पुनर्जागरण व धर्म सुधार

पुनर्जागरण व धर्म सुधार विश्व इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड है, जिसने यूरोप के समाज, संस्कृति और विचारधारा को नई दिशा दी। इस काल में ज्ञान, तर्क और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिला तथा धार्मिक रूढ़ियों को चुनौती दी गई।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023सार्वभौमिक पौरोहित्य का अर्थ स्पष्ट कीजिये?2M
2021लियोनार्डों द विंची ने अपना प्रसिद्ध चित्र “द लास्ट सपर’ कहाँ पर चित्रित किया था?2M
201818वीं शताब्दी के यूरोपियन प्रबोधन को परिभाषित कीजिए । 2M
2016यूरोप में पुर्जागरण आन्दोलन के उद्भव के कारणों का परीक्षण कीजिए ।10M
2016 special exam‘प्रबोधन युग’  ने यूरोप के इतिहास की धारा को किस प्रकार प्रभावित किया ?10M
2013‘रेनेसाँ मैन’ के आदर्श से आप क्‍या समझते हैं ?2M

पृष्ठभूमि:

  • मध्यकालीन यूरोप  में  कभी समृद्ध रही रोमन और ग्रीक सभ्यताओं का पतन देखा गया ।
  • यूरोप में इस काल में चर्च का प्रभाव था, जो लोगों के जीवन और सोच को नियंत्रित करता था।
  • इसने लोगो के बौद्धिक विकास को अवरुद्ध कर दिया और एक व्यापक निराशा ने जन्म लिया ।
  • इसके परिणामस्वरूप, 15वीं शताब्दी तक एक नया बौद्धिक आंदोलन उभरने लगा था। जिसे “पुनर्जागरण” के रूप में जाना गया।
पुनर्जागरण का अर्थ और परिभाषा
  • “पुनर्जागरण” शब्द का मतलब फ्रेंच में “पुनर्जन्म” होता है। इसे पहली बार 16वीं सदी में जॉर्जियो वसारी ने इटली में पुरानी कला और वास्तुकला के पुनरुत्थान को बताने के लिए इस्तेमाल किया था।
पुनर्जागरण का उदय (1350 ईस्वी – 1550 ईस्वी):
  • पुनर्जागरण यूरोप में 14वीं से 16वीं शताब्दी में उत्पन्न सांस्कृतिक और बौद्धिक आंदोलन था ।
  • पुनर्जागरण सामूहिक रूप से उन बौद्धिक बदलावों को दर्शाता है, जिसमे मानववाद का उदय, धर्म के प्रति नए दृष्टिकोण, और  अंधविश्वास पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रधानता शामिल है  ।
  • धार्मिक संकीर्णता के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता ने कला, विज्ञान, संस्कृति, साहित्य और दर्शन में नए विचार उत्पन्न किये, जो चर्च की पाबंदियों से मुक्त थे।
  • जूल्स मिशेलेट ने पुनर्जागरण को दो प्रमुख विचारों में संक्षेपित किया: पहला, “विश्व की खोज” (जो नई भौगोलिक खोजों को संदर्भित करता है) और दूसरा, “मनुष्य की खोज” (जो व्यक्तिगत विचारों के सशक्तिकरण को संदर्भित करता है)।

पुनर्जागरण की जन्म स्थली इटली

इटली में पुनर्जागरण के कारक:

1. प्राचीन रोमन सभ्यता की विरासत:
  • इटली प्राचीन रोमन सभ्यता का केंद्र था और इसके स्मारकों ने रोमन संस्कृति के पुनर्जागरण को प्रेरित किया।
2.भौगोलिक स्थिति और व्यापार:
  • इटली की भौगोलिक स्थिति ने इसे एशिया, अरब दुनिया और यूरोप के बीच व्यापार का प्रमुख केंद्र बनाया । यहाँ की व्यापारिक समृद्धि ने एक समृद्ध मध्यम वर्ग को जन्म दिया, जिसने धार्मिक नियंत्रण और सामंतवाद को अस्वीकार किया।
3.मध्यम वर्ग का संरक्षण:
  • फ्लोरेंस में मेडिसी परिवार जैसे समृद्ध मध्यम वर्ग ने बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया।
4.समृद्ध नगरों की स्थापना :
  • फ्लोरेंस, वेनिस, मिलान और नेपल्स जैसे शहर जीवंत सांस्कृतिक केंद्र बन गए, जहाँ कलात्मक नवाचार और बौद्धिक चर्चा को बढ़ावा मिला।
5.पूर्वी संस्कृति का प्रभाव:
  • एशिया के साथ व्यापार ने इटलीवासियों को पूर्व की समृद्ध संस्कृतियों और विचारों से अवगत कराया।
6.कुस्तुंतुनिया का पतन (1453):
  • 1453 में कुस्तुंतुनिया के पतन के पश्चात ग्रीक विद्वान अपने ज्ञान के साथ इटली आ गये।
7.शिक्षा में परिवर्तन:
  • मध्ययुगीन शिक्षा प्रणाली चर्च द्वारा नियंत्रित थी। लेकिन इटली की आर्थिक समृद्धि ने भूगोल, विज्ञान और तर्क पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया।
  • शिक्षा में इस बदलाव ने पुनर्जागरण की विचारधारा की नींव डाली।

पुनर्जागरण की विशेषताएँ:

