फ्रांसीसी क्रांति

फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) विश्व इतिहास की एक महान घटना है, जिसने फ्रांस की राजतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त कर लोकतांत्रिक मूल्यों को जन्म दिया। इस क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को स्थापित कर पूरे विश्व को नई दिशा प्रदान की।

फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत 1789 में हुई और यह 1799 तक चली।

  • यह क्रांति राजनीतिक भ्रष्टाचार, सामंती उत्पीड़न, गंभीर आर्थिक संकट की पृष्टभूमि में जन्मी ।
  • तीसरे वर्ग (सामान्य जनता) में व्याप्त सामाजिक असमानता और असंतोष के कारण राजशाही का पतन हुआ और फ्रांसीसी गणराज्य की स्थापना हुई।
  • क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को जन्म दिया, जिसने न केवल फ्रांस को बदला, बल्कि पूरे यूरोप और दुनिया में लोकतांत्रिक आंदोलनों को प्रेरित किया।

फ्रांसीसी क्रांति की ओर ले जाने वाली परिस्थितियाँ

A. दोषपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था

  1. केंद्रीकृत और निरंकुश शासन:
    • फ्रांस में एक वंशानुगत राजतंत्र था, जिसमें राजा के पास पूर्ण शक्ति थी। लुई XIV ने अपने कथन ” मैं ही राज्य हूँ” के साथ निरंकुशता का प्रतीक प्रस्तुत किया।
  2. अयोग्य शासक:
    • लुई XV एक कमजोर और विलासिता-प्रिय शासक था, जो प्रशासन में सुधार करने में असफल रहा।
    • लुई XVI और भी अधिक अयोग्य था तथा वह उनकी पत्नी मैरी एंटोनेट के प्रभाव में था। वे जनता की पीड़ा से पूर्णतः अनजान था।
  3. खर्चीली राजव्यवस्था:
    • राजा पेरिस से दूर वर्साय के भव्य महल में रहता था, जिसकी विलासिता को बनाए रखने में बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन का उपयोग होता था।
  4. भ्रष्ट न्यायिक प्रक्रिया:
    • फ्रांस की न्यायिक प्रणाली भ्रष्ट, महंगी और अन्यायपूर्ण थी। राजा का शब्द ही कानून था और फ्रांस भर में कानूनों में कोई एकरूपता नहीं थी।
    • राजा के पास “लेटर डी कैशे” (मनमाना वारंट) के माध्यम से किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति थी।
    • वोल्टेयर ने कहा था कि “कानून इस  प्रकार बदले जाते हैं जैसे कोई गाड़ी के घोड़े बदलता है ।”
  5. असक्षम प्रतिनिधि सभा:
    • एस्टेट्स-जनरल पादरियों, कुलीन , अभिजात और सामान्य वर्ग की प्रतिनिधि सभा थी।  इसकी 1614 से कोई भी बैठक नहीं हुई थी ।इसके साथ इसमें कुलीन पादरी और अभिजात वर्ग का बोलबाला था ।

B. सामाजिक कारण

  1. सामाजिक असमानता:
    • फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में विभाजित था:
      • पहला वर्ग: पादरी।
      • दूसरा वर्ग: कुलीन
      • तीसरा वर्ग: सामान्य लोग (मध्य वर्ग-चिकित्सक , अध्यापक , किसान, छोटे व्यापारी तथा श्रमिक आदि)।
    • पादरी और कुलीन वर्गों को करों में छूट मिलती थी, जबकि तीसरा वर्ग भारी करों का बोझ उठाता था। 1% जनसंख्या लगभग 20% सम्पति पर नियंत्रण रखती थी।
      • नेपोलियन बोनापार्ट ने इस सामाजिक असंतुलन को क्रांति के प्रमुख कारणों में से एक माना।
  2. किसानों और श्रमिकों का शोषण:
    • किसानों को अपनी आय का लगभग 80% कर के रूप में देना पड़ता था। उनके पास कोई अधिकार नहीं थे और उन्हें ऊपरी वर्गों के लिए बिना वेतन के श्रम करना पड़ता था।
    • श्रमिकों का भी कम वेतन और लंबे समय तक काम कर शोषण किया जाता था।
  3. मध्य वर्ग की असंतोष:
    • मध्यम वर्ग (व्यापारी, शिक्षक और पेशेवर) धनी और शिक्षित थे। लेकिन उनके पास राजनीतिक शक्ति का अभाव था, जिसने उच्च वर्गों के साथ समानता की उनकी इच्छा को बढ़ावा दिया।
  4. चर्च में भ्रष्टाचार:
    • कैथोलिक चर्च ने सामान्य लोगों पर धार्मिक कर लगाए।
    • उच्च वर्ग के पादरी विलासिता में रहते थे, जबकि निम्न श्रेणी के पादरी गरीबी में रहते थे। जिससे चर्च के भीतर भी असंतोष उत्पन्न हुआ।
  5. वंशानुगत विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग:
    • प्रशासन और कानून में उच्च पद अभिजात वर्ग के लिए आरक्षित थे, जो अपने अधिकार का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए करते थे।

