एशिया व अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद

एशिया व अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद विश्व इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें यूरोपीय शक्तियों ने एशियाई और अफ्रीकी देशों पर अपने प्रभुत्व की स्थापना की। इस प्रक्रिया ने न केवल आर्थिक और राजनीतिक ढाँचे को बदला बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर भी गहरा असर डाला।

साम्राज्यवाद (Imperialism)

  • वह प्रथा है जिसके माध्यम से एक देश अपनी सीमाओं से बाहर स्थित क्षेत्रों के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर नियंत्रण स्थापित करता है। 
  • यह प्रभुत्व सैन्य बल, उपनिवेशवाद, कूटनीतिक दबाव या आर्थिक शोषण जैसे तरीकों से प्राप्त किया जाता है। 
  • शोषण साम्राज्यवाद का एक आवश्यक पहलू है।
  • नव-उपनिवेशवाद (Neo-Colonialism): जब साम्राज्यवादी शक्तियां आर्थिक रूप से कम विकसित लेकिन स्वतंत्र देशों का शोषण करती हैं।
पहलूउपनिवेशवाद (Colonialism)साम्राज्यवाद (Imperialism)
परिभाषाउपनिवेशों का अधिग्रहण और नियंत्रण, आमतौर पर बसावट के माध्यम से। (वास्तविक प्रथा)अन्य क्षेत्रों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन पर कूटनीति या सैन्य शक्ति के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने की नीति। (विचार)
केन्द्रबिन्दुउपनिवेशों में बसावट स्थापित करना और वहां के संसाधनों का दोहन करना। उदाहरण – स्पेनिश खोजकर्ताओं के लिए सोना, महिमा और धर्म का उद्देश्य।साम्राज्य का निर्माण और विस्तार करना।
उदाहरणभारत, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, और ब्राजील का यूरोपीय उपनिवेशीकरण।प्यूर्टो रिको और फिलीपींस पर अमेरिकी प्रभुत्व, पूर्वी यूरोप पर सोवियत नियंत्रण।
नियंत्रणउपनिवेशी देश द्वारा प्रत्यक्ष शासन और प्रशासन।अप्रत्यक्ष नियंत्रण जैसे कठपुतली सरकारें, आर्थिक नियंत्रण या सैन्य उपस्थिति के माध्यम से।
आर्थिक प्रभावउपनिवेश के प्राकृतिक संसाधनों और श्रम का शोषण। उदाहरण -भारतीय कपास और चाय का ब्रिटिश शोषण।व्यापार समझौतों, निवेशों और बाजारों के नियंत्रण के माध्यम से आर्थिक प्रभुत्व। उदाहरण – मिस्र में स्वेज नहर के नियंत्रण के माध्यम से ब्रिटिश आर्थिक प्रभुत्व।
ऐतिहासिक संदर्भ15वीं से 20वीं शताब्दी तक प्रमुख रहा (अन्वेषण युग)। उदाहरण – स्पेनिश और पुर्तगाली साम्राज्य।19वीं शताब्दी के अंत से 20वीं शताब्दी में सामान्य ( नव साम्राज्यवाद)। उदाहरण – अफ्रीका पर कब्जा (19वीं शताब्दी के अंत)।
स्वदेशी लोगों पर प्रभावस्वदेशी आबादी का विस्थापन, शोषण और अक्सर विनाश। उदाहरण – उत्तरी अमेरिका में यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा मूल अमेरिकी आबादी का विस्थापन।स्थानीय राजनीति और अर्थव्यवस्थाओं में हस्तक्षेप, जिससे निर्भरता और अस्थिरता पैदा होती है। उदाहरण – अमेरिका के हस्तक्षेपों के कारण लैटिन अमेरिका में राजनीतिक अस्थिरता।

चरण

पहला चरण (16वीं – 18वीं शताब्दी):
  • साम्राज्यवाद की शुरुआत 16वीं शताब्दी में यात्राओं से नई खोज के साथ हुई। पुर्तगाल, स्पेन, हॉलैंड, इंग्लैंड, और फ्रांस ने बड़े उपनिवेश साम्राज्य बनाए।
  • 18वीं शताब्दी के अंत तक यह चरण समाप्त हो रहा था। इस दौरान ब्रिटेन ने भारत पर विजय प्राप्त की और यूरोपीय शक्तियों ने चीन में भी हस्तक्षेप शुरू कर दिया।
  • इस उपनिवेशवाद ने पूंजीवाद और औद्योगिक क्रांति के विकास को बढ़ावा दिया।
दूसरा चरण (1875 – 1914):
  • नव साम्राज्यवाद औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न आर्थिक आवश्यकताओं द्वारा प्रेरित था।
  • औद्योगिक देशों, जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, अमेरिका, और जापान ने अपने नियंत्रण का विस्तार किया।
  • इन शक्तियों ने उपनिवेश शासन, प्रभाव क्षेत्र (spheres of influence), और आर्थिक समझौतों के माध्यम से दुनिया के अधिकांश हिस्सों पर राजनीतिक और आर्थिक नियंत्रण स्थापित किया।

