प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास

प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास, खेल और योग विषय के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण विषय है, जो खेलते समय या योगाभ्यास के दौरान होने वाली चोटों की तत्काल देखभाल और ठीक होने की प्रक्रिया से जुड़ा है। यह न केवल खिलाड़ी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है बल्कि उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को भी संतुलित बनाए रखने में सहायक होता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023मोच व खिंचाव को परिभाषित करते हुए इसके परस्पर अंतर को लिखिए !2M
2021खेलों में पुनर्स्थापन क्या है? टी.ई.एन.एस. चिकित्सा को परिभाषित कीजिए।5M
2018‘ग्रीन स्टिक फ्रैक्चर’ के संदर्भ में बताइए ।2M

“दुर्घटना स्थल पर चिकित्सक को आने से पूर्व दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को जो चिकित्सकीय सहायता प्रदान की जाती है वह प्राथमिक चिकित्सा कहलाती है।”किसी  रोग के होने या चोट लगने पर किसी प्रशिक्षित/अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा उस समय (उस जगह) उपलब्ध संसाधनोंद्वारा जो सीमित उपचार किया जाता है, उसे प्राथमिक उपचार कहते  हैं। यह कम से कम संसाधनों में किया गया सरल उपचार है जो कभी-कभी जीवन रक्षक भी सिद्ध होता है।

खेलों में प्राथमिक उपचार के उद्देश्यः

प्राथमिक चिकित्सा देने से प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. घायल व्यक्ति की तत्काल सहायता देना: घायल व्यक्ति की वास्तविक चिकित्सा तो चिकित्सक ही करता है, लेकिन चिकित्सक तक पहुंचने के लिए घायल की स्थिति की गंभीरता से बचने के लिए यथासंभव तत्काल ही उपलब्ध साधनों के अनुसार उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करना प्राथमिक चिकित्सा का प्रथम उद्देश्य है।
  2. जीवन रक्षा करना: प्राथमिक चिकित्सा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य घायल व्यक्ति की जीवन रक्षा करना है। इसके लिए प्राथमिक चिकित्सक को अपनी सुझबूझ और विवेक से काम लेना होता है। उसे उसकी जीवन-रक्षा के लिए चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होने तक सभी प्रयत्न एवं उपाय करने चाहिए।
  3. दुर्घटना की गंभीरता को बढ़ने से रोकना तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति में आत्मबल संचार करना: प्राथमिक चिकित्सा करने वाला चिकित्सक नहीं होता। यह चिकित्सा केवल उतने ही समय के लिए की जाती है जब तक डॉक्टरी सहायता उपलब्ध न हो जाये। प्राथमिक चिकित्सा का कार्य आकस्मिक दुर्घटनाओं के अवसर पर तत्काल प्राप्त सामान के आधार पर रोगी का यथासमय उपचार करने से है।
  4. चोट को बढ़ने से रोकना एवं संक्रमण से बचाव।
  5. स्वास्थ्य लाभ को बढ़ावा।
  6. दर्द से छुटकारा।
  7. यदि चोट गंभीर है, तो यह सुनिश्चित करना की खिलाड़ी चिकित्सालय तक सुरक्षित पहुँचे।
सामग्री (Item)उपयोग (Use)
दर्द निवारक गोली (Pain Relief Tablets)सरदर्द, पेट दर्द, बुखार, जुकाम, खांसी, उल्टी, दस्त, ठंड लगने पर चक्कर आने पर दी जाने वाली दवा
अमृत धारा (Amrit Dhara)
पचनौल (Pachanoul)अपच, पेटदर्द
ग्लूकोज (Glucose)चक्कर आना, कमजोरी व ऊर्जा देने हेतु
बोरोलिन एवं अम्ल मलहम (Boro Line & Acid Ointment)घाव पर लगाने हेतु
बर्नोल, नारियल जैतून का तेल (Burnol, Coconut Olive Oil)जली त्वचा पर लगाने हेतु
ग्लिसरीन (Glycerin)मुँह में छालों के लिए
फिटकरी (Alum)घाव के बहते रक्त को रोकने हेतु
स्पिरिट, बोरिक पाउडर, टिंक्चर उपकरणों एवं घावों को सैनिटाइज करने हेतु
आयोडेक्स (Iodex)घाव रहित चोट पर हल्की मालिश हेतु
लैक्सूला और आइटन (L’aquila & Itan)आँखों के संक्रमण दूर करने हेतु
रूई का बंडल (Cotton Bundle)विभिन्न प्रकार की कॉटन उपयोग हेतु
नाखून कटर, ब्लेड लगा रेजर (Nail Cutter, Razor with Blade)नाखून एवं बाल काटने हेतु
खप्पची के टुकड़े (Pieces of Wood)अस्थि भंग होने की स्थिति में बाँधने हेतु
सूत की डोरी (Cotton Thread)पट्टी बाँधने व घावों को साफ करने हेतु
दियासलाई (Matchsticks)मोमबत्ती या गैस जलाने हेतु
चम्मच या गिलास (Spoon or Glass)पानी या दवा देने हेतु
अन्य दवाइयाँ (Other Medicines)पैरासिटामोल, कुइनिन, सेरीडॉन, बोरिक एसिड, आई ड्रॉप्स, पुदीना हरा, सोडा मिंट, कोडीन, बीटाडिन, गुलाब जल, ऐस्प्रो, नावाल्जिन, सफ्रोमाइसिन, निवासल पाउडर आदि बॉक्स में रखनी चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सक

