मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र

मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र जीवविज्ञान का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें शरीर की कार्यप्रणाली को गहराई से समझने का अवसर देता है। परिसंचरण तंत्र रक्त प्रवाह द्वारा प्रत्येक कोशिका तक आवश्यक तत्व पहुँचाता है, जबकि पाचन तंत्र भोजन को ऊर्जा और पोषण में परिवर्तित करता है। इन दोनों तंत्रों का अध्ययन न केवल जीवन के रहस्यों को उजागर करता है बल्कि अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्व को भी स्पष्ट करता है।

परिसंचरण तंत्र के प्रकार:

जानवरों के परिसंचरण तंत्र को मोटे तौर पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • खुला परिसंचरण तंत्र:
    • इसमें मौजूद: आर्थ्रोपोड्स (जैसे, कीड़े, मकड़ियाँ) और मोलस्क (जैसे, घोंघे, क्लैम)।
    • तंत्र: एक खुले परिसंचरण तंत्र में, रक्त (जिसे हीमोलिम्फ कहा जाता है) को हृदय द्वारा बड़ी वाहिकाओं के माध्यम से खुले स्थानों या शरीर के गुहाओं में पंप किया जाता है, जिन्हें साइनस के रूप में जाना जाता है। ये साइनस अंगों और ऊतकों को घेरते हैं। हीमोलिम्फ सीधे कोशिकाओं को धोता है, जिससे पोषक तत्व और गैस का आदान-प्रदान होता है।
    • लाभ: सरल और कम ऊर्जा खपत वाला, लेकिन रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने में कम कुशल।
  • बंद परिसंचरण तंत्र:
    • इसमें मौजूद: एनेलिड (जैसे, केंचुआ), कॉर्डेट्स (मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी और स्तनधारी जैसे कशेरुकी सहित)।
    • तंत्र: बंद परिसंचरण तंत्र में, हृदय द्वारा रक्त को बंद रक्त वाहिकाओं के नेटवर्क के माध्यम से पंप किया जाता है। रक्त कभी भी वाहिकाओं से बाहर नहीं निकलता है, और ऑक्सीजन, पोषक तत्व और अपशिष्ट वाहिकाओं की दीवारों के माध्यम से आसपास के ऊतकों में आदान-प्रदान किए जाते हैं।
    • लाभ: अधिक कुशल, क्योंकि रक्त प्रवाह को सटीक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बेहतर होती है।

मानव परिसंचरण तंत्र

मानव परिसंचरण तंत्र शरीर में रक्त का संचार करता है और इसमें हृदय, रक्त वाहिकाएं और रक्त शामिल होते हैं।

हृदय की संरचना

  • हृदय वक्ष गुहा में, दो फेफड़ों के बीच, थोड़ा बाईं ओर झुका हुआ स्थित होता है।
  • हृदय हृदयावरणी नामक एक दोहरी भित्ति वाली झिल्लीदार थैली द्वारा संरक्षित होता है, जिसमें हृदयावरणी द्रव होता है जो घर्षण को कम करता है।
  • हृदय में चार कक्ष होते हैं:
    • दो आलिंद (ऊपरी कक्ष): छोटे और पतली भित्ति वाले।
    • दो निलय (निचले कक्ष): बड़े और मोटी भित्ति वाले।

पट और कपाट या वाल्व

  • पट – हृदय के कक्षों को अलग करने वाली दीवारें।
    • एक पतली पेशीय भित्ति जिसे अंतर अलिंदी (पट) कहते हैं, दाएं एवं बाएं आलिंद को अलग करती है जबकि एक मोटी भित्ति, जिसे अंतर निलयी (पट) कहते हैं, जो बाएं एवं दाएं निलय को अलग करती है। अपनी-अपनी ओर के आलिंद एवं निलय एक मोटे रेशीय ऊतक जिसे अलिंदं निलय पट द्वारा पृथक रहते हैं।
  • कपाट यह सुनिश्चित करते हैं कि रक्त एक दिशा में बहे और वापसी या उल्टे प्रवाह को रोकते हैं:
    • त्रिवलनी कपाट: दाएं अलिंद और दाएं निलय के बीच।
    • द्विवलनी / मिटूल कपाट: बाएं अलिंद और बाएं निलय के बीच।
    • अर्धचंद्र कपाट (सेमीलुनर वाल्व): रक्त को निलय में वापस जाने से रोकते हैं।

हृदय की मांसपेशी और नोडल ऊतक

  • यह हृद पेशीयों से बना है। नोडल ऊतक नामक विशेष मांसपेशी ऊतक हृदय के लयबद्ध संकुचन को आरंभ करने के लिए जिम्मेदार होता है:
    • शिराअलिंदंपर्व (SAN): हृदय का प्राकृतिक पेसमेकर, यह हृदय की धड़कन शुरू करता है।
    • अलिंद निलय पर्व (AVN): संकेत को निलय तक पहुंचाता है, जिससे वे संकुचित होते हैं।
  • हृदय प्रति मिनट लगभग 70-75 बार धड़कता है ताकि रक्त का प्रवाह बना रहे।

मानव हृदय

हृद चक्र 

हृदय चक्र घटनाओं की एक श्रृंखला है जो एक दिल की धड़कन में होती है, जिसमें हृदय कक्षों का प्रकुंचन (सिस्टोल) और अनुशिथिलन (डायस्टोल) शामिल होता है।

  1. संयुक्त डायस्टोल: सभी कक्ष शिथिल होते हैं। रक्त शिराओं (दाहिनी ओर महाशिरा और बाईं ओर फुफ्फुसीय शिराएँ) से आलिंद में प्रवाहित होता है।
  2. अलिंद प्रकुंचन (atrial systole): आलिंद सिकुड़ता है (SAN द्वारा ट्रिगर), रक्त को निलय में धकेलता है।
  3. निलयी प्रकुंचन: निलय सिकुड़ता है (AVN द्वारा उत्तेजित), त्रिवलनी और द्विवलनी कपाट बंद करता है और अर्धचंद्र कपाट खोलता है। रक्त को फुफ्फुसीय धमनी (दाहिनी ओर) और महाधमनी (बाईं ओर) में पंप किया जाता है।
  4. निलयी अनुशिथिलन (वेंट्रिकुलर डायस्टोल): निलय शिथिल हो जाते हैं, सेमीलुनर वाल्व बंद हो जाते हैं, और रक्त आलिंद और निलय में फिर से भर जाता है।
मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र

एक पूर्ण हृदय चक्र 0.8 सेकंड तक चलता है और इसमें आलिंद और निलय दोनों का प्रकुंचन एवं अनुशिथिलन शामिल होता है।

  • प्रवाह आयतन: प्रत्येक निलय द्वारा प्रति धड़कन पंप किए गए रक्त की मात्रा (~ 70 एमएल)।
  • हृद निकास: प्रत्येक निलय द्वारा प्रति मिनट पंप किए गए रक्त की मात्रा (स्ट्रोक वॉल्यूम x हृदय गति के रूप में गणना की जाती है)। एक स्वस्थ वयस्क के लिए, यह औसतन 5 लीटर प्रति मिनट होता है।

हृदय की ध्वनियाँ:

