लेखांकन और वित्तीय विश्लेषण के सिद्धांत

लेखांकन और वित्तीय विश्लेषण के सिद्धांत विषय के अंतर्गत, हम लेखांकन & अंकेक्षण के मूल सिद्धांतों की समझ विकसित करते हैं। यह अध्याय वित्तीय लेन-देन के रिकॉर्ड, विश्लेषण तथा व्याख्या की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। लेखांकन और वित्तीय विश्लेषण की यह बुनियादी जानकारी किसी भी व्यवसायिक निर्णय की नींव होती है।

इस अध्याय में हम निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करेंगे:

  • लेखांकन (Accounting)
    • सामान्यत: स्वीकृत लेखांकन सिद्धांत (GAAP)
  • दोहरी लेखा प्रणाली (Double Entry System)
  • वित्तीय विवरण (Financial Statements)
  • वित्तीय विश्लेषण के प्रकार
  • वित्तीय विश्लेषण की तकनीकें और उपकरण
  • तुलनात्मक वित्तीय विवरण
  • समान आकार के वित्तीय विवरण (Common Size Statements)
  • अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis)
  • प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis)
  • नकद प्रवाह विश्लेषण (Cash Flow Analysis)
  • कोष प्रवाह विश्लेषण (Fund Flow Analysis)

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

वर्षप्रश्नअंक
2023निम्नांकित व्यवहारों की जर्नल प्रविष्टियाँ बिना विवरण के दीजिये  बी को ₹ 20,000 का माल नगद व ₹ 10,000 का उधार बेचा। बी द्वारा ₹ 5,000 का माल लौटाया गया। ₹ 5,000 का माल व्यक्तिगत उपयोग के लिए निकाला गया।  ऑफिस कार्य के लिए ₹ 30,000 मूल्य का फर्नीचर खरीदा।  ₹ 5,000 मूल्य का माल आग से नष्ट हो गया।5M
2021मिश्रित जर्नल प्रविष्टियाँ क्‍या हैं?2M
2021उचित उदाहरण देते हुए लेखांकन की दोहरी प्रविष्टि प्रणाली के संदर्भ में द्वि-पक्ष लेखांकन की अवधारणा को समझाइए।5M

सभी गतिविधियों (चाहे वे व्यावसायिक हों या गैर-व्यावसायिक) और सभी संगठनों (चाहे वे व्यावसायिक संगठन जैसे विनिर्माण इकाई या व्यापारिक इकाई हों या गैर-व्यावसायिक संगठन जैसे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, पुस्तकालय, क्लब, मंदिर, राजनीतिक दल) में, जहाँ धन और अन्य आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, वहाँ इन संसाधनों का लेखा-जोखा रखने के लिए लेखांकन आवश्यक होता है।

दूसरे शब्दों में, किसी भी संगठन में जहाँ धन या आर्थिक संसाधनों की सहभागिता होती है, उन संसाधनों की उपयोगिता का निर्धारण करने के लिए लेखांकन अनिवार्य होता है। 

लेखांकन की तकनीक एक प्रक्रिया को दर्शाती है, जो पुस्तपालन (Bookkeeping) से शुरू होती है और फिर लेखांकन (Accounting) के चरण तक पहुँचती है।

पुस्तपालन (Bookkeeping)

  • व्यवसायिक लेन-देन को दैनिक आधार पर एक व्यवस्थित तरीके से लेखा पुस्तकों में दर्ज करना बहीखाता लेखन/पुस्तपालन (Bookkeeping) कहलाता है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत वित्तीय लेन-देन के अभिलेख सही, अद्यतन और व्यापक हों।
  • पुस्तपालन में जर्नल में प्रविष्टियाँ करना, खाता बही (लेज़र) में पोस्टिंग करना और खातों का संतुलन बनाना शामिल होता है। परीक्षण तुलन पत्र (ट्रायल बैलेंस) तैयार करने से पहले तक की सभी प्रक्रियाएँ पुस्तपालन का विषय होती हैं।
  • पुस्तपालन की प्रक्रिया के बाद लेखांकन (Accounting) का चरण आता है।

लेखांकन (Accounting)

