निष्पादन बजटिंग, शून्य-आधार बजटिंग का बुनियादी ज्ञान अध्याय लेखांकन & अंकेक्षण विषय के अंतर्गत आता है, जिसमें आधुनिक बजट निर्माण की प्रभावशाली विधियों को समझाया गया है। यह अध्याय संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन और वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु निष्पादन बजटिंग एवं शून्य-आधार बजटिंग की मूल अवधारणाओं से परिचय कराता है।
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
वर्ष | प्रश्न | अंक |
2023 | शून्य आधार बजटन की कोई चार मूलभूत विशेषताएँ लिखिए उद्देश्य लिखिए। | 2M |
2023 | प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार निष्पादन बजटन के कोई दो उद्देश्य लिखिये । | 2M |
2021 | भारत सरकार द्वारा शून्य आधार बजटन क्यों अपनाया गया था? | 2M |
2021 | निष्पादन बजटिंग सरकार व सार्वजनिक उपक्रमों के लिए उपयोगी है। क्यों? | 5M |
2018 | बजटन से आप क्या समझते हैं ? | 2M |
2018 | ‘शून्य आधार बजटन’ पर टिप्पणी लिखिए | 5M |
2016 | परम्परागत बजटन एवं शून्य आधारित बजटन में कोई दो अन्तर बताइये । | 2M |
बजटिंग (Budgeting)
बजट (Budget):
- बजट एक दस्तावेज़ होता है, जिसे सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और इसमें एक निश्चित अवधि के लिए आय और व्यय का विवरण शामिल होता है।
- संसदीय लोकतंत्र में जवाबदेही बजट की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो प्रबंधन के लिए एक मूल्यवान उपकरण के रूप में कार्य करता है, आर्थिक विश्लेषण को सक्षम बनाता है और वित्तीय नीति के साधन के रूप में कार्य करता है।
बजटिंग (Budgeting):
- बजटिंग एक प्रक्रिया है, जिसके तहत आगामी वित्तीय वर्ष के लिए राजस्व और व्यय के अनुमान सहित एक विस्तृत वित्तीय विवरण तैयार किया जाता है।
- यह एक उपकरण है, जिसका उपयोग सरकार द्वारा सार्वजनिक कोष के प्रबंधन के लिए किया जाता है।
- मुख्य पहलू:
- आय और राजस्व (Income and Revenue)
- व्यय और खर्च (Expenses and Expenditure)
- संसाधन आवंटन (Resource Allocation)
शून्य आधारित बजटिंग (ZBB)
- इसे 1970 के दशक में पीटर पाइर्र (Peter Pyhrr) द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- भारत में ZBB पहली बार 1983 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में लागू किया गया था और 1986-87 में सभी मंत्रालयों में अपनाया गया।
- शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) एक ऐसी बजट निर्माण विधि है जिसमें प्रत्येक नए बजट अवधि के लिए सभी खर्चों को नए सिरे से औचित्य सिद्ध करना आवश्यक होता है।
- शून्य आधारित बजटिंग की प्रक्रिया “शून्य आधार” (Zero Base) से शुरू होती है, यानी पिछले बजट को ध्यान में रखे बिना नए वित्तीय वर्ष के लिए आवश्यकताओं और लागतों का विश्लेषण किया जाता है।
परिभाषा:
पीटर सारंट (Peter Sarant) के अनुसार, “शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) एक तकनीक है जो मौजूदा योजना, बजट निर्माण और समीक्षा प्रक्रियाओं के साथ जुड़ती है और उन्हें पूरक बनाती है। यह सीमित संसाधनों के वैकल्पिक और कुशल उपयोग के तरीकों की पहचान करती है और एक लचीली प्रबंधन प्रणाली प्रदान करती है, जो वर्तमान कार्यक्रमों के वित्तपोषण और प्रदर्शन स्तर की व्यवस्थित समीक्षा और औचित्य पर ध्यान केंद्रित करके संसाधनों के पुनर्वितरण के लिए एक विश्वसनीय आधार प्रदान करती है।”
शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) की प्रमुख विशेषताएँ
- औचित्य-आधारित आवंटन : प्रत्येक विभाग को अपने सभी खर्चों को नए सिरे से औचित्य सिद्ध करना पड़ता है।
- लागत-लाभ विश्लेषण पर फोकस : धन के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है।
- पिछले बजट के पक्षपात को समाप्त करता है – पूर्व बजट पर निर्भर नहीं करता, जिससे अनावश्यक व्यय को रोका जा सकता है।
- जवाबदेही को प्रोत्साहित करता है : प्रबंधकों को अपने बजट संबंधी आवश्यकताओं को उचित ठहराना होता है।
- लचीला और अनुकूलनीय : इसे सरकार की बदलती प्राथमिकताओं के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।
- गतिविधि की आवश्यकता और लाभ के आधार पर धन आवंटन : बजट ऐतिहासिक व्यय के बजाय वास्तविक आवश्यकताओं और लाभों के अनुसार तय किया जाता है।
शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) का महत्व:
- संसाधनों का कुशल उपयोग – निधियों का आवंटन वास्तविक आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता है, न कि ऐतिहासिक खर्च पैटर्न पर।
