समाज शास्त्र में कमजोर तबके विशेषकर दलित, वृद्ध और दिव्यांग समाज में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं। उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए समावेशी नीतियों और जागरूकता की आवश्यकता है।
विगत वर्षों के प्रश्न
वर्ष | प्रश्न | अंक |
2016 | भारत में लैंगिक असमानता के परिणामों की व्याख्या करें। | 5M |
2016 special | लैंगिक न्याय से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के 1997 के ऐतिहासिक फैसले के महत्व पर चर्चा करें। | 10M |
दलित
- “दलित” शब्द संस्कृत के शब्द दल से बना है,जिसका अर्थ है “जमीन”, “दबाया हुआ”, “कुचला”, या “जिसे कुचल दिया गया हो”। इसका प्रयोग सबसे पहले सत्य शोधक समाज के संस्थापक ज्योतिबा फुले ने किया था।
- दलितों को पारंपरिक हिंदू पदानुक्रम में सबसे निचली जाति के सदस्यों के रूप में जाना जाता है, जिन्होनें ऐतिहासिक रूप से गंभीर सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार का सामना किया है।
आंकङे
- नेशनल सैंपल सर्च ऑर्गेनाइज़ेशन (एनएसएसओ) 2017-18 – 272 मिलियन (कुल जनसंख्या का 17%)
- 2011 की जनगणना – 200 मिलियन (कुल जनसंख्या का 16.6%)
दलितों की समस्या
एनसीआरबी रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 2021 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार/अपराध में 1.2% की वृद्धि हुई है
- असमानता की धारणा: दलितों को “आरक्षण के बच्चे” के रूप में देखा जा सकता है,अन्य लोग उनकी सफलता का श्रेय उनकी क्षमताओं के बजाय उन्हें प्राप्त सरकारी सहायता को (सकारात्मक कार्रवाई) को देते हैं, जिससे अलगाव और तनाव होता है।
- जाति-आधारित भेदभाव: शिक्षा,रोजगार और सार्वजनिक सेवाओं सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में लगातार सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव।
- अस्पृश्यता: ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पृश्यता की भावना,पानी,मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच को सीमित करना। उदाहरण के लिए, द्रौपदी अम्मन मंदिर (तमिलनाडु) में दलितों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
- आर्थिक असमानता: गरीबी का उच्च स्तर और आर्थिक अवसरों तक सीमित पहुंच,जिसके कारण आर्थिक हाशियाकरण।
- शैक्षिक बाधाएँ: कम साक्षरता दर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच,जिसके परिणामस्वरूप उच्च पदों की ओर गतिशीलता के अवसर कम हो गए हैं। जैसे. डेल्टा मेघवाल बलात्कार और मौत का मामला (2016)
- हिंसा और अत्याचार: हिंसा की लगातार घटनाएं,जिनमें शारीरिक हमले,यौन हिंसा और अन्य अत्याचार शामिल हैं,आरोपियों को अक्सर दण्ड से मुक्ति मिल जाती है।उदाहरण के लिए – हथरस गैंग रेप मामला
- राजनीतिक बहिष्कार: राजनीतिक नीति- निर्णय में सीमित प्रतिनिधित्व और राजनीतिक सत्ता तक पहुँचने में चुनौतियाँ।
- भूमिहीनता: भूमि या उत्पादक संपत्तियों के स्वामित्व का अभाव, दलितों को गरीबी और निर्भरता के चक्र में फंसाए रखता है।
- सामाजिक कलंक: गहरी जड़ें जमा चुके सामाजिक कलंक और पूर्वाग्रह जो सामाजिक और आर्थिक हाशियाकरण का कारण बनते हैं।
- न्याय तक सीमित पहुँच: कानूनी प्रणाली के भीतर भय,भ्रष्टाचार या भेदभाव के कारण कानूनी न्याय प्राप्त करने में बाधाएँ।
- स्वास्थ्य देखभाल संबंधित असमानताएँ: स्वास्थ्य सेवाओं तक कम पहुंच, जिससे मृत्यु दर अधिक और जीवन प्रत्याशा कम हुई है।
प्रावधान
कानूनी प्रावधान:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को भेदभाव और अत्याचार से सुरक्षा प्रदान करता है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगाता है और ऐसे काम में लगे लोगों के पुनर्वास का प्रावधान करता है।
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इसके अभ्यास पर रोक लगाता है।
