राजस्थान का एकीकरण

राजस्थान का एकीकरण राजस्थान इतिहास एवं संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो 19 रियासतों और 3 प्रमुख ठिकानों को एक एकीकृत राज्य में शामिल करने की जटिल प्रक्रिया को दर्शाता है।

इस अध्याय में हम एकीकरण के प्रारंभिक प्रयासों और मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह, जयपुर के महाराजा मानसिंह, कोटा के महराव भीम सिंह तथा डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह जैसे शासकों के योगदान का अध्ययन करेंगे। साथ ही, राजस्थान के एकीकरण की सात चरणों वाली प्रक्रिया, अजमेर का विलय तथा सिरोही के एकीकरण जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को भी समझेंगे।

Formation of Rajasthan | राजस्थान का एकीकरण

राजाओं द्वारा संघ बनाने के प्रयास

मेवाड़ महाराणा भूपाल सिंह के प्रयास

  • मेवाड़ महाराणा भूपाल सिंह ने छोटे-छोटे राज्यों को एकजुट करने के लिए ‘राजस्थान यूनियन’ बनाने का पहला प्रयास किया।
  • जून 1946 में उन्होंने उदयपुर में राजस्थान, गुजरात और मालवा के 22 राजाओं का सम्मेलन बुलाया, जिसमें राज्य अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हुए कुछ मामलों को साझा करते हुए एक यूनियन बनाने की बात की गई।
  • उन्होंने के.एम. मुंशी को संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया। मुंशी की सलाह पर मई 1947 में दूसरा सम्मेलन हुआ, जिसमें अधिकांश राज्यों ने सिद्धांत रूप में सहमति दी, लेकिन एकमत नहीं हो सके।
  • फरवरी 1948 में प्रस्तावित संविधान की रूपरेखा प्रस्तुत की गई, जिसमे सभी राज्यों के शासकों को समान स्तर दिया गया। एक कार्यकारिणी के गठन का प्रस्ताव था जिसमें सभी शासक सदस्य थे, जो अपने में से किसी एक को तीन वर्षों के लिए अध्यक्ष चुनते। विधान में द्विसदनीय व्यवस्थापिका का प्रावधान किया गया। एक सदन में राज्यों से समान संख्या में सदस्य होंगे और दूसरे सदन में जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचित सदस्य होंगे। मगर प्रत्येक राज्य का कम से कम एक प्रतिनिधि अवश्य होगा। 
  •  लेकिन राज्यों के बीच एकता न होने के कारण यह योजना विफल हो गई। मार्च 1948 में एक और अपील की गई, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।

जयपुर महाराजा मानसिंह के प्रयास

  • जयपुर महाराजा मानसिंह ने भी राजस्थान के छोटे राज्यों को एकजुट करने का प्रयास किया।
  • जुलाई 1947 में रियासती सचिवालय द्वारा नए मानदंडों के बाद जयपुर के दीवान वी.टी. कृष्णामाचारी ने एक सम्मेलन बुलाया। प्रस्ताव था कि कानून, शिक्षा, पुलिस जैसे विषयों पर संघ का नियंत्रण हो, जबकि बाकी मामलों में राज्य अपनी स्वतंत्रता बनाए रखें।
  • हालांकि, इस सम्मेलन में भी राजाओं के बीच सहमति नहीं बन पाई, और यह प्रयास सफल नहीं हुआ।

कोटा महाराव भीम सिंह के प्रयास

  • कोटा महाराव भीम सिंह ने कोटा, बूंदी, और झालावाड़ राज्यों को मिलाकर ‘हाड़ौती संघ’ बनाने का प्रयास किया।
  • लेकिन पारस्परिक अविश्वास और स्वतंत्रता की महत्त्वाकांक्षा के कारण यह योजना भी विफल हो गई।

डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह के प्रयास

  • डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह ने ‘बागड़ संघ’ बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ और प्रतापगढ़ राज्य शामिल होने थे।
  • हालांकि, इस प्रयास को भी प्रतिद्वंद्विता और स्वतंत्रता की इच्छाओं के कारण सफलता नहीं मिली।

