राजस्थान में पर्यटन

राजस्थान में पर्यटन राजस्थान इतिहास & संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यहाँ के भव्य किले, महल, मंदिर और रेगिस्तानी दृश्य दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। साथ ही, रंग-बिरंगे मेले, लोकनृत्य और परंपराएँ इस राज्य की सांस्कृतिक पहचान को और समृद्ध बनाते हैं।

Tourism in Rajasthan | राजस्थान में पर्यटन

राजस्थान में विश्व विरासत के प्रमुख स्थल

राजस्थान में कुल 9 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें से आठ सांस्कृतिक और एक प्राकृतिक स्थल है।

1. सांस्कृतिक

जंतर मंतर, जयपुर (2010) :
  • महाराजा सवाई जयसिंह II द्वारा निर्मित सबसे बड़ा खगोलीय वेधशाला।
  • यह लगभग 20 प्रमुख उपकरणों का समूह है, जो समय और खगोलीय गतिविधियों को मापते हैं।
  • यह वेधशाला टॉलेमिक स्थिति खगोल विज्ञान की परंपरा का हिस्सा है, जिसे कई सभ्यताओं ने उपयोग किया।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल।
राजस्थान के पहाड़ी किले (2013) :
Tourism in Rajasthan
  • राजस्थान में इस श्रृंखलाबद्ध स्थल में छह किले शामिल हैं:
    • चित्तौड़गढ़
    • कुम्भलगढ़
    • सवाई माधोपुर (रणथंभौर)
    • झालावाड़ (गागरोन)
    • जयपुर (आमेर)
    • जैसलमेर
  • कुछ किले 20 किमी तक विस्तृत हैं और 8वीं से 18वीं शताब्दी के राजपूत राज्यों की शक्ति को प्रदर्शित करते हैं।
  • इन किलों में शहरी केंद्र, महल, मंदिर और व्यापारिक स्थल शामिल हैं, जो संगीत, कला और शिक्षा की समृद्ध दरबारी संस्कृति को दर्शाते हैं।
  • किलों में कई मंदिर और शहरी केंद्र आज भी सुरक्षित हैं।
  • किले प्राकृतिक सुरक्षा जैसे पहाड़, रेगिस्तान और नदियों का उपयोग करते हैं, साथ ही उन्नत जल संग्रहण प्रणालियां भी शामिल हैं, जो अब भी प्रचलन में हैं।
जयपुर सिटी, राजस्थान (2019):
  • 1727 में महाराजा सवाई जयसिंह II द्वारा स्थापित, जो पहाड़ी क्षेत्र के बजाय समतल भूमि पर स्थित है।
  • वैदिक वास्तुकला से प्रेरित ग्रिड योजना पर निर्मित।
  • सड़कों पर स्तंभयुक्त व्यापारिक स्थल हैं, जो बड़े सार्वजनिक चौक (चौपड़) में मिलते हैं।
  • मुख्य सड़कों पर बाजार, दुकानें, आवास और मंदिर समान अग्रभाग वाले हैं।
  • हिंदू, मुगल और पश्चिमी संस्कृतियों का प्रभाव दर्शाता है।
  • ग्रिड योजना पश्चिमी है, जबकि शहर के विभिन्न सेक्टर (चौकड़ी) पारंपरिक हिंदू अवधारणाओं का अनुसरण करते हैं।
  • इसे व्यापारिक राजधानी के रूप में डिज़ाइन किया गया था, जो आज भी स्थानीय व्यापार और कारीगरी की परंपराएं बनाए हुए है।

2. प्राकृतिक:

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (1985):
  • भरतपुर में स्थित।
  • पक्षियों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है, घने पेड़ों और तालाबों से घिरा हुआ है।
  • 1971 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित और 1985 में विश्व धरोहर स्थल।
  • यह पूर्व शाही बतख शिकार अभ्यारण्य है, जो अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और साइबेरिया से आने वाली 364 पक्षी प्रजातियों, जिनमें दुर्लभ साइबेरियन क्रेन भी शामिल है, के लिए प्रमुख शीतकालीन क्षेत्र है।

राजस्थान में पर्यटन स्थल

पर्यटन विश्व स्तर पर सबसे बड़े उद्योगों में से एक के रूप में उभरा है, और राजस्थान इस क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान रखता है। अपनी समृद्ध विरासत, जीवंत संस्कृति और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध, राजस्थान में कुल 1,807.52 लाख (1,790.52 लाख घरेलू और 17 लाख विदेशी) पर्यटक (वर्ष 2023) आए। राजस्थान में पर्यटन विभाग की स्थापना 1956 में हुई थी और इसे 1989 में उद्योग का दर्जा दिया गया था। राज्य में किले, महल, झीलें, वन्यजीव अभयारण्य और धार्मिक स्थल सहित कई आकर्षण हैं, जो आगंतुकों को आकर्षित करते रहते हैं।

अजमेर

अढ़ाई दिन का झोपड़ा
  • यह भवन मूल रूप से संस्कृत कॉलेज के रूप में विग्रहराज चौहान चतुर्थ द्वारा बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे सुल्तान मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। 
  • यह भवन हिंदू और इस्लामिक वास्तुकला का एक नमूना है। इसे और अधिक सजावट सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा दी गई। नामकरण के पीछे किंवदंती है कि इसे मंदिर से मस्जिद में बदलने में केवल ढाई दिन लगे, जिससे इसका नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा पड़ा।
ख्वाजा साहब की दरगाह
  • यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर वर्ष लाखों घरेलू और विदेशी पर्यटक आते हैं। 
  • दरगाह के तीन प्रमुख द्वार हैं:
    • निज़ाम दरवाज़ा – हैदराबाद के नवाब द्वारा निर्मित।
    • शाहजहानी दरवाज़ा – मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा निर्मित।
    • बुलंद दरवाज़ा – सुल्तान महमूद खिलजी द्वारा निर्मित।
  • उर्स के समय झंडा फहराने की रस्म के बाद यहां बड़े तगारे (बड़ी देग और छोटी देग) में भोजन पकाया जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
    आना सागर झील
    • यह कृत्रिम झील अजय पाल चौहान के पुत्र अजयराज चौहान द्वारा बनवाई गई थी। 
    • झील के पास स्थित दौलत बाग का निर्माण मुगल सम्राट जहांगीर ने कराया और झील के किनारे संगमरमर की पांच बारादरी शाहजहां ने बनवाई।
    मेयो कॉलेज
    • 1875 ई. में रिचर्ड बर्के ने इसे भारतीय राजघरानों के बच्चों के लिए बोर्डिंग स्कूल के रूप में स्थापित किया। 
    • इसकी वास्तुकला इंडो-सारसेनिक शैली का अद्भुत उदाहरण है।
    सोनीजी की नसियां
    • यह जैन मंदिर 19वीं सदी में बनाया गया था। इसका मुख्य हॉल गोल्डन सिटी के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अंदर जैन तीर्थंकरों की लकड़ी की आकृतियों और शुद्ध सोने से बनी चित्रकारी आकर्षण का केंद्र है।
    ब्रह्मा मंदिर
    • दुनिया का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर यहां स्थित है। इसमें संगमरमर से बना ब्रह्माजी की चार मुखों वाली प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की चोटी लाल रंग की है और उस पर हंस (ब्रह्मा का वाहन) अंकित है।
    सावित्री मंदिर
    • यह मंदिर ब्रह्मा मंदिर के पीछे पहाड़ी पर स्थित है। सावित्री, ब्रह्माजी की पहली पत्नी थीं। 
    • एक किंवदंती के अनुसार, यज्ञ के लिए ब्रह्माजी ने दूसरी पत्नी गायत्री से विवाह किया, जिससे क्रोधित होकर सावित्री ने उन्हें श्राप दिया। यही कारण है कि ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है।
    पुष्कर झील
    • इसे ‘तीर्थराज’ कहा जाता है। यह झील अर्धवृत्ताकार है और इसके चारों ओर 500 से अधिक मंदिर और 52 घाट स्थित हैं।

