प्रतिबल/दबाव एवं प्रबंधन

प्रतिबल/दबाव एवं प्रबंधन व्यवहार विषय का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो जीवन में तनाव के कारणों, लक्षणों तथा उनके प्रभावों को समझने और उनसे निपटने के उपायों से जुड़ा है। यह विषय व्यक्ति के भौतिक, पर्यावरणीय, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक दबावों की प्रकृति और प्रकारों की जानकारी देता है। साथ ही, यह शारीरिक व संवेगात्मक लक्षणों के माध्यम से प्रतिबल के संकेत पहचानने और प्रभावी प्रबंधन तकनीकों को अपनाने पर बल देता है।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

YearQuestionMarks
2024तनाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व क्या होता है ?2 M
2024प्रतिगमन और उदात्तीकरण में अंतर कीजिए।2 M
2024सामाजिक पुन: समायोजन निर्धारण मानी क्या है ?2 M
2023तनाव को कम करने हेतु अपनाई जाने वाली संवेग केन्द्रित एवं समस्या केन्द्रित समायोजनात्मक रणनीतियों के मध्य अन्तर कीजिए ।5 M
2021तनाव के स्त्रोत बताइए ।2 M
2021तनाव प्रबन्धन की युक्तियों को समझाइए ।5 M
2018सामान्य अनुकूलन संलक्षण क्‍या है ?2 M
2018कौन से कारक सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशलक्षेम को बढ़ाते हैं ?5 M
2016सामान्य अनुकूलन संलक्षण की व्याख्या कीजिए।2 M
2016सकारात्मक स्वास्थ्य और खुशहाली से आप क्‍या समझते हैं ?5 M
2016 specialप्रतिबल क्‍या है ?2 M
2016 specialतनाव प्रबंधन के विभिन्‍न साधकों का विश्लेषण कीजिए ।5 M

दबाव के अंग्रेजी भाषा के शब्द स्ट्रेस (Stress) की व्युत्पत्ति, लैटिन शब्द ‘स्ट्रिक्टस’(Strictus) जिसका अर्थ है तंग या संकीर्ण तथा ‘स्ट्रिन्गर’(Stringer) जिसका अर्थ है कसना, से हुई है। दबाव विद्युत की भाँति होते हैं। दबाव ऊर्जा प्रदान करते हैं, मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं। तथापि, यदि विद्युत धारा अत्यंत तीव्र हो तो वह बल्ब की बत्ती को गला सकती है, विद्युत उपकरणों को खराब कर सकती है इत्यादि। उच्च दबाव भी अप्रीतिकर प्रभाव उत्पन्न कर सकता है तथा हमारे खराब निष्पादन का कारण बन सकता है। इसके विपरीत, बहुत कम दबाव के कारण व्यक्ति उदासीन तथा निम्न स्तर की अभिप्रेरणा का अनुभव कर सकता है, जिसके  कारण वह कम दक्षतापूर्वक तथा धीमी गति से कार्य निष्पादन कर पाता है।

  • हैंस शैले ( Hans Selye) (आधुनिक दबाव शोध के  जनक) ने तनाव को ‘परिवर्तन की किसी भी मांग के प्रति शरीर की निरर्थक प्रतिक्रिया’ के रूप में परिभाषित किया है। 
  • NCERT के अनुसार दबाव किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप  में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामना करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है।

प्रतिबल/दबाव की प्रकृति

  • स्ट्रेस को अक्सर पर्यावरण की उन विशेषताओं के संदर्भ में समझाया जाता है, जो व्यक्ति के लिए बाधित करने वाली होती हैं।
  • स्ट्रेस एक गतिशील मानसिक/संज्ञानात्मक स्थिति है।
  • यह अस्थायी-दीर्घकालिक या गंभीर-मामूली हो सकता है।
  • यह होमियोस्टेसिस (शरीर की आंतरिक स्थिरता) में व्यवधान या असंतुलन होता है, जो इस असंतुलन के समाधान या होमियोस्टेसिस की पुनर्स्थापना की आवश्यकता को उत्पन्न करता है।
  • इसके लिए दो पूर्वापेक्षाएँ होती हैं:
    • परिणाम को लेकर अनिश्चितता
    • परिणाम का महत्वपूर्ण होना

प्रतिबल/दबाव की प्रकार

तनाव को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

STRESS AND MANAGEMENT
  1. यूस्ट्रेस (Eustress): तनाव अच्छा हो सकता है, जिसे ‘यूस्ट्रेस’ कहा जाता है। “वांछित तनाव कारकों जैसे शादी या नई नौकरी, के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण हुआ तनाव को यूस्ट्रेस के रूप में परिभाषित किया जा सकता है” (ट्रक्सिलो)।
  2. न्यूस्ट्रेस (Neustress): जब तनाव न सहायक है और न हानिकारक है, तो इसे न्यूस्ट्रेस ‘के रूप में वर्णित किया जा सकता है। (शेफर)
  3. डिस्ट्रेस (Distress): यह तनाव की तीसरी श्रेणी है, जिससे अधिकतर लोग आमतौर पर तनाव शब्द से जोड़ते हैं। ‘डिस्ट्रेस’ तब होता है जब व्यक्ति द्वारा अनुभव की जाने वाली उत्तेजना बहुत अधिक होती है (शेफर)। डिस्ट्रेस को तीव्र तनाव और दीर्घकालिक तनाव में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। 
    • तीव्र तनाव (Acute) उस तनाव को कहा जा सकता है, जो प्रबल होता है लेकिन अधिक समय तक नहीं रहता है। 
    • दीर्घकालिक तनाव (chronic) उतना प्रबल नहीं होता लेकिन लंबे समय तक मौजूद रह सकता है।
  4. हाइपरस्ट्रेस: अत्यधिक तनाव को ‘हाइपरस्ट्रेस’ कहा जाता है।
  5. हाइपोस्ट्रेस: अपर्याप्त तनाव को ‘हाइपोस्ट्रेस’ कहा जाता है।
यू-स्ट्रेसडिस्ट्रेस
सकारात्मक तनाव (वांछनीय)नकारात्मक तनाव (अवांछनीय)
अल्पकालिकअल्पकालिक-दीर्घकालिक
प्रदर्शन को बढ़ाता हैप्रदर्शन को घटाता है
उत्साह उत्पन्न करता हैचिंता उत्पन्न करता है
उदाहरण: नई नौकरी शुरू करनाउदाहरण: आघातपूर्ण घटनाएँ

अन्य प्रकार के प्रतिबल/दबाव:

Ncert के मुताबिक़ दबाव के तीन प्रमुख प्रकार हैं, भौतिक एवं पर्यावरणी, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक  हैं। 

  1. भौतिक एवं पर्यावरणी दबाव– भौतिक दबाव के कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। उदाहरणस्वरूप शारीरिक रूप से अधिक परिश्रम पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं, जैसे – वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी।
  2. मनोवैज्ञानिक दबाव– यह वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन में उत्पन्न करते हैं। ये दबाव अनुभव करने वाले व्यक्ति के  लिए विशिष्ट होते हैं तथा दबाव के  आंतरिक स्रोत होते हैं। हम समस्याओं के बारे में परेशान होते हैं, दुश्चिंता करते हैं या अवसादग्रस्त हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक दबाव के कुछ प्रमुख स्रोत कुंठा , द्वंद्व, आंतरिक एवं सामाजिक दबाव इत्यादि हैं। उदाहरण ‘मुझे हर कार्य में सर्वोत्तम होना चाहिए’।
  3. सामाजिक दबाव– ये बाह्य जनित होते हैं तथा दूसरे लोगों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं के  कारण उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की सामाजिक घटनाएँ, जैसे – परिवार में किसी की मृत्यु या बीमारी, तनावपूर्ण संबंध, पड़ोसियों से परेशानी, सामाजिक दबाव के कुछ उदाहरण हैं