- अनुच्छेद 338: अनुसूचित जाति के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 338ए: एसटी के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 15(4): अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 16(4)(ए): सार्वजनिक रोजगार हेतु sc और st के पक्ष में नौकरियों के आरक्षण का प्रावधान l
- अनुच्छेद 46: कमजोर वर्गों, विशेषकर एससी और एसटी के शैक्षिक और आर्थिक हितों की सुरक्षा हेतु उपबंध है।
- अनुच्छेद 330: लोकसभा (लोगों का सदन) में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करता है।
- अनुच्छेद 332: राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करता है।
- अन्य: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (एमओएसजेई)
दलित सशक्तिकरण के लिए डॉ. बी.आर. का योगदान
- कानूनी ढांचा: भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया गया, जिसमें अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17) और सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के प्रावधान सहित दलितों के लिए कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित की गई।
- राजनीतिक लामबंदी: स्वतंत्र लेबर पार्टी और बाद में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना की, जिससे दलितों को राजनीतिक मंच मिला। “शिक्षित बनो,संघर्ष करो,संगठित हो” का उनका आह्वान दलित मुक्ति के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया।
- सामाजिक सुधार: 1927 में महार सत्याग्रह का नेतृत्व किया,जो दलितों के अधिकार पर जोर देने के लिए एक महत्वपूर्ण विरोध प्रदर्शन था।उन्होंने जाति व्यवस्था के उन्मूलन और बौद्ध धर्म में रूपांतरण की भी वकालत की,जिससे दलितों को हिंदू रूढ़िवादिता से मुक्त होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- आर्थिक सशक्तिकरण: दलितों के आर्थिक उत्थान पर जोर देते हुए भूमि सुधार और श्रम अधिकारों की दिशा में काम किया। उनका मानना था कि दलितों की सामाजिक सशक्तिकरण के लिए आर्थिक स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है।
- शिक्षा: दलित सशक्तिकरण के लिए एक उपकरण के रूप में शिक्षा को बढ़ावा दिया गया,शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की गई और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए शिक्षा तक पहुंच की वकालत की गई। उन्होंने शिक्षा को दलित स्वाभिमान और प्रगति की नींव के रूप में देखा।
- दलित पहचान: उत्पीड़ित जातियों के बीच पहचान और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देने के लिए “दलित” शब्द का समर्थन किया गया,जिससे सामाजिक न्याय और सम्मान के लिए उनके संघर्ष को एकजुट करने में मदद मिली।
वृद्ध
विगत वर्षों के प्रश्न
वर्ष | प्रश्न | अंक |
2021 | राजस्थान में‘वृद्धावस्था पेंशन’ की पात्रता क्या है ? | 2M |
- यू.एन.एफ.पी.ए द्वारा भारत की उम्र संबंधित रिपोर्ट (2050 तक 20% बुजुर्ग आबादी)।
- जनगणना 2011- 104 मिलियन बुजुर्ग व्यक्ति
निर्भरता अनुपात: निर्भरता अनुपात कामकाजी उम्र की आबादी की तुलना में आश्रितों (बच्चों और बुजुर्गों) की संख्या को मापता है।
बुजुर्ग व्यक्तियों से संबंधित मुद्दे
- बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार: देखभाल करने वालों या परिवार के सदस्यों द्वारा शारीरिक, भावनात्मक और मौखिक दुर्व्यवहार (लगभग 5%)।
- वित्तीय असुरक्षा: सीमित आय और अपर्याप्त बचत वित्तीय संघर्ष का कारण बनती है।
- अकेलापन: सामाजिक अलगाव और प्रियजनों की उपेक्षा अकेलेपन और अवसाद का कारण बनता है।
- स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे: पुरानी बीमारियाँ और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच (25% बुजुर्ग खराब स्वास्थ्य की रिपोर्ट करते हैं)।