C. आर्थिक कारण

  1. दयनीय अर्थव्यवस्था: 
    • फ्रांस पर महंगे युद्धों, जैसे कि अमेरिकी क्रांति और ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार युद्ध के कारण अत्यधिक कर्ज चढ़ गया था।
    • राजशाही और विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों की विलासिता की वजह से देश की वित्तीय स्थिति और भी बिगड़ गई।
  2. अन्यायपूर्ण कर प्रणाली: 
    • तीसरे वर्ग ने अधिकांश करों का भुगतान किया, जबकि कुलीन वर्ग और पादरी वर्ग को छूट दी गई। नमक, शराब और तम्बाकू पर कर विशेष रूप से बोझिल करने वाले थे।
  3. असफल सुधार: 
    • कई मंत्रियों जैसे तुर्गो, नेकर और कैलोन ने वित्तीय प्रणाली में सुधार करने की कोशिश की, लेकिन उनके प्रयासों को विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों और राजसी दरबार द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया।
    • तुर्गो के नमक कर और विशेषाधिकार समाप्त करने के सुधार को अस्वीकृत कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उनका निष्कासन हो गया।
    • नेकर को राजशाही के विलासिता का खुलासा करने के बाद हटा दिया गया।

D. बौद्धिक जागरण

  • दार्शनिकों का उदय:
    • दार्शनिकों जैसे वोल्तेयर, रूसो, मोंतेस्क्यू और दिदेरो ने क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • वोल्तेयर ने चर्च और राज्य के अलगाव का समर्थन किया और भ्रष्ट राजशाही का विरोध किया।
      • वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: वह अपने “फिलोसॉफिकल डिक्शनरी ” में कहते हैं कि “मैं आपकी बातों से असहमत हो सकता हूँ, लेकिन आपकी बात कहने के अधिकार की रक्षा मृत्यु तक करूँगा।”
    • मोंतेस्क्यू की “द स्पिरिट ऑफ द लॉज़” ने शक्ति के पृथक्करण (कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायिका) का प्रस्ताव दिया, ताकि तानाशाही से बचा जा सके।
      • उन्होंने ये भी साबित किया कि चर्च की विलासिता भ्रष्टाचार का कारण है।
    • रूसो की “सामाजिक संविदा (द सोशल कॉन्ट्रैक्ट)” ने जन सामान्य की  इच्छा के माध्यम से सरकार की वैधता पर जोर दिया।
      • रूसो के शब्दों के अनुसार “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन हर जगह बेड़ियों में होता है” –  यह एक क्रांतिकारी नारा बन गया।
      • “स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व” का आह्वान रूसो के आदर्शों को दर्शाता है।
    • रोबेस्पिएरे का मानना ​​था कि नागरिक सद्गुण एवं जनभलाई के प्रति प्रतिबद्धता एक सफल गणतंत्र और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
    • जनरल लाफायेते: अमेरिकी क्रांति में लड़ाई लड़ी → लोकतांत्रिक विचारों से प्रेरित हुआ।

फ्रांसीसी क्रांति की प्रमुख घटनाएँ और चरण

एस्टेट्स जनरल का आह्वान (5 मई, 1789):

  •  वित्तीय संकट और नई करों के खिलाफ विरोध के कारण राजा लुइस XVI को एस्टेट्स जनरल को बुलाना पड़ा।
  • तीसरे वर्ग (सामान्य लोग) ने एस्टेट्स के संयुक्त मतदान के बजाय व्यक्तिगत मतदान अधिकार की माँग की ,जिसका  पादरी वर्ग और अभिजात वर्ग ने विरोध किया । 
  • 17 जून, 1789 को, तीसरे एस्टेट (सामान्य वर्ग) ने खुद को राष्ट्रीय महासभा (नेशनल असेम्बली ) घोषित कर दिया।
  • 20 जून को बैठक के लिए पहुँचने पर राजा ने सभा भवन को बंद कर ताले लगा दिए।

टेनिस कोर्ट की शपथ (20 जून, 1789): 

  • इस परिस्थिति में राष्ट्रीय महासभा ने पास के टेनिस कोर्ट में एकत्रित होकर शपथ ली। 
  • उन्होंने शपथ ली कि वे तब तक एक साथ रहेंगे जब तक वे फ्रांस के लिए एक नई संविधान नहीं तैयार कर लेते।