  • मानववाद का विकास: इसमें मानवीय मूल्यों तथा अनुभवों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • तर्क और विवेक पर जोर: धार्मिक रूढ़िवादिता के स्थान पर तर्कसंगत सोच को प्राथमिकता दी गई।
  • व्यक्तिवाद और वैज्ञानिक अन्वेषण का उदय:  कोपरनिकस, गैलीलियो और लियोनार्डो दा विंची जैसे महान विचारकों ने अवलोकन, प्रयोग और वैज्ञानिक खोज को महत्व दिया । इनके प्रयासों ने परंपरागत धारणाओं को चुनौती देते हुए वैज्ञानिक क्रांति की नींव रखी ।
  • क्षेत्रीय भाषाओं और धर्मनिरपेक्ष साहित्य का विकास: उदाहरण के लिए, दांते की डिवाइन कॉमेडी (ईश्वर की दिव्य लीला) इतालवी में और चौसर की कैंटरबरी टेल्स (कैंटरबरी कथाएँ) अंग्रेज़ी में लिखी गईं।
  • नई भौगोलिक खोज : क्रिस्टोफर कोलंबस और वास्को डी गामा ने नए व्यापार मार्ग खोजे ।
  • सहज सौंदर्य की उपासना: माइकलएंजेलो, राफेल और लियोनार्दो दा विंची जैसे कलाकारों ने यथार्थवाद, मानवीय भावनाओं और प्रकृतिवाद को अपने कार्यों में प्रदर्शित किया।
  • मुद्रण प्रेस का आविष्कार: गुटेनबर्ग की मुद्रण प्रेस ने ज्ञान के प्रसार में क्रांति ला दी, जिससे पुस्तकें और जानकारी अधिक सुलभ हो गईं।
  • प्राचीन परंपराओं का पुनरुद्धार: पुनर्जागरण की कला, वास्तुकला और साहित्य पर ग्रीक और रोमन आदर्शों का गहरा प्रभाव था। इसे  माइकलएंजेलो की डेविड प्रतिमा और सेंट पीटर बेसिलिका की वास्तुकला जैसे कार्यों में देखा जा सकता है।

पुनर्जागरण के कारण

धर्मयुद्ध (11वीं से 13वीं सदी):
  • धर्मयुद्ध ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच धार्मिक युद्धों की एक शृंखला थी, जिसका मुख्य उद्देश्य यरुशलम पर नियंत्रण करना था।
  • यूरोपीय लोग अरबों के माध्यम से प्राचीन ग्रीक, यूनान और भारतीय ज्ञान की समृद्ध संस्कृतियों के संपर्क में आए। हिंदू अंक, बीजगणित, कम्पास, कागज और बारूद जैसे ज्ञान यूरोप तक पहुँचे।
  • इस सम्पर्क ने चर्च के प्रभाव को कमजोर किया , नए विचारों का विकास हुआ जिससे लोगों का दृष्टिकोण व्यापक हुआ।
व्यापारिक समृद्धि:
  • धर्मयुद्धों के बाद यूरोप और पूर्व के बीच व्यापार में वृद्धि हुई। वेनिस और फ्लोरेंस जैसे शहर नए व्यापारिक केंद्र बने।
  • व्यापार में वृद्धि से एक समृद्ध मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने शिक्षा, कला और संस्कृति को संरक्षण दिया।
कागज और मुद्रण प्रेस की आविष्कार:
  • कागज बनाने की कला अरबों से सीखी गई थी।
  • 15वीं सदी में जोहान्स गुटेनबर्ग की मुद्रण प्रेस ने पुस्तकों के माध्यम से नये विचारों के प्रसार को संभव बनाया। इससे चर्च के ज्ञान पर एकाधिकार को चुनौती मिली और यूरोपीय लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा।
  • 1477 में विलियम कैक्सटन ने ब्रिटेन में पहला मुद्रण प्रेस स्थापित किया, जिससे पुनर्जागरण के विचारों का प्रसार और भी तेज हो गया।
कुस्तुंतुनिया का पतन (1453):
  • व्यापार मार्गों पर नियंत्रण: 1453 में कुस्तुंतुनिया के तुर्कों द्वारा अधिग्रहण ने पूर्वी देशों के लिए थल मार्गों को अवरुद्ध कर दिया। जिससे यूरोपीयों को भारत और अन्य पूर्वी देशों के लिए समुद्री मार्ग खोजने के लिए प्रेरित किया।
  • विद्वानों का इटली में पलायन: ग्रीक विद्वान, कलाकार और दार्शनिक इटली और अन्य यूरोपीय देशों में शरण लेने लगे। वे प्राचीन ग्रीक और रोमन ज्ञान को अपने साथ ले गये , जिससे यूरोपीय शिक्षा समृद्ध हुई ।
    • जैसे की बेसारियो 800 पाण्डुलिपियों के साथ इटली पहुँचा।
मानववाद का विकास:
  • मानवतावादी लेखकों, जैसे पेट्रार्क ( “मानवतावाद के पिता”), ने धार्मिक अधिकार के बजाय मानव अनुभव के महत्व पर जोर दिया।
  • उन्होंने मध्ययुगीन चर्च की अंधविश्वासों को अस्वीकार कर ग्रीक और रोमन ग्रंथों से प्रेरणा ली।
विशाल मंगोल साम्राज्य का उदय:
  • मंगोल साम्राज्य ने एशिया और यूरोप को जोड़ा, जिससे विचारों का प्रवाह संभव हुआ।
  • मार्को पोलो (पुस्तक – The Travels of Marco Polo) जैसे यात्रियों  ने समृद्धि और ज्ञान की कहानियाँ साझा कीं, जिसने यूरोपीयों को अन्वेषण और सीखने के लिए प्रेरणा मिली । 
ब्लैक डेथ (14वीं सदी):
  • प्लेग महामारी ने कई लोगों की जान ली, जिससे सामाजिक और आर्थिक बदलाव आए।
  • इससे धर्म पर निर्भरता घट गई और लोग जीवन, विज्ञान और मानव क्षमता पर अधिक ध्यान देने लगे ।
सामंतवाद का पतन:
  • सामंतवाद के पतन ने अधिक लोगों को शहरों में रहने लगे। वहाँ काम करने और शिक्षा प्राप्त करने के नये अवसर मिले, जिससे एक नया जिज्ञासु और शिक्षित समाज उत्पन्न हुआ।
मध्यम वर्ग का संरक्षण:
  • मेडिसी जैसे समृद्ध परिवारों ने कलाकारों और विद्वानों को आर्थिक समर्थन दिया।
वैज्ञानिक जिज्ञासा:
  • खगोलशास्त्र, शरीर रचना और भौतिकी में हुई उल्लेखनीय खोजों ने दुनिया को समझने के नए दृष्टिकोण विकसित किए।
अन्वेषण का युग:
  • कोलंबस और वास्को डी गामा जैसे अन्वेषकों ने नये भू-भागों की खोज की , जिससे यूरोप का भौगोलिक ज्ञान बढ़ा और व्यापार के नए मार्ग विकसित हुए। 

