वित्त के स्रोत : अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन

वित्त के स्रोत: अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन किसी भी व्यवसाय की वित्तीय संरचना को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अल्पकालीन वित्तीय स्रोत व्यवसाय की त्वरित आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जबकि दीर्घकालीन वित्त स्थायी विकास और विस्तार में सहायक होते हैं। सही वित्तीय स्रोतों के चयन से पूंजी की लागत को नियंत्रित किया जा सकता है और लाभप्रदता बढ़ाई जा सकती है। प्रभावी वित्तीय प्रबंधन के साथ उचित विपणन रणनीतियाँ अपनाकर व्यवसाय अपनी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को मजबूत कर सकता है।

विगत वर्षों में पूछे गये प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023‘पूँजी संरचना की अप्रासंगिकता’ का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया? सिद्धान्त की एक प्रमुख अवधारणा लिखिए।2M
2018अल्पकालीन वित्त के उपकरण के रूप में ‘व्यापारिक पेपर’  क्या है ?2M
2018कार्यशील पूँजी की परिचालन चक्र अवधारणा क्‍या है?2M
2016अनर्जक परिसंपत्तियों को परिभाषित कीजिये2M
2016पूँजी संरचना अवधारणा में शुद्ध आय एवं शुद्ध संचालन आयके सिद्धान्त में भिन्‍नताएँ बताइये ।5M
2016शुद्ध कार्यशील पूँजी से आप क्‍या समझते हैं ?2M
2016एक कंपनी की ‘पूंजी संरचना’ क्या है ?5M

अवधि के आधार पर

  • अल्पावधि– अल्पावधि निधि वे हैं जिनकी आवश्यकता एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए नहीं होती है। व्यापार ऋण, वाणिज्यिक बैंकों से ऋण और वाणिज्यिक पत्र ऐसे स्रोतों के कुछ उदाहरण हैं जो अल्पावधि के लिए धन उपलब्ध कराते हैं। अल्पावधि वित्तपोषण चालू परिसंपत्तियों जैसे कि प्राप्य खातों और इन्वेंटरी के वित्तपोषण के लिए सबसे आम हैl
  • मध्यम अवधि-जहां एक वर्ष से अधिक लेकिन पांच वर्ष से कम अवधि के लिए धन की आवश्यकता होती है, वहां वित्त के मध्यम अवधि के स्रोतों का उपयोग किया जाता है। इन स्रोतों में वाणिज्यिक बैंकों से उधार, सार्वजनिक जमा, लीज़ फाइनेंसिंग और वित्तीय संस्थानों से ऋण शामिल हैं।
  • दीर्घ अवधि– दीर्घ अवधि के स्रोत किसी उद्यम की 5 वर्ष से अधिक अवधि के लिए वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और इसमें शेयर और डिबेंचर, दीर्घ अवधि के उधार और वित्तीय संस्थानों से ऋण जैसे स्रोत शामिल हैं। इस तरह के वित्तपोषण की आवश्यकता आम तौर पर उपकरण, संयंत्र आदि जैसी अचल संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए होती है।

अल्पकालीन वित्त के स्रोत

व्यापार ऋण (Trade Credit)

  • व्यापार ऋण वह सुविधा है जिसमें आपूर्तिकर्ता (Supplier) ग्राहकों को उधार (Credit) पर माल या सेवाएँ प्रदान करते हैं और भुगतान बाद में किया जाता है।
  • यह अवधि आमतौर पर 30 से 90 दिनों की होती है।

उदाहरण:

  • एक खुदरा विक्रेता (Retailer) ₹5 लाख का स्टॉक एक सप्लायर से 60 दिन की क्रेडिट अवधि पर खरीदता है।

लाभ: 

  • कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं देना पड़ता।
  • नकदी प्रवाह (Cash Flow) को बनाए रखने में मदद करता है।
  • बिना पूंजी निवेश के व्यापार को सुचारू रूप से चलाने की सुविधा।

हानि:

  •  नई कंपनियों को यह सुविधा मिलने में कठिनाई होती है।
  • देरी से भुगतान करने पर भविष्य में क्रेडिट सीमा घट सकती है।

बैंक ओवरड्राफ्ट (Bank Overdraft)

  • यह एक बैंक सुविधा है जिसमें व्यवसाय अपनी बैंक खाता शेष राशि से अधिक धनराशि निकाल सकता है (Overdraw)।
  • बैंक ओवरड्राफ्ट पर केवल निकाली गई राशि पर ही ब्याज देना होता है।

उदाहरण:

  • एक कंपनी के खाते में ₹2 लाख हैं, लेकिन उसे ₹1 लाख अतिरिक्त की जरूरत है, तो वह बैंक ओवरड्राफ्ट सुविधा का उपयोग कर सकता है।

लाभ:

  • आवश्यकतानुसार तत्काल नकदी उपलब्ध।
  • ब्याज केवल उपयोग की गई राशि पर देय होता है।

हानि:

  • ब्याज दरें अधिक होती हैं।
  • बैंक किसी भी समय ओवरड्राफ्ट सीमा घटा सकता है।

लघु अवधि का बैंक ऋण (Short-Term Bank Loans)

  • यह बैंक द्वारा एक वर्ष से कम की अवधि के लिए दिया जाने वाला ऋण होता है।
  • इसका उपयोग कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है।

उदाहरण:

  • एक निर्माता (Manufacturer) कच्चे माल की खरीद के लिए ₹10 लाख का 6 महीने का ऋण लेता है।

लाभ:

  • पूंजी की त्वरित उपलब्धता।
  • निश्चित पुनर्भुगतान योजना (Fixed Repayment Plan)।