- सटीकता (Accuracy): पारंपरिक बजटिंग की तरह केवल पिछले बजट में संशोधन करने के बजाय, ZBB हर व्यय की समीक्षा शून्य से करता है, जिससे लागत में कमी और सटीक बजट निर्माण संभव होता है।
- अनावश्यक गतिविधियों में कमी – अप्रभावी या अनुत्पादक गतिविधियों की पहचान कर उन्हें समाप्त करता है, जिससे लागत बचत होती है (राजकोषीय अनुशासन एवं बजट घाटे पर नियंत्रण)।
- विकास योजनाओं की प्राथमिकता तय करना : प्रभावी कार्यक्रमों की पहचान कर उन्हें वित्त पोषण प्रदान करता है, जबकि अप्रभावी योजनाओं को बंद करने में मदद करता है।
- बजट मुद्रास्फीति को रोकता है – वृद्धिशील बजट (Incremental Budgeting) के विपरीत, प्रत्येक व्यय को उचित ठहराना आवश्यक होता है, जिससे अनावश्यक बजट वृद्धि नहीं होती।
- बदलती आवश्यकताओं के अनुसार लचीलापन : ZBB सरकार को बदलती आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं के अनुसार धन का पुनर्वितरण करने की अनुमति देता है।
- बेहतर समन्वय और संचार : विभागों के बीच संवाद को बढ़ावा देता है, कर्मचारियों को प्रेरित करता है और उन्हें निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।
- बेहतर जवाबदेही और पारदर्शिता।
- सार्वजनिक वित्त प्रबंधन में सुधार करता है।
शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) की सीमाएँ:
- समय-सापेक्ष प्रक्रिया : ZBB में विस्तृत विश्लेषण की आवश्यकता होती है, जिसे कम समय में पूरा करना कठिन होता है, जिससे यह अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया बन जाती है।
- ZBB को लागू करने के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
- अनुभव की कमी : अधिकारियों को लागत और गतिविधियों का औचित्य सिद्ध करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, लेकिन कई आवश्यक अनुभव की कमी के कारण इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाते।
- विभागीय कार्यभार में वृद्धि – विस्तृत मूल्यांकन प्रक्रिया के कारण कर्मचारियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
- यह अल्पकालिक लाभों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे दीर्घकालिक योजना पर असर पड़ सकता है।
- यह प्रक्रिया व्यक्तिगत धारणाओं और प्राथमिकताओं पर निर्भर कर सकती है, जिससे निर्णय पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं रह पाते।
- प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ – किसी भी लागत नियंत्रण तकनीक को अपनाने पर संगठन के कुछ हितधारकों द्वारा प्रतिरोध किया जाता है, जिससे इसे लागू करना कठिन हो सकता है।
शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) प्रक्रिया:
उद्देश्यों का निर्धारण
(लागत में बचत के उपायों और खर्च कम करने के विकल्पों की पहचान करना।)
↓
कवरेज की सीमा निर्धारित करना
(लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर यह तय करना कि ZBB को किन क्षेत्रों में लागू किया जाए।)
↓
निर्णय इकाइयों का विकास
(विभिन्न विभागों, गतिविधियों या परियोजनाओं की पहचान करना।)
↓
निर्णय पैकेज तैयार करना
(प्रत्येक निर्णय इकाई के लिए वैकल्पिक योजनाएँ विकसित करना ताकि दक्षता और लागत बचत को अधिकतम किया जा सके।)
↓
बजट तैयार करना
(सर्वोत्तम विकल्पों के आधार पर संसाधनों का आवंटन करना।)
पारम्परिक व शून्य आधारित बजटिंग में अंतर
पहलू | पारंपरिक बजट (Traditional Budgeting) | शून्य आधारित बजटिंग (ZBB) |
ज़ोर (Emphasis) | अकाउंटिंग केंद्रित, मुख्य रूप से “कितना खर्च हुआ” पर ध्यान देता है। | निर्णय केंद्रित, “यह खर्च क्यों आवश्यक है” पर ध्यान देता है। |
दृष्टिकोण | पिछले बजट को बिना प्रश्न किए आधार मानता है और मात्रात्मक डेटा में बदलाव को स्वीकार करता है। | पिछले डेटा का औचित्य सिद्ध करने की आवश्यकता होती है और खर्च जारी रखने के लिए तर्कसंगत कारण मांगता है। |
फोकस | समय के साथ खर्च में वृद्धि या कमी का विश्लेषण करता है। | लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर खर्च को सही ठहराता है। |
संचार | ऊर्ध्वाधर संचार – शीर्ष प्रबंधन से नीचे तक निर्णय लिए जाते हैं। | क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों स्तरों पर संचार करता है। |
कार्यप्रणाली | पिछले आँकड़ों के आधार पर भविष्य के बजट का अनुमान लगाता है। | प्रत्येक व्यय की समीक्षा शून्य से करता है और लागत-लाभ विश्लेषण लागू करता है। |
निष्पादन बजटिंग (Performance Budgeting)