  • लेखांकन (Accounting) एक सूचना प्रणाली के रूप में संगठन की आर्थिक जानकारी को पहचानने, मापने और प्रबंधन तक संप्रेषित करने की प्रक्रिया है, जिससे प्रबंधन निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सके।
  • अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउंटेंट्स (AICPA) के अनुसार, लेखांकन का संबंध उन लेनदेनों एवम् घटनाओं से है जो पूर्णरूप से या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं एवम् मुद्रा के रूप में प्रभावशाली ढंग से लिखने, वर्गीकृत करके संक्षेप में व्यक्त करने एवम् उनके परिणामों की विश्लेषणात्मक व्याख्या करने से है।

लेखांकन सूचना की गुणात्मक विशेषताएँ

लेखांकन वह जानकारी उत्पन्न करता है जो निर्णय लेने में सहायक होती है। इस जानकारी के उपयोगी होने के लिए उसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

  1. विश्वसनीयता (Reliability): जानकारी विश्वसनीय होनी चाहिए और इसमें किसी प्रकार का व्यक्तिगत पूर्वाग्रह (Bias) नहीं होना चाहिए।
  2. प्रासंगिकता (Relevance): जानकारी समय पर उपलब्ध होनी चाहिए, पूर्वानुमान (Prediction) में सहायक हो, प्रतिक्रिया (Feedback) प्रदान करे और निर्णयों को प्रभावित करे।
  3. समझने योग्य (Understandability): जानकारी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिए ताकि उपयोगकर्ता इसे आसानी से समझ सकें।
  4. तुलनात्मकता (Comparability): उपयोगकर्ता एक व्यवसाय की वित्तीय जानकारी की तुलना किसी अन्य व्यवसाय से कर सकें।
  5. सत्यापन योग्यता (Verifiability): विभिन्न विशेषज्ञ जब एक ही वित्तीय डेटा की समीक्षा करें, तो वे समान निष्कर्षों पर पहुँचें।
  6. समयबद्धता (Timeliness): निर्णय लेने में सहायता के लिए जानकारी सही समय पर उपलब्ध होनी चाहिए।

पुस्तपालन और लेखांकन के बीच अंतर

विशेषतापुस्तपालन लेखांकन 
प्रकृतिवित्तीय लेन-देन की पहचान, मापन,रिकॉर्डिंग और वर्गीकरण।दर्ज किए गए लेन-देन के परिणामों का सारांश, व्याख्या और संप्रेषण।
उद्देश्यकेवल व्यवस्थित रूप से रिकॉर्ड करना।लेन-देन के रिकॉर्ड बनाए रखकर व्यावसाय की आय और वित्तीय स्थिति का पता लगाना।
कार्य (Function)सीमित (सिर्फ लेन-देन को दर्ज करना)।विस्तृत (परिणामों की व्याख्या और संप्रेषण भी शामिल है)।
आधारवाउचर और अन्य सहायक दस्तावेज आवश्यक हैं।पुस्तपालन आधार के रूप में कार्य करता है।
ज्ञान का स्तरलेखांकन का सामान्य ज्ञान पर्याप्त है।लेखांकन का उन्नत और गहन ज्ञान आवश्यक है।
संबंधलेखांकन का पहला चरण।पुस्तपालन जहाँ समाप्त होता है, वहाँ से शुरू होता है।
प्रकारलिपिकीयविश्लेषणात्मक
उपयोगकर्ताकेवल आंतरिक उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है।आंतरिक और बाहरी दोनों उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है।

लेखांकन के उद्देश्य (Objectives of Accounting)

व्यवसाय की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार लेखांकन के उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं, लेकिन सामान्य रूप से इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. सभी वित्तीय लेन-देन का व्यवस्थित और सटीक रिकॉर्ड रखना।
  2. व्यापार के परिणामों (लाभ-हानि) का निर्धारण करना।
  3. बैलेंस शीट के माध्यम से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति (संपत्तियों और देनदारियों) का पता लगाना।
  4. यह पता लगाना कि व्यवसाय के पास अपनी देनदारियों को पूरा करने के लिए कितनी नकदी और तरल संपत्तियाँ हैं।
  5. व्यवसाय की संपत्तियों और संसाधनों का सही उपयोग और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  6. प्रबंधन को सही निर्णय लेने के लिए आवश्यक वित्तीय जानकारी प्रदान करना।
  7. सरकार और अन्य नियामक संस्थाओं द्वारा निर्धारित लेखांकन और कर नियमों का पालन करना।

लेखांकन के लाभ (Advantages of Accounting)

