राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ

राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ राजस्थान इतिहास & संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय योगदान से राज्य और देश का गौरव बढ़ाया। इनमें स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, कलाकार, योद्धा और समाज सुधारक शामिल हैं, जिनकी प्रेरणा आज भी जीवित है।

पन्ना धाय : 

  • प्रारंभिक जीवन
    • चित्तौड़ के पास पंडोली गांव में हांकला गुर्जर परिवार में जन्म।
    • विवाह सूरजमल से हुआ, जो महाराणा सांगा (1509-1528 ई.) की सेना में अधिकारी थे।
    • अपने पुत्र चंदन के जन्म के बाद महारानी कर्णावती के पुत्र राजकुमार उदय सिंह की धाय माँ नियुक्त हुईं।
  • निष्ठा और बलिदान की मिसाल
    • 1535 ई.: मेवाड़ के सामंत बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर राजकुमार उदय सिंह को भी मारने का षड्यंत्र रचा।
    • पन्ना धाय ने उदय सिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चंदन को राजकुमार के बिस्तर पर सुला दिया।
    • बनवीर ने चंदन को राजकुमार समझकर मार डाला।
    • उदय सिंह को कुंभलगढ़ भेजकर मेवाड़ के भविष्य को सुरक्षित किया।
  • पन्ना धाय का यह बलिदान भक्ति, साहस और निष्ठा का अनुपम उदाहरण है।
  • वह मेवाड़ की नायिका के रूप में जानी जाती हैं और उनका त्याग आज भी प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।

रूपा धाय : 

  • भूमिका: रूपा धाय महाराजा जसवंत सिंह की नर्स थीं।
  • वीरता: जब अजित सिंह को दिल्ली से सुरक्षित निकालने का समय आया, तो रूपा धाय ने उन्हें शाही पहरेदारों से छिपाकर बचाया और अपने बेटे को उनकी जगह सुला दिया।
  • उनके नाम से मेड़ती दरवाजा में एक बावड़ी बनाई गई।

गौरा धाय : 

  • गौरा धाय, जिन्हें मारवाड़ में मेवाड़ की पन्ना धाय के समकक्ष माना जाता है, ने 17वीं शताब्दी में मारवाड़ की विरासत को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • जन्म: 4 जून 1646 को जोधपुर में रत्नोजी टाक और रूपा के घर जन्म। मण्डोर के मनोहर गोपी मलावत से विवाह।
  • वीरता: 1678 में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, औरंगज़ेब के इरादों को भांपकर राजकुमार अजीत सिंह को बचाने के लिए झाड़ू लगाने वाली का वेश धारण कर उन्हें एक संदूक में छिपाकर बाहर निकाला।
  • मारवाड़ के राष्ट्रीय गीत “धूसण” में सम्मानित। जोधपुर में उनकी याद में एक छतरी और बावड़ी बनाई गई।

विजयदान देथा : 

  • राजस्थानी साहित्य और लोककथा के क्षेत्र में प्रसिद्ध विजयदान देथा, जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना जाता है, ने भारतीय
  • कथा साहित्य को गहराई और समृद्धि प्रदान की। उनकी कृतियाँ ग्रामीण जीवन के यथार्थ को दर्शाती हैं।
  • प्रारंभिक जीवन
    • जन्म: 1 सितंबर 1926, बोरुंदा, जोधपुर, राजस्थान।
  • योगदान 
    • राजस्थानी लोक साहित्य के संरक्षण हेतु रूपायन संस्थान, बोरुंदा की सह-स्थापना।
    • उनकी कथा दुविधा पर मणि कौल ने फिल्म बनाई, जिसे बाद में अमोल पालेकर ने पहेली के रूप में पुनः बनाया।
  • प्रमुख कृतियाँ
    • बातां री फुलवारी (लोक कथाओं का संग्रह, 1960-1975)
    • बापू के तीन हत्यारे (आलोचना, 1948)
    • चौधरायन की चतुराई (लघु कथा संग्रह, 1996)
    • दुविधा
    • अलेखू हिटलर