महाराणा भूपाल सिंह (मेवाड़), महाराजा मानसिंह (जयपुर), महाराव भीम सिंह (कोटा), और महारावल लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर) द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद ‘राजस्थान यूनियन’ का गठन संभव नहीं हो सका। राजाओं के बीच आपसी अविश्वास, सत्ता की प्रतिस्पर्धा और स्वतंत्रता की इच्छा ने इन प्रयासों को विफल कर दिया। अंततः, राजस्थान के ये रियासतें भारतीय संघ में विलीन हो गईं।

प्रथम चरण : मत्स्य संघ की स्थापना (18 मार्च 1948)

Formation of Rajasthan | राजस्थान का एकीकरण

सर्वप्रथम अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली रियासतों के एकीकरण से 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ की स्थापना हुई, जिसका उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्री नरहरि विष्णु गाडगिल (NV) किया। राजधानी अलवर तथा राजप्रमुख धौलपुर महाराजा श्री उदयभानसिंह बनाये गये। मत्स्य संघ का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किमी. था। जनसंख्या लगभग 19 लाख और सालाना आय एक करोड़ 83 लाख रुपये की य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा।

  • मत्स्य संघ का नामकरण – K. M. मुंशी                                
  • ⁠रियासतें – अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली
  • ठिकाने – नीमराणा (अलवर)
  • राजधानी – अलवर
  • राजप्रमुख – उदयभान सिंह (धौलपुर)
  • उपराजप्रमुख – गणेशपाल सिंह (करौली)
  • प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत
  • उपप्रधानमंत्री – जुगलकिशोर चतुर्वेदी
  • उद्घाटनकर्ता – श्री नरहरि विष्णु गाडगिल (N.V. गाडगिल)
  • उद्घाटन – लोहागढ़ (भरतपुर)

नरेंद्र मंडल के अध्यक्ष हमीदुल्ला खां अलवर, भरतपुर को मेवस्थान बनाना चाहते थे। स्वतंत्रता पश्चात् डूंगरपुर, भरतपुर, जोधपुर तथा अलवर रियासतों ने किसी के साथ नहीं मिलकर का निर्णय किया था

द्वितीय चरण : राजस्थान संघ / पूर्व राजस्थान का निर्माण (25 मार्च 1948)

Formation of Rajasthan

द्वितीय चरण में 25 मार्च 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड, ढोक, किशनगढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं शाहपुरा रियासतों को मिलाकर पूर्व राजस्थान का निर्माण किया गया। कोटा को इसकी राजधानी तथा महाराव श्री भीमसिंह को राजप्प्रमुख बनाया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्री नरहरि विष्णु गाडगिल ने किया। बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को मनाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बड़ी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराय भीमसिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएंगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बड़े भाई ने काम किया। शाहपुरा और किशनगढ़ ने अजमेर- मेरवाड़ा में विलय का विरोध किया था तथा इन रियासतों को तोपों की सलामी का अधिकार नहीं था। विलयपत्र पर हस्ताक्षर के समय बांसवाड़ा महारावल चंद्रवीर सिंह ने कहा की में अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ”

  • रियासत – डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, कोटा, बूंदी, टोंक, झालावाड़, किशनगढ़, शाहपुरा (9) रियासतें + 1 ठिकाना विलय)
  • ठिकाना – कुशलगढ़ (बांसवाड़ा)
  • राजधानी – कोटा
  • राजप्रमुख – महाराजा भीमसिंह (कोटा)
  • वरिष्ठ राजप्रमुख – बहादुर सिंह (बूंदी)
  • कनिष्ठ राजप्रमुख – लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर)
  • प्रधानमंत्री – गोकुल लाल असावा
  • उद्घाटनकर्ता – श्री नरहरि विष्णु गाडगिल (N.V. गाडगिल

तृतीय चरण : संयुक्त राजस्थान (18 अप्रेल 1948)

Formation of Rajasthan

राजस्थान के तीसरे चरण में पूर्व राजस्थान के साथ उदयपुर रियासत को मिलाकर 18 अप्रैल 1948 को नया नाम संयुक्त राजस्थान रखा गया, जिसकी राजधानी उदयपुर तथा मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह को राजप्रमुख कोटा के महाराव भीमसिंह को उपराजप्रमुख बनाया गया। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल का गठन हुआ। इसका उद्घाटन 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया। यह निर्णय लिया गया की विधानसभा का एक अधिवेशन प्रतिवर्ष कोटा में होगा। तथा कोटा के विकास हेतु विशेष प्रयास किये जायेंगे। मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह को 20 लाख की प्रिवीपर्स प्रदान किया गया। एकीकरण के समय एकमात्र अपाहिज व्यक्ति उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह थे।

