (कन्फ्यूशियस की शिक्षाओं का केंद्रीय पहलू)
  • उदाहरण – माता-पिता के प्रति पुत्र का कर्तव्य, पत्नी के प्रति पति का कर्तव्य (और इसके विपरीत क्रम)
  • पश्चिमी संस्कृति – नागरिक कर्तव्य > पारिवारिक कर्तव्य
  • एशियाई या पूर्वी संस्कृति – पारिवारिक कर्तव्य > नागरिक कर्तव्य
  • यदि पालन नहीं किया जाए – टूटे हुए परिवार, तलाक, बेवफाई, घरेलू हिंसा, बढ़ते वृद्धाश्रम आदि।

स्तर – संगठन

  • कर्तव्य – पेशेवर कर्तव्य
  • उदाहरण – अनुशासन, व्यावसायिकता, चुगली न करना, कौशल विकास आदि।
  • यदि पालन नहीं किया जाए – अक्षमता, हानि, बंद, बेरोजगारी, घोटाले आदि।

स्तर – समाज

  • कर्तव्य – नीतिशास्त्रीय कर्तव्य
  • उदाहरण – स्वच्छता, सहिष्णुता, न्याय, समतावाद, धार्मिक कर्तव्यों आदि को बढ़ावा देने का कर्तव्य।
  • यदि पालन नहीं किया जाए – अराजकता, सांप्रदायिक दंगे, विद्रोह, संक्रामक रोग (अस्वच्छ सार्वजनिक स्थान – प्लेग)।

स्तर – राज्य

  • कर्तव्य – कानूनी कर्तव्य और नागरिक कर्तव्य
  • कानूनी कर्तव्य के उदाहरण – कानूनों, नियमों और विनियमों का पालन करने का कर्तव्य।
  • नागरिक कर्तव्य के उदाहरण – कर चुकाना, मतदान करना, अच्छा व्यक्ति बनना।
  • यदि पालन नहीं किया जाए – जुर्माना या कारावास, निलंबन, सेवा से वंचित करना।