वास्तव में, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और मानवता के नाते वह किसी भी प्रकार की दुर्घटना घटित होते ही उस स्थान पर उपस्थित व्यक्ति ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को यथासमय सहायता प्रदान कर सकता है। इस प्रकार, प्रत्येक व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सक की भूमिका निभा सकता है।

प्राथमिक चिकित्सक के गुण

प्राथमिक चिकित्सा में सफलता पूर्व चिकित्सा करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख गुणों का होना अति आवश्यक है, जिससे वह अपने दायित्वों का भलीभांति निर्वाह कर सके:

  1. अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत हृदय: प्राथमिक चिकित्सक का स्वास्थ्य और शारीरिक ताकत महत्वपूर्ण है ताकि वह संकट के समय सही तरीके से काम कर सके और घायल व्यक्ति की सहायता कर सके।
  2. प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान: प्राथमिक चिकित्सक को चिकित्सा संबंधी पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह स्थिति के अनुसार सही उपचार कर सके और किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपट सके।
  3. साधन सम्पन्न होना: साधनों की उपलब्धता और उचित उपकरण की आवश्यकता होती है ताकि किसी भी परिस्थिति में सही इलाज किया जा सके। एक अच्छा चिकित्सक हमेशा अपनी चिकित्सा किट को तैयार रखता है।
  4. सूझ और दूरदर्शिता: प्राथमिक चिकित्सक को समझदारी और दूरदर्शिता का पालन करना चाहिए ताकि वह भविष्य की समस्याओं से बच सके और त्वरित निर्णय ले सके, जिससे उपचार प्रभावी हो।
  5. तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता: प्राथमिक चिकित्सक को किसी भी स्थिति में तत्काल निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि स्थिति को गंभीर होने से पहले नियंत्रित किया जा सके और घायल व्यक्ति की मदद की जा सके।
  6. विवेकशीलता: प्राथमिक चिकित्सक को विवेकशील होना चाहिए, ताकि वह सही समय पर सही कार्रवाई कर सके और किसी भी प्रकार के नुकसान से बच सके। उसका विवेक उसे सही रास्ता दिखाता है।
  7. चतुर और दक्ष: प्राथमिक चिकित्सक को सावधानी और दक्षता से कार्य करना चाहिए, ताकि बिना समय गंवाए उपयुक्त उपचार किया जा सके और चिकित्सा प्रक्रिया प्रभावी हो।
  8. धैर्य और आशावादिता: प्राथमिक चिकित्सक को धैर्यवान और आशावादी होना चाहिए, ताकि वह तनावपूर्ण स्थितियों में भी शांत रहकर स्थिति को संभाल सके और घायल व्यक्ति को मानसिक रूप से भी सहारा दे सके।
  9. आत्मविश्वास: प्राथमिक चिकित्सक को आत्मविश्वासी होना चाहिए, ताकि वह आपातकालीन स्थिति में दृढ़ता से कार्य कर सके और घायल व्यक्ति की मदद करने में कोई संकोच न करे।
  10. स्थानीय भाषा का ज्ञान: प्राथमिक चिकित्सक को स्थानीय भाषा का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह घायल व्यक्ति से संवाद कर सके और स्थिति को सही तरीके से समझ सके, जिससे उपचार में आसानी हो।

तत्काल कार्रवाई :

  • प्रथम सहायक को जल्दी से एक कार्रवाई योजना बनानी चाहिए।
  • शांत रहें, धीरे-धीरे कार्य करें, और स्थिति को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए घबराहट से बचें।

चिकित्सा सहायता की कॉल करना :

  • निकटतम चिकित्सा इकाई को सबसे तेज़ संचार माध्यम से सूचित करें।
  • सुनिश्चित करें कि मरीज को एंबुलेंस में स्थानांतरित किया जाए या चोट या बीमारी की जगह से सुरक्षित रूप से हटाया जाए।

चिकित्सा चेतावनी उपकरण :

  • जो लोग दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं, उनके पास चिकित्सा चेतावनी उपकरण हों, जिसमें उनकी चिकित्सा इतिहास और आपातकालीन संपर्क जानकारी होती है।
  • प्रथम सहायकों को बेहतर सहायता प्रदान करने के लिए इन उपकरणों की जांच करनी चाहिए।

संदेह और मानसिक स्वास्थ्य

  • मरीज को आश्वस्त करना शारीरिक उपचार के रूप में महत्वपूर्ण है।
  • कुछ व्यक्ति सदमे में जा सकते हैं, जिससे स्थिति बिगड़ सकती है।
  • प्रथम सहायक को उन्हें शांत करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि तनाव और चिंता को कम किया जा सके।

आपातकालीन प्रतिक्रिया :

  • लोग आपात स्थितियों पर विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया करते हैं, जैसे कि रोना, डर, या चिंता।
  • ये प्रतिक्रियाएँ सप्ताहों तक बनी रह सकती हैं, लेकिन प्रथम सहायक का सकारात्मक दृष्टिकोण मरीज को स्थिति से निपटने में मदद कर सकता है।