  • संयुक्त राजस्थान – राजस्थान संघ उदयपुर (10) रियासतें + 1 ठिकाना)
  • राजधानी – उदयपुर
  • राजप्रमुख – महाराणा भूपालसिंह (मेवाड़)
  • वरिष्ठ राजप्रमुख – महाराजा भीमसिंह (कोटा)
  • कनिष्ठ राजप्रमुख – बहादुर सिंह (बूंदी), लक्ष्मणसिंह (डूंगरपुर)
  • प्रधानमंत्री माणिक्यलाल वर्मा
  • उपप्रधानमंत्री गोकुललाल असावा
  • उद्घाटनकर्ता – पंडित जवाहर लाल नेहरू

चतुर्थ चरण : वृहत् राजस्थान (30 मार्च 1949)

राजस्थान की एकीकरण प्रक्रिया के चौथे चरण में 14 जनवरी 1949 को उदयपुर में सरदार वल्लभभाई पटेल ने जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, लावा और जैसलमेर रियासतों को वृहद राजस्थान में सैद्धांतिक रूप से सम्मिलित होने की घोषणा की। बीकानेर रियासत ने सर्वप्रथम भारत में विलय किया। इस निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए 30 मार्च 1949 को जयपुर में आयोजित एक समारोह में वृहत राजस्थान का उद्घाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया उन्होंने सिटी पैलेस (जयपुर) का भी उद्घाटन किया। इसकी राजधानी जयपुर तथा उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, जयपुर के महाराजा मानसिंह को राजप्रमुख तथा कोटा के महाराव भीमसिंह को उपराज प्रमुख बनाया गया। 30 मार्च को वृहत राजस्थान के अस्तित्व में आने के बाद सैद्धांतिक रूप से इस दिन को राजस्थान दिवस घोषित किया गया।

  • राजस्थान दिवस – 30 मार्च
  • वृहत राजस्थान – संयुक्त राजस्थान जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर लावा (ठिकाना) (14 रियासतें + 2 ठिकाने)
  • राजधानी – जयपुर
  • महाराजप्रमुख – महाराणा भूपालसिंह (उदयपुर, मेवाड़)
  • वरिष्ठ राजप्रमुख – हनुवंत सिंह (जोधपुर) व भीमसिंह (कोटा)
  • राजप्रमुख – सवाई मानसिंह (जयपुर)
  • कनिष्ठ राजप्रमुख – जवाहर सिंह (बूंदी) व लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर)
  • प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री
  • उद्घाटन कर्ता- सरदार वल्लभ भाई पटेल

राजस्थान एकीकरण के चौथे चरण में राजस्थान में 5 विभाग स्थापित किये गए जो निम्न है

  • शिक्षा विभाग – बीकानेर
  • न्याय विभाग – जोधपुर
  • वन विभाग – कोटा
  • कृषि विभाग – भरतपुर
  • खनिज विभाग – उदयपुर

इस चरण में रियासतों को निम्न प्रकार प्रिवीपर्स दिया गया

  • जयपुर – 18 लाख
  • जोधपुर – 17.5 लाख
  • बीकानेर – 17 लाख
  • जैसलमेर 1 लाख 80 हजार

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:

  • जयपुर व जोधपुर में राजधानी बनाने को लेकर विवाद हो गया इसके समाधान हेतु सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पी. सत्यनारायण राव समिति गठित की जिसके सदस्य बी. आर. पटेल, कर्नल टी. सी. पूरी व एस. पि. सिन्हा थे, इस समिति ने जयपुर को राजधानी बनाने की सिफारिश की।
  • राममनोहर लोहिया ने राजस्थान आंदोलन समिति का गठन किया इस समिति ने शेष रियासतों के शीघ्र विलय की मांग की थी।

पंचम चरण: संयुक्त वृहद राजस्थान (15 मई 1949)