प्रतिबल/दबाव की स्रोत

कई प्रकार की घटनाएं और स्थितियां दबाव का कारण बन सकती हैं, जिनमें प्रमुख जीवन घटनाएं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु, दैनिक परेशानियां और दर्दनाक अनुभव शामिल हैं।

  • जीवन घटनाएँ : हम रोज़मर्रा के छोटे-मोटे बदलावों से निपटना सीख जाते हैं, लेकिन जीवन की बड़ी घटनाएँ तनावपूर्ण हो सकती हैं, क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचाती हैं। उदाहरण के लिए, किसी लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते का टूटना।
  • परेशान करने वाली घटनाएँ : ये व्यक्तिगत तनाव हैं, जो हम अपने दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं जैसे शोरगुल, आवागमन, झगड़ालू पड़ोसी, ट्रैफ़िक जाम के कारण झेलते हैं।
  • अभिघातज घटनाएँ : इनमें आग, ट्रेन या सड़क दुर्घटना, डकैती, भूकंप, सुनामी आदि जैसी कई चरम घटनाओं में शामिल होना शामिल है। इन घटनाओं के प्रभाव कुछ समय के अंतराल के बाद हो सकते हैं। कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिंता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के  रूप में सतत रूप से बने रहते हैं 

इन स्रोतों के अलावा, कोलमैन ने तनाव के स्रोतों को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, यानी निराशा, उद्देश्यों का टकराव और दबाव।

  1. कुण्ठा: कुण्ठा तब घटित होती है जब किसी व्यक्ति के लक्ष्य उन्मुख व्यवहार को विफल कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, रवि को अपनी पदोन्नति की उम्मीद थी, हालाँकि, जब उसे वहाँ नहीं मिली तो उसे निराशा होने की संभावना है।
  2. उद्देश्यों का द्वंद्व: अगला स्रोत ‘उद्देश्यों का संघर्ष’ है जो तनाव उत्पन्न कर सकता है क्योंकि एक व्यक्ति को विकल्पों के बीच चयन करना पड़ता है और इस संबंध में निर्णय लेने से तनाव हो सकता है।
  3. दबाव: दबाव तनाव का एक और स्रोत है, जो बाहरी या आंतरिक हो सकता है। बाहरी दबाव वे दबाव होते हैं जो प्रकृति में मुख्य रूप से सामाजिक पर्यावरण, जिम्मेदारियों और दायित्वों के फलस्वरूप और साथ ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मांग और अपेक्षाओं के कारण हो सकते हैं। उदाहरणस्वरूप एक बच्चे को परीक्षा में अच्छी तरह से प्रदर्शन करने के लिए माता-पिता द्वारा डाला दबाब। जबकि आंतरिक दबाव स्वयं की छवि को बनाए रखने के लिए स्वयं के द्वारा उत्पन्न होता है उदाहरण जब एक बच्चा स्वयं अनुभव करता है कि उसे परीक्षा में और अच्छी तरह से अध्ययन करने की आवश्यकता है

प्रतिबल/दबाव की लक्षण

तनाव से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव पड़ सकता है जिसमें व्यवहार, अनुभूति, संवेगों के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य भी सम्मिलित है। हालांकि तनाव का अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक व्यक्ति एक अलग तरीके से तनाव पर प्रतिक्रिया करता है, तब भी ऐसे कुछ लक्षण हैं, जो तनाव से संबंधित हो सकते हैं। इनकी चर्चा इस प्रकार है:

  1. शारीरिक लक्षण: तनाव के शारीरिक लक्षणों में निम्न स्तर की ऊर्जा, पेट की ख़राबी, सिरदर्द और माइग्रेन, दर्द और पीड़ा, सीने में दर्द, दिल की धड़कन तेज़ होना, नींद की कमी, मुँह में सूखापन, मांसपेशियों में तनाव का अनुभव, बार-बार संक्रमण का होना आदि सम्मिलित हैं।
  2. संवेगात्मक लक्षण: संवेगात्मक लक्षणों में सम्मिलित हैं, निराशा प्रदर्शित करना, चिड़चिड़ापन या आसानी से उत्तेजित होना, व्यर्थ अनुभव करना, अकेलापन और यहाँ तक कि उत्साह अनुभव करना सम्मिलित है।
  3. मनोवैज्ञानिक लक्षण: तनाव से संबंधित संज्ञानात्मक लक्षणों में लगातार चिंता करना, निरंतर चलते विचारों का अनुभव करना, चिंतन में संगठन की कमी, भूल जाना, ध्यान केंद्रित न कर पाना, निर्णय लेने की कमी या खराब निर्णय और निराशावाद भी सम्मिलित हैं।
  4. व्यवहारात्मक लक्षण: तनाव के व्यवहारात्मक लक्षणों में, प्रभावशाली प्रदर्शन में गिरावट, व्यसनकारी पदार्थों का उपयोग, दुर्घटना की प्रवृत्ति, चिंताजनक व्यवहार, खराब समय प्रबंधन, बार-बार जाँच करने की प्रवृत्ति, भूख में बदलाव, विलंब, तेजी से बात करना या तेज़ चलना, तेजी से खाना और वाणी/भाषण की अशुद्धियाँ आदि सम्मिलित हैं।
शारीरिकमनोवैज्ञानिकसंज्ञानात्मकव्यवहारात्मक
हृदय का तेज धड़कनापरेशान अनुभव करनादुरिचत्ताप्रभावशाली प्रदर्शन में गिरावट
दिल की धड़क में वृद्धिध्यान केंद्रित करने में असमर्थताअवसादधूम्रपान या शराब या अन्य व्यसनी दवाओं का उपयोग
पसीना आने में वृद्धिचिड़चिड़ापनगुस्सादुर्घटनाओं की प्रवृत्ति
हाथ और पैर की मांसपेशियों में तनावआत्मविश्वास में कमीअपराधबोधचिंताजनक व्यवहार (पैर का चलाना, नाखून काटना)
साँस की तकलीफचिंताईर्ष्याभूख में वृद्धि या कमी
दाँत पीसनानिर्णय लेने में कठिनाईशर्म आनानींद का बढ़ना या कम होना / नींद में व्यवधान
सिरदर्दनिरंतर चलते विचारअधीरताडर
अपचखोयापनआत्मघाती भावनातेजी से भोजन करना / तेज चलना / तेज बोलना
संवेदनशीलताखराब समय प्रबंधन
मुँह सूखनावाणी / भाषण की असुविधाएँ
दर्दबार-बार जाँच करने की प्रवृत्ति
ठंडा पसीना
पेट में ऐंठन

प्रतिबल/दबाव के प्रभाव

दबावपूर्ण स्थिति के साथ चार प्रमुख दबाव के प्रभाव सम्बद्ध हैं, जैसे /; संवेगात्मक (emotional), शारीरिक्रियात्मक (physiological), संज्ञानात्मक (cognitive), तथा व्यवहारात्मक (behavioural)।

