19वीं–20वीं शताब्दी की प्रमुख घटनाएं राजस्थान इतिहास & संस्कृति विषय में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इस कालखंड में राजस्थान में सामाजिक सुधारों की शुरुआत, राजनीतिक चेतना का विकास और मराठों व ब्रिटिशों का बढ़ता प्रभाव जैसे अनेक परिवर्तन देखने को मिले। यह समय प्रदेश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूपांतरण का साक्षी रहा।
इस अध्याय में हम निम्नलिखित महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन करेंगे:
19वीं–20वीं शताब्दी की प्रमुख घटनाओं से सम्बंधित विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
वर्ष | प्रश्न | अंक |
2023 | भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति जयपुर प्रजामंण्डल के दृष्टिकोण का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। | 5M |
2021 | राजस्थान के बेगूं किसान आन्दोलन का आलोचनात्मक परीक्षण करें। | 5M |
2021 | “एकीकृत राजस्थान’ में सिरोही के विलय पर संक्षिप्त लेख लिखें। | 5M |
2018 | डूंगजी और जवाहरजी कौन थे ? | 2M |
2018 | राजस्थान के जागीरदारी क्षेत्रों में कृषक असंतोष के कारणों की विवेचना कीजिए । | 5M |
2016 | ‘मेवाड़ पुकार’ क्या था ? | 2M |
2016 | प्रारंभिक 20 वीं शताब्दी के दौरान राजस्थान में राजनीतिक जागरण के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए | 10M |
2016 | राजस्थान के प्रजामण्डल आन्दोलन की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए । | 10M |
2013 | जयपुर के प्रजामण्डल का 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रति क्या दृष्टिकोण था ? | 2M |
FAQ (Previous year questions)
20वीं शताब्दी के प्रारंभ में राजस्थान में सामाजिक-आर्थिक शिकायतों, सुधार आंदोलनों के प्रसार और राष्ट्रवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण राजनीतिक जागृति देखी गई। सामंती उत्पीड़न और औपनिवेशिक शोषण से चिह्नित इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने वाली जन-जागृति शुरू हुई।
राजनीतिक जागृति के कारण
कृषि असंतोष – किसान विद्रोह : सामंती व्यवस्था में भारी कर, लाग-बाग (अनधिकृत शुल्क), और बेगार (जबरन श्रम) ने किसानों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया। बिजोलिया किसान आंदोलन (1905) इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसका नेतृत्व वी.एस. पाठिक और माणिक्य लाल वर्मा ने किया, जिन्होंने स्थानीय जागीरदारों के अन्याय का विरोध किया।
सामाजिक सुधार आंदोलन – आर्य समाज : स्वामी दयानंद सरस्वती की 19वीं शताब्दी के अंत में राजस्थान यात्रा और आर्य समाज की विचारधारा ने स्वधर्म, स्वराज, स्वदेशी, और स्वभाषा पर केंद्रित सुधारों को बढ़ावा दिया। अजमेर में वैदिक यंत्रालय प्रेस और उदयपुर में परोपकारिणी सभा (1883) ने राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित कर राजनीतिक जागृति को बल दिया।
शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय : अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से वकीलों, शिक्षकों और पत्रकारों का मध्यम वर्ग उभरा। योग्य होने के बावजूद प्रशासन में उच्च पदों से वंचित इस वर्ग ने राजनीतिक सुधारों की मांग की और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ा। जय नारायण व्यास और मास्टर भोलानाथ जैसे नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समाचार पत्रों की भूमिका : राजस्थान केसरी (1920) और नवीन राजस्थान (1922) जैसे प्रकाशनों ने राष्ट्रवादी विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन समाचार पत्रों ने राजनीतिक विमर्श को मंच प्रदान किया और स्वतंत्रता की मांग को तेज किया।
परिवहन की भूमिका : रेलवे और सड़कों के विकास ने कनेक्टिविटी में सुधार किया, जिससे राष्ट्रवादी विचारों और राजनीतिक जुटान का प्रसार राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में हुआ।
सामाजिक संस्थाएँ और सुधार : सेवा समितियों और हितकारिणी सभाओं जैसी संस्थाओं ने सामंती शोषण प्रभावित क्षेत्रों में सुधार और राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया, जिससे एकता और भागीदारी को बल मिला।
उग्रवादी आंदोलनों की असफलता – रास बिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों से प्रेरित शुरुआती उग्रवादी आंदोलन दीर्घकालिक नहीं रहे। गांधीवादी अहिंसक दृष्टिकोण ने व्यापक समर्थन प्राप्त किया, जिससे स्वतंत्रता के लिए जन-आंदोलन को बल मिला।
अन्य कारण – स्वदेशी आंदोलन ने राजस्थानियों को आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया और स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा दिया। प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) की आर्थिक कठिनाइयों ने ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ असंतोष को बढ़ाया। इसके अलावा, महानगरीय केंद्रों में प्रगतिशील विचारों से अवगत व्यापारिक समुदाय ने स्वतंत्र भारत के लिए सक्रिय रूप से समर्थन किया।
राजस्थान में 20वीं शताब्दी की शुरुआत में राजनीतिक जागृति इन कारकों, राजनीतिक नेताओं और सामाजिक संस्थाओं के संयुक्त प्रभाव से प्रेरित थी, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान के महत्वपूर्ण योगदान की नींव रखी।
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