प्राथमिक चिकित्सा और सावधानियाँ

हमारे दैनिक जीवन में अकस्मात घटनाएँ घटित होती रहती हैं। ऐसी स्थितियों में डॉक्टर को बुलाया जाता है, लेकिन डॉक्टर के आने तक रोगी को तात्कालिक उपचार दिया जाता है। डॉक्टर के परामर्श के बाद भी रोगी का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है।

1. नाड़ी की गति का परीक्षण:

नाड़ी की गति से हृदय की धड़कन की स्थिति का पता चलता है। नाड़ी का परीक्षण कई स्थानों पर किया जा सकता है, लेकिन सबसे उपयुक्त स्थान कलाई का भाग होता है, जहां अंगूठे की दिशा में दो अंगुलियां रखें। सामान्य नाड़ी की गति 72 से 80 बार प्रति मिनट होती है। नाड़ी की गति को जानने के लिए प्रत्येक 15 मिनट बाद नाड़ी की गिनती करनी चाहिए। अगर प्रत्येक बार वही संख्या आती है, तो नाड़ी स्थिर और निश्चित मानी जाती है, अन्यथा यह अस्थिर हो सकती है।

2. रोगी का तापमान लेना:

रोगी का तापमान नियमित रूप से लेना चाहिए और इसे रिकॉर्ड करना चाहिए। तापमान थर्मामीटर से लिया जाना चाहिए। थर्मामीटर को रोगी की जीभ के नीचे 2-3 मिनट तक रखना चाहिए। फिर थर्मामीटर निकालकर तापमान पढ़ना चाहिए। सामान्यतः स्वस्थ व्यक्ति का तापमान 98.4°F (37°C) होता है। छोटे बच्चों के लिए थर्मामीटर मुंह में नहीं लगाया जाता, उन्हें बगल या जांघ पर तापमान लेना चाहिए।

3. श्वास प्रक्रिया का निरीक्षण:

रोगी की श्वास प्रक्रिया का निरीक्षण करना अत्यंत आवश्यक है। श्वास की गति जानने के लिए छाती या पेट के ऊपर हाथ रखकर श्वास की गति प्रति मिनट गिनी जाती है। सामान्यतः श्वास की गति 15-20 बार प्रति मिनट होती है। श्वास की गति में किसी प्रकार की असामान्यता पाए जाने पर त्वरित चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

4. मलमूत्र विसर्जन करना:

जो रोगी शौचालय तक नहीं जा सकते, उन्हें शौच बर्तन में कराना चाहिए। मलमूत्र कराने से पहले बिस्तर पर रबर बिछाना चाहिए ताकि पानी बिस्तर पर न फैले। मल-त्याग के बाद गीली रूई, टॉयलेट पेपर से गुदा मार्ग को साफ किया जाना चाहिए। अगर रोगी शौचालय तक जाने में सक्षम हो तो उसे सहारा देकर शौचालय तक ले जाया जाना चाहिए।

5. रोगी को स्नान कराना:

रोगी को स्नान के लिए गर्म पानी का प्रयोग करना चाहिए। यदि रोगी स्वयं स्नान करने में सक्षम नहीं है, तो तौलिया को गीला करके शरीर को पोंछ देना चाहिए। स्नान के दौरान कमरे की खिड़कियाँ बंद कर देनी चाहिए ताकि रोगी को ठंड न लगे।

6. दांत, जीभ एवं मुंह की सफाई:

रोगी के दांत और जीभ की नियमित सफाई करनी चाहिए। यदि रोगी बैठने योग्य है, तो उसके पीछे तकिया लगाकर जीभ और दांतों की सफाई करवाई जानी चाहिए। कुल्ला हमेशा विसंक्रमक घोल से कराना चाहिए, और रात्रि में सोने से पहले भी उसे अच्छे से कुल्ला कराना चाहिए।

7. रोगी को दवा देना:

रोगी को दवा सही समय पर और सावधानीपूर्वक दी जानी चाहिए। दवा देते समय डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। दवा की सही मात्रा, समय और विधि का पालन करने से रोगी को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है, जबकि गलत दवा देने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास

खेल चोटों का वर्गीकरण (Classification of Sports Injuries)

सॉफ्ट टिशू चोट (Soft Tissue Injury)हड्डी की चोट (Bone Injury)जोड़ों की चोट (Joint Injury)
• कुचलना (Contusion)
• घर्षण (Abrasion)
• चीरा (Incision)
• फटा हुआ घाव (Laceration)
• खिंचाव (Strain)
• मोच (Sprain)
. बंद फ्रैक्चर (Close Fracture):
– अनुप्रस्थ फ्रैक्चर (Transverse)
– तिरछा फ्रैक्चर (Oblique)
– सर्पिल फ्रैक्चर (Spiral)
– विखंडित फ्रैक्चर (Comminuted)
– अंत:प्रभावित फ्रैक्चर (Impact)
– ग्रीन स्टिक फ्रैक्चर (Green Stick)
. खुला फ्रैक्चर (Open Fracture):
जटिल  फ्रैक्चर (Compound Fracture)
. हड्डी हटना (Dislocation
– आंशिक विस्थापन (Subluxation)
– पूर्ण विस्थापन (Luxation)

कोमल ऊतकों की चोट :