  • संवेगात्मक प्रभाव : वे व्यक्ति जो दबावग्रस्त होते हैं प्रायः आकस्मिक मनःस्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिससे संवेगात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण :
    • अवसाद की भावनाएँ, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि, घवराहट, लाचारी ।
    • आकस्मिक मनःस्थिति परिवर्तन।
  • शारीरिक्रियात्मक प्रभाव : जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन(एड्रिनलीन तथा कोर्टिसॉल) का स्राव बढ़ जाता है। ये हार्मोन हृदयगति, रक्तचाप स्तर,उपापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं। जब हम थोड़े समय के लिए दबावग्रस्त हों तो ये शारीरिक प्रतिक्रियाएँ कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहायता करती हैं, किंतु दीर्घकालिक रूप से यह शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकती हैं। 
    • एपिनेपफरीन तथा नॉरएपिनेपफरीन का स्त्रवण
    • पाचक तंत्र की धीमी गति,फेफड़ों में वायुमार्ग का विस्तार
    • हृदयगति में वृद्घि, रक्त-वाहिकाओं का सिकुड़ना
    • गले या मुँह का सूखना, बार-बार सर्दी लगना ।
  • संज्ञानात्मक प्रभाव : यदि दबाव के  कारण दाब  निरंतर रूप से बना रहता है, तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है । 
    • एकाग्रता में कमी, विस्मृति, विभ्रांति 
    • न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता
    • तीव्रता से आते विचार 
  • व्यवहारात्मक प्रभाव : दबाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थों( कैफीन, सिगरेट एवं मद्य) तथा अन्य औषधियों(उपशामकों) का अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं 
    • एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा चक्कर आना 
    • रोना,चिल्लाना,आत्मघाती बात, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात

दवाब,स्वास्थ्य एवं प्रतिरक्षा प्रणाली

  • तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली में परिवर्तन उत्पन्न कर सकता है और किसी के बीमार होने की संभावना को बढ़ा सकता है।
  • तनाव को हृदय संबंधी विकारों, उच्च रक्तचाप, साथ ही अल्सर, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, एलर्जी और सिरदर्द सहित मनोदैहिक विकारों के विकास में शामिल किया गया है।
  • शोधकर्ताओं का अनुमान है कि तनाव सभी शारीरिक बीमारियों के 50-70% में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चिकित्सक से मिलने के लगभग 60% मामले प्रमुखत: तनाव संबद्ध लक्षणों के कारण ही होते हैं।
  • तनाव प्राकृतिक किलर सेल(Natural killer call) की कोशिका-विषाक्तता को प्रभावित कर सकता है, जो विभिन्न संक्रमणों और कैंसर से बचाव में बहुत महत्वपूर्ण है। अत्यधिक तनावग्रस्त लोगों में प्राकृतिक किलर सेल कोशिका-विषाक्तता का स्तर कम पाया गया है, जिसमें महत्वपूर्ण परीक्षाओं का सामना करने वाले छात्र, शोक संतप्त व्यक्ति और गंभीर रूप से उदास लोग शामिल हैं। इसलिए, तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज को बिगाड़ कर बीमारी का कारण बन सकता है।
  • निम्नलिखित चित्र तनाव और बीमारी के बीच संबंध को दर्शाता है।
प्रतिबल/दबाव एवं प्रबंधन

हंस सेयल ने तनाव के परिणामस्वरूप शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को समझाने के लिए तनाव का एक तीन-चरण का मॉडल प्रस्तावित किया।इसे सामान्य रूप से सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम (GAS) नाम से जाना जाता है। उनके अनुसार GAS के तीन चरण होते हैं । सचेत प्रतिक्रिया चरण(Alarming reaction) , प्रतिरोध चरण(Resistance) , परिश्रांति चरण (Exhaustion)

  1. सचेत प्रतिक्रिया चरण : यह एक अलार्मिंग चरण है, जो व्यक्ति को स्थिति से भागने या उसका सामना करने के लिए तैयार करता है। इस चरण के दौरान व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय गति और मांसपेशियों की ताकत प्रभावित हो सकती है। प्रतिक्रिया स्वरूप, स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ANS) की संवेदी शाखा सक्रिय हो जाती है और एड्रेनलिन तथा कोर्टिसोल का उत्पादन करती है ताकि शरीर को कार्रवाई (भागने या लड़ने) के लिए तैयार किया जा सके।
  2. प्रतिरोध चरण : यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। लड़ाई या उड़ान प्रतिक्रिया के बाद शरीर पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम की मदद से खुद की मरम्मत करना शुरू कर देता है और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की कोशिश करता है।
  3. परिश्रांति चरण : यदि प्रतिरोध चरण के बाद भी तनाव कारक मौजूद रहता है तो यह परिश्रांति चरण की ओर ले जाता है। इसे किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योकि, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, एवं जीव तनाव-प्रेरित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। 
प्रतिबल/दबाव एवं प्रबंधन

दबाव का सामना करना : 

प्रतिबल प्रबंधन दबाव के प्रति एक गत्यात्मक स्थिति-विशिष्ट प्रतिक्रिया है। यह दबावपूर्ण स्थितियों या घटनाओं के कुछ  निश्चित मूर्त अनुक्रियाओं का समुच्चय होता है, जिनका उद्देश्य समस्या का समाधान करना तथा दबाव को कम करना होता है। एंडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित दबाव का सामना करने की तीन युक्तियाँ या कौशल निम्नलिखित है

  1. कृत्य-अभिविन्यस्त युक्ति – दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रयाएँ हो सकती हैं तथा उनवेफ संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं – यह सब इसके अंतर्गत आते हैं। उदाहरण के लिए, मैं अपने लिए बेहतर समय सारणी बनाउँगा।
  1. संवेग-अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत मन में आशा बनाए रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं कुंठा तथा क्रोध की भावनाओं को अभिव्यक्त करना या फिर यह निर्णय करना कि परिस्थिति को बदलने के  लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता हैं  उदाहरण के लिए, मैं अपने मन को समझाउँफ कि यह सब कुछ मेरे साथ घटित नहीं हो रहा हैं
  1. परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं इसमें दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उन के स्थान पर आत्म-रक्षित विचारों का प्रतिस्थापन भी सम्मिलित होता है 

लेजारस (Lazarus) तथा फोकमैन (Folkman) ने दबाव का सामना करने का संकल्पना-निर्धारण एक गत्यात्मक प्रक्रिया के रूप में संकल्पित किया है, न कि किसी व्यक्तिगत विशेषक के रूप में।  उनके  अनुसार, सामना करने की ये अनुक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं 

  1. समस्या-केंद्रित (Problem focused) : ये युक्तियाँ समस्या पर ही हमला करती हैं, ऐसा वे उन व्यवहारों द्वारा करती हैं जो सूचनाएँ एकत्रित करने, घटनाओं को परिवर्तित करने, तथा विश्वास और प्रतिबद्धता को परिवर्तित करने के लिए होते हैं। वे व्यक्ति की जागरूकता में वृद्धि करती हैं, ज्ञान के स्तर को बढ़ाती हैं, तथा दबाव का सामना करने के संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक विकल्पों में वृद्धि करती हैं। घटना से उत्पन्न खतरे की अनुभूति को भी घटाने का कार्य वे करती हैं। उदाहरण के लिए, मैंने कार्य करने के लिए एक योजना का निर्माण किया तथा उसका क्रियान्वयन किया।
  2. संवेग-केंद्रित (Emotional focused) : ये युक्तियाँ प्रमुखतया मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाने हेतु उपयोग की जाती हैं जिससे घटना में परिवर्तन लाने का अल्पतम प्रयास करते हुए उसके कारण उत्पन्न होने वाले संवेगात्मक विघटन के प्रभावों को सीमित किया जा सके। उदाहरण के लिए, मैंने इसे अपने सिस्टम से बाहर निकालने के लिए कुछ चीजें कीं।

दबाव प्रबंधन की तकनीक

जीवनशैली में बदलाव के कारण तनाव बढ़ रहा है। तनाव प्रबंधन की कुछ तकनीकें इस प्रकार हैं:

  1. विश्रांति की तकनीकें : यह वे सक्रिय कौशल हैं जिनके द्वारा दबाव के लक्षणों तथा बीमारियों के प्रभावों में कमी की जा सकती है। प्रायः विश्रांति शरीर के निचले भाग से प्रारंभ होती है तथा मुख्य पेशियों तक इस प्रकार लाई जाती है जिससे संपूर्ण शरीर विश्राम अवस्था में आ जाए। मन को शांत तथा शरीर को विश्राम अवस्था में लाने के लिए गहन श्वसन के साथ पेशी-शिथिलन का उपयोग किया जाता है।
  2. ध्यान प्रक्रियाऐं : इसमें एकाग्रता को इतना पूर्ण रूप से केंद्रित किया जाता है कि ध्यानस्थ व्यक्ति किसी बाह्य उद्दीपन के प्रति अवभिज्ञ हो जाता है तथा वह चेतना की एक भिन्न स्थिति में पहुँच जाता है।
  3. जैवप्रतिप्राप्ति / बायोफ़ीडबैक : यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दबाव के शारीरिक्रियात्मक पक्षों का परीक्षण कर उन्हें कम करने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि व्यक्ति में वर्तमानकालिक शारीरिक्रियाएँ क्या हो रही हैं। प्रायः इसके साथ विश्रांति प्रशिक्षण का भी उपयोग किया जाता है। जैवप्रतिप्राप्ति प्रशिक्षण में तीन अवस्थाएँ होती हैं –
    1. किसी विशेष शारीरिक्रियात्मक अनुक्रिया जैसे – हृदय गति के प्रति जागरूकता विकसित करना, 
    2. उस शारीरिक्रियात्मक अनुक्रिया को शांत अवस्था में नियंत्रित करने के उपाय सीखना तथा 
    3. उस नियंत्रण को सामान्य दैनिक जीवन में अंतर्गत करना। 
  4. सर्जनात्मक मानस प्रत्यक्षीकरण : सर्जनात्मक मानस-प्रक्षेपण एक आत्मनिष्ठ अनुभव है जिसमें प्रतिमा तथा कल्पना का उपयोग किया जाता है। इससे व्यक्ति को वह सर्जनात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे वह कल्पनिक दृष्टि को वास्तविकता में परिवर्तित किया जा सके। यदि व्यक्ति का मन शांत हो, शरीर विश्राम अवस्था में हो तथा आँखें बंद हों तो मानस-प्रक्षेपण सरल होता है।
  5. संज्ञानात्मक व्यावहारात्मक तकनीकें : इस उपागम का सार यह है कि व्यक्ति के नकारात्मक तथा अविवेकी विचारों के स्थान पर सकारात्मक तथा सविवेक विचार प्रतिस्थापित कर दिए जाएँ। इसके तीन प्रमुख चरण हैं – मूल्यांकन, दबाव न्यूनीकरण तकनीकें अनुप्रयोग एवं अनुवर्ती कार्यवाही  
  6. व्यायाम : दबाव के प्रति अनुक्रिया के बाद अनुभव किए गए शारीरिकक्रियात्मक भाव-प्रबोधन के लिए व्यायाम एक सक्रिय निर्गम-मार्ग प्रदान कर सकता है। नियमित व्यायाम के द्वारा हृदय की दक्षता में सुधार होता है।
  7. विचार विराम : मन में अनावश्यक विचार आने पर उन्हें तुरंत रोकना, इस तकनीक की बार-बार अभ्यास की जरुरत होती है।
  8. समय प्रबंधन : इससे उत्पन्न तनाव को गतिविधियों को योजना बनाकर एवं प्राथमिकता देकर दूर किया जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) मानसिक स्वास्थ्य को ‘हित की स्थिति‘ के रूप में परिभाषित करता है जिसमें व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास होता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक और लाभदायक तरीके से काम कर सकता है और उसका अपने जीवन में समृद्धि में योगदान देने में सक्षम होता है।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ:

  • सुखमय जीवन बनाए रखने के लिए आयुर्वेद चार पहलुओं पर गौर  करता है जो की आहार, आचार, विचार, विहार हैं, मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति 
    • उसमें समायोजन करने की क्षमता होती है।
    • उसे व्यक्तिगत क्षमता की समझ है और वह स्वयं को सार्थक और महत्वपूर्ण महसूस करता है।
    • वह अपनी समस्याओं को बड़े पैमाने पर अपने प्रयास से हल करता है और अपने निर्णय स्वयं लेता है।
    • उसमें जिम्मेदारी की भावना होती है।
    • प्रेम देने और स्वीकार करने की क्षमता रखता है।
    • वह कल्पना की बजाय वास्तविकता की दुनिया में रहता है।
    • वह अपने व्यवहार में भावनात्मक परिपक्वता दिखाता है, और अपने दैनिक जीवन में हताशा और निराशा को सहन करने की क्षमता विकसित करता है।
    • उसकी विभिन्न प्रकार की रुचियाँ होती हैं, और आम तौर पर वह काम, आराम और मनोरंजन का एक संतुलित जीवन जीता है।

कमजोर मानसिक स्वास्थ्य के सूचक :

STRESS AND MANAGEMENT
  • भ्रमित सोच (Confused thinking)
  • आक्रामकता (Aggression)
  • आत्महत्या के विचार 
  • लंबे समय तक अवसाद (Prolonged depression)
  • अधिक या कम सोना 
  • बार-बार मनोदशा में परिवर्तन 
  • अनियमित और अस्वाभाविक शारीरिक स्थितियाँ (उदाहरण स्वरूप रक्त चाप, हृदय की धड़कन, स्पंदन दर)
  • ऐसी चीज़ें देखना या सुनना जो वास्तव में नहीं हैं। (मतिभ्रम) 
  • निर्णय लेने में कठिनाई ।
  • कम बात करना और सामाजिक गतिविधियों से बचना।

ख़राब मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़िम्मेदार कारक  :

  • पहले से प्रवृत्त होने के कारक : ये कारक किसी व्यक्ति की मानसिक बीमारी के प्रति संवेदनशीलता को निर्धारित करते हैं। ये प्रेरक कारकों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं जिसके परिणामस्वरूप मानसिक बीमारी होती है।
    • प्रतिकूल मनो-सामाजिक प्रभाव
  • अनपेक्षित कारक : ये वे घटनाएँ हैं जो किसी विकार की शुरुआत से कुछ समय पहले घटित होती हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने इसे प्रेरित किया है।
    • शारीरिक तनाव
    • मनो-सामाजिक तनाव
  • अविरत कारक : ये कारक एक व्यक्ति में पहले से मौजूद बीमारियों को बढ़ाने या लंबा करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। मनो-सामाजिक तनाव इसका एक उदाहरण है। इस प्रकार, मानसिक बीमारी के एटियोलॉजिकल कारक हो सकते हैं:
    • जैविक कारक: आनुवंशिकता, मस्तिष्क क्षति
    • शारीरिक परिवर्तन: जीवन के कुछ महत्वपूर्ण समय पर होते हैं, अर्थात् – यौवन, मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव, जन्म के बाद का समय।
    • मनोवैज्ञानिक कारक: कुछ विशिष्ट व्यक्तित्व प्रकारों, विवाह संबंधी समस्याएँ इत्यादि 
    • सामाजिक कारक: ग़रीबी, बेरोज़गारी, अन्याय ।

मानसिक स्वास्थ्य का प्रोत्साहन

WHO के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित तरीक़े अपनाने चाहिए ।