    अलवर

    सरिस्का टाइगर रिजर्व
    • यह अभयारण्य 1 नवंबर 1955 को घोषित हुआ और 1978-79 में इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया। इसका क्षेत्रफल 1213 वर्ग किलोमीटर है। यहां बाघ के साथ-साथ नीलगाय, लोमड़ी, जंगली सुअर, चीतल, सांभर, और बंदर जैसे जीव पाए जाते हैं।
    भानगढ़ किला
    • भानगढ़ किला आमेर के महाराजा भगवंत दास के पुत्र माधव सिंह ने बनवाया था। इसे भारत का सबसे रहस्यमय स्थान माना जाता है।
    सिलिसेढ़ झील
    • यह झील 1845 ई. में महाराजा विनय सिंह द्वारा बनाई गई थी। झील के किनारे स्थित सिलिसेढ़ पैलेस अब एक हेरिटेज होटल है।
    सोनीजी की नसियां ​​
    • यह एक जैन मंदिर है, जो सोने की पन्नी के काम से सजे अपने ‘गोल्डन सिटी’ हॉल के लिए जाना जाता है। 
    ब्रह्मा मंदिर: 
    • पुष्कर में स्थित दुनिया का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर। इसमें ब्रह्मा की चार मुख वाली मूर्ति और जूते पहने हुए सूर्य भगवान की संगमरमर की मूर्ति है। 
    सावित्री मंदिर: 
    • यह ब्रह्मा मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर स्थित है, जोकि ब्रह्मा की पहली पत्नी सावित्री देवी को समर्पित है
    •  पुष्कर झील और रेत के टीलों के सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। अब पहुँच के लिए रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। 
    पुष्कर झील: 
    • इसे तीर्थराज/तीर्थ स्थलों का राजा कहा जाता है। 
    • यह अर्ध-वृत्ताकार झील जिसके चारों ओर 500 से अधिक मंदिर और 52 घाट हैं। माना जाता है कि झील में डुबकी लगाने से तीर्थ यात्रा पूरी हो जाती है।

    बांसवाड़ा (सुनहरे द्वीपों का शहर)

    माही बांध 
    • यह बांध माही नदी पर स्थित है और इसकी कुल लंबाई 3.1 किलोमीटर है। बारिश के मौसम में जब इसके 16 गेट खोले जाते हैं, तो दृश्य बेहद आकर्षक हो जाता है।
    त्रिपुरा सुंदरी मंदिर
    • यह प्राचीन शक्ति पीठ उमराई गांव में स्थित है। यहां काले पत्थर से बनी 18 भुजाओं वाली शेर पर सवार देवी की प्रतिमा प्रमुख आकर्षण है।
    मानगढ़ धाम
    • यह राजस्थान का जलियांवाला बाग कहा जाता है। 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजों ने यहां 1500 आदिवासियों को गोली मार दी थी। इसे अब राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है।
    अब्दुल्ला पीर
    • यह बोहरा समुदाय के संत अब्दुल रसूल की मजार है। यहां हर साल उर्स का आयोजन होता है।

    बारां

    सीताबाड़ी:
    • बारां से 45 किमी दूर स्थित यह मंदिर सीता माता और लक्ष्मण को समर्पित है।
    • इसे लव और कुश का जन्मस्थान माना जाता है।
    • यहाँ प्रसिद्ध वाल्मीकि कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूर्य कुंड आदि स्थित हैं।
    • यहाँ हर साल सीताबाड़ी मेला आयोजित होता है। इसे पिकनिक स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
    शेरगढ़ किला:
    • यह किला बारां से 65 किमी दूर, परवन नदी के किनारे स्थित है।
    • रणनीतिक महत्व वाला यह किला पहले कोशवर्धन नाम से जाना जाता था।
    • इसे शेरशाह सूरी ने जीतने के बाद इसका नाम शेरगढ़ रखा।
    रामगढ़ भंडदेवरा मंदिर:
    • बारां से 40 किमी दूर, यह मंदिर 10वीं शताब्दी में बना भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है।
    • इसकी वास्तुकला खजुराहो शैली से मिलती है, इसलिए इसे राजस्थान का ‘मिनी खजुराहो’ कहा जाता है।
    • यहाँ एक छोटे तालाब के किनारे स्थित यह मंदिर अनूठा है, जहाँ एक देवता को मिष्ठान व मेवे चढ़ाए जाते हैं और दूसरे को मांस व शराब।

    बाड़मेर

    किराडू के मंदिर:
    • बाड़मेर से 35 किमी दूर, थार मरुस्थल में स्थित ये मंदिर प्रसिद्ध हैं।
    • इनके सोलंकी वास्तुकला शैली में बने स्तंभ और पत्थरों की नक्काशी बेहद आकर्षक हैं।
    • ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं।
    • यहाँ पाँच मंदिर हैं, जिनमें सोमेश्वर महादेव मंदिर सबसे कलात्मक है।
    श्री नाकोड़ाजी जैन मंदिर:
    • तीसरी शताब्दी में निर्मित यह मंदिर कई आक्रमणों का साक्षी रहा है।
    • 13वीं शताब्दी में आलम शाह ने इस पर आक्रमण किया और इसे लूटा, लेकिन परश्वनाथ भगवान की मूर्ति को साथ ले जाने में विफल रहा।
    • मूर्ति को गाँव वालों ने छुपा लिया था और 15वीं शताब्दी में इसे वापस मंदिर में स्थापित किया गया।
    • यहाँ का सबसे बड़ा मंदिर परश्वनाथ भगवान को समर्पित है।
    रानी भटियाणी मंदिर (बुआ सा):
    • यह मंदिर जसोल गाँव, बाड़मेर में स्थित है और ढोली जाति की आस्था का केंद्र है।
    • इसे भटियाणी रानी को समर्पित किया गया है, जो जैसलमेर के भटि राजपूत परिवार की राजकुमारी थीं।
    • विवाह के बाद वे राठौर राजा के साथ बाड़मेर आईं, लेकिन बड़ी रानी ने जलन के कारण उन्हें और उनके पुत्र लाल सिंह को विष देकर मार दिया।