नील  (Contusion) : 
  • नील एक स्थिति है जो कुंद वस्तु के सीधे संपर्क से होती है, जिसके परिणामस्वरूप मांसपेशियों के भीतर गहरी रक्तस्राव होती है। 
  • यह चोट तब होती है जब रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है। घाव का रंग नीला-हरा दिखाई देता है, जो फटी हुई रक्त वाहिकाओं के कारण होता है।
घर्षण (Abrasion): 
  • एपिडर्मिस, जो त्वचा की बाहरी परत होती है, के नुकसान के परिणामस्वरूप एक सुपरफिशियल चोट होती है जिसमें त्वचा का कुछ भाग हट जाता है। व्यक्ति को जलन या चुभन की अनुभूति होती है।
  • जब कोई व्यक्ति गिरता है या ज़मीन पर फिसलता है, तो त्वचा की परतें घर्षण के कारण फिसल जाती हैं। 
  • यह चोट आमतौर पर खेलों में होती है, जैसे कि बास्केटबॉल कोर्ट, कबड्डी, एथलेटिक्स, हॉकी, फुटबॉल आदि में।
चीरा (Incision):

चीरा वह स्थिति है जिसमें धातु या तेज वस्तुओं से धमनियों, टेंडनों, नसों आदि पर चोट लगती है।

फटा हुआ घाव (Laceration): 
  • यह त्वचा में असमान Tear होता है, जिसमें एपिडर्मिस और डर्मिस पर कुंद वस्तुओं से चोट लगती है। 
  • इस स्थिति में व्यक्ति को घाव के चारों ओर लाल-लाल, गंभीर दर्द और सूजन महसूस होती है।
खिंचाव (Strain): 
  • खिंचाव मांसपेशियों के खिंचाव और फटने को कहा जाता है, जब मांसपेशी या कंडरा अपनी सामान्य सीमा से परे खिंच जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ऊतक में दरार या क्षति होती है ।
  •  इसके लक्षणों में स्थानीय सूजन, गंभीर दर्द आदि शामिल होते हैं।
  • खिंचाव के श्रेणी :
    • ग्रेड I: हल्का खिंचाव – मांसपेशी का थोड़ी मात्रा में खिंचाव।
    • ग्रेड II: मध्यम खिंचाव – मांसपेशी के तंतु का आंशिक फटना।
    • ग्रेड III: गंभीर खिंचाव – मांसपेशी का पूर्ण रूप से टूटना।
मोच (Sprain): 
  • मोच को उन लिगामेंट्स के खिंचाव और फटने के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो जोड़ों को स्थिर रखते हैं। इसके लक्षणों में दर्द, संवेदनशीलता, और कार्य की हानि शामिल हैं।
  • मोच के सामान्य कारणों में गिरना, मुड़ना, या चोट लगना शामिल है, जिससे प्रभावित जोड़ के चारों ओर लिगामेंट्स फट सकते हैं।
  • मोच के श्रेणी :
    • ग्रेड I: एक या अधिक लिगामेंट्स का मामूली खिंचाव या फटना, जिससे हल्का दर्द और सूजन होती है।
    • ग्रेड II: लिगामेंट्स का आंशिक फटना, जिससे मध्यम दर्द, कमजोरी और कुछ कार्य की हानि होती है।
    • ग्रेड III: लिगामेंट्स का व्यापक फटना या पूर्ण रूप से टूटना, जिसे सामान्यतः मरम्मत के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है।

रक्त स्राव: 

रक्त स्राव किसी भी दुर्घटना में एक सामान्य समस्या हो सकती है, और इसे उसके प्रकार के आधार पर ठीक से प्रबंधित करना आवश्यक होता है।

1. सामान्य रक्त स्राव:

खेल के मैदान पर कभी-कभी आपस में टकराने, या किसी चीज से टकराने पर रक्त स्राव शुरू हो सकता है। इस स्थिति में, रक्त के थक्के के रूप में जमने के बाद उसे छेड़ने की आवश्यकता नहीं है। ठंडे पानी या बर्फ से सिकाई की जानी चाहिए। रक्त वाहिनी को विपरीत दिशा में दबाकर और चोट वाले स्थान पर कसकर पट्टी बांधनी चाहिए।

2. धमनी के रक्तस्त्राव:

जब धमनी कट जाती है, तो रक्त अत्यधिक चमकीले लाल रंग का और हर धड़कन के साथ उछलता हुआ बहता है। यह रक्त स्राव हृदय की ओर होता है।

लक्षण:

  1. धमनी का रक्त चमकीला लाल और शुद्ध होता है।
  2. रक्त बहने की गति हृदय की धड़कन के अनुसार होती है।

उपचार:

  • घायल व्यक्ति को लेटाना चाहिए क्योंकि लिटाने से रक्त कम बहता है।
  • रक्त बहने वाले अंग को ऊपर उठाना चाहिए।
  • घाव पर कपड़ा मजबूती से बांधना चाहिए। अगर इससे असर नहीं हो तो घाव के पास दबाव डालना चाहिए। दबाव बिंदु पर टूर्नाकेट बांधना चाहिए।
  • टिंचर आयोडिन या फैरिक क्लोराइड का घोल लगाना चाहिए।
  • घाव और आसपास की त्वचा पर एंटीसेप्टिक घोल छिड़कना चाहिए और टैटबैक का इंजेक्शन लगवाना चाहिए।
  • यदि घाव में कोई विजातीय पदार्थ फंसा हो तो उसे सावधानी से निकालना चाहिए।
3. शिरा के रक्त स्राव:

शिरा से बहने वाला रक्त गहरे लाल रंग का और धीरे-धीरे बहता है। यह रक्त हृदय की ओर धीरे-धीरे बहता है।

उपचार:

  • कपड़ा भिगोकर रक्त बहने वाले स्थान पर पट्टी बांधनी चाहिए।
  • घायल अंग पर हृदय की विपरीत दिशा में टूर्नाकेट कसकर बांधना चाहिए।
  • घाव को अंगूठे से दबाकर रूई का मोटा पैड घाव पर रखकर बांधना चाहिए।
  • टिंचर आयोडिन, सल्फेडाइन, या मरकरी क्रीम में से कोई एक दवा लगाकर पट्टी बांधनी चाहिए।
4. कोशकीय रक्त स्राव:

यह सामान्य रक्त स्राव होता है जिसमें रक्त धीमी गति से बहता है और इसमें शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार का रक्त बहता है। इसका रंग सामान्य लाल होता है।

उपचार:

  • घाव में फंसे विजातीय तत्व को निकालकर घाव को स्वच्छ करना चाहिए।
  • रक्त बहने वाले स्थान को कसकर दबाकर स्वच्छ पट्टी से बांधने से रक्त बहना बंद हो जाता है।
5. नाक से रक्त स्राव (नकसीर):

खेल के मैदान में अत्यधिक गर्मी या टक्कर के कारण नाक की अंदर की झिल्ली से रक्त स्राव हो सकता है, जिसे नकसीर कहा जाता है।

उपचार:

  • बालक को पीछे की ओर सिर झुकाकर कुर्सी पर बिठाना चाहिए, और सिर को हाथ से ऊपर उठा लेना चाहिए।
  • नाक, चेहरे या गर्दन के पीछे ठंडे पानी में कपड़ा भिगोकर रखना चाहिए।
  • गर्दन और छाती पर कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए।
  • पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए।
  • रोगी को नाक जोर से साफ करने से रोकना चाहिए, उसे मुंह से श्वास लेने देना चाहिए।
  • फिटकरी के घोल से नाक साफ करनी चाहिए।
  • डॉक्टर से तुरंत सहायता प्राप्त करना चाहिए।
  • रक्त स्राव को रूई या गाज पट्टी से बंद कर देना चाहिए।
  • रोगी को गरम पेय नहीं देना चाहिए।
  • हाइड्रोजन पराक्साइड या पीली मिट्टी की ढेली को पानी में भिगोकर रोगी को सुंघा देना चाहिए।

हड्डी की चोट

अस्थि भंग (Fracture):

फ्रैक्चर हड्डी का पूर्ण या आंशिक टूटना या हड्डी की निरंतरता का टूटना होता है, जो अत्यधिक बल के प्रयोग के कारण होता है। यह चोट या दबाव के कारण हड्डी पर अधिक तनाव पड़ने से हो सकता है।

बंद फ्रैक्चर (Closed Fracture):
बंद फ्रैक्चर तब होता है जब हड्डी टूट जाती है, लेकिन त्वचा में कोई घाव या छिद्र नहीं होता।

  • अनुप्रस्थ फ्रैक्चर (Transverse Fracture): यह फ्रैक्चर हड्डी की लंबी धुरी के साथ समकोण पर टूटता है। यह आमतौर पर खेल चोटों के बाद बड़े बच्चों में होता है।
  • तिरछा फ्रैक्चर (Oblique Fracture): इस प्रकार का फ्रैक्चर हड्डी की लंबी धुरी के साथ तिरछे कोण में टूटता है और एक ही दिशा में रहता है।
  • सर्पिल फ्रैक्चर (Spiral Fracture): यह तब होता है जब शरीर का एक हिस्सा स्थिर होता है (जैसे पैर ज़मीन पर) और दूसरा हिस्सा गति में रहता है, जिससे हड्डी घुमावदार तरीके से टूटती है।
  • विखंडित फ्रैक्चर (Comminuted Fracture): इसमें हड्डी कई टुकड़ों में टूट जाती है। यह आमतौर पर भारी दबाव या चोट के कारण होता है।
  • अंतःप्रभावित फ्रैक्चर (Impacted Fracture): यह तब होता है जब हड्डी के दोनों सिरे एक-दूसरे में धंसे होते हैं। यह अक्सर बच्चों में हाथ की हड्डियों में होता है और इसे बकल फ्रैक्चर भी कहा जाता है।
  • ग्रीन स्टिक फ्रैक्चर (Greenstick Fracture): यह एक अधूरा फ्रैक्चर है जिसमें हड्डी मुड़ जाती है और आंशिक रूप से टूटती है। यह बच्चों में अधिक होता है, क्योंकि उनकी हड्डियाँ लचीली होती हैं।
खुला फ्रैक्चर (Open Fracture):