पुनर्जागरण के प्रभाव

पुनर्जागरण आंदोलन ने मानव जीवन के सभी पहलुओं को छुआ, जिसमें साहित्य, कला, विज्ञान और मानवतावादी दर्शन शामिल थे। 

साहित्य पर प्रभाव

  • क्षेत्रीय भाषाओं का उदय: पहले साहित्य केवल लैटिन और ग्रीक में लिखा जाता था । पुनर्जागरण के दौरान फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, अंग्रेजी, डच और स्वीडिश भाषाओं में उल्लेखनीय विकास हुआ।
  • विषयों में परिवर्तन: साहित्य का ध्यान चर्च से हटकर मानव गतिविधियों पर केंद्रित हो गया, जिसमें व्यक्तिवाद और मानवतावाद पर जोर दिया गया।
इटली:
  • दांते (1265–1321): दांते को अक्सर पुनर्जागरण साहित्य का अग्रणी माना जाता है।
    • डिवाइन कॉमेडी: दांते की सबसे प्रसिद्ध रचना। यह कविता पाप, मोक्ष और आत्मा की प्रकृति जैसे विषयों पर प्रकाश डालती है। यह तीन भागों में विभाजित है: इन्फर्नो (नरक), पुर्गातोरियो (पर्गेटरी) और पाराडीसो (स्वर्ग)। इसमें दांते की परलोक यात्रा का वर्णन है, जो नरक से शुरू होकर पर्गेटरी से होते हुए स्वर्ग तक पहुँचती है।
    • विटा नुओवा (The New Life): यह प्रेम कविताओं का एक संग्रह है, जिसमें दांते की यह धारणा प्रतिबिंबित होती है कि प्रेम आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जा सकता है।
    • कॉनविवियो (The Banquet): नैतिक और दार्शनिक अवधारणाओं पर चर्चा करने वाली रचना।
    • डे मोनार्किया (On Monarchy): यह एक राजनीतिक ग्रंथ है, जिसमें दांते सार्वभौमिक राजतंत्र को आदर्श शासन प्रणाली के रूप में समर्थन करते हैं।
  • फ्रांसिस्को पेट्रार्क (1321–1374): “मानवतावाद के पिता” के रूप में जाने जाने वाले पेट्रार्क ने शास्त्रीय प्राचीनता के अध्ययन और व्यक्तिगत मानव क्षमता तथा उपलब्धि के महत्व पर जोर दिया। पेट्रार्क ने अपने प्रसिद्ध कैंजोनीयर (Canzoniere) जैसे कई गीतात्मक कविताएँ तुस्कन बोली (इतालवी) में लिखीं।
  • बोकाच्चियो: बोकाच्चियो अपने कार्यों डेकामेरोन और जीनियोलॉजी ऑफ़ द गॉड्स के लिए प्रसिद्ध हैं।
फ्रांस:
  • फ्रांस्वा राब्ले: किताबगार्गांटुआ और पंताग्रुएल । गार्गांटुआ का विशाल आकार और उसकी भूख मानव जीवन की असीमित संभावनाओं का प्रतीक है, जब मनुष्य स्वतंत्र रूप से बढ़ने, सीखने और सोचने के लिए स्वतंत्र होता है।
  • मॉन्तेन: मॉन्तेन निबंध के साहित्यिक रूप को विकसित करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
इंग्लैंड:
  • जेफ्री चॉसर: “अंग्रेजी कविता के पिता” के रूप में जाने जाते हैं। चॉसर की कैंटरबरी टेल्स सैक्सन बोली (अंग्रेजी) में लिखी गई थी।
  • सर थॉमस मोर: मोर की यूटोपिया पुनर्जागरण मानवतावाद का एक प्रमुख कार्य है। इसमें तर्क और न्याय पर आधारित एक आदर्श समाज की कल्पना की गई है।
  • क्रिस्टोफर मार्लो: अंग्रेजी पुनर्जागरण के एक नाटककार। उनके प्रमुख कार्यों में टैमबर्लेन द ग्रेट, एडवर्ड II, द ज्यू ऑफ माल्टा और डॉक्टर फॉस्टस शामिल हैं।
  • विलियम शेक्सपीयर (1564–1616): पुनर्जागरण के सबसे महान नाटककार माने जाते हैं। शेक्सपीयर के कार्य, जैसे रोमियो और जूलियट, हैमलेट और मैकबेथ सामंती व्यवस्था और उभरते मध्यम वर्ग के बीच के सामाजिक संघर्षों को दर्शाते हैं।
  • एडमंड स्पेंसर (1552–1599): द फेयरी क्वीन के लिए प्रसिद्ध।
  • अन्य:
    • इरास्मस (1466–1536): डच मानवतावादी और धर्मशास्त्री। उनकी रचना जैसे इन प्रेज़ ऑफ़ फॉली ने चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार की आलोचना की और शिक्षा एवं नैतिक सुधार को बढ़ावा दिया।
    • मार्सिलियस (1275–1342): उनके कार्य डिफेंडर ऑफ़ पीस (The Defender of The Peace) में उन्होंने राजनीति में पोप के हस्तक्षेप की आलोचना की।
    • मैकियावेली (1469–1527): द प्रिंस में मैकियावेली ने राजनीति को धर्म से परे रखने की विचारधारा दी । उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को प्रस्तुत किया। उनके राजनीतिक विचारों के कारण उन्हें “आधुनिक चाणक्य” की उपाधि मिली।

कला पर प्रभाव

  • विषयों में परिवर्तन: पुनर्जागरण काल में कला पारंपरिक धार्मिक विषयों से हटकर मानवतावाद और यथार्थवाद पर केंद्रित हो गई, हालाँकि यीशु और मरियम जैसी धार्मिक शख्सियतें कला में बनी रहीं।
  • तकनीकी नवाचार: लकड़ी की पैनलों के स्थान पर कैनवास का उपयोग शुरू हुआ और तेल चित्रकला की शुरुआत हुई।
लियोनार्डो दा विंची:

लियोनार्डो एक चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, अभियंता, संगीतकार और दार्शनिक थे। 

  • कुछ प्रसिद्ध पैंटिंग्स :-
    • मोनालिसा: स्थान – लौवर संग्रहालय, पेरिस।
      यह चित्र अपनी रहस्यमयी मुस्कान और स्फुमाटो तकनीक के लिए प्रसिद्ध है, जो रंगों के कोमल संक्रमण को दर्शाती है।
    • द लास्ट सपर: स्थान – सांता मारिया डेल्ले ग्राज़ी, मिलान  (Santa Maria delle Grazie)।
      यह चित्र उस क्षण को दर्शाता है जब यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं कि उनमें से एक उन्हें धोखा देगा। लियोनार्डो ने प्रत्येक शिष्य की प्रतिक्रियाओं को चित्रित किया है, जो आश्चर्य से लेकर भ्रम तक की भावनाओं को दर्शाती हैं।
    • द वर्जिन ऑफ द रॉक्स: इसके दो संस्करण हैं, जिसमें से एक लौवर संग्रहालय में और दूसरा लंदन की नेशनल गैलरी में उपस्थित है। दोनों चित्रों में वर्जिन मैरी, शिशु यीशु, जॉन द बैपटिस्ट और एक देवदूत को चट्टानी परिदृश्य में दिखाया गया है।
    • अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ: विट्रुवियन मैन, लेडी विद एन अर्मिन
माइकल एंजेलो:  
  • माइकल एंजेलो एक महान मूर्तिकार और चित्रकार थे।
  • सिस्टीन चैपल की छत की पेंटिंग्स बाइबिल की कहानियों को दर्शाती हैं, जो सृष्टि से लेकर संसार के अंत तक फैली हैं।
  • द लास्ट जजमेंट:स्थान– सिस्टीन चैपल, वेटिकन सिटी यह भित्तिचित्र ईसाई धर्मशास्त्र में वर्णित अंतिम निर्णय को दर्शाता है, जिसमें मसीह केंद्र में हैं, उनके चारों ओर देवदूत, संत और दंडित आत्माएँ हैं। यह चित्रण मानव भय और पीड़ा का शक्तिशाली चित्रण है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकला – पेटा
    स्थान
    : सेंट पीटर बेसिलिका, वेटिकन सिटी
    यह संगमरमर की मूर्ति वर्जिन मैरी को मरे हुए मसीह को गोद में लिए हुए दर्शाती है, और इसकी भावनात्मक गहराई के लिए जानी जाती है।
राफेल:
  • राफेल अपनी मैडोना पेंटिंग्स के लिए प्रसिद्ध हैं, जो दिव्य स्त्रीत्व का सुंदर चित्रण करती हैं।
बैसिलियो टीसियाँ: 
  • बैसिलियो कुलीन महिलाओं के चित्रों के लिए जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कृति: मैन विद ए ग्लव
मूर्तिकला:

पुनर्जागरण के दौरान मूर्तिकला धार्मिक प्रतिबंधों से मुक्त हो गई।

  • प्रमुख मूर्तिकार: लॉरेंजो गीबर्टी , दोनातेल्लो और माइकल एंजेलो
  • गीबर्टी ने फ्लोरेंस के गिरजाघर  के प्रसिद्ध दरवाज़ो को डिजाइन किया, जो ओल्ड टेस्टामेंट की घटनाओं को दर्शाते हैं। माइकल एंजेलो ने इन द्वारों को “स्वर्ग के दरवाज़ो के योग्य” कहा।
  • माइकल एंजेलो की 15 फीट ऊँची मूर्ति पेटा (Peta) बहुत प्रसिद्ध है।
वास्तुकला:
  • पुनर्जागरण वास्तुकला ने प्राचीन रोम और ग्रीक तत्वों को अपनाया।
  • सामान्य विशेषताएँ: स्तंभ, गुंबद, और मेहराब।
  • प्रमुख उदाहरण: फ्लोरेंस कैथेड्रल और सेंट पीटर का गिरजाघर

विज्ञान पर प्रभाव

  • पुनर्जागरण ने धार्मिक व्याख्याओं के स्थान पर वैज्ञानिक तर्क और यथार्थवादी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया।
  • नई वैज्ञानिक पद्धति: फ्रांसिस बेकन ने यह सिद्धांत दिया कि ज्ञान केवल पर्यवेक्षण और प्रयोगों के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिक क्रांति: 16वीं शताब्दी में यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत हुई ।
  • प्रमुख वैज्ञानिक और खोजें:
    • निकोलस कोपरनिकस (पोलैंड) का सूर्यकेंद्रित ब्रह्मांड सिद्धांत : उन्होंने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, जिससे पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र मानने वाली पुरानी मान्यता को चुनौती मिली। 
    • ब्रूनो (इटली): कोपरनिकस के सिद्धांत का समर्थन किया, लेकिन चर्च द्वारा उनके विचारों के लिए उन्हें जीवित जलाकर मार दिया गया।
    • केपलर (जर्मनी): उन्होंने गणितीय साक्ष्यों के माध्यम से कोपरनिकस के सूर्य-केंद्रित सिद्धांत को सिद्ध किया।
    • आइज़ैक न्यूटन (ब्रिटेन): उनके “गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत” ने यह दर्शाया कि ब्रह्मांड के संचालन में प्राकृतिक नियम होते हैं, न कि कोई दैवीय शक्ति।
    • डेस्कार्टेस (फ्रांस): उन्होंने ज्यामिति में गणित का उपयोग आरंभ किया, जिससे आधुनिक गणित की नींव पड़ी।
    • गैलीलियो (इटली): उन्होंने कई महत्वपूर्ण खोजें कीं – पेंडुलम का सिद्धांत, और बैरोमीटर और दूरबीन ।