राष्ट्रीय महासभा का गठन (27 जून, 1789): 

  • तीसरे एस्टेट र्ने स्वयं को राष्ट्रीय महासभा घोषित कर दावा किया कि वे फ्रांसीसी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंततः, राजा ने सभी वर्गों को महासभा में शामिल होने का आदेश दिया।

बास्तिल का पतन (14 जुलाई, 1789): 

  • राजा लुइस XVI ने नेकर को हटा दिया, जिससे जनता में आक्रोश फैल गया। 
  • 14 जुलाई को, लोगों ने बास्तिल किले पर हमला कर दिया , जो तानाशाही राजतंत्र  के अंत का प्रतीक था। 
  • यह घटना राजशाही के पतन और क्रांतिकारी उत्साह की वृद्धि का संकेत थी। ➔ (14 जुलाई को फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।)

विशेषाधिकारों का अंत (4 अगस्त, 1789):

  •  4 अगस्त की रात, पादरी और कुलीन वर्गों ने स्वेच्छा से अपने विशेषाधिकारों को त्याग  दिया। 
  • करों को समाप्त कर दिया गया, और सरकारी पद सभी के लिए खोले गए।

मानवाधिकारों की घोषणा (27 अगस्त, 1789): 

  • मानवाधिकारों का एक चार्टर जारी किया गया, जिसमें सभी नागरिकों के लिए बुनियादी स्वतंत्रताओं और समानता का उल्लेख था। 
  • स्वतंत्रता की बातें जैसे बोलने की स्वतंत्रता, धर्म और निजी संपत्ति की गारंटी दी गई।

महिलाओं का आंदोलन (5 अक्टूबर, 1789): 

  • लगभग 6,000-7,000 महिलाओं ने वर्साय की ओर मार्च किया, रोटी की मांग की और राजा से पेरिस लौटने का आग्रह किया। राजा भीड़ का क़ैदी हो गया   

क्लेरजी का नागरिक संविधान (1790):

  • चर्च को राज्य के नियंत्रण में रखा गया, और पादरी को संविधान के प्रति शपथ लेने की आवश्यकता थी। जिन्होंने शपथ लेने से इनकार किया, उन्हें “गैर-स्वीकृत (नोन ज्यूअर)” करार दिया गया।

1791 का संविधान:

  •  पहला लिखित संविधान राजा को वेतनभोगी बनाकर शक्तियों को सीमित करता है और जन-संप्रभुता की स्थापना करता है। 
  • हालांकि, लुइस XVI ने 1791 में फ्रांस से भागने की कोशिश की।

ऑस्ट्रिया और प्रशा के साथ युद्ध (1792): 

  •  राष्ट्रीय महासभा ने प्रशा और ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा की ताकि वे राजशाही का समर्थन न कर सकें।

सितंबर हत्याकांड  (1792):

  •  प्रुसियन सेनापति  के राजा को मुक्त करने की धमकियों के बाद, क्रांतिकारियों ने महल पर हमला कर 800 रॉयल गार्ड्स की हत्या कर दी। 
  • इस हिंसात्मक घटना ने राजशाही के अंत और जैकोबिन जैसे कट्टरपंथी दलों के उभार की शुरुआत की।

नेशनल कन्वेंशन और लुइस XVI की फांसी (1793): 

  •  जैकोबिन और जिरोंदिस्त के मध्य राजशाही और फ्रांस के भविष्य को लेकर विवाद किया। 
  • इसके बावजूद नेशनल कन्वेंशन का गठन हुआ, और सितंबर 1792 में गणराज्य की स्थापना की गई।
  • नेशनल कन्वेंशन ने राजशाही को समाप्त कर दिया और फ्रांस को गणराज्य घोषित किया।
  •  राजा लुइस XVI का मुकदमा चला और जनवरी 1793 में उनकी फांसी दे दी गई, जिसने यूरोप भर की राजशाहीयों को चौंका दिया।

आतंक का शासन (1793-1794): 

  • रॉब्सपियर और जैकोबिनों द्वारा संचालित आतंक के शासन के दौरान क्रांति के कथित दुश्मनों को गिलोटिन द्वारा मौत की सजा दी गई।
  • हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा गया, जिनमें रानी मैरी एंटोनेट भी शामिल थीं।
  • आतंक का शासन जुलाई 1794 में रॉब्सपियर के पतन के साथ समाप्त हुआ।

डायरेक्टरी व्यवस्था (1795-1799): 