हानि:

  • संपार्श्विक (Collateral) की आवश्यकता हो सकती है।
  • ब्याज व्यय व्यापार की लागत बढ़ा सकता है।

वाणिज्यिक पत्र (Commercial Paper – CP)

  • वाणिज्यिक पत्र एक बिना गारंटी (Unsecured) वाला ऋण पत्र होता है, जिसे बड़ी कंपनियों द्वारा अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकताओं के लिए जारी किया जाता है।
  • यह आमतौर पर 7 दिन से 1 वर्ष तक की अवधि के लिए जारी किया जाता है।

उदाहरण:

  • एक कंपनी ₹50 करोड़ मूल्य के CP जारी करती है ताकि वह अपनी अल्पकालिक वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सके।

लाभ:

  • बैंक ऋण की तुलना में कम ब्याज दर
  • त्वरित धन संग्रहण की सुविधा।

हानि:

  • केवल बड़ी और वित्तीय रूप से मजबूत कंपनियाँ इसका उपयोग कर सकती हैं।
  • निवेशकों को उच्च जोखिम हो सकता है।

फैक्टरिंग (Factoring) – खाते की प्राप्तियों का वित्तपोषण

  • फैक्टरिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कंपनियाँ अपनी बकाया चालान (Unpaid Invoices) किसी वित्तीय संस्था को छूट पर बेच देती हैं और तत्काल नकदी प्राप्त करती हैं।
  • वित्तीय संस्था बाद में ग्राहकों से भुगतान वसूलती है।

उदाहरण:

  • एक कंपनी अपने ₹10 लाख के चालान को ₹9.5 लाख में फैक्टरिंग कंपनी को बेचती है और शेष ₹50,000 फैक्टरिंग शुल्क के रूप में कट जाता है।

लाभ:

  • तुरंत नकदी उपलब्ध होती है।
  • कोई ऋण या ब्याज देनदारी नहीं।

हानि:

  • छूट (Discount) के कारण कंपनी को पूरी राशि नहीं मिलती।
  •  ग्राहक भुगतान का नियंत्रण फैक्टरिंग कंपनी के पास चला जाता है।

बिल डिस्काउंटिंग (Bills Discounting)

  • बिल डिस्काउंटिंग में कंपनियाँ अपने भुगतान योग्य बिल (Bills of Exchange) बैंक को छूट पर बेच देती हैं और तत्काल नकदी प्राप्त करती हैं।
  • जब बिल परिपक्व होता है, तो बैंक पूरी राशि प्राप्त करता है।

उदाहरण:एक निर्यातक (Exporter) को ₹5 लाख का बिल प्राप्त होता है, जिसे वह बैंक को ₹4.8 लाख में डिस्काउंट कर देता है।

लाभ:

  • तत्काल नकदी प्रवाह सुधारता है।
  • ऋण बोझ नहीं बढ़ता।

हानि:

  •  डिस्काउंटिंग शुल्क व्यवसाय की कुल आय को कम करता है।
  •  केवल मजबूत क्रेडिट स्कोर वाले व्यवसाय ही लाभ उठा सकते हैं।

ग्राहक से अग्रिम भुगतान (Advance from Customers)

  • व्यवसाय ग्राहकों से माल या सेवाएँ प्रदान करने से पहले अग्रिम राशि प्राप्त करते हैं
  • यह विशेष रूप से निर्माण, परामर्श, और बड़े ऑर्डर वाले उद्योगों में उपयोग किया जाता है।

उदाहरण:

  • एक कस्टम फर्नीचर निर्माता ग्राहकों से ऑर्डर के 50% अग्रिम भुगतान के रूप में लेता है।

लाभ:

  • कोई ब्याज लागत नहीं।
  •  कार्यशील पूंजी की उपलब्धता बढ़ती है।

हानि:

  • ग्राहक ऑर्डर रद्द कर सकते हैं, जिससे धनवापसी की समस्या हो सकती है।

सार्वजनिक जमा (Public Deposits)

  • कंपनियाँ आम जनता से निर्धारित ब्याज दर पर जमा स्वीकार करती हैं और उन्हें परिपक्वता अवधि के बाद भुगतान किया जाता है।

उदाहरण:

  • एक कंपनी 1 वर्ष के लिए 9% ब्याज दर पर ₹1 लाख की सार्वजनिक जमा स्वीकार करती है।

लाभ:

  • बैंक ऋण से सस्ता वित्त स्रोत
  • कोई स्वामित्व ह्रास नहीं।

हानि:

  • केवल प्रतिष्ठित कंपनियों के लिए उपलब्ध।
  • उच्च जोखिम के कारण निवेशकों को संदेह हो सकता है।

कार्यशील पूंजी ऋण (Working Capital Loan)

कार्यशील पूंजी ऋण वह ऋण है जो किसी व्यवसाय को रोज़मर्रा के खर्चों (Operational Expenses) को पूरा करने के लिए दिया जाता है। यह ऋण मुख्य रूप से कच्चे माल की खरीद, मजदूरी भुगतान, किराया, बिल भुगतान और अन्य अल्पकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • अल्पकालिक ऋण (Short-Term Loan) – यह आमतौर पर 1 वर्ष या उससे कम के लिए दिया जाता है।
  • ब्याज दर (Interest Rate) – यह ऋण की अवधि और क्रेडिट स्कोर के आधार पर अलग-अलग होती है।
  • गिरवी (Collateral) – कुछ मामलों में बैंक संपार्श्विक (गिरवी) की मांग कर सकते हैं।

