राजस्थान के मेले एवं त्योहारराजस्थान इतिहास & संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। ये मेले और त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं, बल्कि लोकजीवन, कला, संगीत और परंपराओं की अनूठी झलक भी प्रस्तुत करते हैं।
राजस्थान के मेले एवं त्योहार
राजस्थान, अपनी जीवंत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध, अनेक मेलों और त्योहारों का आयोजन करता है, जो इसकी समृद्ध परंपराओं और जीवंतता को दर्शाते हैं। “सात वार, नौ त्यौहार” की कहावत राज्य की उत्सवी भावना को व्यक्त करती है, जो कृषि चक्र, ऋतुओं के बदलाव और स्थानीय परंपराओं से प्रेरित है। ये आयोजन भव्य शोभायात्राओं, लोक कलाओं और धार्मिक अनुष्ठानों से भरपूर होते हैं, जो न केवल मनोरंजन प्रदान करते हैं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि और पर्यटन को भी उजागर करते हैं। हालांकि, इन त्योहारों को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि भारत के मौसम और महीनों के नाम क्या हैं, क्योंकि भारतीय त्योहार और मेले हिंदी पंचांग (चंद्र कैलेंडर) पर आधारित होते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार वर्ष का आरंभ चैत्र एकम से होता है
विक्रम संवत का नववर्ष (जैसे 2024 में 2081)।
शक संवत का नववर्ष (भारत सरकार का आधिकारिक कैलेंडर)।
1 चैत्र = 22 मार्च (सामान्य वर्ष) एवं 21 मार्च (अधिवर्ष)।
चैत्र = 30 दिन (सामान्य वर्ष) और 31 दिन (अधिवर्ष)।
ऋतु
हिन्दू पंचांग के अनुसार माह
अंग्रेजी माह
वसंत
चैत्र-वैशाख
मार्च-अप्रैल
ग्रीष्म
ज्येष्ठ-आषाढ़
मई-जून
वर्षा
श्रावण-भाद्र
जुलाई-अगस्त
शरद
अश्विनी-कार्तिक
सितम्बर-अक्टूबर
हेमंत
मार्गशीर्ष-पौष
नवम्बर-दिसम्बर
महीने वार-त्योहार और मेले:
चैत्र के त्योहार:
1. गणगौर उत्सव:
“गण” = भगवान शिव, “गौर” = देवी पार्वती।
यह 16 दिनों का त्योहार होता है जिसमे अविवाहित कन्याएं, विवाहित महिलाएं आदर्श वर, पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं।
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा (होली के दूसरे दिन) से चैत्र शुक्ल तृतीया तक।
होली की राख और जौ के अंकुरों से बने केक की पूजा।
अविवाहित कन्याओं द्वारा कलश सजाना और गणगौर गीत गाना।
इसरजी (शिव) और गणगौर (पार्वती) की लकड़ी और मिट्टी की मूर्तियों की पूजा।
मिट्टी की मूर्तियों का जल में विसर्जन और लकड़ी की मूर्तियों का पुनः स्थापना।
गणगौर शोभायात्रा:
जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, और कोटा में भव्य आयोजन।
मूर्तियों की शोभायात्रा (सवारी)।
उदयपुर में, शोभायात्रा पिचोला झील पर नौका विहार और आतिशबाजी के साथ समाप्त होती है।
2. शीतलाष्टमी :
तिथि: चैत्र शुक्ल अष्टमी।
खास परंपरा: इस दिन बासी भोजन (बस्योड़ा) खाया जाता है।
चैत्र के मेले:
करणी माता मेला : बड़ा, बीकानेर – चैत्र शुक्ल 1 से 10।
महावीर मेला: महावीर जी, करौली – चैत्र शुक्ल 13 से वैशाख कृष्ण 3।
कैला देवी मेला: कैला देवी, करौली – चैत्र कृष्ण अष्टमी से चैत्र शुक्ल अष्टमी। इसे “लखी मेला” भी कहते हैं।
केसरियानाथ जी का मेला: ऋषभदेव, उदयपुर – चैत्र शुक्ल अष्टमी।
शीतला माता मेला: शील की डूंगरी, जयपुर – चैत्र कृष्ण अष्टमी।
वैशाख के त्योहार :
1. अक्षय तृतीया:
तिथि:
वैशाख शुक्ल तृतीया पर मनाया जाता है।
किसान खेत जोतते हैं और सात प्रकार के अनाज (ज्वार, गेहूं आदि) की पूजा करते हैं।
विशेष पकवान जैसे गेहूं-ज्वार का खिचड़ा, गुड़ का गालवानी, और मंगोड़ी का साग बनाया जाता है।
क्षेत्रीय महत्व:
बीकानेर का स्थापना दिवस उत्साह के साथ मनाया जाता है।
2. वैशाख के मेले:
भरतरी मेला (भर्तृहरि): अलवर।
माता कुंडलिनी मेला: रश्मि, चित्तौड़गढ़ – वैशाख पूर्णिमा।
श्रावण के त्योहार :
1. तीज उत्सव :
महत्व:
श्रावण शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है।
विशेष रूप से युवा लड़कियों और नवविवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार।
कहावत:
राजस्थान में तीज और गणगौर उत्सव के बारे में कहा जाता है: “तीज त्यौहार बावड़ी ले डूबी गणगौर”, जिसका अर्थ है कि त्योहारों का चक्र तीज से शुरू होकर गणगौर पर समाप्त होता है।
परंपराएं:
नवविवाहित महिलाएं पहली तीज अपने मायके में मनाती हैं।
झूले सजाए जाते हैं, बारिश के गीत गाए जाते हैं, गहने पहने जाते हैं, और मेहंदी लगाई जाती है।
उत्सव:
तालाबों के किनारे मेले लगते हैं।
खेतों में चने, ज्वार, और मूंग बोई जाती है।
जयपुर तीज शोभायात्रा:
सजे हुए हाथी, घोड़े, और ऊंट शोभायात्रा का हिस्सा होते हैं।
तीज की मूर्ति के साथ लोकगीत और नृत्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
कजली तीज (बूंदी):
भाद्रपद कृष्ण तृतीया को मनाई जाती है।
शोभायात्रा नवल सागर से शुरू होकर कुंभा स्टेडियम पर समाप्त होती है।
श्रावण के मेले:
कल्याण जी का मेला: डिग्गीपुरी-मालपुरा-टोंक – अमावस्या पर।
तीज का मेला: जयपुर एवं राजस्थान के अन्य हिस्सों में – शुक्ल तृतीया।
भाद्रपद के त्योहार:
1. तीज उत्सव :
तिथि: भाद्र कृष्ण तृतीया।
2. गणेश चतुर्थी:
तिथि: शुक्ल चतुर्थी।
भाद्रपद के मेले:
बाबा रामदेव जी का मेला: रनिचा, पोखरण, जैसलमेर – शुक्ल पक्ष द्वितीया (2nd) से एकादशी तक।
गोगाजी का मेला: नोहर, हनुमानगढ़ – कृष्ण अष्टमी से एकादशी।
गोगा जी मेला: डाडरेवा, चूरू – कृष्ण नवमी से शुक्ल नवमी।
भरतरी मेला (II): अलवर।
कजली तीज मेला: बूंदी – तृतीया (3rd)।
गणेश मेला: रणथंभौर, सवाई माधोपुर – गणेश चतुर्थी (4th)।