  • नेशनल कन्वेंशन ने डायरेक्टरी की स्थापना की, जो फ्रांस को संचालित करने के लिए एक पांच-सदस्यीय समिति थी।
  • डायरेक्टरी आंतरिक भ्रष्टाचार और बढ़ते असंतोष से जूझ रही थी, जो अंततः 1799 में नेपोलियन बोनापार्ट के उदय की ओर ले गया।

फ़्रांस की क्रांति के प्रभाव

फ्रांस पर प्रभाव (Impact on France)

सामंती प्रणाली का अंत (End of the Feudal System):
  • फ्रांसीसी क्रांति ने आर्थिक शोषण के  प्रतीक सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
  • पुराने सामाजिक वर्गीय ढांचे को समानता के सिद्धांत से बदल दिया गया।
लोकतांत्रिक भावना का उदय (Rise of Democratic Spirit):
  • वंशानुगत राजशाही को समाप्त कर दिया गया और गणतांत्रिक शासन की स्थापना हुई।
  • अब शासक जनता के प्रति जवाबदेह थे, और संप्रभुता नागरिकों में निहित थी।
मानव अधिकारों की घोषणा (Declaration of Human Rights):
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता, और संपत्ति की सुरक्षा जैसे प्रमुख अधिकार दिये गए।
  • इन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी गई, जिन्हें कोई भी शासक छीन नहीं सकता था । इससे  दुनियाभर के निरंकुश शासनों को चुनौती मिली।
धर्मनिरपेक्ष राज्य और चर्च की शक्तियों पर सीमाएं (Secular State and Limiting Church Powers):
  • धार्मिक स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार बन गई और राज्य ने धार्मिक मामलों पर नियंत्रण कर लिया।
  • संविधान के तहत चर्च को राज्य के नियंत्रण में लाया गया।
  • चर्च की भूमि का पुनर्वितरण किया गया
  • धर्म को राज्य से अलग कर व्यक्तिगत मामला बना दिया गया।
राजनीतिक दलों का गठन (Formation of Political Parties):
  • क्रांति ने जनता में राजनीतिक चेतना का संचार किया, जिससे जिरोंदिस्त (उदारवादी) और जैकोबिन (कट्टरपंथी) जैसे दलों का गठन हुआ।
  • संप्रभुता अब राजा में नहीं, बल्कि जनता में निहित थी (जैसे, राजशाही के पतन के बाद नेशनल असेंबली ने शासन किया)।
समाजवाद की शुरुआत (Beginning of Socialism):
  • क्रांति ने सामंती विशेषाधिकारों का अंत किया ।
  • चर्च की भूमि को किसानों में वितरित किया गया ।
  • जैकोबिन पार्टी के नेता जैसे रोबेस्पियर ने सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए अभियान चलाया।
शैक्षिक सुधार (Educational Reforms):
  • शिक्षा को चर्च के नियंत्रण से हटाकर मानवतावादी , अनुशासन और राष्ट्रवाद पर केंद्रित बनाया गया ।
स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व (Liberty, Equality, Fraternity):
  • “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” का नारा केवल फ्रांस में ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप में प्रेरणादायक बन गया।
  • लेखन और भाषण की स्वतंत्रता (जैसे, प्रेस सेंसरशिप का उन्मूलन)।
  • नौकरियों में समान अवसर (जैसे, नेपोलियन द्वारा बाद में मेरिट-आधारित सिविल सेवा की स्थापना)।
  • जन्म के विशेषाधिकारों को समाप्त कर कानून के समक्ष समानता स्थापित की गई।
उदारवादी लोकतंत्र की शुरुआत (Beginning of Liberal Democracy):
  • “स्वतंत्रता” के विचार पर आधारित उदारवाद की शुरुआत हुई ।
  • लोगों की सहमति से सरकारों का गठन हुआ(जैसे, 1792 में फ्रांस का पहला गणराज्य)।
  • संसद-आधारित लोकतंत्र का मॉडल पूरे यूरोप में फैला (जैसे, 1832 में ब्रिटेन में हुए सुधार फ्रांसीसी विचारों से प्रभावित थे)।
  • आर्थिक रूप से, उदारवाद ने मुक्त व्यापार और मुक्त बाजार को बढ़ावा दिया (जैसे, फ्रांस में आंतरिक व्यापार बाधाओं का उन्मूलन)।
राजतंत्र का अंत और जनता की शक्ति का उदय (End of Monarchy and Rise of People’s Power):
  • फ्रांसीसी क्रांति ने राजशाही का अंत किया और संप्रभुता को जनता में स्थानांतरित किया।
  • फ्रांसीसी तिरंगा झंडा जनता के गणराज्य का प्रतीक बन गया।
  • राष्ट्रीय सभा ने एस्टेट्स-जनरल की जगह ले ली, जो फ्रांस के सक्रिय नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती थी (सक्रिय नागरिक → जो पुरुष करों का भुगतान करते थे)।
  • सेना का कर्तव्य राजा की रक्षा करने से हटकर राष्ट्र की रक्षा करना रह गया।