निहाल चंद

  • निहाल चंद, 18वीं शताब्दी के महान चित्रकार, ने किशनगढ़ चित्रकला को अद्वितीय ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके चित्रों में प्रेम और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है, जो उन्हें भारतीय लघुचित्र कला का प्रतीक बनाता है।
  • योगदान
    • किशनगढ़ के राजा सावंत सिंह के दरबार में सेवा दी।
    • अपनी कृति बनी-ठानी को राधा के रूप में चित्रित किया, जिसे ‘भारतीय मोनालिसा’ कहा गया।
    • उनके चित्रों में मुगल और राजपूत शैली का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।

गवरी बाई : 

  • गवरी बाई, एक कवयित्री और कृष्ण भक्त, डूंगरपुर में अपनी आध्यात्मिक सेवा के लिए विख्यात हैं।
  • जन्म: डूंगरपुर जिले के नागर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म।
  • भक्ति: अपना जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित किया, और उन्हें “वागड़ की मीरा” कहा गया।
  • महारावल शिव सिंह ने 1829 में उनके सम्मान में बालमुकुंद मंदिर का निर्माण कराया।

वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ : 

  • प्रारंभिक जीवन: 13 अगस्त 1638 को मारवाड़ के सलवा गांव में, महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री असकरण के पुत्र के रूप में जन्म।
  • वीरता के कार्य: महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, उन्होंने राजकुमार अजीत सिंह और महारानीओं को औरंगज़ेब के चंगुल से बचाया। राठौड़-सिसोदिया गठबंधन बनाकर औरंगज़ेब के खिलाफ संघर्ष किया।
  • महत्वपूर्ण योगदान: राजकुमार अकबर का समर्थन किया और उनके बच्चों को इस्लामी शिक्षा देकर उनकी रक्षा की। अजीत सिंह के साथ मतभेदों के कारण जोधपुर छोड़ दिया।
  • 22 नवंबर 1718 को उज्जैन में निधन। राजस्थान में उनकी निष्ठा और वीरता को “हे माता ! दुर्गादास जैसा पुत्र जन्म दे” कहावत से याद किया जाता है।

दुरसा आढ़ा : 

  • दुरसा आढ़ा अकबर के समकालीन थे और अपनी रचनाओं के माध्यम से महाराणा प्रताप और राव चंद्रसेन के पराक्रम का गुणगान किया।
  • प्रमुख रचनाएँ:
    • विरुद्ध छहतरी (सबसे प्रसिद्ध)
    • किरतार बावनी
    • वीरम देव सोलंकी रा दूहा

दयालदास: राठौड़ : 

  • जन्म: 1798 में बीकानेर के कुड़िया गांव में जन्म।
  • कृति: दयालदास री ख्यात राठौड़ वंश, मुगलों और मराठों के साथ उनके संबंध, और बीकानेर के प्रशासनिक ढांचे का विस्तृत विवरण देती है।

कविराज श्यामल दास:

  • कविराज श्यामल दास, विख्यात इतिहासकार और कवि, मेवाड़ के इतिहास के दस्तावेजीकरण के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • प्रारंभिक जीवन: 1836 में भीलवाड़ा के धोकलिया गांव में जन्म।
  • महाराणा शंभु सिंह के अनुरोध पर मेवाड़ का इतिहास लिखा, जिसे वीर विनोद नामक ग्रंथ में संकलित किया गया।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा केसर-ए-हिंद और मेवाड़ के महाराणा द्वारा कविराज की उपाधि से सम्मानित।

गौरीशंकर हीराचंद ओझा : 

  • गौरीशंकर हीराचंद ओझा राजस्थान के इतिहासलेखन और पुरातत्त्व के अग्रदूत माने जाते हैं।
  • जन्म और विशेषज्ञता: 1863 में सिरोही के रोहिडा गांव में जन्म; प्राचीन लिपियों के ज्ञाता और लिपिमाला के लेखक।
  • योगदान: राजस्थान की विभिन्न रियासतों के इतिहास का लेखन कर ऐतिहासिक साहित्य को समृद्ध किया
  • सम्मान: ब्रिटिश सरकार द्वारा महामहोपाध्याय और राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित।

संत चतुरसिंह:

  • मेवाड़ राजघराने से संबंधित लोक संत चतुरसिंह ने अपना जीवन आध्यात्म, साहित्य और समाज सेवा को समर्पित किया।
  • प्रारंभिक जीवन: 1879 में मेवाड़ के करजली गांव में जन्म। विवाह के कुछ समय बाद विधुर हो गए और धार्मिक कार्यों में लग गए।
  • योगदान: उदयपुर के पास सुखेर गांव में योग साधना और जनसामान्य के लिए साहित्य लेखन किया। संस्कृत और राजस्थानी में निपुण, उनकी रचनाओं में गंगाजली (भगवद्गीता पर टिप्पणी), परमार्थ विचार, योग सूत्र पर टिप्पणी, और समाज बत्तीसी प्रमुख हैं।
  • अपने साहित्य के माध्यम से जनजागृति और नैतिक मूल्यों का प्रचार किया। 1929 में उनका देहावसान हुआ।

बीरबल सिंह: 

  • बीरबल सिंह, बीकानेर प्रजा परिषद के प्रमुख सदस्य, सामंती शोषण के खिलाफ और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत निडर नेता थे।
  • जन्म: बीकानेर जिले के रायसिंहनगर में जन्मे, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और नागरिक अधिकार आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
  • 1 जुलाई 1946 को रायसिंहनगर में मजदूर सम्मेलन के दौरान पुलिस की क्रूरता के विरोध में उन्होंने प्रदर्शन का नेतृत्व किया। गोली लगने के बावजूद उन्होंने तिरंगा ऊंचा रखा और कहा, “झंडा ऊंचा रहे हमारा।”

बालमुकुंद बिस्सा :

  • बालमुकुंद बिस्सा, जो 1908 में पिलवा गाँव, डीडवाना में जन्मे थे, ने 1934 में जोधपुर में खादी भंडार खोला और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। 
  • वर्ष 1940 में श्री बालमुकुंद बिस्सा ने जोधपुर आंदोलन का आयोजन किया, जिसके कारण उन्हें 09 जून, 1942 को भारत रक्षा अधिनियम के तहत जेल में डाल दिया गया।
  • जेल में खराब भोजन के खिलाफ भूख हड़ताल के कारण स्वतंत्रता के इस साधक की 19 जून, 1942 को जोधपुर के बिंदम अस्पताल में मृत्यु हो गई।
  • इनका अहिंसा और धर्मनिरपेक्षता के गांधीवादी सिद्धांतों में पक्का विश्वास था

कन्हैया लाल सेठिया: 

  • कन्हैया लाल सेठिया, रियासतानी कवि, अपने अमर गीतों जैसे “धरती धोरां री” और “पाथल और पीथल” के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • प्रारंभिक जीवन: 11 सितंबर 1919 को सुजानगढ़ (चुरू), राजस्थान में जन्मे सेठिया ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर खादी आंदोलन और दलित उत्थान में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  • साहित्यिक योगदान: उनकी पहली काव्य-संग्रह वनफूल (1941) के प्रकाशित होने के साथ ही उनकी साहित्यिक यात्रा शुरू हुई। उनकी काव्य-संग्रह अग्निवीणा (1942) पर राष्ट्रभक्ति के कारण उन पर राजद्रोह का आरोप लगा। वे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी सक्रिय थे।
  • सेठिया ने राजस्थान के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आबू को राजस्थान में शामिल करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने हल्दीघाटी शताब्दी उत्सव और चित्रकूट मेला जैसी सांस्कृतिक घटनाओं में भी भाग लिया।
  • पुरस्कार और सम्मान: सेठिया को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्मश्री (2004), राजस्थान रत्न (2012) और लीलटांस के लिए केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं।
  • सेठिया का निधन नवंबर 2008 में कोलकाता में हुआ।

स्वामी केशवानंद : 

  • स्वामी केशवानंद, एक शिक्षाविद और संत, ने अपना जीवन राजस्थान में ग्रामीण विकास और शिक्षा को समर्पित किया।
  • जन्म: उनका जन्म 1883 में सीकर जिले के मगलूणा गांव में चौधरी ठाकरी के घर हुआ।
  • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: गांधीवादी राजनीति से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (1921–1931) में भाग लिया और जेल भी गए।
  • शैक्षिक योगदान
    • 1932 में, संगरिया के जाट स्कूल के निदेशक बने और इसे कॉलेज में परिवर्तित किया।
    • स्वामी केशवानंद ग्रामोत्त्थान विद्यापीठ की स्थापना की।
    • 1944–1956 के बीच बीकानेर के मरुस्थलीय गांवों में 300 स्कूलों की स्थापना की।
    • कला, कृषि और विज्ञान कॉलेज, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, संग्रहालय और मोबाइल पुस्तकालयों की शुरुआत की।