  • प्रारंभिक बचपन में मध्यवर्ती भूमिका (उदाहरण के लिए एक स्थिर वातावरण प्रदान करना, ख़तरों से सुरक्षा, प्रारंभिक शिक्षा के अवसर और बातचीत जो उत्तरदायी, भावनात्मक रूप से सहायक और विकासात्मक रूप से प्रेरक हो)।
  • बच्चों को समर्थन (जैसे जीवन कौशल कार्यक्रम, बाल और युवा विकास कार्यक्रम)।
  • महिलाओं का सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण (शिक्षा और माइक्रोक्रेडिट योजनाओं तक पहुँच में सुधार)।
  • स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य प्रचार गतिविधियाँ (उदाहरण के लिए स्कूलों में सहायक पारिस्थितिक परिवर्तनों से जुड़े कार्यक्रम)।
  • बुज़ुर्गों के लिए सामाजिक समर्थन (बुज़ुर्गों के लिए दोस्ती की पहल, समुदाय और दिवस केंद्र)।
  • कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप (जैसे तनाव निवारण कार्यक्रम)।
  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम (एकीकृत ग्रामीण विकास)।
  • हिंसा रोकथाम कार्यक्रम (उदाहरण: शराब की उपलब्धता और हथियारों तक पहुँच को कम करना)।

FAQ (Previous year questions)

बिंदुप्रतिगमन  उदात्तीकरण 
अर्थतनाव में बालसुलभ या पूर्व अवस्था के व्यवहार में लौट जाना।अस्वीकार्य इच्छाओं को सामाजिक रूप से उपयोगी कार्यों में बदलना।
प्रतिक्रिया का स्वरूपअपरिपक्व और कम अनुकूलनशील।परिपक्व और अत्यधिक अनुकूलनशील।
परिणामअस्थायी राहत, लेकिन कोई रचनात्मक समाधान नहीं।सकारात्मक व्यक्तिगत विकास और सामाजिक लाभ।
उदाहरणअसफलता पर वयस्क का रोना या गुस्सा करना।आक्रोश को खेल या कला में लगाना।
  • सामाजिक पुन: समायोजन निर्धारण मापनी  (SRRS), जिसे थॉमस होल्म्स और रिचर्ड राहे ने 1967 में विकसित किया, जीवन की घटनाओं के आधार पर तनाव के स्तर को मापने वाला एक अग्रणी उपकरण है।
  • SRRS जीवन परिवर्तन इकाइयों (LCUs) के माध्यम से तनाव को मापता है, जिसमें विवाह, नौकरी छूटने, या किसी प्रियजन की मृत्यु जैसी विभिन्न जीवन परिवर्तनों को अंक दिए जाते हैं।
  • SRRS पर उच्च अंक प्राप्त करने वाला व्यक्ति, कम अंक वाले व्यक्ति की तुलना में तनाव-संबंधी बीमारियों का अधिक जोखिम रखता है।

मनोवैज्ञानिक सुजैन कोबासा के अनुसार, तनाव-प्रतिरोधी व्यक्तित्व उन लोगों को दर्शाता है जो उच्च स्तर के तनाव का सामना करते हैं, लेकिन बीमारियों से कम प्रभावित होते हैं। इन व्यक्तियों में दृढ़ता (हार्डिनेस) नामक मनोवैज्ञानिक गुण होता है, जो “तीन C” (तीन गुणों) द्वारा परिभाषित है:

  • प्रतिबद्धता : कार्य, परिवार और सामाजिक जीवन में सक्रिय रूप से जुड़े रहना।
  • नियंत्रण : जीवन की घटनाओं और परिणामों को प्रभावित करने की अपनी क्षमता पर विश्वास।
  • चुनौती : तनाव को खतरे के बजाय विकास के अवसर के रूप में देखना।

ये गुण व्यक्तियों को तनाव का प्रभावी ढंग से सामना करने और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।

संवेग केन्द्रित एवं समस्या केन्द्रित समायोजनात्मक रणनीतियों के मध्य अन्तर

संवेग केन्द्रितसमस्या केन्द्रित
ये रणनीतियाँ मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों की मांग करती हैं, जो मुख्य रूप से किसी घटना के कारण होने वाले भावनात्मक व्यवधान की सीमा को सीमित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं, जिसमें घटना को बदलने के लिए न्यूनतम प्रयास शामिल हैं।ये रणनीतियाँ समस्या पर ही हमला करती हैं, व्यवहार के ज़रिए जानकारी हासिल करने, घटना को बदलने और विश्वास और प्रतिबद्धताओं को बदलने के लिए डिज़ाइन किया जाता है।
इनका उपयोग तब किया जाता है जब तनाव अनियंत्रित होता हैइनका इस्तेमाल तब किया जाता है जब तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है
इन रणनीतियों का उद्देश्य भावनात्मक प्रभाव को कम करना हैइन रणनीतियों का उद्देश्य तनाव के स्रोत को हटाना या कम करना है
ये अल्पकालिक राहत प्रदान करते हैंये दीर्घकालिक समाधान प्रदान करते हैं
ये तब प्रभावी होते हैं जब समस्या को बदला नहीं जा सकता।ये तब प्रभावी होते हैं जब कार्रवाई समस्या के स्रोत को हल कर सकती है या कम कर सकती है।
ध्यान, व्यायाम, ध्यान भटकाने से मदद मिल सकती है।मदद मांगना, आदतें बदलना, समस्या को ठीक करने के लिए कदम उठाना।

तनाव के स्त्रोत

  1. जीवन घटनाएँ : हम रोज़मर्रा के छोटे-मोटे बदलावों से निपटना सीख जाते हैं, लेकिन जीवन की बड़ी घटनाएँ तनावपूर्ण हो सकती हैं, क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचाती हैं। उदाहरण के लिए, किसी लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते का टूटना।
  2. परेशान करने वाली घटनाएँ : ये व्यक्तिगत तनाव हैं, जो हम अपने दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं जैसे शोरगुल, आवागमन, झगड़ालू पड़ोसी, ट्रैफ़िक जाम के कारण झेलते हैं।
  3. अभिघातज घटनाएँ : इनमें आग, ट्रेन या सड़क दुर्घटना, डकैती, भूकंप, सुनामी आदि जैसी कई चरम घटनाओं में शामिल होना शामिल है। इन घटनाओं के प्रभाव कुछ समय के अंतराल के बाद हो सकते हैं। कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिंता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के  रूप में सतत रूप से बने रहते हैं 
  • कार्य-उन्मुख रणनीति: इसमें तनावपूर्ण स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना और कार्रवाई के वैकल्पिक तरीकों और उनके संभावित परिणामों के बारे में जानकारी प्राप्त करना शामिल है; इसमें प्राथमिकताएँ तय करना और तनावपूर्ण स्थिति से सीधे निपटने के लिए कार्य करना भी शामिल है। उदाहरण के लिए, समय को बेहतर ढंग से शेड्यूल करना।
  • संवेग-उन्मुख रणनीति: इसमें आशा बनाए रखने और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के प्रयास शामिल हो सकते हैं; इसमें क्रोध और निराशा की भावनाओं को बाहर निकालना भी शामिल हो सकता है। उदाहरण के लिए, खुद से कहें कि यह वास्तव में मेरे साथ नहीं हो रहा है।
  • परिहार-उन्मुख रणनीति: इसमें स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम करना शामिल है; इसमें तनावपूर्ण विचारों को जानबूझकर दबाना और उनकी जगह आत्म-सुरक्षात्मक विचार लाना भी शामिल है। इसके उदाहरण हैं टीवी देखना, किसी दोस्त को फ़ोन करना।

सामान्य अनुकूलन सिड्रोम

हंस सेली द्वारा विकसित सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम बताता है कि जब हमारा शरीर दीर्घकालिक तनाव का सामना करता है तो वह किस तरह प्रतिक्रिया करता है। इसमें तीन चरण शामिल हैं जो तनावपूर्ण स्थिति से निपटने के दौरान शरीर अनुभव करता है।