फ्रांसीसी क्रांति का महिलाओं पर प्रभाव (Impact of the French Revolution on Women):

  1. शैक्षिक अवसर (Educational Opportunities):
    • लड़कियों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने की अनुमति दी गई और उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण का अधिकार प्रदान किया गया।
  2. विवाह और तलाक के अधिकार (Marriage and Divorce Rights):
    • महिलाओं को बिना उनकी सहमति के विवाह न करने का अधिकार प्राप्त हुआ। उन्हें तलाक लेने के मामले में पुरुषों के बराबर अधिकार मिले।
  3. स्त्री स्वातंत्र्य के लिए संक्रमण काल (Transitional Period for Women’s Liberation):
    • महिलाओं के अधिकारों में प्रगति हो रही थी, लेकिन रेन ऑफ टेरर (आतंक के शासन) के दौरान एक विरोध देखा गया, जिसमें महिलाओं के क्लब बंद कर दिए गए।
    • महिला अधिकारों की समर्थक ओलम्प दे गुज को मृत्युदंड दिया गया।
  4. कला में प्रतीकवाद (Symbolism in Art):
    • स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को अक्सर महिला आकृतियों के माध्यम से प्रतीकित किया गया।
    • न्याय को तराजू पकड़े और आँखों पर पट्टी बांधे महिला के रूप में दर्शाया गया।
    • स्वतंत्रता को टूटी हुई जंजीरों के साथ चित्रित किया गया।
    • लाल टोपी (फ्रिगियन कैप) गणराज्य और क्रांति का प्रतीक बन गई।

वैश्विक प्रभाव: राष्ट्रवाद का उदय (Global Impact: Rise of Nationalism):

  • फ्रांसीसी राष्ट्रवाद की लहर पूरे यूरोप में फैल गई, जिससे इटली (1861 में पूर्ण) और जर्मनी (1871 में पूर्ण) के एकीकरण को प्रेरणा मिली।
  • इसने नेपोलियन के खिलाफ प्रतिरोध को भी जन्म दिया (जैसे, 1808-1814 के दौरान स्पेन में पेनिनसुलर युद्ध)।
  • बाद में, राष्ट्रवाद ने उपनिवेशित देशों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया (जैसे, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में लैटिन अमेरिकी क्रांतियाँ)।

निष्कर्ष:  

  • फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीतिक प्रणालियों, सामाजिक ढांचों और व्यक्तिगत अधिकारों पर गहरा प्रभाव डाला। इसने सामंतवाद का अंत किया, राष्ट्रवाद को प्रेरित किया, लोकतांत्रिक सिद्धांतों की शुरुआत की, और आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की नींव रखी।
  • इसका प्रभाव फ्रांस से आगे बढ़कर पूरे विश्व में क्रांतियों और सुधारों को प्रेरित करता रहा।

नेपोलियन बोनापार्ट

प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर:
  • पहली सैन्य भूमिका: करियर की शुरुआत में लेफ्टिनेंट नियुक्त किए गए।
  • प्रमुख प्रारंभिक विजय: ब्रिटिश सेना को टूलॉन बंदरगाह से बाहर निकाला (16 सितंबर, 1793 ई.) → नेशनल असेंबली के सदस्यों की रक्षा की → खुद को एक सक्षम और साहसी नेता साबित किया → तोपखाने के प्रमुख के रूप में पदोन्नत हुए (1794 ई.)।
सत्ता का उदय:
  • आंतरिक संघर्ष: 5 अक्टूबर, 1795 को नेपोलियन ने एक शाही विद्रोह को दबा दिया → आंतरिक सेना के जनरल नियुक्त हुए।
  • विवाह: प्रभावशाली महिला जोसेफीन ब्यूहार्नेस से विवाह किया।
  • इटली अभियान: इटली में ऑस्ट्रिया को हराया → कैंपोफॉर्मियो की संधि (अक्टूबर 1797 ई.) → इटली में फ्रांस की सर्वोच्चता स्थापित हुई।
  • ब्रिटेन के खिलाफ योजना: मराठों की मदद से भारत में ब्रिटिशों को हराने की योजना बनाई → नील नदी पर ब्रिटिश नौसैनिक कमांडर नेल्सन से हार गए (अगस्त 1798 ई.)।
फ्रांस में राजनीतिक उदय:
  • डायरेक्ट्री सरकार का पतन: 1799 ई. में डायरेक्ट्री सरकार लोकप्रियता खो रही थी → नेपोलियन ने इसे अवसर के रूप में देखा (और कहा, “नाशपाती पक चुकी है।”)
  • डायरेक्ट्री का पतन और तीन कौंसल प्रणाली की स्थापना: नेपोलियन ने डायरेक्ट्री को गिरा दिया → तीन कौंसल प्रणाली की स्थापना की, जिसमें नेपोलियन मुख्य कौंसल बने
  • फ्रांस के सम्राट:
    • 1802 ई.: नेपोलियन जीवन भर के लिए कौंसल बने।
    • 2 दिसंबर, 1804 ई.: नेपोलियन को फ्रांस का सम्राट के बना दिया गया।
सम्राट के रूप में सैन्य अभियान:
  • ट्राफलगर की लड़ाई (21 अक्टूबर, 1805 ई.): ब्रिटिश एडमिरल नेल्सन से हार गए।
  • ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई (2 दिसंबर, 1805 ई.): ऑस्ट्रिया और प्रशा (Prussia) को हराया → प्रेसबर्ग की संधि → राइन संघ का गठन किया।
  • प्रशा से युद्ध (14 अक्टूबर, 1806 ई.): प्रशा को हराया → राइन की संधि।
  • रूस पर आक्रमण (14 जून, 1807 ई.): फ्रेडलैंड में रूस को हराया → टिलसिट की संधि।