व्यवसाय के लिए लेखांकन के निम्नलिखित लाभ हैं:

  1. यह व्यवसायिक लेन-देन का पूर्ण रिकॉर्ड रखने में सहायता करता है।
  2. मालिकों और प्रबंधकों को व्यवसाय की वित्तीय गतिविधियों के बारे में सार्थक जानकारी (व्यवसाय द्वारा अर्जित लाभ या हानि) प्रदान करता है।
  3. यह आर्थिक निर्णय लेने के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करता है।
  4. पिछले वर्षों के साथ चालू वर्ष के लाभ, बिक्री, व्यय आदि के तुलनात्मक अध्ययन को सुगम बनाता है।
  5. उद्यम के प्राथमिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में उद्यम संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की प्रबंधन की क्षमता का आकलन करने में उपयोगी जानकारी प्रदान करता है।
  6. यह उपयोगकर्ताओं को तथ्यों और व्याख्यात्मक जानकारी प्रदान करता है, जो उद्यम की आय अर्जित करने की क्षमता के पूर्वानुमान, तुलना और मूल्यांकन के लिए उपयोगी होती है।
  7. यह आयकर और बिक्री कर रिटर्न दाखिल करने जैसी कानूनी औपचारिकताओं के अनुपालन में सहायता करता है। सही तरीके से बनाये गए खाते करों के सही आकलन को सुविधाजनक बनाते हैं।
  8. ऋण लेने/देने के निर्णय लेने में सहायक ।
  9. अदालत में साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है।

लेखांकन की सीमाएँ (Limitations of Accounting)

  1. यह ऐतिहासिक प्रकृति का होता है, जिससे व्यवसाय की वर्तमान वित्तीय स्थिति या मूल्य का सही परिलक्षण नहीं होता।
  2. लेखांकन में गैर-मौद्रिक लेन-देन शामिल नहीं किए जाते। यह केवल मौद्रिक लेन-देन तक सीमित रहता है और प्रबंधन क्षमता, प्रतिष्ठा, कर्मचारी मनोबल, श्रमिक हड़ताल जैसे गुणात्मक तत्वों को नजरअंदाज करता है।
  3. वित्तीय विवरणों में दर्ज तथ्य लेखांकन परंपराओं और लेखाकार या प्रबंधन के व्यक्तिगत निर्णयों से प्रभावित होते हैं। इन्वेंट्री मूल्यांकन, संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान और परिसंपत्तियों के उपयोगी जीवन की धारणाएँ विभिन्न व्यवसायों में अलग-अलग हो सकती हैं।
  4. लेखांकन सिद्धांत स्थिर या अपरिवर्तनीय नहीं होते। अक्सर वैकल्पिक लेखांकन प्रक्रियाएँ भी स्वीकार्य होती हैं, जिससे लेखांकन विवरण हमेशा तुलनात्मक डेटा प्रस्तुत नहीं कर पाते।
  5. लेखांकन ऐतिहासिक लागत पर आधारित होता है और इसमें मूल्य परिवर्तनों को शामिल नहीं किया जाता। मुद्रा का मूल्य समय के साथ बदलता रहता है, जो लेखांकन की एक महत्वपूर्ण सीमा है।
  6. लेखांकन विवरण मुद्रास्फीति के प्रभाव को प्रदर्शित नहीं करते।
  7. लेखांकन विवरण उन निवल परिसंपत्ति मूल्यों में वृद्धि को नहीं दर्शाते जो अभी प्राप्त नहीं हुई हैं।
लेखांकन और वित्तीय विश्लेषण के सिद्धांत

लेखांकन किन हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण है?

लेखांकन निम्नलिखित पक्षों या हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण है:

लेखांकन और वित्तीय विश्लेषण के सिद्धांत

महत्वपूर्ण शब्दावली

पूंजी (Capital):

वह राशि जो स्वामी द्वारा व्यवसाय में निवेश की जाती है। इसे स्वामी की इक्विटी (Owner’s Equity) भी कहा जाता है।

आहरण (Drawings):

स्वामी द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए व्यवसाय से नकद या वस्तुओं की निकासी या व्यवसाय निधि से निजी खर्चों का भुगतान करना, आहरण कहलाता है। स्वामी को इन आहरणों पर व्यवसाय को ब्याज देना पड़ता है।