मानवतावाद का प्रभाव

मानवतावाद ने ईश्वर से ध्यान हटाकर मनुष्य पर ध्यान केंद्रित किया। विचारकों ने मध्ययुगीन धर्म की कठोरता को अस्वीकार करते हुए मानव जीवन के सुखों पर बल दिया ।  

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विकास: अब लोग स्वतंत्र रूप से अपनी अभिव्यक्ति कर सकते थे, वे राजाओं या चर्च के अधीन नहीं थे।
  • भौतिकवाद: आध्यात्मिक जीवन से ध्यान हटाकर भौतिक जीवन पर केंद्रित किया गया, जिसमें जीवन की स्थितियों को सुधारना मुख्य उद्देश्य था।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: लोगों ने धार्मिक विश्वासों पर सवाल उठाना शुरू किया और तर्क और वैज्ञानिक सोच के माध्यम से नई अवधारणाओं को समझने का प्रयास किया।
  • पुरातन के प्रति मोहभंग होना : नए विचारों की ओर ध्यान केंद्रित होने से ,लोगों की रुचि मध्यकालीन ज्ञान में कम हो गई। 
  • राष्ट्रीयता का विकास:
    पुनर्जागरण ने चर्च के प्रभाव को कमजोर कर दिया, जिससे राष्ट्रीय पहचान मजबूत हुई और राष्ट्रवाद का उदय हुआ ।

राजनीति पर प्रभाव

  • मैकियावेली (1469–1527): अपनी कृति “द प्रिंस” में, उन्होंने तर्क किया कि राजनीति को व्यावहारिक होना चाहिए और इसे धर्म द्वारा प्रभावित नहीं होना चाहिए। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शासन के महत्व पर बल दिया।
  • मार्सिलियस: “डिफेंडर ऑफ़ पीस” में, उन्होंने पोप की राजनीतिक भागीदारी की आलोचना की और चर्च और राज्य के बीच पृथक्करण का समर्थन किया।

सामाजिक संरचना पर प्रभाव

  • मध्यवर्ग का उदय: व्यापारियों और कारीगरों ने धन और प्रभाव प्राप्त किया, जिससे सामाजिक संरचना में बदलाव आया।

लैंगिक भूमिकाओं पर प्रभाव

  • महिलाओं की भूमिकाएँ: महिलाओं की भूमिकाएँ सीमित थीं, लेकिन क्रिस्टीन डे पिज़ान जैसी शख्सियतों ने साहित्य और लैंगिक बहसों में योगदान दिया।

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • आर्थिक बदलाव: सामंती व्यवस्था से व्यापार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण और शहरी केंद्रों का विकास हुआ ।
  • बैंकिंग और वित्त: आधुनिक बैंकिंग प्रणालियों का विकास, जैसे फ्लोरेंस का वित्तीय केंद्र।

इन प्रभावों ने पुनर्जागरण के दौरान और इसके बाद यूरोप की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया।

(विविध प्रभाव: इटली में जहाँ मूर्तिकला, चित्रकला और वास्तुकला पर अधिक ध्यान दिया गया, वहीं उत्तरी यूरोपीय देशों ने मानवतावादी दर्शन और साहित्य में उत्कृष्टता प्राप्त की।
उत्तरी यूरोपीय मानवतावाद ने ईसाई धर्म को मानवीय रूप देने का प्रयास किया, जबकि इतालवी मानवतावाद ने खुलकर इसका विरोध किया।)

पृष्ठभूमि:

  • 16वीं शताब्दी में मध्यकालीन यूरोपीय समाज को चर्च द्वारा कठोरता से नियंत्रित किया गया था।
  • चर्च का संचालन रोम से होता था और उसके पास अपार शक्ति थी। पादरी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे।
  • पुनर्जागरण ने सामंतवाद की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक नींव को तोड़ना शुरू कर दिया था ।
  • प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार नए विचारों और लेखों को फैलाने में सहायक था।
  • इस बौद्धिक जागरूकता के साथ-साथ मध्यम वर्ग का उदय, व्यापार का विस्तार, और राष्ट्रीय राज्यों का उदय,चर्च में सुधार की मांगों का कारण बना

अर्थ:

  • 16वीं शताब्दी में पोप और चर्च की विलासिता, शोषण और प्रभुत्व के विरोध में शुरू हुए धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन को सुधार आंदोलन (रिफॉर्मेशन) कहा गया।
  • डेविस, सबाइन और हेज़ जैसे लेखक इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन के रूप में वर्णित करते हैं, जिसने चर्च के एकाधिकार को चुनौती दी और नए ईसाई संप्रदायों को जन्म दिया।
  • इसका उद्देश्य ईसाइयों के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन को सुधारना था और धर्म के साथ एक व्यक्तिगत संबंध को बढ़ावा देना था।