    भरतपुर

    केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान
    • पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है, जिसमें घने वृक्ष और तालाब हैं।
    • 1971 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य और 1985 में विश्व धरोहर स्थल घोषित।
    • हर सर्दियों में हजारों दुर्लभ प्रवासी पक्षी आते हैं। लगभग 230 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं।
    • 18वीं शताब्दी में एक छोटे जलाशय के रूप में बनाया गया था।
    • यहाँ भारतीय सारस, साइबेरियाई सारस, बगुले, और पेंटेड सारस जैसे पक्षी मुख्य आकर्षण हैं।
    लोहागढ़ किला
    • कई ब्रिटिश हमलों को विफल किया, 1826 में लॉर्ड कॉम्बेरमियर ने कब्जा किया।
    • किले के मजबूत द्वार अष्टधातु और लकड़ी के बने हैं।
    • प्रमुख इमारतें: कोठी खास, महल खास और किशोरी महल।
    • प्रसिद्ध बुर्ज: जवाहर बुर्ज (मुगलों पर विजय) और फतेह बुर्ज (ब्रिटिश पर विजय)।
    बंद बरेठा
    • पहले शाही शिकार के लिए प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य।
    • 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों और कई जानवरों का घर।
    • 1866 में महाराजा जसवंत सिंह ने बाँध निर्माण शुरू किया, 1897 में पूरा हुआ।
    • ‘शाही महल’ महाराजा किशन सिंह द्वारा निर्मित।
    गंगा मंदिर
    • महाराजा बलवंत सिंह द्वारा आरंभ, निर्माण में 90 साल लगे।
    • राजपूत, मुगल, और द्रविड़ वास्तुशैली का अनूठा मिश्रण।
    • गंगा सप्तमी पर बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।

    भीलवाड़ा (टेक्सटाइल सिटी)

    मेनाल जलप्रपात
    • कोटा रोड पर 80 किमी दूर, प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध।
    • 150 फीट गहरी घाटी में गिरता जलप्रपात और घने जंगल।
    • शिव मंदिर यहाँ मुख्य आकर्षण है।
    मंडलगढ़
    • भीलवाड़ा से 54 किमी दूर, मध्यकालीन युद्धों का साक्षी।
    • किले में मजबूत दीवारें, खाई, और शिव व कृष्ण मंदिर।
    शाहपुरा
    • 55 किमी दूर रामस्नेही संप्रदाय का तीर्थ स्थल।
    • फाल्गुन शुक्ल में फुलडोल मेला आयोजित।
    • प्रसिद्ध हैं: त्रिमूर्ति स्मारक, बड़हाटजी हवेली (संग्रहालय), और पियानिया तालाब।

    बूंदी (बावड़ियों का शहर)

    तारागढ़ किला
    • राजा बार सिंह ने 1354 में बनवाया, राजपूत शैली में।
    • ऊँचाई पर स्थित किला, मंदिरों और सजावट के लिए प्रसिद्ध।
    चौरासी खंभों की छतरी
    • महाराजा अनिरुद्ध सिंह ने अपने पालक पुत्र की स्मृति में बनवाई।
    • यहाँ हिरण, हाथी और अप्सराओं की कलाकृतियाँ।
    चित्रशाला
    • दीवारों और छत पर सुंदर चित्रण, जिनमें राधा-कृष्ण, युद्ध दृश्य आदि।
    • चित्रशाला में चित्रों की चमक और रंग संरक्षित हैं।
    रानीजी की बावड़ी
    • 1699 में रानी नाथावतजी द्वारा निर्मित।
    • प्रवेश द्वार और अंदरूनी कलाकृति विशेष।

    चित्तौड़गढ़

    चित्तौड़गढ़ किला
    Tourism in Rajasthan
    • यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल 2013 है।
    • सिसोदिया राजपूतों का यह किला गंभीरी नदी के किनारे, बेड़च और मेसा पठार पर स्थित है।
    • मेवाड़ के ऐतिहासिक ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार, इस किले का निर्माण मौर्य राजा चित्रांगद (चित्रांगद) ने करवाया था, जिन्होंने इसका नाम चित्रकोट रखा था जिसे बाद में बदलकर चित्तौड़ कर दिया गया।
    • मेवाड़ में गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने अंतिम मौर्य शासक (मानमोरी) को हराया और 8वीं शताब्दी के आसपास चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया और इसका नाम बदलकर ‘खिज्राबाद’ रख दिया।
    • एक पौराणिक कथा के अनुसार, इसका निर्माण पौराणिक काल में महाकाव्य महाभारत के पांडव भाइयों में से एक भीम ने करवाया था।
    • दिल्ली से मालवा और गुजरात के मार्ग पर स्थित, इस किले का प्राचीन और मध्यकालीन काल में अपना सामरिक महत्व था।
    • इसे सभी किलों का मुकुट माना जाता है। इस प्रकार चित्तौड़गढ़ की प्रधानता को रेखांकित करने वाली एक पुरानी कहावत है- गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।
    • अंदर के प्रसिद्ध स्थान: तुलजामाता मंदिर, नवलखा भंडार, भामाशाह की हवेली, श्रृंगार चंवरी महल, त्रिपोलिया गेट, कुंभा श्याम मंदिर, सोमदेव मंदिर, कुंभा द्वारा बनवाया गया विजय स्तंभ, रानी पद्मिनी का महल, गोरा बादल का महल, चित्रांग मोरी तालाब और जैन कीर्ति स्तंभ इत्यादि।
    विजय स्तंभ
    Tourism in Rajasthan
    • इसका निर्माण 1440 ईस्वी में महाराणा कुंभा ने मालवा के मुस्लिम शासक पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में शुरू किया था, जो 8 वर्षों में पूरा हुआ।
    • यह कारीगरी का एक अद्भुत नमूना है, यह 9 मंजिला स्तंभ है, जो लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना है।
    • इसमें हिंदू देवी-देवताओं की सजावटी मूर्तियां हैं इसलिए इसे ‘मूर्तियों का अजायबघर’ भी खा जाता है।
    • फ़र्ग्युसन ने इसे रोम के ट्रोजन टावर एवं कर्नल जेम्स टॉड ने इसे क़ुतुबमीनार से श्रेष्ठ बताया है।
    • एक संकीर्ण सीढ़ी शीर्ष तक जाती है, जिससे शहर का विस्तृत दृश्य दिखाई देता है।
    कीर्ति स्तंभ
    • यह विशाल स्तंभ जैन तीर्थंकर और महान शिक्षक आदिनाथजी को समर्पित है।
    • इसे 13वीं शताबदी में एक संपन्न जैन व्यापारी, जीजा भगेरवाला और उनके पुत्र पुण्य सिंह ने बनवाया था।
    • यह 24.5 मीटर ऊंचा है और हिंदू वास्तुकला शैली में निर्मित है।
    • इस 6-मंजिला स्तंभ पर जैन तीर्थंकरों की सैकड़ों छोटी मूर्तियां खुदी हुई हैं।
    भैंसरोडगढ़ किला
    • यह भव्य किला 200 फीट ऊंची समतल पहाड़ी पर स्थित है और इसे चंबल और बामनी नदियों से घेरा गया है।
    • ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स टॉड ने इसकी सुंदरता की सराहना की, यह कहते हुए कि अगर उन्हें राजस्थान में जगीर दी जाती तो वे भैंसरोडगढ़ को चुनते।
    • यह 2वीं शताब्दी में बने होने का अनुमान है और यह विभिन्न राजवंशों के अधीन रहा है, और कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने इसे आक्रमण किया था।
    • वर्तमान में यह किला शाही परिवार द्वारा एक धरोहर होटल के रूप में संचालित किया जाता है और अरावली की पहाड़ियों और घने जंगलों के सुंदर दृश्यों के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता है।