उदाहरण:

  • एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को अपने कच्चे माल की खरीद के लिए ₹10 लाख की जरूरत है। वह बैंक से 1 वर्ष के लिए कार्यशील पूंजी ऋण लेती है और इसका उपयोग मशीनरी, कच्चे माल, और अन्य आवश्यक खर्चों के लिए करती है।

लाभ:

  • व्यापार की नकदी प्रवाह (Cash Flow) को बनाए रखने में मदद करता है।
  • उत्पादन और संचालन में कोई रुकावट नहीं आती।
  • इसे बैंक ओवरड्राफ्ट, टर्म लोन या अन्य सुविधाओं के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

हानि:

  • ब्याज व्यय व्यापार की लागत बढ़ा सकता है।
  • अगर व्यवसाय समय पर ऋण चुकाने में असमर्थ रहता है, तो क्रेडिट स्कोर प्रभावित हो सकता है।

लीज़ वित्तपोषण (Lease Financing)

  • लीज़ वित्तपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें व्यवसाय किसी संपत्ति (जैसे मशीनरी, वाहन, उपकरण आदि) को खरीदने के बजाय किराए (Lease) पर लेता है और एक निश्चित अवधि तक नियत किश्तों में भुगतान करता है

लीज़ के प्रकार:

  • ऑपरेटिंग लीज़ (Operating Lease) – इसमें संपत्ति का स्वामित्व लीज़ अवधि समाप्त होने पर मालिक (Leaser) के पास ही रहता है
  • फाइनेंस लीज़ (Finance Lease) – इसमें लीज़ अवधि पूरी होने के बाद संपत्ति का स्वामित्व किराएदार (Lessee) को हस्तांतरित कर दिया जाता है

उदाहरण:

  • एक लॉजिस्टिक्स कंपनी को ट्रकों की जरूरत है, लेकिन वह उन्हें खरीदने के बजाय 5 साल के लिए लीज़ पर लेती है। कंपनी हर महीने किराया चुकाती है और लीज़ समाप्त होने के बाद, वह चाहें तो ट्रक वापस कर सकती है या स्वामित्व खरीद सकती है।

लाभ:

  • बड़े पूंजी निवेश (Capital Investment) की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • व्यापार को नए और उन्नत उपकरण आसानी से मिल जाते हैं।
  • कर बचत (Tax Benefit) प्राप्त होती है, क्योंकि लीज़ भुगतान को खर्च के रूप में दिखाया जा सकता है।

हानि:

  • कुल भुगतान मशीन खरीदने की लागत से अधिक हो सकता है।
  • संपत्ति का स्वामित्व हमेशा किराएदार को नहीं मिलता (ऑपरेटिंग लीज़ में)।
  • लीज़ अवधि समाप्त होने पर नई लीज़ की आवश्यकता हो सकती है।

दीर्घकालीन वित्त के स्रोत

अवितरित लाभ (Retained Earnings)

अवितरित लाभ (Retained Earnings) वह राशि होती है जो कंपनी के शुद्ध लाभ (Net Profit) में से लाभांश (Dividend) के रूप में वितरित किए बिना बची रहती है और जिसे कंपनी अपने

  •  विस्तार, 
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D), 
  • ऋण चुकाने 
  • अन्य दीर्घकालिक निवेशों के लिए पुनः निवेश करती है। यह कंपनी द्वारा कमाया हुआ लाभ होता है जिसे शेयरधारकों को वितरित नहीं किया जाता, बल्कि भविष्य की वृद्धि और विकास के लिए सुरक्षित रखा जाता है।
अवितरित लाभ की गणना का सूत्र (Formula for Retained Earnings)

अवितरित लाभ=पिछले वर्ष का अवितरित लाभ + शुद्ध लाभ (Net Profit) − लाभांश (Dividend)

  • पिछले वर्ष का अवितरित लाभ = पिछले वर्षों से संचयित बचा हुआ लाभ।
  • शुद्ध लाभ (Net Profit) = कुल आय से सभी खर्चों को घटाने के बाद बचा हुआ लाभ।
  • लाभांश (Dividend) = वह राशि जो कंपनी अपने शेयरधारकों को लाभ के रूप में वितरित करती है।

अवितरित लाभ के फायदे 

  • वापस चुकाने की कोई आवश्यकता नहीं (No Repayment Obligation): यह ऋण  की तरह नहीं है, जिसे वापस चुकाना पड़े।
  • ब्याज खर्च नहीं होता: ऋण की तुलना में, अवितरित लाभ पर कोई अतिरिक्त ब्याज व्यय नहीं होता।
  • नए निवेश के लिए उपयोगी: इससे कंपनी नई परियोजनाओं में निवेश कर सकती है।
  • वित्तीय स्थिति को मजबूत करता है: यह कंपनी के बैलेंस शीट को स्थिरता प्रदान करता है।

अवितरित लाभ की सीमाएं

  • शेयरधारकों की नाराजगी (Shareholder Dissatisfaction): यदि कंपनी लंबे समय तक लाभांश नहीं देती, तो निवेशक नाराज हो सकते हैं।
  • अवसर लागत (Opportunity Cost): यदि कंपनी इस लाभ का सही उपयोग नहीं करती, तो यह बेकार हो सकता है।
  • संकेत प्रभाव (Signaling Effect): बहुत अधिक अवितरित लाभ का संचय यह संकेत दे सकता है कि कंपनी के पास निवेश करने के अच्छे अवसर नहीं हैं।

इक्विटी शेयर (Equity Shares)