साम्राज्यवाद के विकास की अनुकूल परिस्थितियाँ

औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न माँगें:
  • औद्योगिक क्रांति ने वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि की। उत्पादन का मुख्य लक्ष्य मुनाफा था, जिसने देशों को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार खोजने के लिए प्रेरित किया।
  • यूरोपीय देशों ने अपनी उद्योगों की सुरक्षा के लिए आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाना शुरू कर दिया । इससे एशिया और अफ्रीका में बाजारों की तलाश तेज हो गई क्योंकि वहाँ अभी औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था।
  • यूरोपीय शक्तियों को कच्चे माल जैसे कपास (भारत और मिस्र से), रबर (कांगो और पूर्वी इंडीज से), खाद्यान्न, चाय, और तंबाकू की आवश्यकता थी। इनको प्राप्त करने के लिए उन्होंने उपनिवेशों में उत्पादन पैटर्न को बदल दिया। 
  • 19वीं शताब्दी के अंत तक यूरोपीय निवेशकों को एशिया और अफ्रीका सस्ते श्रम और कच्चे माल के कारण पूंजी निवेश के लिए आकर्षक लगने लगे।
परिवहन और संचार में सुधार:
  • स्टीमशिप और रेलवे ने यूरोप और उसके उपनिवेशों के बीच सामान की तेज आवाजाही को संभव बनाया (उदाहरण: भारत से ब्रिटिश स्टीमशिप द्वारा कपास का परिवहन)।
  • रेलमार्गों और अंतर्देशीय जलमार्गों ने विजित क्षेत्रों में कच्चे माल के दोहन और निर्मित वस्तुओं के वितरण को आसान बनाया। (उदा. कांगो का रेलवे सिस्टम)।
उग्र राष्ट्रवाद:
  • 19वीं शताब्दी के अंत में जर्मनी और इटली जैसे देशों में उग्र राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिनका उद्देश्य उपनिवेश हासिल कर राष्ट्रीय गौरव बढ़ाना था।
‘सभ्यता मिशन’ का सिद्धांत (The ‘Civilizing Mission’):
  • कई यूरोपीय लोग मानते थे कि साम्राज्यवाद “पिछड़ी” सभ्यताओं को सभ्य बनाने का एक महान प्रयास था।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति जैसे रुडयार्ड किपलिंग ने ‘श्वेत आदमी पर भार’ (White Man’s Burden) सिद्धांत का समर्थन किया। फ्रांस में जूल्स फेरी ने कहा, “श्रेष्ठ नस्लों का कर्तव्य है कि वे निम्न नस्लों को सभ्य बनाएं”।
  • ईसाई मिशनरियों ने भी साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभाई।
  • यह विचारधारा एशिया और अफ्रीका में विजय और प्रभुत्व को “सभ्यता फैलाने” के नाम पर उचित ठहराती थी।
खोजकर्ता और साहसिक यात्री:
  • अज्ञात क्षेत्रों का मानचित्रण:
    • डेविड लिविंगस्टोन (अफ्रीका): उन्होंने अफ्रीका के आंतरिक भाग का मानचित्रण किया, जिससे यूरोपीय उपनिवेशीकरण संभव हुआ।
    • क्रिस्टोफर कोलंबस (1492), वास्को डी गामा (1498), अमेरिगो वेस्पुची (1500), और फर्डिनेंड मैगलन (1519): इन खोजकर्ताओं ने नई व्यापारिक मार्गों की खोज की और यूरोपीय प्रभाव को अमेरिका, एशिया और अन्य क्षेत्रों में फैलाया।
  • कठिन इलाकों की विजय:
    • रिचर्ड बर्टन और हेनरी मॉर्टन स्टेनली: उन्होंने अफ्रीका के आंतरिक हिस्सों की खोज की, जिससे वहां का उपनिवेशीकरण संभव हो सका।
प्रमुख आविष्कार और प्रौद्योगिकी की भूमिका:
  • कम्पास और एस्ट्रोलेब: इन आविष्कारों ने लंबी दूरी की नेविगेशन को संभव बनाया।
  • कारवेल जहाज: महासागरीय यात्राओं को आसान बनाने वाला यह जहाज यूरोपीय विस्तार के लिए महत्वपूर्ण था।
  • बारूद और बंदूकें: इनसे यूरोपीय शक्तियों को स्वदेशी आबादी पर सैन्य श्रेष्ठता मिली।
  • स्टीमशिप और टेलीग्राफ: इनसे उपनिवेशों के साथ तेज़ यात्रा और संचार संभव हुआ।
  • क्विनाइन (मलेरिया की दवा): इस दवा ने यूरोपीय लोगों को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जीवित रहने में मदद की।
एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद के अनुकूल परिस्थितियाँ:
  1. औद्योगिक पिछड़ापन:
    • औद्योगिक क्रांति एशिया और अफ्रीका में नहीं पहुंची थी, जिससे वहां के उत्पादन के तरीके यूरोप की तुलना में पिछड़े हुए थे।
  2. इन महाद्वीपों में यूरोपीय आक्रमण का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सैन्य शक्ति नहीं थी।
  3. राजनीतिक कमजोरी:
    • 19वीं शताब्दी तक एशिया और अफ्रीका के कई शक्तिशाली साम्राज्य पतन की ओर जा रहे थे।
    • मजबूत राष्ट्र-राज्य पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे, जिससे यूरोपीय शक्तियों के लिए बिना किसी प्रतिरोध के नियंत्रण हासिल करना आसान हो गया।