    दौसा

    चांदबावड़ी-आभानेरी
    • यह दौसा जिले का मुख्य आकर्षण है, जो जयपुर-आगरा मार्ग(NH-21) पर स्थित है।
    • मूल रूप से ‘आभानगरी’ नामक स्थान अब आभानेरी के नाम से जाना जाता है।
    • ‘आभानेरी महोत्सव’ हर साल सितंबर-अक्टूबर में पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है।
    • यह महोत्सव राजस्थानी व्यंजन, लोक गीत और नृत्य प्रदर्शित करता है, जो पर्यटकों का मनोरंजन करते हैं।
    हर्षद माता मंदिर-आभानेरी
    • यह मंदिर चांद बावड़ी परिसर में स्थित है, जो दौसा से 33 किमी दूर है।
    • यह हर्षद माता को समर्पित है, जो खुशी की देवी मानी जाती हैं और भक्तों को सुख देने का विश्वास किया जाता है।

    धौलपुर

    वन विहार अभयारण्य
    • यह 24 वर्ग किमी में फैला हुआ है और इसे धौलपुर के शासकों का मनोरंजन करने के लिए बनाया गया था।
    • यहां सांभर, चिंतल, नीलगाय, जंगली सुअर, भालू, गीदड़ और तेंदुआ जैसे विभिन्न जीव-जंतु पाए जाते हैं।
    मचकुंड
    • यह स्थान राजा मचकुंड के नाम पर है, जो सूर्यवंशी वंश के 24वें शासक थे।
    • यह एक पवित्र स्थल है जो शहर से 4 किमी दूर है और इसे एक प्राचीन तीर्थस्थल माना जाता है।
    • किंवदंती के अनुसार, राजा मचकुंड का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने पर एक राक्षस को राख में तब्दील कर दिया गया था।
    तालाब-ए-शाही
    • यह 1617 में शाहजहां के लिए शिकारगाह के रूप में बनाया गया था।
    • धोलपुर से 27 किमी दूर यह स्थल सर्दियों में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है, जैसे पिंटेल, रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड और बत्तखें।

    डूंगरपुर

    बेणेश्वर मंदिर
    • यह मंदिर सोम और माही नदियों के संगम पर स्थित है और इसमें एक स्वयं निर्मित शिवलिंग है, जिसे पांच भागों में विभाजित किया गया है।
    • विष्णु मंदिर, जो 1793 में मावजी की बेटी जनकंवारी ने बनवाया था, पास में स्थित है।
    • अन्य आकर्षणों में लक्ष्मी नारायण और ब्रह्मा के मंदिर शामिल हैं।
    • यहां हर साल माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) को एक भव्य मेला आयोजित होता है, जो आदिवासियों और भक्तों को आकर्षित करता है।
    गलियाकोट दरगाह
    • यह माही नदी के किनारे स्थित है, जो 58 किमी दूर है।
    • यहां प्रसिद्ध संत सैयद फखरुद्दीन की दरगाह स्थित है।
    • यह दरगाह सफेद संगमरमर, सोने की पत्तियों और कुरान की आयतों से सजाई गई है।

    हनुमानगढ़

    कालीबंगा 
    • यह हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो सरस्वती नदी के किनारे स्थित है।
    • यहां की खुदाई में हड़प्पा की मुहरें, मानव कंकाल और मिट्टी के खिलौने पाए गए हैं।
    • 1983 में स्थापित एक पुरातात्विक संग्रहालय में इन वस्तुओं को संरक्षित किया गया है।
    भटनेर किला
    • यह किला घग्गर नदी के किनारे स्थित है और इसे 1700 साल पहले राजा भूपत, जो जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र थे, ने बनवाया था।
    • इसे उत्तरी सीमा का प्रहरी माना जाता है और इसे 1805 में बीकानेर के राजा सूरज सिंह ने कब्जा कर लिया था।
    • इस किले का ऐतिहासिक उल्लेख ‘आइन-ए-अकबरी’ में मिलता है।

    जयपुर (गुलाबी नगर)