स्तर – संविधान

  • कर्तव्य – संवैधानिक कर्तव्य
  • उदाहरण – 1976 का 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम  [अनुच्छेद 51-ए ]।
  • यह सभी भारतीय नागरिकों के लिए 11 मौलिक कर्तव्यों का पालन करता है। जैसे – भाईचारे को बढ़ावा देना।
  • यदि पालन नहीं किया जाए –  गृहयुद्ध, त्रिशंकु विधानसभा, तानाशाही, मौलिक अधिकारों का हनन आदि
सकारात्मक और नकारात्मक कर्तव्य (जॉन रॉल्स)
  • सकारात्मक कर्तव्य – वे कार्य जो किये जाने चाहिए।
    • जैसे – दूसरों की जान बचाना, गरीबों की मदद करना
  • नकारात्मक कर्तव्य – ऐसे कार्य जो निषिद्ध है
    • किसी को नुकसान मत पहुंचाओ, दुर्व्यवहार मत करो।
मुख्य और गौण कर्तव्य
  • मुख्य कर्तव्य – ये कर्तव्य अपने आप में एक लक्ष्य हैं और इसलिए अनिवार्य रूप से किसी अन्य दायित्व से असंबंधित हैं।
    • उदाहरण – बच्चे को खाना खिलाना, दूसरों को चोट न पहुँचाना (अहिंसा)।
  • गौण कर्तव्य – ये वे कर्तव्य हैं जिनका मुख्य लक्ष्य किसी अन्य कर्तव्य को लागू करना है। ये सहायक हैं। इन्हें उपचारात्मक कर्तव्य भी कहा जाता है। 
    • उदाहरण – खाना बनाना, चोट लगने पर क्षतिपूर्ति का भुगतान करना।
स्वयं के संबंध में कर्तव्य – शराब या आत्महत्या से दूर रहना
स्वाभाविक एवं अर्जित कर्तव्य
  • स्वाभाविक – किसी संस्था या निकाय के किसी विशेष विवरण के बिना
    • उदाहरण – एक इंसान के रूप में कर्तव्य
  • अर्जित = अर्जित कर्तव्य वे कर्तव्य हैं जो व्यक्तियों द्वारा  किए गए किसी कार्य के आधार पर या किसी विशेष संबंध के रूप में किए जाते हैं।
    • उदाहरण – पुत्र, पिता, माता के रूप में कर्तव्य
    • उदाहरण – प्रधान मंत्री का कर्तव्य
पूर्ण और अपूर्ण (इमैनुएल कांट) –
  • पूर्ण कर्तव्य व्यक्तियों से अपेक्षा करते हैं कि वे बिना किसी विचलन के हर समय निर्धारित लक्ष्य के अनुसार अपने दायित्वों का निर्वहन करें। यानी इसका पालन हर हाल में होना चाहिए।
    • उदाहरण – आत्महत्या से बचना
  • अपूर्ण कर्तव्य – पालन करना अनिवार्य नहीं है
    • उदाहरण – आत्म सुधार, दान, एक अच्छा व्यक्ति बनना।
  • यह माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति को अधिकार प्राप्त होता है, तो वह कुछ दायित्वों के अधीन भी होगा। इसलिए, प्रत्येक अधिकार में एक दायित्व शामिल होता है। एक का अधिकार दूसरे का कर्तव्य है।
  • उदाहरण –  साफ सड़क का मेरा अधिकार = कूड़ेदान में कचरा फेंकने का कर्तव्य 
  • उदाहरण – बच्चे को बेहतर पालन-पोषण प्राप्त करने का अधिकार =   माता-पिता का कर्तव्य 
  • जॉन ऑस्टिन का कहना है कि एक पक्ष को तब अधिकार मिलता है जब दूसरे पक्ष का दायित्व (कर्तव्य) होता है।
  • सर जॉन सैल्मंड – कर्तव्य वह कार्य है जिसे हर नागरिक को दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए करना चाहिए।
  • राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय – कानूनी अधिकार, कानूनी कर्तव्यों के सहसंबद्ध हैं।
  • उदाहरण
    • नागरिकों को समानता का अधिकार है = राज्य का कर्तव्य है – किसी के साथ भेदभाव न करना और रोजगार के समान अवसर प्रदान करना(अनुच्छेद 15)
    • जबकि नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है (अनुच्छेद 25-28), उनका यह भी कर्तव्य है कि वे सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा दें । [अनुच्छेद 51 A(E)]
    • सुरक्षित पर्यावरण का मौलिक अधिकार [अनुच्छेद 21 – एम सी मेहता केस] =पर्यावरण की रक्षा करना मौलिक कर्तव्य। [अनुच्छेद 51 A (G)]
  • गांधी – मनुष्य के कर्तव्यों के साथ शुरुआत करें और मैं वादा करता हूं कि अधिकार उसी तरह आएंगे जैसे सर्दी के बाद वसंत ।

प्रशासन 

  • अच्छे भत्ते और पारिश्रमिक (वेतन, पेंशन, कार, घर, सहायक) पाने का अधिकार  = नागरिक सेवा का कर्तव्य।
  • किसी को दंडित करने का अधिकार = कानून के शासन को लागू करने का कर्तव्य।
    • सजा कानून के अनुरूप, अपराध के अनुपात में होनी चाहिए।

 Q. 1 ऋत की अवधारणा और प्रशासन में इसकी प्रासंगिकता को समझाइए। [5 M]

Q. 2 सभी प्रकार के ऋण की सूची बनाएँ और बताएं कि ये प्रशासनिक उत्कृष्टता में कैसे मदद कर सकते हैं। समझाएँ। [5 M]

Q. 3 “कर्तव्य और अधिकार एक सिक्के के दो पहलू हैं” – इस कथन को उदाहरणों के साथ समझाएँ। [5 M]

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