मेजर पिरु सिंह :

  • 20 मई 1918 को झुंझुनूं के रामपुरा बेरी में जन्मे मेजर पिरु सिंह 6वीं बटालियन राजपूत राइफल्स के वीर सिपाही थे।
  • पराक्रम (1948): टिथवाल में दुश्मन की मजबूत चौकियों को कब्जे में लेने के अभियान में, उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर कई दुश्मन चौकियों को नष्ट कर दिया।
  • मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित, राजस्थान के पहले विजेता बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया।

मेजर शैतान सिंह :

  • ‘बनासुर का शहीद’ के नाम से प्रसिद्ध मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर के बानसुर गांव में हुआ। उन्होंने भारतीय सेना में अद्वितीय वीरता का परिचय दिया।
  • रेजांग ला का युद्ध (1962): चार्ली कंपनी के 120 सैनिकों के साथ दो बार चीनी हमले को विफल किया। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी अंत तक संघर्ष करते रहे।
  • असाधारण साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित, उनकी वीरता आज भी प्रेरणादायक है।

पंडित झाबरमल शर्मा :

  • ‘पत्रकारिता के जनक’ के रूप में प्रसिद्ध, पं. झबरमल शर्मा का जन्म 1880 में जसारपुर में हुआ। पं. दुर्गाप्रसाद मिश्रा से हिंदी पत्रकारिता और संपादन की शिक्षा प्राप्त की।
  • प्रमुख कृतियां: सीकर का इतिहास, खेतड़ी का इतिहास, हिंदी गीता रहस्य सार, तिलक गाथा का संपादन।
  • विरासत: उनकी रचनाओं में देशभक्ति, आध्यात्मिकता और ऐतिहासिकता का समावेश था, जिसने हिंदी पत्रकारिता और शिक्षा पर गहरी छाप छोड़ी।

आचार्य नानेश मुनि : 

  • मोदीलाल और सिंगारबाई के पुत्र गोवर्धन (नाना) का जन्म मेवाड़ के डांटा गांव में हुआ। आचार्य नानेश मुनि ने समता और समानता का संदेश दिया।
  • दीक्षा: कोटा में गणेशलालजी महाराज से मार्गदर्शन प्राप्त कर 1952 में आचार्य बने।
  • उपदेश: समता दर्शन के माध्यम से जीवन में शांति और ध्यान द्वारा तनावमुक्त जीवन की शिक्षा दी।
  • योगदान: जैन भगवती परंपरा में 59 संतों और 310 यतियों को दीक्षित किया; समता दर्शन और व्यवहार पुस्तक लिखी।
  • प्रभाव: मालवा के बालाई समाज को मांसाहार छोड़कर अहिंसा और सत्य के मार्ग पर प्रेरित किया।

कृपाल सिंह शेखावत : 

  • कृपाल सिंह शेखावत, जो ब्लू पॉटरी में अपनी अद्वितीय कला के लिए प्रसिद्ध हैं, का जन्म 1922 में सीकर जिले के मऊ गांव में हुआ।
  • उपलब्धियां: ब्लू पॉटरी में अपने चित्रांकन और उत्कृष्ट योगदान के लिए विश्वव्यापी पहचान प्राप्त की।
  • सम्मान: 1974 में पद्मश्री से सम्मानित।

एल.पी टेस्सिटोरी : 

  • जन्म: ये एक इटालियन थे जो 1914 में भारत आए और जोधपुर में बस गए, जहाँ उन्होंने चारण साहित्य पर अपना शोध कार्य शुरू किया।
  • पं. रामकरण असोपा उनके गुरु थे।
  • शोध और योगदान: उन्होंने राजस्थान के विभिन्न स्थानों जैसे जोलोर, बीकानेर, उदयपुर, जयपुर, पाली, नागौर और सीकर का दौरा किया, जहाँ उन्होंने दुर्लभ पांडुलिपियाँ और शिलालेख संग्रहित किए।
  • प्रमुख कृतियाँ:
    • बार्डिक एंड हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ राजपूताना: ए डिस्क्रिप्टिव कैटलॉग ऑफ़ द बार्डिक एंड हिस्टोरिकल मेनुस्क्रिप्ट।
    • कुछ संकट ग्रस्त ग्रंथों जैसे वेली कृष्ण रुक्मणी री, राव जैतसी रो छंद को प्रकाश में लाने का श्रेय।
  • इनका 1919 में बीकानेर में निधन हो गया।