    हवा महल
    • महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा 1799 ईस्वी में निर्मित, यह भगवान कृष्ण के मुकुट जैसा दिखता है।
    • इस पाँच मंजिला महल को लालचंद उस्ताद ने डिज़ाइन किया।
    • इसमें 953 छोटी-छोटी सुंदर जालियां हैं, जो गर्मियों में भी इसे वातानुकूलित बनाए रखती हैं।
    • इसे रानियों के लिए बनाया गया था, ताकि वे मेलों और जुलूसों को अंदर से देख सकें।
    आमेर किला
    • जयपुर से 11 किमी दूर स्थित, यह किला कछवाहा राजवंश की पुरानी राजधानी था।
    • मूलतः इसे 1150 ई. में दूल्हे राय द्वारा बनवाया गया था एवं इसका पुनः निर्माण राजा मानसिंह प्रथम द्वारा 1592 ईस्वी में कराया गया।
    • यह हिंदू और मुगल स्थापत्य कला का सुंदर मिश्रण है।
    • किले के अंदर लाल पत्थर, संगमरमर, जटिल नक्काशी, मोज़ेक और दर्पण का कार्य किया गया है। इसमें शीशमहल, भूलभुलैया, शीलदेवी माता का मंदिर, केसर क्यारी बाग इत्यादि है।
    • इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया है।
    जंतर मंतर
    • 18 वीं शताब्दी में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित सबसे बड़ा खगोलीय वेधशाला।
    • यह वेधशाला, टोलेमिक स्थितीय खगोल विज्ञान की एक परम्पंरा का हिस्सा है, जिसका अनेक सभ्यताओं में प्रयोग किया जाता था। 
    • इसमें लगभग 20 मुख्य स्थापित यंत्रों का एक सेट शामिल है, जो समय और खगोलीय गतियों को मापते हैं।
    • इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।
    जयगढ़ किला
    • 1726 ईस्वी में महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा आमेर की रक्षा के लिए निर्मित।
    • यहां दुनिया की सबसे बड़ी तोप ‘जयबाण’ और शस्त्रागार संग्रहालय स्थित हैं।
    • 50 टन वजन की जयबाण तोप को केवल एक बार दागा गया था, जिसने 35 किमी दूर एक गड्ढा बना दिया।
    नाहरगढ़ किला
    • महाराजा जयसिंह के शासनकाल में 1734 ईस्वी में निर्मित, यह किला जयपुर का खूबसूरत दृश्य प्रदान करता है।
    • इसमें माधवेंद्र भवन है, जो महाराजा का ग्रीष्मकालीन आवास था।
    • हाल ही में महल में एक मूर्तिकला कला गैलरी भी जोड़ी गई है।
    अल्बर्ट हॉल (सेंट्रल म्यूज़ियम)
    • 1876 ईस्वी में स्थापित, इसका नाम लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय पर रखा गया।
    • सर स्विंटन जैकब द्वारा इंडो-सारसेनिक वास्तुकला शैली में डिज़ाइन किया गया।
    • इसमें कोटा, बूंदी, किशनगढ़ और उदयपुर शैली की लघु चित्रों का बड़ा संग्रह है।
    गलताजी
    • यह एक प्राचीन तीर्थ स्थल है, जो ऋषि गालव से संबंधित है।
    • यहां पवित्र कुंड, राम गोपालजी मंदिर (‘बंदर मंदिर’) और सूर्य मंदिर स्थित हैं।
    • दिवान कृपाराम द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर एक श्रद्धेय स्थल है, जो सुंदर वातावरण से घिरा हुआ है।
    इसारलाट (सर्गसूली)
    • 60 फीट ऊंचा यह टॉवर 1749 ईस्वी में राजा ईश्वरी सिंह ने विजय स्मृति में बनवाया।
    • त्रिपोलिया गेट के पास स्थित, यहां से जयपुर शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
    गोविंद देवजी मंदिर
    • श्री गोविंद देवजी की मूर्ति, जिसे सवाई जयसिंह ने वृंदावन से लाकर यहां स्थापित किया।
    • राजपरिवार और स्थानीय लोगों द्वारा पूजनीय, यहां दर्शन की व्यवस्था सात झांकियों के माध्यम से की जाती है।

    जैसलमेर (किलों और हवेलियों का शहर)

    जैसलमेर किला
    • विश्व धरोहर स्थल, यह किला थार मरुस्थल की त्रिकुट पहाड़ी पर स्थित है, जो कि धनवान दुर्ग की श्रेणी में आता है।
    • यह क़िला ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है। इस क़िले की प्रशंशा में कहा जाता है की :

    गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो, अधगढ़ बीकानेर
    भलो चिनायो भाटियाँ, सिरे तो जैसलमेर ।।

    • सूरज की रोशनी पड़ने पर यह सोने की तरह चमकता है, इसलिए इसे ‘सोनार किला’ या ‘गोल्डन फोर्ट’ कहते हैं।
    डेजर्ट नेशनल पार्क
    • थार मरुस्थल के विविध वन्यजीवों का मुख्य आवास।
    • यहां चिंकारा, ब्लैक बक और डेजर्ट फॉक्स जैसे कई जीव पाए जाते हैं।
    • यहां संकटग्रस्त ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ पक्षी, जो विश्व के सबसे बड़े उड़ने वाले पक्षियों में से एक है, देखा जा सकता है।
    • यह पार्क जैसलमेर से 40 किमी दूर स्थित है।
    पटवों की हवेली
    • 1805 ई. में गुमान चंद पटवा ने अपने पांच बेटों के लिए यह हवेली बनवाई।
    • इसे बनने में 50 साल लगे।
    • पांच मंजिला संरचना, जो जटिल नक्काशी के साथ जैसलमेर की सबसे बड़ी और सुंदर हवेली है।
    • हवेली का अधिकांश भाग अब खंडहर हो चुका है, लेकिन अंदर की दीवारों पर कुछ पेंटिंग और शीशे का काम अभी भी देखा जा सकता है।
    तनोट माता मंदिर
    • भाटी राजपूत राजा तनु राव ने 828 विक्रम संवत में इसे बनवाया।
    • बीएसएफ जवान और आसपास के ग्रामीण यहां प्रार्थना करते हैं।
    • यह मंदिर जैसलमेर से 120 किमी दूर स्थित है।
    • तनोट माता को देवी हिंगलाज का अवतार माना जाता है।
    रामदेवरा मंदिर
    • यह मंदिर बाबा रामदेव (रुणीचा बाबा) को समर्पित है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं।
    • रामदेवजी राजस्थान के लोक देवता हैं। उनकी मूर्ति घोड़े पर सवार राजा के रूप में दिखती है।
    • मंदिर का सबसे बड़ा मेला भाद्रपद में लगता है, जहां श्रद्धालु रातभर भजन गाते हैं।
    • यह मंदिर जोधपुर-जैसलमेर रोड पर, पोखरण से 12 किमी दूर स्थित है।
    बड़ा बाग
    • भाटी राजाओं की स्मृति में बनाया गया एक विशाल उद्यान।
    • महाराजा जय सिंह (1688-1743) ने यहां बांध बनवाया, जिससे जैसलमेर क्षेत्र में हरियाली आई।
    • 1743 ई. में उनके पुत्र लूणकरण ने उनका छतरी स्मारक बनवाया।
    • यहां से पर्यटक सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य देख सकते हैं।

    जालौर (ग्रेनाइट का शहर)

    जालौर किला
    • यह क़िला 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच अरावली पर्वत श्रृंखला की सोनगिरि पहाड़ी पर सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे निर्मित है।
    • सोनगिरि पहाड़ी पर निर्मित होने के कारण किले को ‘सोनगढ़’ कहा जाता है। यह ‘गिरि दुर्ग’ एवं ‘ऐरन दुर्ग’ की श्रेणी में आता है।
    • किले की ऊंचाई लगभग 336 मीटर है और यह शहर का मनोरम दृश्य प्रदान करता है।
    • कान्हड़ देव के समय यहाँ अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण (1311 ई. में) हुआ। यही जालौर दुर्ग का ‘प्रथम साका’ था।
    • इस किले की अजेयता के बारे में ताज उल मासिर में हसन निजामी ने लिखा, ‘यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका।’
    सुंधा माता मंदिर
    • अरावली पर्वतमाला की सुंधा पहाड़ियों पर, समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
    • सफेद संगमरमर के खंभे दिलवाड़ा मंदिरों की याद दिलाते हैं।
    • यहां चामुंडा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
    मलिक शाह की मस्जिद
    1. अलाउद्दीन खिलजी ने इसे बगदाद के सुल्तान मलिक शाह के सम्मान में बनवाया।
    2. मस्जिद की वास्तुकला पर गुजरात की इमारतों का प्रभाव देखा जा सकता है।