एशिया में साम्राज्यवाद

भारत में ब्रिटिश शासन:

  • मुग़ल साम्राज्य के पतन ने ब्रिटेन और फ्रांस को भारत पर अधिकार करने का अवसर दिया।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी (1600 में स्थापित) ने 1763 में फ्रांस को पराजित कर बंगाल के माध्यम से भारत पर नियंत्रण शुरू किया ।
  • 1857 के विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित कर अपनी विजय पूरी की।
  • औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटिश वस्तुओं से भारतीय बाजार भर गए।
  • भारत से लाखों पाउंड लाभ और कर के रूप में इंग्लैंड भेजे गए।
  • रेलमार्गों का निर्माण किया गया ताकि ब्रिटिश वस्तुओं के लिए नए बाजार बन सकें। ब्रिटिश समर्थन से चाय, कॉफी, और नील की खेती को बढ़ावा मिला।

चीन में साम्राज्यवाद:

  • अफीम युद्ध और विदेशी प्रभुत्व:
    • ब्रिटेन ने चीन में अवैध रूप से अफीम की तस्करी की, जिससे चीनी समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। 1839 में चीन के विरोध के परिणामस्वरूप अफीम युद्ध हुआ, जिसमें ब्रिटेन ने जीत हासिल की।
    • चीन को पांच प्रमुख बंदरगाह ब्रिटिश व्यापार के लिए खोलने के लिए मजबूर किया गया और हांगकांग पर ब्रिटिश कब्जा हो गया।
    • अन्य पश्चिमी शक्तियों जैसे फ्रांस और अमेरिका ने भी इसी प्रकार की असमान संधियों के माध्यम से चीन पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • प्रभाव क्षेत्र (Spheres of Influence):
    • जापान के खिलाफ कोरिया पर युद्ध हारने के बाद, चीन ने कई क्षेत्र खो दिए और भारी हर्जाना चुकाना पड़ा।
    • फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसी विदेशी शक्तियों ने चीन को प्रभाव क्षेत्रों में विभाजित कर नियंत्रण स्थापित किया।
  • ओपन डोर नीति (Open Door Policy ) और बॉक्सर विद्रोह:
    • अमेरिका द्वारा सुझाई गई ओपन डोर नीति ने सभी देशों को चीन में समान व्यापारिक अधिकार दिए, जिससे चीन का और अधिक विभाजन रुक गया।
    • बॉक्सर विद्रोह (1899-1901): यह एक विदेशी विरोधी विद्रोह था, जिसे विदेशी शक्तियों द्वारा कुचल दिया गया । इसके बाद चीन पर और अधिक नियंत्रण स्थापित किया गया। इसके बाद चीनी सरदारों के समर्थन से , चीन पर विदेशी नियंत्रण और बढ़ गया।

दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में साम्राज्यवाद:

  • यूरोपीय विस्तार:
    • श्रीलंका को क्रमशः पुर्तगालियों, डचों, और ब्रिटिशों द्वारा कब्जे में लिया गया, जिन्होंने वहां चाय और रबर की बड़े पैमाने पर खेती शुरू की।
    • ब्रिटेन ने मलाया और सिंगापुर पर नियंत्रण किया, जिससे उसने मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से सुदूर पूर्वी व्यापार मार्गों पर प्रभुत्व स्थापित किया।
    • डचों ने इंडोनेशिया में विशेष रूप से संसाधन-संपन्न मोलुकास द्वीप पर नियंत्रण बढ़ाया।
  • फ्रांस का इंडो-चाइना पर उपनिवेशीकरण:
    • फ्रांस ने कई युद्धों के बाद इंडो-चाइना (अब वियतनाम, लाओस, और कंबोडिया) पर कब्जा कर लिया।
  • बर्मा और थाईलैंड में ब्रिटिश प्रभाव:
    • ब्रिटेन ने 1886 में फ्रांस के साथ एक युद्ध के बाद बर्मा का अधिग्रहण किया।
    • थाईलैंड स्वतंत्र रहा, लेकिन उस पर ब्रिटेन और फ्रांस दोनों का भारी प्रभाव रहा।
  • अमेरिका द्वारा फिलीपींस पर नियंत्रण:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक संक्षिप्त विद्रोह के बाद फिलीपींस पर नियंत्रण कर लिया, जिससे यहाँ उनका उपनिवेश स्थापित हुआ।