  • पहली हृदय ध्वनि (लब): जब आलिंद और निलय के बीच के वाल्व बंद हो जाते हैं। {त्रिवलनी तथा द्विवलनी कपाट के बंद होने से संबंधित है}
  • डब: जब धमनियों की ओर जाने वाले कपाट बंद हो जाते हैं। (अर्ध चंद्रकपाट के बंद होने से संबंधित)

रक्त वाहिकाएँ:

रक्त वाहिकाएँ रक्त परिसंचरण के लिए मार्ग हैं। इसके तीन मुख्य प्रकार हैं:

  1. धमनियाँ:
    • संरचना: मोटी, पेशीय और लोचदार दीवारें, जो उच्च दाब को सहन कर सकती हैं।
    • कार्य (Function): हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती हैं (अपवाद: फुफ्फुसीय धमनी, जो ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों तक पहुँचाती है)।
    • मुख्य धमनियाँ:
      • महाधमनी: सबसे बड़ी धमनी, जो ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर में वितरित करती है।
      • फुफ्फुसीय धमनी: ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों तक पहुँचाती है।
  2. शिराएँ:
    • संरचना: पतली दीवारों वाली होती हैं तथा इनमें कपाट होते हैं, जो रक्त के विपरीत प्रवाह को रोकते हैं।
    • कार्य: हृदय में ऑक्सीजन रहित रक्त वापस लाती हैं (अपवाद: फुफ्फुसीय शिराएँ, जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय तक लाती हैं)।
    • मुख्य शिराएँ:
      • महाशिरा: सबसे बड़ी शिराएँ, जो ऑक्सीजन रहित रक्त को हृदय तक वापस लाती हैं।
      • फुफ्फुसीय शिराएँ: फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय तक पहुँचाती हैं।
  3. केशिकाएँ:
    • संरचना: अति पतली दीवारें, जो केवल एक कोशिका मोटी होती हैं।
    • कार्य: रक्त और ऊतकों के बीच ऑक्सीजन, पोषक तत्वों और अपशिष्ट पदार्थों का आदान-प्रदान करती हैं।
    • केशिका नेटवर्क: घनी संरचनाएँ होती हैं, जो सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं।

ये रक्त वाहिकाएँ आपस में मिलकर पूरे शरीर में रक्त के कुशल परिवहन को संभव बनाती हैं।

द्वि-परिसंचरण:

मानव शरीर में, रक्त एक चक्र में हृदय से दो बार प्रवाहित होता है। यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की प्रभावी आपूर्ति और अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन को सुनिश्चित करती है।

  1. फुफ्फुसीय परिसंचरण:
    • हृदय के दाएँ निलय से ऑक्सीजन रहित रक्त फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फेफड़ों में पहुँचता है।
    • फेफड़ों में, रक्त ऑक्सीजन प्राप्त करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है।
    • ऑक्सीजन युक्त रक्त फुफ्फुसीय शिराओं के माध्यम से बाएँ आलिंद में लौटता है।
  2. प्रणालीगत परिसंचरण:
    • बाएँ आलिंद से, ऑक्सीजन युक्त रक्त बाएँ निलय में पहुँचता है और महाधमनी के माध्यम से पूरे शरीर में प्रवाहित होता है।
    • धमनियाँ, अरण्यिकाएँ (arterioles) और केशिकाएँ ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुँचाती हैं और कार्बन डाइऑक्साइड एकत्र करती हैं।
    • ऑक्सीजन रहित रक्त शिराओं के माध्यम से दाएँ आलिंद में वापस आता है।

यह द्वि-परिसंचरण प्रणाली शरीर को निरंतर ऑक्सीजन की आपूर्ति और अपशिष्ट गैसों को निष्कासित करने में सहायता करती है।

फुफ्फुसीय परिसंचरण:

  • दायाँ निलय फुफ्फुसीय धमनी फेफड़े (ऑक्सीजन प्रविष्ट, CO₂ निष्कासन)
  • फुफ्फुसीय शिराएँ बायाँ आलिंद 

प्रणालीगत परिसंचरण:

  • बायाँ आलिंद → बायाँ निलय → महाधमनी → धमनियाँ → केशिकाएँ (ऊतकों को ऑक्सीजन, रक्त में CO₂ प्रवेश)
  • शिराएँ → दायाँ आलिंद
Circulatory and Digestive systems in Human being
मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र
मानव रक्त परिसंचरण का आरेखीय चित्र

विशेष परिसंचरण मार्ग:

  1. यकृत पोर्टल प्रणाली:
    • यह प्रणाली पाचन अंगों से यकृत तक रक्त को ले जाती है, इससे पहले कि वह सामान्य परिसंचरण में प्रवेश करे। यह सुनिश्चित करती है कि पाचन तंत्र से अवशोषित पोषक तत्वों को यकृत द्वारा संसाधित किया जाए और फिर उन्हें पूरे शरीर में वितरित किया जाए।
  2. कोरोनरी परिसंचरण:
    • कोरोनरी धमनियाँ हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन युक्त रक्त प्रदान करती हैं। हृदय की मांसपेशियों से रक्त कोरोनरी शिराओं के माध्यम से दाएँ आलिंद में लौटता है।
    • यदि इन धमनियों में रुकावट या संकीर्णता हो जाए, तो यह एनजाइना (Angina) या हृदयाघात जैसी हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ECG)

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम हृदय की विद्युत सक्रियता का एक ग्राफीय निरूपण है, जो हृदय चक्र के दौरान दर्ज किया जाता है। इसे हृदय की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • P-तरंग: आलिंदों के डिपोलराइजेशन को दर्शाती है (आलिंद संकुचन)।
  • QRS कॉम्प्लेक्स: निलयों के डिपोलराइजेशन को दर्शाता है (निलय संकुचन)।
  • T-तरंग: निलयों के रीपोलराइजेशन को दर्शाती है (निलय शिथिलन)।
मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र
मानक ECG का आरेखीय निरूपण

आंतरिक नियंत्रण(Myogenic Regulation):

  • हृदय अपनी स्वयं की संवेदी प्रणाली से नियंत्रित होता है, जो विशेष पेशीय ऊतकों द्वारा उत्पन्न होती है:
    • शिराअलिंदंपर्व: दाएँ आलिंद में स्थित होता है। हृदय की धड़कन की लय को निर्धारित करता है, इसलिए इसे “हृदय का पेसमेकर” कहा जाता है।
    • अलिंद निलय पर्व: आलिंद और निलयों के बीच स्थित होता है। यह संकेत को थोड़ी देर तक रोकता है, जिससे आलिंद पहले पूरी तरह संकुचित हो सकें, और फिर निलयों तक संकेत भेजा जाए।
    • हिस के बंडल और पर्किंजी तंतु: ये संकेत को निलयों तक संप्रेषित करते हैं, जिससे निलय संकुचित होते हैं।

बाह्य नियंत्रण (Neural and Hormonal Regulation):

  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ANS): हृदय गति को नियंत्रित करता है और इसमें दो प्रमुख शाखाएँ होती हैं:
    • सहानुभूति तंत्रिका तंत्र: यह तनाव या शारीरिक गतिविधि के दौरान हृदय की गति और संकुचन की शक्ति को बढ़ाता है। इसे “लड़ो या भागो” प्रतिक्रिया भी कहा जाता है।
    • पैरासिंपेथेटिक तंत्रिका तंत्र: हृदय गति को धीमा करता है और संकुचन की शक्ति को कम करता है, विशेष रूप से शिथिलन की स्थिति में।
  • हार्मोनल नियंत्रण:
    • एड्रेनालाईन और नॉरएड्रेनालाईन तनाव के दौरान हृदय गति और संकुचन की शक्ति को बढ़ाते हैं।
    • थायरॉयड हार्मोन हृदय को सिम्पेथेटिक संकेतों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं।