शंकरराव देव समिति की सिफारिश पर 15 मई 1949 को मत्स्य संघ का वृहद राजस्थान में विलय कर देने से संयुक्त विशाल राजस्थान का निर्माण हुआ। नीमराना को भी इसमें शामिल कर लिया गया। आर. के. सिंहया, प्रभुदयाल इस समिति के सदस्य थे। भरतपुर व धौलपुर के विरोध को देखते हुए जनता का विचार जानने के उद्देश्य से वल्लभभाई पटेल ने इस समिति का गठन किया था।

  • संयुक्त वृहद राजस्थान → मत्स्य संघ + वृहद राजस्थान
  • प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री
  • राजप्रमुख – सवाई मानसिंह (जयपुर)
  • राजधानी – जयपुर

षष्टम चरण : वर्तमान राजस्थान (26 जनवरी 1950)

राजस्थान का एकीकरण

राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोबागड की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू-देलवाडा को लेकर विवाद के कारण आबू देलवाडा सहित 89 गाँवों को बंबई प्रान्त (सौराष्ट्र, गुजरात, महाराष्ट्र) में मिला दिया गया। इसमें गोकुल लाल असावा का गाँव हाथक भी शामिल था। इसके अतिरिक्त शेष रियासत 26 जनवरी 1950 को संयुक्त विशाल राजस्थान में विलय हो जाने पर इसका नाम ‘राजस्थान’ कर दिया गया। 26 जनवरी, 1950 को राजस्थान को ‘B’ या ‘ख’ श्रेणी का राज्य बनाया गया।

  • राजस्थान संघ वृहतर राजस्थान + सिरोही – आबु देलवांडा 
  • राजधानी-जयपुर
  • महाराज प्रमुख – भूपालसिंह (मेवाड)
  • राजप्रमुख – सवाई मानसिंह (जयपुर)
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री – हीरालाल शास्त्री (प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री)

राजस्थान के मनोनीत मुख्यमंत्री 

  • हीरालाल शास्त्री
  • सी. एस. वेंकटाचारी (I.C.S)
  • जयनारायण व्यास

नोट :

  • A श्रेणी – वे राज्य जो पूर्व में प्रत्य्क्ष ब्रिटिश नियंत्रण में थे जैसे बिहार, बंबई, मद्रास आदि इनके प्रमुख का पद गवर्नर का था।
  • B श्रेणी – वे राज्य, जो स्वतंत्रता के बाद छोटी-बड़ी रियासतों के एकीकरण द्वारा बनाए गए थे, जैसे-राजस्थान, मध्य भारत आदि।
  • C श्रेणी ये वे छोटे छोटे राज्ये थे, जिन्हें ब्रिटिश काल में चीफ कमिश्नर के प्रान्त कहा जाता था। जैसे अजमेर व दिल्ली

सिरोही का राजस्थान में विलय

  • 1948 में, हीरालाल शास्त्री ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर सिरोही को राजस्थान में मिलाने की मांग की। इसी वर्ष, उदयपुर में संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के दौरान, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पंडित नेहरू से भी इस संबंध में प्रार्थना की। पंडित नेहरू ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर सिरोही के बारे में जनता की भावनाओं को ध्यान में रखने का सुझाव दिया।
  • सरदार पटेल का इरादा सिरोही को महागुजरात में शामिल करने का था, और 1 फरवरी 1948 को सिरोही को राजपूताना एजेंसी से हटाकर बंबई प्रांत की वेस्टर्न इंडियन स्टेट्स एजेंसी के अधीन कर दिया गया। उसके बाद सिरोही का प्रशासन बंबई सरकार को सौंप दिया गया। इस बीच, राजस्थान में सिरोही को वापस राजस्थान में मिलाने के लिए निरंतर आंदोलन चल रहा था।

गुजरात का पक्ष : 

  1. आबू पर्वत पर स्थित जैन मंदिरों के दर्शन के लिए गुजराती जैन पूरे वर्ष आते हैं।
  2. आबू पर्वत की संस्कृति गुजरात से मेल खाती है।
  3. सिरोही के राजपरिवार का गुजरात के काठियावाड़ और कच्छ के राजपरिवारों से घनिष्ठ संबंध रहा है।
  4. सिरोही की जनता गुजराती भाषा बोलती है।