सामान्य अनुकूलन सिड्रोम
  • सचेत प्रतिक्रिया चरण : यह एक अलार्मिंग चरण है, जो व्यक्ति को स्थिति से भागने या उसका सामना करने के लिए तैयार करता है। इस चरण के दौरान व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय गति और मांसपेशियों की ताकत प्रभावित हो सकती है।
  • प्रतिरोध चरण : यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। लड़ाई या उड़ान प्रतिक्रिया के बाद शरीर पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम की मदद से खुद की मरम्मत करना शुरू कर देता है और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की कोशिश करता है।
  • परिश्रांति चरण : यदि प्रतिरोध चरण के बाद भी तनाव कारक मौजूद रहता है तो यह परिश्रांति चरण की ओर ले जाता है। इसे किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योकि, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, एवं जीव तनाव-प्रेरित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
  1. संतुलित आहार और उचित पोषण: स्वस्थ भोजन खाने से शरीर को वे पोषक तत्व मिलते हैं जिनकी उसे मजबूत बने रहने, बीमारी से लड़ने और दिमाग और शरीर दोनों को अच्छी तरह से काम करने के लिए ज़रूरत होती है। 
  2. नियमित शारीरिक व्यायाम: नियमित शारीरिक व्यायाम करने से एंडोर्फिन का स्राव उत्तेजित होता है, तनाव कम होता है, नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है और समग्र शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति में योगदान होता है। 
  3. पर्याप्त नींद: प्रतिदिन 7-8 घंटे की अच्छी नींद लेने से मस्तिष्क को अच्छी तरह से काम करने में मदद मिलती है, मूड अच्छा होता है और एकाग्रता और याददाश्त बढ़ती है। 
  4. सकारात्मक सोच और आशावाद: एक सकारात्मक मानसिकता व्यक्ति के भावनात्मक लचीलेपन को बढ़ाती है, प्रेरणा को बनाए रखती है और जीवन की प्रतिकूलताओं से प्रभावी ढंग से निपटने की उनकी क्षमता में सुधार करती है। 
  5. सामाजिक समर्थन और संबंध: परिवार, साथियों और व्यापक समुदाय के साथ मजबूत पारस्परिक संबंध भावनात्मक लचीलेपन के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम करते हैं, अकेलेपन की भावनाओं को कम करते हैं और मनोवैज्ञानिक कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  6. तनाव प्रबंधन: तनाव को प्रबंधित करने का मतलब इससे बचना नहीं है – इसका मतलब है तनाव को दूर करने के लिए स्वस्थ तरीके खोजना, जैसे गहरी साँस लेना, टहलने जाना या कुछ ऐसा करना जो आपको पसंद हो। 
  7. सार्थक लक्ष्य और उद्देश्य: ऐसी गतिविधियों में भाग लेना जो उद्देश्य या व्यक्तिगत संतुष्टि की भावना प्रदान करती हैं, जैसे परोपकारी व्यवहार या सार्थक लक्ष्यों की खोज, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और जीवन संतुष्टि में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती है। 
  8. हानिकारक आदतों से बचना: शराब, धूम्रपान और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से दूर रहना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को सुरक्षित रखता है।
  • हंस सेली द्वारा विकसित सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम बताता है कि जब हमारा शरीर दीर्घकालिक तनाव का सामना करता है तो वह किस तरह प्रतिक्रिया करता है। इसमें तीन चरण शामिल हैं जो तनावपूर्ण स्थिति से निपटने के दौरान शरीर अनुभव करता है।
सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम
  • सचेत प्रतिक्रिया चरण : यह एक अलार्मिंग चरण है, जो व्यक्ति को स्थिति से भागने या उसका सामना करने के लिए तैयार करता है। इस चरण के दौरान व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय गति और मांसपेशियों की ताकत प्रभावित हो सकती है।
  • प्रतिरोध चरण : यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। लड़ाई या उड़ान प्रतिक्रिया के बाद शरीर पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम की मदद से खुद की मरम्मत करना शुरू कर देता है और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की कोशिश करता है।
  • परिश्रांति चरण : यदि प्रतिरोध चरण के बाद भी तनाव कारक मौजूद रहता है तो यह परिश्रांति चरण की ओर ले जाता है। इसे किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योकि, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, एवं जीव तनाव-प्रेरित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

सकारात्मक स्वास्थ्य और खुशहाली  का मतलब सिर्फ़ बीमार न होना नहीं है। इसका मतलब है शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से एक पूर्ण, संतुलित जीवन जीना। यह एक पूर्ण अवस्था है जहाँ व्यक्ति अच्छा महसूस करता है, अच्छी तरह से काम कर सकता है और जीवन की रोज़मर्रा की चुनौतियों का सामना कर सकता है। 

मुख्य आयामों में शामिल हैं: 

  1. शारीरिक तंदुरुस्ती की विशेषता है निरंतर ऊर्जा स्तर, संतुलित पोषण सेवन, नियमित व्यायाम और शारीरिक बीमारी की अनुपस्थिति या न्यूनतम घटना।
  2.  मानसिक तंदुरुस्ती का मतलब है सकारात्मक दृष्टिकोण रखना, खुद पर विश्वास करना और यह जानना कि जीवन कठिन होने पर कैसे शांत और संतुलित रहना है। 
  3. भावनात्मक स्थिरता का मतलब है संतुलित और रचनात्मक तरीके से अपनी भावनाओं को पहचानने, उचित रूप से व्यक्त करने और प्रबंधित करने की क्षमता, खासकर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के दौरान। 
  4. सामाजिक स्वास्थ्य का मतलब है सार्थक, सहायक संबंध बनाने और बनाए रखने की क्षमता और अपने समुदाय या सामाजिक नेटवर्क के भीतर अपनेपन की भावना का अनुभव करना।
  • प्रतिबल किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप  में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामना करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है।
  • स्ट्रेस एक गतिशील मानसिक/संज्ञानात्मक स्थिति है।
  • यह अस्थायी-दीर्घकालिक या गंभीर-मामूली हो सकता है।
  • समस्या – केंद्रित निराकरण उन रणनीतियों को संदर्भित करता है जिनका उद्देश्य तनाव के मूल कारण को संशोधित या समाप्त करके संबोधित करना होता है। यह दृष्टिकोण तब प्रभावी माना जाता है जब व्यक्ति का स्थिति पर नियंत्रण होता है। उदाहरण: योजना बनाना, समस्या-समाधान करना, निर्णय लेना और सहायक सहायता प्राप्त करना।
  • भावना – केंद्रित निराकरण में ऐसी रणनीतियाँ शामिल हैं जिनका उद्देश्य तनाव को बदलने के बजाय तनाव के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को प्रबंधित करना है। यह विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब व्यक्ति स्थिति को बेकाबू या अपरिवर्तनीय मानता है। उदाहरण: किसी मित्र से बात करना, रोना, ध्यान लगाना या जर्नल में लिखना। 
  • परिहार (या पलायन) निराकरण का अर्थ है तनाव से निपटने के बजाय उससे बचने या भागने की कोशिश करना। लोग ध्यान भटकाने वाली चीज़ों का उपयोग करते हैं या समस्या के बारे में नहीं सोचने की कोशिश करते हैं। उदाहरण: समस्या को अनदेखा करना, टीवी देखना, अधिक सोना या भावनाओं को दबाने के लिए शराब जैसे पदार्थों का उपयोग करना। 
  • शारीरिक निराकरण का अर्थ है तनाव को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए अपने शरीर का उपयोग करना। यह उन क्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो आपकी शारीरिक स्थिति को बेहतर बनाती हैं, जो बदले में आपके दिमाग को भी बेहतर महसूस करने में मदद करती हैं। उदाहरण: व्यायाम, नींद, गहरी साँस लेना, स्ट्रेचिंग, स्वस्थ भोजन करना।
प्रतिगमन और उदात्तीकरण में अन्तर कीजिए। (अंक – 2 M, 2024)