परिसंचरण तंत्र से संबंधित विकार:

1. उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)

  • परिभाषा: जब रक्तचाप लगातार 140/90 mm Hg से अधिक होता है।
    • प्रकुंचन दबाव (120 mm Hg): हृदय संकुचन के दौरान रक्तचाप।
    • अनुशिथिलन दबाव (80 mm Hg): हृदय के विश्राम के दौरान रक्तचाप।
  • कारण:  अधिक नमक का सेवन, मोटापा, तनाव, अनुवांशिकता, बढ़ती उम्र
  • परिणाम: हृदय और रक्त वाहिकाओं को क्षति पहुँचाता है। हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की समस्याएँ और नेत्र विकार उत्पन्न कर सकता है। लंबे समय तक यह हृदय विफलता (heart failure) और कोरोनरी धमनी रोग का कारण बन सकता है।

2. हृद धमनी रोग (CAD) या एथिरोकाठिंय (एथिरोस सक्लेरोसिस)

  • परिभाषा: हृद धमनियों में कैल्सियम, वसा तथा अन्य रेशीय ऊतकों के जमाव के कारण संकुचन या रुकावट।
  • कारण: धमनियों में वसा, कोलेस्ट्रॉल और अन्य पदार्थों का जमाव।
  • परिणाम: हृदय तक रक्त प्रवाह में कमी आती है। एनजाइना (छाती में दर्द) हो सकता है। गंभीर मामलों में हृदयाघात हो सकता है।

3. हृदशूल (पेक्टोरिस एंजाइना)

  • परिभाषा: हृदय की मांसपेशियों को अपर्याप्त ऑक्सीजन मिलने के कारण छाती में दर्द।
  • प्रकार:
    • स्थिर एनजाइना: पूर्वानुमानित, शारीरिक श्रम के दौरान होता है और आराम करने पर ठीक हो जाता है।
    • अस्थिर एनजाइना: अनपेक्षित रूप से होता है, आराम की स्थिति में भी हो सकता है, और यह आसन्न हृदयाघात का संकेत हो सकता है।
  • कारण: एथेरोस्क्लेरोसिस के कारण हृद धमनियों का संकुचित होना।

4. हृदपात (हार्ट फेल्योर)

  • परिभाषा: जब हृदय प्रभावी ढंग से रक्त पंप नहीं कर पाता, जिससे शरीर में तरल (fluid) जमा होने लगता है।
  • कारण: हृद धमनी रोग, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, हृदय के वाल्व में विकार (valvular heart disease)
  • लक्षण: सांस की कमी, थकान,  पैरों, पेट और फेफड़ों में तरल संचय 

हृदपात ठीक हृदघात की भाँति नहीं होता (जहाँ हृदघात में हृदय की धड़कन बंद हो जाती है जबकि, हृदपात में हृदयपेशी को रक्त आपूर्ति अचानक अपर्याप्त हो जाने यकायक क्षति पहुँचती है।

पाचन तंत्र: आहार नाल और पाचक ग्रंथियाँ

आहार नाल

आहार नाल एक सतत नलिका है जो पाचन तंत्र में मुंह (अग्रद्वार) से शुरू होकर गुदा (पश्चद्वार) तक जाती है।

मुंह और मुख गुहा

  • मुंह: मुंह मुख गुहा में खुलता है, जो यांत्रिक और रासायनिक पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • मुख गुहा में शामिल:
    • दांत: भोजन को चबाने और छोटे कणों में तोड़ने के लिए विशेषीकृत।
    • मांसल जीभ: भोजन को मुंह में घुमाने और निगलने और बोलने में मदद करती है।
दांत
  1. गर्तदंती संलग्नक:
    • प्रत्येक दांत जबड़े में बने एक सांचे में स्थित होता है। इस तरह की व्यवस्था को गर्तदंती (thecodont) कहते हैं।
  2. द्विबारदंती Dentition:
    • मनुष्य सहित अधिकांश स्तनधारियों के जीवन काल में दो तरह के दांत आते हैं-
      • अस्थायी दांत-समूह (दूध के दांत): बचपन में निकलने वाले अस्थायी दांत।
      • स्थायी दांत: दूध के दांतों की जगह लेते हैं और जीवन भर रहते हैं, जब तक कि चोट, बीमारी या उम्र के कारण न खो जाएं।

कुल दांत: वयस्क मनुष्यों में 32 स्थायी दांत होते हैं।

दांतों के प्रकार (विषमदंती दंतविन्यास):
  • कृंतक (I): ये सबसे आगे के दाँत होते है जो कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं। ये छ- माह की उम्र में निकलते हैं।
  • रदनक (C): ये दाँत भोजन को चीरने–फाड़ने का कार्य करते हैं। ये 16-20 माह की उम्र में निकलते हैं। ये प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते हैं। मांसाहारी पशुओं में ये ज्यादा विकसित होते हैं।
  • अग्रचर्वणक (PM): ये भोजन को चबाने में सहायक होते हैं तथा प्रत्येक जबड़े में 4-4 पाए जाते हैं। ये 10-11 वर्ष की उम्र में पूर्ण रूप से विकसित होते हैं।
  • अग्रचर्वणक (M): ये दंत भी भोजन चबाने में सहायक होते हैं तथा प्रत्येक जबड़े में 6-6 पाए जाते हैं। सामान्यत: ये 12 से 15 माह की उम्र में निकलते हैं। 

दंत सूत्र: प्रत्येक जबड़े (ऊपरी और निचले) के एक हिस्से में दांतों की व्यवस्था को दर्शाता है।

इनैमल: दांतों की कठोर, बाहरी चबाने वाली सतह, जो चबाने (Mastication) के लिए आवश्यक है।

मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र
मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र
Fig: मानव पाचन तंत्र
जीभ
  • संरचना:
    • स्वतंत्र रूप से घूमने वाला पेशीय अंग।
    • फ्रेनुलम (Frenulum) द्वारा मुख गुहा के तल से जुड़ा होता है।
    • ऊपरी सतह पर पैपिली होते हैं, जिनमें से कुछ में स्वाद कलिकाएं होती हैं।
  •  कार्य:
    • भोजन को चबाने और निगलने के लिए मुंह में घुमाता है।
    • स्वाद कलिकाएं स्वाद का पता लगाने के लिए होती हैं।

ग्रसनी

  • वायु एवं भोजन, दोनों का ही पथ।
  • मुख गुहा को ग्रासनली और श्वासनली से जोड़ता है।
  • एपिग्लॉटिस: एक उपास्थि फ्लैप जो निगलने के दौरान भोजन को श्वासनली में जाने से रोकता है।

ग्रासनली

  • एक पतली, लंबी मांसल नलिका जो ग्रसनी से पेट तक फैली होती है।
  • गर्दन, वक्ष और डायाफ्राम से गुजरती है।
  • आमाशय-ग्रसिका अवरोधिनी: ग्रासनली के पेट में खुलने को नियंत्रित करता है।