 इक्विटी शेयर कंपनी में स्वामित्व को दर्शाते हैं। इक्विटी शेयरधारक (Equity Shareholders) कंपनी के वास्तविक मालिक होते हैं और उन्हें कंपनी की संपत्ति (Assets) और लाभ (Profits) में एक हिस्सा मिलता है। ये शेयरधारक कंपनी की वार्षिक आम बैठक (AGM) में भाग लेकर महत्वपूर्ण निर्णयों पर वोट कर सकते हैं।

इक्विटी शेयरों की विशेषताएँ

  • स्वामित्व अधिकार – कंपनी में स्वामित्व प्राप्त होता है।
  • मताधिकार– कंपनी के फैसलों में भाग लेने का अधिकार होता है।
  • लाभांश प्राप्त करने का अधिकार – यदि कंपनी लाभ कमाती है और लाभांश घोषित करती है, तो शेयरधारकों को हिस्सा मिलता है।
  • पूंजी प्रशंसा (Capital Appreciation) – शेयर का मूल्य बढ़ने पर निवेशकों को अधिक लाभ मिलता है।
  • सीमित देनदारी – यदि कंपनी को नुकसान होता है, तो शेयरधारकों को केवल उनके निवेश तक ही नुकसान होता है।
इक्विटी शेयरों के प्रकार
  • सामान्य इक्विटी शेयर (Ordinary Equity Shares)
    • सामान्य निवेशक जिनके पास मतदान का अधिकार (Voting Rights) होता है।
    • इन्हें लाभांश मिलता है, लेकिन वह निश्चित नहीं होता।
  • बोनस शेयर (Bonus Shares)
    • कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को बिना किसी अतिरिक्त कीमत के नए शेयर जारी करती है।
    • उदाहरण: यदि किसी निवेशक के पास 100 शेयर हैं और कंपनी 1:1 बोनस शेयर देती है, तो उसके पास अब 200 शेयर होंगे।
  • राइट्स शेयर (Rights Shares)
    • कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर डिस्काउंट मूल्य (Discounted Price) पर खरीदने का मौका देती है।
    • इससे निवेशक अपनी मालिकाना हिस्सेदारी को बनाए रख सकते हैं।
  • स्वेट इक्विटी शेयर (Sweat Equity Shares)
    • कंपनी अपने कर्मचारियों या निदेशकों को कंपनी में योगदान के बदले जारी करती है।
    • यह कंपनियों द्वारा प्रतिभाशाली कर्मचारियों को पुरस्कृत करने का तरीका होता है।
  • वोटिंग और नॉन-वोटिंग शेयर (Voting & Non-Voting Shares)
    • कुछ इक्विटी शेयरों में मतदान अधिकार नहीं होते लेकिन निवेशकों को लाभांश दिया जाता है।
इक्विटी शेयरों के फायदे :-

 कंपनियों के लिए 

  •  स्थायी पूंजी – कंपनी को इक्विटी फंड चुकाने की ज़रूरत नहीं होती।
  • ऋण भार कम होता है – कंपनी को ब्याज या निश्चित भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होती।
  • क्रेडिट रेटिंग में सुधार- मजबूत इक्विटी आधार से कंपनी को ऋण प्राप्त करना आसान हो जाता है।

निवेशकों के लिए :

  • बड़ा रिटर्न – अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में इक्विटी शेयरों में अधिक रिटर्न की संभावना होती है।
  • लाभांश – निवेशकों को लाभांश के रूप में नियमित आय मिल सकती है।
  • स्वामित्व और मतदान अधिकार – शेयरधारकों को कंपनी के फैसलों में भाग लेने का अधिकार मिलता है।
  • सीमित देनदारी – निवेशकों को केवल उनके निवेश तक ही नुकसान होता है।
इक्विटी शेयरों की सीमाएँ : –

कंपनियों के लिए

  • नियंत्रण का नुकसान – अधिक शेयर जारी करने से स्वामित्व कई निवेशकों में बंट जाता है।
  • लागत अधिक – नए इक्विटी शेयर जारी करने में कई कानूनी और प्रशासनिक खर्चे होते हैं।

 निवेशकों के लिए

  • कोई निश्चित रिटर्न नहीं – लाभांश निश्चित नहीं होता, और शेयरों की कीमत में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
  • अधिक जोखिम – शेयर बाज़ार में गिरावट होने पर निवेशकों को नुकसान हो सकता है।
  • परिसमापन के समय अंतिम दावा – दिवालिया होने पर, इक्विटी शेयरधारकों को भुगतान सबसे अंत में किया जाता है।
इक्विटी शेयरों के माध्यम से पूंजी कैसे जुटाई जाती है?
  •  प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (Initial Public Offering – IPO)
    • जब कोई कंपनी पहली बार सार्वजनिक रूप से शेयर जारी करती है, तो इसे IPO कहते हैं।
    • उदाहरण: Zomato, Paytm, Facebook (Meta) के IPOs।
  • अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (Follow-on Public Offering – FPO) : यदि कोई सूचीबद्ध कंपनी अतिरिक्त शेयर जारी करती है, तो इसे FPO कहा जाता है।
  • कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (Employee Stock Option Plan – ESOP) : कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ESOP) एक योजना है जिसमें कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को उनके वेतन पैकेज का एक हिस्सा कंपनी के शेयरों के रूप में प्रदान करती हैं।

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) 

प्राथमिकता शेयर (Preference Shares) ऐसे शेयर होते हैं जिनके धारकों को लाभांश ) और परिसमापन (Liquidation) के समय प्राथमिकता मिलती है। हालांकि, इनमें आमतौर पर मतदान अधिकार) नहीं होते।