    झालावाड़(घंटियों का शहर)

    गागरोन किला
    • 12वीं शताब्दी में डोड परमार राजा बीजलदेव द्वारा निर्मित, यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।
    • आहू और कालीसिंध नदियों से घिरा यह किला ‘जल और पहाड़ी दुर्ग’ का उत्कृष्ट उदाहरण है।
    • इस क़िले मैं दो बार जौहर हुआ है।
      • प्रथम साका – 1423 (अचलदास खींची vs होशंगशाह)
      • द्वितीय – 1444 (मालवा सुल्तान महमूद ख़िलजी का आक्रमण)

    1. केसरिया

    जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी, तो राजपूत पुरुष युद्ध के लिए तैयार होकर वीरगति प्राप्त करने निकलते थे। वे केसरिया वस्त्र धारण करते थे, जो उनके साहस और बलिदान का प्रतीक होते थे। उदाहरण : 1303 रावल रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ।

    2. जौहर

    युद्ध के बाद अपनी मर्यादा और सतीत्व की रक्षा हेतु, दुर्ग की स्त्रियाँ जौहर कुंड में आग लगाकर उसमें कूद जाती थीं। यह आत्मबलिदान का प्रतीक था। उदाहरण: रानी पद्मिनी द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जौहर किया गया।

    3. साका

    साका शब्द केसरिया और जौहर की घटनाओं के लिए सामूहिक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह उस अंतिम युद्ध का प्रतीक है जिसमें राजपूत वीर योद्धा लड़ते हुए प्राण न्यौछावर कर देते थे और स्त्रियाँ एक साथ आत्मबलिदान करती थीं। उदाहरण: चित्तौड़ का पहला साका (1303 ई.)

    4.अर्धसाका

    जब दुश्मन किसी राजपूत दुर्ग पर हमला करता था, तो राजपूत योद्धा केसरिया धारण करते थे और राजपूत वीरांगनाएं जौहर व्रत करती थीं। इन दोनों क्रियाओं में से अगर कोई एक क्रिया नहीं होती थी, तो उसे अर्ध साका कहा जाता था जैसलमेर का तीसरा साका ‘अर्द्धसाका’ कहलाता है, क्योंकि वीरों ने लड़ते हुए वीरगति तो पाई लेकिन जौहर नहीं हुआ।

    • मुहर्रम के महीने में सुफी संत मिट्ठेशाह की मजार पर मेला लगता है।
    भवानी नाट्यशाला
    • 1921 ई. में निर्मित, यह अद्वितीय वास्तुकला का नमूना है।
    • यहां शेक्सपियर के नाटकों का मंचन होता था।
    • इसमें घोड़ों और रथों की प्रवेश हेतु भूमिगत मार्ग है।
    सूर्य मंदिर
    • झालरापाटन में स्थित, इसे ‘घंटियों का शहर’ कहा जाता है।
    • 10वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
    • मंदिर की शिखर संरचना कोणार्क सूर्य मंदिर के समान है।
    बौद्ध गुफाएं और स्तूप
    • कोलवी गांव की बौद्ध गुफाएं, विशाल बुद्ध मूर्ति और नक्काशीदार स्तूप के लिए प्रसिद्ध हैं।
    • यह झालावाड़ से 90 किमी दूर स्थित हैं।
    • यह भारतीय कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

    शेखावाटी (सीकर, झुंझुनू, चूरू)

    ताल छापर अभयारण्य
    • स्थान: सुजानगढ़ तहसील के छापर गांव, चूरू में स्थित।
    • दूरी: जयपुर से 210 किलोमीटर।
    • मुख्य आकर्षण: काले हिरण (ब्लैकबक) का संरक्षण स्थल।
    • वन्यजीव: हिरण, रेगिस्तानी लोमड़ी, जंगली बिल्ली।
    • पक्षी: ईगल, सारस, दक्षिणी यूरोप और मध्य एशिया से आने वाले प्रवासी पक्षी।
    मंडावा
    • प्राचीन महत्व: प्राचीन व्यापार मार्ग पर एक प्रमुख केंद्र।
    • स्थापना: ठाकुर नवल सिंह द्वारा मंडावा किले का निर्माण।
    • विशेषताएं: किले के भित्ति चित्र, कांच का काम, और कृष्ण भगवान की चित्रित मेहराब।
    खेतड़ी महल
    • अन्य नाम: झुंझुनू का हवा महल।
    • निर्माण वर्ष: 1770 ईस्वी।
    • विशेषता: महल में बालकनी या द्वार न होने के बावजूद उत्कृष्ट वेंटिलेशन।
    • वास्तुशैली: जुड़े हुए स्तंभ और मेहराब इसे भव्य रूप देते हैं।
    श्रद्धानाथजी का आश्रम (लक्ष्मणगढ़)
    • स्थान: लक्ष्मणगढ़ रेलवे स्टेशन के निकट।
    • महत्व: अमृतनाथजी महाराज की परंपरा के संत श्रद्धानाथजी द्वारा स्थापित।
    • विशेषता: नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र।
    हजरत कमरुद्दीन शाह की दरगाह
    • स्थान: नेहरा पर्वत की तलहटी में।
    • संरचना: मस्जिद, मदरसा और सूफी संत कमरुद्दीन शाह की सज्जित दरगाह।
    नवलगढ़
    • विशेषता: सुंदर हवेलियों के लिए प्रसिद्ध।
    • स्थापना: ठाकुर नवल सिंह द्वारा किले का निर्माण।
    • अन्य आकर्षण: रूप निवास, जो बगीचों और फव्वारों से सुसज्जित है।
    लक्ष्मणगढ़ किला
    • स्थान: लक्ष्मणगढ़।
    • विशेषता: बिखरे हुए पत्थरों से निर्मित।
    • दृश्य: किले के शिखर से लक्ष्मणगढ़ का मनोरम दृश्य।
    फतेहपुर
    • स्थापना: कायमखानी नवाब फतेह मोहम्मद ने 1508 ईस्वी में की।
    • किला निर्माण: 1516 ईस्वी।
    • महत्व: शेखावाटी की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है।
    • मुख्य आकर्षण: द्वारकाधीश मंदिर, सिंघानिया हवेली, नादिन ले प्रिंस कल्चरल सेंटर।