खुला फ्रैक्चर वह होता है जिसमें हड्डी त्वचा को भेदकर बाहर निकल जाती है।

  • जटिल फ्रैक्चर (Compound Fracture):
    जटिल फ्रैक्चर (कंपाउंड फ्रैक्चर) वह चोट है जिसमें टूटी हुई हड्डी के आसपास की त्वचा में घाव होता है। इस स्थिति में, बाहरी हवा, गंदगी और बैक्टीरिया सीधे फ्रैक्चर स्थल तक पहुंच सकते हैं, क्योंकि त्वचा या मुलायम ऊतकों की सुरक्षा नहीं होती। हड्डी का त्वचा से बाहर निकलना जरूरी नहीं है; यदि घाव त्वचा को प्रभावित करता है, तो इसे जटिल फ्रैक्चर माना जाता है। यह गंभीर होता है और तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है।

जोड़ों की चोट:

प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास
  • विस्थापन (Dislocation): जब हड्डियाँ अपने सामान्य स्थान से खिसक जाती हैं और सही तरीके से जोड़ पर नहीं मिलतीं, तो इसे विस्थापन कहा जाता है। इसे दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:
    1. आंशिक विस्थापन (Subluxation): इसमें जोड़ों में आंशिक विस्थापन होता है, जहां हड्डियों का हल्का खिसकाव होता है।
    2. पूर्ण विस्थापन (Luxation): इसमें पूरी तरह से विस्थापन होता है, जहां हड्डियाँ एक-दूसरे से पूरी तरह अलग हो जाती हैं।
    • जोड़ों का विस्थापन संपर्क खेलों जैसे फुटबॉल और हॉकी में हो सकता है, और उन खेलों में भी जहाँ गिरावट का जोखिम होता है, जैसे डाउनहिल स्कीइंग, कुश्ती, जिम्नास्टिक और वॉलीबॉल।
    • बास्केटबॉल और फुटबॉल के खिलाड़ी अक्सर अपनी उंगलियों और हाथों के जोड़ों का विस्थापन झेलते हैं, जब गेंद, ज़मीन या अन्य खिलाड़ी से टकराते हैं।
    • एक जोरदार प्रहार, गिरना, जोरदार फेंकना, उठाना या मारना, जोड़ों के विस्थापन का कारण बन सकता है।
    • वास्तव में, यह हड्डियों की सतहों का विस्थापन है। निम्नलिखित प्रकार के विस्थापन होते हैं:
      • निचले जबड़े का विस्थापन
      • कंधे के जोड़ का विस्थापन
      • कूल्हे के जोड़ का विस्थापन
      • कलाई का विस्थापन

    एथलेटिक चोटों का जोखिम कई सामान्य कारकों के कारण बढ़ सकता है, जैसे:

    1. असमुचित कंडीशनिंग
    2. गलत वार्म-अप
    3. अवैज्ञानिक प्रशिक्षण तरीके
    4. फिटनेस की कमी
    5. पोषण की अपर्याप्तता
    6. खेल सुविधाओं की कमी
    7. गलत रेफरी या अन्यायपूर्ण संचालन
    8. सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग न करना
    9. थकान की अवस्था में अभ्यास करना
    10. प्रतिस्पर्धा का अत्यधिक दबाव
    11. खेल के दौरान लापरवाही
    12. चोट का बार-बार होना
    13. गलत या खराब खेल उपकरण
    14. मांसपेशियों का अत्यधिक उपयोग

      मूल शारीरिक स्वस्थता : 

      • किसी भी शारीरिक गतिविधि से पहले सामान्य फिटनेस महत्वपूर्ण होती है।
      • मजबूत हड्डियाँ और मांसपेशियाँ गतिविधियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में मदद करती हैं।
      • उचित फिटनेस थकान और चोटों से बचाती है।

      उपकरण

      • खेल की मांगों के अनुसार उपकरण का चयन करें।
      • सुरक्षा और तकनीकी उपकरणों की गुणवत्ता की दोबारा जाँच करें।
      • आरामदायक और उपयुक्त उपकरण मनोरंजन और प्रदर्शन दोनों के लिए आवश्यक हैं।

      स्वास्थ्य

      • बीमारी (जैसे संक्रमण या सर्दी) के बाद शारीरिक गतिविधि से बचें।
      • बीमारी के बाद शरीर कमजोर होता है और प्रतिक्रिया धीमी होती है, जिससे चोट का जोखिम बढ़ जाता है।

      वार्म-अप और कूल-डाउन

      वार्म-अप:

      शरीर का तापमान और मांसपेशियों की गतिशीलता बढ़ाता है।
      गतिविधि के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है।

      कूल-डाउन:

      • गतिविधि के बाद शरीर के तापमान को कम करता है।
        मांसपेशियों को खींचता है ताकि चोटों से बचा जा सके।

      व्यवस्थित और वैज्ञानिक प्रशिक्षण

      • एक संरचित और वैज्ञानिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का पालन करें।
      • प्रशिक्षण योजना एक योग्य विशेषज्ञ द्वारा बनाई जानी चाहिए।
      • अवैज्ञानिक प्रशिक्षण चोट के जोखिम को बढ़ाता है।

      सुरक्षा उपाय

      • सभी सुरक्षात्मक गियर का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करें।
      • खेल की सतह और उपकरणों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
      • जोखिम को कम करने के लिए नियमों और विनियमों का पालन करें।
      • आपातकालीन स्थितियों के लिए प्राथमिक उपचार किट उपलब्ध रखें।

      मनोवैज्ञानिक विचार

      गतिविधि से पहले:

      • मानसिक रूप से तैयार रहना और सतर्कता आवश्यक है।
      • आत्मविश्वास और ध्यान चोटों को रोकने में मदद करते हैं।

      गतिविधि के बाद:

      • मनोवैज्ञानिक कारकों जैसे स्मृति और पुनर्प्राप्ति का ध्यान रखें।
      • मानसिक भलाई बनाए रखने और चोटों को रोकने में मदद करता है।

      खेल चोटों को रोकने के लिए सुझाव

      1. जब आप थके हुए हों तो प्रशिक्षण से बचें।
      2. भारी प्रशिक्षण के दौरान कार्बोहाइड्रेट का सेवन बढ़ाएं।
      3. प्रशिक्षण में वृद्धि के साथ आराम में भी वृद्धि होनी चाहिए।
      4. प्रशिक्षण भार बढ़ाने से पहले पर्याप्त शक्ति प्रशिक्षण करना चाहिए।
      5. छोटी-मोटी चोटों का भी ध्यानपूर्वक इलाज करें ताकि वे बड़ी समस्या न बनें।
      6. अगर प्रशिक्षण के दौरान दर्द महसूस हो, तो तुरंत सत्र बंद कर दें।
      7. हाइड्रेशन और पोषण का विशेष ध्यान रखें।
      8. उचित प्रशिक्षण सतहों का उपयोग करें।
      9. उपकरण सुरक्षित और उपयुक्त होना चाहिए।
      10. नई गतिविधियों को धीरे-धीरे अपनाएं।
      11. वार्म-अप और कूल-डाउन के लिए पर्याप्त समय दें।
      12. प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा से पहले ओवरट्रेनिंग और पाठ्यक्रम की जांच करें।
      13. अत्यधिक गर्मी में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
      14. थकान के लक्षणों की रोज़ निगरानी करें, संदेह होने पर धीरे-धीरे आराम करें।

      खेल चोटों को रोकने की तकनीकें

      PRICE तकनीक
      • प्रोटेक्शन  (सुरक्षा) रेस्ट (आराम) आइसिंग (बर्फ का प्रयोग) कम्प्रेशन (दबाव) एलिवेशन (प्रभावित अंग को हृदय के स्तर से ऊपर उठाना।) 
      MICE Treatment 
      • M – मोबिलाइज़ेशन  (गतिमान करना) आइसिंग (बर्फ का प्रयोग) कम्प्रेशन (दबाव) एलिवेशन (प्रभावित अंग को हृदय के स्तर से ऊपर उठाना।) 
      REST Therapy 
      • R – रेस्ट E – एलिवेट S – सपोर्ट T – टाइट
      RICER  –  रेस्ट आइसिंग कम्प्रेशन एलिवेशन रेफरल 
      • तेजी से ठीक होने के लिए घाव और दर्द को कम करने के लिए नरम ऊतकों की चोट का प्रबंधन करने के लिए RICER का उपयोग किया जाता है। यह चोट लगने के तुरंत बाद प्राथमिक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है।
      TOTAPS
      •  टॉक, ऑब्ज़र्व, टच, ऐक्टिव मूवमेंट, पैसिव मूवमेंट,  स्किल टेस्ट  (बातचीत, निरीक्षण, स्पर्श, सक्रिय गतिविधि, निष्क्रिय गतिविधि और कौशल परीक्षण) । यह सभी गैर-गंभीर चोटों का आकलन करने में सहायक है।
      No-HARM
      • अथवा नुकसान से बचने की तकनीक का तात्पर्य है नो-हीट, नो-अल्कोहल, नो-रनिंग और नो-मसाज (गर्मी नहीं, शराब नहीं, दौड़ना नहीं और मालिश नहीं।) ये महत्वपूर्ण सावधानियां हैं जो किसी भी घायल एथलीट को चोट लगने के बाद पहले 72 घंटों तक बरतनी चाहिए।
      SALTAPS- चोट के आकलन के लिए
      • S-Stop the game (खिलाड़ी को आराम)।
      • A- Ask the player (चोट के लिए पूछो)।
      • L-Look for the injury (चोट को देखो)।
      • T-Touch the injured part (छूकर चोट के प्रभाव का पता लगाना)।
      • A- Active movement of the injured part (चोटिल अंग की सक्रिय गतिविधि)।
      • P – Passive movement of the injured part (चोटिल अंग की निष्क्रिय गतिविधि)।
      • S-Start the game again (यदि सब ठीक है तो खिलाड़ी फिर से खेलना शुरू करेगा)
      ऊर्जा-आधारित चिकित्सा पद्धति
      • TENS – एक ट्रांसक्यूटेनस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेशन (TENS) मशीन रोगी की नसों को रोगी के मस्तिष्क में दर्द संकेत भेजने से रोकने के लिए एक विद्युत प्रवाह प्रदान करती है और एंडोर्फिन (प्राकृतिक दर्द निवारक हार्मोन) को जारी करने के लिए प्रोत्साहित करती है। 
      • अल्ट्रासाउंड – उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगें रक्त परिसंचरण और कोशिका गतिविधि को उत्तेजित करके गहरी ऊतक चोटों का इलाज करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह दर्द और मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने और उपचार प्रक्रिया को तेज करने में मदद करता है। 
      • लेजर थेरेपी – लेजर (प्रकाश की संकीर्ण किरणें) दर्द और मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने में मदद करती हैं। लेजर थेरेपी को कण्डरा स्थितियों के इलाज में सबसे प्रभावी माना जाता है, हालांकि अध्ययनों से पता चला है कि यह अन्य प्रकार की ऊर्जा आधारित थेरेपी जितनी प्रभावी नहीं हो सकती है। 
      • शॉर्टवेव डायथर्मी – (Shortwave diathermy) -एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र रोगी के शरीर के ऊतकों के भीतर गर्मी उत्पन्न करता है ऐसा माना जाता है कि यह सूजन को कम करने, ऊतकों को मजबूत करने और दर्द को कम करने में मदद करता है।