- गरिमापूर्ण वृद्धावस्था: गरिमापूर्ण जीवन के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय स्थिरता और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता की कमी ।
- अपर्याप्त आवास: खराब अवासीय या अनुपयुक्त आवास आराम और सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
- सीमित गतिशीलता: भौतिक सीमाएँ स्वतंत्रता और सेवाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित करती हैं।
- कानूनी और अधिकार संरक्षण: जागरूकता की कमी (केवल 12% कानूनी प्रावधानों के बारे में जानते हैं) या बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए कानूनी अधिकारों और सुरक्षा को लागू करते है।
सरकारी पहल
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): गरीबी रेखा से नीचे के बुजुर्ग नागरिकों के लिए मासिक पेंशन।
- राष्ट्रीय वयोश्री योजना (आरवीवाई): बीपीएल वरिष्ठ नागरिकों के लिए शारीरिक सहायता।
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (पीएमवीवीवाई): सेवानिवृत्ति के बाद की आय के लिए निश्चित रिटर्न वाली पेंशन योजना।
- वृद्ध व्यक्तियों के लिए एकीकृत कार्यक्रम (आईपीओपी): बुजुर्ग देखभाल सेवाएं प्रदान करने में गैर सरकारी संगठनों का समर्थन प्राप्त करना ।.
- एल्डर लाइन: वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन।
- सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (एसएजीई): बुजुर्गों की देखभाल के समाधान पेश करने वाले स्टार्टअप को बढ़ावा देता है।
- वरिष्ठ सक्षम नागरिक सम्मान में पुनः रोजगार के लिए (SACRED) पोर्टल: वरिष्ठ नागरिकों के लिए नौकरी के अवसर हेतु मंच।
- वयोश्रेष्ठ सम्मान: बुजुर्गों की देखभाल में योगदान को मान्यता देने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार।
कानूनी प्रावधान:
- अनुच्छेद 41: वृद्धावस्था और बीमारी में वरिष्ठ नागरिकों के लिए राज्य सहायता।
- अनुच्छेद 46: वरिष्ठ नागरिकों सहित कमजोर वर्गों के कल्याण को बढ़ावा देता है।
- धारा 20 (हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956): बच्चों को वृद्ध या अशक्त माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए।
- धारा 125 (सीआरपीसी): बच्चों द्वारा माता-पिता के भरण-पोषण के लिए कानूनी प्रावधान।
- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007: वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण और कानूनी सुरक्षा अनिवार्य करता है।
आगे की राह
- वित्तीय और स्वास्थ्य योजना: बजटीय प्रावधानों का आवंटन, मजबूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली।
- सामाजिक सशक्तिकरण: संस्थान बुजुर्गों को संपत्ति के रूप में महत्व देंगे, घर-घर सेवाएं पहुंचाएंगे।
- सक्रिय वृद्धावस्था: डिजिटल परिवर्तनों के प्रति जुड़ाव और अनुकूलन के अवसर।
- पहुंच: स्वास्थ्य देखभाल, आवास और गतिशीलता सहायता तक बेहतर पहुंच।
- कानूनी सुरक्षा: अधिकारों के प्रति जागरूकता और प्रवर्तन में वृद्धि
दिव्यांग
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार”विकलांग व्यक्ति” का अर्थ दीर्घकालिक शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक या संवेदी अक्षमता से है, जो दूसरों के साथ समान रूप से संपर्क करने में समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालता है।
दिव्यांगता की स्थिति
- 2011 की जनगणना: 2.68 करोड़ व्यक्ति ‘विकलांग’ हैं जो कुल जनसंख्या का 2.21% है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट: भारतीय आबादी में 5 से 8 प्रतिशत तक दिव्यांग आबादी है।
मुद्दे और चुनौतियाँ
- सुलभ बुनियादी ढांचे की कमी: अपर्याप्त सार्वजनिक पहुँच, परिवहन और आवास गतिशीलता और स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
- विकलांगता कोटा से संबंधित मुद्दे: निष्पक्ष कार्यान्वयन में चुनौतियाँ, eg. आईएएस पूजा खड़कर मामला ।
- अपर्याप्त डेटा: पुराना और सीमित डेटा प्रभावी नीति-निर्माण और संसाधन आवंटन में बाधा डालता है।