देयताएँ (Liabilities):

वह राशि जो व्यवसाय को बाहरी पक्षों को चुकानी होती है।

  • उदाहरण: बकाया मजदूरी, ऋण आदि।
  • देयताओं का वर्गीकरण:
    • आंतरिक देयता (Internal Liability): व्यवसाय द्वारा स्वामी या मालिक को चुकाई जाने वाली राशि।
    • बाह्य देयता (External Liability): व्यवसाय द्वारा बाहरी व्यक्तियों को चुकाई जाने वाली राशि।
    • समय के आधार पर:
      • गैर-चालू देयताएं (Non-Current Liabilities): 1 वर्ष से अधिक समय बाद भुगतान किया जाना है।
      • चालू देयताएं (Current Liabilities): 1 वर्ष के भीतर भुगतान किया जाना है
परिसंपत्तियाँ (Assets):
  • वे मूल्यवान संसाधन जो व्यवसाय के स्वामित्व में होते हैं, जिन्हें मापने योग्य लागत पर अर्जित किया जाता है।
    • उदाहरण: नकद, भूमि, फर्नीचर आदि।
    • संपत्तियों का वर्गीकरण:
      • गैर-चालू परिसंपत्तियाँ (Non-Current Assets): माल और सेवाओं के उत्पादन के लिए व्यवसाय में निरंतर उपयोग के लिए रखी जाती हैं; और पुनर्विक्रय के लिए नहीं होती।
        • मूर्त परिसंपत्तियाँ (Tangible Assets): जिनका भौतिक अस्तित्व होता है। जैसे – नकद, कंप्यूटर।
        • अमूर्त परिसंपत्तियाँ (Intangible Assets): जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता। जैसे – पेटेंट, सद्भावना (Goodwill)।
      • चालू परिसंपत्तियाँ (Current Assets): 1 वर्ष के भीतर नकदी में बदली जा सकने वाली संपत्तियाँ। जैसे – ऋणदाता (Debtors), स्टॉक, बिल्स प्राप्ति (Bills Receivable)।
      • काल्पनिक/नाममात्र परिसंपत्तियाँ (Fictitious/Nominal Assets): ऐसी संपत्तियाँ जो न तो मूर्त होती हैं और न ही अमूर्त, बल्कि, बल्कि वे हानि या व्यय को दर्शाती हैं जिन्हें अभी तक लिखा नहीं गया है। उदाहरण: हानि एवं लाभ खाते का डेबिट बैलेंस (Debit Balance of P&L), स्थगित राजस्व व्यय (Deferred Revenue Expenditure)।
स्थगित राजस्व व्यय (Deferred Revenue Expenditure):

कुछ व्यय ऐसे होते हैं जिनका लाभ कई वर्षों तक मिलता है, इसलिए उन्हें एक ही वर्ष के लाभ-हानि खाते में पूरी तरह से नहीं जोड़ा जाता, बल्कि कई वर्षों में थोड़ा-थोड़ा लिख दिया जाता है।

  • उदाहरण: यदि 2023-24 में ₹5 लाख विज्ञापन पर खर्च किया गया, जिससे अगले चार वर्षों तक लाभ मिलेगा, तो प्रत्येक वर्ष ₹1.25 लाख (1/4वां भाग) लिखा जाएगा और शेष राशि बैलेंस शीट में स्थगित राजस्व व्यय के रूप में दिखेगी।
क्रय (Purchase):

पुनर्विक्रय के लिए वस्तुओं का अधिग्रहण।

  • यदि कोई व्यवसाय उत्पादों का निर्माण और बिक्री करने के लिए कच्चा माल खरीदता है, तो यह क्रय माना जाता है।
  • यदि कोई व्यवसाय अपने कार्यालय के उपयोग के लिए संपत्ति खरीदता है (जैसे – फर्नीचर), तो यह क्रय नहीं माना जाता
बिक्री (Sales):

उन वस्तुओं की बिक्री जिन्हें पुनर्विक्रय के उद्देश्य से खरीदा गया था।

  • यदि व्यवसाय कोई संपत्ति (Asset) बेचता है, तो उसे बिक्री नहीं माना जाता।
  • यदि किसी सेवा के बदले आय अर्जित की जाती है, तो उसे बिक्री में शामिल किया जाता है।
  • बिक्री नकद या उधार हो सकती है।
क्रय वापसी (Purchase Returns / Returned Outward):

