सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता के प्रमुख संगठन

सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता के प्रमुख संगठन राजस्थान इतिहास & संस्कृति विषय के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण विषय है, जो स्वतंत्रता संग्राम से पहले और उसके दौरान जनचेतना के विकास को दर्शाता है। इन संगठनों ने समाज में सुधार लाने, राजनीतिक अधिकारों की मांग करने और जनता को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

19वीं शताब्दी के दूसरे भाग में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना और संगठित राष्ट्रीय आंदोलन का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारतीय बुद्धिजीवियों ने राजनीतिक शिक्षा फैलाने और देश में राजनीतिक कार्य शुरू करने के लिए राजनीतिक संगठनों का गठन किया। 1885 में, इन प्रयासों का समेकन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में हुआ, जो बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली प्रमुख संस्था बन गई। देशी रियासतों में, लोगों ने कड़े दमन का सामना करते हुए जनमत को संगठित करने के लिए नए तरीकों को अपनाया। उन्होंने पाठक कक्ष (रीडिंग रूम), पुस्तकालय, स्व-सहायता केंद्र और कल्याणकारी सभाओं (हितकारिणी सभाओं) की स्थापना की। ये राजनीतिक मंच थे, जिन्होंने अपने-अपने राज्यों में लोकतंत्रीकरण की मांग उठाई। बाद में, एक केंद्रीकृत संगठन ‘ऑल इंडिया पीपल्स स्टेट्स कांफ्रेंस’ के नाम से गठित किया गया, जिसका उद्देश्य देशी रियासतों में उत्तरदायी सरकारों की मांग के लिए समन्वित प्रयास करना था।

राजनीतिक जागरूकता के प्रमुख संगठन

राजस्थान सेवा संघ, वर्धा (1919):

  • स्थापना: 1919 में विजयसिंह ‘पथिक’, रामनारायण चौधरी और हरिभाई किंकर ने गांधीजी से प्रेरणा लेकर वर्धा में की।
  • उद्देश्य: जागीरदारों और प्रजा के बीच मैत्री-संबंध स्थापित करना।
  • ध्येय वाक्य: “जान के खौफ से कर्तव्य से न हटूंगा कभी, काम रह जाएगा, जान रहे न रहे।”
  • कार्य: बिजौलिया और बेगूं किसान आंदोलनों तथा सिरोही व उदयपुर में भील आंदोलनों का नेतृत्व।

राजपूताना मध्य भारत सभा, दिल्ली (1918):

    • स्थापना: कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के दौरान जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में चांदनी चौक स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में हुई।
    • मुख्यालय: अजमेर।
    • उद्देश्य:
      • देशी रियासतों की प्रजा की समस्याओं की ओर कांग्रेस का ध्यान आकर्षित करना।
      • अछूतोद्धार और जागीरदारों के विरुद्ध आंदोलन।
      • प्रवासी राजस्थानियों का सहयोग प्राप्त करना।

    अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद, बम्बई (1927):

    • स्थापना: अप्रैल 1927 में पूना में बैठक के बाद मई 1927 में पहला अधिवेशन बम्बई में बुलाया गया।
    • उद्देश्य: देशी राज्यों के हितों की रक्षा और आंदोलन का नेतृत्व।

    सर्वहितकारिणी सभा, चूरू (1907):

    • स्थापना: 1907 में स्वामी गोपालदास, पं. कन्हैयालाल और पं. श्रीराम मास्टर द्वारा की गई। इसे “चूरू की कांग्रेस” भी कहा जाता था।
    • उद्देश्य:
      • विद्या प्रचार, पीड़ितों की सेवा और समाज सुधार।
      • नारी शिक्षा के लिए ‘सर्वहितकारिणी पुत्री पाठशाला’ की स्थापना।
      • हरिजनों के लिए ‘कबीर पाठशाला’ की स्थापना।
      • राजकीय अदालतों में हिंदी भाषा के प्रयोग की मांग।

    आजाद मोर्चा, जयपुर (1942):

    • स्थापना- अगस्त क्रांति के दौरान बाबा हरिश्चंद्र के नेतृत्व में जयपुर में।
    • पृष्ठभूमि- जयपुर प्रजामंडल के हीरालाल शास्त्री ने मिर्जा इस्माइल के साथ समझौता कर आंदोलन का विचार त्याग दिया (जेन्टलमेन एग्रीमेन्ट) तब बाबा हरिशचन्द्र ने प्रजामण्डल से अलग होकर वर्ष 1942 में आजाद मोर्चा का गठन कर  शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखा।

      सामाजिक जागरूकता के प्रमुख संगठन

      देश हितैषनी सभा, उदयपुर (1877):

      • स्थापना: 2 जुलाई, 1877 को महाराणा सज्जन सिंह की अध्यक्षता में।
      • उद्देश्य:
        • दहेज और विवाह संबंधी खर्चों को नियंत्रित करना।
        • बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाना।
      • मुख्य प्रावधान:
        • वार्षिक आय का 10% तक ही ‘त्याग’।
        • विवाह खर्च: ज्येष्ठ पुत्र/पुत्री के लिए वार्षिक आय का 25%, अन्य के लिए 10%।
        • राज्य के बाहर के चारणों को ‘त्याग’ निषेध।

      वाल्टर कृत हितकारिणी सभा, अजमेर (1888-89):

      • स्थापना: कर्नल वाल्टर द्वारा 9 मार्च, 1888 को।
      • उद्देश्य:
        • मृत्यु-भोज (नुक्ता) पर खर्च कम करना।
        • विवाह योग्य आयु (14,18)निर्धारित करना।
        • टीके और रीत की प्रथा समाप्त 
        • बहुविवाह प्रथा समाप्त 
      • सदस्य: राजस्थान के राज्यों से अधिकारियों और जागीरदारों की भागीदारी।

      जीवन कुटीर, वनस्थली (1929):

      • स्थापना: हीरालाल शास्त्री द्वारा 12 मई, 1929 को टोंक जिले के वनस्थली में।
      • उद्देश्य: स्वावलंबन पर आधारित नया ग्राम समाज बनाना।

      शिक्षा कुटीर/वनस्थली विद्यापीठ, टोंक (1935):

      • स्थापना: हीरालाल शास्त्री की पुत्री शांताबाई की स्मृति में।
      • उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देना।
      • रतन शास्त्री और प्रकाशचंद्र गोयल द्वारा संचालन ।

      सर्वहितकारिणी सभा, चूरू (1907):

      • स्थापना: 1907 में स्वामी गोपालदास, पं. कन्हैयालाल और पं. श्रीराम द्वारा।
      • उद्देश्य:
        • बालिका शिक्षा के लिए ‘सर्वहितकारिणी पुत्री पाठशाला’।
        • हरिजन शिक्षा के लिए ‘कबीर पाठशाला’।

      महिला मण्डल, उदयपुर (1935):

      • स्थापना: 10 नवम्बर, 1935 को दयाशंकर श्रोत्रिय द्वारा।
      • उद्देश्य: महिलाओं में शिक्षा के माध्यम से राजनीतिक चेतना और राष्ट्रीय भावना का विकास।
      • दयाशंकर श्रोत्रिय की पत्नी कमला श्रोत्रिय का महत्त्वपूर्ण सहयोग।
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