- निष्पादन बजटिंग की तकनीक संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में विकसित हुई और इसे प्रथम हूवर आयोग (First Hoover Commission) की रिपोर्ट (1949) के प्रकाशन के बाद व्यापक सराहना मिली।
- भारत में इसे प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (First ARC) की सिफारिशों पर 1968-69 से चयनात्मक रूप से अपनाया गया।
- दर्शन (Philosophy): विभिन्न कार्यों की उत्पादकता का मूल्यांकन करने और उपलब्ध संसाधनों का अधिक हिस्सा उन कार्यों को आवंटित करने की प्रक्रिया जो अधिक योगदान देते हैं।
परिभाषा
- निष्पादन बजटिंग बजटिंग की एक तकनीक है जिसमें सरकारी कार्यों को कार्यों, कार्यक्रमों, गतिविधियों और परियोजनाओं के संदर्भ में कार्यात्मक श्रेणियों में प्रस्तुत किया जाता है तथा सरकारी कार्यों के परिणाम और उसकी लागत को इनके साथ संबंधित किया जाता है।
- निष्पादन बजटिंग एक प्रबंधन दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ संसाधनों का कुशल और प्रभावी आवंटन सुनिश्चित करना है।
- यह उद्देश्य प्राप्ति (Achievement of Goals) पर ध्यान देता है न कि केवल खर्च किए गए संसाधनों पर। यह प्रत्येक कार्यक्रम और गतिविधि के भौतिक (प्रदर्शन या आउटपुट) और वित्तीय (इनपुट) पहलुओं के बीच एक सहसंबंध स्थापित करता है।
- उदाहरण: नीति आयोग का आउटपुट-परिणाम निगरानी ढांचा (OOMF)।
निष्पादन बजटिंग के उद्देश्य (प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग – के अनुसार)
- वित्तीय व्यय को सरकारी कार्यक्रमों की भौतिक उपलब्धियों से जोड़ना।
- सभी स्तरों पर बजट निर्माण, समीक्षा और निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में सुधार करना।
- विधानपालिका को बजट को बेहतर तरीके से समझने और समीक्षा करने में सहायता करना।
- योजना अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति में सरकारी विभागों की जवाबदेही बढ़ाना।
- निष्पादन अंकेक्षण को सक्षम बनाना ताकि प्रगति और दक्षता को मापा जा सके।
- दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को ट्रैक करना।
- बजट को राष्ट्रीय विकास योजनाओं के अनुरूप बनाना ताकि बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया जा सके।
निष्पादन बजटिंग का महत्व
- सरकारी कार्यक्रमों के लक्ष्य और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
- कार्यक्रमों के प्रदर्शन के लिए स्पष्ट जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- सरकारी गतिविधियों की स्पष्ट जानकारी प्रदान कर पारदर्शिता बढ़ाता है।
- समस्याओं की बेहतर पहचान और समाधान में सहायता करता है।
- प्रबंधन नियंत्रण को मजबूत बनाता है और विधायी समीक्षा (Legislative Review) को अधिक प्रभावी बनाता है।
- सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने की क्षमता में सुधार करता है।
- बजटीय निर्णयों को अधिक सूचित और प्रमाण-आधारित बनाता है।
- सरकारी गतिविधियों की जागरूकता बढ़ाकर जनता का समर्थन सुनिश्चित करता है।
- प्रदर्शन मानकों को निर्धारित कर लक्ष्यों के मापन और मूल्यांकन में सहायता करता है।
- प्रशासकों को अपने कार्यों को सरकार और जनता तक प्रभावी रूप से संप्रेषित करने में मदद करता है।
निष्पादन बजटिंग की विशेषताएँ
- डेटा-आधारित – बजट निर्माण और मूल्यांकन के लिए ठोस आंकड़ों और विश्लेषण का उपयोग किया जाता है।
- परिणाम केंद्रित – व्यय के बजाय लक्ष्यों और निष्पादन पर ध्यान दिया जाता है।
- निरंतर सुधार – प्रदर्शन समीक्षा के आधार पर बजट प्रणाली में निरंतर सुधार किया जाता है।
- TAR (पारदर्शिता, जवाबदेही, उत्तरदायित्व) पर केंद्रित – पारदर्शिता, जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है।
निष्पादन बजटिंग की सीमाएँ
- सरकारी कार्यों, कार्यक्रमों और गतिविधियों को स्पष्ट और संगठित श्रेणियों में वर्गीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- कार्यक्रमों की व्यापक परिभाषा के कारण सटीक और प्रभावी निर्णय लेना कठिन हो सकता है।
- मात्रात्मक मूल्यांकन पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जिससे गुणात्मक पहलू उपेक्षित हो सकते हैं।
- लागत आवंटन जटिल होता है और हमेशा सटीक नहीं हो सकता।
- लागत-लाभ विश्लेषण (Cost-Benefit Analysis) के बिना परियोजनाओं की तुलना करना मुश्किल होता है, और स्वयं लागत-लाभ विश्लेषण की भी अपनी सीमाएँ होती हैं।
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