आमाशय

                     Fig: मानव आमाशय
  • ऊपरी बाएं उदर गुहा में स्थित एक J-आकार का अंग।
  • आमाशय के भाग:
    • कार्डियक या जठरागम भाग: यह बांया बड़ा भाग है जहाँ से ग्रसिका आमाशय में प्रविष्ट होती है।
    • फंडिस भाग: गुंबद के आकार का ऊपरी भाग।
    • काय: मुख्य केंद्रीय क्षेत्र।
    • जठर निर्गमी भाग: जठरनिर्गमीय अवरोधिनी के माध्यम से छोटी आंत में खुलता है।

छोटी आंत

  • तीन भागों में विभक्त:
    • ग्रहणी: C-आकार का, पहला भाग।
    • अग्रक्षुदाँत्र: लंबा, कुंडलित मध्य भाग।
    • क्षुदाँत्र: अत्यधिक कुंडलित दूरस्थ भाग, बड़ी आंत में खुलता है।

बड़ी आँत

  • बड़ी आँत को तीन भागों में विभक्त:
    • अधाँत्र अथवा अंधनाल (Cecum):
      • एक छोटी, अंधी थैली।
      • सहजीवी सूक्ष्मजीवों रहते है।
      • कृमिरूप परिशेषिका (Vermiform Appendix) शामिल होता है (एक अवशेषी अंग)।
    • वृहदाँत्र (Colon):
      • आहार नाल में बड़ी आँत का अंधान्त्र के आगे का भाग वृहदाँत्र कहलाता है। यह उल्टे U के आकार की लगभग 1.3 मी. लंबी नलिका होती है।
      • आरोही, अनुप्रस्थ, अवरोही, और सिग्मॉइड वृहदाँत्र भागों में विभाजित।
    • मलाशय (Rectum):
      • मल को अस्थायी रूप से संग्रहीत करता है।
      • गुदा (Anus) के माध्यम से बाहर खुलता है।

पाचन ग्रंथियाँ

पाचक ग्रंथियाँ स्राव उत्पन्न करती हैं जो भोजन के पाचन में मदद करते हैं। इनमें लार ग्रंथियाँ, यकृत, और अग्न्याशय शामिल हैं।

Fig: यकृत, पित्ताशय और अग्न्याशय का वाहिनी तंत्र

लार ग्रंथि (Salivary Gland)

  • प्रकार:
  • कार्य: लार रस को मुख गुहा में स्रावित करती है।
लार की संरचना:
  • जल (99.5%): भोजन को नम करता है और स्वाद की धारणा के लिए इसे घोलता है।
  • श्लेष्मा (म्यूकस): बोलस (चबाया हुआ भोजन) को चिकना करता है, जिससे निगलने में मदद मिलती है।
  • एंजाइम: → लार एमाइलेज (Ptyalin):
    • स्टार्च को माल्टोज और डेक्सट्रिन में तोड़ता है।
    • मुंह में कार्बोहाइड्रेट का पाचन शुरू होता है।
  • लाइसोजाइम: एक एंटीमाइक्रोबियल एंजाइम जो बैक्टीरिया से सुरक्षा प्रदान करता है।

लार के कार्य:

  • स्टार्च के पाचन की शुरुआत करता है।
  • चबाने और निगलने में सहायता करता है।
  • मुख गुहा को नम रखता है और सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकता है।

यकृत

  • संरचना: शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि, वयस्कों में इसका वजन 1.2–1.5 किलोग्राम होता है।
  • डायाफ्राम के ठीक नीचे उदर गुहा में स्थित।
    • दो पालियाँ (Lobes) से बना होता है।
  • यकृत पालिकाएँ (हेपेटिक लोब्यूल):
    • यकृत की कार्यात्मक और संरचनात्मक इकाइयाँ।
    • यकृत कोशिकाएं (Hepatic Cells) रज्जु की तरह व्यवस्थित होती हैं।
  • पित्त उत्पादन (Bile Production):
    • यकृत कोशिकाओं द्वारा स्रावित और यकृत नलिकाओं के माध्यम से परिवहन किया जाता है।
    • पित्ताशय में संग्रहीत और सांद्रित किया जाता है।
  • कार्य:
    • पित्त वसा के इमल्सीकरण (Emulsification) में मदद करता है।
    • वसा-घुलनशील विटामिन (A, D, E, K) के अवशोषण में सहायता करता है।
यकृत की भूमिका:
1. पित्त उत्पादन:
  • यकृत पित्त उत्पन्न करता है, जो छोटी आंत (डुओडेनम) में वसा के इमल्सीकरण के लिए आवश्यक होता है।
  • पित्त पित्ताशय में संग्रहीत होता है और छोटी आंत में वसा को छोटे अणुओं में तोड़ता है, जिससे उनका अवशोषण होता है।
2. विषहरण:
  • यकृत हानिकारक पदार्थों जैसे दवाओं, अल्कोहल और चयापचय अपशिष्ट उत्पादों को विषहरण करता है।
  • यह विषाक्त यौगिकों को गैर-विषाक्त रूप में परिवर्तित करता है या पित्त या मूत्र के माध्यम से उन्हें निष्कासित करता है।
3. पोषक तत्वों का चयापचय (Metabolism of Nutrients):
  • यकृत पाचन तंत्र से अवशोषित पोषक तत्वों जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल और वसा को प्रोसेस और संग्रहीत करता है।
  • यह अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित करके संग्रहीत करता है (ग्लाइकोजेनेसिस) और रक्त शर्करा स्तर कम होने पर ग्लूकोज को मुक्त करता है (ग्लाइकोजेनोलिसिस)।
4. रक्त प्रोटीन का संश्लेषण:
  • यकृत एल्ब्यूमिन का संश्लेषण करता है, जो रक्त की मात्रा और दबाव को नियंत्रित करता है।
  • यह रक्त के थक्के बनाने वाले प्रोटीन जैसे फाइब्रिनोजन का भी उत्पादन करता है, जो घाव भरने और थक्के बनाने के लिए आवश्यक होते हैं।
5. पोषक तत्वों का संग्रहण (Storage of Nutrients):
  • यकृत विटामिन (A, D, B12) और खनिज (लोहा, तांबा) को संग्रहीत करता है और शरीर की आवश्यकता होने पर उन्हें मुक्त करता है।
6. कुपफर कोशिकाएं – प्रतिरक्षा कार्य:
  • कुपफर कोशिकाएं, एक प्रकार की मैक्रोफेज, यकृत के साइनसॉइड्स (छोटी रक्त वाहिकाएं) को लाइन करती हैं और रक्त से रोगजनकों, मृत कोशिकाओं और विषाक्त पदार्थों को हटाती हैं।
  • ये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और यकृत और अन्य अंगों को संक्रमण से बचाती हैं।
7. रक्त निस्पंदन:
  • यकृत पाचन तंत्र से आने वाले रक्त को निस्पंदित और विषहरण करता है, जिससे रक्त को शरीर के अन्य भागों में भेजने से पहले हानिकारक पदार्थों को हटाया जाता है।

अग्न्याशय

संरचना:

अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रंथि है जिसमें बहिःस्रावी और अंतःस्रावी दोनों कार्य होते हैं। यह उदर गुहा में स्थित होता है और ‘C’-आकार के ग्रहणी के बीच में स्थित होता है।

बहिःस्रावी कार्य:
  • अग्न्याशय का बहिःस्रावी भाग एसिनार कोशिकाओं से बना होता है जो अग्न्याशय रस स्रावित करती हैं, जो एक महत्वपूर्ण पाचक द्रव है।
  • अग्न्याशय रस क्षारीय होता है (बाइकार्बोनेट आयनों के कारण) और इसमें शामिल होते हैं:
    • एमाइलेज: कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज में पचाता है।
    • लाइपेज: ट्राइग्लिसराइड्स को वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल में तोड़ता है।
    • प्रोटियोलिटिक एंजाइम:
    • ट्रिप्सिन और काइमोट्रिप्सिन: प्रोटीन को छोटे पेप्टाइड्स में तोड़ते हैं।
    • कार्बोक्सीपेप्टिडेज: पेप्टाइड्स को अमीनो एसिड में तोड़ता।
अंतःस्रावी कार्य:
  • अंतःस्रावी भाग में लैंगरहैंस के द्वीप नामक कोशिकाओं के समूह होते हैं, जो हार्मोन स्रावित करते हैं:
  • इंसुलिन: रक्त शर्करा स्तर को कम करता है।
  • ग्लूकागन: रक्त शर्करा स्तर को बढ़ाता है।
अग्न्याशय स्राव की भूमिका:
  • अग्न्याशय रस पैंक्रियाटिक डक्ट के माध्यम से ग्रहणी में जाता है।
  • पित्त के साथ मिलकर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में मदद करता है।

भोजन का पाचन

पाचन की प्रक्रिया में जटिल भोजन अणुओं को यांत्रिक और रासायनिक रूप से सरल पदार्थों में तोड़ा जाता है, जिन्हें शरीर द्वारा अवशोषित और उपयोग किया जा सकता है। यह जटिल प्रक्रिया आहार नली में क्रमिक चरणों में होती है और विभिन्न एंजाइमों, स्रावों और पाचन तंत्र की गतिविधियों द्वारा सुगम होती है।

मुख गुहा में पाचन

मुख गुहा यांत्रिक और रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पाचन की शुरुआत करती है:

  •  चबाना:
    • दांत भोजन को पीसते, कुचलते और चबाते हैं, जिससे भोजन के कण छोटे हो जाते हैं और एंजाइम क्रिया के लिए सतह क्षेत्र बढ़ जाता है।
    • जीभ भोजन को मुंह में घुमाने और लार के साथ मिलाने में मदद करती है।
  • बोलस का निर्माण:
    • लार में मौजूद श्लेष्मा भोजन के कणों को चिकना करता है और उन्हें एक सुसंगत द्रव्यमान (Bolus) में बदल देता है।
  • निगलना (Swallowing):
    • बोलस को ग्रसनी में और फिर क्रमाकुंचन के माध्यम से ग्रासनली में ले जाया जाता है।

रासायनिक पाचन:

  • लार ग्रंथियों द्वारा स्रावित लार में शामिल होते हैं:
    • लार एमाइलेज (टायलिन): स्टार्च (30%) को माल्टोज और डेक्सट्रिन में हाइड्रोलाइज करता है, जिसका इष्टतम pH 6.8 होता है।
    • लाइसोजाइम: एक एंटीबैक्टीरियल एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो मुख गुहा को संक्रमण से बचाता है।

आमाशय में पाचन

भोजन को आमाशय में 4-5 घंटे तक रखा जाता है और आमाशय की पेशीय दीवारों की संकुचन द्वारा अम्लीय जठर रस के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है। इस आंशिक रूप से पचे हुए, अर्ध-तरल द्रव्यमान को काइम कहते हैं।

जठर ग्रंथियाँ: आमाशय की म्यूकोसा में स्थित जठर ग्रंथियों में तीन प्रकार की विशेष कोशिकाएं होती हैं:

  1. श्लेष्मा ग्रीवा कोशिकाएं:
    • म्यूकस स्रावित करती हैं, जो आमाशय की परत को हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCl) के संक्षारक प्रभाव से बचाता है और काइम को चिकना करता है।
  2. मुख्य (पेप्टिक) कोशिकाएं:
    • प्रोएंजाइम पेप्सिनोजन उत्पन्न करती हैं, जो HCl द्वारा सक्रिय होकर पेप्सिन में बदल जाता है।
    • पेप्सिन, एक प्रोटियोलिटिक एंजाइम, प्रोटीन को प्रोटिओसेस और पेप्टोन्स (छोटे पेप्टाइड टुकड़े) में तोड़ता है।
    • शिशुओं में, रेनिन दूध प्रोटीन को जमाने में मदद करता है।
  3. भित्तीय (ऑक्सिंटिक) कोशिकाएं:
    • HCl स्रावित करती हैं, जो पेप्सिन की गतिविधि के लिए इष्टतम अम्लीय मध्यम (pH 1.8) बनाए रखता है।
    • नैज कारक स्रावित करती हैं, जो छोटी आंत में विटामिन B12 के अवशोषण के लिए आवश्यक है।

अतिरिक्त स्राव:

  • जठर रस में थोड़ी मात्रा में जठर लाइपेज भी होता है, जो वसा के पाचन में मामूली भूमिका निभाता है।
  • नवजात शिशुओं में पेप्सिन के साथ जठर रस में रेनिन नामक एन्जाइम भी पाया जाता है। इसके द्वारा दुग्ध का पाचन किया जाता है।

छोटी आंत में पाचन

छोटी आंत रासायनिक पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण का प्राथमिक स्थल है। पित्त, अग्न्याशय रस, और आंत्र रस जैसे विभिन्न स्राव सहक्रियात्मक रूप से बायोमोलेक्यूल्स के पूर्ण विघटन में मदद करते हैं।