प्राथमिकता शेयरों की मुख्य विशेषताएँ
  • लाभांश में प्राथमिकता : प्राथमिकता शेयरधारकों को सामान्य (Equity) शेयरधारकों से पहले लाभांश प्राप्त होता है।
  • लाभांश की दर अक्सर निश्चित होती है और कंपनी के मुनाफे के अनुसार नहीं बदलती।
  • परिसमापन में प्राथमिकता : यदि कंपनी दिवालिया हो जाती है या उसका परिसमापन होता है, तो प्राथमिकता शेयरधारकों को उनके निवेश की राशि पहले वापस मिलती है (लेकिन ऋणदाताओं के बाद)।
  • निश्चित लाभांश दर : प्राथमिकता शेयरों पर पूर्व-निर्धारित दर  से लाभांश दिया जाता हैl
  • मतदान अधिकार नहीं होते “: आमतौर पर प्राथमिकता शेयरधारकों के पास मतदान का अधिकार नहीं होता, लेकिन यदि कंपनी लंबे समय तक लाभांश नहीं देती, तो उन्हें मतदान का अधिकार मिल सकता है।
प्राथमिक शेयरों के प्रकार:-

संचयी और गैर-संचयी प्राथमिक शेयर

  • संचयी प्राथमिक शेयर: अगर किसी साल निवेशकों को लाभ (डिविडेंड) नहीं मिलता, तो वह अगले सालों में जुड़ता रहता है। पहले इस बकाया रकम का भुगतान किया जाता है, फिर बाकी निवेशकों को पैसा मिलता।
  • गैर-संचयी प्राथमिक शेयर: अगर किसी साल लाभ (डिविडेंड) नहीं मिलता, तो वह खत्म हो जाता है और भविष्य में नहीं दिया जाता।

भागीदारी (Participating) और गैर-भागीदारी (Non-Participating) प्राथमिक शेयर

  • भागीदारी प्राथमिक शेयर: इन शेयरों के धारकों को निश्चित लाभांश (डिविडेंड) मिलता है, और अगर कंपनी अच्छा मुनाफा कमाती है, तो उन्हें अतिरिक्त लाभ भी दिया जाता है।
  • गैर-भागीदारी प्राथमिक शेयर: इन शेयरों के धारकों को केवल निश्चित लाभांश मिलता है, लेकिन कंपनी के अतिरिक्त मुनाफे में कोई हिस्सा नहीं दिया जाता।

परिवर्तनीय (Convertible) और अपरिवर्तनीय (Non-Convertible) प्राथमिक शेयर

  • परिवर्तनीय प्राथमिक शेयर: ये शेयर कुछ समय बाद इक्विटी (सामान्य) शेयरों में बदले जा सकते हैं।
  • अपरिवर्तनीय प्राथमिक शेयर: ये हमेशा प्राथमिक शेयर ही बने रहते हैं और इन्हें इक्विटी शेयरों में बदला नहीं जा सकता।

विमोचनीय (Redeemable) और अविमोचनीय (Irredeemable) प्राथमिक शेयर

  • विमोचनीय प्राथमिक शेयर: कंपनी एक निश्चित समय बाद इन शेयरों को वापस खरीद (विमोचित) लेती है।
  • अविमोचनीय प्राथमिक शेयर: ये शेयर कंपनी के पूरे जीवनकाल तक बने रहते हैं और इन्हें वापस नहीं खरीदा जाता।
प्राथमिक शेयरों के फायदे:-

निवेशकों (शेयरधारकों) के लिए

  • निश्चित और स्थिर आय: निवेशकों को तयशुदा लाभांश (डिविडेंड) मिलता है, जिससे उन्हें नियमित आय सुनिश्चित होती है।
  • इक्विटी शेयरों की तुलना में कम जोखिम: प्राथमिक शेयरधारकों को लाभांश और कंपनी के बंद होने की स्थिति में पहले भुगतान मिलता है, जिससे उनका जोखिम कम होता है।
  • परिवर्तनीयता का लाभ: कुछ प्राथमिक शेयरों को भविष्य में इक्विटी शेयरों में बदला जा सकता है, जिससे पूंजी वृद्धि (कैपिटल ग्रोथ) की संभावना बढ़ती है।
  • कम उतार-चढ़ाव (वॉलेटिलिटी): प्राथमिक शेयरों की कीमतें बाजार में इक्विटी शेयरों की तुलना में कम प्रभावित होती हैं, जिससे निवेश अधिक स्थिर रहता है।

कंपनियों को लाभ 

  • रूढ़िवादी (सुरक्षित) निवेशकों को आकर्षित करता है: जो निवेशक निश्चित रिटर्न चाहते हैं, वे प्राथमिक शेयरों में निवेश करना पसंद करते हैं।
  • अतिरिक्त कर्ज का बोझ नहीं: लोन के विपरीत, कंपनी को मूल राशि वापस चुकाने की जरूरत नहीं होती, जिससे वित्तीय दबाव कम रहता है।
  • लाभांश भुगतान में लचीलापन: संचयी (Cumulative) प्राथमिक शेयरों के मामले में, यदि कंपनी किसी वर्ष में लाभांश नहीं दे पाती, तो वह भविष्य में भुगतान किया जा सकता है, जिससे वित्तीय कठिनाइयों में राहत मिलती है।
प्राथमिक शेयरों के नुकसान:-