नेपोलियन के सुधार (Napoleon Reforms):

प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms):
  • केन्द्रीयकरण: फ्रांस को जिलों में विभाजित किया गया, और सेना अधिकारियों को गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया।
  • मेधावी प्रणाली का समर्थन: प्रतिभा और योग्यता को कुलीन जन्म से अधिक महत्व दिया गया, जिससे पुराने कुलीनतंत्र की शक्ति समाप्त हो गई।
आर्थिक सुधार (Economic Reforms):
  • बैंक ऑफ फ्रांस (1800): वित्तीय स्थिरता के लिए स्थापित किया गया।
  • कर प्रणाली: शराब, नमक, और तंबाकू पर कर बढ़ाए गए। कर वसूली पर सरकार का नियंत्रण था।
  • व्यापार और परिवहन: परिवहन और वितरण प्रणालियों को सुधारा गया, जिससे दक्षता में वृद्धि हुई।
धार्मिक सुधार (कोंकोर्दा की संधि 1801):
  • राज्य नियंत्रण: चर्च को राज्य के अधीन माना गया, और पादरियों को सरकारी अधिकारी बना दिया गया।
  • भूमि पुनर्वितरण: चर्च की भूमि किसानों को लौटाई गई।
  • कैथोलिक धर्म: फ्रांस का आधिकारिक धर्म घोषित किया गया।
  • पादरियों की स्वतंत्रता: संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के बाद पादरियों को जेल से मुक्त किया गया।
  • नेपोलियन ने परिस्थिति के अनुसार धर्म का उपयोग किया। उन्होंने कहा, “मैं मिस्र में मुसलमान हूँ, फ्रांस में कैथोलिक हूँ।”
शैक्षिक सुधार (Educational Reforms):
  • शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण: शिक्षकों की नियुक्ति नेपोलियन द्वारा की गई और विश्वविद्यालयों को राज्य के नियंत्रण में रखा गया।
  • शिक्षा ढांचा: प्राथमिक, माध्यमिक (लीसी), और उच्च शिक्षा (विश्वविद्यालय) में विभाजित किया गया।
  • धर्मनिरपेक्ष शिक्षा: शिक्षा में धर्म को अलग किया गया और सैन्य प्रशिक्षण पर जोर दिया गया।
नेपोलियनिक कोड (Napoleonic Code – 1804):
  • ​​कानूनों का सरलीकरण: पुराने कानूनों को समाप्त कर एकीकृत कानूनी प्रणाली की स्थापना की।
  • मुख्य सिद्धांत: कानून के सामने समानता, धार्मिक सहिष्णुता, व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार।
  • परिवार संरचना: पितृसत्तात्मक प्रणाली स्थापित की गई, जिसमें पिता को सर्वोच्च अधिकार मिला।
  • नागरिक अधिकार: नागरिक विवाह और तलाक को वैध बनाया गया → पादरी का प्रभाव कम हुआ।
  • श्रमिक अधिकार: पूंजीपतियों का समर्थन किया गया → मजदूर संघों पर प्रतिबंध लगाया गया और मिल मालिकों को मजदूरों पर प्राथमिकता दी गई।
सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं पर प्रभाव:
  • सत्ता का केंद्रीकरण: नेपोलियन ने सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित किया → सम्राट के रूप में उसकी स्थिति ने फ्रांसीसी क्रांति के गणतांत्रिक प्रयोग को समाप्त कर दिया।