मध्य और पश्चिमी एशिया में साम्राज्यवाद:

  • ग्रेट गेम – ब्रिटेन बनाम रूस:
    • ब्रिटेन और रूस ने मध्य एशिया, ईरान, अफगानिस्तान, और तिब्बत पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रतिस्पर्धा की ।
    • 19वीं शताब्दी के अंत तक, रूस ने मध्य एशिया के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया, जबकि ब्रिटेन ने कूटनीतिक समझौतों के माध्यम से अपना प्रभाव बनाए रखा।
  • ईरान में प्रभाव क्षेत्र:
    • 1907 में, इंग्लैंड और रूस ने ईरान को तीन क्षेत्रों में विभाजित करने का समझौता किया। इस बीच, ईरान में तेल की खोज हुई और ब्रिटिश और अमेरिकी तेल कंपनियों ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की।
  • अफगानिस्तान और तिब्बत में ब्रिटिश प्रभाव:
    • रूस ने अफगानिस्तान को अपने प्रभाव से बाहर मान लिया और ब्रिटेन ने यह स्वीकार किया कि जब तक अफगानिस्तान का शासक वफादार रहेगा, वह इसे हड़पने का प्रयास नहीं करेगा।
    • 1911 में चीन में राजशाही के पतन के बाद, तिब्बत धीरे-धीरे ब्रिटिश प्रभाव में आ गया।

जापान का उदय एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में:

  • आधुनिकीकरण और विस्तार:
    • मीजी पुनर्स्थापना (1868) के साथ जापान ने तेजी से औद्योगिकीकरण और सैन्यीकरण किया, जिससे वह एक प्रमुख साम्राज्यवादी शक्ति बन गया।
    • जापान ने सबसे पहले कोरिया और चीन के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • रूस-जापान युद्ध:
    • रूस-जापान युद्ध (1904-05) में जापान ने रूस को पराजित कर दुनिया को चौंका दिया, जिससे वह पहला एशियाई राष्ट्र बन गया जिसने एक यूरोपीय शक्ति को हराया।
    • 1910 में जापान ने कोरिया पर कब्जा कर लिया और चीन की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर अपना साम्राज्य विस्तार जारी रखा।
    • प्रथम विश्व युद्ध तक, जापान एक महत्वपूर्ण साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में उभर चुका था।

अफ्रीका में साम्राज्यवाद

  • अफ्रीकी संस्कृतियों और सभ्यताओं का प्राचीन काल से ही वैश्विक संपर्क रहा है।
  • 15वीं शताब्दी के अंत में यूरोपीय खोजयात्राओं ने अफ्रीका के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। 
  • यह चरण व्यापारिक संबंधों की स्थापना से शुरू हुआ, लेकिन सबसे प्रमुख रूप से इसे दास व्यापार (slave trade) के लिए जाना गया।
  • 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में, दास व्यापार ने अपनी प्रमुखता खो दी थी क्योंकि यूरोपीय देशों ने अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधनों के औपनिवेशिक शोषण पर अपना ध्यान केंद्रित किया था।
(A) दास व्यापार (The Slave Trade):
  • पुर्तगाल ने लिस्बन में एक दास बाजार की स्थापना की, जहाँ से स्पेन ने अपने अमेरिकी उपनिवेशों के लिए दास खरीदे।
  • प्रारंभ में अरबों ने दास व्यापार पर नियंत्रण रखा, बाद में अफ्रीकी प्रमुखों ने हथियारों के बदले दासों का व्यापार किया।
  • यूरोपीय भी सीधे गांवों पर हमला कर अफ्रीकियों को पकड़ते और उन्हें अमेरिका में काम करने के लिए भेजते थे।
  • अंग्रेज व्यापारी (जैसे सर जॉन हॉकिंस) और ब्रिटिश राजशाही (जैसे एलिजाबेथ प्रथम) भी इस व्यापार में शामिल हो गए।
  • दासों को अमेरिका भेजा जाता था, जहाँ वे बर्बर परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होते थे।
  • 19वीं शताब्दी तक, यूरोपीय शक्तियों ने दास व्यापार से हटकर उपनिवेशवाद पर ध्यान केंद्रित किया और अफ्रीका के क्षेत्रों पर सीधे विजय प्राप्त करना शुरू किया।
(B) अफ्रीका की होड़ (The Scramble for Africa):
  • 19वीं शताब्दी के मध्य तक, यूरोपीय नियंत्रण अफ्रीका के तटीय क्षेत्रों तक सीमित था।
  • फ्रांस ने उत्तरी अफ्रीका में अल्जीरिया पर नियंत्रण कर लिया, और ब्रिटेन ने दक्षिण में केप कॉलोनी पर कब्जा कर लिया।
  • इसके बाद यूरोपीय शक्तियों के बीच अफ्रीका के क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए दौड़ शुरू हो गई, और लगभग पूरे महाद्वीप का विभाजन हो गया।
(C) अन्वेषकों, व्यापारियों और मिशनरियों की भूमिका (Role of Explorers, Traders, and Missionaries):
  • अन्वेषकों ने अफ्रीका के आंतरिक हिस्सों का मानचित्रण करके यूरोपीय दिलचस्पी को बढ़ा दिया  (जैसे डेविड लिविंगस्टोन और हेनरी स्टेनली)।
  • मिशनरियों ने अफ्रीका को ईसाई धर्म फैलाने के लिए एक उचित स्थान के रूप में देखा और साम्राज्यवाद के सांस्कृतिक औचित्य को बढ़ावा दिया।
  • अन्वेषकों और मिशनरियों द्वारा उत्पन्न रुचि का लाभ व्यापारियों ने उठाया, जो आर्थिक अवसरों की तलाश में थे।
  • इसके बाद, यूरोपीय सरकारों ने इन क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए सैनिक भेजे।