छोटी आंत में गतियाँ:
  • सेगमेंटल संकुचन: काइम को पाचक स्रावों के साथ मिलाते हैं।
  • क्रमाकुंचन: काइम को आगे बढ़ाता है।
छोटी आंत में स्राव:
  • पित्त (यकृत द्वारा उत्पादित और पित्ताशय में संग्रहीत।):
    • पित्त लवण वसा को छोटे बूंदों (माइसेल्स) में (पायसीयन) इमल्सीफाई करते हैं, जिससे एंजाइम की दक्षता बढ़ती है।
    • बिलीरुबिन और बिलीवर्डिन (पित्त वर्णक) हीमोग्लोबिन के टूटने के उत्सर्जन उत्पाद हैं।
    • पित्त लाइपेज को सक्रिय करने में मदद करता है।
  • अग्न्याशय रस (from the pancreas):
    • यकृत -अग्न्याशयी वाहिनी के माध्यम से ग्रहणी में जाता है।
    • निष्क्रिय एंजाइम होते हैं::
      • ट्रिप्सिनोजन, आंतों की म्यूकोसा से एंटरोकाइनेज द्वारा सक्रिय होकर ट्रिप्सिन में बदलता है, जो अन्य एंजाइमों को सक्रिय करता है:
        • काइमोट्रिप्सिनोजन → काइमोट्रिप्सिन
        • प्रोकार्बोक्सीपेप्टिडेज → कार्बोक्सीपेप्टिडेज.
      • एमाइलेज: कार्बोहाइड्रेट को डिसैकराइड्स में परिवर्तित करता है।
      • लाइपेज: ट्राइग्लिसराइड्स को ग्लिसरॉल और वसीय अम्ल में हाइड्रोलाइज करता है।
      • न्यूक्लिएज: DNA और RNA को न्यूक्लियोटाइड्स में पचाते हैं।
  • आंत्र रस (Succus Entericus):
    • गोब्लेट कोशिकाएं और ब्रश बॉर्डर कोशिकाएं द्वारा आंतों की म्यूकोसा से स्रावित होता है।
    • एंजाइम:
      • डाइसैकराइडेज: डाइसैकराइड्स को मोनोसैकराइड्स में तोड़ते हैं (जैसे, माल्टेज)।
      • डाइपेप्टिडेज: डाइपेप्टाइड्स को अमीनो एसिड में तोड़ते हैं।
      • लाइपेज: लिपिड्स को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में हाइड्रोलाइज करते हैं।
      • न्यूक्लियोसिडेज: न्यूक्लियोटाइड्स को नाइट्रोजनी क्षार, शर्करा और फॉस्फेट्स में तोड़ते हैं।
pH नियमन:
  • अग्न्याशय से म्यूकस और बाइकार्बोनेट्स अम्लीय काइम को निष्प्रभावी करते हैं, जिससे एंजाइम गतिविधि के लिए उपयुक्त क्षारीय pH (7.8) प्रदान होता है।

बड़ी आंत का अवशोषण और कार्य

 अपचित और अनावशोषित भोजन सामग्री इलियोसीकल वाल्व (Ileocecal Valve) के माध्यम से बड़ी आंत में प्रवेश करती है। यहां कोई महत्वपूर्ण पाचन गतिविधि नहीं होती है, लेकिन यह निम्नलिखित कार्य करती है:

  1. जल और इलेक्ट्रोलाइट अवशोषण:
    • जल, खनिज और कुछ दवाओं का पुनःअवशोषण करती है।
  2. म्यूकस स्राव:
    • गोब्लेट कोशिकाओं द्वारा स्रावित म्यूकस अपचित कणों को बांधने और उन्हें आसानी से पास करने में मदद करता है।
  3. मल का निर्माण और संग्रहण:
    • अपचित सामग्री, जिसे मल कहते हैं, को अस्थायी रूप से मलाशय में संग्रहीत किया जाता है और मलत्याग के दौरान गुदा के माध्यम से निष्कासित किया जाता है।

पाचन का तंत्रिकीय और हार्मोनल नियमन

जठरांत्र संबंधी मार्ग की गतिविधियों को तंत्रिकीय और हार्मोनल तंत्र द्वारा सूक्ष्मता से नियंत्रित किया जाता है:

  1. तंत्रिकीय नियमन:
    • भोजन की दृष्टि, गंध या विचार से लार और गैस्ट्रिक रस का स्राव प्रतिवर्त (Reflexes) के माध्यम से उत्तेजित होता है।
    • आंतरिक तंत्रिका तंत्र (Enteric Nervous System) और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) मांसपेशी संकुचन और स्रावी गतिविधियों को समन्वित करते हैं।
  2. हार्मोनल नियमन:
    • जठर और आंतों की म्यूकोसा द्वारा स्रावित स्थानीय हार्मोन (जैसे, गैस्ट्रिन, सीक्रेटिन, कोलेसिस्टोकिनिन) पाचक रसों के उत्पादन और रिलीज को नियंत्रित करते हैं।

सकस एंटेरिकस (आंत्र रस) में मौजूद एंजाइम जटिल अणुओं को उनके सरल, अवशोषण योग्य रूपों में तोड़कर पाचन के अंतिम चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्रक्रियाएं छोटी आंत के म्यूकोसल एपिथेलियल कोशिकाओं, विशेष रूप से आंतों के विली (Villi) के ब्रश बॉर्डर के निकट होती हैं।

सकस एंटेरिकस में एंजाइमेटिक क्रियाएं

  1. डाइसैकराइडेज:
    • डिसैकराइड्स को मोनोसैकराइड्स में परिवर्तित करते हैं:
      • माल्टेज: माल्टोज को दो ग्लूकोज अणुओं में हाइड्रोलाइज करता है।
      • लैक्टेज: लैक्टोज को ग्लूकोज और गैलेक्टोज में तोड़ता है।
      • सुक्रेज: सुक्रोज को ग्लूकोज और फ्रुक्टोज में विभाजित करता है।
  2. डाइपेप्टिडेज:
    • डाइपेप्टाइड्स को व्यक्तिगत अमीनो एसिड में हाइड्रोलाइज करते हैं।
  3. लाइपेज:
    • डाइग्लिसराइड्स और मोनोग्लिसराइड्स पर कार्य करके ग्लिसरॉल और वसीय अम्ल उत्पन्न करते हैं।
  4. न्यूक्लियोसिडेज और फॉस्फेटेज
    • न्यूक्लियोटाइड्स को उनके घटकों में तोड़ते हैं:
      • नाइट्रोजनी क्षार।
      • पेंटोज शर्करा।
      • फॉस्फेट्स।

पचित उत्पादों का अवशोषण

अवशोषण पाचन के अंतिम उत्पादों को आंतों की म्यूकोसा से रक्तप्रवाह या लसीका प्रणाली में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को कहते हैं। यह प्रक्रिया विभिन्न परिवहन तंत्रों द्वारा संचालित होती है, जिनमें निष्क्रिय विसरण, सुवाहित विसरण, और सक्रिय परिवहन शामिल हैं, जो पोषक तत्वों के गुणों पर निर्भर करते हैं।