निवेशकों के लिए

  • सीमित लाभ: इक्विटी शेयरधारकों की तरह कंपनी के बढ़ते मुनाफे का फायदा प्राथमिक शेयरधारकों को नहीं मिलता।
  • मतदान का अधिकार नहीं: प्राथमिक शेयरधारकों को कंपनी के निर्णयों पर कोई प्रभाव डालने का अधिकार नहीं होता।
  • कम तरलता (Liquidity): प्राथमिक शेयरों को इक्विटी शेयरों की तुलना में आसानी से खरीदा या बेचा नहीं जा सकता।

कंपनियों के लिए नुकसान

  • निश्चित लाभांश भुगतान का दबाव: कम मुनाफे वाले वर्षों में भी कंपनी को प्राथमिक शेयरधारकों को लाभांश देना होता है।
  • लोन की तुलना में अधिक खर्चीला: लोन पर दिए गए ब्याज कर-कटौती योग्य (Tax Deductible) होते हैं, लेकिन प्राथमिक शेयरों का लाभांश ऐसा नहीं होता, जिससे यह वित्तीय रूप से महंगा विकल्प बन जाता है।

ऋणपत्र (Debenture)

ऋणपत्र (Debenture) एक प्रकार का वित्तीय साधन (financial instrument) है, जिसे कंपनियां और सरकारें लंबी अवधि के लिए धन जुटाने के लिए जारी करती हैं। यह मूल रूप से एक ऋण अनुबंध होता है, जिसमें निवेशक कंपनी या सरकार को धन उधार देते हैं, और बदले में एक निश्चित ब्याज दर पर नियमित भुगतान प्राप्त करते हैं।

परिपक्वता (Maturity) अवधि समाप्त होने पर, जारीकर्ता (Issuer) निवेशकों को उनका मूलधन वापस कर देता है। ऋणपत्र आमतौर पर बिना किसी संपत्ति के गारंटी (Unsecured) के जारी किए जाते हैं, इसलिए इन्हें जारीकर्ता की साख (creditworthiness) पर निर्भर रहना पड़ता है।

ऋणपत्र की विशेषताएँ
  1. निश्चित ब्याज दर (Fixed Interest Rate) – ऋणपत्र धारकों को एक तय ब्याज दर पर नियमित भुगतान मिलता है।
  2. परिपक्वता तिथि (Maturity Date) – ऋणपत्र की एक निश्चित समय सीमा होती है, जिसके बाद मूलधन वापस किया जाता है।
  3. सुरक्षा का अभाव (Unsecured in Most Cases) – अधिकतर ऋणपत्र बिना किसी संपत्ति की गारंटी पर जारी किए जाते हैं।
  4. स्वामित्व अधिकार नहीं (No Ownership Rights) – ऋणपत्र धारकों को कंपनी में हिस्सेदारी या मतदान अधिकार नहीं मिलता।
  5. दिवालिया होने पर प्राथमिकता (Priority in Repayment) – यदि कंपनी बंद हो जाती है, तो ऋणपत्र धारकों को शेयरधारकों से पहले भुगतान किया जाता है।
  6. स्टॉक एक्सचेंज पर व्यापार (Tradability) – कुछ ऋणपत्रों की खरीद-फरोख्त स्टॉक एक्सचेंज पर की जा सकती है।
ऋणपत्र के प्रकार:-

ऋणपत्रों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है:

सुरक्षा के आधार पर (Based on Security)

  • सुरक्षित ऋणपत्र (Secured Debentures) – इन ऋणपत्रों के बदले कंपनी की कोई संपत्ति गिरवी रखी जाती है। यदि कंपनी ऋण चुकाने में असमर्थ होती है, तो संपत्ति को बेचकर निवेशकों का पैसा चुकाया जाता है।
  • असुरक्षित ऋणपत्र (Unsecured Debentures) – इनमें कोई संपत्ति गिरवी नहीं रखी जाती, बल्कि यह कंपनी की साख (creditworthiness) पर निर्भर करता है।

परिवर्तनीयता के आधार पर (Based on Convertibility)

  • परिवर्तनीय ऋणपत्र (Convertible Debentures) – इन ऋणपत्रों को एक निर्धारित समय के बाद कंपनी के शेयरों में बदला जा सकता है।
  • गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (Non-Convertible Debentures – NCDs) – इन्हें शेयरों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता और ये केवल निश्चित ब्याज प्रदान करते हैं।

भुगतान अवधि के आधार पर (Based on Redeemability)

  • भुनाने योग्य ऋणपत्र (Redeemable Debentures) – इन्हें एक निश्चित समय के बाद कंपनी को चुकाना अनिवार्य होता है।
  • अभुनाने योग्य ऋणपत्र (Irredeemable or Perpetual Debentures) – इनमें कोई निश्चित परिपक्वता तिथि नहीं होती, और कंपनी जब चाहे इन्हें चुका सकती है।

पंजीकरण के आधार पर (Based on Registration)

  • पंजीकृत ऋणपत्र (Registered Debentures) – निवेशकों का नाम कंपनी के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है, और केवल वही व्यक्ति इसका स्वामी होता है।
  • धारक ऋणपत्र (Bearer Debentures) – जिनके पास ये ऋणपत्र होते हैं, वे ही इसके स्वामी माने जाते हैं और इनमें निवेशक का नाम दर्ज नहीं होता।

ब्याज दर के आधार पर (Based on Interest Rate)