यूरोपीय विजय की गति के कारण (Reasons for the Speed of European Conquest):

  • आर्थिक शक्ति (Economic Power): यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों के पास अफ्रीकी राज्यों की तुलना में कहीं अधिक आर्थिक संसाधन थे।
  • सैन्य श्रेष्ठता (Military Superiority): यूरोपीय लोगों के पास उन्नत सैन्य तकनीक (जैसे मैक्सिम गन) थी, जबकि अफ्रीकी लोग अक्सर पुराने हथियार या पारंपरिक हथियारों (जैसे कुल्हाड़ी और चाकू) का उपयोग कर रहे थे।
  • राजनीतिक असंगति (Political Disunity): अफ्रीकी राज्य बंटे हुए थे और एकजुट नहीं थे। अफ्रीकी शासकों के बीच प्रतिद्वंद्विता ने उन्हें कमजोर बना दिया । कुछ ने अपने स्थानीय दुश्मनों से निपटने के लिए यूरोपीय सहायता लेना स्वीकार कर लिया ।

बर्लिन सम्मेलन और अफ्रीका का विभाजन (The Berlin Conference and the Partition of Africa):

  • यूरोपीय शक्तियों के बीच संघर्ष से बचने के लिए बर्लिन सम्मेलन (1884-85) आयोजित किया गया, जहाँ उन्होंने अफ्रीका को विभाजित करने पर चर्चा की। एंग्लो-जर्मन समझौता (1890) इसका एक उदाहरण था, जिसमें ब्रिटेन को युगांडा मिला और जर्मनी को हेलिगोलैंड।
  • इस सम्मेलन में कोई भी अफ्रीकी प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। 
  • यूरोपीय शक्तियों ने  अफ्रीकी शासकों से कई फर्जी संधियों पर हस्ताक्षर करवा लिए। कई अफ्रीकी प्रमुखों ने यह सोचकर अपने क्षेत्र पर हस्ताक्षर किए कि वे केवल सैन्य समर्थन मांग रहे हैं, लेकिन यूरोपीय शक्तियों ने इन क्षेत्रों को अपने संरक्षण में ले लिया और उन पर कब्जा कर लिया। 
  • पेपर विभाजन: बर्लिन सम्मेलन के दौरान अफ्रीका का विभाजन कागज पर किया गया, लेकिन वास्तविक कब्जा और औपनिवेशिक शासन की स्थापना में काफी समय लगा। अफ्रीका की कई सीमाएँ मनमाने ढंग से खींची गईं, जिनमें से लगभग 30% सीमाएँ सीधी रेखाएं थीं।
Imperialism and colonialism in Asia and Africa
पश्चिम और मध्य अफ्रीका (West and Central Africa):
  • 1878 में, किंग लियोपोल्ड II ने एच.एम. स्टैनली को इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन बनाने के लिए वित्त पोषित किया। स्टैनली ने 400 अफ्रीकी प्रमुखों से छोटे-छोटे सामानों के बदले उनकी भूमि पर हस्ताक्षर करवा लिए।
    • कांगो का रबर और हाथी दांत के लिए शोषण किया गया और स्थानीय लोगों को कठोर श्रम में लगाया गया।  कांगो फ्री स्टेट अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात हो गया, जैसे कि गाँववासियों के हाथ काटना।
    • 1908 में, बेल्जियम ने कांगो पर नियंत्रण कर लिया और इसे बेल्जियम कांगो का नाम दिया। 
    • कांगो के संसाधन जैसे सोना, हीरे, और तांबा ने यूरोपीय निवेशकों को आकर्षित किया।
  • ब्रिटेन ने नाइजीरिया पर कब्जा कर लिया । ब्रिटेन ने गाम्बिया, गोल्ड कोस्ट, और सिएरा लियोन को भी उपनिवेश बना लिया।
  • फ्रांस ने फ्रेंच कांगो पर कब्जा किया और पश्चिम अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाया।
  • जर्मनी ने टोगोलैंड, कैमरून और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका पर कब्जा किया।
  • लाइबेरिया स्वतंत्र रहा लेकिन अमेरिकी निवेशकों के प्रभाव में आ गया।
  • ब्रिटेन ने नाइजीरिया और अन्य पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
  • फ्रांस ने फ्रेंच कांगो और पश्चिम अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाया।
  • जर्मनी ने टोगोलैंड, कैमरून, और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका पर कब्जा किया।
  • स्पेन के पास रियो डी ओरो और स्पेनिश गिनी थे, और पुर्तगाल के पास अंगोला और गिनी थे।