अवशोषण के तंत्र

  1. निष्क्रिय विसरण:
    • पदार्थ अपने सांद्रता प्रवणता के साथ बिना ऊर्जा के चलते हैं।
    • उदाहरण: मोनोसैकराइड्स (जैसे, ग्लूकोज), अमीनो एसिड, और क्लोराइड आयनों की छोटी मात्रा।
  2. सुवाहित परिवहन:
    • पोषक तत्व वाहक प्रोटीन की मदद से परिवहित होते हैं, जिससे पदार्थ अपने सांद्रता प्रवणता के साथ अधिक कुशलता से चलते हैं।
    • उदाहरण: ग्लूकोज और अमीनो एसिड।
  3. सक्रिय परिवहन:
    • पदार्थ अपने सांद्रता प्रवणता के विपरीत परिवहित होते हैं, जिसके लिए ऊर्जा (ATP) की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण: मोनोसैकराइड्स, अमीनो एसिड, और इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे Na⁺।
  4. असमस (Osmosis)::
    • जल का अवशोषण विलेय द्वारा बनाए गए असमस प्रवणता के कारण होता है।
  5. वसा का अवशोषण:
    • वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल पानी में अघुलनशील होते हैं और सीधे रक्त में प्रवेश नहीं कर सकते। इसके बजाय:
      • उन्हें पित्त लवण द्वारा सूक्ष्म बूंदों (माइसेल्स) में इमल्सीफाई किया जाता है।
      • माइसेल्स आंतों की म्यूकोसा में विसरित होते हैं।
      • म्यूकोसल कोशिकाओं के अंदर, उन्हें काइलोमाइक्रोन्स(प्रोटीन-लेपित वसा ग्लोब्यूल्स) में पुनर्संयोजित किया जाता है।
      • काइलोमाइक्रोन्स लैक्टील्स (विली में स्थित लसीका वाहिकाएं) में परिवहित होते हैं।
      • लैक्टील्स से, वे लसीका प्रणाली के माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं।
अवशोषण के स्थल
  1. मुंह:
    1. कुछ दवाओं और अल्कोहल जैसे पदार्थों का सीमित अवशोषण।
  2. आमाशय:
    1. जल, अल्कोहल, और कुछ लिपिड-घुलनशील पदार्थों का अवशोषण।
  3. छोटी आंत:
    1. पोषक तत्वों के अवशोषण का प्राथमिक स्थल, इसके विशाल सतह क्षेत्र (विली और माइक्रोविली) के कारण।
    2. अवशोषित होने वाले पदार्थ:
      1. मोनोसैकराइड्स (जैसे, ग्लूकोज, फ्रुक्टोज)।
      2. अमीनो एसिड और डाइपेप्टाइड्स।
      3. वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल।
      4. विटामिन (जैसे, B-कॉम्प्लेक्स, C, और वसा-घुलनशील विटामिन A, D, E, K)।
      5. खनिज (जैसे, Na⁺, K⁺, Ca²⁺)।
      6. जल।
  4. बड़ी आंत:
    1. अवशोषित होने वाले पदार्थ:
      1. जल (शेष तरल का लगभग 90% पुनःअवशोषित करता है)।
      2. कुछ इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे, Na⁺ और Cl⁻)।
      3. आंतों के सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित कुछ विटामिन (जैसे, विटामिन K, बायोटिन)
पोषक तत्वअवशोषित रूपपरिवहन तंत्रअवशोषण स्थल
कार्बोहाइड्रेटमोनोसैकराइड्स (जैसे, ग्लूकोज, फ्रुक्टोज)सक्रिय/सुवाहित परिवहनछोटी आंत
प्रोटीनअमीनो अम्ल, डाइपेप्टाइड्ससक्रिय/सुवाहित परिवहनछोटी आंत
वसावसीय अम्ल, ग्लिसरॉलविसरण (माइसेल्स → काइलोमाइक्रोन्स → लैक्टील्स)छोटी आंत
जलजलअसमसपेट, छोटी आंत, बड़ी आंत
इलेक्ट्रोलाइट्सNa⁺, Cl⁻, K⁺, आदिसक्रिय/निष्क्रिय परिवहनछोटी और बड़ी आंत
विटामिनवसा-घुलनशील (A, D, E, K); जल-घुलनशील (B-कॉम्प्लेक्स, C)विसरणछोटी आंत (कुछ विटामिन के लिए बड़ी आंत)
खनिजCa²⁺, Mg²⁺, Fe²⁺, आदिसक्रिय परिवहनछोटी आंत

पाचन तंत्र के विकार

  1. आंतों की सूजन:
    • कारण: बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण, और परजीवी संक्रमण (जैसे, टेपवर्म, राउंडवर्म, हुकवर्म, पिनवर्म)।
    • लक्षण: पेट दर्द, ऐंठन, दस्त, और सूजन।
    • उपचार: एंटीबायोटिक्स, एंटीपैरासिटिक दवाएं, और पुनर्जलीकरण।
  2. पीलिया:
    • कारण: यकृत की खराबी के कारण बिलीरुबिन (पित्त वर्णक) का रक्त में जमाव।
    • लक्षण: त्वचा और आंखों का पीला पड़ना।
    • उपचार: अंतर्निहित यकृत रोग (जैसे, हेपेटाइटिस या सिरोसिस) का उपचार और पित्त नली की रुकावट का प्रबंधन।
  3. उल्टी (वमन):
    • कारण: संक्रमण, खाद्य विषाक्तता, मोशन सिकनेस, या मनोवैज्ञानिक ट्रिगर्स।
    • तंत्र: मस्तिष्क के मेडुला ओब्लोंगाटा में उल्टी (वमन) केंद्र द्वारा नियंत्रित।
    • लक्षण: मुंह के माध्यम से पेट की सामग्री का निष्कासन, अक्सर मतली से पहले।
    • उपचार: मतली को नियंत्रित करने के लिए एंटीमेटिक दवाएं, पुनर्जलीकरण, और इलेक्ट्रोलाइट प्रतिस्थापन।
  4. दस्त:
    • कारण: संक्रमण, खाद्य असहिष्णुता, सूजन आंत्र रोग, या कुछ दवाएं।
    • लक्षण: मल त्याग की आवृत्ति में वृद्धि और तरल मल।
    • प्रभाव: जल, पोषक तत्वों और इलेक्ट्रोलाइट्स के अवशोषण में कमी।
    • उपचार: पुनर्जलीकरण चिकित्सा (मौखिक पुनर्जलीकरण लवण), बैक्टीरियल कारणों के लिए एंटीबायोटिक्स, और आहार समायोजन।
  5. कब्ज:
    • कारण: अनियमित मल त्याग, अपर्याप्त फाइबर सेवन, निर्जलीकरण, या कुछ दवाएं।
    • लक्षण: मल त्याग में कठिनाई, मल त्याग की कम आवृत्ति, और अपूर्ण मल त्याग की भावना।
    • उपचार: फाइबर सेवन में वृद्धि, उचित पुनर्जलीकरण, नियमित शारीरिक गतिविधि, और कभी-कभी जुलाब का उपयोग।
  6. अपच (Dyspepsia):
    • कारण: पाचक एंजाइमों का अपर्याप्त स्राव, अधिक खाना, चिंता, या मसालेदार या वसायुक्त भोजन का सेवन।
    • लक्षण: पेट के ऊपरी हिस्से में भरा हुआ महसूस होना, सूजन, असुविधा, या दर्द।
    • उपचार: एंटासिड, आहार में परिवर्तन, तनाव कम करना, और अंतर्निहित कारण का समाधान (जैसे, एंजाइम सप्लीमेंट्स)।

FAQ (Previous year questions)

अग्न्याशय को मिश्रित ग्रंथि के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि इसमें अंतःस्रावी और बाह्य स्रावी दोनों कार्य होते हैं।

बहिःस्रावी कार्यअंतःस्रावी कार्य
अधिकांश अग्न्याशय;पाचन एंजाइमों और बाइकार्बोनेट आयनों को छोटी आंत में स्रावित करता है।ये एंजाइम हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में सहायता करते हैं।इसमें लैंगरहैंस के आइलेट्स नामक कोशिकाओं के समूह होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के हार्मोन-स्रावित कोशिकाओं से बने होते हैं। → रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए हार्मोन सीधे रक्तप्रवाह में स्रावित करते हैं।
लाइपेज ⇒ वसा → वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल एमाइलेज ⇒ स्टार्च → माल्टोज़ → ग्लूकोज + ग्लूकोजप्रोटीज़ (ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन और कार्बोक्सीपेप्टिडेज़ सहित): प्रोटीन को छोटे पेप्टाइड्स और अमीनो एसिड में तोड़ते हैं।राइबोन्यूक्लिज़ और डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिज़: क्रमशः आरएनए और डीएनए को पचाते हैं, उन्हें न्यूक्लियोटाइड में तोड़ते हैं।अल्फा कोशिकाएं (स्रावित ग्लूकागन): संग्रहित ग्लूकोज को रक्तप्रवाह में छोड़ने के लिए यकृत को उत्तेजित करती हैं, जिससे उपवास के दौरान या भोजन के बीच रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।बीटा कोशिकाएं (स्रावित इंसुलिन): रक्तप्रवाह से कोशिकाओं में ग्लूकोज के अवशोषण को बढ़ावा देती हैं, जिससे रक्त शर्करा का स्तर कम होता है।गामा कोशिकाएं: सोमैटोस्टैटिन → वृद्धि हार्मोन ; ग्लूकोज और इंसुलिन के स्राव को नियंत्रित करती हैं