    जोधपुर

    मेहरानगढ़ किला
    • ऊंचाई: 125 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित।
    • विशेषता: मजबूत निर्माण और अलंकृत बालकनी।
    • प्रमुख महल: मोती महल, फूल महल और शीश महल।
    जसवंत थड़ा
    • निर्माण: 19वीं सदी में महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के स्मारक के रूप में।
    • अन्य नाम: “राजस्थान का ताजमहल”।
    मंडोर
    • प्राचीन नाम: मंडवपुर।
    • महत्व: मराठा शासकों के स्मारक और मंदिरों की वास्तुशैली।
    कायलाना झील
    • प्राकृतिक सुंदरता: पिकनिक स्थल।
    • सुविधाएं: बोटिंग सुविधा।
    माचिया सफारी पार्क
    • स्थान: कायलाना झील के पास।
    • प्रमुख आकर्षण: हिरण, रेगिस्तानी लोमड़ी और पक्षी।
    बालसमंद झील
    • निर्माण: 1159 ईस्वी।
    • प्राकृतिक सुंदरता: हरे-भरे बगीचों से घिरी।

    करौली

    कैलादेवी मंदिर
    • स्थान: त्रिकूट पर्वत की घाटी में कालीसिल नदी के किनारे।
    • स्थापना: 1100 ईस्वी।
    • विशेषता: हर साल चैत्र महीने में मेला।
    • कैला माता के भक्तों को लांगुरिया कहा जाता है 
    • कैला माता करौली वंश के यादव शासकों की कुल देवी हैं।
    श्री महावीरजी मंदिर
    • निर्माण: 19वीं सदी करौली ज़िले के महावीर जी नामक तहसील मैं अमरचंद बिलाला द्वारा ।
    • गंभीर नदी के तट पर स्थित ।
    • महत्व: यह जैन तीर्थ स्थल है जो की 24वें तीर्थंकर महावीर जैन को समर्पित है ।
    मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
    • मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर राजस्थान के तहसील सिकराय में स्थित हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मन्दिर है।
    • विशेषता: मानसिक और शारीरिक रोगों के इलाज के लिए प्रसिद्ध।

    कोटा

    कोटा बैराज
    • महत्व: चंबल नदी पर जल संरक्षण का प्रमुख केंद्र।
    • विशेषता: बरसात के मौसम में तेज जलधारा का मनमोहक दृश्य।
    मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व
    • स्थान: कोटा से लगभग 50 किलोमीटर।
    • वन्यजीव: बाघ, भालू, लोमड़ी और पक्षी।
    जगमंदिर महल
    • निर्माण: 1743-45 ईस्वी।
    • सुविधाएं: वाटर स्पोर्ट्स और लेजर शो।
    अभेडा महल
    • निर्माण: 18वीं सदी।
    • विशेषता: कृत्रिम जलाशय और वन्यजीव संरक्षण।

    नागौर

    नागौर किला
    • निर्माण: 12वीं शताब्दी में।
    • संरक्षक: नागवंशी राजपूतों द्वारा निर्मित और बाद में मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा पुनर्निर्मित।
    • विशेषता: किले में 90 से अधिक जलाशय और भित्ति चित्र।
    • अन्य आकर्षण: अंदर स्थित पलंग महल, अकबरी महल, और दीपक महल।
    तेजाजी का मंदिर
    • स्थान: खरनाल गांव।
    • महत्व: लोक देवता तेजाजी को समर्पित।
    • विशेषता: पशुओं की रक्षा के लिए तेजाजी की पूजा।
    मकराना
    • विशेषता: विश्व प्रसिद्ध संगमरमर के लिए प्रसिद्ध।
    • महत्व: ताजमहल के निर्माण में उपयोग किए गए संगमरमर का स्रोत।

    पाली

    रणकपुर जैन मंदिर
    • स्थान: पाली जिले के सादड़ी गांव के पास मगई नदी के किनारे।
    • निर्माण: 15वीं शताब्दी में जैन व्यापारी धन्ना सेठ द्वारा।
    • भगवान आदिनाथ को समर्पित, जो अपनी सुंदर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
    • विशेषता: संगमरमर की 1,444 अलग-अलग डिजाइन वाली स्तंभ और उत्कृष्ट नक्काशी। 24 स्तंभयुक्त हॉल और 80 गुम्बद, जो 400 स्तंभों पर टिके हैं।
    • परिसर में शामिल मंदिर:
      • पार्श्वनाथ मंदिर।
      • सूर्य मंदिर।
      • अंबा माता मंदिर।
      • चौमुखा मंदिर (मुख्य मंदिर, जिसमें भगवान आदिनाथ की मूर्ति है)।
    ओसियां मंदिर
    • स्थान: पाली और जोधपुर के बीच।
    • विशेषता: 8वीं शताब्दी के सूर्य, विष्णु, और शिव मंदिर।
    • अन्य नाम: “राजस्थान का खजुराहो”।
    सोमनाथ मंदिर
    • स्थान: पाली शहर।
    • निर्माण: परमार वंश द्वारा।
    • समर्पण: भगवान शिव।
    • विशेषता: सोलंकी शैली की उत्कृष्ट वास्तुकला।
    जवाई बाँध 
    • जोधपुर महाराजा उम्मेद सिंह ने राजकीय इंजीनियर एडगर और फर्ग्यूसन की देखरेख में इस बांध का निर्माण करवाया था।
    • पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध, प्रवासी पक्षियों और मगरमच्छों का निवास स्थान। 
    • जवाई नदी पर स्थित है। इसे मारवाड़ का अमृत सरोवर भी कहा जाता है।

    बीकानेर

    देशनोक – करणी माता मंदिर 
    • स्थान: बीकानेर से 30 किमी दूर देशनोक गाँव में।
    • विशेषता: इसे ‘चूहों का मंदिर’ कहा जाता है।
    • कथा: करणी माता ने अपने सौतेले पुत्र लक्ष्मण को यमराज से जीवित करने की प्रार्थना की। यमराज ने वंशजों को चूहों के रूप में पुनर्जन्म देने की शर्त पर यह स्वीकार किया।
    • प्रसाद: श्रद्धालु लड्डू और दूध चढ़ाते हैं।
    • विशेषता: संगमरमर से बना सुंदर प्रवेश द्वार।
    राजस्थान राज्य अभिलेखागार 
    • स्थान: बीकानेर।
    • महत्व: प्राचीन प्रशासनिक दस्तावेज संरक्षित, जिनमें मुगलकालीन अरबी और फारसी फरमान शामिल हैं।
    • विशेषता: राजस्थान की लगभग सभी रियासतों के शासकों के आदेश और कार्य संरक्षित।
    जूनागढ़ किला 
    • निर्माण: यह एक पारिख दुर्ग है जिसे 1589 ई. में राजा राय सिंह द्वारा।
    • विशेषता: इस किले को कोई शत्रु कभी जीत नहीं सका।
    • संरचना: लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनी अद्वितीय संरचनाएं।
    लालगढ़ महल और संग्रहालय 
    • निर्माण: 1902 ई. में महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता महाराजा लाल सिंह की स्मृति में बनवाया।
    • डिजाइन: सर स्विंटन जैकब द्वारा तैयार।
    • वास्तुकला: राजपूत, इस्लामिक और यूरोपीय शैली का समावेश।
    कोलायत 
    • स्थान: बीकानेर से 50 किमी दूर।
    • महत्व: कपिल मुनि के तप का स्थान, जिन्होंने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने हेतु तप किया।
    कतरियासर 
    • स्थान: बीकानेर से 45 किमी दूर।
    • विशेषता: जसनाथी संप्रदाय की मुख्य पीठ, इस संप्रदाय द्वारा किया जाने वाले अग्नि नृत्य के लिए प्रसिद्ध।
    • प्रकृति: रेत के टीले, मरु लोमड़ी, खरगोश, और मोर जैसे वन्यजीव।