श्रीमती रतना शास्त्री

  • जन्म – 1912, खाचरोद गाँव
  • पति – हीरालाल शास्त्री
  • उपनाम – वात्सल्य की मूर्ती
  • कार्य एवं योगदान:
    • जीवन कुटीर की स्थापना: 12 मई 1929 को निवाई, टोंक में
    • शांताबाई शिक्षा कुटीर की स्थापना: 1935 में
    • सत्याग्रह में योगदान: जब जयपुर राज्य प्रजामण्डल के सत्याग्रह में मुख्य कार्यकर्ता गिरफ्तार हो गए, तो अन्य व्यवस्थाओं का जिम्मा संभालने वालों में इनका नाम भी शामिल था।
    • वनस्थली विद्यापीठ में योगदान: वे अपने पति के साथ विद्यापीठ की कार्यकारी थीं और अगस्त 1942 में विद्यापीठ के कार्यकर्ताओं और छात्राओं को आंदोलन में भाग लेने की खुली छूट दी थी।
    • भारत छोड़ो आन्दोलन में भागीदारी: 1942 में भूमिगत कार्यकर्ताओं की मदद की
  • पुरस्कार और सम्मान:
    • 1955 – पद्म श्री पुरस्कार
    • 1975 – पद्म भूषण पुरस्कार
    • 1990 – जमनालाल बजाज पुरस्कार
  • नोट – पद्म श्री एवं पद्म भूषण दोनों पुरस्कार प्राप्त करने वाली राजस्थान की प्रथम एवं एकमात्र महिला।

केसरीसिंह बारहठ : 

  • जन्म – 21 नवम्बर, 1872, देवपुरा खेड़ा गाँव (शाहपुरा, भीलवाड़ा)
  • पिता – कृष्णसिंह
  • उपनाम – राजस्थान केसरी
  • कार्य एवं योगदान:
    • कोटा रियासत में कार्य: 1902 से 1907 तक कोटा में कार्यरत रहे।
    • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद केसरीसिंह बारहठ ने किया।
    • मेवाड़ रियासत: ‘चेतावनी रा चुंगट्या’ (13 सोरठे) रचना के माध्यम से मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली दरबार (1903) में भाग लेने से रोका। यह पत्र गोपालसिंह खरवा द्वारा फतेहसिंह को नसीराबाद रेलवे स्टेशन पर दिया गया।
    • कोटा रियासत: 1907 में कोटा में सुपरिंटेंडेंट एबीनोग्राफी के पद पर कार्य किया।
    • गुप्त क्रांतिकारी सभा: शाहपुरा (भीलवाड़ा) में वीर भारत सभा (1910) की स्थापना की।
    • महंत प्यारेलाल हत्याकांड: 25 जून 1912 को जोधपुर के संत प्यारेलाल की हत्या में प्रमुख आरोपी।
    • गिरफ्तारी और कारावास: 1914 में गिरफ्तार होकर बीस साल की सजा भुगती। हजारीबाग जेल (बिहार) में सजा काटी।
    • पुत्र प्रतापसिंह की शहादत: जेल में अपने पुत्र की मृत्यु की सूचना प्राप्त की, और कहा – “मेरा एक और सुपुत्र भारत माँ की आजादी हेतु शहीद हो गया।”
    • रिहाई: 1920 में जेल से रिहा हुए।
    • वर्धा यात्रा: 1920 में जमनालाल बजाज के आग्रह पर वर्धा गए, जहां राजस्थान केसरी समाचार पत्र की शुरुआत की।
    • अहिंसावादी परिवर्तन: 1929 में पूरी तरह अहिंसावादी बन गए।
    • रासबिहारी बोस ने कहा: “भारत में एकमात्र केशरीसिंह बारहठ ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत माता की दासता की श्रंखला को काटने के लिए अपने समस्त परिवार को स्वतंत्रता के युद्ध में झोंक दिया।”
    • मृत्यु: 14 अगस्त, 1941 को निधन हुआ।
  • रचनाएँ:
    • चेतावणी रा चुंगट्या (13 सोरठे) – डिंगल भाषा में
    • राजसिंह चरित्र
    • प्रताप चरित्र
    • दुर्गादास चरित्र
    • रूठी राणी
    • अश्वघोष द्वारा रचित ‘बुद्ध चरित’ का हिंदी में अनुवाद
    • कविराजा श्यामलदास दधवाड़िया की जीवनी