दोष, गुणवत्ता संबंधी समस्याओं या अन्य कारणों से आपूर्तिकर्ता को लौटाया गया माल।

बिक्री वापसी (Sales Returns / Returned Inward):

ग्राहकों द्वारा किसी खराबी या अन्य कारणों से लौटाया गया माल। यह माल व्यवसाय में वापस आ जाता है।

प्राप्य (Receivables):

प्राप्य उस धन की राशि को संदर्भित करता है जो एक व्यवसाय अपने देनदारों (ग्राहकों जिन्होंने क्रेडिट पर माल या सेवाएं खरीदीं) से प्राप्त करने की उम्मीद करता है।

  • उदाहरण: यदि व्यवसाय उधार पर माल बेचता है, तो ग्राहक ऋणी (Debtor) कहलाता है, और व्यवसाय को उससे भुगतान प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  • यदि ग्राहक एक निश्चित तिथि को भुगतान करने के लिए एक बिल स्वीकार करता है, तो उसे बिल्स रिसीवेबल (Bills Receivable) के रूप में रिकॉर्ड किया जाता है।
जर्नल/रोजनामचा (Journal):

यह प्रारंभिक प्रविष्टि/मूल अभिलेखन (Book of Prime Entry) की पुस्तक कहलाती है क्योंकि सभी व्यावसायिक लेन-देन इस पुस्तक में सबसे पहले दर्ज किए जाते हैं। यह लेन-देन के दोनों पहलुओं, यानी क्रेडिट और डेबिट, को कालानुक्रमिक क्रम में रिकॉर्ड करता है। रोजनामचे में जब लेखा किया जाता है उसे प्रविष्टि के नाम से जाना जाता है।

रोजनामचा प्रारूप
तिथि विवरण खाता संख्या नाम राशि जमा राशि 
Debit A/c………Dr.    To Credit A/c(Being…………………)
लेज़र फोलियो (Ledger Folio – L.F.):

लेजर फोलियो लेखांकन रिकॉर्ड में एक कॉलम है जो जर्नल और लेजर के बीच प्रविष्टियों को ट्रैक करने में मदद करता है। इसमें लेजर का पृष्ठ संख्या होता है जहाँ एक विशेष जर्नल प्रविष्टि पोस्ट की जाती है।

संयुक्त जर्नल प्रविष्टियाँ(Compound Journal Entries):

कुछ मामलों में, एक लेन-देन में कई खाते शामिल हो सकते हैं या एक ही तारीख को समान प्रकृति के कई लेन-देन हो सकते हैं। अलग-अलग जर्नल प्रविष्टियों के माध्यम से इन्हें अलग-अलग संभालने में अतिरिक्त समय और स्थान लग सकता है। इसलिए, प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए, इन लेन-देन को सामूहिक रूप से ‘संयुक्त जर्नल प्रविष्टि’ नामक एक ही प्रविष्टि में दर्ज किया जा सकता है।

  • वह प्रविष्टि जिसमें एक से अधिक खातों को डेबिट किया जाता है या एक से अधिक खातों को क्रेडिट किया जाता है, संयुक्त प्रविष्टि के रूप में जानी जाती है।
  • किसी संयुक्त प्रविष्टि में तीन या अधिक खाते जुड़े होते हैं।
खाता-बही (Ledger):

यह मुख्य लेखांकन पुस्तक (Principal Accounting Book) होती है, जिसमें किसी व्यवसाय के सभी वित्तीय लेन-देन व्यवस्थित रूप से दर्ज और विशिष्ट खातों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते हैं। उदाहरण: व्यक्तिगत खाते (Personal Accounts), वास्तविक खाते (Real Accounts), और नाममात्र खाते (Nominal Accounts)।

  • जर्नल से प्रत्येक लेन-देन को संबंधित लेज़र खाते में स्थानांतरित किया जाता है।
नाम  (Dr.)जमा  (Cr)
तिथि विवरण रोजनामचा पृष्ट संख्या राशि तिथि विवरण रोजनामचा पृष्ट संख्या राशि 
लेखांकन मानक (Accounting Standards):

आईसीएआई (ICAI) द्वारा जारी किए गए लेखांकन मानक, विभिन्न उद्यमों में वित्तीय विवरणों की विश्वसनीयता और तुलनीयता को बढ़ाने के लिए लेखांकन नीतियों और मूल्यांकन मानदंडों को मानकीकृत करते हैं।