दक्षिण अफ्रीका (South Africa):
  • डच ने केप कॉलोनी की स्थापना की, जिसे 1800 के दशक की शुरुआत में ब्रिटेन ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • डच उपनिवेशीयों (बोअर ) ने ऑरेंज फ्री स्टेट और ट्रांसवाल की स्थापना की।।
  • सेसिल रोड्स ने रोडेशिया (वर्तमान जाम्बिया और जिम्बाब्वे) में खनन शुरू की ।
  • बोअर युद्ध (1899-1902) ब्रिटेन की जीत के साथ समाप्त हुआ, जिससे दक्षिण अफ्रीका संघ का गठन हुआ।
पूर्वी अफ्रीका (East Africa):
  • 1884 से पहले केवल पुर्तगाली मोज़ाम्बिक पूर्वी अफ्रीका में उपनिवेश था।
  • बाद में, फ्रांस ने मेडागास्कर पर कब्जा कर लिया, और ब्रिटेन और जर्मनी ने पूर्वी अफ्रीका का विभाजन किया।
  • तंगानिका जर्मनी को मिली, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद इसे ब्रिटेन को दे दिया गया। केन्या और रूआंडा-उरुंडी को ब्रिटेन और बेल्जियम के बीच विभाजित किया गया।
इटली और इथियोपिया (Italy-Ethiopia):
  • इटली ने सोमालिलैंड और इरिट्रिया पर कब्जा कर लिया, लेकिन 1896 में अदोवा की लड़ाई में हारकर इथियोपिया को जीतने में असफल रहा।
  • इटली ने 1935 में इथियोपिया पर अस्थायी रूप से कब्जा कर लिया, लेकिन इसे लंबे समय तक नहीं रोक पाया।
उत्तर अफ्रीका (North Africa):
  • 1830 में फ्रांस ने अल्जीरिया पर कब्जा कर लिया और 40 साल के संघर्ष के बाद स्थानीय प्रतिरोध को समाप्त किया।
  • फ्रांस ने ट्यूनीशिया और मोरक्को पर भी कब्जा कर लिया।
  • 1882 में ब्रिटेन ने स्वेज नहर की रक्षा के लिए मिस्र पर कब्जा कर लिया और 1914 में इसे ब्रिटिश संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया।
  • सूडान को ब्रिटेन और मिस्र ने संयुक्त रूप से नियंत्रित किया, लेकिन 1898 में महदी बलों को हराने के बाद ब्रिटेन ने इसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया।
अफ्रीका की होड़ का निष्कर्ष (Conclusion of the Scramble for Africa):
  • 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक, लगभग पूरा अफ्रीका यूरोपीय शक्तियों द्वारा उपनिवेश बना लिया गया था।
  • केवल लाइबेरिया और इथियोपिया स्वतंत्र बने रहे।

अफ्रीका पर प्रभाव

आर्थिक शोषण:

  1. संसाधनों का निर्मम दोहन: अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन किया गया। कांगो फ्री स्टेट में किंग लियोपोल्ड II के तहत रबर जैसे सीमित संसाधनों का बेरहमी से शोषण हुआ।
  2. अन्यायपूर्ण बाजार नीतियाँ (Unfair Market Practices): वाणिज्यिक पूंजीवाद (Mercantile Capitalism) जैसी नीतियों ने उपनिवेशों को उनके खनिज और संसाधनों के लिए उचित बाजार मूल्य से वंचित कर दिया।
  3. उपनिवेशवादी प्रतिद्वंद्विता: यूरोपीय उपनिवेशी शक्तियों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता ने एकीकृत बाजार के विकास को रोका।
  4. मानवाधिकार हनन: अफ्रीकियों को कोरवे श्रम (corvée labor) के तहत बिना वेतन के सार्वजनिक परियोजनाओं में काम करने के लिए मजबूर किया गया। कांगो में हाथी दांत और रबर निकालने के लिए जबरन श्रम का इस्तेमाल किया गया।
  5. एकल वस्तुओं पर निर्भरता: नकदी फसलों (cash crops) की शुरुआत ने कई अफ्रीकी देशों को एकल वस्तु पर निर्भर बना दिया, जिससे वे बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो गए। उदाहरण के लिए, आइवरी कोस्ट कोको पर और क्यूबा चीनी उत्पादन पर अत्यधिक निर्भर हो गए।
  6. असमान धन वितरण (Unequal Distribution of Wealth):अफ्रीका से निकाले गए सोने और हीरे जैसे धन का अधिकांश हिस्सा यूरोपीय लोगों तथा स्थानीय सहयोगियों के हाथों में चला गया, जिससे आर्थिक असमानताएँ बढ़ीं ।