दोहरा परिसंचरण एक परिसंचरण तन्त्र है जिसमें रक्त शरीर के एक पूर्ण परिपथ के दौरान दो बार हृदय से होकर गुजरता है। इस प्रकार का परिसंचरण मनुष्यों सहित स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों की विशेषता है।

इस प्रणाली में, रक्त दो अलग-अलग परिपथ से गुजरता है, जिन्हें फुफ्फुसीय परिसंचरण और प्रणालीगत परिसंचरण के रूप में जाना जाता है।

  1. फुफ्फुसीय (पल्मोनरी) परिसंचरण: ऑक्सीजन रहित रक्त शरीर से दाहिने आलिंद में लौटता है और फिर दाएं निलय में चला जाता है। वहां से, इसे फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फेफड़ों में पंप किया जाता है। फेफड़ों में, रक्त कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है और ऑक्सीजन ग्रहण करता है, ऑक्सीजनयुक्त हो जाता है। यह ऑक्सीजन युक्त रक्त हृदय में लौटता है, फुफ्फुसीय नसों के माध्यम से बाएं आलिंद में प्रवेश करता है।
  2. प्रणालीगत (सिस्टेमिक) परिसंचरण: ऑक्सीजन युक्त रक्त बाएं आलिंद से बाएं वेंट्रिकल में प्रवाहित होता है, जो फिर इसे सबसे बड़ी धमनी, महाधमनी के माध्यम से शरीर में पंप करता है। पूरे शरीर में, ऊतक रक्त से ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं और इसमें कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट उत्पाद छोड़ते हैं। ऑक्सीजन रहित रक्त, अपशिष्ट लेकर, प्रणालीगत शिराओं के माध्यम से हृदय में लौटता है, परिसंचरण चक्र को पूरा करने के लिए दाहिने आलिंद में प्रवेश करता है।

दोहरा परिसंचरण कुशलतापूर्वक ऊतकों तक ऑक्सीजन वितरण और अपशिष्ट निष्कासन सुनिश्चित करता है, जिससे शरीर की चयापचय आवश्यकताओं का समर्थन होता है।

Q. 1 पाचन और अंतःस्रावी दोनों प्रणालियों में अग्न्याशय की दोहरी भूमिका का वर्णन करें।

अग्न्याशय को मिश्रित ग्रंथि के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि इसमें अंतःस्रावी और बाह्य स्रावी दोनों कार्य होते हैं।

बहिःस्रावी कार्य
अंतःस्रावी कार्य
अधिकांश अग्न्याशय;पाचन एंजाइमों और बाइकार्बोनेट आयनों को छोटी आंत में स्रावित करता है।ये एंजाइम हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में सहायता करते हैं।
इसमें लैंगरहैंस के आइलेट्स नामक कोशिकाओं के समूह होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के हार्मोन-स्रावित कोशिकाओं से बने होते हैं। → रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए हार्मोन सीधे रक्तप्रवाह में स्रावित करते हैं।
लाइपेज ⇒ वसा → वसीय अम्ल + ग्लिसरॉल एमाइलेज ⇒ स्टार्च → माल्टोज़ → ग्लूकोज + ग्लूकोजप्रोटीज़ (ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन और कार्बोक्सीपेप्टिडेज़ सहित): प्रोटीन को छोटे पेप्टाइड्स और अमीनो एसिड में तोड़ते हैं।राइबोन्यूक्लिज़ और डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिज़: क्रमशः आरएनए और डीएनए को पचाते हैं, उन्हें न्यूक्लियोटाइड में तोड़ते हैं।
अल्फा कोशिकाएं (स्रावित ग्लूकागन): संग्रहित ग्लूकोज को रक्तप्रवाह में छोड़ने के लिए यकृत को उत्तेजित करती हैं, जिससे उपवास के दौरान या भोजन के बीच रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।बीटा कोशिकाएं (स्रावित इंसुलिन): रक्तप्रवाह से कोशिकाओं में ग्लूकोज के अवशोषण को बढ़ावा देती हैं, जिससे रक्त शर्करा का स्तर कम होता है।गामा कोशिकाएं: सोमैटोस्टैटिन → वृद्धि हार्मोन ; ग्लूकोज और इंसुलिन के स्राव को नियंत्रित करती हैं

Q. 2 दोहरे परिसंचरण से क्या तात्पर्य है?

दोहरा परिसंचरण एक परिसंचरण तन्त्र है जिसमें रक्त शरीर के एक पूर्ण परिपथ के दौरान दो बार हृदय से होकर गुजरता है। इस प्रकार का परिसंचरण मनुष्यों सहित स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों की विशेषता है।
इस प्रणाली में, रक्त दो अलग-अलग परिपथ से गुजरता है, जिन्हें फुफ्फुसीय परिसंचरण और प्रणालीगत परिसंचरण के रूप में जाना जाता है।
फुफ्फुसीय (पल्मोनरी) परिसंचरण: ऑक्सीजन रहित रक्त शरीर से दाहिने आलिंद में लौटता है और फिर दाएं निलय में चला जाता है। वहां से, इसे फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फेफड़ों में पंप किया जाता है। फेफड़ों में, रक्त कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है और ऑक्सीजन ग्रहण करता है, ऑक्सीजनयुक्त हो जाता है। यह ऑक्सीजन युक्त रक्त हृदय में लौटता है, फुफ्फुसीय नसों के माध्यम से बाएं आलिंद में प्रवेश करता है।
प्रणालीगत (सिस्टेमिक) परिसंचरण: ऑक्सीजन युक्त रक्त बाएं आलिंद से बाएं वेंट्रिकल में प्रवाहित होता है, जो फिर इसे सबसे बड़ी धमनी, महाधमनी के माध्यम से शरीर में पंप करता है। पूरे शरीर में, ऊतक रक्त से ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं और इसमें कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट उत्पाद छोड़ते हैं। ऑक्सीजन रहित रक्त, अपशिष्ट लेकर, प्रणालीगत शिराओं के माध्यम से हृदय में लौटता है, परिसंचरण चक्र को पूरा करने के लिए दाहिने आलिंद में प्रवेश करता है।
दोहरा परिसंचरण कुशलतापूर्वक ऊतकों तक ऑक्सीजन वितरण और अपशिष्ट निष्कासन सुनिश्चित करता है, जिससे शरीर की चयापचय आवश्यकताओं का समर्थन होता है।

मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र / मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र/ मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र/ मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र/ मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र /मानव में परिसंचरण और पाचन तंत्र

error: Content is protected !!
Scroll to Top