जोरावर सिंह बारहठ : 

  • जन्म – 1883, उदयपुर
  • केसरीसिंह बारहठ के छोटे भाई 
  • रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल से प्रभावित थे।
  • कार्य और घटनाएँ:
    • क्रांतिकारी प्रशिक्षण: मास्टर अमीरचंद से क्रांतिकारी प्रशिक्षण प्राप्त किया।
    • दिल्ली षड्यंत्र केस (1912): दिल्ली में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड होर्डिंग्स पर बम हमला किया।
    • नीमेज हत्याकांड (1913): साधू भगवंत दास की हत्या में शामिल।
    • राजस्थान एवं मालवा में छिपे: राजस्थान और मालवा क्षेत्र में ‘अमरदास बैरागी’ नाम से रहने लगे।
    • मृत्यु: 1939 में अकलगढ़ (मंदसौर) में नारू रोग से निधन।
    • उपनाम – राजस्थान का चन्द्रशेखर आजाद

प्रतापसिंह बारहठ : 

  • जन्म – 1893, उदयपुर
  • पिता – केसरीसिंह बारहठ
  • माता – मणिकदेवी
  • कार्य और योगदान:
    • क्रांतिकारी दल में शामिल: शचीन्द्रनाथ सान्याल और रासबिहारी बोस के दल में शामिल हुए।
    • दिल्ली षड्यंत्र केस (1912) और बनारस षड्यंत्र केस (1917) में शामिल थे।
    • गिरफ्तारी और यातनाएँ: 1917 में गिरफ्तार होकर बरेली जेल भेजे गए।
    • प्रसिद्ध कथन: “मेरी माँ रोती है तो उसे रोने दो जिससे सैकड़ों माताओं को न रोना पड़े।”
    • मृत्यु: 27 मई 1918 को बरेली जेल में शहीद।
    • क्लीवलैंड का बयान: “मैंने अपने जीवन में इतना मजबूत युवक पहली बार देखा है।”

गोपाल सिंह खर्रावा : 

  • क्रांतिकारी योजना: रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल द्वारा अखिल भारतीय सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई।
  • गिरफ्तारी और कारावास: अजमेर टॉडगढ़ जेल में रखा गया।

विजय सिंह पथिक : 

  • परिचय:
  • वास्तविक नाम: भूपसिंह
  • जन्मस्थान: बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
    • बिजोलिया किसान आंदोलन के नेता, जिन्हें “किसान आंदोलनों का जनक” कहा जाता है।
    • रासबिहारी बोस और सचिंद्रनाथ सान्याल के नेतृत्व में क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े।
    • राजस्थान केसरी (1920) और नवीन राजस्थान (1921) का प्रकाशन किया।
    • महात्मा गांधी ने उनकी सराहना करते हुए कहा: “अन्य लोग केवल बातें करते हैं, जबकि पथिक एक सैनिक की तरह काम करते हैं।”
    • निधन: 28 मई, 1954, अजमेर में।
  • रचनाएँ:
    • अजमेरु (उपन्यास)
    • पथिक प्रमोद (कहानी संग्रह)
    • प्रह्लाद विजय (जेल से लिखे गए पत्र)
    • व्हाट आर द इंडियन स्टेट्स (विजय सिंह द्वारा लिखी प्रसिद्ध पुस्तक)
  • राजनीतिक योगदान:
    • राजस्थान के बिजोलिया किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जो एक महत्वपूर्ण किसान संघर्ष था।
    • किसानों के प्रतिरोध और अधिकारों की अवधारणा को राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के व्यापक संदर्भ में बढ़ावा दिया।
    • मान्यता:
    • किसान आंदोलन और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम दोनों में उनके योगदान के लिए उन्हें याद किया जाता है।
    • भारत सरकार ने 1991 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।

राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ/ राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियाँ

error: Content is protected !!
Scroll to Top