बिंदु
प्रतिगमन  
उदात्तीकरण 
अर्थ
तनाव में बालसुलभ या पूर्व अवस्था के व्यवहार में लौट जाना।
अस्वीकार्य इच्छाओं को सामाजिक रूप से उपयोगी कार्यों में बदलना।
प्रतिक्रिया का स्वरूप
अपरिपक्व और कम अनुकूलनशील।
परिपक्व और अत्यधिक अनुकूलनशील।
परिणाम
अस्थायी राहत, लेकिन कोई रचनात्मक समाधान नहीं।
सकारात्मक व्यक्तिगत विकास और सामाजिक लाभ।
उदाहरण
असफलता पर वयस्क का रोना या गुस्सा करना।
आक्रोश को खेल या कला में लगाना।

सामाजिक पुन: समायोजन निर्धारण मापनी क्या है ? (अंक – 2 M, 2024)

सामाजिक पुन: समायोजन निर्धारण मापनी  (SRRS), जिसे थॉमस होल्म्स और रिचर्ड राहे ने 1967 में विकसित किया, जीवन की घटनाओं के आधार पर तनाव के स्तर को मापने वाला एक अग्रणी उपकरण है।
SRRS जीवन परिवर्तन इकाइयों (LCUs) के माध्यम से तनाव को मापता है, जिसमें विवाह, नौकरी छूटने, या किसी प्रियजन की मृत्यु जैसी विभिन्न जीवन परिवर्तनों को अंक दिए जाते हैं।
SRRS पर उच्च अंक प्राप्त करने वाला व्यक्ति, कम अंक वाले व्यक्ति की तुलना में तनाव-संबंधी बीमारियों का अधिक जोखिम रखता है।

तनाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व क्या होता है ? (अंक – 2 M, 2024)

मनोवैज्ञानिक सुजैन कोबासा के अनुसार, तनाव-प्रतिरोधी व्यक्तित्व उन लोगों को दर्शाता है जो उच्च स्तर के तनाव का सामना करते हैं, लेकिन बीमारियों से कम प्रभावित होते हैं। इन व्यक्तियों में दृढ़ता (हार्डिनेस) नामक मनोवैज्ञानिक गुण होता है, जो “तीन C” (तीन गुणों) द्वारा परिभाषित है:
प्रतिबद्धता : कार्य, परिवार और सामाजिक जीवन में सक्रिय रूप से जुड़े रहना।
नियंत्रण : जीवन की घटनाओं और परिणामों को प्रभावित करने की अपनी क्षमता पर विश्वास।
चुनौती : तनाव को खतरे के बजाय विकास के अवसर के रूप में देखना।
ये गुण व्यक्तियों को तनाव का प्रभावी ढंग से सामना करने और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।

तनाव को कम करने हेतु अपनाई जाने वाली संवेग केन्द्रित एवं समस्या केन्द्रित समायोजनात्मक रणनीतियों के मध्य अन्तर कीजिए । (अंक – 5 M, 2023)

संवेग केन्द्रित एवं समस्या केन्द्रित समायोजनात्मक रणनीतियों के मध्य अन्तर
संवेग केन्द्रित
समस्या केन्द्रित
ये रणनीतियाँ मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों की मांग करती हैं, जो मुख्य रूप से किसी घटना के कारण होने वाले भावनात्मक व्यवधान की सीमा को सीमित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं, जिसमें घटना को बदलने के लिए न्यूनतम प्रयास शामिल हैं।
ये रणनीतियाँ समस्या पर ही हमला करती हैं, व्यवहार के ज़रिए जानकारी हासिल करने, घटना को बदलने और विश्वास और प्रतिबद्धताओं को बदलने के लिए डिज़ाइन किया जाता है।
इनका उपयोग तब किया जाता है जब तनाव अनियंत्रित होता है
इनका इस्तेमाल तब किया जाता है जब तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है
इन रणनीतियों का उद्देश्य भावनात्मक प्रभाव को कम करना है
इन रणनीतियों का उद्देश्य तनाव के स्रोत को हटाना या कम करना है
ये अल्पकालिक राहत प्रदान करते हैं
ये दीर्घकालिक समाधान प्रदान करते हैं
ये तब प्रभावी होते हैं जब समस्या को बदला नहीं जा सकता।
ये तब प्रभावी होते हैं जब कार्रवाई समस्या के स्रोत को हल कर सकती है या कम कर सकती है।
ध्यान, व्यायाम, ध्यान भटकाने से मदद मिल सकती है।
मदद मांगना, आदतें बदलना, समस्या को ठीक करने के लिए कदम उठाना।

तनाव के स्त्रोत बताइए । (अंक – 2 M, 2021)

तनाव के स्त्रोत
जीवन घटनाएँ : हम रोज़मर्रा के छोटे-मोटे बदलावों से निपटना सीख जाते हैं, लेकिन जीवन की बड़ी घटनाएँ तनावपूर्ण हो सकती हैं, क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचाती हैं। उदाहरण के लिए, किसी लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते का टूटना।
परेशान करने वाली घटनाएँ : ये व्यक्तिगत तनाव हैं, जो हम अपने दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं जैसे शोरगुल, आवागमन, झगड़ालू पड़ोसी, ट्रैफ़िक जाम के कारण झेलते हैं।
अभिघातज घटनाएँ : इनमें आग, ट्रेन या सड़क दुर्घटना, डकैती, भूकंप, सुनामी आदि जैसी कई चरम घटनाओं में शामिल होना शामिल है। इन घटनाओं के प्रभाव कुछ समय के अंतराल के बाद हो सकते हैं। कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिंता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के  रूप में सतत रूप से बने रहते हैं 

तनाव प्रबन्धन की युक्तियों को समझाइए । (अंक – 5 M, 2021)

कार्य-उन्मुख रणनीति: इसमें तनावपूर्ण स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करना और कार्रवाई के वैकल्पिक तरीकों और उनके संभावित परिणामों के बारे में जानकारी प्राप्त करना शामिल है; इसमें प्राथमिकताएँ तय करना और तनावपूर्ण स्थिति से सीधे निपटने के लिए कार्य करना भी शामिल है। उदाहरण के लिए, समय को बेहतर ढंग से शेड्यूल करना।
संवेग-उन्मुख रणनीति: इसमें आशा बनाए रखने और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के प्रयास शामिल हो सकते हैं; इसमें क्रोध और निराशा की भावनाओं को बाहर निकालना भी शामिल हो सकता है। उदाहरण के लिए, खुद से कहें कि यह वास्तव में मेरे साथ नहीं हो रहा है।
परिहार-उन्मुख रणनीति: इसमें स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम करना शामिल है; इसमें तनावपूर्ण विचारों को जानबूझकर दबाना और उनकी जगह आत्म-सुरक्षात्मक विचार लाना भी शामिल है। इसके उदाहरण हैं टीवी देखना, किसी दोस्त को फ़ोन करना।

सामान्य अनुकूलन संलक्षण क्‍या है ? (अंक – 2 M, 2018)

सामान्य अनुकूलन सिड्रोम
हंस सेली द्वारा विकसित सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम बताता है कि जब हमारा शरीर दीर्घकालिक तनाव का सामना करता है तो वह किस तरह प्रतिक्रिया करता है। इसमें तीन चरण शामिल हैं जो तनावपूर्ण स्थिति से निपटने के दौरान शरीर अनुभव करता है।
सामान्य अनुकूलन सिड्रोम
सचेत प्रतिक्रिया चरण : यह एक अलार्मिंग चरण है, जो व्यक्ति को स्थिति से भागने या उसका सामना करने के लिए तैयार करता है। इस चरण के दौरान व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय गति और मांसपेशियों की ताकत प्रभावित हो सकती है।
प्रतिरोध चरण : यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। लड़ाई या उड़ान प्रतिक्रिया के बाद शरीर पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम की मदद से खुद की मरम्मत करना शुरू कर देता है और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की कोशिश करता है।
परिश्रांति चरण : यदि प्रतिरोध चरण के बाद भी तनाव कारक मौजूद रहता है तो यह परिश्रांति चरण की ओर ले जाता है। इसे किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योकि, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, एवं जीव तनाव-प्रेरित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