  • सामंती व्यवस्था का उन्मूलन: यूरोप के अधिकांश हिस्सों में सामंती विशेषाधिकारों को समाप्त किया गया → किसानों को अधिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकार मिले।
महाद्वीपीय प्रणाली (Continental System – 1806 A.D.):
  • उद्देश्य: इंग्लैंड को व्यापार नष्ट करके हराना।
  • बर्लिन अध्यादेश जारी किया गया, जिससे यूरोपीय देशों को इंग्लैंड के साथ व्यापार करने से मना किया गया।
  • इंग्लैंड ने “ऑर्डर इन काउंसिल” के साथ प्रतिक्रिया दी, जिससे फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और यह योजना असफल हो गई।
स्पेन पर अनाधिकृत कब्जा (Unauthorized Occupation of Spain):
  1. बॉर्बन राजवंश का हटना: नेपोलियन ने स्पेन के राजा चार्ल्स IV को पदच्युत कर अपने भाई जोसेफ बोनापार्ट को स्पेन का राजा बनाया।
  2. स्पेन में राष्ट्रवाद का उदय: इस कार्य ने स्पेन में राष्ट्रवाद को जन्म दिया और व्यापक प्रतिरोध शुरू हो गया।
  3. स्पेन ने अन्य यूरोपीय शक्तियों के समर्थन से नेपोलियन के खिलाफ लंबे संघर्ष की शुरुआत की।
  4. नेपोलियन ने बाद में ख़ुद कहा, “स्पेन का घाव मुझे नष्ट कर गया।”
मास्को अभियान (1812):
  • महाद्वीपीय प्रणाली से रूस की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही थी, जिससे रूस ने विद्रोह किया।
  • नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण किया जब ज़ार अलेक्जेंडर I ने कॉन्टिनेंटल सिस्टम से हटने का फैसला किया।
  • लेकिन रूस की सर्दियों और गुरिल्ला युद्ध रणनीति से फ्रांसीसी सेना बुरी तरह तबाह हुई → लगभग 500,000 फ्रांसीसी सैनिक मारे गए।
  • फिशर का विश्लेषण: इतिहासकार फिशर ने इसे नेपोलियन की महत्वाकांक्षा और रूस के राष्ट्रवादी भावना के बीच संघर्ष बताया।
राष्ट्रों का युद्ध (लीपज़िग, 1813):
  • चौथे गुट  का निर्माण : स्वीडन, प्रशा, ऑस्ट्रिया, इंग्लैंड और रूस ने नेपोलियन को हराने के लिए गठबंधन किया।
  • लीपज़िग की लड़ाई: नेपोलियन ने ड्रेसडन में अपनी आखिरी जीत प्राप्त की, लेकिन लीपज़िग में हार गए।
  • एल्बा में निर्वासन (1814): फॉन्टनेबल्यू की संधि के बाद नेपोलियन ने सिंहासन त्याग दिया और उन्हें एल्बा में निर्वासित कर दिया गया।
वाटरलू की लड़ाई (Battle of Waterloo – 1815):
  • एल्बा से वापसी (Return from Elba): नेपोलियन एल्बा से भागकर फ्रांस वापस आए और थोड़े समय के लिए सत्ता में लौटे।
  • अंतिम हार (Final Defeat): 18 जून 1815 को वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन की हार हुई।
  • सेंट हेलेना में निर्वासन (Exile to Saint Helena): उन्हें ब्रिटिशों ने गिरफ्तार कर सेंट हेलेना द्वीप पर निर्वासित कर दिया, जहाँ 1821 में उनकी मृत्यु हुई।

नेपोलियन के पतन के मुख्य कारण (Main Causes of Napoleon’s Downfall):