- सामाजिक कलंक: लगातार पूर्वाग्रह और भेदभाव एकीकरण और समान व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
- रोजगार बाधाएँ: भेदभाव और आवास की कमी नौकरी के अवसरों को प्रतिबंधित करती है।
- स्वास्थ्य देखभाल पहुंच: विशिष्ट सेवाओं तक सीमित पहुंच जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
- शैक्षिक असमानता: समावेशी शिक्षा का अभाव विकलांग छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बाधित करता है।
- नीतिगत खामियां: अपर्याप्त या खराब तरीके से लागू की गई नीतियां विकलांग व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहती हैं।
प्रावधान
संवैधानिक:
- अनुच्छेद 41: विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रावधानों सहित काम और शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।
कानूनी:
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी) 2016: विकलांग व्यक्तियों के लिए अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला व्यापक कानून (21 प्रकार की विकलांगता)।
- सुगम्य भारत अभियान: इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों और परिवहन को सुलभ बनाना है।
- विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय योजना (डीडीडीआरएस): विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए सहायता और सेवाएँ प्रदान करती है।
- विकलांगता सूचना लाइन (डीआईएल)2024: विकलांग व्यक्तियों को जानकारी और सहायता प्रदान करती है।
- विकलांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप।
- सरकार ने सुगम्य पुस्तकालय के माध्यम से सुलभ पुस्तकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ आईएसएल (भारतीय सांकेतिक भाषा) शब्दकोश शब्द, वीडियो रिले सेवा और भारतीय सांकेतिक भाषा में ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किए।
- दिव्यांगजनों के लिए भारत का पहला हाई-टेक खेल प्रशिक्षण केंद्र → ग्वालियर, मध्य प्रदेश में
- DEPwD ने एनडीएफडीसी ऋण के तहत दिव्यांगजन उधारकर्ताओं को 1% ब्याज दर में छूट की घोषणा की।
- विकलांग व्यक्तियों के शिविर के लिए सहायता (ADIP) योजना
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016
- विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के रूप में परिभाषित किया गया है।
- विस्तारित सूची: विकलांगता के प्रकार 7 से बढ़कर 21 हो गए हैं, जिनमें मानसिक बीमारी, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी आदि शामिल हैं।
- सरकार अतिरिक्त विशिष्ट विकलांगताओं को अधिसूचित कर सकती है।
- आरक्षण में वृद्धि: विकलांग व्यक्तियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षा में 3% से बढ़ाकर 5% किया गया।
- शिक्षा का अधिकार: बेंचमार्क विकलांगता (6-18 वर्ष) वाले बच्चों को सरकारी और मान्यता प्राप्त संस्थानों में मुफ्त शिक्षा का अधिकार है।
- सुगम्यता: निर्धारित समय सीमा के भीतर सार्वजनिक भवनों में पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर। { सुगम्य भारत अभियान द्वारा}
- नियामक निकाय: विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त नियामक और शिकायत निवारण एजेंसियों के रूप में कार्य करते हैं।
- वित्तीय सहायता: विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य कोष का निर्माण।
आगे की राह
- मुख्यधारा में शामिल करना
- सार्वजनिक अवसंरचना में विकलांगों के अनुकूल डिजाइन सिद्धांत (सभी के लिए सुलभता
- विकलांगता सेवाओं के लिए समर्पित बजट के साथ प्रभावी नीतियां
- स्वास्थ्य सेवा पहुंच
- जागरूकता अभियान
- सामुदायिक सहभागिता
कमजोर तबके विशेषकर दलित वृद्ध और दिव्यांग / कमजोर तबके विशेषकर दलित वृद्ध और दिव्यांग/ कमजोर तबके विशेषकर दलित वृद्ध और दिव्यांग/ कमजोर तबके विशेषकर दलित वृद्ध और दिव्यांग