राजस्थान का पक्ष : 

  1. राजस्थान के नेताओं का तर्क था कि सिरोही में गुजराती बोलने वालों का बहुमत नहीं है
  2. यह सदियों से राजपूताना का हिस्सा रहा है
  3. सिरोही राज्य की भाषा और संस्कृति राजस्थान से अधिक मेल खाती है 
  4. आबू पर्वत को राजस्थान में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि यह राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।
  • 26 जनवरी 1950 को, सरदार पटेल ने सिरोही को दो भागों में बांट दिया। आबू और देलवाड़ा तहसील (जिसमें 89 गांव और 304 वर्ग मील का क्षेत्र था) को बंबई प्रांत में मिला दिया गया, जबकि शेष सिरोही को राजस्थान में रखा गया।
  • हालांकि, राजस्थान में इस विभाजन का विरोध जारी रहा। सिरोही के सिंहासन के लिए भी संघर्ष चल रहा था, जिससे विलय में और देरी हो रही थी। 10 मार्च 1949 को उत्तराधिकार के प्रश्न के समाधान के लिए एक समिति गठित की गई थी, जिसमें जयपुर और कोटा के शासक सदस्य थे। 
  • नवंबर 1956 में, राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर, आबूरोड और देलवाड़ा तहसील को राजस्थान में मिलाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के साथ, राजस्थान में सिरोही का पूरा विलय हो गया और पहले किए गए अन्याय का समाधान हुआ।

सप्तम चरण (1 नवम्बर 1956)  : राजस्थान पुनर्गठन – अजमेर का राजस्थान में विलय 

राज्य पुनर्गठन आयोग 1955 (सदस्य फजल अली, हृदयनाथ कुंजरु, के. एम्. पणिक्कर) की सिफारिशों के आधार पर 1 नवम्बर 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हो जाने से अजमेर-मेरवाड़ा, आबू तहसील को राजस्थान में मिलाया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर-उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गई। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल टप्पा क्षेत्र को राजस्थान के झालावाड़ जिले में मिलाया गया और झालावाड़ जिले का सिरोंज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया। राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर 1956 को आया। इस अधिनियम के द्वारा अ, ब एवं स राज्यों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया गया तथा राजप्रमुठा और महाराज प्रमुख पद का अंत हुआ व राज्यपाल पद का सूजन हुआ (7वां संविधान संशोधन)। अजमेर को 26वां जिला 1 नवम्बर 1956 में बनाया गया।

राजस्थान का एकीकरण
  • पुनर्गठित राजस्थान → राजस्थान संघ + अजमेर मेरवाड़ा + आबू देलवाड़ा + सुनेल टप्पा – सिरौंज क्षेत्र
  • मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया
  • राज्यपाल – गुरुमुख निहाल सिंह

अजमेर का विलय

राजस्थान प्रांत की सभा ने हमेशा अजमेर को भी राजस्थान में शामिल करने की मांग की थी। हालांकि, अजमेर के कांग्रेस नेताओं का मानना था कि छोटे राज्य प्रशासन के लिए बेहतर होते हैं। राज्य पुनर्गठन आयोग ने अजमेर के नेताओं के तर्क को खारिज कर दिया और अजमेर को राजस्थान में मिलाने की सिफारिश की। नवंबर 1956 में, अजमेर मेरवाड़ा क्षेत्र को भी राजस्थान में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार, राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, सिरोही, आबू, देलवाड़ा, और अजमेर का राजस्थान में विलय हुआ, जिससे राजस्थान का एकीकरण पूरा हुआ।

FAQ (Previous year questions)