सामान्य रूप से स्वीकृत लेखांकन सिद्धान्त

  • लेखांकन सिद्धांत उन नियमों या दिशानिर्देशों को संदर्भित करते हैं, जिन्हें व्यापारिक लेन-देन को दर्ज करने और रिपोर्ट करने के लिए अपनाया जाता है, ताकि वित्तीय विवरणों की तैयारी और प्रस्तुति में एकरूपता (Uniformity) और वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाई जा सके। उदाहरण: एक प्रमुख नियम यह है कि सभी लेन-देन को उनकी ऐतिहासिक लागत (मूल लागत / Historical Cost) पर दर्ज किया जाना चाहिए।
  • लेखांकन सिद्धांतों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
  • लेखांकन अवधारणाएँ (Accounting Concepts) वे मूलभूत धारणाएँ और विचार होते हैं जो लेखांकन पद्धति के लिए आवश्यक होते हैं। इन्हीं के आधार पर लेन-देन को दर्ज किया जाता है और खातों को व्यवस्थित रूप से रखा जाता है।
  • लेखांकन परंपराएँ/परिपाटियाँ (Accounting Conventions) वे सिद्धांत हैं जो समय के साथ विभिन्न संगठनों द्वारा अपनाई गई लेखांकन प्रथाओं से विकसित हुए हैं।

लेखांकन परिपाटियाँ (Accounting Conventions)

समनुरूपता की परिपाटी (Convention of Consistency)
  • समनुरूपता की परिपाटी के अनुसार, वित्तीय विवरण तैयार करने के लिए विभिन्न लेखांकन अवधियों में समान लेखांकन सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिए। 
  • यह लेखांकन जानकारी को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है और खातों को अधिक तुलनीय बनाता है।
  • उदाहरण: यदि कोई फर्म मूल्यह्रास के लिए सीधी रेखा विधि (Straight-Line Method) अपनाती है, तो उसे आने वाले वर्षों में भी इसी विधि का पालन करना होगा।
  • समनुरूपता के तीन प्रकार:
    • ऊर्ध्वाधर समनुरूपता (Vertical Consistency) (एक ही संगठन के भीतर): यह सुनिश्चित करता है कि किसी कंपनी के भीतर लेखांकन विधियाँ समान रहें।
    • क्षैतिज समनुरूपता (Horizontal Consistency) (समय के साथ): यह सुनिश्चित करता है कि विभिन्न लेखांकन अवधियों में समान लेखांकन सिद्धांतों का पालन किया जाए।
    • आयामी समनुरूपता (Dimensional Consistency) (संगठनों के बीच): यह सुनिश्चित करता है कि एक ही उद्योग में समान व्यवसाय लगातार लेखांकन विधियों का पालन करें।
सारता की परिपाटी (Convention of Materiality)
  • सारता की अवधारणा के अनुसार, लेखांकन में केवल महत्वपूर्ण तथ्यों (Material Facts) पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। अमहत्वपूर्ण (Immaterial) तथ्यों को दर्ज करने और प्रस्तुत करने में समय और संसाधनों को व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
  • किसी तथ्य की महत्वपूर्णता उसकी प्रकृति (Nature) और उसमें शामिल राशि पर निर्भर करती है।
  • यदि किसी तथ्य की जानकारी से वित्तीय विवरणों के उपयोगकर्ता का निर्णय प्रभावित हो सकता है, तो उसे महत्वपूर्ण (Material) माना जाएगा।
  • उदाहरण के लिए, रबर, पेंसिल, स्केल आदि का स्टॉक संपत्ति के रूप में नहीं दिखाया जाता है, और किसी लेखांकन अवधि में खरीदी गई स्टेशनरी की कोई भी राशि उस अवधि के खर्च के रूप में मानी जाती है, चाहे उसका उपयोग किया गया हो या नहीं।
रूढ़िवादिता/संयम की परिपाटी (Convention of Conservatism/Prudence)
  • रूढ़िवादिता/संयम की परिपाटी के अनुसार, लाभ को तब तक दर्ज नहीं किया जाना चाहिए जब तक वह वास्तव में प्राप्त न हो जाए, लेकिन यदि भविष्य में किसी संभावित हानि की आशंका हो, तो उसके लिए खातों की पुस्तकों में प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • उदाहरण के लिए, संदिग्ध ऋणों (Doubtful Debts) के लिए प्रावधान करना।
  • इस सिद्धांत के कारण, किसी कंपनी के लाभ-हानि विवरण में वास्तविक लाभ की तुलना में कम लाभ प्रदर्शित किए जा सकते हैं, क्योंकि संभावित हानियों को पहले ही समायोजित कर लिया जाता है।
पूर्ण प्रकटीकरण की परिपाटी (Convention of Full Disclosure)
  • इस परिपाटी के अनुसार, किसी व्यवसाय इकाई की सभी आर्थिक गतिविधियों को पूर्ण रूप से और समझने योग्य तरीके से वित्तीय विवरणों में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • यह सिद्धांत तर्कसंगत निर्णय लेने के लिए आवश्यक और प्रासंगिक है, क्योंकि स्पष्ट और संपूर्ण वित्तीय जानकारी उपयोगकर्ताओं को सही विश्लेषण और तुलना करने में मदद करती है।