  • निश्चित ब्याज दर वाले ऋणपत्र (Fixed-Rate Debentures) – इनमें पहले से तय ब्याज दर होती है, जो पूरी अवधि में समान रहती है।
  • परिवर्तनीय ब्याज दर वाले ऋणपत्र (Floating-Rate Debentures) – इनकी ब्याज दर बाजार की स्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।
ऋणपत्र के लाभ (Advantages of Debentures)
  1. नियमित आय (Regular Income) – निवेशकों को निश्चित अवधि पर ब्याज मिलता है।
  2. कम जोखिम (Lower Risk) – शेयर बाजार की तुलना में कम अस्थिर होते हैं।
  3. भुगतान में प्राथमिकता (Priority in Repayment) – दिवालिया होने की स्थिति में, ऋणपत्र धारकों को पहले भुगतान किया जाता है।
  4. स्वामित्व में कोई हस्तक्षेप नहीं (No Ownership Dilution) – कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए ऋणपत्र जारी कर सकती हैं, बिना अपने स्वामित्व को खोए।
ऋणपत्र के नुकसान (Disadvantages of Debentures)
  1. अनिवार्य ब्याज भुगतान (Mandatory Interest Payment) – कंपनी को हर स्थिति में ब्याज चुकाना पड़ता है, भले ही उसे लाभ हो या नहीं।
  2. मूलधन भुगतान का दबाव (Repayment Burden) – परिपक्वता पर कंपनी को एकमुश्त राशि चुकानी होती है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।
  3. मुद्रास्फीति का प्रभाव (Inflation Risk) – यदि महंगाई बढ़ती है, तो निश्चित ब्याज दर वाले ऋणपत्र की वास्तविक कमाई घट सकती है।

दीर्घकालिक ऋण (Long-Term Loan)

दीर्घकालिक ऋण  एक प्रकार की ऋण वित्तपोषण  प्रणाली है, जिसमें उधारकर्ता (Borrower) को एकमुश्त बड़ी राशि  प्राप्त होती है और उसे एक निर्धारित अवधि  में नियमित किस्तों  के माध्यम से चुकाना होता है। ये ऋण सुरक्षित (सम्पार्श्विक आधारित) या असुरक्षित (क्रेडिट स्कोर आधारित) हो सकते हैं।

दीर्घकालिक ऋण मुख्य रूप से उपयोग किए जाते हैं:

  • व्यवसाय विस्तार और परिसंपत्ति खरीद
  • बुनियादी ढांचा विकास (कारखाने, राजमार्ग, पावर प्लांट)
  • रियल एस्टेट वित्तपोषण (गृह ऋण, व्यावसायिक संपत्ति ऋण)
  • शिक्षा और व्यक्तिगत विकास ऋण
दीर्घकालिक ऋण की विशेषताएँ
  1. लंबी पुनर्भुगतान अवधि (Extended Repayment Period) – आमतौर पर 1 वर्ष से अधिक, सामान्यतः 5 से 30 वर्ष तक।
  2. बड़ी ऋण राशि (Large Loan Amount) – पूंजीगत निवेश, बुनियादी ढांचे और बड़े व्यावसायिक परियोजनाओं के लिए उपयुक्त।
  3. स्थिर या परिवर्तनीय ब्याज दरें (Fixed or Floating Interest Rates)
    • स्थिर ब्याज दर (Fixed Rate Loan): पूरी अवधि में एक समान ब्याज।
    • परिवर्तनीय ब्याज दर (Floating Rate Loan): बाजार दरों के अनुसार ब्याज में उतार-चढ़ाव।
  4. संपार्श्विक की आवश्यकता (Collateral Requirement) – कई ऋणों में संपत्ति, मशीनरी या स्टॉक को गिरवी रखना पड़ता है।
  5. संरचित पुनर्भुगतान अनुसूची (Structured Repayment Schedule) – मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक किस्तों में भुगतान।
  6. विशिष्ट उद्देश्य के लिए वित्तपोषण (Specific Purpose Funding) – व्यवसाय वृद्धि, रियल एस्टेट, शिक्षा और विकास परियोजनाओं के लिए।
दीर्घकालिक ऋण के स्रोत
  1. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks) – व्यवसायों, व्यक्तियों और सरकारों को ऋण प्रदान करते हैं।
  2. विकास बैंक (Development Banks) – दीर्घकालिक परियोजना वित्तपोषण प्रदान करते हैं (जैसे, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक)।
  3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) – लचीले व्यवसाय और व्यक्तिगत ऋण प्रदान करती हैं।
  4. सरकारी योजनाएँ (Government Schemes) – स्टार्टअप, व्यवसायों और किसानों के लिए अनुदानित (Subsidized) ऋण प्रदान करती हैं।
दीर्घकालिक ऋण के लाभ
  1. बड़ी पूंजी तक पहुंच (Availability of Large Capital) – व्यवसायों और व्यक्तियों को बड़े निवेशों के लिए वित्तीय सहायता मिलती है।
  2. लचीली पुनर्भुगतान अवधि (Flexible Repayment Period) – पुनर्भुगतान कई वर्षों या दशकों तक चलता है, जिससे मासिक वित्तीय बोझ कम हो जाता है।
  3. कम ब्याज दर (Lower Interest Rates) – अल्पकालिक ऋणों की तुलना में ब्याज दरें आमतौर पर कम होती हैं।
  4. व्यापार वृद्धि को बढ़ावा (Encourages Business Growth) – विस्तार, आधुनिकीकरण और बड़े निवेशों के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराता है।
  5. क्रेडिट स्कोर में सुधार (Improves Creditworthiness) – समय पर भुगतान करने से भविष्य में ऋण प्राप्त करना आसान हो जाता है।
  6. छूट अवधि (Grace Period) – कुछ ऋणों में भुगतान शुरू करने से पहले छूट अवधि मिलती है।
दीर्घकालिक ऋण की सीमाएँ
  • संपार्श्विक की आवश्यकता (Collateral Requirement) – संपत्ति गिरवी रखने की आवश्यकता होती है, जिससे स्टार्टअप के लिए कठिनाई हो सकती है
  • लंबी स्वीकृति प्रक्रिया (Lengthy Approval Process) – विस्तृत दस्तावेज़ीकरण और वित्तीय मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
  • नियत पुनर्भुगतान (Fixed Repayment Obligation) – आर्थिक मंदी के दौरान भी ऋण चुकाना आवश्यक होता है।
  • कुल ब्याज भुगतान अधिक (Higher Total Interest Payment) – लंबी अवधि के कारण कुल ब्याज अधिक हो सकता है।
  • डिफ़ॉल्ट और सम्पार्श्विक हानि का जोखिम (Risk of Default & Asset Loss) – ऋण न चुका पाने पर सम्पार्श्विक जब्त की जा सकती है।
  • बाजार जोखिम (फ्लोटिंग-रेट लोन के लिए)ब्याज दर बढ़ने का खतरा: यदि बाजार में ब्याज दरें बढ़ जाती हैं, तो लोन की किश्तें (रिपेमेंट) महंगी हो जाती हैं, जिससे उधारकर्ता (Borrower) पर अधिक वित्तीय बोझ पड़ सकता है।