    राजसमंद

    कुम्भलगढ़ किला
    • महाराणा प्रताप का जन्म स्थल, उदयपुर से 84 किमी उत्तर में स्थित है।
    • इसे राणा कुम्भा ने 15वीं सदी में बनवाया, और 19वीं सदी में महाराणा फतेह सिंह ने फिर से नवीनीकरण किया।
    • इसमें 36 किमी लंबी दीवारें हैं और आठ घुड़सवारों के समानांतर चलने की जगह है।
    • अंदर के स्थान: मामादेव तालाब, कटारगढ़, नीलकंठ महादेव मंदिर आदि।
    • कुंभलगढ़ को 2013 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • अबुल फजल ने कुंभलगढ़ किले के बारे में लिखा है, “यह इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर से पगड़ी नीचे गिर जाती है।”
    • इस क़िले के अंदर मामादेव तालाब, कटारगढ़, नीलकंठ महादेव मंदिर इत्यादि स्थान हैं।
    • कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना एट्रुस्कन से की है।
    राजसमंद झील
    • परिधि: 22.5 वर्ग किमी; गहराई: 30 फीट; जलग्रहण क्षेत्र: 524 वर्ग किमी।
    हल्दीघाटी
    • उदयपुर से 40 किमी दूर, जहाँ महाराणा प्रताप और अकबर के बीच युद्ध हुआ था।
    • इसका नाम इसके पीले हल्दी जैसे मृदा के कारण पड़ा।
    • इसमें चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े का एक स्मारक है।

    सवाई माधोपुर

    रणथंभौर किला
    • 700 फीट की पहाड़ी पर स्थित, किले को “राजस्थान के पहाड़ी किलों” के तहत यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था। एक मान्यता के अनुसार इस किले का निर्माण रणथंभौर देव चौहान ने करवाया था।
    • इसमें गिरि दुर्ग और वन दुर्ग दोनों की विशेषताएं सम्मिलित हैं।
    • किले के अंदर कई इमारतें जैसे बादल महल, दुल्ला महल, 32 खंभों वाली छतरी और हम्मीर का दरबार,गणेश मंदिर हैं।
    • इसमें मंदिर, जलाशय, विशाल द्वार और मजबूत दीवारें हैं।
    • इस दुर्ग के बारे में अबुल फ़ज़ल ने लिखा है की – ‘अन्य सभी दुर्गा नंगे हेन, जबकि यह दुर्गा बख्तरबंद है।’

    सिरोही

    गुरु शिखर
    • अरावली पर्वत की सबसे ऊँची चोटी, 1722 मीटर ऊँची।
    • इसमें भगवान दत्तात्रेय को समर्पित एक मंदिर है।
    दिलवाड़ा जैन मंदिर
    • 12वीं-13वीं सदी में निर्मित, इसमें जटिल नक्काशी है।
    • छतों, मेहराबों और खंभों पर अद्वितीय शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
    नक्की झील
    • भारत की पहली मानव निर्मित झील, जो माउंट आबू में स्थित है।
    • यह कथाओं और महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जन से जुड़ी हुई है।

    टोंक

    बिसलपुर बांध
    • बनास नदी पर स्थित गुरुत्वाकर्षण बांध, जो देवली शहर के पास है।
    • 1999 में निर्मित और राजस्थान को जल आपूर्ति करता है।
    सुनहरी कोठी
    • 19वीं सदी की सुनहरी हवेली, बड़ी कुआं के पास।
    • इसमें शीश महल है जिसमें सुसज्जित ऐनामेल कार्य और पुष्प सजावट हैं।
    डिग्गी कल्याणजी मंदिर
    • भगवान विष्णु के अवतार श्री कल्याणजी को समर्पित।
    • यह टोंक से 60 किमी दूर स्थित है, जिसमें 16 खंभों द्वारा समर्थित एक भव्य शिखर है।

    श्री गंगानगर

    बुड्ढा जोहड़ गुरुद्वारा
    • 1954 में बाबा फतेह सिंह की देखरेख में निर्मित।
    • यह जत्थेदार बुद्धा सिंह के ऐतिहासिक कार्यों से जुड़ा हुआ है।
    हिंदूमलकोट सीमा
    • श्री गंगानगर से 25 किमी दूर भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित।
    • पर्यटकों के लिए प्रतिदिन 10:00 AM से 5:30 PM तक खुला रहता है।

    उदयपुर

    पिछोला झील
    • यह बेडच नदी के किनारे पर बनी हुई है। इसमें सीसारमा एवं बुझड़ा नदी आकर गिरती हैं।
    • इसका निर्माण 14 वीं शताब्दी में राणा लाखा के शासन काल में एक चिड़ीमार बंजारे ने बैल की स्मृति में करवाया।
    • इसमें जग निवास और जग मंदिर जैसी द्वीपों का समावेश है।
    • इस झील में नटनी का चबूतरा है 
    फतेहसागर झील
    • पिचोला से नहर के द्वारा जुड़ी हुई एक कृत्रिम झील।
    • इसमें नेहरू गार्डन और सोलर वेधशाला है।
    सहेलियों की बाड़ी
    • महाराणा संग्राम सिंह II द्वारा महिलाओं के लिए बग़ीचा बनवाया गया।
    • इसमें फव्वारे, संगमरमर के हाथी और कमल का तालाब है।
    भारतीय लोक कला मंडल
    • राजस्थान की लोक कला, संगीत और त्योहारों का सांस्कृतिक संस्थान।
    • इसमें राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहरों का संग्रहालय है।
    सहस्त्रबाहु मंदिर
    • 9वीं-10वीं सदी में निर्मित यह मंदिर विष्णु को समर्पित है।
    • इसे सास-बहू मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
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