सुधार आंदोलन के कारण

पुनर्जागरण का प्रभाव:
  • पुनर्जागरण ने स्वतंत्र सोच और तर्क की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया।
  • लोगों ने पारंपरिक विश्वासों और चर्च के अधिकार पर सवाल उठाना शुरू किया।
  • पुनर्जागरण के मानवतावाद ने चर्च की मध्यस्थता की भूमिका को कम कर दिया, जिससे मनुष्य और ईश्वर के मध्य प्रत्यक्ष संबंध बढ़ा।
चर्च में भ्रष्टाचार:
  • चर्च भ्रष्ट हो चुका था; उनके द्वारा महत्वपूर्ण पदों को बेचा जा रहा था (सिमोनी) और क्षमा पत्रों की बिक्री का व्यापार किया जा रहा था। पोप और पादरी आम लोगों से दूर, विलासिता में जीवन जी रहे थे।
  • चर्च के धार्मिक और राजनीतिक नियंत्रण ने भी व्यापक असंतोष को जन्म दिया। (एक्स कम्युनिकेश, इंटरडिक्ट जैसे विशेषाधिकार)
आर्थिक कारण:
  • राजा चर्च से कर लेना चाहते थे ताकि वे अपनी प्रशासनिक लागत को पूरा कर सकें, लेकिन चर्च की संपत्ति कर मुक्त थी और रोम भेजी जाती थी।
  • पादरी अमीर थे, जबकि राजा सहित समाज के बाकी हिस्से वित्तीय संघर्ष का सामना कर रहे थे।
मध्यम वर्ग की महत्वाकांक्षा:
  • व्यापार के विस्तार से मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जो  चर्च नियंत्रण से मुक्ति पाना चाहता था।
  • चर्च के अधीन रहने के बजाय, यह वर्ग अपनी संपत्ति को ऐश्वर्यपूर्ण जीवन और व्यवसाय में निवेश करना चाहता था।
  • उन्होंने चर्च द्वारा धन संग्रह और ब्याज वसूलने पर रोक जैसे प्रतिबंधों का कड़ा विरोध किया।
वैज्ञानिक उन्नति:
  • कोपरनिकस का यह सिद्धांत कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, जैसी नई वैज्ञानिक खोजें चर्च की परंपरागत शिक्षाओं के विपरीत थीं।
  • इन विचारों के प्रसार ने चर्च की सत्ता कमजोर कर दिया।
पादरी का राजनीति में हस्तक्षेप:
  • पोप ने दिव्य अधिकारों का दावा किया जो उन्हें राजाओं के ऊपर रखता था।
  • उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग न केवल राज्य मामलों को नियंत्रित करने के लिए बल्कि शासकों के व्यक्तिगत जीवन में भी हस्तक्षेप करने के लिए किया।
  • राष्ट्रीय शासक अपनी संप्रभुता की रक्षा करना चाहते थे, इससे पोप और राजाओं के बीच संघर्ष उत्पन्न हुआ ।
बौद्धिक विरोध:
  • बुद्धिजीवियों ने चर्च की अनैतिकता की आलोचना की और प्रश्न उठाया कि पापी पादरी कैसे मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
  • दांते, लोरेंजो, और बोकेचियो जैसे मानवतावादी विचारकों ने चर्च के सिद्धांतों की तुलना में मानवीय सुख को अधिक महत्वपूर्ण बताया।
  • मार्टिन लूथर, जॉन विकलिफ, और जॉन हस जैसे सुधारकों ने चर्च के भ्रष्टाचार की खुलकर आलोचना की और बाइबिल को धर्म का सच्चा स्रोत घोषित किया।
राष्ट्रीयता का उदय:
  • उभरती राष्ट्रीय पहचान के साथ, लोगों में अपने देशों पर रोम में स्थित पोप जैसी विदेशी शक्ति के प्रभाव को लेकर आक्रोश बढ़ने लगा।
तात्कालिक कारण: क्षमादान की बिक्री:
  • चर्च ने इंडल्जेंस (क्षमा पत्र) बेचना शुरू किया, जिससे लोगों को अपने पापों की माफी खरीदने का अवसर मिल गया।
  • 1517 में जर्मनी में इस प्रथा को प्रत्यक्ष रूप से देखने के बाद, मार्टिन लूथर ने इसका कड़ा विरोध किया।
  • उनका यह विरोध रोमन कैथोलिक चर्च के खिलाफ सुधार आंदोलन की चिंगारी बना।

सुधार आंदोलन के प्रमुख सुधारक

जॉन विक्लिफ (John Wycliffe) (1320–1384 ई.)

  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्वान।
  • चर्च की भ्रष्ट प्रथाओं और पोप के अधिकार का विरोध किया। उन्होंने तर्क किया कि प्रत्येक व्यक्ति को बाइबिल स्वयं पढ़नी चाहिए और इसे सामान्य भाषाओं में अनुवादित किया जाना चाहिए।
  • वे मानते थे कि राज्य को चर्च की विशाल संपत्ति पर कब्जा कर लेना चाहिए।
  • उनके विचारों के कारण उन्हें पदच्युत किया गया, लेकिन उन्हें “द मॉर्निंग स्टार ऑफ़ रिफॉर्मेशन ” के रूप में जाना गया। उनके अनुयायी “लोलार्ड्स” के रूप में प्रसिद्ध हुए।

जॉन हँस (John Huss) (1369–1415 ई.)

  • प्राग में एक प्रोफेसर के रूप में सेवा दी तथा जॉन विक्लिफ से प्रभावित थे।
  • उन्होंने कहा कि चर्च की मध्यस्थता के बिना बाइबल पढ़ने से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
  • उन्हें नास्तिक घोषित कर जीवित जला दिया गया।

जीरोलामो सेवानरोला (Girolamo Savonarola) (1452–1498 ई.)

  • फ्लोरेंस में एक पादरी थे तथा अपनी तपस्वी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध थे।
  • पोप की विलासवादी  जीवनशैली की आलोचना की और पादरियों के लिए सरल, साधा, पंथनिष्ठ जीवन की माँग की।
  • उन्होंने पोप अलेक्जेंडर VI द्वारा अपनी आलोचना बंद करने के आदेश को अस्वीकार कर दिया और अंततः चर्च के खिलाफ उनके विरोध के कारण उन्हें जिंदा जला दिया गया।

एरास्मस ऑफ रोटरडम (Erasmus of Rotterdam) (1466–1536 ई.)

  • हॉलैंड से संबंधित एक मानवतावादी विद्वान।
  • अपनी प्रसिद्ध रचना इन प्रेज़ ऑफ फॉली (1511 ई.) में चर्च की अज्ञानता और पाखंड की कड़ी आलोचना की।
  • न्यू टेस्टामेंट का एक नया संस्करण प्रकाशित किया, जिसमें ईसाई धर्म के सच्चे सिद्धांतों की व्याख्या की।
  • ऐसा कहा जाता है कि उनकी व्यंग्यात्मक रचनाओं ने पोप की प्रतिष्ठा को मार्टिन लूथर की आलोचनाओं से अधिक नुकसान पहुंचाया।

मार्टिन लूथर (1483–1546 ई.)