      खेल पुनर्वास एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जो एथलीटों को चोट या चिकित्सीय स्थिति के बाद अपनी ताकत, लचीलापन, गतिशीलता और शारीरिक सहनशक्ति वापस पाने में मदद करती है। खिलाड़ियों  को ठीक होने और दर्द को कम करने में मदद करने के लिए व्यायाम, गतिविधि और चिकित्सीय हस्तक्षेप का उपयोग करता है।

      ACT IS IT के सिद्धांत

      खेल चोट पुनर्वास में ACT IS IT के सिद्धांतों का पालन किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं:

      1. चोट को बढ़ने से बचाना (Avoid aggravation): चोट को और खराब होने से रोकने के लिए उचित देखभाल सुनिश्चित करना।
      2. समय (Timing): पुनर्वास के हर चरण को सही समय पर शुरू और खत्म करना।
      3. पालन (Compliance): पुनर्वास प्रक्रिया के दौरान दिए गए निर्देशों और उपचार को सही ढंग से पालन करना।
      4. व्यक्तिकरण (Individualization): हर व्यक्ति की चोट और स्थिति के अनुसार पुनर्वास योजना को अनुकूलित करना।
      5. विशिष्ट क्रम (Specific sequencing): पुनर्वास के दौरान उचित चरणों का पालन करना।
      6. तीव्रता (Intensity): पुनर्वास के दौरान सही तीव्रता बनाए रखना ताकि चोट धीरे-धीरे ठीक हो सके।
      7. कुल रोगी देखभाल (Total patient care): खेल चोट पुनर्वास में रोगी की संपूर्ण शारीरिक और मानसिक देखभाल पर ध्यान देना।

      खेल चोट पुनर्वास एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि –

      • एथलीट के कार्यात्मक और प्रदर्शन स्तर की बहाली;
      • चोट लगने से पहले शारीरिक स्वास्थ्य  को उसकी मूल स्थिति में पुनः प्राप्त करना
      • सुरक्षित, कुशल और समयबद्ध तरीके से खेल भागीदारी में वापसी;
      • पुनः चोट लगने का जोखिम कम करना।

      पुनर्वास चरण

      चोट पुनर्वास के निम्नलिखित 5 चरण होते हैं –

      • चरण 1: संरक्षण और भार कम करना
        इस चरण में चोटग्रस्त क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है और उस पर पड़ने वाले भार को कम किया जाता है ताकि वह ठीक हो सके।
      • चरण 2: संरक्षित पुनः लोडिंग और पुनः संयोजन
        यह चरण धीरे-धीरे प्रभावित हिस्से पर भार डालने की प्रक्रिया है, जिससे शरीर की कार्यक्षमता फिर से बहाल हो सके।
      • चरण 3: खेल विशेष ताकत, कंडीशनिंग और कौशल
        इसमें विशेष रूप से उस खेल से जुड़ी ताकत, कंडीशनिंग और आवश्यक कौशल पर ध्यान दिया जाता है, जिससे खिलाड़ी अपनी पुरानी स्थिति में वापस आ सके।
      • चरण 4: खेल में वापसी
        इस चरण में खिलाड़ी को पूरी तरह से खेल में वापस लाया जाता है, धीरे-धीरे उसकी सक्रियता को बढ़ाया जाता है।
      • चरण 5: चोट की रोकथाम
      • यह चरण चोटों को भविष्य में रोकने के लिए रणनीतियाँ विकसित करने और उनका पालन करने पर केंद्रित होता है।

      स्पोर्ट्स मेडिसिन (खेल चिकित्सा), जिसे खेल और व्यायाम चिकित्सा (एसईएम) के रूप में भी जाना जाता है, चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जो व्यायाम और खेल से संबंधित चोटों की रोकथाम, निदान और उपचार से सम्बंधित  है। यह एथलीटों के खेल प्रदर्शन को बेहतर बनाने पर जोर देता है।

      • खेल चिकित्सा के उद्देश्य
      • खिलाड़ियों को चोटों के बारे में जानकारी प्रदान करना
      • चोटों के कारणों के बारे में ज्ञान प्रदान करना
      • खेल चोटों के लिए उपचार और पुनर्वास प्रदान करना
      • खेल चोटों से बचाव के उपायों के बारे में जानकारी प्रदान करना
      • खेलों का वैज्ञानिक प्रचार-प्रसार
      • निवारक स्वास्थ्य देखभाल का विकास करना
      • खेल चिकित्सा विस्तार सेवाएँ प्रदान करना

      प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास /प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास /प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास / प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास / प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास/ प्राथमिक उपचार एवं पुर्नवास

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