लेखांकन अवधारणाएँ (Accounting Concepts)

व्यवसाय इकाई अवधारणा (Business Entity Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, व्यवसाय और मालिक दो अलग-अलग और स्वतंत्र इकाइयाँ हैं।
  • इसका अर्थ है कि जब स्वामी व्यवसाय में धन लगाता है, तो लेखाकार इसे देयता (पूंजी) के रूप में दर्ज करता है।
  • इसी प्रकार, जब स्वामी व्यक्तिगत उपयोग के लिए फर्म से धन निकालता है, तो इसे आहरण (Drawings) माना जाता है।
मुद्रा माप अवधारणा (Money Measurement Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, केवल वही लेन-देन और घटनाएँ दर्ज की जाती हैं, जो धन (Money) में मापी जा सकती हैं।
  • उदाहरण: संगठन के प्रबंधक की ज्ञान और कौशल व्यवसाय के लिए मूल्यवान होते हैं, लेकिन इन्हें मौद्रिक रूप में मापना संभव नहीं होता, इसलिए इन्हें खातों में शामिल नहीं किया जाता।
सतत व्यवसाय अवधारणा (Going Concern Concept)
  • यह अवधारणा मानती है कि व्यवसाय अनिश्चित काल तक चलता रहेगा और निकट भविष्य में इसे बंद या समाप्त (Liquidate) नहीं किया जाएगा।
लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept / Periodicity Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, व्यवसाय की संपूर्ण जीवन अवधि को छोटे समय अंतरालों (जैसे 12 महीने) में विभाजित किया जाता है, ताकि व्यवसाय के लाभ या हानि का समय-समय पर मूल्यांकन किया जा सके।
  • आमतौर पर 12 महीने (वित्तीय वर्ष) की अवधि को लेखांकन उद्देश्यों के लिए अपनाया जाता है।
ऐतिहासिक लागत अवधारणा (Historical Cost Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, किसी परिसंपत्ति (Asset) को खरीदने के बाद उसे खातों की पुस्तकों में उसकी अधिग्रहण लागत (Cost of Acquisition) पर दर्ज किया जाता है, न कि उसके बाजार मूल्य (Market Price) पर।
मिलान अवधारणा (Matching Concept)
  • मिलान अवधारणा के लिए आवश्यक है कि एक लेखांकन अवधि के खर्चों को नकद प्राप्त या नकद भुगतान के बजाय संबंधित राजस्व के विरुद्ध मिलान किया जाए। 
  • एक लेखांकन वर्ष के लाभ या हानि का पता लगाते समय, हमें उस अवधि के दौरान उत्पादित या खरीदे गए सभी सामानों की लागत नहीं लेनी चाहिए, बल्कि केवल उस वर्ष के दौरान बेचे गए सामानों की लागत पर विचार करना चाहिए।
साक्षात्‍कार (प्राप्ति) अवधारणा (Realisation Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, राजस्व को तभी मान्यता दी जाती है जब वस्तुओं या सेवाओं का हस्तांतरण हो चुका हो और उनके बदले में भुगतान प्राप्त हो गया हो या भुगतान का वचन दिया गया हो।
उपार्जन अवधारणा (Accrual Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, लेन-देन और अन्य घटनाओं का प्रभाव उस समय दर्ज किया जाता है जब वे होते हैं (Mercantile Basis), न कि जब नकद प्राप्त या भुगतान किया जाता है।
  • इन्हें उस लेखा अवधि में दर्ज किया जाता है जिससे वे संबंधित होते हैं।
द्विपक्षीय अवधारणा (Dual Aspect Concept)
  • यह अवधारणा मानती है कि प्रत्येक लेन-देन के दो पहलू होते हैं। प्रत्येक लेन-देन का दोहरा प्रभाव होता है और इसलिए इसे दो स्थानों पर दर्ज किया जाना चाहिए।
  • दूसरे शब्दों में, प्रत्येक लेन-देन कम से कम दो खातों को प्रभावित करता है। यदि एक खाते को डेबिट किया जाता है, तो किसी अन्य खाते को क्रेडिट किया जाना चाहिए। 
  • इसी अवधारणा के कारण बैलेंस शीट (Balance Sheet) के दोनों पक्ष हमेशा समान होते हैं। (लेखांकन समीकरण)