सामाजिक ढाँचा और सांस्कृतिक विघटन:

  1. विभाजन और विखंडन: यूरोपीय शक्तियों द्वारा खींची गई मनमानी सीमाओं ने जातीय समूहों को विभाजित कर दिया, जिससे दीर्घकालिक संघर्ष उत्पन्न हुए।
  2. सांस्कृतिक दमन: पुर्तगाल और स्पेन जैसे देशों के मिशनरी कार्यों ने स्वदेशी संस्कृतियों को कमजोर करने और उनकी जगह यूरोपीय ईसाई मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास किया।
  3. श्वेत उपनिवेशी अभिजात वर्ग (White Settlers as Elite): कई उपनिवेशों में श्वेत बसने वाले उच्च वर्ग बन गए और उन्होंने काले मूल निवासियों का शोषण किया।
  4. दास प्रथा का प्रभाव: दासता ने अफ्रीकी परिवारों को नष्ट कर दिया और अफ्रीकी समाजों में हीनता की मानसिकता को जन्म दिया।
  5. नस्लवाद: श्वेत नस्लीय श्रेष्ठता का विचार व्यापक रूप से फैलाया गया, जिससे असमानता और गहरी हो गई।
  6. जनसंहार (Mass Killings): कांगो फ्री स्टेट (1885–1908) के दौरान किंग लियोपोल्ड II के तहत हुई क्रूरता उपनिवेशी इतिहास की सबसे बर्बर घटनाओं में से एक मानी जाती है।

व्यापार और बुनियादी ढांचे पर प्रभाव (Impact on Trade and Infrastructure):

  1. व्यापार मार्गों का नियंत्रण (Control of Trade Routes): यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीकी व्यापार मार्गों पर नियंत्रण कर स्थानीय व्यापार को कमजोर कर दिया।
  2. सीमित बुनियादी ढांचा विकास (Limited Infrastructure Development): बुनियादी ढांचे की परियोजनाएँ, जैसे केप टू काइरो रेलवे, मुख्य रूप से उपनिवेशी हितों की सेवा के लिए बनाई गईं और स्थानीय आबादी को इसका कोई विशेष लाभ नहीं मिला।

राजनीतिक प्रभुत्व:

  • संप्रभुता की हानि (Loss of Sovereignty): बर्लिन सम्मेलन (1884-85) में यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका का विभाजन किया, जिसमें स्थानीय राजनीतिक ढाँचों की कोई परवाह नहीं की गई।
  • फूट डालो और राज करो नीति:(Divide and Rule Policy): यूरोपीय शक्तियों ने जातीय विभाजनों का लाभ उठाकर अपने उपनिवेशों में फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। इस नीति के परिणामस्वरूप, जैसे कि रवांडा में हुतू-तुत्सी नरसंहार जैसे संघर्ष उत्पन्न हुए।

अल्पविकास की विरासत (Legacy of Underdevelopment):

  • स्वास्थ्य और शिक्षा की उपेक्षा: उपनिवेशों को स्वतंत्रता के समय न्यूनतम स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ विरासत में मिली। स्वतंत्रता के समय बेल्जियन कांगो में केवल 17 स्नातक थे, और कोई डॉक्टर, वकील या इंजीनियर नहीं थे।
  • स्थायी चुनौतियाँ: डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे देश, जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, अभी भी राजनीतिक अस्थिरता और अविकसितता का सामना कर रहे हैं ।
निष्कर्ष:

यूरोपीय उपनिवेशवाद ने अफ्रीका और एशिया के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा और स्थायी प्रभाव छोड़ा। संसाधनों का शोषण, सांस्कृतिक दमन और राजनीतिक हस्तक्षेप ने ऐसी चुनौतियाँ पैदा कीं, जिनका प्रभाव आज भी इन महाद्वीपों पर देखा जा सकता है।

एशिया पर प्रभाव

वैसे तो अफ़्रीका वाले पॉइंट्स यहाँ भी चिपकाने है , फिर भी कुछ नयी एप्रोच से और एशिया स्पेसिफिक पॉइंट्स 

राजनीतिक प्रभाव:

  1. संप्रभुता का ह्रास:
    • भारत: 1763 में फ्रांस को हराने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर शासन शुरू किया। 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश क्राउन ने भारत पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित कर लिया।
    • चीन: अफीम युद्धों (1839-42, 1856-60) के बाद, चीन को हांगकांग सौंपना पड़ा और विदेशी शक्तियों के साथ असमान संधियों के तहत अपने बंदरगाह खोलने पड़े।
    • इंडो-चाइना: फ्रांस ने 19वीं शताब्दी में युद्धों की एक श्रृंखला के बाद वियतनाम, लाओस और कंबोडिया पर नियंत्रण कर लिया।
  2. राष्ट्रवाद का उदय:
    • भारत: 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • चीन: विदेशी प्रभुत्व के खिलाफ विरोध के रूप में बॉक्सर विद्रोह (1899-1901) हुआ, जो विदेशी हस्तक्षेप के प्रति चीन की बढ़ती नाराज़गी का प्रतीक था।

आर्थिक प्रभाव:

  • संसाधनों का शोषण:
    • भारत: 1700 में विश्व अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा 23% था, जो 1947 में घटकर 3% रह गया। ब्रिटिश शासन के दौरान भारत से लाखों पाउंड ब्रिटेन भेजे गए।
    • धन की निकासी: दादाभाई नौरोजी के अनुसार, भारत से हर साल €100 मिलियन से अधिक की निकासी ब्रिटेन को की गई, जिससे गरीबी और असमानता बढ़ी।(€-यूरो)
    • चीन: अफीम युद्धों के बाद, चीन को भारी हर्जाने का भुगतान करना पड़ा, जिससे उसके संसाधनों की निकासी हुई।
    • इंडोनेशिया: डचों ने इंडोनेशिया के मसालों और रबर जैसे संसाधनों का भारी शोषण किया।
  • औद्योगिक पतन:
    • भारत: ब्रिटिश नीतियों के कारण भारतीय उद्योग, विशेषकर कपड़ा उद्योग, बुरी तरह प्रभावित हुए और भारत का औद्योगिक पतन हुआ।
    • चीन: अफीम युद्धों के बाद जबरदस्ती ब्रिटिश वस्तुओं का आयात होने के कारण चीनी उद्योगों को नुकसान हुआ।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:

  • शैक्षिक और भाषाई परिवर्तन:
    • भारत: ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली (जैसे मैकाले की शिक्षा नीति, 1835) ने अंग्रेजी भाषा को स्थानीय भाषाओं पर प्राथमिकता दी।
    • चीन: विदेशी नागरिकों को दी गई विशेषाधिकारों के तहत पश्चिमी कानून और परंपराओं को चीन में लागू किया गया।
  • पश्चिमीकरण: यूरोपीय भाषाएँ, कानून और संस्थान एशिया की कई संस्कृतियों को प्रभावित करने लगे, जिससे एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ।

वनीकरण और कृषि में गिरावट:

  • वृक्षों की कटाई: बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई चाय, नील और कपास के बागानों के लिए की गई।
  • नकदी फसल का जोर: जूट और नील जैसी नकदी फसलों पर जोर देने के कारण खाद्यान्न की खेती उपेक्षित हो गई, जिससे अकाल पड़े। उदाहरण: बंगाल का अकाल।
    • 1850-1900 के बीच अकाल में लगभग 2.8 करोड़ लोगों की मृत्यु हो गई।
  • श्रीलंका: ब्रिटिश, डच और पुर्तगालियों ने बड़े पैमाने पर चाय और रबर की खेती शुरू की, जिससे द्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव आया।

उपनिवेशोत्तर संघर्ष:

  • भारत: ब्रिटिश नीतियों का परिणाम भारत के विभाजन (1947) के रूप में सामने आया, जिससे बड़े पैमाने पर हिंसा और विस्थापन हुआ।
  • चीन: “अपमान का शतक” (Century of Humiliation 1839-1949) के दौरान विदेशी नियंत्रण ने चीन के आंतरिक अशांति और संघर्ष को बढ़ावा दिया।
  • सीमा संघर्ष: उपनिवेशवादियों द्वारा खींची गई मनमानी सीमाओं के कारण भविष्य में क्षेत्रीय संघर्ष हुए, जैसे भारत-पाकिस्तान और चीन-तिब्बत विवाद।

अन्य विकासात्मक  कार्य :

  • रेलवे और बुनियादी ढाँचा:
    • भारत: रेल, दूरसंचार और डाक सेवाओं की शुरुआत ने कनेक्टिविटी में सुधार किया, लेकिन यह मुख्य रूप से उपनिवेशवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए था। ब्रिटिशों ने 1920 तक 67,000 किमी रेलवे का निर्माण किया, जिसका मुख्य उद्देश्य कच्चे माल का निर्यात करना था।
  • आधुनिक बैंकिंग: आधुनिक बैंकों की स्थापना (जैसे बैंक ऑफ बंगाल, 1806 और बैंक ऑफ बॉम्बे, 1840) ने व्यापार को सुगम बनाया, लेकिन ये मुख्य रूप से ब्रिटिश हितों के लिए थे।
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