  • प्रारंभिक मांग (1948)
    • 1948 में, हीरालाल शास्त्री ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर सिरोही के राजस्थान में विलय की मांग की।
    • उस ही वर्ष उदयपुर में संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन के दौरान, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी पंडित नेहरू से जनता की भावनाओं को ध्यान में रखने का आग्रह किया।
    • नेहरू ने फिर सरदार पटेल को पत्र लिखकर इन भावनाओं को निर्णय में शामिल करने का आग्रह किया।
  • पटेल का प्रारंभिक योजना (1948)
    • सरदार पटेल ने शुरुआत में सिरोही को महागुजरात में मिलाने की योजना बनाई थी।
    • 1 फरवरी 1948 को, सिरोही को राजपूताना एजेंसी से हटा कर बॉम्बे प्रांत की पश्चिमी भारतीय राज्यों की एजेंसी के अंतर्गत रखा गया।
  • विरोध और आंदोलन
    • राजस्थान में लगातार विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें सिरोही के राजस्थान में विलय की मांग की गई।
    • राजस्थान के लोगों ने सिरे से सिरोही को राज्य से अलग करने का विरोध किया।
  • सिरोही का विभाजन (1950)
    • 26 जनवरी 1950 को, सरदार पटेल ने सिरोही को दो भागों में विभाजित किया:
    • आबू और देलवाड़ा तहसीलें (जिनमें 89 गाँव और 304 वर्ग मील क्षेत्र शामिल था) को बॉम्बे प्रांत में मिलाया गया।
      बाकी का सिरोही भाग राजस्थान के साथ रहा।
    • इस विभाजन का भी राजस्थान में विरोध हुआ, और लोग पूर्ण पुनः एकीकरण के लिए लगातार प्रयासरत रहे।
  • उत्तराधिकार विवाद और विलंब
    • उत्तराधिकार विवादों के कारण विलय में और देरी हुई।
    • 10 मार्च 1949 को जयपुर और कोटा के शासकों के साथ एक समिति का गठन किया गया ताकि इन मुद्दों का समाधान किया जा सके।
  • सिरोही का अंतिम एकीकरण (1956)

नवंबर 1956 में, राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, आबू और देलवाड़ा तहसीलें अंततः राजस्थान में मिलाई गईं, जिससे सिरोही का राज्य में पूर्ण एकीकरण हो गया।

“एकीकृत राजस्थान’ में सिरोही के विलय पर संक्षिप्त लेख लिखें।”(Marks – 5M, 2021)

प्रारंभिक मांग (1948)
1948 में, हीरालाल शास्त्री ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर सिरोही के राजस्थान में विलय की मांग की।
उस ही वर्ष उदयपुर में संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन के दौरान, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी पंडित नेहरू से जनता की भावनाओं को ध्यान में रखने का आग्रह किया।
नेहरू ने फिर सरदार पटेल को पत्र लिखकर इन भावनाओं को निर्णय में शामिल करने का आग्रह किया।
पटेल का प्रारंभिक योजना (1948)
सरदार पटेल ने शुरुआत में सिरोही को महागुजरात में मिलाने की योजना बनाई थी।
1 फरवरी 1948 को, सिरोही को राजपूताना एजेंसी से हटा कर बॉम्बे प्रांत की पश्चिमी भारतीय राज्यों की एजेंसी के अंतर्गत रखा गया।
विरोध और आंदोलन
राजस्थान में लगातार विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें सिरोही के राजस्थान में विलय की मांग की गई।
राजस्थान के लोगों ने सिरे से सिरोही को राज्य से अलग करने का विरोध किया।
सिरोही का विभाजन (1950)
26 जनवरी 1950 को, सरदार पटेल ने सिरोही को दो भागों में विभाजित किया:
आबू और देलवाड़ा तहसीलें (जिनमें 89 गाँव और 304 वर्ग मील क्षेत्र शामिल था) को बॉम्बे प्रांत में मिलाया गया।
बाकी का सिरोही भाग राजस्थान के साथ रहा।
इस विभाजन का भी राजस्थान में विरोध हुआ, और लोग पूर्ण पुनः एकीकरण के लिए लगातार प्रयासरत रहे।
उत्तराधिकार विवाद और विलंब
उत्तराधिकार विवादों के कारण विलय में और देरी हुई।
10 मार्च 1949 को जयपुर और कोटा के शासकों के साथ एक समिति का गठन किया गया ताकि इन मुद्दों का समाधान किया जा सके।
सिरोही का अंतिम एकीकरण (1956)
नवंबर 1956 में, राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, आबू और देलवाड़ा तहसीलें अंततः राजस्थान में मिलाई गईं, जिससे सिरोही का राज्य में पूर्ण एकीकरण हो गया।

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