परिसंपत्तियाँ = पूंजी + देयताएँ

  • उदाहरण के लिए, यदि व्यवसाय द्वारा नकद आधार पर मशीनरी खरीदी जाती है, तो एक ओर मशीनरी व्यवसाय में आ रही है, लेकिन दूसरी ओर नकद व्यवसाय से बाहर जा रहा है।
  • इस द्वैध प्रभाव के विभिन्न रूप हो सकते हैं:
    • परिसंपत्ति में वृद्धि और परिसंपत्ति में कमी
    • परिसंपत्ति और देयताओं दोनों में वृद्धि या कमी
    • देयताओं में वृद्धि और देयताओं में कमी
  • यह अवधारणा लेखांकन का मूल सिद्धांत है और इसे बहीखाता की दोहरी प्रविष्टि प्रणाली (द्वि अंकन प्रणाली) कहा जाता है।
वस्तुनिष्ठ साक्ष्य अवधारणा (Objective Evidence Concept)
  • इस अवधारणा के अनुसार, लेखांकन लेन-देन को निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रूप से दर्ज किया जाना चाहिए और यह व्यक्तिगत पूर्वाग्रह (Personal Bias) और राय से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
  • इसे सुनिश्चित करने के लिए, प्रत्येक लेन-देन को सत्यापन योग्य दस्तावेजों या वाउचरों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए।

लेखांकन समीकरण (Accounting Equation) क्या व्यक्त करता है?

लेखांकन समीकरण दर्शाता है कि किसी व्यवसाय की परिसंपत्तियाँ (Assets) हमेशा उसकी देयताओं (Liabilities) और पूंजी (Capital) के कुल योग के बराबर होती हैं।

परिसंपत्तियाँ (A) = देयताएँ (L) + पूंजी (C)

यह समीकरण किसी कंपनी की संपत्तियों (उसके स्वामित्व में क्या है), देयताओं (उस पर क्या बकाया है), और इक्विटी (शेयरधारकों का स्वामित्व हित) के बीच संबंध को व्यक्त करता है। यह लेखांकन का मूलभूत सिद्धांत दर्शाता है कि परिसंपत्तियों का वित्त पोषण या तो उधारी (Liabilities) से किया जाता है या फिर मालिक की पूंजी (Equity) से।

उदाहरण 1: यदि कोई फर्म ₹10,00,000 मूल्य के माल को नकद में खरीदती है, तो एक ओर संपत्ति (माल का स्टॉक) बढ़ेगी, जबकि दूसरी ओर संपत्ति (नकद) घटेगी।

यदि फर्म ₹30,00,000 की मशीन उधार पर Reliable Industries से खरीदती है, तो एक ओर संपत्ति (मशीनरी) बढ़ेगी और दूसरी ओर देयता (लेनदार) भी बढ़ेगी।

सरल उदाहरण: यदि आप अपने बटुए से ₹50,000 निकालकर एक लैपटॉप खरीदते हैं, तो नकद ₹50,000 घट जाएगी, लेकिन लैपटॉप (संपत्ति) ₹50,000 बढ़ जाएगी। कुल मिलाकर, आपके स्वामित्व का मूल्य समान रहता है—सिर्फ उसका रूप बदल जाता है।

लेखांकन में इसे लैपटॉप खाते में वृद्धि और नकद खाते में कमी के रूप में दर्ज किया जाएगा, जिससे संतुलन बना रहेगा।

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