कंपनी (संशोधन) अधिनियम 2020

  • विदेशी क्षेत्राधिकार में प्रत्यक्ष सूचीबद्धता: यह विधेयक केंद्र सरकार को भारतीय सार्वजनिक कंपनियों के कुछ वर्गों को  विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों के वर्गों को सीधे सूचीबद्ध करने की अनुमति देने का अधिकार देता है।
  • इससे स्टार्टअप को पूंजी जुटाने के लिए और विदेशी बाजारों का दोहन करने में मदद मिलेगी।

कंपनी (संशोधन) अधिनियम 2020 से पहले का परिदृश्य

वित्त के स्रोत : अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन

कंपनी (संशोधन) अधिनियम 2020 के बाद का परिदृश्य

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय उपकरण

डिपॉजिटरी रसीदें

डिपॉजिटरी रसीदें

  • डीआर एक परक्राम्य प्रमाणपत्र है जो किसी स्थानीय स्टॉक एक्सचेंज पर कारोबार करने वाली विदेशी कंपनी के शेयरों का प्रतिनिधित्व करने वाले बैंक द्वारा जारी किया जाता है।
  • यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्गत आता है
  • कानूनी ढांचा-
    •  डिपॉजिटरी रसीद योजना, 2014- साहू समिति की सिफारिशों पर तैयार की गई
    • डिपॉजिटरी रसीदें जारी करने के लिए SEBI ढांचा

उदाहरण : 

  • भारतीय डिपॉजिटरी रसीदें- विदेशी कंपनियां डिपॉजिटरी रूट के जरिए शेयर जारी करती हैं।
  • अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदें- भारतीय कंपनियां डिपॉजिटरी रूट के जरिए यूएसए में शेयर जारी करती हैं।
  • वैश्विक डिपॉजिटरी रसीदें- इन डिपॉजिटरी रसीदों का कारोबार दो या दो से अधिक वैश्विक शेयर बाजारों में होता है।
वित्त के स्रोत : अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन
विदेशी मुद्रा में अंकित बांड (Foreign Currency-Denominated Bonds, FCDB)
  • विदेशी बांड किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी द्वारा अपने देश से अलग किसी देश में जारी किया जाता है और उन बांडों को मूल्यांकित करने के लिए उस देश की मुद्रा का उपयोग किया जाता है।
  • भारतीय कंपनियाँ दीर्घावधि निधियों के लिए अमेरिकी बाजार में FCDB (डॉलर में) जारी करती हैं।
  • अस्थिर विनिमय दर का जोखिम
साधारण वनीला बांड/ मसाला बांड (Plain Vanilla Bonds/ Masala Bonds)
  • भारतीय कंपनियां विदेशी बाजार में लंबी अवधि के धन जुटाने के लिए भारतीय मुद्रा में अंकित बांड जारी करती हैं।
विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड (Foreign Currency Convertible Bonds, FCCB)
  • भारतीय कंपनियां विदेशी बाजारों में विदेशी मुद्रा में अंकित बांड जारी करती हैं।
  • इन बांडों को परिपक्वता के बाद शेयरों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • इस प्रकार के बांडों में विनिमय दर में उतार-चढ़ाव का जोखिम होता है।
  • FCCB प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के अंतर्गत आता है।
  • उदाहरण
    • टाटा स्टील द्वारा अमेरिका में जारी FCCB को टाटा स्टील के शेयरों में परिवर्तित किया गया।
विदेशी मुद्रा विनिमेय बांड (FCEB)
  • भारतीय कंपनियां विदेशी मुद्रा में लंबे समय के लिए बांड जारी करती हैं।
  • इन बांडों को समूह की अन्य कंपनियों के शेयरों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • FCEB प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के अंतर्गत आता है।
  • इन बांडों में विनिमय दर में उतार-चढ़ाव का जोखिम होता है, जो निवेश के जोखिम को बढ़ा सकता है।

उदाहरण: टाटा स्टील द्वारा अमेरिका में जारी FCEB को टाटा मोटर्स के शेयरों में परिवर्तित किया गया।

विदेशी बाज़ार में शेयर जारी करना

कंपनी संशोधन अधिनियम 2020- भारतीय कंपनियाँ विदेशी बाज़ारों में शेयर जारी कर सकती हैं और इक्विटी पूंजी जुटा सकती हैं।

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