पेनिनसुलर युद्ध (स्पेनिश युद्ध) (Peninsular War):
  • स्पेन के प्रतिरोध ने पूरे यूरोप में राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला, जिससे संगठित विरोध उत्पन्न हुआ।
  • फ्रांस ने अकेले इस युद्ध में 300,000 सैनिक खो दिए।
महाद्वीपीय प्रणाली (Continental System):
  • नेपोलियन का उद्देश्य ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप पूरे यूरोप में व्यापार में विघटन हुआ।
  • वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई, जिससे फ्रांस की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
  • रूस और अन्य सहयोगी देशों को नाराज करने के कारण और अधिक संघर्ष शुरू हुए।
रूसी अभियान (Russian Campaign):
  • रूस पर नेपोलियन का आक्रमण विनाशकारी साबित हुआ। कड़ी सर्दी और रूस की छापामार युद्धनीति ने फ्रांसीसी सेना को तबाह कर दिया।
  • यह कथन “रूस की सर्दी कभी पराजित नहीं होती” इस अभियान में सही साबित हुआ।
पोप का अपमान (Humiliation of the Pope):
  • नेपोलियन ने अपने राज्याभिषेक के दौरान पोप का अपमान किया, जिससे पूरे यूरोप में कैथोलिकों की नाराजगी उत्पन्न हुई।
  • व्यापक कैथोलिक विरोध ने नेपोलियन की शक्ति को कमजोर किया।
ब्रिटिश नौसेना की शक्ति (Strong British Navy):
  • ब्रिटेन की नौसेना की श्रेष्ठता  ने नेपोलियन की महाद्वीपीय प्रणाली को कमजोर कर दिया।
बलात सैनिक भर्ती (Forced Recruitment):
  • विभिन्न देशों के सैनिकों को जबरन भर्ती किया गया, जिससे सेना में मनोबल की कमी और एकता का अभाव हुआ।
राष्ट्रवाद का उदय (Rise of Nationalism):
  • स्पेन, पर्शिया, और रूस जैसे देशों में राष्ट्रवाद का उभार हुआ, जिससे नेपोलियन के वर्चस्व के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध उत्पन्न हुआ।
  • यूरोपीय शक्तियों ने फ्रांस के शासन के खिलाफ संघर्ष में एकजुटता दिखाई।
संबंधियों के प्रति स्नेह (Affection for Relatives):
  • नेपोलियन ने अपने संबंधियों को विभिन्न स्थानों पर शासक नियुक्त किया (जैसे, स्पेन में जोसेफ, हॉलैंड में लुई), जिससे निष्ठा में कमी देखी गई ।
  • इस भाई-भतीजावाद के करना महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कमजोर नेतृत्व रहा ।
लगातार युद्ध (Continuous Wars):
  • नेपोलियन के निरंतर युद्धों ने संसाधनों को समाप्त कर दिया, उनकी सेना को थका दिया, और जनता का समर्थन कम कर दिया।
  • इतिहासकार डॉ. स्लोवेन ने टिप्पणी की कि “नेपोलियन का पतन उनकी और उनकी सेना की थकान में निहित था।”
स्वभाव की खामियां (Temperamental Defects):
  • नेपोलियन अत्यधिक महत्वाकांक्षी और जिद्दी थे। उन्होंने अनुभवी सलाहकारों की सलाह लेना बंद कर दिया।
  • उन्होंने केवल अपने निर्णयों पर भरोसा किया और जनरलों और सहयोगियों से मिलने वाले महत्वपूर्ण सुझावों को नजरअंदाज कर दिया।
तानाशाही शक्ति (Dictatorial Power):
  • नेपोलियन ने एक तानाशाही स्थापित की, जिसने गणराज्य को खत्म कर दिया और स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा दिया।
  • समाचार पत्रों पर सेंसरशिप और मजदूर संघों पर प्रतिबंध ने जनता और बौद्धिक वर्ग को अलग कर दिया।
  • फ्रांसीसी क्रांति के लोकतांत्रिक आदर्शों को अस्वीकार करने के कारण नेपोलियन ने कई समर्थकों को खो दिया।

नेपोलियन का मूल्यांकन (Evaluation of Napoleon):

  1. सकारात्मक विरासत (Positive Legacy): नेपोलियन ने फ्रांस का आधुनिकीकरण किया, कानूनी समानता को बढ़ावा दिया (नेपोलियनिक कोड), और चर्च को राज्य से अलग किया।
  2. पतन (Downfall): उनकी अनियंत्रित महत्वाकांक्षा, निरंकुश शासन, और सैन्य अभियानों में अत्यधिक हस्तक्षेप अंततः उनके पतन का कारण बना।
स्वयं मूल्यांकन (Self-Assessment):
  • सकारात्मक विरासत (Positive Legacy): नेपोलियन ने फ्रांस का आधुनिकीकरण किया, कानूनी समानता को बढ़ावा दिया (नेपोलियनिक कोड), और चर्च को राज्य से अलग किया।
  • पतन (Downfall): उनकी अनियंत्रित महत्वाकांक्षा, निरंकुश शासन, और सैन्य अभियानों में अत्यधिक हस्तक्षेप अंततः उनके पतन का कारण बना।
  • स्वयं मूल्यांकन (Self-Assessment): नेपोलियन ने प्रसिद्ध रूप से कहा, “मैं ही क्रांति हूं। मैंने क्रांति का अंत किया है ” – यह  उनके उत्थान और क्रांतिकारी आदर्शों से विश्वासघात दोनों का सार प्रस्तुत करता है। 
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