कौन से कारक सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशलक्षेम को बढ़ाते हैं ? (अंक – 5 M, 2018)

संतुलित आहार और उचित पोषण: स्वस्थ भोजन खाने से शरीर को वे पोषक तत्व मिलते हैं जिनकी उसे मजबूत बने रहने, बीमारी से लड़ने और दिमाग और शरीर दोनों को अच्छी तरह से काम करने के लिए ज़रूरत होती है। 
नियमित शारीरिक व्यायाम: नियमित शारीरिक व्यायाम करने से एंडोर्फिन का स्राव उत्तेजित होता है, तनाव कम होता है, नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है और समग्र शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति में योगदान होता है। 
पर्याप्त नींद: प्रतिदिन 7-8 घंटे की अच्छी नींद लेने से मस्तिष्क को अच्छी तरह से काम करने में मदद मिलती है, मूड अच्छा होता है और एकाग्रता और याददाश्त बढ़ती है। 
सकारात्मक सोच और आशावाद: एक सकारात्मक मानसिकता व्यक्ति के भावनात्मक लचीलेपन को बढ़ाती है, प्रेरणा को बनाए रखती है और जीवन की प्रतिकूलताओं से प्रभावी ढंग से निपटने की उनकी क्षमता में सुधार करती है। 
सामाजिक समर्थन और संबंध: परिवार, साथियों और व्यापक समुदाय के साथ मजबूत पारस्परिक संबंध भावनात्मक लचीलेपन के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम करते हैं, अकेलेपन की भावनाओं को कम करते हैं और मनोवैज्ञानिक कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
तनाव प्रबंधन: तनाव को प्रबंधित करने का मतलब इससे बचना नहीं है – इसका मतलब है तनाव को दूर करने के लिए स्वस्थ तरीके खोजना, जैसे गहरी साँस लेना, टहलने जाना या कुछ ऐसा करना जो आपको पसंद हो। 
सार्थक लक्ष्य और उद्देश्य: ऐसी गतिविधियों में भाग लेना जो उद्देश्य या व्यक्तिगत संतुष्टि की भावना प्रदान करती हैं, जैसे परोपकारी व्यवहार या सार्थक लक्ष्यों की खोज, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और जीवन संतुष्टि में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती है। 
हानिकारक आदतों से बचना: शराब, धूम्रपान और नशीली दवाओं के दुरुपयोग से दूर रहना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को सुरक्षित रखता है।

सामान्य अनुकूलन संलक्षण की व्याख्या कीजिए। (अंक – 2 M, 2016)

हंस सेली द्वारा विकसित सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम बताता है कि जब हमारा शरीर दीर्घकालिक तनाव का सामना करता है तो वह किस तरह प्रतिक्रिया करता है। इसमें तीन चरण शामिल हैं जो तनावपूर्ण स्थिति से निपटने के दौरान शरीर अनुभव करता है।
सामान्य अनुकूलन सिंड्रोम
सचेत प्रतिक्रिया चरण : यह एक अलार्मिंग चरण है, जो व्यक्ति को स्थिति से भागने या उसका सामना करने के लिए तैयार करता है। इस चरण के दौरान व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय गति और मांसपेशियों की ताकत प्रभावित हो सकती है।
प्रतिरोध चरण : यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। लड़ाई या उड़ान प्रतिक्रिया के बाद शरीर पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम की मदद से खुद की मरम्मत करना शुरू कर देता है और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की कोशिश करता है।
परिश्रांति चरण : यदि प्रतिरोध चरण के बाद भी तनाव कारक मौजूद रहता है तो यह परिश्रांति चरण की ओर ले जाता है। इसे किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योकि, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, एवं जीव तनाव-प्रेरित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

सकारात्मक स्वास्थ्य और खुशहाली से आप क्‍या समझते हैं ? (अंक – 5 M, 2016)

सकारात्मक स्वास्थ्य और खुशहाली  का मतलब सिर्फ़ बीमार न होना नहीं है। इसका मतलब है शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से एक पूर्ण, संतुलित जीवन जीना। यह एक पूर्ण अवस्था है जहाँ व्यक्ति अच्छा महसूस करता है, अच्छी तरह से काम कर सकता है और जीवन की रोज़मर्रा की चुनौतियों का सामना कर सकता है। 
मुख्य आयामों में शामिल हैं: 
शारीरिक तंदुरुस्ती की विशेषता है निरंतर ऊर्जा स्तर, संतुलित पोषण सेवन, नियमित व्यायाम और शारीरिक बीमारी की अनुपस्थिति या न्यूनतम घटना।
 मानसिक तंदुरुस्ती का मतलब है सकारात्मक दृष्टिकोण रखना, खुद पर विश्वास करना और यह जानना कि जीवन कठिन होने पर कैसे शांत और संतुलित रहना है। 
भावनात्मक स्थिरता का मतलब है संतुलित और रचनात्मक तरीके से अपनी भावनाओं को पहचानने, उचित रूप से व्यक्त करने और प्रबंधित करने की क्षमता, खासकर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के दौरान। 
सामाजिक स्वास्थ्य का मतलब है सार्थक, सहायक संबंध बनाने और बनाए रखने की क्षमता और अपने समुदाय या सामाजिक नेटवर्क के भीतर अपनेपन की भावना का अनुभव करना।

प्रतिबल क्‍या है? (अंक – 2 M, 2016 Special Exam)

प्रतिबल किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप  में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामना करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है।
स्ट्रेस एक गतिशील मानसिक/संज्ञानात्मक स्थिति है।
यह अस्थायी-दीर्घकालिक या गंभीर-मामूली हो सकता है।

तनाव प्रबंधन के विभिन्‍न साधकों का विश्लेषण कीजिए। (अंक – 5 M, 2016 Special Exam)

समस्या – केंद्रित निराकरण उन रणनीतियों को संदर्भित करता है जिनका उद्देश्य तनाव के मूल कारण को संशोधित या समाप्त करके संबोधित करना होता है। यह दृष्टिकोण तब प्रभावी माना जाता है जब व्यक्ति का स्थिति पर नियंत्रण होता है। उदाहरण: योजना बनाना, समस्या-समाधान करना, निर्णय लेना और सहायक सहायता प्राप्त करना।
भावना – केंद्रित निराकरण में ऐसी रणनीतियाँ शामिल हैं जिनका उद्देश्य तनाव को बदलने के बजाय तनाव के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को प्रबंधित करना है। यह विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब व्यक्ति स्थिति को बेकाबू या अपरिवर्तनीय मानता है। उदाहरण: किसी मित्र से बात करना, रोना, ध्यान लगाना या जर्नल में लिखना। 
परिहार (या पलायन) निराकरण का अर्थ है तनाव से निपटने के बजाय उससे बचने या भागने की कोशिश करना। लोग ध्यान भटकाने वाली चीज़ों का उपयोग करते हैं या समस्या के बारे में नहीं सोचने की कोशिश करते हैं। उदाहरण: समस्या को अनदेखा करना, टीवी देखना, अधिक सोना या भावनाओं को दबाने के लिए शराब जैसे पदार्थों का उपयोग करना। 
शारीरिक निराकरण का अर्थ है तनाव को प्रबंधित करने में मदद करने के लिए अपने शरीर का उपयोग करना। यह उन क्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो आपकी शारीरिक स्थिति को बेहतर बनाती हैं, जो बदले में आपके दिमाग को भी बेहतर महसूस करने में मदद करती हैं। उदाहरण: व्यायाम, नींद, गहरी साँस लेना, स्ट्रेचिंग, स्वस्थ भोजन करना।

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