  • इनका जन्म जर्मनी में हुआ, पहले कानून की पढ़ाई की लेकिन बाद में धर्मशास्त्र के प्रोफेसर बने।
  • 1517 में लूथर ने विटेनबर्ग में एक पुजारी टेटज़ल द्वारा पापों की क्षमादान की बिक्री देखी। इस प्रथा ने लूथर को क्रोधित कर दिया।
  • लूथर ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपने 95 मान्यताओं का विरोध पत्र (थीसिस) कैसल चर्च के दरवाजे पर लगा दिया  , जिसमें उन्होंने पापों की क्षमादान की बिक्री की आलोचना की और चर्च के अधिकारों को चुनौती दी।
  • लेपज़िग में सार्वजनिक बहस: लूथर ने तर्क दिया कि पोप को व्यक्ति एवं ईश्वर के बीच नहीं आना चाहिए।
  • उन्होंने अपने विचारों के प्रसार के लिए निम्न पत्रक  (Pamphlets) प्रकाशित किए :
    • जर्मन सामंत वर्ग को संबोधन: जर्मन शासकों से पादरियों के विशेषाधिकार समाप्त करने और चर्च की संपत्ति पर कब्जा करने का आह्वान किया।
    • ईश्वर के चर्च की बेबिलोनाई क़ैद (बेबीलोनियन कैप्टिविटी ऑफ़ द चर्च): चर्च और धार्मिक प्रथाओं पर पोप के नियंत्रण की आलोचना की।
    • ईसाई मनुष्य की मुक्ति (ऑन द फ्रीडम ऑफ़ ए क्रिश्चियन): उन्होंने केवल विश्वास के आधार पर उद्धार का समर्थन किया।
  • लूथर ने बाइबिल का अनुवाद जर्मन भाषा में किया, जिससे इसे सामान्य जनता के लिए सुलभ बना दिया गया।
  • सुधार आंदोलन और प्रभाव: लूथर के अनुयायी प्रोटेस्टेंट के रूप में जाने गए। उनके विचारों से ईसाई धर्म कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट शाखाओं में विभाजित हो गया। लूथरवादियों और कैथोलिकों के बीच संघर्ष अंततः 1555 के ऑग्सबर्ग की संधि में समाप्त हुआ, जिसने शासकों को अपने राज्यों का धर्म चुनने की अनुमति दी गई  और आधिकारिक रूप से लुथरवाद को मान्यता मिली ।
लूथर के धार्मिक विचार:
  • ईसा मसीह और बाइबिल की सत्ता: लूथर ने ईसा मसीह और बाइबिल के अधिकार को स्वीकार किया, लेकिन पोप के ईश्वरीय अधिकार को अस्वीकार किया।
  • विश्वास द्वारा उद्धार: लूथर का मानना था कि उद्धार केवल विश्वास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, न कि चर्च की धार्मिक प्रथाओं से।
  • पवित्र संस्कार: लूथर ने केवल तीन संस्कारों को मान्यता दी—नामकरण,प्रायश्चित, और पवित्र प्रसाद (बैप्टिज़म , पैनेंस , युकारिष्ट)। उन्होंने कई कैथोलिक चमत्कारों और प्रथाओं को खारिज कर दिया।
  • सभी आस्थावनों की पुरोहिताई को  मान्यता: लूथर ने घोषित किया कि जो कोई भी ईश्वर में विश्वास करता है, वह मूल रूप से पादरी है और इस तरह उन्होंने विशेष पादरी वर्ग की आवश्यकता को अस्वीकार कर दिया।
  • पादरियों के ब्रह्मचर्य का विरोध: उन्होंने पादरियों के ब्रह्मचर्य के नियम का विरोध किया । उनका मानना था कि पादरियों को विवाह करने की अनुमति होनी चाहिए।
  • राजा का अधिकार: उन्होंने राष्ट्र चर्चों के मुखिया के रूप में पोप के बजाय राजाओं के अधिकार को स्वीकार किया।
  • लूथर के विचार लुथरवाद की नींव बने और उन्होंने प्रोटेस्टेंट धर्म के उदय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्यों ने धार्मिक क्रांति को जन्म दिया, जिसने यूरोप के धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को स्थायी रूप से बदल दिया।

उलरिच ज़्विंगली (Ulrich Zwingli) (1484–1531 ई.)

  • पृष्ठभूमि: स्विस सुधारक और लूथर के समकालीन।
  • विश्वास: उन्होंने सरल ईसाई जीवन की वकालत की और बाइबिल को मानव आचरण के लिए एकमात्र मार्गदर्शक घोषित किया।
  • स्विट्जरलैंड में एक सुधारवादी (रिफॉर्म्ड )चर्च की स्थापना की।
  • कैथोलिकों को सुधारवादी (रिफॉर्म्ड )चर्च में सम्मिलित करने  प्रयास के  कारण कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच एक गृहयुद्ध हुआ।
  • ज़्विंगली इस युद्ध में मारे गए, लेकिन उनके विचारों ने स्विस प्रोटेस्टेंट धर्म पर गहरा प्रभाव डाला।

जॉन कैल्विन (John Calvin) (1509–1564 ई.)

  • एक फ्रांसीसी सुधारक, जिन्होंने प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • कैल्विन ने ईश्वर की सर्वोच्चता पर जोर दिया और पूर्वनियति (predestination) के सिद्धांत को प्रस्तुत किया, जिसमें यह विश्वास था कि उद्धार या निंदा ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित होती है।
  • उनकी पुस्तक “इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ द क्रिश्चियन रिलिजन” प्रोटेस्टेंट धर्मशास्त्र की सबसे प्रभावशाली ग्रंथ बन गई।
  • कैल्विनवाद स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, स्कॉटलैंड, जर्मनी के कुछ हिस्सों और यहाँ तक कि इंग्लैंड और फ्रांस में भी फैल गया।

एंग्लिकनवाद (Anglicanism) का ब्रिटेन में उदय:

  • इंग्लैंड में सुधार आंदोलन (Reformation) का नेतृत्व राजा हेनरी अष्टम (Henry VIII) ने किया।
  • कारण: जब पोप ने हेनरी अष्टम की शादी रद्द करने से इनकार कर दिया, तब उन्होंने  रोमन कैथोलिक चर्च से अलग होने का निर्णय लिया।
  • 1534 में सर्वोच्चता के अधिनियम (Act of Supremacy) के माध्यम से उन्होंने इंग्लैंड के चर्च (Church of England) की स्थापना की, जिसे एंग्लिकन चर्च के नाम से भी जाना जाता है।
  • एंग्लिकन चर्च कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट मतों के बीच का एक मध्यम मार्ग था। इसने कैथोलिक परंपराओं को बनाए रखा लेकिन पोप के अधिकार को अस्वीकार कर दिया।
  • हेनरी के उत्तराधिकारी एडवर्ड षष्टम (Edward VI) के शासनकाल में एंग्लिकन चर्च  प्रोटेस्टेंट  बन गया ।

सुधार आंदोलन  के परिणाम

ईसाई धर्म का विभाजन

  • सुधार आंदोलन ने यूरोप में कैथोलिक चर्च के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया।
  • कई नए प्रोटेस्टेंट संप्रदाय उभरे, जैसे जर्मनी में लूथरवाद (Lutheranism), स्विट्ज़रलैंड में कैल्विनवाद (Calvinism) और इंग्लैंड में एंग्लिकनवाद (Anglicanism) इत्यादि।

प्रतिवादी सुधार आंदोलन (Counter-Reformation)

  • प्रोटेस्टेंट आंदोलन के जवाब में कैथोलिक चर्च ने प्रतिवादी सुधार आंदोलन की शुरुआत की, जिससे आंतरिक भ्रष्टाचार को दूर करने और अपने अधिकारों  की रक्षा करने का प्रयास किया गया। इसमें निम्नलिखित सुधार शामिल थे:
  • ट्रेंट की सभा  (Council of Trent, 1545–1563): इस परिषद ने कैथोलिक सिद्धांतों और प्रथाओं की पुष्टि की । पाप क्षमादान की बिक्री पर प्रतिबंध, पुरोहितों के आचरण में सुधार, और चर्च शिक्षाओं का मानकीकरण जैसे सुधार लागू किए।
  • सोसाइटी ऑफ़ जीसस  (Society of Jesus): 1534 में इग्नाटियस लोयोला द्वारा स्थापित की गई । इसने शिक्षा, मिशनरी कार्य, और कड़ी अनुशासन के माध्यम से कैथोलिक धर्म के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • फ्रांसिस जेवियर जैसे सदस्यों  ने भारत, जापान और चीन में कैथोलिक धर्म का प्रसार किया।
  • मज़हबी न्यायालय (Inquisition Courts): कैथोलिक धर्म के विरोधियों को दंडित करने और कैथोलिक रूढ़िवादिता को लागू करने के लिए स्थापित किए गए न्यायालय।

धार्मिक बहुलवाद और सहिष्णुता

  • सुधार आंदोलन ने प्रारंभ में धार्मिक संघर्ष को जन्म दिया, लेकिन बाद में इसने धार्मिक बहुलवाद को प्रोत्साहित किया। फ्रांस में नांटेस का आदेश और जर्मनी में वेस्टफेलिया की संधि ने ईसाई संप्रदायों के सहअस्तित्व की अनुमति दी।

राष्ट्रवाद का विकास

  • सुधार आंदोलन ने पोप के अधिकार को कमजोर करके राष्ट्रीय शासकों को सशक्त बनाया। 
  • इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम ने कैथोलिक चर्च से अलग होकर 1534 में इंग्लैंड चर्च (Anglican Church) की स्थापना की।

धार्मिक गृहयुद्ध:

  • हॉलैंड और फ्रांस में मज़हबी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हुआ।
  • जर्मनी में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक राज्यों के बीच तीस साल का युद्ध (Thirty Years’ War, 1618–1648)  एक विनाशकारी संघर्ष था, जो वेस्टफेलिया की संधि के साथ समाप्त हुआ।

शिक्षा का विस्तार

  • प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों ने शिक्षा के प्रसार पर ज़ोर दिया।
  • मार्टिन लूथर ने बाइबिल का जर्मन में अनुवाद किया, जिससे यह आम लोगों के लिए सुलभ हो गई और शिक्षा के प्रसार को प्रोत्साहन मिला।
  • जेसुइट्स ने पूरे यूरोप में विद्यालय और विश्वविद्यालय स्थापित किए।

साहित्य और भाषा का विकास:

  •  सुधार आंदोलन ने धार्मिक ग्रंथों में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित किया, जिससे लैटिन का एकाधिकार समाप्त हो गया।
  • जर्मनी में लूथर की बाइबिल का अनुवाद आधुनिक जर्मन भाषा के विकास में सहायक बना। फ्रांस में कैल्विन की रचनाओं ने फ्रेंच को बौद्धिक विचार विमर्श की भाषा के रूप में स्थापित किया।

आर्थिक विकास और पूँजीवाद

  • सुधार आंदोलन, विशेष रूप से कैल्विनवाद, ने व्यापार, वाणिज्य और पूंजीवादी मूल्यों का समर्थन किया।
  • 1602 में स्थापित डच ईस्ट इंडिया कंपनी पूंजीवाद की इस भावना का आदर्श उदाहरण थी।
  • चर्च की भूमि का पुनर्वितरण किया गया । व्यापारी चर्च के नियंत्रण से स्वतंत्र होकर व्यापार में तेजी से वृद्धि करने लगे। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और उद्योगों का विकास हुआ।

नैतिक अनुशासन

  • सुधार आंदोलन ने समाज में नैतिक अनुशासन को बढ़ावा दिया।
  • प्रोटेस्टेंट, विशेष रूप से कैल्विनवादीयों , ने सरल, तपस्वी और नैतिक जीवन पर जोर दिया।
  • जेसुइट्स ने कैथोलिक चर्च के भीतर नैतिक शुद्धता पर ज़ोर दिया।
निष्कर्ष:

सुधार आंदोलन ने केवल यूरोप के धार्मिक परिदृश्य को ही नहीं बदला, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिणाम भी हुए। इसने 17वीं और 18वीं शताब्दी में प्रबोधन (एन्लाइटनमेंट) की नींव रखी। वोल्टेयर और स्पिनोजा जैसे विचारकों ने धार्मिक अंधविश्वास के बजाय तर्क और विज्ञान को प्राथमिकता दी।

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